Author: nishankji-user

एनआईटी अरूणाचल प्रदेश के यांत्रिक एवं रासायनिक बॉयोटेक शैक्षणिक ब्‍लॉक, केन्‍द्रीय उपकरण सुविधा एवं प्रतिक्रिया इंजीनियरिंग लैब का उद्घाटन

 

एनआईटी अरूणाचल प्रदेश के यांत्रिक एवं रासायनिक बॉयोटेक शैक्षणिक ब्‍लॉक, केन्‍द्रीय उपकरण सुविधा एवं प्रतिक्रिया इंजीनियरिंग लैब का उद्घाटन

 

दिनांक: 26 अक्‍टूबर,2020

 

 

 

माननीय शिक्षा मंत्री, डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’

 

अरुणाचल प्रदेश में आज केइसमहत्‍वपूर्णउत्सव में सम्‍मिलितप्रदेश के बहुत ही जुझारू और यशस्वी मुख्यमंत्री आदरणीय श्री पेमा खांडू जी, केन्द्र में मेरे बहुत ही अभिन्न मित्र और यशस्वी केन्द्रीय मंत्री और जो इस क्षेत्र के यशस्वी सांसद भी हैं आदरणीय किरेन रिजीजू जी, अरुणाचल प्रदेश केयशस्‍वीशिक्षामंत्री श्री तबा तादिर जी,इस एनआईटी के निदेशक पिनाकेश्‍वर महंत जी,हमारे एडीजी श्री मदनमोहनजी, रजिस्टार, सभी विभागाध्यक्ष, डीन, फैकल्टी, बीओजी के सभी सदस्यगण, एनआईटी परिवार और अरुणांचल प्रदेश के शिक्षा विभाग तथा विभिन्न क्षेत्रों से जुड़े सभी उपस्थित भाइयो और बहनों! मैं इस खुशी के अवसर पर आपके बीच उपस्‍थित हो करके अपने को सौभाग्यशाली समझता हूं कि आज अरुणाचल को सौगातके रूप में एक राष्ट्रीय महत्व के स्‍थाई परिसर का शुभारंभ हो रहा है। यहराष्ट्रीय महत्व का जो संस्थान है जोअरुणाचल प्रदेश की युवा पीढी को न केवल अरुणाचल प्रदेश को गौरव दिलाएगा बल्कि मेरे देश को भी पूरी दुनिया में गौरव दिलाएगा, ऐसा मेरा विश्वास है। लंबे समय के बाद प्रतीक्षा थी जैसे किरण भाईने भी चर्चा की कि वो लगातार इस बात को कहते रहे कि इसका रिवाइज एस्टीमेट होना है और मुझे याद है कि पेमाजी जोहमारे बहुतयंग मुख्यमंत्री हैं और इनकी जिजीविषा और छटपटाहट को मैंबहुत अच्छे से जानता हूं क्‍योंकि वे टेलीफोन पर भी लगातार संपर्क करते हैं, तो पत्राचार में भी कभी कोई कमी नहीं रखते और मैंने इनके पत्र को तब भी देखा था और मुझे खुशी है कि जो 2009-10तक रुका हुआ काम था वो अब बहुत तेजी से आगे बढ़ रहा है और इसका जो रिवाइज एस्टीमेट हुआ है वो 868.36 करोड़ रुपये का इसका रिवाइज एस्टीमेट हुआ है। अभी 33.80 करोड़ का काम हमारे निदेशक श्री अग्रवाल जी के नेतृत्‍व में बहुत तेजी से वहां पर चल रहा है। जिसको अतिरिक्त 430.56करोड़ रूपए की और ज़रूरत है। मैं पेमाजी को और उनके जो शिक्षा मंत्री हैं क्योंकि शिक्षा मंत्री जी भी मेरे साथ लगातार जुड़े हुए हैं और पिछले हर महीने सेलगभग मैं देश के सभी शिक्षा मंत्रियों की जबमीटिंगकरता हूं तो मुझे पेमा जी आपको बधाई देनी है कि आपके शिक्षा मंत्री बहुत अच्छा काम कर रहे हैं और आपके नेतृत्व में टास्कफोर्स गठित हो गई जिससेलगभग हम लोग हर 15 दिन में चर्चा करतेहैं। मैं नई शिक्षा नीति की नीचे तक समीक्षा करने की कोशिश करता हूं तो अपने देश के सभी शिक्षा मंत्रियों से जब मेरी बातचीत होती है तो मुझे इस बात को कहते हुए खुशी होती है कि मेराअरुणाचल प्रदेश बहुत तेजी से नई शिक्षा नीति के क्रियान्वयन की दिशा में बहुत ही गंभीरता से पहल कर रहा है, सक्रियता से पहल कर रहा है और मुझे भरोसा है कि जो आपकी पहल होगी मुख्यमंत्री जी यह अरुणाचल प्रदेश ने पूरे देश के नक्शे को एक नए सिरे से मेरे देश के यशस्‍वीप्रधानमंत्री जी ने जो 21वीं सदी के स्वर्णिम भारत की परिकल्पना की है जो उनका संकल्प है कि ऐसा भारत जो सुंदर भारत हो, ऐसा भारत जो स्वस्थ भारत हो, जो स्वच्छ भारत हो,जोसक्षम भारत हो,जो समृद्ध भारत हो,जो आत्मनिर्भर भारत हो और जो श्रेष्ठभारत हो,ऐसे भारत के निर्माण की यह नई शिक्षा नीति आधारशिला बनेगीऔरउसमें अरुणाचल प्रदेश पीछे नहीं है। मैं मुख्यमंत्री जी आपको इसके लिए बधाई देना चाहता हूं, शुभकामना देना चाहता हूँ कि आपके नेतृत्व में बहुत तेजी से प्रदेश आगे बढे। मुझे इस बात की भी खुशी है कि जो आज एनआईटी के स्थाई कैम्पस की शुरूआतहुई है और जब मैं लगातार अपने राष्ट्रीय महत्व के संस्थानों की समीक्षा करता हूँ तो मुझे खुशी होती है कि एनआईटी अरुणाचल ने बहुत कम समय में काफी तेजी से आगे बढ़ना शुरू किया है और एनआईआरएफ रैंकिंग में इंजीनियरिंग श्रेणी में 200 स्थान बनाने में तथा अटल रैंकिंग में 11वां स्थान प्राप्‍त कर बहुत ही शानदार प्रयास किया है। मैं देख रहा हूं कि इस संस्‍थान में पांचबैचस्नातक एवं परास्नातक शिक्षा के पूरी कर चुके हैं और 53 संकाय सदस्यों एवंलगभग 800 बच्चों के साथ यह संस्‍थान निरन्‍तर आगे बढ़ने के लिए प्रयासरत है। मैं इसके निदेशक को और उनकी फैकल्टी को बहुत शुभकामना देना चाहता हूं क्योंकि यह जो पर्वत है, यह हिमालय है और यहाँ की आवाज बहुत दूर तक जाती है। हिमालय सामान्य पहाड़ नही है, हिमालय में देश की आत्मा बसती है और निश्चित रूप से जब वहां से कोई चीज बाहर निकलती है तो वो विश्व फलक पर देश की ताकत बन करके जाती है और इसको मैं एहसास कर सकता हूँ क्योंकिमैं भी हिमालय से आता हूँ। मुझे याद है कि वर्ष2010 में जब मैं मुख्यमंत्री उत्तराखंड था तो हम लोगों ने शिमला में एक कॉन्क्लेव किया था। हिलचीफ मिनिस्टर का कॉन्क्लेव किया था और बहुत सारे विषयों पर तब भी यह बात की थी कि यहहिमालय सामान्य नहीं है, देश की सीमाओं पर तैनात हिमालय  देश की रक्षा भी करता है, यह एशिया का वाटर टावर भी है, यह आध्यात्म की शक्ति भी है औरयहां का जो व्यक्ति है वो बेहद अकलुषित भी है। यहां का निवासी सहजभी है,शालीन भी है, संवेदनशील भी है औरउतना ही पराक्रमी भी है। पराकाष्ठा तक का धीरज उसके अंदर है तो उसके बिलकुल अलग गुण हैं। पूरी दुनिया में यह हिमालय का व्यक्ति मेरे देश कीपूंजी है और इसलिए यह जो हिमालय के संस्थान  हैं,जितने भी मेरे विश्वविद्यालय हैं, मेरे राष्ट्रीय महत्व के यह संस्थान हैं, उन सब से बार-बार लगातार आग्रह भी करता हूं कि वे पूरी ताकत झोंक करके पहाड़ पर जन्‍म लेने वाली हमारी प्रतिभाओं की प्रखरता को सामने लायेंगे और उनकी प्रखरता एक बार जब सामने आती है तो वो राष्ट्र के लिए एक बहुत बड़ी धरोहरके रूप में आगे खड़ी होती है।मुझे भरोसा है कि मेरा यह एनआईटी उन अपेक्षाओं को, उन आशाओं को पूरा करेगा और वो इस प्रदेश की शिक्षा की दिशा में, उसकी चेतना के विकास की दिशा में, उसकी प्लानिंग की दिशा में, उसके तमाम जो परिवर्तन होने तथा विकास की दिशा में एक मील का पत्थर साबित होगा। मेरे मुख्यमंत्री जी को उस पर गर्व होगा की वोप्रदेश के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।मुझे लगता है कि जब भी अकादमी और उद्योगों के बीच गैप होता है तब कठिनाई होती है। इस समय हमने कोशिश की है कि मेरे जो यहआईआईटीहैं, मेरे एनआईटी हैंइनके और उद्योगों के बीच गैप न रहे अब उद्योगों को क्या जरूरत है,वहां पर स्थानीय आवश्यकता क्या है औरउसको पाठ्यक्रम से जोड़ करके उसको ऊपर उठाने का काम हम कर रहे हैं और इसीलिए नयी शिक्षा नीति में हम तमाम परिवर्तन लेकर के आये हैं। इस समय बहुत व्यापक परिवर्तन और सुधारों के साथ इस नई शिक्षा नीति को हम लाए हैं जो नीचे से स्कूली शिक्षा ही नहीं बल्कि तीन वर्ष के बच्चे से लेकर के अर्थात् प्री-प्राइमरी से लेकर के एवंआँगनवाड़ी से लेकर के उच्च शिक्षा एवंशोध और अनुसंधान तक व्यापक तरीके से हम परिवर्तन लाएं हैं। पुराने 10+2 को हटा करके 5+3+3+4 किया है और आज इस नई शिक्षा नीति के तहत बच्चे का भी पूरी ताकत के साथ 360 होलिस्टिक मूल्यांकन होगा। वह अपना भी मूल्यांकन करेगा, उसके माता-पिता भी मूल्यांकन करेंगे और उसका साथी भी मूल्यांकन करेगा तथा अध्यापक भी उसका मूल्यांकन करेगा। यह360 डिग्री जो होलिस्टिक मूल्यांकन होगा उससे बच्‍चा एक योद्धा के रूप में सर्वस्व गुणों कोनिखार कर के वह बाहर निकलेगा। शायद दुनिया का पहला हम ऐसा देश होंगे जो छठी कक्षासे हीआर्टिफिशल इंटेलिजेंस शुरू करेंगे और वो भी वोकेशनल स्ट्रीम के साथ इंटर्नशिप के साथ हम शुरू करेंगे। हम शैक्षणिक,शिक्षणेत्तर और वोकेशनल इन तीनों केबीच गैप हम खत्म कर रहे हैं। यह तीनों एक साथ जुड़ेंगे वो शिक्षणेत्तर गतिविधियां भी करेंगे, उसमें सामाजिक हावभाव होंगे, सांस्कृतिक भी होंगे।शिक्षणेत्तर गतिविधियों के माध्‍यम से जहां अक्षर ज्ञान के साथ ही वोकेशनल स्ट्रीम के द्वारा इंटर्नशिप के माध्‍यम से विद्यार्थी कुछ दिनों क्लास में रहेगा तो कुछ दिन वो प्रैक्टिकल में खेतों में जाएगा। मुझे इस बात की खुशी है कि अभी आपने कई लोगों के साथ समन्वय किया है और यहां परआप इनकोट्रेनिंग दे रहे हैं।आपदूसरी संस्थाओं के साथ समझौता, समन्वय एवं सहयोग के माध्यम से विशेषज्ञताके पहलुओं को आप आगे बढ़ाने का काम कर रहेहैं चाहे आईआईटी गुवाहाटीहै,भुवनेश्‍वरपावर ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट है और चाहे भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण है, चाहे वो असम साइंस एंड टेक्नोलॉजी यूनिवर्सिटी हैआपबहुत सारे संस्‍थानोंके साथ मिलकर के रिसर्च से कर रहें हैं। अभी हम दुनिया के सर्वश्रेष्‍ठ127 विश्वविद्यालयों के साथ ‘स्‍पार्क’ केशोध और अनुसंधान कर रहे हैं। वैसे ‘स्‍ट्राइड’ के तहत एवं‘स्टार्स’ के साथ देश में अंतर विषयक शोधों में भी हमारे बच्चे आगे बढ़ रहे हैं और मुझे खुशी है कि जापान कीयूनिवर्सिटी के साथ भी इस संस्था ने एमओयू किया है। हमलोग तो ‘स्टडी इन इंडिया’को एक ब्रांड बनाना चाहते हैं तथा आह्वान करना चाहते हैं कि पूरी दुनिया के लोगो आओ और हिंदुस्तान में आकर सीखों, पढ़ो क्‍योंकिहिन्दुस्तान तो विश्वगुरु रहाहै।हिन्‍दुस्‍तान में तक्षशिला और नालंदा जैसे विश्वविद्यालय रहे हैं जब हम इस देश में कहते थे कि‘एतद्देशप्रसूतस्य सकाशादग्रजन्मनः स्वं स्वं चरित्रं शिक्षेरन्पृथिव्यां सर्वमानवाः’पूरी दुनिया के लोगों ने तो ज्ञान, विज्ञान, अनुसंधान, नवाचार, प्रौद्योगिकी हिंदुस्तान की धरती पर आकर सीखा है और इसलिए देश एक बार फिर अंगड़ाई ले रहा है। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द मोदी जी कीअगुआई में देश विश्व की महाशक्ति के रूप में और विज्ञान की महाशक्ति के रूप में बहुत तेजी से उभरने का प्रयास कर रहा है। इसीलिए ‘स्टडी इन इंडिया’ के तहत पूरी दुनिया के लोग अब यहां पर आकर के पढ़ेंगे। पिछली बार जब हमने ‘स्टडी इन इंडिया’कायह अभियान शुरू किया था तो 50 हजार से भी अधिक दुनिया के बच्चों ने रजिस्ट्रेशन किया था। मुझे भरोसा है कि जहां हमने ‘स्टडी इन इंडिया’किया है वहीं हमने ‘स्‍टे इन इंडिया’ भी किया है।अभी देश से बाहर जाने की एक होड़ लगी हुई है। लोग कहते हैं कि बच्चा अमेरिका में पढ़ रहा है।हमारेसात से आठ लाख छात्र विदेशों में पढ़ रहे हैंऔर मेरे देश काएक से डेढ लाख करोड़ रुपया प्रति वर्ष दुनिया में जाता है। मेरे देश का पैसा भी और मेरे देश की प्रतिभा भी देश के काम नहीं आती। जो लोग वहां प्रतिभाशाली होते हैं उनको तो अच्छे खासे पैकेज देते हैं और वो प्रतिभा उस देश को सशक्त करने में आगे बढ़ती है। अब हमने ‘स्टे इन इंडिया’ कहा है, कि नहींमेरे छात्रों को अब बाहर जाने की ज़रूरत नहीं है। मेरे आईआईटीज, मेरे एनआईटी हैं, मेरे केंद्रीय विश्वविद्यालय हैं और राष्ट्रीय महत्व के तमाम संस्थान हैं। हम इंटरनेशनल स्तर उसका जो पाठ्यक्रम है, जो उसका फलक है, उसको बढ़ा रहे हैं और इसलिए सभी छात्रों को कहा है कि बाहर जाने कीकोई जरूरत नहीं है। जो आपको बाहर मिल सकता है वो इसके अंदर भी मिलेगा और वैसे भी हम इस नई शिक्षा नीति के तहत दुनिया की जो टॉप 100यूनिवर्सिटीज हैं, उन सभी यूनिवर्सिटी को भारती धरती पर आमंत्रित कर रहे हैं,वोआएं और हमारे भी बड़े विश्वविद्यालय, बड़े संस्थान वो पूरी दुनिया में जाएं।हम आदान-प्रदान करना चाहते हैं और हमारे बच्चे को भी इसमें जाने की ज़रूरत है। एक समय था जब इस बात की होड़थी कि मेरा बच्चा विदेश में पढ़े। लेकिन अब आपने देखा कि ऐसा नहीं है कि केवल दुनिया के दूसरेदेशों की पढ़ाई बहुत अच्छी है और हमारी पढ़ाई अच्छी नहीं है। यदि ऐसा हीहोता तो अमेरिका की जो शीर्षकंपनियां हैं चाहे गूगल हो, चाहे माइक्रोसॉफ्ट हो वहां हिंदुस्तान की धरती से पढ़ने वाले आईआईटी, एनआईटी, आईसर,आईआईएम के छात्र आज वहां पर लीडरशिप दे रहे हैं। मैं जब सभी आईआईटीके आंकड़े निकालता हूं तो मैं कह सकता हूं कि पूरी दुनिया में इस समय हिंदुस्तान का नौजवान हर क्षेत्र और हर देश में लीडरशिप ले रहा है और इसलिए अब जरूरत होगई है कि वो अपने देश में लौटें। हिंदुस्तान पूरी दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है। हिंदुस्तान का जो शिक्षा का व्‍याप है। उसमेंएक हजार से अधिक विश्वविद्यालय हैं, पैंतालीस हजार से भी अधिक डिग्री कॉलेज  हैं, एक करोड़ से अधिक अध्यापक हैं,15 लाख से भी अधिक यहांस्कूल हैं और कुल अमेरिका की जितनी आबादी नहीं है उससे ज्यादा 33 करोड़ छात्र-छात्राएं इस देश के अंदर हैं और यह देश यंग इंडिया रहनेवाला है और इसलिए मैंनवयुवकों से आह्वान करताहूं। मेरे यहएनआईटीजिस दिन और यह हमारा अरुणाचल प्रदेश जिस दिनपूरे यौवन पर आएगा पूरे देश के कोने-कोने का बच्चा भी मेरी एनआईटी अरुणाचल में पढने के लिए यहां आएगा और इसके अंतर्राष्ट्रीय स्तर के अवस्थापना को भी हम खड़ा कर रहे हैं। मैं इसका विश्लेषण करता हूं जैसे कि अभी मैं शोध देख रहा था तोमेरे डीजी नेमुझे बताया की एक ही वर्ष के अंदर तीन सौ से भी अधिक शोध पत्र उन्होंने जमा किए हैं और पेटेंट्स का भी होना इसकी जरूरत हैं। अभी हम लोग केवल शोध और अनुसंधान में पीछे थे क्‍योंकि पेटेंट में भीहम पीछे थे। अभी तक हमारी होड़ थी पैकेज की।हम कहते थे इंजीनियरिंग करने के बाद कितना पैकेज मिल जाएगा?आज उस पैकेज की दौड़ को बदलकर केपेटेंट की दौड़ में परिवर्तित करने की ज़रूरत है। हम ही तो हैं दुनिया में जो कुछ भी कर सकते हैं और वो इतिहास इस बात का साक्षी है कि हिन्दुस्तान जब खड़ा होता है, हिंदुस्तान की प्रतिभा जब एक साथ एक जुट होकर के देश के बारे में सोचती है तो दुनिया का मार्गदर्शन करती है। वो वक्तइस समय आ गया इसलिए मेरा भरोसा है कि चाहे मेक इन इंडिया हो, डिजिटल इंडिया हो, स्किल इंडिया हो, स्टार्ट अप इंडिया हो और स्टैंड अप इंडिया हो और क्‍यों मेक इन जापान हो, क्‍योंमेक इन चाइना हो हमारे पास क्षमता है हमारे पास सब कुछ करने की जगह प्रतिभा की भी कमी नहीं है और मिशन की कमी नहीं है तथा विजन की भी कमी नहीं है। अब हमें समन्‍वयकरने की जरूरत है और जरूर हम इसका समन्‍वय करेंगे। अभी मैं देख रहा था कि यहांस्किल डवलपमेंट में भी आपने बहुत तेजी से काम किया है और आत्मनिर्भरकाअभियान शुरू किया हमारे देश के प्रधानमंत्री ने आत्मनिर्भर भारत में जो मेरा युवा है वह एनआईटी में एक बार आजाता है तो वोआत्मनिर्भर भारत की आधारशिला रखेगा। मेरा विद्यार्थी जबयहांसेबाहरनिकलेगा तोएक योद्धा के रूप में जाएगा और वोतमाम मुद्दों को लेकर के गांव-गांव के विकास को लेकर के एक नई आधारशिला खड़ा करने का काम करेगा। आपके स्टार्ट अप सेल ने संज्ञानात्मक कौशल, डिजाइन थिंकिंग एवं क्रिटिकल थिंकिंग, अरुणाचल हैकाथॉनजैसे विभिन्न कार्यक्रमों आपने कृषि और ग्रामीण विकास, नवीकरणीय ऊर्जा आईटी मैनजमेंट और हेल्थ केयर रोबोटिक्स ड्रोन और इलेक्ट्रॉनिक्स वाहनजैसे तमाम विषयों में आप काम कर रहे हैं। आपके निदेशक अच्‍छे एवंविजनरीहैं। मैं कहूंगा कि आपके जो छात्र तथा फैकल्टी हैं वेकभी मुख्यमंत्री जी को आमंत्रित करें तथा अपने विभागों के साथ ग्रामीण विकास विभाग के साथ तथा अन्‍य तमाम विभागों के साथ अपनी इसप्रतिभा को इनको दीजिए। जो समस्याएं बिखरी हुई हैं, उनके समाधान की दिशा में उनको टास्क दीजिए। मुझे भरोसा है कि वह इस प्रदेश के विकास में एक बेहद बड़ी धुरी बन कर के काम कर सकते हैं। मुझे भी खुशी है कि अक्षय ऊर्जा औरप्रौद्योगिकी, खाद्य सुरक्षा, पर्यावरण विज्ञान, आर्टिफिशल इंटेलिजेंस, मशीन लर्निंग तथा रोबोटिक्स जैसे क्षेत्रों में कई अनुसंधान परियोजनाओं पर आप लोग काम कर रहे हो। मुझे खुशी है और आप ने 23 पेटेंट भी दायर किया और 12 को आपकी स्वीकृति मिली है। इसी में आपको और छलांग मारनी है। मैं जब समीक्षा करता हूं तो पाता हूं कि चीन हमारे साथ 15 साल पहले वहीं पर खड़ा था। लेकिन इन्होंने शोध और अनुसंधान में छलांग मारी। हमारे यहां तो शोधअनुसंधान की संस्कृति बीच मेंखत्म सी हो गयी अथवासुस्त सी पड़ गई और उसके कारण बड़ा झटका हमको लगा। लेकिन हम उस खाई को तेजी से पाटेंगे और शोध तथाअनुसंधान की संस्‍कृति को विकसित करने के लिए अब नेशनल रिसर्च फाउंडेशन होगा जो प्रधानमंत्री जीके प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार की अध्यक्षता में होगा और प्रति वर्ष लगभग 20 हजार करोड़ से भी अधिक का व्‍यय उस पर होगा।मेरे छात्र शोध और अनुसंधान करेंगे और दूसरी ओर तकनीकी की दृष्टि से मेरे देश के अंतिम छोर पर बैठे रहने वाले व्यक्ति को कैसे समृद्ध किया जाएगा वे इसका उपयोग कैसे करें इसके लिए नई शिक्षा नीति के तहत नेशनल एजुकेशन टेक्नोलॉजी फोरम का भी गठन किया जा रहा है।नई शिक्षा नीति के तहत मुझे लगता है इन दोनों के बनने से बहुत तेजी से काम होगा और शोध तथा अनुसंधान में जो बिखरी हुए समस्याएं हैं, उनकासमाधान भी होगा और पलायन भी रुकेगा। मेरे देश में ‘मेक इन इंडिया’ और जो आत्‍मनिर्भरभारत है इसकी भी आधारशिला मजबूत होगी। पर्यटन का भी अच्छा क्षेत्र है, तमाम उत्पाद जो पर्वतीय क्षेत्र के जो यह राज्य हैं यह तो भारत के लिए वरदान साबित हो सकते हैं और आपने प्रौद्योगिकी की मदद से स्टार्टअप एवंपांच वर्षीय प्रोजक्ट भी कुछ प्रारम्भ किए हैं जैसे खिलौना निर्माण। अब आप देखिए कम से कम 15 हजार करोड़ से भी अधिक के खिलौने बाहर से आते हैं। जिस दिन खिलौने की आप मेकिंग करना शुरु कर देंगे। मुझे लगता है कि उस दिन बहुत बड़ी इंड्रस्टी हमारी इन खिलौने पर होगी। मूल्य वर्धित उत्पादों जैसे कि भी इलायची अचार मुझे लगता है कि आप ऐसी जगह बैठे हैं जहां हमने कहा है कि जो आयु का विज्ञान है वो आयुर्वेद है और हमारे पास इस हिमालय में संजीवनी बूटियां भी हैं जो जीवन देती हैं और इसीलिए उन जड़ी बूटियों पर और अन्‍य उतपदों पर शोध और अनुसंधान होना चाहिए। पूरी दुनिया की स्वास्थ्य की रक्षा करने का अकेला माद्दाइस हिमालय के क्षेत्र में हैं और इसलिए इसकी जरूरत है। मुझे लगता है कि वैसे भी अपने बॉर्डर के क्षेत्र के यह राज्य हैं तो आपने सैटेलाइट डेटा कलेक्शन सेंटर, सेंटर फॉर एनर्जी,सेंटर फॉर हर्बल मेडिसन यह आपने शुरू किया। मैं एनआईटी को इस बात की भी बधाई देना चाहता हूं कि जब कोरोना की महामारी से पूरी दुनिया संकट से गुजर रही थी और हमारा देश भी उससे अछूता नहीं था ऐसी परिस्थिति में आपकोविडकी क्षणोंमें भी अपनी प्रतिभा को निखार कर लायें हैं और आपने ऑनलाइन डिजिटल क्लासरूम शुरू किए हैं,ऑनलाइनके माध्यम से आपने पढ़ाना शुरू किया है। मुझे लगता है पूरी दुनिया का शायद ही ऐसा उदाहरण होगा जब 25 करोड़ से भी अधिक छात्रों को हम एक साथ ऑनलाइनपर लाए। दुनिया में इतनी बड़ी संख्या में छात्रों को एकसाथ ऑनलाइनपर लाना कोई सोच भी नहीं सकता लेकिन हम लोगों ने उसको किया। इन संस्थानों ने सब मिलकर के किया। राज्यों ने भी कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। अंतिम छोर का बच्चा भी जिसके पास स्मार्ट टेलीफोन नहीं है और नेट की सुविधा नहीं है उस तक भी हम कैसे पहुंच सकते हैं। इसलिए स्टेट गवर्नमेंट के साथ मिलकर के आप इन सब चीजों को भी करिए। मुझे भरोसा है कि आपने पीछे के समय भी बहुत अच्छा किया औरसामाजिक दायित्वोंके तहत आपने पांच गांवों को गोद लिया और उनके जीवन स्तर को सुधारने और जागरूकता फैलाने के लिए भी काम कर रहे हैं। यह जो पांच गांव हैं आपके इन पांच गांवों में आपकी पूरी सूरत दिखनी चाहिए। मैं निदेशक से और फैकल्टी से अनुरोध करूंगा कि एनआईटी में आनेवाले बच्‍चों के माध्यम से उन पांच गांवों का पूरा कायापलट कर दीजिए। एक मॉडल तैयार कर दीजिए आप मेरे अरुणाचल के लिए ताकि मेरे मुख्यमंत्री कहीं भी जाकर के कह सकें कि जाओ, उस गांव में जाओ देखो  कि कितना विकास और साफ-सफाई है तथा यह आत्‍मनिर्भरगांव है। इसकी शर्त है और यह आपके लिए टास्क भी है। उन्नत भारत अभियान में सभी राष्ट्रीय महत्व की संस्थाओं को एक टास्क दें कि जहां पर आप हैं आपकी खुशबू आसपास में दिखाई देनी चाहिए। इसएनआईटीकी छाया उन गांवों में दिखाई दे। मुझे भरोसा है आप यह काम  ज़रूर कर रहे होंगे। आप पारंपरिक भाषाओं जैसे आपा, तानी, माचो,मसान, गालों, तंगसा और निशी के संवर्धन की दिशा में भी आप काम कर रहे हैं और आपको तो पता है किमैंने नई शिक्षा नीतिमें मातृभाषाओं को विशेष महत्व दिया है। जब बच्‍चा मातृभाषा में बोलेगा तो उसके अंदर से वह ज्यादा अभिव्यक्ति कर सकता हैऔर इसलिए वैसे भी हमारेदेश के संविधान की अनुसूची 8 में हमारी22 भारतीय भाषाएं हैं। इनके संवर्धन की, उनके संरक्षण की जिम्मेदारी भी हमारे ही ऊपर है।हमने तो यह भी तय किया है कि यदि कोई प्रदेश अपनी मातृभाषा में उच्च शिक्षा तक भी करना चाहता है तो जरुर करें। कुछ लोगों का यह तर्क को होता है कि अब आपको ग्लोबल पूरी दुनिया में जाना है तो अंग्रेजी के बिना तो आप दुनिया में छा ही नहीं सकते हैं, आप मातृभाषा की बात क्यों कर रहे हैं? मैं उनको बहुत विनम्रता से हाथ जोड़ता हूं। हम अंग्रेजी के विरोध में कभी भी नहीं गए। हमने तो कहा कि राज्य भाषाओं के मामले में बच्चों को सीमितन करें, खुला मैदान दो और बच्चे को अधिकतम भाषाएं सीखने का अवसर दो। किसी प्रदेश पर कोई भाषा थोपी नहीं जाएगी लेकिन हां, जिन लोगों ने अपनी मातृभाषा में शिक्षा दी क्या वो हमसे पीछे हैं। मैं पूछता हूं जापान अपनी मातृभाषा में शिक्षा देता है तो क्‍या जापान किसी से पीछे हैं। फ्रांस अपनी मातृभाषा में शिक्षा देता है यहां तक कीअमेरिका अपनी मातृभाषा में शिक्षा देता और और जर्मनी भी अपनी मातृभाषा में ही उच्च शिक्षा तक शिक्षा देता है क्या वे देश पीछे हैं? इजरायल जो हमारे बाद स्वाधीन हुआ जो बिल्कुल ध्वस्त हो गया था औरउसकी भाषा खत्म हो गई थी यहां तक की पूरा समाज खत्म हो गया था और उसने केवल अपनी मातृभाषा में अपने को जिन्दा किया। आज इजरायल अपनी मातृभाषा में शिक्षा देता है वो किसी से पीछे है?जो लोग बिना सोच-विचार के हल्‍के स्‍तर की बातें करते हैं, मैं उनसे हाथ जोड़कर विनम्रता से अनुरोध करता हूं कि इस प्रकार की भ्रांतियां न फैलायें।  हालांकि मुझे इस बात की खुशी है कि इसके बाद उन्होंने कुछ कहा नहीं और आज लोग महसूस कर रहे हैं।इसनई शिक्षा नीति से जो उत्साह एवंउल्लास पूरे देश के अंदर दिखाई  दिया उसे एक उत्सव जैसा मनाया जा रहा है और मुझे इस बात को कहते खुशी है कि दुनिया के दर्जनों देश अब भी कह रहे हैं कि हम भारत की एनईपी को अपने देश के अंदर भी लागू करेंगे क्योंकि  हमने इस नीति को अंतर्राष्‍ट्रीयबनाया और साथ ही भारत केन्द्रित भी बनाया। यह नीति भारत की जड़ों पर खड़ी होगी क्‍योंकि हमारी जड़ें कमजोर नहीं बल्‍कि हमारी जड़ें बहुत मजबूत हैं। हमारे पास सबकुछ  है।शल्य चिकित्सा का जनक सुश्रुत यहीं पर पैदा हुआ, आयुर्वेद का जनक चरक यहां पैदा हुआ,आर्यभट्टगणितज्ञ यहां पैदा हुआ, ऋषि कणाद जिन्‍होंनेअणु और परमाणु का विश्‍लेषण किया तथा भास्कराचार्य जो ज्योतिष विज्ञान के महान् ज्ञाता और गणितज्ञ थे, नागार्जुन जैसे रसायन शास्त्री किस देश में में पैदा हुए तो इसलिए जब हम पीछे मुड़कर के देखते हैं तो यह देश कितना समृद्धता थातभी तो आज भी यह देश विश्वगुरु है। दुनिया का यह योग जिसके बारे में आज हमारे देश के यशस्वी प्रधानमंत्री जी ने मानव की सुरक्षा की बात अंतर्राष्ट्रीय मंच पर क्योंकि मेरा भारत विश्व की बात करता है,‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की बात करता है। इसलिए उस परिवार के हर सदस्य की चिंता करने का काम भी भारत जैसे उदार चरित्र के मन ही कर सकता है और जब उन्होंने इस मनुष्य की संरक्षण की बात की और योग की बात की तो दुनिया के 199देश आज योग के पीछे खड़े हो गए, अपने तन और मन को ठीक करने के लिए इसी हिमालय से योग एवं आयुर्वेद पैदाहुआ है और इसलिए मैं यह समझता हूं कि अब नई शिक्षा नीति के तहत आपके लिए पूरा मैदान खाली है। उच्च शिक्षा में भी विषयों की छूट दी गई है। नई शिक्षा नीति में आप विज्ञान के साथ संगीत ले सकते हैं।इस शिक्षा नीति के अंतर्गत यदि कोई 4 वर्ष का कोर्स है और यदि कोई छात्र दो साल में परिस्‍थितिवशछोड़के जा रहा है  तो पहले उसका पैसा एवं समय दोनों खराब हो जाते थे लेकिन अब उसकोनिराश नहीं होना पड़ेगा,यदि आप परिस्‍थितिवश एक वर्षमें छोड़ कर जा रहे हैं तो उसको सर्टिफिकेटदेंगे,दो साल में छोड़ कर जा रहा है तो डिप्लोमा देगें, तीन साल में छोड़ेकर जा रहा है तो उसकोडिग्री देंगे लेकिन यदि फिर वह लौट कर अपने भविष्य को संवारना चाहता है तो फिर जहां से उसने छोड़ा था वहीं से शुरू कर सकता है। उसके लिए हम एक ऐसा क्रेडिट बैंक बनायेंगे जहां उसके सारे क्रेडिट जमा होंगेइसलिए उसके लिए आगे बहुत आपार संभावनाएं है।पीछे की दिनों में यूनेस्को की डीजी जब मुझसे मिलने के लिए आई थी तो उन्होंने कहा कि अनुशासनहीनता बढ़ रही हैं डॉ.निशंक,हिंसा बढ़ रही है,एक दूसरे के प्रति सम्मान भी कम हो रहा है। मैंने उनको कहा आपको पता है यह क्यों हो रहा है? जब तक हम जीवन मूल्यों की शिक्षा नहीं देंगे, हमने आदमी को मनुष्य नहीं मशीन बना दिया है और अब उसे पहले मानव बनाना पड़ेगा तब जाकर इन संकटों से मुक्‍त हो सकते हैं। हम किसी भी क्षेत्र में जाएंगे लेकिन अपने मूल्यों को नहीं छोड़ेंगे। हमारी जो मनुष्यता हमारे अंदर है, उसे नहीं छोड़ेंगे। इसलिए हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेन्‍द्रमोदी जी कहते हैं कि हमें एक अच्छा नागरिक भी बनाना है और हमको एक मनुष्य एक मानव तो बनानाहीहै। हमें विश्व मानव बनाना है जो विश्व के फलक पर हो तथा जिसकी संवेदनाएं सम्‍पूर्ण विश्‍व को देखती हों, जिसकी दृष्टि पूरे विश्व में व्याप्त हो,जिसकेमन में विश्व को अपने मन में समाने का विचार हो ऐसेविश्‍व मानव कीआज जरूरत है।इसीलिये यह जो नयी शिक्षा नीति है तमाम परिवर्तनों को लेकर के लिए आयी है।यह जो नयी शिक्षा नीति है यहनेशनलभी है, यह इंटरनेशनल भी है, यह इम्पैक्टफुल भी है, तो यहइंटरेक्‍टिवभी है और इन्क्लूसिव भी है। इसमे क्वालिटी भी है, इक्विटी भी है और इसमें एक्सेस भी है। इन तीनों की आधारशिला पर यह खड़ी है और यह सामान्य नहीं है। यह नयी शिक्षा नीति भारत को पूरी ताकत के साथ दुनिया में ज्ञान की महाशक्ति बनाने की क्षमता रखती है। मुझे भरोसा है कि आज बहुत तेजी से आप काम कर रहे हैं और मुझे मुख्यमंत्री जी को भी इस बात की बधाई देनी है कि उनके प्रदेश में मैं शिक्षा मंत्री जी से जब-जब बात करते हैं तो यह जिस तरीके से पूरा विवरण रखते हैं उससे मुझे और आशा जगती है कि नहीं, अरुणांचल प्रदेश काफी गंभीर है। इस नई शिक्षा नीति के प्रति और अपने बच्चों के प्रतिअपने भविष्य के प्रति अपने भावी पीढ़ी के प्रति पेमा जी विजनरी व्यक्ति हैं, मिशनरी व्यक्ति हैं और उनके नेतृत्व में मुझे भरोसा है कि हमारा अरुणाचल बहुत आगे बढेगा।किरेन जी भी लगातार चिंतित रहते हैं और स्वभाविकहैकि यहां पर जब केन्द्र में कोई बात आती है तो वो भी लगे रहते हैं और उधर आपका जो नेतृत्व है वो चौमुखी नेतृत्व है।हर दिशा में आपका विजन है, आप जुझारूभी हैं औऱ विजनरी भी हैं तो मुझे भरोसा है कि मेरा यह जो एनआईटी जिसपर आज हम सब लोग बैठे है, यह केवल एक भवन उद्घाटन का ही विषय नहीं है बल्कि आज यहएनआईटी मेरे अरुणांचल प्रदेश के विकास की आधारशिला में एक मजबूत कदम होगा, ऐसी मैं आपको शुभकामना देता हूं।

 

बहुत-बहुत धन्‍यवाद!

 

 

कार्यक्रम में गरिमामयी उपस्‍थिति:-

 

  1. डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’, माननीय शिक्षा मंत्री, भारत सरकार
  2. श्री किरेन रिजीजू, माननीय युवा कलयाण एवं खेल मंत्री, भारत सरकार
  3. श्री पेमा खांडू, माननीय मुख्‍यमंत्री, अरूणाचल प्रदेश
  4. श्री तबा तादिर, माननीय शिक्षा मंत्री, अरूणाचल प्रदेश
  5. श्री पिनाकेश्‍वर महंत, निदेशक, एनआईटी अरूणाचल प्रदेश
  6. श्री मदन मोहन, एडीजी, शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार
  7. रजिस्‍ट्रार, संकाय सदस्‍य, अध्‍यापगण, डीन एवं बीओजी के सदस्‍य।

         

आईआईटी रोपड़ के स्‍थायी परिसर का उद्घाटन

आईआईटी रोपड़ के स्‍थायी परिसर का उद्घाटन

 

दिनांक: 22 अक्‍टूबर, 2020

 

 

माननीय शिक्षा मंत्री, डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’

 

आज  के इस महत्‍वपूर्ण कार्यक्रम में उपस्‍थित मेरे सहयोगी और भारत सरकार में शिक्षा राज्यमंत्री आदरणीय संजय धोत्रे जी,हमारे सचिव उच्च शिक्षा श्री अमित खरे जी, अपर सचिव श्री राकेश रंजन जी, आईआईटी रोपड़ के यशस्वी निदेशकप्रो.सरित कुमार दास जी,कुलसचिव श्रीरवीन्‍द्रकुमार जी,प्रभारी अधिष्ठाता प्रो.पीके रैना जी,अधिष्ठाता अनुसंधान प्रो.जावेद आगरेवाला,अधिष्ठाता संकाय मामले और प्रशासन प्रो. दीपक कश्यप,अधिष्ठाता औद्योगिकी परामर्शी प्रो. हरप्रीत सिंह,अधिष्ठाता शैक्षणिक प्रो.राज छाबड़ा और अधिष्ठाता योजना प्रो. जेएसआर सेन, सभी डीन, सभी विभागाध्यक्षों,सभीफैकल्टी औरमेरे छात्र-छात्राओं!आई.आई.टी रोपड़ परिवार के सभी सदस्यगण ने ऐसे अवसर पर जबकि हम एक अपने ऐसे ऐतिहासिक भवन परिसर के उद्घाटन के लिए यहां एकत्रित हुए हैं जहां ऐसीप्रतिभाओं का निर्माण होगा जो केवल मेरे रोपड़ का हीनाम ऊंचा नहींकरेंगे बल्कि मेरे देशका भीप्रखर तरीके से पूरे विश्व में नाम उजागर करेंगे। ऐसे भव्य परिसर जिसका अभी आपने दर्शन कराया मैं इस अवसर पर आप सभी को बहुत-बहुत शुभकामनाएं और बधाई देने के लिए आपके बीच आया हूं। आपका यह संस्‍थान सतलज नदी के किनारे 500 एकड़ के विस्तृत भूखंड पर स्थापित है और यह जो नया भव्य परिसर हमको अभी आप ने दिखाया उस परिसर के दस विभागों में20324विद्यार्थियोंऔर 170 संकाय सदस्यों के साथ बारह वर्ष पूर्ण करने वाला आईआईटी रोपड़ बहुत कम समय में प्रगति कीछलांग मार रहा है। इसके लिए यह फैकल्टी जो मुझे दिखाई दे रही हैं और जो मुझको सुन रही है इसी को सबसे बड़ा श्रेय जाता है। आज जैसे सुपर अकैडमिक ब्लॉक, सेंट्रल लाइब्रेरी, आडिटोरियम बहुत सारी चीजें आपने दिखाई, आप बहुत अद्भुत तरीके से,नयेविजन के साथ एक स्‍थाईभवन ले करके आए हैं और मुझे इस बात की खुशी है कि इस यंग आईआईटी ने क्‍योंकिजब मैं सभी आईआईटी के बारे में विश्लेषण करता हूं तो कम समय में प्रगति करने वाले आईआईटीज में इसका नाम आता है। चाहे एनआईआरएफ रैंकिंग में यदि देखेंगे तो आपने स्‍वयं को 39वें स्‍थान पर स्थापित किया है और क्‍यूएस रैंकिंग में 25वें स्थान पर आप आये हैं। मुझे इस बात की भी खुशी है कि वर्ल्ड रैंकिंग में भी हमारे संस्‍थान बहुत तेजी से अपना स्‍थान बना रहे हैं। वर्ष2013 से पहले तो हमारे कोई संस्थान इस प्रकार की रैंकिंगों में रहते ही नही थे। अब हमारे संस्‍थान वर्ल्ड रैंकिंग में भी तेजी से हमारे संस्थान आने लगे है। मेरे लिए ख़ुशी का विषय है किएशिया यूनिवर्सिटी रैंकिंग 2020 में भी आईआईटी रोपड़ ने47वां स्थान प्राप्त किया है। अभी प्रो.सरित नेकहा है कि हम आने वाले समय में टॉप फाइव में इस संस्‍थान को लेकर आएंगे। हमारा यहसंकल्प है। मैं उस संकल्प के लिए आपको और आपकी पूरी टीम को बहुत बधाई देना चाहता हूँ, शुभकामना देना चाहता हूँ कि यह संकल्प आप का पूरा हो।मुझे बहुतख़ुशी है कि आईआईटी रोपड़ गुणवत्ता में, विविधता में तथा तमाम प्रतियोगिताओं में नित नए अनुसंधानों के क्षेत्र में लगातार काम कर रहा है और उच्‍चगुणवत्तापूर्ण तकनीकी और वैज्ञानिक शिक्षा को दे रहा है। कोई भी संस्थान ज्ञान के प्रति योगदान, समाज के प्रति योगदान तभी दे सकता है जब वह स्‍वयं एक योद्धा की तरह खड़ा हो।मैं समझता हूं कि जो मेरे सामने बैठे हैं  तथा जो सुन रहे हैं उन सभी फैकल्टी को मैं अच्छा योद्धा मानता हूं क्योंकि मैं अभी देख रहा था जब मेरा देश हीक्‍यापूरी दुनिया कोरोना के महासंकट से होकर गुजर रही थी और तब मेरे देश के प्रधानमंत्री जी ने कहा था कि नौजवानों इस चुनौती भरे समय में, संकट के समय में आप क्या कर सकते हैं? तो मुझे खुशी है कि मेरे आईआईटी के छात्रों और अध्यापकों ने जब लोग अपने घरों में रहे होंगे तब प्रयोगशालाओं में रात-दिन खप करके शोध औरअनुसंधान कर रहे थे।जब मैं अपने रोपड़ की ओर देखता हूं तो चाहे वो निगेटिव प्रेशर रोम के निर्माण का विषय हो, चाहे जो अद्वितीय यूजीआई कीटाणु शोधन उपकरण का निर्माण का विषय रहा हो, चाहे शक्ति चालित ट्रॉली का विषय रहा हो और चाहे वो रोपड़ द्वारा तमाम प्रकार के स्‍वास्‍थ्‍य यूनिटों केविकास का विषय रहा हो, मैं इन सबके लिए आपको बधाई देना चाहता हूँ और आपने यह साबित किया है कि देश जब संकट से गुजरता है और चुनौती होती है तो चुनौती का मुकाबला करने के लिए मेरे आईआईटी रोपड़ जैसा संस्‍थान पूरी ताकत के साथ खड़ा है। हमारे देश के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने 21वीं सदी के स्वर्णिम भारत की परिकल्पना की है। ऐसा भारत जो स्वच्छ भारत होगा, स्वस्थ भारत होगा, सुंदर भारत होगा,समृद्धभारत होगा, सशक्त भारत होगा, श्रेष्ठ भारत होगा  और एक भारत होगा।21वीं सदी के ऐसे स्वर्णिम भारत का रास्ता मेक इन इंडिया, डिजिटल इंडिया, स्टार्ट अप इंडिया, स्टैण्ड अप इंडिया से होकर गुजरता है लेकिन उस गुजरने वाले रास्ते की आधारशिला हमारी नई शिक्षा नीति है जो बहुत लंबे समय के बाद आई है।मैं प्रो. सरित की इस बात से सहमत हूं किइस बात को बार-बार याद दिलाने की जरूरत है अपनी नई पीढी को भीअपने प्रतिभाशाली लोगों को भी,अपने वैज्ञानिकों को भी, अपनी तकनीशियनों को भी, कि मेरा देश भारत क्या है? वो भारत जिसकी अभीआपने चर्चा की। जब तक्षशिला, नालंदा और विक्रमशिला जैसे विश्वविद्यालय इस देश के अंदर थे तब दुनिया में कौन सा विश्वविद्यालय था। हमारे यहां यह उक्ति कही जाती थी‘‘एतद्देशप्रसूतस्य सकाशादग्रजन्मनः स्वं स्वं चरित्रं शिक्षेरन्पृथिव्यां सर्वमानवाः’’पूरी पृथ्वी के लोग तो हमारे पास आ करके सीखते थे। ज्ञान,विज्ञान, अनुसंधान के क्षेत्र में हम कहीं भीपीछे नहीं थे।मैं सोचता हूं कि क्‍या दुनिया इस बात को जानती है कि सुश्रुत, शल्य चिकित्सा का जनक इसी धरती पर पैदा हुआ था। दुनिया में आयुर्वेद कहने वाला वो चरक भी इसी धरती पर पैदा हुआ था और आज पूरी दुनिया आयुर्वेद की पीछे आ करके खड़ी है। हमारे देश के यशस्‍वी प्रधानमंत्री योग की बात को तोविश्व फलक पर कहते हैं। हम मानववादी दृष्टिकोण का देश हैं। भारत विश्व बंधुत्व की बात करता है। भारत में जहाँ एक ओर‘अयं निज: परो वेति गणना लघु चेतसाम् उदारचरितांना तु वसुधैव कुटुम्‍बकम्’’ अर्थात् पूरी वसुधा कोअपना परिवार माना है। हम पाश्‍चात्‍य दोनों की इस होड़ में जाने वाले नहीं जो पूरी दुनिया को, पूरे विश्व को एक मार्किट मानते हैं। दुनिया कोबाजार एवं परिवार मानने में बहुत अंतर है। क्योंकि हम महसूस करते हैं परिवार में प्यार होता है और बाजार में केवल व्यापार होता है। हम व्यापार नहीं प्यार के साथ पूरी दुनिया को साथ लेकर आगे बढ़ाना चाहते हैं हमारे पास क्या नहीं है? हां इतना जरूर हुआ है कि देश गुलामी की जंजीरों में जकड़ाऔर तब हमारे साथ छल कपट हुआ। हमको हमारी जड़ों से काट दिया गया और उससे अलग करने की कोशिश हुई है। लार्ड मैकाले की शिक्षा नीति जब शुरू हुई थी और जिस दिन लार्ड मैकाले इस देश में आया उस समय मेरे देश में 97प्रतिशत साक्षरता थी। लेकिन लार्ड मैकाले के आने के बाद जिस तरीके से देश को उसकी जड़ों से दूर करने की कोशिश हुई, हमारी पीढ़ी केमन-मस्तिष्क को बदलने की कोशिश हुई। हमारी संस्कृति, हमारी शिक्षा और हमारे परिवेशको हमारी जड़ों से दूर करने की कोशिश हुई है। मुझे पीछे को नहीं जाना है लेकिन आगे बढ़ने के लिए पीछे जरूर सोचना चाहिए। इसलिए जो प्रो. सरित आपने कहा इसको बार-बारयाद दिलाने की जरूरत है, आगे छलांग मारने के लिए विश्व की नकल करने के लिए नहीं। विश्व में एक कदम आगे बढ़ करके और जो देश हमेशा लीडरशीप देता रहा है इस देश को खड़ा करना है। जो विश्वगुरु भारत था,वोविश्व गुरु भारत रहेगा। आज भी हम ही सम्‍पूर्ण विश्‍व में लीडरशिप करेंगेक्‍योंकिहमारे पास सब कुछ है। आज की दिनांक में भले ही कुछ लोगों ने अपने को हीन भावना से अंकित किया होगा लेकिन मैं तो विगत डेढ़ साल से देखरहा हूं कि मेरे आईआईटी, एनआईटी, विश्वविद्यालय, आईआईएम  कैसी प्रतिभाओं को तरास रहे हैं। यदि विदेश की ही शिक्षा बहुत अच्छी थी तो मैं पूछना चाहता हूं अमेरिका की और दुनिया की जो शीर्ष कंपनियां है चाहे माइक्रोसॉफ्ट हो,चाहे गूगल हो उनके सीईओ मेरे आईआईटी औरहिंदुस्तान की धरती से पढ़कर गया है।  हमारे संस्‍थानों से पढ़े छात्र पूरे विश्‍व में लीडरशिप दे रहे हैं तो हमारी शिक्षा कहां कमजोर है। ऐसा नहीं है और आज भी हमारीसामर्थ्य है। यदि आज रोपड़एक हजार करोड़ की लागत से इस भव्‍य भवन को तैयार करइसकी आधारशिला स्‍थापित कर रहा है और आज आसियान देशों के एक हजार से भी अधिक बच्चे भारत के आईआईटीज में अनुसंधान करने के लिए आरहे हैं। यदि हमने‘स्‍टडी इन इंडिया’ कहा है जिसमें पूरी दुनिया के लोग,अब हमारे देश में पढ़ने के लिए आएंगे और 50 हजार से भी अधिक जिसके रजिस्ट्रेशन हो गये थे और यदि कोविड का संकट नहीं आता तो शायद ओर भी अधिक लोग इससे जुड़ते क्‍योंकि लोगों में यहां भारत आकर के अध्‍ययन करने की बहुत उत्‍सुकता है। इसीलिए हम ‘स्टडी इन इंडिया’कीब्रांडिंग करेंगे औरपूरी दुनिया के लोगों को बुलाएंगे। आपने देखा कि देश की आजादी के बाद आने वाली यह जो नई शिक्षा नीति है इससेपूरे देश में उल्लास एवंउत्साह का माहौल है। ऐसा लगता है कि देश अंगड़ाई ले रहा है, तेजी से बदल रहा है यह 99 प्रतिशत लोगों ने इसको न केवल सराहा है बल्कि उत्सव के रूप में लिया है। जब हम मातृभाषा में शिक्षा की बात को लेकर लोगों ने कहा कि बहुत सारा विरोध हो सकता है। हमने पूछा कि क्यों विरोध हो सकता है? आखिर अपनी मातृभाषा में अपने बच्चों को पढ़ाने में कोई भी क्‍योंविरोध करना चाहता है? अपनी मातृभाषा में तो ज्यादा अभिव्यक्ति हो सकती है। इसी बात को हमारे वैज्ञानिकों औरविशेषज्ञों ने कहा है।युनेस्‍कोतो लगातार इस बात परचर्चा करता रहा है कि बच्चा अपनी मातृभाषा में जितनीअभिव्यक्ति कर सकता है वैसीदूसरी भाषा में अथवासीखी हुई भाषा में या थोपी हुई भाषा में नहीं कर सकता हैऔर इसलिए जो भारत की खुबसुरत भाषाएं है, जो हमारे संविधान कीअनुसूची 8 में हैं उनमें शिक्षा होनी चाहिए।चाहे मलयालम है,कन्नड़ हैं, गुजरातीहैं, मराठीहैं, बंगालीहैं, ओड़ियाहैं, असमियाहैं, पंजाबीहैं, संस्कृतहैं, उर्दूहैं, हिंदीहैं,यह सभीहमारी 22 खूबसूरत भाषाएं हैं। इनके अंदर ज्ञान है,विज्ञान है, अनुसंधान है, परंपराएं है, हमारे जीवन-मूल्‍य हैं, इन भाषाओं कोकैसे मरने देंगे हम?जिन देशों ने अपनी इंजीनयरिंग,तकनीकी,विज्ञानइन सभी की शिक्षा अपनी मातृभाषा में दी है, जापान अपनी मातृभाषा में शिक्षादेता हैं, क्‍या यह किसी से पीछे है? यह जर्मनी अपनी मातृभाषा में शिक्षा देता है यह किसी से पीछे है? यह अमेरिका अपनी मातृभाषा में शिक्षा देता है, यह किसी से पीछे है? यह फ्रांस अपनी मातृभाषा में शिक्षा देता है,क्‍यायह किसीसे पीछे  है और हमारे बाद में आजाद होने वाला इजराइल वो भीडे वन से नीचे से लेकर ऊपर तक अपनी मातृभाषा में शिक्षा देता है। वो भी किसी भी दृष्‍टि से पीछे नहीं है। मैं ऐसा सोचने वाले लोगों कोमैं दोष नहीं देता क्योंकि सैकड़ों वर्षों की गुलामी ने हमको इतने थपेड़े पर लाकर के खड़ाकर दिया है कि अभी हम उससे ऊपर नहीं उठे। लेकिन मैं आह्वान करता हूं तो नौजवानों से यदि मेरी बात को आप सुन रहे हैं कि यह अवसर है हिंदुस्तान को खड़ा करने का, देश अंगड़ाई ले रहा है। नई शिक्षा नीति भी ऐसे ही तमाम परिवर्तन और संभावनओंको लेकर के आई है। हम पूरा मैदान खाली करेंगे।हमने10+2 को हटा करके 5+3+3+4 किया है और शोधएवंअनुसंधान के क्षेत्र में हम नीचे बेसिक शिक्षा से लेकर बल्‍किउससे भी पीछे नीचे आंगनबाड़ी से लेकर के अंतरराष्ट्रीय स्तर तक सर्वांगीण विकास का कार्य किया है। ऐसा नहीं कि इससमय भी हम शोध और अनुसंधान में आगे नहीं हैं।शोध और अनुसंधान में आज भी हम ‘स्‍पार्क’ के तहत 127 दुनिया के शीर्ष विश्वविद्यालयों के साथ अनुसंधान कर रहे हैं। हम स्‍पार्कके तहत जहां पूरी दुनिया के देशों के साथ शोधकर रहे हैं, वहीं स्‍ट्राइड के तहत अंतर-विषयक शोध भी कर रहे हैं।हमारे विविध कार्यक्रम जैसे इम्‍प्रिंट है, इम्‍प्रेस है,प्रधानमंत्री फेलोशिपहैहम इन तमाम क्षेत्रों में उत्‍कृष्‍ट कार्य कर रहे हैं।लोगों को मत था कि देश को नई शिक्षा नीति चाहिए क्योंकि सरितजी ने जिस बात को कहाउनसेमैं सहमत हूं कि अभी हमारी आवश्यकताएँ  हैं।जब मैं अपने संस्‍थानों की समीक्षा करता हूं किक्‍यूएस रैंकिंग में,टाइम्स रैंकिंग में हमारी संस्थाएं क्यों नहीं आ पा रही हैं, कठिनाई कहां-कहां हैं?तब मालूम होता है कि वहां बहुत विशेष कठिनाई नहीं हैं उन्होंने अपने तरीके का मानक बनाया है क्योंकि यदि वो हिन्दुस्तान की धरती पर आकर के मानक बनाएंगे तो वो कहीं खड़े नहीं हो सकते और अभी वो अपने मानक चेंज भी करेंगे लेकिनहम शोध और अनुसंधान में कुछ कमजोर हैं। अभी हमारे पास पेटेंट की कमी है। पीछे के दस साल कीजब मैं समीक्षा करता हूं औरदुनिया के देशों सेअपनी तुलना करता हूं तो मुझे लगता है किक्‍योंअचानक दस साल में रूस, चीन जैसे देशों ने अचानक जंप मारा है। क्‍या हमने कभी इस ओर ध्यान दिया है?क्‍या हमारा ध्‍यान शोध एवं अनुसंधान के माध्‍यम से पैकेज के स्‍थान पर पेटेंट की ओर रहा है। हमको लगा कि हम बीटेक और एमटेक करने के बाद केवल अच्‍छा पैकेज पायेंगे। हम लोग उस होड़ में चले गए। आज इस होड़ को थोड़ा सा रोक करके शोध और अनुसंधान के क्षेत्र में काम करने की जरूरत है। मैं अपनेयुवाओं को आह्वानकरना चाहता हूंकि यह चुनौती आपके सामने है, उस भारत की चुनौती है जिसमें तमाम संभावनाएं हैं। आज हम दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है। इस देश में एक हजार विश्वविद्यालयहैं, पैंतालीस हजार डिग्री कॉलेज हैं, एक करोड़ नौ लाख से भी अधिक अध्यापक हैं, पंद्रह लाख स्कूल हैं और कुल अमेरिका की जितनी जनसंख्या नहीं है,33 करोड़ से भी अधिक छात्र-छात्राएं है। हमाराभारत आगेपच्चीस वर्षों तक यंग इंडिया रहने वाला है। क्या नहीं कर सकते हम लोग, सारी दुनिया को दिखा सकते हैं हम? आज यदि जर्मनी 14-15 विश्वविद्यालय संस्कृत के खोल रहा है तो केवलसंस्कृत भाषा को पढ़ाने के लिए नहीं खोलरहा है। संस्कृत के अंदर जो ज्ञानहै, उसके जो ग्रंथ हैं,उन पर शोध और अनुसंधान को करके पूरी दुनिया में नंबर एक पर जाने के लिए कर रहा है। हमारी संपदा दुनिया पकड़ के लेकर जातीहै। हमारे देश के प्रधानमंत्री जी में इच्छा शक्ति की कमी नहीं है और उन्होंने जब हम नई शिक्षा नीति को लेकर आए तो कहा कि मैं चट्टान की तरह खड़ा हूं, मेरेनौजवानों आगे बढ़ो। मैं भी एक शिक्षक से लेकर के यहां शिक्षा मंत्री तक आया हूंऔर मैं जानता हूं कि एक शिक्षक में कितनी ताकत होती है, वह कुछ भी कर सकता है। मैं कहना चाहता हूं अपने सभी फैकल्टी से कि चंद्रगुप्त तो बिखरे पड़े हैं, चाणक्य की जरूरत हैं और इसलिए जिस पर आपहाथ रखेंगे वह हीरा बन करके आगे आपकी खुशबूको पूरी दुनिया में महका सकता है। अब आवश्‍यकता है थोड़ा सा जुनूनी मूड में आने की और इसलिए मैं समझता हूं कि इसको बार-बार याद दिलाने की जरूरत है। जो चीज हमने खोई है, जो चीज हमारी है, हमें उन जड़ों को हरा-भरा भी करना है और उनको खड़ा भी करना है। यहजो लोग ठूंठसे खड़े होते हैं जिनमें फल देने की ताकत नहींहोती है और एक छोटा सा हवा का झोंका भी उसे उखाड़ कर ले जाता हैक्योंकि उसकी जड़ें गहरी नहीं हैं। हम हमेशा दूसरों को कुछ देने वाले तथा स्‍वयं अपनी ताकत पर खड़े रहने वाले देश रहे हैं,इसलिए हिंदुस्तान का विचार समझना पड़ेगा क्‍योंकि यह देश विश्वगुरु रहा है। हम केवल लकीर खींचकर केविश्वगुरु नहीं रहे है। हम ज्ञान, विज्ञान, अनुसंधान के किसी भी क्षेत्र में पीछे नहीं रहे और अभी भी हमारे पास बहुत कुछ है जिसको दुनिया ले जाकर के शोध एवंअनुसंधान कर रही हैऔर जब वो कर देती है तब हमें पता चलता है।मैं पिछले एक डेढ साल में इस देश का शैक्षणिक वैभव देख रहा हूं और इसलिए पूरी दुनिया आज हमारे ऊपर निगाहलगाए हुए हैंऔर इसलिए आज जो यह आपने उद्घाटन किया है  इसकी मुझे बहुत खुशी है। आपने तमाम इसकी मांग के तहत 2016 में भी टेक्नोलॉजी बिजनेस इनक्यूबेटर फाउंडेशन की स्थापना की और इसके पाँच स्टार्टअप की शायद कंपनियां भी मेजबानी कर रही हैं। इधर अब आपके पूर्व छात्रों मैं देख रहा था तबमैंने कहा था किइसकी एकसूची बनाओ।आपको जरूर इन पूर्व-छात्रों को एकत्रित करके और बाकायदा इनकी सहभागिता लेनी चाहएि।आपकोखुशी होगी बहुत सारे छात्रों को मैंने देखा के जो बहुत अच्छा काम कर रहे हैं और पूरे देश का नाम दुनिया में फैला रहे हैं। यह हमारी पूंजी है और इसलिए मुझे लगता है कि इनकी लीडरशिप में हम बहुत आगे हैं। जहां हमने ‘स्टडी इन इण्डिया’ की बात की है वहीं हमने‘स्टेइनइण्डिया’ की भी बात की है। इस देश से लगभग8 लाख छात्र बाहर जा रहे हैं और डेढ लाख करोड़ रुपया प्रति वर्ष हमाराविदेशों  में जा रहा है। शोध एवं अनुसंधान के नाम पर हमारी प्रतिभाओं को जो प्रोजेक्‍ट एवं सुविधाएं मिलती हैं,तो वो फिर लौटने का नाम नहीं लेती। मेरी देश की प्रतिभा और पैसा दोनों जा रहा है। उसके मन में भी ऐसा नहीं है कि शौक से जा रहे हैं,हां,इस बात की होड़ जरूर लगी कि  मेरा बच्चा कैसेविदेश में पढ़े  अनेक गलतियां हमारी भी रही होंगी, उन गलतियों को हम भी सुधारेंगे। हम अवस्थापना को विकसित करेंगे और इसलिए‘स्टे इन इंडिया’ के तहत अभी सबसे आह्वान किया। हमने अपने छात्रों से कहा है कि जो दुनिया में जाकर मिलता है, वह अब हमारी हिन्दुस्तान की धरती पर मिलेगा।इसलिए हमने दुनिया के शीर्ष सौ विश्वविद्यालयों को यह कहा है कि आप हिंदुस्तान की धरती पर आयें और हमारी भी शीर्षजो संस्थाएँ उनको भीकहा कि जाओ।पूरी दुनिया में जाओ जहां हम लोगों ने ‘ज्ञान’ में बाहर की फैकल्टी को आमंत्रित किया वहींअब हम ‘ज्ञान प्लस’ में जो हमारी फैकल्टी है वह दुनिया को पढ़ाने के लिए बाहर जाएगीऔर इसलिए बहुत तेजी से अबआमूलचूल परिर्वतन होना है जिसके लिए सबको मन बनाना पड़ेगा और सबको मिशन मोड में आना पड़ेगा। नई शिक्षा नीति के तहत सभी के लिए मैदान खाली है। मेरे प्रिय छात्रों, इस नीति के तहत आप कुछ भी विषय ले सकते होऔर जब चाहो तुम आ जाओ और जब चाहो तुम चले जाओ।इस शिक्षा नीति के अंतर्गत यदि कोई 4 वर्ष का कोर्स है और यदि कोई छात्र दो साल में परिस्‍थितिवशछोड़के जा रहा है  तो पहले उसका पैसा एवं समयदोनों खराब हो जाते थे लेकिन अब उसकोनिराश नहीं होना पड़ेगा।यदि आप परिस्‍थितिवश एक वर्षमें छोड़ कर जा रहे हैं तो उसको सर्टिफिकेटदेंगे,दो साल में छोड़ कर जा रहा है तो डिप्लोमा देगें, तीन साल में छोड़कर जा रहा है तो उसकोडिग्री देंगे लेकिन यदि फिर वह लौट कर अपने भविष्य को संवारना चाहता है तो फिरउसनेजहां से छोड़ा था वहीं से शुरू कर सकता है। उसके लिए हम एक ऐसा क्रेडिट बैंक बनायेंगे जहां उसके सारे क्रेडिट जमा रहेंगेइसलिए उसके लिए आगे बहुत आपार संभावनाएं है।शोध और अनुसंधान के क्षेत्र में भी हमारे प्रधानमंत्री जी ने‘जय अनुसंधान’ का नारा दिया है। एक समय था जब देश बाहरी और आतंरिक संकटों से जूझ रहा था,खाद्यान्‍नके संकट से जूझ रहा था, सीमाओं पर सुरक्षा के संकटों से जूझ रहा था तो उससमय हमारे देश के प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री जी होते थे, लालबहादुर शास्त्रीजी ने‘जय जवानजय किसान’ का नारा दिया था। पूरा देश एक साथ खड़ा हो गया था। दोनों संकटों का हमने मुकाबलाकिया था और उसके बाद जब अटल बिहारी बाजपेयी आए। उनको लगा कि विज्ञान की जरूरत है तो उन्होंने ‘जय विज्ञान’ का नारा दिया और पोखरण परीक्षण करके पूरी दुनिया में हिंदुस्तान को तीसरी महाशक्ति के रूप में स्थापित करने का रास्ता प्रशस्त किया। हमारे देश के वर्तमान प्रधानमंत्रीजी श्री नरेन्द्र मोदीजी ने कहा‘जय अनुसंधान’,अब अनुसंधान की जरूरतहै। इसलिए ‘नेशनल रिसर्चफाउंडेशन’ की अभी हम स्थापना कर रहेहैं जो प्रधानमंत्री के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार की अध्यक्षता में होगा।शोध और अनुसंधान की संस्कृति विकसित होगी और उधर तकनीकी की दृष्टि से राष्‍ट्र को समृद्ध करने के लिए ‘नेशनल एजुकेशन टेक्नोलॉजी फोरम’ का गठन कर रहे हैं। हमारे छात्र तकनीक औरप्रौद्योगिकी में शिखर तक कैसे जा सकते हैं उसके लिए भी हम लोग विविध योजनाओं पर काम कर रहे हैं। इसलिए मैं यह सोचता हूं कि जो नयी शिक्षा नीति आई है यह नयी शिक्षा नीति अब बिल्कुल नए कलेवर में आई है। यह राष्ट्रीय भी होगी, यह अंतरराष्ट्रीय भी होगी तथा इसमें सब प्रकार के संभावनाएं हैं। कहीं किसी को भटकने की जरूरत नहीं है। अभी मैं यह देख रहा था किआपने कई विदेशी संस्थाओं के साथ भी अपने अनुबंध किये हैं मुझे खुशी हुई है। बहुत सारे विश्वविद्यालयों को मैं देख रहा हूं और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की भी अभी आपने बात की। शायद दुनिया में हिन्दुस्तान पहला देश होगा जो स्कूली शिक्षा से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पढ़ाएगा। इस नई शिक्षा नीति के तहत हम वोकेशनल स्ट्रीम भी इंटर्नशिप के साथ ला रहे हैं।अब तकशिक्षण शिक्षणेत्तर और वोकेशनल इन तीनों में जो गैप रहता था हमनेइसको पाट दिया।अबजब बच्चा स्कूली शिक्षा  पूर्ण कर बाहर निकलेगा तो वह योद्धा के रूप में सामने आएगा और जब वो आईआईटी तक पहुंचेगा तब अपनी प्रतिभासेवो देश को शिखर पर पहुंचाएगा जो ‘आत्म निर्भर भारत’ मेरे देश के प्रधानंत्री जी ने कहा  है उस आत्मनिर्भर भारत कीनई शिक्षा नीति आधारशिला है और इसलिए हम हर दिशा में बहुत तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। मैं यह सोचता हूं कि जिस तरीके से आपने काम करना शुरु किया है। सामाजिक क्षेत्र में भी देख रहा हूं कि जब आपनेउन्नत भारत अभियान तथा एक भारत श्रेष्ठ भारत में बेहतरीन कार्य किया है। हमारी  सोच यह होनी चाहिए कि यदि मैं अच्‍छा हूं तो मेरा समाज भी अच्‍छा होना चाहिए और यदि वो संस्था बहुत अच्छी है तो उसके इर्द-गिर्द उसकी खुशबू जानी चाहिए और मुझे खुशी है कि आपने पांच गांवों को लिया और जब भी मैं रोपड़ आउंगा तो सबसे पहले मैं आपके गांवोंमें ज़रूर जाऊंगा क्योंकि उन गांवों में मुझे रोपड़ दिखाई देगा तथा रोपड़ की प्रतिमा दिखाई देगी औरउनगांवों में मुझे उसका दर्शन होगाकि वो गांवबदल रहा है,उसके युवाओं में जिज्ञासा पैदा हो रही है। गांव में सफाई के काम के साथ ही पर्यावरण के क्षेत्र में मृदा गुणवत्ता निर्धारण,जल उपकरण तथा कृषि के क्षेत्र में भी मैं देख रहा था कि आप 110 करोड़ की लागत से बहुत सारी परियोजनाओं पर आप कर रहे हैं। आप टैलेंट को विकसित भी कर रहे हैं और उसका विस्‍तार भी कर रहे हैं। इस भव्‍य परिसर के उद्घाटन के अवसर पर मैं आपको एक बार फिर बहुत सारी बधाई एवं शुभकामनाएं देता हूं।

 

बहुत-बहुत धन्‍यवाद!

 

 

कार्यक्रम में गरिमामयी उपस्‍थिति

 

  1. डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’, माननीय शिक्षा मंत्री, भारत सरकार
  2. श्री संजय शामराव धोत्रे, माननीय शिक्षा राज्‍य मंत्री, भारत सरकार
  3. श्री अमित खरे, सचिव , उच्‍च शिक्षा, शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार
  4. श्री राकेश रंजन, अपर सचिव, उच्‍च शिक्षा, शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार
  5. प्रो. सरित कुमार दास, निदेशक, आईआईटी रोपड़,
  6. श्री रविन्‍द्र नागर जी, कुलसचिव, आईआईटी रोपड़,
  7. प्रो. पी.के. रैना, प्रभारी अधिष्‍ठाता, आईआईटी रोपड़,
  8. प्रो. जावेद आगरेवाला, अधिष्‍ठाता अनुसंधान, आईआईटी रोपड़,
  9. प्रो. दीपक कश्‍यप, अधिष्‍ठाता संकाय मामले और प्रशासन, आईआईटी रोपड़,
  10. प्रो. हरप्रीत सिंह, अधिष्‍ठाता औद्योगिकी परामर्शी, आईआईटी रोपड़,
  11. प्रो. राज छाबड़ा, अधिष्‍ठाता शैक्षणिक, आईआईटी रोपड़,
  12. डीन, सभी विभागध्‍यक्ष, संकाय सदस्‍य एवं छात्र-छात्राएं।

 

 

एनआईटी तिरूचिरापल्‍ली के स्‍वर्ण जयंती भवन का उद्घाटन  

एनआईटी तिरूचिरापल्‍ली के स्‍वर्ण जयंती भवन का उद्घाटन

 

दिनांक: 20 अक्‍टूबर,2020

 

 

 

माननीय शिक्षा मंत्री, डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’

 

          आजके इस महत्‍वपूर्ण आयोजन में उपस्‍थित बीओजी के अध्‍यक्ष श्री भास्‍कर भट्ट जी, निदेशक एनआईटी त्रिची डॉ. मिनी साहजी थामस जी, रासायनिक इंजीनियरिंग विभाग के प्रमुख डॉ. (श्रीमती) पी. कालीचेलवी,हमारे अतिरिक्‍त महानिदेशक, श्री मदन मोहन जी, सभी संकाय सदस्‍य, सभी छात्र-छात्राएं, बीओजीके सभी सदस्‍यगण तथाअन्‍य सभी गणमान्‍य व्‍यक्‍ति जो हमारे साथ इस महत्‍वपूर्ण अवसर पर जुड़े हैं, मैं आप सभी को बहुत बधाईदे रहा हूं। मैं इस अवसर पर जबकि स्‍वर्ण जयंती भवन का उद्घाटन हो रहा है, मैं समझता हूं कि हमारे लिए यह बहुत अच्‍छा अवसर है इसलिए मैं आपको बधाईदेने के लिए आपके बीच आया हूं। मुझे बहुत खुशी है क्‍योंकि जब कभी समीक्षा होती है तो एनआईटी त्रिचीका नाम एनआईटी में शीर्ष पर आता है। मैं इसके लिए आप सभी को बधाईदेरहा हूं कि एनआईटी त्रिची हमेशा आगे बढ़ करकाम कर रहा है। एनआईटी त्रिची 17 विभागों के 7880  छात्रों के साथ 15 वर्षीयरणनीतिक प्‍लान के तहत आगे बढ़ रहा है।आपने एनआईआरएफ रैंकिंग में भी शीर्ष 10 में जगह बनाई है,यह भी मेरे लिए खुशी का विषय है कि आप एनआईआरएफ में 9वें स्‍थान पर आये हैं। स्‍नातक और स्‍नातकोत्‍तर इंजीनियरिंग कार्यक्रमों में भी एनआईटी त्रिची राष्‍ट्रीय समन्‍वयक के रूप लीडरिशप दे रहा है। मैं समझता हूं कि किसी भी संस्‍थान कीजो सफलता होती है वह सफलता भवनों को देखकरके नहीं  बल्‍कि उससेनिकलने वाले जो छात्र हैं, वो किन स्‍थानों पर पहुंचे हैं, वो देश का गौरव कितना बढ़ा रहे हैं, यह उस पर निर्भरकरता है और जब मैं आपके पूर्व छात्रों की सूची पर नजर डालता हूं तो मुझेखुशी होती है चाहे वो श्रीएन. चंद्रशेखरन जी अध्‍यक्ष टाटा सन्‍स हों,चाहे राजेश गोपीनाथन जी, सीईओ, टीसीएस हों आपके तमाम पूर्व छात्र विभिन्‍न क्षेत्रों में एनआईटी त्रिची का गौरव बढ़ा रहे हैं। पीछे के समय में जो शैक्षणिक क्षेत्र और उद्योगों के बीच गैप रहता था उसको भी आपने काफी कुछ पाटा है। मैं पीछे के समय से देख रहा हूं कि एनआईटी त्रिची ने उद्योग और संस्‍थान दोनों को जोड़ा है, जो उद्योगों को जरूरत है उसको पाठ्यक्रमों का हिस्‍सा बनाया है और पाठ्यक्रम का हिस्‍सा बना करके छात्रों को उद्योगों के साथ जोड़ा है आजइसी की जरूरत है। पेटेंटों की संख्या भीमैं देख रहा था कि आपनेदो वर्षों में 38पेटेंट फाइल किए हैं और चार पेटेंट आपके स्‍वीकृतभी हो गए हैं और पीछे के समय में जो पेटेंटों के बारे में चिंता हो रही थी तो मैंने वाणिज्य मंत्रालय को भी कहा है कि वे अपने मानकों को कुछहल्‍काकरेंताकिज्यादा से ज्यादा पेटेंट हो सके। अभी जब मैं शोध एवं अनुसंधान के क्षेत्र में देखता हूं, टाइम्स रैंकिंग को देखता हूं,क्‍यूएसरैंकिंग को देखता हूं और फिर अपने संस्थानों की समीक्षा करता हूं तो मुझको लगता है कि कहीं न कहीं शोध और अनुसंधान में, रिसर्च में, पेटेंट में अभी हम काफी पीछेहैं और जिसके कारण ऊंचाइयों पर तेजी से नहीं पहुँच पारहे हैं। मुझे भरोसा है कि अब जो नई शिक्षा नीति आ रही है उसने पूरा मैदान खाली छोड़ा है। जहां हम‘नेशनल रिसर्च फाउंडेशन’ की स्थापना कर रहे हैं  जो प्रधानमंत्री जी के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार की अध्यक्षता में होगा,इसके माध्‍यम से शोध की संस्कृति विकसित होगी। हम प्रतिवर्ष 20 हजार करोड़ से भी अधिक धनराशि केवल इसी पर खर्च करेंगे औरवहींतकनीकी को अंतिम छोर पर जाने के लिए तकनीकी दृष्टि से भीहमारा देश शिखर को चूम सके इसके लिए भी हम ‘नेशनल एजुकेशन टेक्नालोजी फोरम’ का गठन कर रहे हैं। इन दोनों का गठन होने से जो छोटी छोटी चीजें हैं जिनके कारण हमारी गति रुक जाती है उनछोटे-छोटे गड्ढों को हम इनके माध्‍यम से पाटेंगेऔर निश्चित रूप में मेरे संस्थान शिखरता कोपाएंगें ऐसा मेरा भरोसा है। जैसा कि हमारे प्रधानमंत्री जी लगातार कहते हैं किएक नये भारत के निर्माण की जरूरत है, जो उनकी संकल्पना है और ऐसा नया भारत जो सुन्दर भारत हो,जो स्वच्छ भारत हो, जो सशक्त भारत हो, जो समृद्धभारत हो,जो आत्मनिर्भर भारत हो और जो श्रेष्ठ भारत हो और ऐसा भारत जो 21वीं सदी का स्वर्णिम भारत हो।मुझे लगता है कि आज जो आपके स्वर्णिम भवन काउद्घाटन हो रहा है यहस्वर्णजयंती भवन 21वीं सदी के स्वर्णिम भारत की आधारशिला बनेगा, ऐसी मैं आपको शुभकामना देना चाहता हूं।यहांसे जिस तरीके से छात्रनिकलेंगें और आगे बढ़ेंगे वे निश्चित रूप में उससपने को पूरा कर सकेंगे, ऐसा मेरा भरोसा है। आपने अटल रैंकिंग में भी स्‍थान बनाया है और 2020 में आपने तीन फैकल्टी स्टार्टअप कंपनियां भी स्थापित की हैं, मुझे भरोसा है किभविष्‍य में यह और तेजी से आगे बढ़ेंगे। अभी हम जो नई शिक्षा नीति ला रहे हैं उसके तहत हम छठवीं कक्षा से ही आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस शुरू करेंगे,वो भी इंटर्नशिप के साथ शुरू करेंगे,जब बच्‍चा अपनी पढ़ाई पूरी करके बाहर निकलेगा तो वह हीरा बन करके बाहर निकलेगाऔर वह शिखर पर जासकेगा। इस शिक्षा नीति के अंतर्गत यदि कोई 4 वर्ष का कोर्स है और यदि कोई छात्र दो साल में परिस्‍थितिवशछोड़के जा रहा है  तो पहले उसका पैसा एवं वर्ष खराब हो जाते थे लेकिन अब उसकोनिराश नहीं होना पड़ेगा,यदि आप परिस्‍थितिवश एक वर्षमें छोड़ कर जा रहे हैं तो उसको सर्टिफिकेटदेंगे,दो साल में छोड़ कर जा रहा है तो डिप्लोमा देगें, तीन साल में छोड़कर जा रहा है तो उसकोडिग्री देंगे लेकिन यदि फिर वह लौट कर अपने भविष्य को संवारना चाहता है तो फिरवह जहां से उसने छोड़ा था वहीं से शुरू कर सकता है। उसके लिए हम एक ऐसा क्रेडिट बैंक बनायेंगे जहां उसके सारे क्रेडिट जमा होंगेइसलिए उसके लिए आगे बहुत आपार संभावनाएं है।अबविषय की भी कोई बाध्यता नहीं है,आपजो चाहे विषय ले सकते हो, लेकिन उस विषय को लो जिसमें तुम छलांग मार सकते हो, शिखर पर पहुंच सकते हो।इंटरनेशनल स्तर पर हम ऐसी शिक्षा नीति को लाए हैं इस शिक्षा नीति के तहतजहां हमदुनिया के शीर्ष100 विश्वविद्यालयों को अपनी धरती पर आमंत्रित करेंगे और जो हमारे शीर्षविश्वविद्यालय हैं वे भी दुनिया में जाएंगे और भारत का गौरव बढ़ायेंगे,क्योंकि हमकोइस बात की भी चिंता है। हमारे देश से 7-8 लाख छात्र प्रतिवर्ष विदेशों में पढ़ने के लिए जा रहे हैं। हमारे देश का पैसा और प्रतिभा दोनों बाहर चली जाती हैं तो वापस वह हमारे देश में नहीं आती है। इसलिए हमने‘स्‍टे इन इंडिया’ किया। हमने  छात्रों को भरोसा दिलाया कि हमारे आईआईटी, एनआईटी, आईएसर, केन्‍द्रीय विश्‍वविद्यालयों में योग्‍यता है, क्षमता है तथा आपको  बाहर जाने  की जरूरत नहीं है,अब लोगों की समझ में आ गया है। पीछे के समय जब हमने जेईई परीक्षाएं करवाई तो मुझे इसबात की भी खुशी है कि दो लाख से भी अधिक छात्रों ने जोछात्रविदेश में जा रहे थेवे जेईई और नीट की परीक्षाओं में सम्‍मिलित हुए। हमारे देश के प्रधानमंत्री जी 2024 तक5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था चाहते हैं एक ओर आत्मनिर्भर भारत है दूसरी ओर 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था और तीसरीओर यह संस्थान जिनके सामने पूरा मैदान खाली पड़ा है।आप यदि देखेंगे तो हिन्‍दुस्‍तान दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है, 130 करोड़ लोगों का देश है। अगर इतना विस्‍तृत देश है तो उसमें तमाम प्रकार की समस्याएं भी फैली हुई हैं, इन समस्याओं के समाधान के लिए हम आगे आएंगे। शोध और अनुसंधान की दिशा में हम दुनिया के 127 देशों के शीर्ष विश्वविद्यालयों के साथ ‘स्‍पार्क’केतहतशोध और अनुसंधान कर रहे हैं। अभी हमने प्रधानमंत्री अध्येतावृत्‍ति में शोध और अनुसंधान केमानकों में कुछ ढिलाई दी है ताकि मेरा छात्र ज्यादा से ज्यादा शोध और अनुसंधान कर सके।  हमारे छात्रों के अंदर शोध औरअनुसंधान की जागृति को भरना पड़ेगा ताकि वेएक योद्धा की तरह अनुसंधान कर सकें, उसको पैकेज पाने की जल्दी न रहे, बल्कि देश के अंदर एक उदाहरण प्रस्तुत करने की दिशा में काम करें, आज इसकी ज़रूरत है।आजजो परिवेश पूरा बन रहा है ऐसे मेंछात्र आगे आएंगे क्योंकि हमारे पास प्रतिभा की कमी नहीं है,प्रखरता की भी कमी नहीं है,मेहनत की कमी नहीं है,विजन की कमी नहीं है, मिशन की कमीनहीं है तो फिर जब विजन भी है, मिशन भीहै तो फिर कहां कमी है, उस कमी को पाटने की जरूरत है और मुझे भरोसा  कि हम इसको पांटेंगे। मुझे इस बातकी भी खुशी है कि आपने जो स्किल प्रशिक्षण देने के संबंध में 30 से ज्यादा एमओयू साइन किए हैं जिनमें टाटा स्टील है, भेल है, सीडैक है, टाटा मोटर्स है,इसरो है इन सबके साथ आपने एमओयू साइन किया है और आप उस दिशा में काम भी कर रहे हैं। मुझे इस बात की भी खुशी हैकि जबपूरी दुनिया कोविड के संकट से गुज़र रही थीऔर उससे हमारा देश भी अछूता नहीं रहातो ऐसे संकट के समय में हमारे देश के प्रधानमंत्री जी ने कहा है कि नौजवानों आगे आओ,आपक्या कर सकते हैं मैं इस बात को लेकर बहुतखुशहूं कि तब मेरे छात्रों ने, मेरे अध्यापकों ने प्रयोगशाला में जाकर एक से एक नये अनुसंधान किये। हमनेमास्‍कतैयार किए, हमने ड्रोन तैयार किए, हमने सस्‍ते एवं टिकाऊ वेंटिलेटर तैयार किए, टेस्टिंग किट तैयार किए जो पहले देश में कभी बनता ही नहींथा।यदि आप युक्ति पोर्टल पर जाएंगे तब आपको लगेगा कि इस कोरोना काल में भी इस देश के नौजवानों, अध्यापकों और छात्र-छात्राओंनेबहुत सारे शोध एवं अनुसंधान किये हैं,यह हमारी ताकत है। दुनिया ने हमारी ताकत को देखा है। हम को इस ताकत को बचाकररखने की जरूरत है। बहुत सारी चीजों पर आपके छात्रों ने,प्राध्यापकों ने इस दिशा में बहुत अच्‍छा काम किया है तो उसके लिए भीमैं आपको शुभकामना देना चाहता हूं। मैं देख रहा हूं किआपने सामाजिक गतिविधियों में जो काम किया है, आपने जिनपांचगांवों को गोद लिया है,ताकिगांवों के जो गरीब छात्र हैं जिनको मदद की जरूरत है उनका विकास हो सके।मुझे बताया गया कि उन गावों के तीन छात्रोंनेजेईई की परीक्षा उत्‍तीर्ण करके यहां प्रवेश लिया है इसके लिए भी मैं आपको बधाई एवंशुभकामनाएंदेना चाहता हूं। यदि आप देखेंगे  तो हमारे देश के अंदर शिक्षा का कितना बड़ा व्‍यापहै। यहां एक हजार से भीअधिक विश्वविद्यालय हैं, पैंतालीस हजार से भीअधिक डिग्री कॉलेज है,पंद्रह लाख से भी अधिकस्कूल है, एक करोड़ दस लाख से भी अधिक अध्यापक हैं और अमेरिका की कुल जितनी आबादी नहीं होगी उससे भी अधिक33 करोड़ यहांछात्र-छात्राएं हैं, यह इस देश का वैभव है।मैं अपने छात्र-छात्राओं को आह्वानकरना चाहूंगा कि फिर इस देश में 30 करोड से भीअधिक लोग निरक्षर क्यों रहेंगे, क्यों नहीं हमारा एक छात्र उसव्यक्ति को, मां को, बहन को जो परिस्‍थितिवश अंक ज्ञान और अक्षर ज्ञान से परिचित नहीं हो सके, उनको साक्षर करेगा,आज इस अभियान की जरूरत है और आपने इस अभियान को लिया भी है और उसकी खुशबू उन गांवों में दिखाई देरही है। आपकी जो फैकल्टी है उनको भी मैं बधाई देना चाहता हूं कि वो आपके साथ एकजुट हो करके संस्‍थान को आगे बढ़ा रहे हैं और मुझे भरोसा है कि आप सभी लोग इससंस्थान को लगातार नंबर एक परबना करके रखेंगे। यह छोटीचुनौती नही है क्‍योंकि नम्‍बर एक स्‍थान पर पहुंचना एक चुनौती होती है लेकिन उसी स्‍थान पर अपने को बनाये रखना बहुत बड़ी चुनौती होती हैऔर आप अपनी मेहनत से, धैर्य से,प्रखरता से इस संस्थान के स्तर को बनाये हुए हैं। आपने इसी बीच इंजीनियरिंगके साथ-साथ, एमबीए, एमसीए, एमएससी एवं अन्‍य प्रोग्रामों को भी शुरू किया है। विविधताजरूरीहै,जो बहु-विषयकस्वरूप आपने इसको दिया है वह भी बहुत अच्छा है। आपने पर्यावरण की दिशा में काम किया है। ग्रामीणों के लिए स्वास्थ्य का ध्‍यान रखकर आपने रक्तदान, चिकित्सा शिविर भीलगाया और आपकृषि के क्षेत्र में भी बहुत अच्छा कामकररहेंहैं। आज इसबात की जरूरत है कि क्या नया हो सकता हैकृषि केक्षेत्रमें, जड़ी बूटी के क्षेत्रमें क्या हो सकता है,जैवविविधता के क्षेत्रमें क्या हो सकता है,खाद्यान्‍नके क्षेत्र में क्या हो सकता है, जो कृषि उपकरण हैंउनके क्षेत्र में नया क्या हो सकता है और जोउत्सुकता से भरे युवाओं के मन होते हैं वह नई चीज को खोजते हैं, केवल उनको एकटास्क देने की ज़रूरत होती है। अभी आपने देखा किपीछे के दिनों में हम लोगों ने जो ‘ध्रुव’कार्यक्रम जिसको हमने चैन्‍नई से शुरू करके दिल्ली में उसका समापन किया था तो हमने उसमें 60 बच्‍चों का चयन किया और वह कार्यक्रम 14 दिन तक चला तो उस कार्यक्रम में  चाहे रक्षा मंत्रालय हो, कृषि मंत्रालय हो, ग्रामीण विकास मंत्रालय हो,रसायनिकमंत्रालय इन सब मंत्रालयों ने उन बच्चों को अपनीसमस्याएं दी और बच्‍चों ने उन समस्‍याओं के समाधान निकाले तो सभी लोग हतप्रभ थे कि इतनी कम आयु में ही हमारे बच्चों का विजन कितना ज्‍यादा है और स्मार्ट इंडिया हैकाथनके तहत भी 87 से अधिक बड़ी समस्याओं के समाधान हमारे छात्र-छात्राओं ने किया। इसलिए इनको यह कहने की जरूरत है कि आप नौकरी के लिए पैदा नहीं हुए बल्‍कि नौकरी देने के लिए पैदा हुए हैं आप अपने देश में क्या कर सकते हैं इस समय इसकी जरूरत है।आपनेजलसंरक्षण, बायोगैस प्लांट, सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट और स्वच्छ कैम्पस की दिशा में भी बहुत अच्छा माहौल बनाया। अभी जो नई शिक्षा नीति आयी है इस नई शिक्षा नीति को हम कैसे नीचे तक ले करके जा सकते हैं,यह जो नई शिक्षा नीति आईहै इससेपूरे देश में उत्सव का माहौल है,खुशी का माहौल है, यहनई शिक्षा नीति आमूल-चूल परिवर्तनों के साथ आई है। इसनईशिक्षा नीति की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह इंडियन भी है,इंटरनेशनल भी है, यह इम्पैक्टफुल भी है,इन्‍टरेक्‍टिव भी है, इन्क्लूसिव भी है और यहइक्‍विटी, क्‍वालिटी, एस्‍सेस इन तीनों की आधारशिला पर खड़ी है।दुनिया के कई देशों के शिक्षा मंत्री इस नीति के संबंध में मुझसे बात कर रहे हैं कि हम भी हिन्‍दुस्‍तान की एनईपी को अपने यहां लागू करना चाहते हैं क्योंकि हम लोग पूरे व्यापक फलक पर इस नीति को लाए है।मेरा मानना है कि अंतिम छोर के बच्चे को भी इसका लाभ ज़रूर मिले क्योंकि हम लोग सब मिलकरभारत को ज्ञान की महाशक्ति बनाने के लिए जुटे हुए हैं। आज जो आपके स्‍वर्ण जयंती भवन का लोकार्पण हो रहा है यह भवन 21वीं सदी के स्‍वर्णिम भारत की आधारशिला बनेगा ऐसा मेरा विश्‍वास है। एक बार फिर मैं आप सभी को बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं देता हूं।

 

बहुत-बहुत धन्‍यवाद!

 

कार्यक्रम में गरिमामयी उपस्‍थिति:-

 

  1. डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक, माननीय शिक्षा मंत्री, भारत सरकार
  2. डॉ. मिनी साहजी थामस, निदेशक, एनआईटी त्रिची,
  3. डॉ. एम. सिंडरैला, कुलसचिव, एनआईटी त्रिची,
  4. डॉ. (श्रीमती) पी. कालीचेलवी, एनआईटी त्रिची,
  5. श्री भास्‍कर भट्ट जी, अध्‍यक्ष, बीओजी, एनआईटी त्रिची,

 

एनआईटी जमशेदपुर के ‘हीरक जयंती व्‍याख्‍यान हॉल परिसर’ का उद्घाटन

 

एनआईटी जमशेदपुर के ‘हीरक जयंती व्‍याख्‍यान हॉल परिसर’ का उद्घाटन

 

दिनांक: 20 अक्‍टूबर, 2020

 

 

माननीय शिक्षा मंत्री, डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’

 

एनआईटी जमशेदपुर में हीरक जयंती व्याख्यान कक्ष परिसर के इस उद्घाटन अवसर पर मैं एनआईटी जमशेदपुर परिवार केछात्रों को, उनके अभिभावकों को,उनकेनिदेशक को, यहां के सभी डीन, विभागाध्यक्ष, फैकल्टी, कर्मी एवं छात्र छात्राओं को मैं बहुत सारी बधाई देना चाहता हूं। इस अवसर पर मेरे सहयोगी मंत्री श्री संजय धोत्रेजीजुड़ नहीं पाएलेकिन उन्होंने भी आप सबको बहुत सारी शुभकामनाएं दी हैं। इस संस्थान के निदेशक प्रो. करुणेश कुमार शुक्ला जी, प्रो.डॉ.वीरेन्द्र कुमार जी,कुलसचिव अनिल कुमार चौधरी जी एवं यहां पर उपस्थित हमारे प्रोफेसरगण,डीन,फैकल्टीइत्‍यादिजो भी हमसे जुड़े हैं सभी से मैं कहना चाहूंगा कि एनआईटी जमशेदपुर के इतिहास में एक ऐसा मील का पत्थर आज लगा है जो हीरक जयंती व्याख्यान के रुप में ऐसे परिसर की स्थापना हुई जो अपना नाम देश में ही नहीं पूरी दुनिया में उभर करके आएगा इसलिए मैं इस महत्वपूर्ण उपलब्धि के लिए आप सब लोगों कोशुभकामना देना चाहता हूं। इस संस्थान ने बहुत लंबे सफर को तय किया है और अपने जीवन के इन 60 वर्षों में तमाम उतार-चढ़ाव इस संस्‍थानने देखे होंगे। इन वर्षों में इस संस्‍थान ने तमाम प्रकार की प्रतिभाएं देश को दी हैं। मैं अभी देख रहा था कि यहां से निकलने वाले चाहे वो सीएमडी पावर ग्रिड कारपोरेशन के आईएस झा रहे हों, चाहे वो पूर्व विद्युत ऊर्जा सचिव आर. वी. शाही रहे हों,चाहेएडमिरल अनिल वर्मा रहे हों और चाहे वो आर पी सिंहपहले सीएमडी औद्योगिक निगम लिमिटेड के रहे हों, पीके गोयलजो सलाहकार लघु उद्योग मंत्रालय में हैं, पी. नारायण जो जीएम भारतीय सुरक्षा प्रेस नासिक वित्त मंत्रालय के हों ऐसे बहुत सारे नाम हैं जो  भिन्‍न-भिन्‍न क्षेत्रों में लोगगए हैं और उन्होंने प्रशासनिक क्षेत्र में, तकनीकी क्षेत्र में एवं अन्‍य विविध क्षेत्रों में इस संस्थान का नाम राष्‍ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उभारा है। इस संस्थान से बहुत सारे छात्र-छात्राएं विदेश में भी हैं तथा देश में भी हैं औरविभिन्न स्थानों पर विभिन्न पदों पर हैं तथा विभिन्न जिम्मेदारियों को ले करके इस संस्थान से पाने वाली उनकी जो शिक्षा थी अब वो शिक्षा की सुगंधपूरे देश में बिखेर रहे हैं और आज इन 60 वर्षों के बाद 130 करोड़ की लागत से बनने वाला यह भव्‍य भवन एशिया में चंद अपने ढंग के भवनों में सेएक होगा। इसके लिए आपको बहुत-बहुतबधाई और शुभकामनाएं हैं। एनआईटी जमशेदपुर को जब मैं देख रहा था और जब निदेशक महोदय उसके बारे में बोल रहे थे तथा हमारे साथ हमारे मदन मोहन जी जो अतिरिक्त महानिदेशक हैं वो भी जुड़े हुए हैं और वो भी एनआईटी की बहुत चिंता करते हैं और लगातार आपकी जो भी कठिनाइयां होती हैं उनको दूर करते हैं। मैं यहदेख रहा था कि आपने एनआईआरएएफ रैंकिंग मेंगत वर्ष की तुलना में इक्यावन स्थान की प्रगति की है इसके लिए मैं आपकी पूरी टीम को शुभकामना देना चाहताहूं, बधाई देना चाहता हूं। जो यहां पर फैकल्‍टीहैं यहइसके अहर्निश अध्‍यापन का एवं छात्रों की मेहनतका ही परिणाम है।किसी संस्थान के भवन को देखकर के उसका कभी मूल्यांकन नहीं कर सकते हैं उस संस्थान से निकलने वाली प्रतिभाएं उस संस्थान का आधार केस्तर को कितनाऊंचा उठा रही है वहउसके मूल्यांकन का आधार होता है और निश्चित रूप से एनअर्इाटी जमशेदपुर ने लगातार प्रगति की है । आज यह रैंकिंग भी मैं देख रहा था कि आपने अपना स्थान बनाया और लगातार आप अपने स्थानों में सुधार करते जा रहे हैं और मुझे लगता है कि आज आपके जो लगभग साढ़े तीन हज़ार से भी अधिक छात्र हैं वो आपके मार्गदर्शन में लगातार आगे बढ़ रहे हैं। 12 विभागों के साथ प्रतिवर्ष 1300 छात्रों की बहु-आयामी शिक्षा प्रदान करने का औरअध्ययन-अध्यापन काआपउल्लेखनीय कार्य कर रहे हैं। मैं यह समझता हूं कि कोई भी देश अथवा कोई भी समाज बिना तकनीकी और नवाचार के प्रगति नहीं कर सकता और हमारा देश तो शुरू से हीतकनीकी के क्षेत्र में बहुत आगे रहा है। यह अलग बात है कि बीच में एक ऐसा कालखंड रहा है जब हमारी बहुत सारी विधाओं को, हमारी बहुत सारी शिक्षाओं के साथ ज्ञान, विज्ञान, अनुसंधान, नवाचार के क्षेत्र में जो हमारा वैभव था,उसको मिटाने की कोशिश हुई है अन्यथा मैं समझता हूं कि जब तक्षशिला, नालंदा और विक्रमशिला जैसे विश्वविद्यालय इस देश के अंदर थे तो ज्ञान, विज्ञान एवं अनुसंधान किसी भी क्षेत्र में हम पीछे नहीं थे। लार्ड मैकाले ने जिस समय इस देश में प्रवेश किया तोउस समय पूरीदुनिया में मेरे हिंदुस्तान की, मेरे भारत की 97प्रतिशत साक्षरता थी ऐसा विश्‍वगुरू देश हमनेदेखा है।यहसामान्य देश नहीं है और हम केवल अपने लिए ही नहीं जीते बल्‍कि हम दुनिया के लोगों के लिए और मानवता के लिए जीते हैं। हमने हमेशा कहा है कि हम विश्व बंधुत्व वाले लोग हैं। हम पूरी दुनिया को अपना परिवार मानते समझते हैं और न केवल मानते तथासमझते हैं बल्कि इस परिवार के लिए किसी भी पराकाष्ठा तक जाकर के समर्पण भी करते हैं। जहां ‘अयं निज: परोवेति गणना लघु चेतसाम्: उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्‍बकम्।।‘हमपूरी वसुधा कोपरिवार मानते हैं।पूरेसंसार को हम अपना परिवार मानते हैं क्‍योंकि बड़ा दिल है हमारा, हमारा बड़ा मन है,इसचीज को कमजोर आदमी समाहित करनेवाला नहीं होसकता। ताकतवर देश ही इस बात को कह सकता है और उस परिवार के सुख और समृद्धि की कल्पना के लिए लगातार यह याचना ईश्वर से करना कि ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया सर्वे भद्राणी पश्‍यन्‍तु मा कश्‍चिद् दुख: भाग्‍भवेत:’ यह बहुत बड़ी बात है कि जब तक धरती पर कोई भी इंसान अथवा प्राणी दुखी रहेगा तब तक मैं भी सुख का एहसास नहीं कर सकता। पहले मैंउसकेदु:खों को दूर करूंगा, किसी भी सीमा तक जाकर के मैं उसके दुखों को दूर करूंगा। यह हमारा चिंतन, विचार एवं ऊंचाइयां है। विश्वबंधुत्व वाला विचार जो हमको विश्वगुरु के रूप में स्थापित करता है और इसलिए ज्ञान, विज्ञान, तकनीकी के क्षेत्र में यदि आप1000 साल पीछेदेखें तो हम कहां थे? शल्य चिकित्सा का जनक सुश्रुतभी इसी धरती पर पैदा होता है, शून्‍य की खोज करने वाला आर्यभट भी इसी धरती पर पैदा होता है,चाहेभास्कराचार्य हो,चाहेनागार्जुन हो,बौधायन हो, चरक हो, महर्षि कणाद हो सभी इसी धरती पर पैदा हुए हैं। लेकिन हमने उनको आगे नहीं बढ़ाया। आज जरूरत है तमाम ज्ञान, विज्ञान, अनुसंधान को नई तकनीकी और नए अनुसंधान के साथ आगे बढाने की, आगे चलाने की और उसका मौका भी अबआ गया। जिस तरीके से काम कर रहे हैं उसके तहत आप हमारे छात्रों को शोध और अनुसंधान की दिशा में आगे बढ़ा रहे हैं। अभी जैसा कि निदेशक महोदय कह रहे थे कि 2020 में 234 ऐसे महत्‍वपूर्ण लेख संस्‍थान ने प्रकाशित किये हैं और आठ पेटेंट भी किए हैं। 29पेटेन्‍टपर आपका काम चलना है और निश्चित रूप से हमने सशक्त भारत तथा आत्मनिर्भर भारत की बात की है और हमारे देश के प्रधानमंत्री जी ने बार-बार कहा है कि जो 21वीं सदी का भारत है वो आत्मनिर्भर भारत होगा तथा वो स्वर्णिम भारत होगा। वो स्वच्छ भारत होगा, वो स्वस्थ भारत होगा तथावो सुन्दर भारत होगा, वो सुदृढ भारत होगा, वो आत्‍मनिर्भर भारत होगा,वो श्रेष्ठ भारत और एक भारत होगा और इस श्रेष्ठ भारत का रास्ता इन्हीं तकनीकी संस्थानों से होकर गुजरता है तथाउस आत्मनिर्भर भारत का रास्ता भी यहीं से होकर गुजरेगा। हमारे बच्चे क्या सोचते हैं तथा हम किस फलक पर उनको आगे ले करके जा रहे हैं। हम दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश हैं और कई देशों की कुल जनसंख्या नहीं उतनी तो हमारे पास छात्र छात्राएं हैं। मैं लगातार लोगों को कहता हूं कि जहां एक हजार से भी अधिक विश्वविद्यालय हों,पैंतालीस हजार से अधिक डिग्री कॉलेज हों, पंद्रह लाख से अधिक स्कूल हों, एक करोड़ नौलाख से भी अधिक अध्यापक हों और कुल अमेरिका की जितनी आबादी नहीं हैउससे भी ज्यादा 33करोड़ जिस देश में छात्र-छात्राएं हों और वो भी आगे पच्चीस वर्षों तक यह देश यंग इण्डिया रहनेवाला है।हां, ठीक है कि एक ऐसा समय था जब हम गुलाम थे, परतंत्र थे और जब हमारी जड़ों को हम से उखाड़कर फेंक दिया गया। हम ज्ञान, विज्ञान, अनुसंधान में आगे थे हमको हमारी जड़ों से दूर फेंका गया, हमारे ज्ञान को भी कुचलने की कोशिश हुई, हमारे अनुसंधान को कुचलने की कोशिश हुई। लार्ड मैकाले ने जिस तरीके से इस देश के अंदर किया वो किसी से छिपा नहीं है। लेकिन मैं यहसोचता हूं कि उन्हेंऐसाकरना ही था क्योंकि उनको लगता था कि हिन्दुस्तान जैसे देश पर, भारत जैसे देश पर यदि राज करना है तो उसकी मूलभूत जड़ों को उससे दूर करना पड़ेगा, उसकी संस्कृति से उसको दूर करना पड़ेगा, उसके संस्कारों से उसको दूर करना पड़ेगा, उसकी भाषा से उसको दूर करना पड़ेगा और उसकी जो शिक्षा है उससे उसको दूर करना पड़ेगा और उन्होंने किया क्योंकि उनको लगता था कि हिंदुस्तान पर उनको राज करना है और सैकड़ों वर्षों तक लोग यही तो करते रहे।इसलिए हमारी मानसिकता इन सैंकड़ों वर्षों की गुलामी से अभी उबर नहीं पा रही है लेकिन अब जरूरत है इस बात की कि आज देश स्वाधीन हो गया, आज उन जड़ों को जिन जड़ों से हमको अलग हटाया गया था उन जड़ों को सींचने की जरूरत है। सारी दुनिया इस बात को जानती है कि ‘यूनान, मिस्र, रोमां सब मिट गए जहां से अब तक मगर हैबाकी नामोनिशां हमारा और कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी’अर्थात्कुछ बात जरूर है वो जो कुछ बात है जो मिटाने से भी मिटती नहीं हमारी उसी को सृजित करने की जरूरत है, उसको संरक्षित करने की जरूरत है, उसको फलने-फूलने की जरूरत है उसको संरक्षण देने की जरूरत है, उसको ताकत के साथ आगे बढ़ाने की ज़रूरत हैअबयह अवसर तथा मौका मिल गया है। देश आज स्‍वाधीन है,आज हम किसी दूसरे पर आरोप नहीं लगा सकते हैं। आप पीछे रोकर के आगे नहीं बढ़ सकते हां, पीछे को याद करके आगे बढ़ सकते हैं। रोता वोहै जिसमें ताकत नहीं होती है आज ताकत विचार से होती है  और ताकतवर संस्था होती है। हम पूरी ताकत के साथ जान खपा देंगे। लेकिन तब भी हम उस शिखर को पाएंगे इसकी जरूरत है। ऐसा वातावरण बनाया गया पीछे दिनोंमें कि यहां से होड़ लगी दुनिया के देशों में शिक्षा ग्रहण करने की। यहां सेआज भी 7 और 8 लाख छात्र विदेशों में शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। मेरा प्रति वर्ष एक से लेकर डेढ़ लाख करोड़ रुपया दुनिया के देशों में जा रहा है। मेरी प्रतिभा भी चली गई और मेरा पैसा भी चला गया। इस होड़ में तथा इस दौड़ में मेरे इन संस्थानों को इस होड़को रोकना पड़ेगा। इस दौड़ को हिन्दुस्तान की धरती पर दौड़ाना पड़ेगा। इसकी सक्षमता लाना पड़ेगा और ऐसा नहीं है कि मेरे यह संस्थान सक्षम नहींहैं। मैंने इसका भी विश्लेषण किया है। मैं सारे आईआईटी,आईआईआईटी,आईसर हों, एनआईटी सहित सभी केंद्रीय विश्वविद्यालयों का विश्लेषण पिछले एक साल से कर रहा हूं तथा उस आधार पर मैं कह सकता हूं इस बात को कि ऐसा नहीं है कि मेरे इन संस्थानों में शीर्षता नहीं है। यदि मेरे इन संस्थानों में शीर्षता सत्ता नहीं होती और केवल अमेरिका में ही रहने वाले, पढ़ने वाले बच्‍चे प्रतिभाशाली होते तो यह जो गूगल और माइक्रोसॉफ्ट जैसी कंपनियों का सीईओ हैं वह मेरी धरती का सपूत हैं तथा उनको लीडरशिप दे रहा है। आज भी मेरे बच्चे वहां जाकर के सैकड़ों बड़ी से बड़ी कम्‍पनियों को लीडरशिप दे रहे हैं तथा वहां अपनी शिखरता को साबित कर रहे हैं। मेरे जो संस्थान हैं इनका मैं विश्‍लेषण करता हूं तो पाता हूं कि शोध और अनुसंधान की कमी अभी हमारे यहां हैंअभी मेरे संस्थानों में शोध और पेटेंट की कमी है।जब मैंने मेरे देश और दुनिया कीसमीक्षा की, विश्लेषण किया तो मुझे यह महसूस हुआ कि अभी कुछगढ्ढे हैं हमारे पास वो गढ्ढे क्या हैं? पीछे के समय में शोध और अनुसंधान का परिवेश नहीं बना पाया। हमने बस बच्चों को पैकेज की ओर दौड़ाया तथा कभी उनको यह नहीं कहा कि तुम शोध और अनुसंधान के उस क्षेत्र में बढ़ो ताकि हम हिंदुस्तान को पूरे विश्व के शिखर पर पहुंचा सकें। आज समय आ गया है तथा युवाओं को शोध और अनुसंधान की जरूरत है। हम पेटेंट करेंगे, हम शोध करेंगे। हम नवाचार के साथ अपनी चीजों को दुनिया के शिखर परपहुंचाएंगे। क्यों नहीं हम पूरे विश्‍व के स्‍तर पर आगे जाएंगे, जरूर जाएंगे और इसलिए अभीहमारी एनईपी आई है। नयी शिक्षा नीति आई है उसकाबहुतखूबसूरत तरीके से केवल इस देश के लोगों ने ही स्वागत नहीं किया बल्‍कि पूरी दुनिया के लोग बहुत स्वागत कर रहे हैं। देश में उल्लास का वातावरण है। उनको लगता है देश की आजादी के बाद पहली बार उनकी भारत केन्द्रित शिक्षा होगी। हम भारत की धरती पर खड़े हो करके विश्व के शिखर पर पहुंचेंगे। यही हमारी शिक्षा नीति का निचोड़ होगा। हम अपने ज्ञान विज्ञान को साथ लेकर के जाएंगे। कोई भी समाज, कोई भी व्यक्ति अपने मूल पर ही दुनिया में नंबर एक हो सकता है। किसी चीज से सीखे हुए पर और उधार लिए पर नंबर एक नहीं हो सकता है और इसीलिए यह हमारे सामने चुनौती है लेकिन जब चुनौती बड़ी होती है तो वहअवसरों में तब्दील हो करके उतनी बड़ी सफलता लेकर आती है और आप लोगों ने इस चुनौतीपूर्ण कार्य को किया है। जब पूरा देश औरपूरी दुनिया कोरोना के संकट से गुजर रही थी ऐसे वक्‍त पर मेरे देश के प्रधानमंत्री जी ने युवाओं को कहा कि आप क्या कर सकते हो? यह चुनौती है और कैसे करके इस चुनौती का मुकाबला करना है? मुझे खुशी है कि चाहेमेरे एनआईटी हैं, मेरे आईआईटी है, चाहे मेरे तमाम संस्थान हैं उनके अध्यापक और छात्रों ने जब लोग अपने घरों पर रहे होंगे तब मेरे छात्र, मेरे प्राध्यापक प्रयोगशालाओं में इस देश काभाग्य लिख रहे थे हमने एक से बढ़कर एक अनुसंधान करके यह साबित किया किदेश हर परिस्थिति का मुकाबला कर सकता है। अभी युक्ति पोर्टल पर इसकोविडके दौरान यदियुक्ति का आप विजिट करेंगे तो आपको अद्भुत नजर आएगा। चाहेवेंटिलेटर हो,चाहेटेस्टिंग किट हो,चाहेड्रोन हो,चाहे नए-नए ऐप हों जो पहले देश के अंदर थे ही नहीं और अब हम उन चीजों को लेकर के दुनिया के देशों को भी दे रहे हैं। यहचुनौती थी औरहमनेउस चुनौती का मुकाबला किया और उसको अवसरों में तब्दील किया। अभी हमारे सामने पूरा मैदान खाली है जहां हम स्कूली शिक्षा मेंइस नयी शिक्षा नीति के तहत तीन वर्ष के बच्चे को पकड़ रहें हैं क्योंकि हमको मालूम है कि वह बच्चा जो बहुत अकलुषित है,वह एक कोरा कागज हैं,उस कोरे कागज पर आप क्‍या लिखना चाहते हैं, कितना सुन्दर लिखना चाहते हैं और कितनी दूर तक कालिखना चाहते हैंवोलिखा जाएगा और इसीलिए उस बच्चे  पर तीन वर्ष से लेकर करके ही हम ध्‍यान केंद्रित कर रहे हैं हमारा नेशनल रिसर्च फाउंडेशन जो प्रधानमंत्री जी के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार की अध्यक्षता में होगा उससेराष्ट्रीय शोध और अनुसंधान की दिशा में एक व्यापक परिवर्तन आएगा,एक संस्कृति बनेगी और मेरे छात्र-छात्राएं शोध और अनुसंधान करेंगे और तकनीकी की दिशा में अंतिम छोर तक कैसे मेरी तकनीक की जा सकती है और समर्थ योद्धा की तरह मेरे तकनीकी छात्र नित नये अनुसंधान कैसे कर सकते हैं इसके लिए भी हम नेशनल एजुकेशन टेक्नोलॉजी फोरम का गठन कर कर रहे हैं ताकि हर तकनीकी का उच्‍चतम सीमातक विस्तार किया जा सकता है। अभी भी युक्ति-2के रूप में हमने देश के अंदर एक ऐसा प्लेटफार्म खड़ा किया है जिसमेंमेरे छात्रों के तमाम हजारों एवं लाखों जो आइडियाज हैं वो मेरी युक्ति पोर्टल पर हैं और युक्ति पोर्टल पर कोई भी जाकर विजिट कर सकता है। मेरे इन छात्र एवं छात्राओं के आइडियाज को कोई भी अपने गांव और शहर में लेकर जा सकता है। हमारेदेश में पांच-छह करोड़ लघु उद्योग हैं। मेरे इन छात्रों ने यह तय कर दिया कि एक भी छात्र विदेशों में नहींजाएगा और हम यहीं नौकरियां सृजित करेंगें तथा यहीं अनुसंधान करेंगे हम अच्‍छा परिवेश उनको यहीं प्रदान करेंगे।मेरे छात्र ने यदि तय कर दिया कि हमें उद्योगों को पकड़ कर के उन्‍हें तकनीकी की दृष्टि से समर्थ करेंगे और दुनिया के सामने लाएंगे इन 5-6 करोड़ लघु उद्योगों मेंमेराएनआईटी वाला तथा आईआईटी वाला छात्र घुस जाएगता तो क्‍यानहीं कर सकता। एक छात्र में कम से कम दस लोगों को रोजगार देने की हिम्मत होगी, उसके पास आईडिया होगा, उसकी सामर्थ्य होगी और यदि उन पांच करोड़ लोग  उद्योगों में एक छात्र 10 लोगों को रोजगारदेना शुरु कर देगा तो आत्मनिर्भर भारत शिखर पर पहुँच जाएगा और इस आत्मनिर्भर भारत की आधारशिला आपके संस्थानों में पड़ेगी। इतना बड़ा देश है कोई कमी नहीं है। प्रतिभा की भी कोई कमी नहीं है। हम विजनरी मिशनरी भी हैं। हम उतना ही कठोर भी हैं उतने ही विनम्र भी हैं। हमारे देश में संस्कार मिलता है,हम तभी तो दुनिया मेंअलग हैं। दुनिया भारत को जैसी देखती ळे त्‍ज्ञै उसको लगता है कि यह भारत के लोग हैं यहीहमारी पहचान है। हां, हमने कई बार उसकी क्षति भी उठाई है जो सहज-सरल लोग होते हैं वो जल्दी से परेशान भी हो जाते हैं। उनको हर व्यक्ति परेशान एवं दबोचने की की कोशिश करते हैं लेकिन किसी की शालीनता उसकी कमजोरी नहीं कही जा सकती। शालीनता और सहजता तो उसका आभूषण है। जब वह खड़ा होता है तो वह चट्टान की तरह खड़ा भी होता है। भारत में उन दिनों को देखा है औरउन परिस्‍थितियों को देखा है इसलिए मेरा मानना है कि आप बहुत बेहतरीन कार्य  कर रहे हैं मैं देखरहा था कि आपने गणित विभाग में भी इंटरनेशनल प्रोजेक्ट अपने हाथ में लिया है और मुझे भरोसा है विश्वपटल पर यह प्रोजेक्ट आपके नाम को ऊपर उठाएगा।कोविड-19 के समय में भी आपने मरीजों की देखभाल के लिए एक ऐप आपने तैयार किया।ऑनलाइन के माध्यम से आपने शिक्षण प्रशिक्षण की प्रक्रिया को आगे बढाया तथा सामाजिक उत्तरदायित्वों के निर्वहनकी दिशा में भी आपने पांच गांवों को गोदलिया है जब भीयह कोरोना की महामारी कम होगी तो मैं सबसे पहले जो आपके पांच गांव में हैं, उन गांवों का दर्शन जरूर करना चाहूंगा। वहां मुझे आपकी छवि दिखाई देगी तथा संस्थान की भी छवि दिखाई देगी। मुझे लगेगा कि जो काम पहले कुछ नहीं था वहां मेरे जमशेदपुर एनआईटी ने उसको अपनी गोद में ले करके उसकी काया पलट दी। उस दिन मुझे खुशी होगी जब यहां झारखंड के मुख्यमंत्री मुझे यह कहेंगेकिनिशंक जी संस्थान हो तो एनआईटी, जमशेदपुर जैसे होने चाहिए जो हमारा गौरव बढ़ा सकते हैं तथा राज्य की प्रगति कोआगे बढ़ा सकते हैं। यहांकी सरकार आपसे पूछे कि किस क्षेत्र में क्या-क्या कर  सकते हैं तो आपके जो फैकल्टी हैं उन्‍हें योद्धा की तरह काम करना है। छात्रों को ऐसा तैयार करना है कि ऐसा लगे कि जो भी यहांजा रहा हैवोऐसा हीरानिकाल के जा रहा है जो नौकरी के लिए बाहर न जाए बल्कि जिस व्यक्ति को हम खड़ा करेंगे, उसमें यहसामर्थ्‍य होगी कि हम दुनिया के लोगों को नौकरी देंगे यहविचार होना चाहिए, यह सोच जरुरी है। पीछे के समय एक बार आस्ट्रेलिया के शिक्षा मंत्री जी आए थे और उन्होंने जब मेरे से चर्चा की तो उन्होंने कहा कि आज आपकेहिन्दुस्तानी तो अनेक स्‍थानों पर शीर्ष पर हैं उनका चार्ट मैंने देखा कि किन-किन स्थानों पर थे। मैंने अमेरिका, लंदन,यूक्रेन सहित कई यूरोपीय देशों को देखा जहां भारतीय शीर्ष पर थे। पोलैंड में मेरी पुस्तक को उन्होंने पाठ्यक्रम में लगाया थातो वहां भी मैं गया। वारसा यूनिवर्सिटी 400 साल पुरानी है वहांवेसंस्कृत एवं हिन्दी पढ़ा रहे थे। वो कहते थे कि संस्कृत में कुछ ऐसी चीजें हैं जिनपर हम शोध और अनुसंधान करकेउसको आगे बढ़ाएंगे। उसी में चाहे वो वेद है, पुराण हैं, उपनिषद है तथा बहुत सारी चीजें हैंजो यदि उनको तकनीकी और वैज्ञानिक विश्लेषण के साथ आगे बढ़ाते हैं तो हम विश्‍व मानवता को बहुत बड़ी निधि दे सकते हैं। यूक्रेन में मैंने पूछा वहां के राजदूत से कि कितने हिंदुस्तान के लोग हैं। मुझे  लगा कि 500 अथवा 1000 लोग ज्यादा से ज्यादा होंगे। लेकिन उन्होंने कहा कि सर आपको आश्चर्य होगा मैं आपको बता दूं कि15 हजार बच्चे तो यहां केवल एमबीबीएस करने के लिए आए हैं और जब मैंने कहा फिर उनको क्या भाषा की परेशानी नहीं होती? यदि 15 हजार बच्चे यहां पर एमबीबीएस कर रहे हैं तो उन्होंने कोई परेशानी नहीं होती तो वे इतने सहज तरीके से बोलेकि साहब ऐसा है ना उनको जो पढाने वाले हैं वो भी लगभग 90 परसेंट हिंदुस्तानी हैं। बच्चा भी हमारा तथा पढ़ाने वाले भी हमारे यह कितनी बड़ी त्रासदी है। अब ऐसानहीं होगा इसलिए हमने ‘स्टडी इन इंडिया’ कहा है। दुनिया के लोगों से आह्वान किया है कि आओ हमारी धरती पर पढ़ों क्‍योंकि हमारे अध्यापकों में ताकत है। आपको ऐसा पढ़ाएंगे और ऐसा सिखाएंगेकिआप दुनिया में बहुत तेजी से आगेजाएंगे और हमने‘स्टे इन इंडिया’ भी किया है कि भारत के छात्रों को अब दुनिया में भटकने की कोई ज़रूरत नहीं है। अब देश ने करवट ले ली है तथा नरेन्द्र मोदी जी की अगुआई में देश पूरी दुनिया में बहुत ताकत के साथ उभर रहा है। पीछे के समय में शिक्षा के क्षेत्र में आमूल चूल परिवर्तन हुए हैं और इसलिए अब हम नई शिक्षा नीति को अंतरराष्ट्रीय फलक पर लेकर आये हैं।जहां पूरी दुनिया केशीर्ष सौ विश्वविद्यालयों को हम अपनी धरती पर आमंत्रित करेंगे और हमारे भी शीर्ष  संस्‍थान हैंउनको भी दुनिया में भेजेंगे।यहआदान प्रदान करेंगे। हम अभी भी 28 देशों के 127 विश्वविद्यालयों के साथ अनुसंधान कररहें हैं।अभी ‘स्टडी इन इंडिया’ अभियान के तहत 50 हजार छात्रों ने अभी रजिस्ट्रेशन कर दिया था। लोगों में उत्सुकता हैहिंदुस्तान की धरती पर आकर पढ़ने की। अभी मेरे आसियान देशों के एक हजार छात्रों काआईआईटी में अनुसंधान के लिए उनके साथ हमारा एमओयू हो गया है। अब पूरी दुनिया का छात्र यहां आना चाहता है। हिंदुस्तान बड़ा लोकतांत्रिक देश है।इसकाइतना बड़ा फलक है। इसकी जो समस्याएं बिखरी हुए हैं उन समस्याओं के समाधान की दिशा में मेरा छात्र उस चुनौती को स्वीकार करेवह छात्र बिखरी हुई समस्याओं पर शोध एवंअनुसंधान करें और वहीं उनके अनुरूप यूनिटों को खड़ी करे। स्टार्ट अप खड़ी करें। और आज इन छोटी-छोटी चीजों की ही अधिकजरूरतहैक्योंकि छोटी-छोटी बातें बड़ा बदलाव लाती हैं। वह बड़ी बड़ी बातें करके कोई फायदा नहीं होता है। वो उतना बड़ा बदलाव नहीं लाती हैं। छोटी-छोटी बातें बड़े बदलाव का कारण बनती हैं और इन युवाओं को कैसे पारस्परिक हम जोड़ सकते हैं, इसकी जरूरत है। मैंने कहा कि यह जो हमारी शिक्षा नीति है यह नेशनल भी है,यह इंटरनेशल भी है, यह इम्पैक्टफुल भी है, इंटरएक्टिव भी है और यह इन्क्लूसिव भी है। इसीलिए तो दुनिया के तमाम देश कहरहे हैंकिहम भी भारत की एनईपी को अपने देश में लागू करेंगे। उनको लगता है कि हम मातृभाषा में लाएं हैं। प्रारंभिक शिक्षा मातृभाषा में होगी क्योंकि अपनी भाषा में जो अभिव्यक्ति होती है वह दूसरी थोपी हुई भाषा  में अभिव्यक्ति बाहर नहीं आ सकती। इसलिए ताकत के साथ हम प्रारंभिक शिक्षा हमारीमातृभाषा से शुरू करेंगे। हमारे देश के संविधान ने22 खुबसूरत भाषाएं चिह्नित की हैंआठवींअनुसूची में तमिल, तेलुगू, मलयालम, कन्नड़, गुजराती, मराठी, बंगाली, ओड़िया, असमिया, उर्दू सहित जो भारतीय भाषाएं हैं उनकी अपनी खूबसूरती है। सभी प्रदेश अपनी भाषा में पढ़ायें और उसके बाद एक अतिरिक्त इन22 भाषाओं में से जिस भाषा को लेना चाहें, उस भाषा को लें क्‍योंकि हमने किसी प्रदेश पर कोई भाषा थोपी नहीं है लेकिन अपनी मातृभाषा में तमाम दुनिया के देशों ने प्रगति की है। कुछ लोगों के मन में आता है किग्लोबल परजाने के लिए तो अंग्रेजी में पढ़ना जरूरी है हम अंग्रेजी के कभी भी विरोधी नहीं रहे हैं। अंग्रेजी ही नहीं दुनिया कीसब भाषाओं को पढ़ना चाहिए। भाषा तो केवल अभिव्यक्ति का माध्यम होता है। मैंने उन लोगों का हाथ जोड़कर कहा कि आप यह बताइये कि जापान है वो अपनी मातृभाषा में शिक्षा देता है,इजराइलहमारे बाद स्वाधीन हुआ है वह भी मातृभाषा में शिक्षा देता है, जर्मनीभीअपनी मातृभाषा में शिक्षा देता है यदि दुनिया के शीर्ष 20 देशों को चुना जाए तो वे सब अपनी मातृभाषा में शिक्षा दे रहे हैं।फिर यह तर्क इस देश के साथ क्यों? हमारे बच्चे पर जबरदस्ती उन चीजों को क्यों थोपने की कोशिश हो रही है,नहीं अब नहीं थोपा जाएगा। उसके लिए मैदानखालीहै वहजो चाहे करे। जिस भाषा को सीखना चाहे सीखो लेकिन प्रारंभिक शिक्षा अभी मातृभाषा में करो। अपनी भाषा का भी सम्मान करो। उन्हीं भाषाओं में आपकी अभिव्यक्ति ही आपको शिखर तक पहुंचा सकती है। हमारी भाषाएं केवल भाषाएं नहीं हैं बल्‍कि उनके अंदर उनकी अपनी खुबसूरती ज्ञान, विज्ञान एवं परंपराएं हैं। यह जो आत्म निर्भर भारत हैं यह उन गांवों को खड़ा करेगा, उन विचारों को खड़ा करेगा तथा उन परंपराओं से निकली चीजों को खड़ा करेगा और इसलिए मैं समझता हूं कि यह हमारे सामने एक चुनौती भी है और एक अवसर भी है। हम टैलेंट को भी पहचानेंगे और टैलेंट का विकास भी करेंगे और उसका विस्तार भी करेंगे। ऐसा नहीं कि टैलेंट तो बहुत सारे लोग होते हैं लेकिन प्रतिभाशाली लोग बहुत कम होते हैं।  यदि उस पर प्रतिभाशाली का विस्तार नहीं हुआ तो क्या करना उस प्रतिभा का। इसलिएआर्टिफिशल इंटेलिजेंस हम स्कूली शिक्षा से ला रहे हैं।हमकक्षा छह से ही वोकेशनल स्ट्रीम इंटर्नशिप के साथ ला रहे हैं ताकि बच्‍चाआधा दिन पढ़े तथा आधा दिन वो प्रैक्टिकल में रहे। वो सप्ताह में दो दिन गांव में जाएं। ताकि वो स्कूली शिक्षा से जब बाहर निकले तो वो एक योद्धा की तरह निकले हमारा विद्यार्थी केवल अंक ज्ञान और अक्षर ज्ञान के साथ न निकले और अबउसका मूल्यांकन भी 360 डिग्री होगा। अब विद्यार्थीअपना मूल्यांकन भी करेगा, उसका अभिभावकभी उसका मूल्‍यांकनकरेगा, उसका अध्यापक भी उसका मूल्यांकन करेगा और उसका साथी भी उसका मूल्यांकन करेगा। जब स्‍वत:आदमी अपना मूल्यांकन करता है औरयदि अकलुशिततरीके से अपनामूल्यांकन करता है तो उससे ज्यादा विश्लेषक कोई नहीं हो सकता है। हर व्यक्ति को पता है वो कमजोर कहां है वो तो उस कमी को जबरदस्ती दबाता है तथाअपने अहं के कारण बताता नहीं है। लेकिन जिस दिन उसको चिह्नित हो गया कि नहींमेरी यह कमी है और मुझे उसेदूर करनी है तो वह जो योद्धा बन कर के बाहर निकलता है और इसे जब वह अपने विश्लेषण से आरम्‍भ करता है तब वो बहुत सारी कमियों को स्‍वत:-स्‍फूर्त है। वह किसी के कहने से नहीं करता है उसको मालूम है कियह कमी मेरी है और इसीलिए यह नयी शिक्षा नीति का बिल्कुल नया ऐंगलहै। हम छात्रों को कोई भी विषय क्‍यों न लेने दें, कोई विषय लोना क्या दिक्कत है। विज्ञानके साथ आप तकनीकीले सकते हो, इंजीनियरिंग के साथ अब संगीत ले सकते हो, जिस क्षेत्र में तुम्हारा मन कर रहा हैउस क्षेत्र में चलो।इस शिक्षा नीति के अंतर्गत यदि कोई 4 वर्ष का कोर्स है और यदि कोई छात्र दो साल में परिस्‍थितिवशछोड़के जा रहा है तो पहले उसका पैसा एवं वर्ष दोनों खराब हो जाते थे लेकिन अब उसकोनिराश नहीं होना पड़ेगा।यदि आप परिस्‍थितिवश एक वर्षमें छोड़ कर जा रहे हैं तो उसको सर्टिफिकेटदेंगे,दो साल में छोड़ कर जा रहा है तो डिप्लोमा देगें, तीन साल में छोड़कर जा रहा है तो उसकोडिग्री देंगे लेकिन यदि फिर वह लौट कर अपने भविष्य को संवारना चाहता है तो फिर जहां से उसने छोड़ा था वहीं से शुरू कर सकता है। उसके लिए हम एक ऐसा क्रेडिट बैंक बनायेंगे जहां उसके सारे क्रेडिट जमा होंगेतथाउसके लिए आगे बहुत आपार संभावनाएं है।इसीलिए छात्र भी खुश है,अभिभावक भी खुश है, अध्यापक भी खुश हैंऔर पूरा देश खुश है कि उनको लगता है कि अब कुछ परविर्तन होगा। हम आखिरकबतक एक ही व्यवस्था को ढोते चले जाएंगे। मैं आशा कर रहा हूं कि आप अपने पूर्व छात्रों का उपयोग कर रहे होंगे और इस नई शिक्षा नीति केलिए टास्कफोर्स भी बना रहे होंगे।हमारे जो पूर्व-छात्र हैं वो क्या-क्या कर सकते हैं और वो जो पूर्व छात्र आपके जब एक साथ इकट्ठा होंगे तोनई-नई ऊर्जा आती है तथा कुछ करने का मन होता है। जब मिल करके करेंगे तो देखिए आप कितना परिवर्तन होगा। इन 60 वर्षों में निकलने वाले उन छात्रों को आप एकत्रित करेंगे तो उनकी जो बौद्धिक सम्पदा है, उनके जो अनुभव की संपदा है वह आपको या इस संस्थान को फिर मिलेगी और इसीलिए निदेशक महोदय से मैं अनुरोध करूँगा कि आप इन पूर्व छात्रों को एकत्रित करेंगे तथा इनके लिए टास्कफोर्स भी बनायेंगे।नई शिक्षा नीति बड़े व्यापक परिवर्तन और सुधारों के साथ आयी है इसको क्रियान्वित करने की दिशा में आप एक बार योद्धा की तरह आपके सारे अध्यापक आगे आएंगे तो मुझे खुशी होगी और आज जो हीरक जयंती व्याख्यान परिसर का आपने लोकार्पण किया है उसके लिए मेरी ओर से आपको एवं पूरे एनआईटी परिवार को  बहुत-बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं।

 

बहुत-बहुत धन्‍यवाद!

 

 

कार्यक्रम में गरिमामयी उपस्‍थिति:-

 

  1. डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’, माननीय शिक्षा मंत्री, भारत सरकार
  2. श्री संजय शामराव धोत्रे, माननीय शिक्षा राज्‍य मंत्री, भारत सरकार
  3. प्रो. करुणेश कुमार शुक्ला निदेशक, एनआईटी जमशेदपुर
  4. प्रो.डॉ.वीरेन्द्र कुमार, अधिष्ठाता,एनआईटी जमशेदपुर
  5. श्रीअनिल कुमार चौधरी,कुलसचिव,एनआईटी जमशेदपुर

बाल सुरक्षा और संरक्षा पर ‘‘डिजिटल ऑनलाइन कार्यक्रम एडोप्‍ट- सीएसएस का शुभारम्‍भ’’  

बाल सुरक्षा और संरक्षा पर ‘‘डिजिटल ऑनलाइन कार्यक्रम एडोप्‍ट- सीएसएस का शुभारम्‍भ’’

 

दिनांक: 20 अक्‍टूबर, 2020

 

 

माननीय शिक्षा मंत्री, डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’

 

आज के इस बहुत ही महत्‍वपूर्ण कार्यक्रम में उपस्‍थित प्रबोधिनी के यशस्‍वी अध्‍यक्ष प्रो. अनिरूद्ध देशपाण्‍डे जी, डॉ. विनय सहस्रबुद्धे जी, सांसद एवं उपाध्यक्ष, आईसीसीआर एवं अध्‍यक्ष, संसदीय कमेटी, एचआरडीजिनकाप्रबोधिनी से उनका बहुत लंबे समय से जुड़ाव रहा है, श्री प्रियांक कानूनगो, अध्‍यक्ष राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग और सदस्य सचिव एवं उपस्थित उनके सभी सदस्यगण, श्री रविन्‍द्र साठे जी, जो इस प्रबोधिनी के महानिदेशक के नाते बड़ी जिम्मेदारी का निर्वहन कर रहे हैं और जो इस अभियान को न केवल आगे बढ़ा रहे हैं बल्कि गुणवत्ता के साथ वर्तमान परिस्थितियों में आवश्यकता के अनुसार उसको बहुत तेजी से क्रियान्वयन करने की दिशा में भी आगे बढ़ा रहे हैं। मैं देख रहा हूं कि कई बोर्ड के अध्यक्ष हैं, अध्यापकगण हैं, तमाम शैक्षणिक संस्थानों के प्रमुख हैं तथा मनोज जी,जोसीबीएसई बोर्ड के अध्‍यक्ष हैं, वे भी हमारे साथ जुड़े हुए हैं।इनके अलावा जो भी लोग दूर-दूर से हमारे साथ जुड़े हुए हैं,मैं उन सभी का अभिनंदन कर रहा हूं और बच्चे तो हमारी निधि हैं। किसी भी परिवार की,समाज की, देश की और दुनिया की निधि बच्‍चे ही होते हैं। यदि किसी परिवार के भविष्‍य चेहरा देखना हो तो उसके बच्चे के चेहरे में उसका प्रतिबिम्ब नजर आता है।बच्चे का भविष्य क्या है और परिवार का भविष्‍य क्‍या है यह बच्‍चे से ही सुनिश्‍चित होता हैक्‍योंकि उस परिवार का भविष्य उस बच्चे पर के भविष्य पर आधारित है, उसकी आगे की गतिविधियों पर पर आधारित है। स्‍वाभाविक ही है कि जब परिवार का भविष्य अच्छा होगा तभी समाज एवं राष्ट्र का भविष्य अच्छा होगा। हमने यह कहा है कि जो मनुष्य है वह ईश्‍वर की सबसे सुंदरतम कृति है और उसके बचपन से लेकर बड़े होने तक उसको किस प्रकार का परिवेश मिल रहा है,क्‍या दिशाएँ मिल रही हैं यह बहुत महत्वपूर्ण है। मुझे इस बात की ख़ुशी है कि जो आपने आज बच्चों पर महत्त्वपूर्ण गोष्ठी आयोजितकी है और प्रबोधिनी लगातार ऐसा कर रही हैं।जैसा कि अभी संचालक महोदय चर्चा कर रहे थे बच्‍चे भारत के भविष्य के आधार स्तंभ हैं, उनकी सुरक्षा के लिए राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग और प्रबोधिनी ने सयुंक्त रूप से टीचिंग और नॉन टीचिंग स्कूली स्टाफ के प्रशिक्षण के लिए इसऑनलाइन कार्यक्रम उद्घाटन कियाहै। इस अवसर पर प्रबोधिनी और इस आयोग को,जो बच्चों की सुरक्षा के  लिए लगातार चिंतित हैं और उस दिशा में गतिशील भी है, मैं आपको बधाई देना चाहता हूं। यदि आप देखेंगे  तो हमारे देश के अंदर शिक्षा का बहुतबड़ा व्‍याप है। यहां एक हजार से भी अधिक विश्वविद्यालय हैं, पैंतालीस हजार से भी अधिक डिग्री कॉलेज हैं, पंद्रह लाख से भी अधिक स्कूल हैं, एक करोड़ दस लाख से भी अधिक अध्यापक हैं और अमेरिका की कुल जितनी आबादी नहीं होगी उससे भी अधिक 33 करोड़ यहां छात्र छात्राएं हैं, यह इस देश का वैभव है। यह दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है। इसलिए मैं समझता हूं कि यह सामान्य बात नहीं है,इस अभियान को मिशन मोडमें लेने की जरूरत है और आप लोग इसको मिशन मोडमें कर रहे हैं।यह मेरे लिए खुशी काविषय है क्योंकि मैं सोचता हूं कि इंद्रधनुषी विकास में यदि आप देखें तो जो उत्प्रेरक के रूप में हमारे जो सतरंगी बच्चे हैं वेविविधता से युक्त हैं और इन बच्चों की संवेदनाओं को केवल शारीरिक सुरक्षा ही नहीं चाहिए बल्‍कि उनको हर दिशा की सुरक्षा चाहिए। उनको भावनात्मक सुरक्षा भी चाहिए, उनकी विश्लेषणात्मक सुरक्षा भी चाहिए और उनकी संवेदनात्मक सुरक्षा भी चाहिए। बच्चा केवल स्कूल की चारदीवारी के अंदर सुरक्षित रहे अथवा अनुशासित रहे यह मात्र इतने भर का काम नहीं है। बच्चे को सुरक्षा एवंसंरक्षा यहदोनों ही चाहिए और सुरक्षा तथासंरक्षा का जो व्‍याप हैवहीं, उसका व्यक्तित्व बन करके उभरता है।केवलअक्षर ज्ञान उसकी शिक्षा नहीं हो सकता है और इसीलिए जो वर्तमान में हम नई शिक्षा नीति को लेकर के आयें हैं वो मैं यह समझता हूं कि उसकीएक बहुत बड़ी आधारशिला होगी, जिस बारे में आप आज चिंता कर रहे हैं। यह जो डिजिटल कार्यक्रम है मैं इसके लिए आपको बधाई एवं शुभकामना देता हूं। हम जब भारत के संविधान को थोड़ा सा देखते हैं तो हमारे संविधान ने भी प्रारंभिक बाल्यावस्था की सुरक्षा से ले करके, बच्चों के एजुकेशन की, गरिमापूर्ण जीवन जीने के अधिकार की तथा शोषण के विरुद्ध अधिकार सहित तमाम चीजें हमको दी हैं।जब हमें सोचना होगा कि उसमें किस तरीके से नवनिर्माण और नई गतिशीलता लाई जा सकती है। जो यह संवेदनशीलता है यह भी बहुत जरूरी है और मैं यह समझता हूं कि यहसंवेदनशीलता भावनाओं से होगीपरिवेश से होगी। यह कानून बनाने से भी नहीं हो सकती है। यह जो उसकी संवेदनशीलता है, यह विचारों से होगी। मैं गांधीजी के विचारों से बिल्कुल सहमत हूं, अभी कुछ दिन पहले यूनेस्‍को कीडीजी जब मुझे मिलने के लिए आई तो उन्होंने सबसे पहले यह चिंता व्यक्त की कि डॉ. निशंक जो परिस्थितियां बन रही हैं, बच्चों में जोअनुशासनहीनता हैं,हिंसा की जो प्रवृति बढ़ रही है तथा सम्मान का भाव कम हो रहा है  एवं विनम्रता घट रही है ऐसी स्‍थिति में कैसे कर के इसका निदान होगा। तो शायद अभी जिस बात को गांधी जी ने कहा और श्रीराम जी ने जिस बात को कहा और आयोग के अध्यक्ष जी ने भी उसको कहा कि जब तक जीवन मूल्यों पर आधारित शिक्षा नहीं होगी तब तक इन सारी चीजों पर हम कानून तो बनाते रहेंगे और यहचर्चा भी करते रहेंगे लेकिन जिस मनुष्य को, जिस बच्चे को हमने आधार शिला पर खड़ा करना है तथा जिसको विचारों की दृष्टि से, संस्कारों की दृष्टि से खड़ा करना है। कहीं ऐसा तो नहीं महल खोकले तरीके से खड़ा हो रहा है। मैं समझता हूं कि इस समय देश एक नई करवट ले रहा है और यह देश, मेरा भारत विश्वगुरु रहा है। हमारे बारे में कहा गया है कि ‘‘एतद्देशप्रसूतस्य सकाशादग्रजन्मनः स्वं स्वं चरित्रं शिक्षेरन्पृथिव्यां सर्वमानवाः’’सारी दुनिया के लोगों ने हमसे आकर के सीखा है। उन्‍होंने विज्ञान, तकनीकी, प्रौद्योगिकी का ज्ञान हमसे सीखा है कुछ तो बात हमारी ऐसी है जो वे ले करके जाना चाहते हैं और कहा भी गया है कि कुछ तो बात ऐसी है हमारी जो यूनान, मिश्र, रोमां सब मिट गए जहां से, अब तक मगर है बाकी नामो निशां हमारा और कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी। वो कौन सी बातें हैये जानने की जरूरत है, जो मिटाने से भी नहीं मिटी हैं। दुनिया के तमाम देश कब पैदा हुए और कब खत्‍म हो गएउनका इतिहास भी नहीं मिलतालेकिन जो कुछ बातें हैं हमारी जो तमाम थपेड़ों को खाने के बाद भी जो हमको मिटा नहीं सके हैं उन बातों को संजोने की जरूरत है इसलिए मैं जिस बात को कह रहा था कि वो जो जरूरी चीजें हैं जो तमाम कोशिशों के बाद भी मिटाने से भी नहीं मिटी हैंतमाम थपेड़े खाने के बाबजूद भी जो हमारे साथ रही हैं उन चीजें को जानने-पहचानने, उन उन संस्कारों को अपने मन-मस्तिष्क में समाहित करने अपनी पीढ़ी को देने और उसके भव्य महल को खड़ा करने की आज आवश्यकता है। मैं समझता हूं कि यहमूलभूत समस्या कहां से खड़ी हुई? लार्ड मैकाले ने कहा था कि हिंदुस्तान पर यदि राज करना है तो इसकी शिक्षा और संस्कार दोनों को खत्म कर दो। इसकी भाषाओं को भी क्‍योंकि जबवह अपनी भाषा में ज्यादा अभिव्यक्ति देगा तो उसकी भाषा,शिक्षा और संस्कार यहतीन चीजें आपबदल दीजिए तो सब कुछ ठीक हो जाएगा और भारत अपने आप बदल जाएगा। मैं सोचता हूं कि चलो ठीक है, यह उनका अपनाअभियान था और वे अपने अभियान में काफी कुछ सफल भी रहे। लेकिन हमें बहुत पीछे जाने की जरूरत नहीं है क्‍योंकिआज तो हम स्वाधीन हैं, देश की आजादी के 70 वर्षों के बाद भी हमारी जड़ों को बुरी तरीके से उखाड़ने की कोशिश हुई थी लेकिन आज उन जड़ों को फिर से संजोने, पिरोने और उनको संरक्षित करने की जरूरत है। आज उस आधार पर खड़े हो कर के आगे बढ़ने की जरूरत है। मैं तो बेसिक सरकारी स्‍कूल से पढ़ा हुआ हूं। उनबेसिक सरकारी स्कूल में हम लोग टाट-पट्टी अपने आप ले करके जाते थे और तब बैठते थे। लेकिन जो उस समय का संस्कार था, जो उस समय मन के अंदर गुरुजन के प्रति जो श्रद्धा थी तब और अब में जमीन आसमान का अंतर हो गया और इसीलिए मुझे लगता है किहम केवलऊपर-ऊपर देख रहे हैं लेकिन जब तब जड़ पर बैठ करके उन समस्याओं का समाधान नहीं होगा तब तक केवल कानून बनने से भी बहुत परिवर्तन कहां हो जाता है और इसीलिए कानून उसकी संरक्षा करेगा तब जब आप उनकी जड़ों को मजबूत करेंगे। जब वो पेड़ अच्छा होगा तब उसकी देखरेख करने के लिए माली भी होना चाहिएक्‍योंकि हमें उसको अच्‍छा करना है, जड़ों पर खड़ा करना है,बड़ा होने पर वह फल वाला होगा, छांव वाला होगा और ठूंठ सा खड़े पेड़ का फायदा क्या है, जो ना किसी को छांव दे सकता है और न ही फल दे सकता है और वह एक छोटे से हवाके झोकेसे उखड़ करके चला जाएगा। इसलिए मैं समझता हूं कि आज वो क्षण आ गये हैं जब हम सब लोग मिलकर इस दिशा में निश्चित रूप में विचार भी करेंगे और विचार करने के बाद इसको आगे बढ़ाने की कोशिश भी करेंगे। मैंने जैसे कहा कि हम लोगों की जो जड़ें  थी वे हमारे संस्कार थे। हमारा वह संस्‍कार‘‘वसुधैव कुटुम्‍बकम्’’ का था,हमने अपने बच्चों को कह दिया कि ‘‘अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम्। उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्।।’’तो जब उसको हम पहले दिन से पूरा उदार बनाकर के यह शिक्षा देंगे कि पूरा संसार तुम्हारा है और उस संसार के लिए ‘‘सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया, सर्वे भद्राणी पश्‍यन्‍तु मा कश्‍चिद दुख भाग्‍भवेत’’ कीभगवान से विनती करेंगे और उसे समझायेंगे कि पूरे विश्‍व का जो परिवार है, उसमें चाहे कोई हमाराभाई है, बहन है,जीव-जन्तु हैं यह सबकभी दुखी न होंऔरजब तक यह दुखी रहेंगे तब तक मैं भी सुखी नहीं हो सकता। यहभावशुरू से ही बचपन से ही बच्‍चे केमन-मस्तिष्क में डालें, उसकी बाल्यावस्था से उसका मन तैयार करें, केवल मैं नहीं बल्‍कि हम का जो भाव उनके अन्‍दर डालेंसारी समस्याओं का समाधान तो वहां से होगा। हमने हमेशा कहा केवल उतना रखो जितनी तुमको जरूरत है, संग्रह मत करो, संग्रह की प्रवृत्‍ति ने लोगों को किस अवसाद तक पहुंचा दिया है। बेईमानी और भ्रष्टाचार की पराकाष्ठा को भी इस संग्रह की प्रवृत्‍ति के कारण हीपार किया है। मैं समझता हूं कि जो हमारे संस्कार थे, जो हमारा चिंतन था, मंथन था जिस तरीके से जो हमारीजड़ें थी,वोगहरी थी आज उनको पुन: विकसित करने कीजरूरत है।मुझे भरोसा है कि जिस बात की हम चिंता कर रहे हैं उसे यह नई शिक्षा नीति संवेदन शीलता से खड़ा करेगी। इन सभी चीजों के आधार पर खड़े हो करके जैसे हमारे देश के प्रधानमंत्री कहते हैं कि हमको एक अच्छा नागरिक ही पैदा नहीं करना हैबल्‍कि हमको विश्व मानव तैयार करना है और अभी की जो हमारी शिक्षा नीति है वो कमोबेस मानव नहीं वो मशीन तैयार कर रही है।लेकिन हमें बच्‍चे को संस्‍कार सम्‍पन्‍न बनाकर मानव बनना है और मानव से महामानव बनना है क्‍योंकि यह हिंदुस्तान विश्वगुरु रहा है, विश्वगुरू है और विश्‍वगुरू रहना है क्योंकि हमारी रगों में जो हमारा संस्कार है, जो विश्व को नेतृत्व देने का गुण है और समर्थ पराकाष्ठा का जो समर्पण है, जो प्रखरता है और जो हमारे ऋषि मुनियों ने, हमारे वैज्ञानिकों ने जो हमको सौंपा है उसके आधार पर हम कह सकते हैं कि हम बहुत तेजी से आगे बढ़ेंगे। यह बच्चे जैसे मैंने कहा कि यह पौधे की तरह हैं जिसको हर दृष्टि से उसके अनुरूप वातावरण मिले, इसकी जरूरत है।उसको यदि उचित माहौल मिलेगा तो वह विकसित होगा, जो सुरक्षा के आधुनिक तरीके हम लोग इस्तेमाल कर रहे हैं जैसे सीसीटीवी कैमरा है अथवा तमाम प्रकार के सिस्टम सर्विलांस प्रक्रियाओं को सुरक्षित करने का है। क्योंकि अब चौतरफा हमको ध्यान तो रखना ही होगा और उसको भी बहुत सारी संस्थाओं ने अभी शुरू किया है जो बहुस्तरीय सुरक्षा है चाहे घर से निकलकर स्कूल पहुँचने का हो,चाहेचारदीवारी के अंदर का हो, चाहे स्‍कूल से लौटने का हो इस प्रकार कीतमाम बच्चे की सुरक्षा बहुत जरूरी है। मैं सोचता हूं कि अपना देश तो कितनी विविवधता से जुड़ा है,यह तो अनेकता में एकता वाला देश है और इसमें विभिन्न धर्म हैं, जाति हैं,सुमदाय हैं, क्षेत्र हैं, भाषा है, लिंग है औरतमाम रंग हैं तो यहसभी एक जगह आकर के जो बच्चे पढ़ते हैं वो ऐसी खूबसुरत फुलवारी की तरह दिखते हैं जिसका सभीआनंद ले सकते हैं और उसकीजोखुशबू है वो बिखेर सकते हैं। जो यह बचपन है यह बहुत मूल्यवान बचपन है इसको अच्‍छीतरह विकसित करने की माता पिता तथाअभिभावकों सबकी जिम्मेदारी हैऔर इसीलिए जब हमने यह महसूस कियाऔर विशेषज्ञों ने और वैज्ञानिकों नेइस बात को कहा और हमारी कमेटी ने भी इस बात को महसूस किया कि हां, यह जो तीन वर्ष से छह वर्ष तक जो बच्चा है इसमें सीखने की सर्वाधिक जिज्ञासा होती है और इसका 88 प्रतिशत तकमस्तिष्क विकसित होता है इसलिए उस अवसर को भी हमने खोने नहीं दिया है। तीन वर्ष के बच्चों को खेल खेल में किस तरीके से हमउसको एक योद्धा की तरह बढ़ा सकते हैं तथा उसके मस्‍तिष्‍क का जितना विकासउसके अंदर है उसको बाहर निकाल कर विकसित कर सकते हैं तथाउसकी दिशाओं को देख सकते हैं। हमलोगों ने इसलिए 10+2 को हटाकर 5+3+3+4 किया और इतना ही नहीं हमने फाइव को भी  3+2 किया है। एक ओर गरीबी है, कुपोषण है और मूलभूत सुविधाओं की कमी है और दूसरी ओर यह समस्याएं हमारे सामने है इसलिएदोनों फ्रंट पर हम लोगों को लड़ना पड़ेगा तथा उन व्यवस्थाओं को भीकरना पड़ेगा औरउस परिवेश को भी बनाना पड़ेगा और निश्चित रूप में हम लोग उसमें कर भी रहे हैं। अभी मनोवैज्ञानिक दिशा में आपने देखा कि अचानक पूरी दुनिया कोविडकी महामारी के संकट से गुजर रही थी और अपना देश भी उससे अछूता नहीं था। आप समझ सकते हैं कि एकाएकऐसासंकट आ गया वो और 33 करोड़ छात्र घर के अंदर कैद हो गए। एक दिन, दो दिन, चार दिन, एक सप्ताह तो समझ में आता है लेकिन उसके बाद जो बच्चा जिसमें ऊर्जा का अथाहउफान रहता है वो एक सप्ताह दस दिन के बाद घर पर कैद हो जाए तो क्या परिस्‍थितिआ सकती है हम उसे रातों-रात ऑनलाइनपर लाए।मैंअध्यापक और अभिभावकदोनों को धन्‍यवाद देना चाहूंगा कि दोनों ने मिलकर के इस बच्चे को संभाला। यह दुनिया का शायद पहला ऐसा उदाहरण होगा कि पच्चीस करोड़ से भी अधिक बच्चों को अचानक ऑनलाइन पर लाना पड़ा और रात-दिन करके मैंशिक्षा मंत्रालय की टीम को भी बार-बार धन्यवाद देना चाहता हूं कि जुनूनी तरीके से मिशन मोड में रात-दिन खपकरके उन बच्चों के लिए जहां रातों-रात पाठ्यक्रम चैंज हो रहे हैं, आप समझ सकते हैं कि कितने प्रकार की चुनौतियां सामने रही होंगी लेकिन फिर भी बच्चे तक पहुंचने की कोशिश हुई है और अभी जो ‘मनोदर्पण’ करके हमलोगों ने कार्यक्रम शुरू किया ताकि बच्‍चाअवसाद में ना आए। अभिभावक भी अवसाद मेंजा सकता था  अध्यापक भीअवसाद में जा सकता था, क्योंकि चौबीस घंटे वे क्या करेंगे ऐसी परिस्थितियों में और किस ढंग से करेंगे इसलिए मनो दर्पण लेकरके भी हम आएं ताकि बच्‍चा मानसिक रूप से मुक्त हो सके और उसको किसी प्रकार का कोई भी दबाव एवं तनाव न आए और उसमें500 डॉक्टर थे जिन्होंने अपना बहुमूल्‍यसमय दिया तथाऑनलाइन एवं टेलीफोन द्वारा परामर्श के लिए एकपोर्टल बनाया ताकि बच्चा यहमहसूस न कर सके कि उसके सामने इतनी खराब और खतरनाक परिस्‍थिति आ गई हैं,क्‍योंकि बच्‍चे का मन भी सबसे मूल्यवान है और उसके उस मन को बचाने के लिए, उसके मन को आगे बढ़ाने के लिए ही हमने यह मनोदर्पण आरम्‍भ किया है। अटल जी कहते थे कि छोटे मन वाला कभी बड़ा नहीं हो सकता और टूटे तन वाला कभी खड़ा नहीं होसकता। वो मन ही ऐसा है जो आदमी को बढ़ाता है, आदमी को घटाता है, आदमी को ऊंचाई तक पहुंचाता हैऔर आदमी को फर्श पर लाकर खड़ा कर देता है और यहजो मन है यह बहुत खूबसूरत मन है, जिस तरीके के विचार उस मन में आ जाते हैं व्यक्ति वैसे करना शुरू कर देता है इसलिए उस बच्चे के उस कोमल मन को कितना संजो करके रख सकते हैं उस मन में कौन-सीचीजें हम अंकुरित करना चाहते हैंहम बीज जो बोयेंगे और उसी आधार पर वो बच्‍चे आगे बढ़ेंगे। इसलिए हम लोगों ने इस दिशा में भी काम किया औरसमय-समय पर गाइडलाइन भी हम लोग बच्चों को जारी करते रहे।अभीजैसे प्रियांक जी कह रही थी कि वर्ष2014के बाद फिर अभी जो हम लोगों ने वर्तमान में गाइडलाइन दीऔर मैं जानता हूं कि आप लोग बहुत सजग हो करके कार्य कर रहे हैं मैं सभी जो मेरे बच्चों से जुड़ी संस्थाएं हैं,उनके बारे में लगातार जानकारी लेता रहता हूं और मुझे खुशी है कि आपके नेतृत्व मेंयह आयोग बहुत अच्छा काम कर रहा है। आप बहुत गतिशील मुझे हमेशा लगे हैं और आपकी टीम बाकायदा चिंता करती है। जब-जब भी हम बच्चों के बारे में विचार करते हैं तथा गाइडलाइन देते हैं उसकी फिर समीक्षा भी करते रहते हैं। ऐसा नहीं कि हमने गाइडलाइन जारी कर दी तो बस उतना करने से ही केवल काम हो गया बल्‍कि यह भी देखते हैं कि उन दिशा-निर्देशों का उस बच्चे पर असर क्या पड़ा। हम लोगों ने तमाम गाइडलाइन को चेंज भी किया। हम लोग गाइडलाइन तैयार करते हैं और उसके बाद उसका विश्लेषणभी करते हैं। यह दिशा-निर्देश का बिन्‍दूठीक है, अथवा नहीं है, यह ऐसे हो सकता है अथवा नहीं हो सकता है इस पर हम पूर्ण विचार करते हैं। हम तो कभी घंटों के हिसाब से चेज करते हैं तो दिनों के हिसाब से भी चेंज करते हैं,तोपरिस्थितियों के हिसाब से भी पूरी गाइडलाइन को भी और यहां तककी पाठ्यक्रम को भी टोटली चेंज करते हैं। हम बच्चे के पीछे खड़े हैं। वह बच्चा हमसे छूटे ना, वो बच्चा भटके ना क्‍योंकि वो हमारी जो निधी है, हमारी दृष्टि है।जैसे कि अर्जुन की एक ही दृष्टि होती थी उसी तरहहमारी नजरबस केवल बच्चे पर है।हम दुनिया मैं इधर-उधर नहीं देखते इसलिए पीछे के दिनों में जब हो-हल्ला मचने लगा तो मैंने लोगों से हाथ जोड़कर निवेदन किया कि प्लीज मेरे बच्चों के साथ राजनीति मत करिए। आपके लिए पूरा मैदान खाली है। आप शिक्षा को छोड़ दीजिए राजनीति से बाकी आप पूरे मैदान में जो करना है करलीजिए। मुझे इस बात की खुशी है कि मेरी अपील को लोगों ने महसूस किया उन लोगों ने भी मेरे बच्चों पर दया की कि वो राजनीति न करें उनको ले करके और भविष्य में भी यह भरोसा करूंगा कि देश के चाहे कोई राजनैतिक दल हों,लोग हों,संस्थाएं हों और व्यक्तिगत तो कोई भी मेरे बच्चों के साथ मेरी शिक्षा के साथ राजनीति ना करें बल्कि उसके अच्छे सुझाव आएंगे तोहम उसको स्वीकार करेंगे औरउसको लागू करेंगे और शिक्षा मंत्रालय के तो पूरे द्वार हमेशा खुलें हैं जिस का भी अच्छा सुझाव आता है, हम उसे खुले मन से स्‍वीकार करते हैं देखिए नई शिक्षा नीति शायद दुनिया के सबसे बड़े विमर्श की नीति रही होगी। सारी दुनिया की शायद किसी भीनीति पर इतना विमर्श कभी नहीं हुआ होगा। हमने जहां  1000 विश्वविद्यालय, पैंतालीस हजारडिग्री कॉलेज, 15 लाख से अधिक स्‍कूल, एक करोड़ 9लाख से भी अध्यापक से लेकर के 33 करोड़ छात्र-छात्राओं के अभिभावकों से लेकर के, ग्राम सभा से संसद तक और ग्राम प्रधान से लेकर माननीय प्रधानमंत्रीजी तक सबका हमने मार्गदर्शन लियाऔर उसके बाद भी हमने उसेपोर्टल में डाला था। उस पर सार्वजनिक तरीके से लोगों के सुझाव लिए जिसमेंसवा दो लाख से भी अधिक सुझाव आए। उसके बाद हमने फिर एक-एक सुझाव का विश्लेषण किया इस पूरी प्रक्रिया केबाद हम इस नई शिक्षा नीति को लाये हैं। जैसाकि आपने भी कहा कि यह पूरे देश को दिशा देने वाली नीति है। देश के आजादी के बाद लोगों को पहली बार उत्सव जैसा वातावरण महसूस हो रहा है।अबकुछ सकारात्‍मक बदलाव होगा क्‍योंकि भारी परिवर्तनों के साथ हम इस नई शिक्षा नीति को लाये हैं। इससे जहां पूरे देश के अंदर इस नई शिक्षा नीति को लेकर के एक माहौल बना वहीं दुनिया के तमाम देश भी हमसेकह रहे हैं कि हमको हिंदुस्तान की एनईपी चाहिए। मुझे इस बात को कहते हुए खुशी हो रही है कि हिन्दुस्तान की यह नई शिक्षा नीति भारत केन्द्रित है तथायहमूल्य आधारित है। यह नीति ज्ञान, विज्ञान, अनुसंधान, नवाचार व प्रौद्योगिकी से युक्त होगी। जमीन पर खड़ी होगी लेकिन विश्व की प्रतिस्पर्धा पर शिखर तक पहुँचने की अपने में क्षमता रखती है और हमारा तीन वर्ष तक की आयु का बच्‍चा इसका मूलाधार है। अभी मेरे कमिश्नर जुड़े हुए हैं,सीबीएसई के चेयरमैन मनोज भी जुड़े हुए हैं, आपने कोविड महामारी के दौरान भी बहुत अच्छा काम किया है। आप समझ सकते हैं नवोदय विद्यालय के6हजार बच्चों को किस तरीके से डेढ़ हजार सेदो हजार किलोमीटर कीदूरी तक पिथौरागढ़ से केरल तक बच्चों को कैसे सुरक्षित भेजा।यहभी हिन्दुस्तान का दुनिया को अपने आप मेंएक उदाहरण रहा होगा हमाराएक भी बच्चा कोविड की चपेट में नहीं आया हमने उसे सुरक्षित रखा और हमारे सक्रिय प्रयासों से वह सुरक्षित अपने घर तक पहुंचा है। अभी आपने देखा जेईई की परीक्षाएं हमने करवाई। हो-हल्‍ला मच गया, एक बार हमने जेईई की परीक्षापीछे करवाई, दूसरी बार फिर पीछे करवाई लेकिन हमको यह समझ में आया कि अगर यह कोविड लगातार होता रहेगा तो क्‍या मेरा बच्चा चुप घर में बैठ जाएगा। नहीं, ऐसा संभव नहीं था।इसलिए जेईई और नेट की परीक्षाओं को लेकरबहुत विरोध हमारा हुआ और यहां तक की कुछ लोग तो सुप्रीम कोर्ट में चले गये थे लेकिन आपको मालूम होगा मैंसुप्रीम कोर्ट का भी आभारी हूँ कि उन्होंने इस बात को कहाकि नहीं,बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ नहीं हो सकता।उनका एक वर्ष भी पीछे जाना देश के लिए बहुत घातक है और इस बच्चे के जीवन के लिए घातक है और इसलिए स्‍वाभाविक है कि सुप्रीम कोर्ट में भी अब उनकी जो मंशा थी वो समझ में आई। आपने देखा कि एक घंटे में 5 लाख बच्चों ने अपने एडमिट कार्ड डाउनलोड कर दिए और नीट की परीक्षा तो नीट की परीक्षा,शायदइस कोविड काल की इस दुनिया की सबसे बड़ी परीक्षा हुई है। इसके लिए मैंने प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों से भी निवेदन किया था और मैं आभारी हूँ उनका कि उन्होंने अपने-अपने प्रदेशों के बच्चों की सुरक्षित स्थान तक पहुंचाकर और जो हमारी सुरक्षा की गाइडलाइन थी उसका भी पूरी तरीके से पालन किया और जेईई एडवांस में तो 92 प्रतिशत बच्चे बैठे थे। मैं सोचता हूँ कि जब निर्णयहोते हैं और समाज,परिवारतथाछात्र मन से तैयार होता है तो रिजल्ट अच्छा ही आता है। रिजल्ट खराब नहीं आते हैं। मुझे भी ख़ुशी है कि पीछे के समय मैंदेख रहा था कि जब बिहार में चुनाव हो रहे थेतो बिहार के चुनाव आयुक्त महोदय कह रहे थे की नीट और जेईई में जो मानक पालन किये गये उसी आधार पर हम भी चुनाव कराएंगे तो यह देश के लिए उदाहरण प्रस्तुत हुआ है। यह दुनिया के लिए उदाहरण प्रस्तुत हुआ कि हिन्दुस्तान में सबसे बड़ी परीक्षा भी ऐसे विषमपरिस्‍थितियोंमें सफलतापूर्वक संपन्न हो सकती है और इसलिए बच्‍चे का स्‍वास्‍थ्‍य, सुरक्षा एवं उसका भविष्‍य हमारे लिए हमेशा चिंता का विषय रहा है और निश्‍चित रूप से हम इस पर पूरा ध्यान केन्द्रित भी करेंगे। मुझे इस बात की खुशी है कि प्रारंभिक बाल्यावस्था शिक्षा सुनिश्चित करने के लिए हमलोगों की इस नीति में विशेष फोकस कियागयाहै। भारत सरकार का शिक्षा मंत्रालय हीनहीं बल्कि महिला एवंबाल विकास मंत्रालय, स्वास्थ्य एवंपरिवार कल्याण मंत्रालय तथा जनजातीय कार्य मंत्रालय सहित सब लोग मिल करके बच्चे के लिए तथा उसके स्‍वर्णिम भविष्‍य के निर्माण के लिए कार्य कर रहे हैं। यदिआप देखेंगे तो इस नई शिक्षा नीति में बच्चों काभी 360 डिग्री होलिस्टिक मूल्यांकन होगा। 360 डिग्री में वहस्वयं भी अपनामूल्‍यांकन करेगा, उसका साथी भी उसका मूल्यांकन करेगा,उसकाअध्यापक भी करेगा और उसका अभिभावक  भी करेगा तो वो एक योद्धा की तरह अपने आप खड़ा होता चला जाएगा और अब हम उसको रिपोर्ट कार्ड नहीं देंगे बल्‍कि अब हम बच्‍चे को प्रोग्रेस कार्ड देंगे। वो क्या प्रोग्रेस कर रहा है, रिपोर्ट कार्ड में यह नहीं झलकता था। बहुत मूलभूत इसमें अंतर आया और शायददुनिया का पहला देश होगा हिन्दुस्तान जो स्कूली शिक्षा से आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस को लागू कर रहा है और वोकेशनल स्ट्रीम के साथ तथा इंटर्नशिप के साथछठवींकक्षासे ही बच्‍चे को व्यावसायिक रूप में खड़ा करना है। वोकेशनल स्ट्रीम के साथ ही इंटर्नशिपमाध्‍यम से बच्‍चा केवल किताबों में ही नहींपढ़ेगा बल्कि वो प्रेक्टिकल करेगा बच्‍चे के क्षेत्र के जो स्‍थानीय उत्पाद हैं, चाहे स्‍थानीयतकनीकी है और चाहे तमाम प्रकार की जो चीजें हैंउसके जीवन में आप उसको बढ़ा सकते हैं। जहां उसकी प्रवृति है, जो मनोस्थिति है, जो परिस्थिति है इन तीनों के अनुपम संगम के माध्‍यम से उसको आगे बढ़ाएंगे ताकि स्कूली शिक्षा से हीजब बच्चा बाहर निकलेगा तो वहएक योद्धा की तरह बाहर निकल सकता है जो किसी के पैरों पर खड़ा नहीं होगा बल्कि अपने पैरों पर खड़ा हो करके आगे बढ़ सकता है।इसलिए हम जो आंगनबाड़ी है, बाल वाटिका है, बाल भवन है इनको और मजबूत कर रहे हैं। इसके अलावा बुनियादी साक्षरता है, संख्यात्मक ज्ञान है, व्यावसायिक शिक्षा है तथा बहु-भाषावाद पर भी हम बल दे रहे हैं आपने देखा होगा कि समावेशी शिक्षा, सामाजिक चेतना जैसे सब विषय हम लोग ला रहे हैं और शिक्षकों के प्रशिक्षण की भी हमेंबड़ी चिंता है। वहीं हमारे बच्चे की जो प्रारंभिक शिक्षा है,वह इसकी मातृभाषा में होगी क्‍योंकि वह अपनी मातृभाषा में ज्यादा अभिव्यक्ति दे सकता है। मातृभाषा में जो भी बच्चा बढ़ेगा उसका फलक बड़ा होगा और कुछ लोगों को जरूर चिंता थी और मेरे से कहा जा रहा था कि डॉ.निशंक आप ग्लोबल की बात कर रहे हैं, आप तो विश्व गुरु की बात कर रहे हैं और फिर आप अंग्रेजी माध्यम नहीं करेंगे तो पूरी दुनिया में कैसे छा सकते हैं। तो मैंने बहुत विनम्रता से उनसे यह अनुरोध किया हैकिहम अंग्रेजी का कहीं विरोध नहीं कर रहे हैं। अंग्रेजी भाषा के रूप में जरूर पढ़ें लेकिन हां, हमारे संविधान मेंहमको 22 भारतीय भाषाएं भी प्रदान की गई हैं हम इनके सशक्तिकरण की भी बात करेंगे। तमिल,मलयालम, कन्नड़, गुजराती, मराठी, बंगाली,उड़िया, संस्कृत, हिन्दी, पंजाबी, उर्दू सहित तमाम हमारी जो 22 भारतीय भाषाएं हैं वेबहुत खूबसूरत हैं।इन भाषाओं में हमारी परंपराएं हैं, हमारा ज्ञान है, हमारा विज्ञान है, इसको कैसे छोड़ देंगे और फिर जिन देशों ने अपनी मातृभाषा में शिक्षा दी है क्या वो पीछे हैं? क्या जापान, इटली, जर्मनी, अमेरिका एवं इजराइल जो हमारे बाद स्वाधीन हुए देश हैं,वेसभी  अपनी मातृभाषा में ही शिक्षा देते हैं, क्‍या यहदेश किसी सेपीछे हैं?इसलिएमैं समझता हूं आज जरूरत है इस पहलू को समझने की एवं समझाने की तथाइसपर सकारात्मक चर्चा करने औरनकारात्मकता पर चोट करने की, जो लोग भारत को भारत कहने में शर्म जैसे महसूस करते हैं उनकी भी आत्मा को उजागर करने की जरूरत है और इस समय चौतरफा इस परिवर्तन की लहर आनी चाहिए। मुझे भरोसा है कि हम इन सब चीजों को बहुत  ताकत के साथ आगे बढ़ाएंगे क्योंकि अब पूरी दुनिया के शिखर पर इस देश को जाना है और अभी भी हमारी संस्थाएं बहुत महत्वपूर्ण काम कर रही हैं ऐसा नहीं कि अभी भी हम पीछे हैं। हमारे इन संस्थानों से पढ़ने वाले विद्यार्थी आज दुनिया के शीर्ष संस्थानों को लीडरशिप दे रहे हैं। इसलिए मुझे भरोसा हैकि हम इन संस्थाओं के माध्यम से अपनी इन प्रतिभाओं को संस्कारों केसाथ जोड़ करके और नवाचार के साथ ला करके और प्रत्‍येकक्षेत्र में नये अनुसंधान के साथ, नये संस्कार के साथ और जो मूलभूतमन:स्थिति औरभावनाएं हैंउनको संजो करके, बचा करके हम आगे बढ़ाएंगे। जैसे कि देश के यशस्वी प्रधानमंत्री जी बार-बार कहते हैं कि 21वीं सदी का स्‍वर्णिम भारत  होना चाहिए। ऐसा भारत जो सुंदर भारत हो, जो स्वच्छ भारत हो, जो स्वस्थ भारत हो,जो सशक्त भारत हो, जो समृद्धभारत हो, जो आत्मनिर्भर और जो एक भारत हो ऐसे भारत की जरूरत है और निश्चित रूप से मुझे लगता है किजिस तरीके से परिवेश बढ़रहा है तो निश्चित रूप से उस 21वीं  सदी के स्वर्णिम भारत की ओर हम तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। उस स्वर्णिम भारत की आधारशिला यही शिक्षा नीति है और शिक्षा नीति में भी यहबच्चा ही केन्‍द्र में है जिसकी आज आप चिंता करने के लिए सब यहां पर एकत्रित हुए हैं। मैं प्रबोधनी को और आयोग को इसके लिए शुभकामना देता हूं कि जो ऑनलाइन आपने शिक्षकों के लिए, कर्मियों के लिए, बच्चों के लिए, अध्यापकों के लिए जो अभियानलियाहै यह अब बहुत लाभकारी होगा औरइन परिस्‍थितियोंमें भीनिश्चित रूप में जोछोटी-छोटी खाइयां हैं हम उनको भी पाटते हुए आगे बढ़ेंगे। मैं एक बार फिर आप सबके प्रति बहुत आभारी हूं और शुभकामनाएं देता हूं।

 

बहुत-बहुत धन्‍यवाद!

 

कार्यक्रम में गरिमामयी उपस्‍थिति:-

 

  1. डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’, माननीय शिक्षा मंत्री, भारत सरकार
  2. प्रो. अनिरूद्ध देशपाण्‍डे, अध्‍यक्ष, प्रबोधिनी
  3. डॉ. विनय सहस्‍त्रबुद्धे, संसद सदस्‍य एवं उपाध्‍यक्ष, आईसीसीआर
  4. श्री प्रियांक कानूनगो, अध्‍यक्ष, राष्‍ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग
  5. श्री रविन्‍द्र साठे, महानिदेशक, प्रबोधिनी
  6. श्री मनोज आहुजा, अध्‍यक्ष, केन्‍द्रीय माध्‍यमिक शिक्षा बोर्ड

 

 

‘‘स्‍वामी विवेकानन्‍द’’ शैक्षिक दृष्‍टि पर आधारित वेबीनार

‘‘स्‍वामी विवेकानन्‍द’’ शैक्षिक दृष्‍टि पर आधारित वेबीनार

 

दिनांक: 19 अक्‍टूबर, 2020

 

 

माननीय शिक्षा मंत्री, डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक

मेरा सभी को प्रणाम! आप जहां भी देश और दुनिया से इस महत्वपूर्ण कार्यक्रम में जुड़े हैं। मैं आप सभी का अभिनंदन कर रहा हूं। नई शिक्षा नीति 2020 तथा स्वामी विवेकानंद जी के शिक्षा संबंधी विचार पर रामकृष्ण मिशन विवेकानंद एजुकेशनल एवं रिसर्च संस्थान डीम्ड विश्वविद्यालय द्वारा यह कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है। मैं आभारी हूं विश्वविद्यालय के प्रति और विशेषकर स्वामी पूज्य श्री सुविरन्‍द जी महाराज जो कुलाधिपति है इस विद्यालय के और महासचिव हैं इनके मार्गदर्शन में यह डीम्ड विश्वविद्यालय बहुत आगे बढ़ रहा है तथा स्वामी जी के विचारों को पूरे देश में सरसा रहा है। सबसे पहले तो मैं स्वामी जी के चरणों में अपना प्रणाम करता हूं जो प्रति कुलाधिपति है पूज्य स्वामी जी मैं उनकी सक्रियता को समझ सकता हूं तथा जब भी मैं उनसे मिलता हूं तो उनकी छटपटाहट को मैंने बहुत ही निकटता से देखा है। कुलपति पूज्य स्वामी सर्वोत्तमानंद जी जिनका अभी हम को मार्गदर्शन मिला जिन्होंने स्वामी जी के बारे बहुत सरल शब्दों में हमको अभी अवगत भी कराया इस विश्वविद्यालय के कुलसचिव, पूज्य संतगण और सभी शिक्षकगण, अभिभावकगण तथा देश और दुनिया से मेरे सभी भाइयों और बहनों। यह दोनों चीजें कितनी महत्वपूर्ण है आज के परिदृश्य में ना केवल मेरे भारत के लिए बल्कि पूरी दुनिया के लिए जब स्वामी जी का स्मरण आता है तो मन में उल्लास नए विचार जिज्ञासा मन के अंदर एक उफान आता है। मुझे लगता है कि स्वामी जी का नाम आते ही मन के अंदर उथल-पुथल शुरू होती है और वह उथल-पुथल निर्माण की होती है, विजन की होती है वह सामान्य उथल-पुथल नहीं होती है और मैं यह समझता हूं कि देश के अंदर जब-जब भी स्वामी जी के उस विचार को हम लोग आपस में परामर्श करेंगे तब एक नई आधारशिला खड़ी होगी स्वामी जी बार-बार कहते थे कि जब तक जीना है तब तक सीखना है और अनुभव ही जगत में सर्वश्रेष्ठ शिक्षक है। उन्होंने केवल भाषण करके कभी बात नहीं की है बल्कि उन्होंने कहा कि जो हम अपने अंदर समा रहे हैं वह प्रकट करना चाहिए। मैं समझता हूं कि इस देश में तक्षशिला और नालंदा जैसे विश्वविद्यालय रहे हैं जहां दुनिया केलोग सीखने के लिए आते थे पूरी दुनिया के लोग हमारी धरती पर आकर शोध और अनुसंधान को लेकर के जाते थे। मैं समझता हूं कि जो वर्तमान में हमारी राष्ट्रीय शिक्षा नीति आई है उसके संदर्भ में आज आपने बहुत अच्छा परामर्श रखा है। शिक्षा नीति और विवेकानंद जी के बीच अनन्य जुड़ाव और उनके विचारों को लेकर के नहीं शिक्षा नीति आगे आई है। उसके विभिन्न आयाम में जिस छोर को हम पकड़ते हैं वह पकड़ में आता है। वह जमीन से लेकर के आसमान के शिखर तक हमको पहुंचाता है मैं समझता हूं चाहे वह भारत की संस्कृति के उद्घोषक के रूप में पूरी दुनिया में स्वामी विवेकानंद रहे हो जिन्होंने ‘वसुधैव कुटुंबकम’ की बात की हमने पूरी मानवता को अपना परिवार माना है आज जब यह शुरुआत हो रही थी तो वेदों, पुराणों, उपनिषदों कि जो अभी मंत्र कहे गए हैं, उच्चारित हुए हैं उन्होंने वही शुरू किया था यह जो धरती है उसे हमने मां कहा है पृथ्वी हमारी मां है और हम इस पृथ्वी के पुत्र-पुत्रियां हैं धरती की कोख में पैदा होने वाला हर जीव-जंतु हमारा अंग है उसके सुख और समृद्धि के लिए हमेशा से ही भारत की संस्कृति और शिक्षा रही है।हमनेहमेशा ‘सर्वे भवंतु सुखिन:, सर्वे संतु निरामया, सर्वे भद्राणी पश्‍यन्‍तु, मा कश्‍चिद् दुखभाग्‍भवेत’ अर्थात् जब तक दुनिया में एक भी इंसान, एक भी प्राणी दुखी होगा तब तक मैं सुख का एहसास नहीं कर सकता। इसका मतलब यह है कि हमारी शिक्षा यह है कि पूरी दुनिया में हर प्राणी को कैसे सुखी कर सकते हैं और तभी मैं अपने सुख का अहसास कर सकता हूं। अभी आचार्य जी ने जब शुरुआत में कहा यह वह चीज है जिन्हें हम सब साथ मिल करके करना चाहते हैं और हमारा पुरुषार्थ भी साथ में किसी एक व्यक्ति के लिए नहीं, किसी क्षेत्र के लिए नहीं बल्‍कि पूरे संसार के लिए है क्योंकि पूरे संसार को, इस ब्रह्मांड को हमने अपना आधार माना है और इसीलिए यह जो विचार है जो हमारे भारत की संस्कृति से निकल कर के जो विवेकानंद जी उसके ध्वजवाहक बनकर पूरी दुनिया में जिसको उन्होंने सरसायाहै आज जरूरत है कि आज भी हम उस तंत्र पर खड़े हो करके उन चीजों को तेजी से आगे बढ़ा सकते हैं मुझे खुशी है कि जो यह विश्वविद्यालय है यह विश्वविद्यालय इस दिशा में काम कर रहा है भारत के विश्वविद्यालयों के बारे में स्वामी जी की धारणा थी यह ऐसे शैक्षणिक केंद्र है जो पूर्व और पश्चिम के सर्वोत्तम तत्व को भारतीय आध्यात्मिक ज्ञान के साथ समाहित करते हैं और पूरी दुनिया के लोग उस ज्ञान प्राप्ति में समाहित होते हैं तथा उस को आगे ले जाने की बात करते हैं इस ज्ञान में अपने अंतर्मन की खोज, एकाग्रता, ध्यान संस्कृति के साथ जो पूरे विश्व का आज जो ज्ञान है, प्रौद्योगिकी है उसको भी समाहित करना है इसलिए भारतीय और पश्चिमी ज्ञान के साथ मिलकर के जो भौतिक और जैविक ब्रह्मांड की खोज के प्रति जो शिक्षा समर्पिता की यह बात कही गई है वह निश्चित रूप से बहुत महत्वपूर्ण है अपनी चीजों को लेकर के कैसे उसमें शोध और अनुसंधान के साथ हम आगे बढ़ सकते हैं वर्तमान में जो हमारी शिक्षा नीति है उसी से होकर के गुजर रही है और इसलिए मुझे खुशी है कि रामकृष्ण मिशन विवेकानंद एजुकेशन एंड रिसर्च इंस्टीट्यूट स्वामी जी के इन सपनोंको साकार करने की दिशा मैं लगातार कोशिश कर रहा है। रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानंद भारतीय गुरु-शिष्य परंपरा संस्कृति के इससे बड़े उदाहरण आचार्य देवो भव हमने तो अपने गुरु आचार्य को हमेशा कहा है गुरुर ब्रह्मा, गुरुर विष्णु, गुरुर देवो महेश्वरा, गुरु साक्षात पार ब्रह्मा,तस्‍मैंश्री गुरुवे नमः गुरु को हमने सर्वोच्च स्थान पर रखा है, भगवान के समतुल्य रखा है कि गुरु गोविंद दोऊ खड़े काके लागू पाय बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताएं हमने गुरु को हमेशा भगवान के समकक्ष रखकर के अभिनंदन किया है,जिसने जीना सिखाया है, जिसने हर कदम पर आगे बढ़ना सिखाया। इसीलिए जो अभी चर्चा हो रही थी चाहे अरविंदो हो, चाहे रविंद्रनाथ टैगोर जी हो,चाहे गांधीजी हो, चाहे रामकृष्ण जी हो, राधाकृष्णन जी हो सभी ने भारतीयताकीएक परिकल्पना बनाई है। स्वामी जी इन सभी अवधारणाओं एवं परिकल्पनाओं को समाहित करते हुए और अपनी नई मान्यताओं को जोड़ते हुए आगे बढ़े हैं। यह जो राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 है वह निश्चित रूप से स्वामी जी के विचारोंके अनुरूप है। स्वामी जी ने हमेशा कहा है कि ज्ञान स्वयं में विद्वान है और मनुष्य केवल उसका आविष्कार करता है उनकी यह प्रबल धारणा नहीं है की ज्ञान तो मनुष्य के अंदर है उसको बाहर निकालना है तथा उसका आविष्कार करना है स्वामी जी कहते थे कि हम ऐसी शिक्षा चाहते हैं जिसके द्वारा चरित्र का निर्माण हो, मानसिक शक्ति एवंबुद्धि का विस्तार हो। तथा जिससे व्यक्ति अपने पैरों पर भी खड़ा हो सके हमें आत्मविश्वास के साथ ब्रह्मचर्य के मार्गदर्शन में विज्ञान एवं वेदांत को समन्वित करने की जरूरत है मैं जब-जब भी स्वामी जी को पढ़ता हूं तो यह मेरा सौभाग्य रहा है कि मैंने उनके विचारों पर एक पुस्तक लिखी कि ‘भारत कायरों के लिए नहीं है’ इसको मैंने लिखा तो लोगों ने बहुत अच्छा माना और लोगों की बहुत सी प्रतिक्रिया मुझे मिली और तब से मुझे यह महसूस हुआ कि लोगों के मन में कुछ अच्छा करने का औरअच्छा सोचने का मनहै उसके बाद यह पुस्तक विश्व की कई भाषाओं में अनुवादित हुई और लोगों ने उस को बढ़ाया तो मुझे इस बात को लेकर  खुशी हुई कि स्वामी जी ने सच कहा था कि यह संसार कायरों के लिए नहीं है संसार मेंवही जीवन जी सकता है जिसमें जिजीविषा हो और जिसमें जिज्ञासा हो तथा जिसमें आगे बढ़ने की लालसा हो और कुछ कर गुजरने की क्षमता हो जो परिवर्तन का वाहक बन सकता हूं उसी का जीवन सार्थक है और इसीलिए उन्होंने उन विचारों को आगे किया उन्होंने हमेशा कहा कि हमारे देश की जो संपूर्ण शिक्षा है वह अध्यात्मिक और धर्मनिरपेक्ष हो एवं जिसकी पकड़ हमारे हाथों में होनी चाहिए अभी कुलपति जी ने जिस बात को कहा कि स्वामी जी ने जिस आध्यात्मिक एवं धर्मनिरपेक्ष की शिक्षा की बात कही थी वह शिक्षा व्यवहारिक और राष्ट्रीय तरीकों पर आधारित होनी चाहिए मैं आज आपको भरोसा दिलाना चाहता हूं कि स्वामी जी की उच्च शिक्षा को उस विषय को तथा उनके मन की छटपटाहट को हमनई शिक्षा नीति मेंलाए हैं। आज से लगभग 100 साल पहले जिस काम के लिए स्वामी जी ने भारत के लोगों को प्रेरित किया और मुझे खुशी है कि आज नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 उस कार्य को करने के लिए आगे आई है और पूरे देश के 99% लोगों ने जिस तरीके से इसको स्वीकार किया उत्सव के रूप में, उससे उत्साहजनक  वातावरण बना है। दुनिया के लोगों ने भी भारत की इन एनईपी को लेकर जिज्ञासा प्रकट की है तथा वह भी भारत की एनईपी को अपने देश में लागू करना चाहते हैं। मैं यह समझता हूं कि नई शिक्षा नीति का जो काम है वह बहुत ही स्पष्ट है यह नेशनल भी है और यह इंटरनेशनल भी है यह इंपैक्टफुल भी है इंटरएक्टिव भी है और यह इंक्लूसिव भी है यदि आप देखेंगे तो यह इक्विटी क्वालिटी और एक्सेस इन तीनों की आधारशिला पर खड़ी है स्वामी जी चाहते थे कि भारतीय युवा विदेशी नियंत्रण से मुक्त हो करके ज्ञान की विभिन्न शाखाओं का अध्ययन करें तथा उनके साथ ही तमाम भाषाओं और पश्चिमी ज्ञान विज्ञान को भी अपने में समाहित करें मैं समझता हूं कि यह जो नई शिक्षा नीति 2020 आई है यह ज्ञान विज्ञान अनुसंधान प्रत्येक क्षेत्र में आगे बढ़ करके पुनः विश्व गुरु भारत की परिकल्पना को साकार करने के लिए इस समय देश में आई है। स्वामी जी ने कहा था कि यह जो देश है यह तो हर दृष्टि से योद्धाओं का देश है और इस देश ने सारे विश्व का मार्गदर्शन किया है इस देश में हर क्षेत्र में चाहे ज्ञान हो विज्ञान हो अनुसंधान हो कौन सा ऐसा क्षेत्र था जिसमें मेरे देश ने पूरे विश्व का मार्गदर्शन ना किया हो चाहे वह गणित के क्षेत्र में आर्यभट्ट रहा हो चाहे वह विज्ञान के क्षेत्र में भास्कराचार्य रहे हों भास्कराचार्य को आज सारी दुनिया में वैज्ञानिक जानते हैं चाहे शल्य चिकित्सा का जनक हो और आयुर्वेद का जन्मदाता भी हमारे देश में ही पैदा हुए हैं और उस चरक संहिता की रचना भी हमारी ही जमीन पर हुई है यदि हम रसायनशास्त्री नागार्जुन के बारे में चर्चा करें और चाहे बौधायन के बारे में चर्चा करें मैं अधिक पीछे नहीं जाना चाहता लेकिन मुझे लगता है कि पूरा विश्व तो हमारे शिक्षा के तंत्र पर पर खड़ा था और मेरा सौभाग्य है कि मैं उस धरती से आता हूं हिमालय की धरती से उत्तराखंड की धरती से स्वामी जी कसार देवी में जब 1890 में आए थे उन्होंने नरेंद्र के रूप में कसार देवी में प्रवेश किया था और मैं समझता हूं कि 10 और 12 वर्ष की उनकी सघन साधना ने पूरे विश्व में भारत की संस्कृति के परचम को सरसायाजब मैं उत्तर प्रदेश में 1998 से 99 में संस्कृति मंत्री था तब मैंने एक चीज महसूस किया था और मैं माया देवी तक तथा कसार देवी में गया था और मेरे मन में तो बहुत सारी बातें आई थी स्वामी जी के उन पत्रों को भी मैंने पढ़ा जो उन्होंने अल्मोड़ा में लिखे और जब वह बाहर गए तब फिर अल्मोड़ा के लोगों को पत्रलिखें, उत्तराखंड के लोगों को पत्र लिखें उनको पढ़कर बहुत लंबे समय तक मेरे मन में उथल-पुथल मच रही थी कि स्वामी जी का जो साधना स्थल हिमालय रहा जो शक्ति का केंद्र है तथा जिसको लेकर पूरी दुनिया में उन्होंने मेरे भारत का मान सम्मान ही नहीं बढ़ाया बल्कि पूरी दुनिया की मानवता को जिस तरीके से उन्होंने दिशा दिखाई है तो मेरे मन में आया कि उस परिपथ को विवेकानंद परिपथ के रूप में सामने आना चाहिए देश तथा दुनिया का व्यक्ति वहां करके उन क्षणों का एहसास करसके औरस्वामी जी की उन भावनाओं का मार्गदर्शन कर सके और इसलिए मैंने पीछे की दिनों में पांच 7 साल पहले हिमालय में विवेकानंद शीर्षक पुस्तक लिखी जो नेशनल बुक ट्रस्ट इंडिया ने छापी थी और बाद में वह हिंदी अंग्रेजी मराठी बहुत सारी भाषाओं में प्रकाशित हुई। दूरदर्शन ने भी उस पर एक छोटी सी फिल्म बना कर प्रस्तुतीकरण किया था स्वामी जी का हर कदम शक्ति और प्रेरणा का केंद्र है और कम से कम आज की परिस्थितियों में मेरे भारत तथा पूरे विश्व के अंदर स्वामी विवेकानंद से बढ़कर के युवाओं के लिए आदर्श नहीं हो सकता और देश के लिए ज्ञान विज्ञान तथा अनुसंधान और भारत की संस्कृति का इससे बड़ा कोई ब्रांड अंबेसडर नहीं हो सकता है इसीलिए मैं समझता हूं स्वामी जी की यह चर्चा हम कर रहे हैं वह जरूरी है आज की परिस्थितियों में जरूरी है और देश को उसके शिखर पर ले जाना है तो यह बहुत जरूरी है स्वामी जी को याद करके उनके हर एक शब्द हर एक वाक्य हर एक विजन हर एक मिशन को अपने हाथ में ले करके उसमें जीने की जरूरत है उनके दर्शन को अपने पीढ़ी को दर्शन कराने की जरूरत है तकनीकी शिक्षा पर भी हमेशा उन्होंने बल दिया और उन्होंने हमेशा कहा कि भारत शिक्षित युवा अपने उद्योग एवं खड़ा कर सके और नौकरी चाहने वालों की जगह नौकरी देने वालेबन सकें इसीलिए जो एनईपी आई है अब बाकायदा स्वामी जी के उस विजन को साथ लेकर आई है हमारे देश के यशस्वी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने 21 वी सदी के स्वर्णिम भारत की बात की है ऐसा भारत जो स्वच्छ भारत हो जो समृद्ध भारत हो जो सशक्त भारत हो इस नीति के तहत छात्र आप स्वयं अपना ही मूल्यांकन करेगा तथा उसके अध्यापक सहपाठी एवं अभिभावक भी उसका मूल्यांकन करेंगे अब उसका 360 डिग्रीहोलिस्‍टिकमूल्यांकन होगा और अब उसको रिपोर्ट कार्ड नहीं देंगे बल्कि उसको प्रोग्रेस कार्ड देंगे स्वामी जी ने यह भी कहा था कि स्कूली शिक्षा बच्चों की मातृभाषा में हो। मैं सारा का सारा यह देख रहा था कि स्वामी जी के अपनी भाषा के बारे में क्या कहते हैं विचारों के बारे में क्या कहते हैं सशक्तिकरण के बारे में क्या कहते हैं इंटरनेशनल के बारे में क्या कहते हैं उन्होंने हर जगह भारतीयता पर बल दिया है यह जो शिक्षा नीति है उसमें प्रारंभिक शिक्षा हमारी मातृभाषा में होगी कोई भी बच्चा अपनी मातृभाषा में ही सशक्त अभिव्यक्ति कर सकता है ऐसी सशक्त अभिव्यक्ति दूसरी भाषा में नहीं हो सकती इसीलिए जो प्रारंभिक शिक्षा है वह बच्चे की अपनी मातृभाषा में होगी और अपनी मातृभाषा में यदि राज्य चाहे उच्च शिक्षा तक भी पढ़ाना  चाहते हो कोई दिक्कत नहीं है हमारी मातृभाषा हमारी क्षेत्रीय भाषा हमारी तमिल है तेलुगु है मलयालम है कन्नड़ है गुजराती है मराठी है बंगाली है ओड़िया है असमिया है हमारी उर्दू है संस्कृत है हिंदी है तमाम भाषाएं है हमारे संविधान अनुसूची 8 में 22 खूबसूरत भारतीय भाषाएं हैं और इसलिए इस नई शिक्षा नीति में हमने कहा है कि हमभारतीय भाषाओं का सशक्तिकरण चाहते हैं जहां वह बच्चा अपनी मातृभाषा में अपनी क्षेत्रीय भाषा में पड़ेगा।22 भारतीय भाषाओं के अतिरिक्त एक भाषा उसको लेनी पड़ेगी जिस भी भाषा को वह लेना चाहता है और उसके बाद भी उसका पूरा मैदान खाली है जिस जिस भाषा को समझना चाहता है वह समझे पढ़ें और आगे बढ़े कई लोगों के मन में आया जो अंग्रेजी मीडियम से पढ़ने वाले हैं क्योंकि ग्लोबल की बात जब हम कर रहे हैं तो फिर आपने अंग्रेजी की बात अनिवार्य क्यों नहीं की तब हमने कहा है कि हमने अंग्रेजी का कभी विरोध नहीं किया हैऔर किसी प्रदेश पर कोई भाषा नहीं थोपी नहीं गई है हमने तो अपनी मातृभाषा के सशक्तिकरण की बात की है और मैं उनसे अनुरोध कर रहा हूं जिनके मन में ऐसा विचार है मैं उन से अनुरोध करता हूं कि क्या अमेरिका जो अपनी मातृभाषा में पढ़ाता है वह पीछे हैं इजराइल अपनी मातृभाषा में सब कुछ पढ़ाता है ज्ञान विज्ञान अनुसंधान करताहै क्या वह किसी से पीछे हैं जापान अपनी मातृभाषा में पढ़ाता है सभी कुछ उच्च शिक्षा तक करता है क्या वह किसी से पीछे हैं क्या इजराइल पीछे हैं क्या फ्रांस पीछे है यदि शिखर के देशों की में गणना करता हूं तो लगभग अपनी मातृभाषा में पढ़ाते हैं अपनी मातृभाषा में पढ़ा कर फिर वह उस शिखर को चूम सकते हैं हम क्यों नहीं चूम सकते हैं मैं कल पढ़ रहा था स्वामी जी को और मुझे लगा कि स्वामी जी ने कहां-कहां कैसी कैसी बातों को रखा है वह कहते हैं कि इस तरीके से रोने से कोई काम नहीं चल सकता खुद पर भरोसा करो एक जगह उन्होंने कहा कि तुम क्यों रो रहे हो विश्व की हर शक्‍तितो तुम में है भगवान आप खुद अपने स्वयं हो तुम अपने को विकसित करो तुम्हारे पास आत्मा की प्रबल शक्ति है इसलिए डरो मत तुम्हारा नाश नहीं हो सकता है तुम्हें कोई नष्ट नहीं कर सकता है इसलिए बिल्कुल भी डरो मत इस संसार से इस भवसागर से पार उतरने का एक ही उपाय है और वह उपाय यही है कि जिस पथ पर तुम चल रहे हो उसी पथ पर चल कर संसार के सभी लोग भवसागर को पार करते हैं यही श्रेष्ठतम पथ है और यही श्रेष्ठ पथ तो मैं तुम्हें दिखाना चाहता हूं स्वामी जी ने हर स्थान पर हम लोगों को हर कदम पर हर शब्द हर वाक्य के माध्यम से बताया है कि किस तरीके से हम अपने जीवन का बहुत अच्छा कर सकते हैं स्वामी जी ने उस को आगे बढ़ाया और इसलिए भाषा के मुद्दे पर भी हम लोग स्वामी जी की जो शिक्षा थी उसके आधार पर हम लोगों को आगे बढ़ा रहे हैं ज्ञान और विज्ञान के क्षेत्र में स्वामी जी ने कहा कि भारतीय युवाओं को अध्यात्म विज्ञान और वेदांत के साथ जोड़ना चाहिए हम सब जानते हैं कि सर जमशेदजी टाटा को भारत में इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस स्थापित करने की प्रेरणा स्वामी जी ने ही दी थी स्वामी जी ने प्राकृतिक मानवतावादी विज्ञान के क्षेत्र पर जोर दिया था विज्ञान मानविकी और कला इन तीनों को जोड़कर के आगे बढ़ने की बात की थी ठीक यही हमारी नई शिक्षा नीति है इसमें दी हमने समावेश किया कि किस तरीके से विज्ञान और मानविकी दोनों की संवेदनाएं जिंदा रहे हम लोगों ने बहुभाषिकता के साथ ही बहु-विषयता को भी प्राथमिकता दी है हमने हर क्षेत्र में आगे बढ़ने की बात की है किसी ने अपना अवरोध नहीं खड़ा किया है स्वामी जी कहते थे कि सकारात्मक सोच की जरूरत है सकारात्मक शिक्षा की जरूरत है और यह कहा था कि अपने ऊपर विश्वास होना चाहिए और सकारात्मक विचारों को विकसित करने का एक परिवेश होना चाहिए इसलिए आत्मविश्वास से आत्मनिर्भरता तक नई शिक्षा नीति में मौलिक सोच से नव निर्माण तक की भावना है लर्निंग आउटकम का पहला विषय हमने सशक्त तरीके से किया और अनुसंधान की दिशा में भी हमारे छात्र बहुत अच्छे तरीके से काम करेंगे एक समय था जब देश भारी समस्याओं से जूझ रहा था देश की सीमाएं संकट में थी और आंतरिक रूप से खाद्यान्न का संकट था तब हमारे देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री जी ने जय जवान जय किसान का नारा देकर पूरे देश को खड़ा कर दिया था और दोनों संकटों पर हमने विजय पाई थी हमारे देश के यशस्वी प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई जी जब आए तो उन्होंने कहा कि अब जरूरत है विज्ञान की और उन्होंने जय विज्ञान का नारा दिया था और पोखरण परीक्षण करके उन्होंने दुनिया में भारत को महाशक्ति के रूप में आगे बढ़ने का मार्ग प्रशस्त किया था और पूरी दुनिया इस बात को जानती है और जो वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी हैं उन्होंने एक कदम आगे बढ़ कर कहा कि अब अनुसंधान की जरूरत है इसलिए जब जब भी मैं अपने आईआईटी,आईआईआईटी आईसर विश्वविद्यालय इनकी समीक्षा करता हूं तो मुझे लगता है कि हम अंतर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कर रहे हैं कहां हम आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं मुझे यह महसूस हुआ कि अभी जो हमारा पेटेंट है और जो हमारा शोध है तथा जो हमारा अनुसंधान है उसमेंहमारी कमी है।हम इस कमी को भी पाटेंगे और इसलिए जो नई शिक्षा नीति है वह नेशनल रिसर्च फाउंडेशन की बात लाई है, जिसमें बाकायदा अनुसंधान की संस्कृति होगी तथ।शोध की संस्कृति होगी।हमशोध में उच्च शिखर तक का वातावरण बनाएंगे और इसएनआरएफ को प्रधानमंत्री के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार की अध्यक्षता में इस मिशन को आगे बढ़ाएंगे। नई शिक्षा नीति के तहत हम टेक्नोलोजी का भी उपयोग नवाचार के साथ आगे बढ़ाने में करेंगे।  इसलिए हम लोगों ने भी इस बात को महसूस किया कि हां, आज की परिस्थितियों में नवाचार की जरूरत है, टेक्नोलोजी की जरूरत है, प्रौद्योगिकी की जरूरत है इसलिये हम ‘नेशनल एजुकेशन टेक्नोलॉजी फोरम’ का गठन कर रहे हैं जिसमें हम प्रौद्योगिकी के साथ आगे बढ़ना चाहते हैं। मेरे जितने भी आईआईटीज हैं उनको हमने कहा है कि उद्योगों के साथ जुड़ कर के वो अपने पाठ्यक्रमों को तय करें। एक ओर हमारे उद्योग दूसरी ओर हमारे आईटी के संस्थान हैंइन दोनों का समन्‍वय होना चाहिए। मेरा जो आईआईटी में पढ़ने वाला छात्र है वो उन उद्योगों के साथ मिलकर अपने विजन को स्थापित करे तो मेरे उद्योग भी बढ़ेंगे और मेरे जो छात्र हैंउनकी प्रतिभा भी आगे बढ़ेगी। इसलिए टेक्नोलॉजी फोर्म के गठन के बाद एक साथ जम्प मारेंगे, हममें प्रतिभा की कमी नहीं है।मैंने देखा है कि पुराने समय में भी हमारे छात्र पूरी दुनिया को लीडरशिप देते थे। आज भी मेरा देश लीडरशिप दे रहा है क्योंकि जब मैं देखता हूं किजितने हमारे आईआईटीज के छात्र हैं,जितने हमारे आईसर के छात्र हैं, जितने विश्वविद्यालयों के छात्रहैं,वेपूरी दुनियामें छाए हुए हैं।बड़ी-बड़ी कंपनियों के सीईओ चाहे माइक्रोसोफ्ट हो, चाहे गुगल हो इन जैसी कंपनियों के जो सीईओ हैंवो मेरी हिन्दुस्तान की धरती से पढ़ करके गए हुए हैं। गया हुआ है। ऐसा नही है कि हमारी संस्थाओं में कोई कमी है। ऐसा नहीं है कि हमारे पासप्रतिभाओं की कमी है। पूरी दुनिया में चाहे जिस क्षेत्रको भी देखो तो हमारे छात्र शीर्ष पर बैठे हुए लोग हैं। मुझे भरोसा होता है पूरी दुनिया में हमारा नौजवान लीडरशिप को दे रहा है।इसलिए आपने देखा होगा कि इस नयी शिक्षा नीति में हम लाए हैं‘स्टडी इन इंडिया’। भारत को जानो,भारत में आओ, पढ़ो और हम उस अभियान की ब्रांडिंग कर रहे हैं पूरी विश्व में तथा लोगो में अब बहुत प्रतिस्पर्धा हो रही है। पीछे 50 हजार से भी अधिक रजिस्‍ट्रेशन हुए थे यदि कोरोना का ऐसा संकट नहीं होता तो अभी हम बहुत तेजी से आगे जाते।अभी आशियान देशों के एक हजार से भी अधिक छात्र हमारे आईआईटीज में शोध और अनुसंधान करेंगे। अभी तीन दिन पहले जो आसियान के दस देश हैं उन सभी दस देशों के राजदूतों का मैंने अभिनंदन किया वर्चुअल कार्यक्रम करके, तो जहां पूरी दुनिया के लोगों को अभी अपनी धरती पर शिक्षा देने के लिए बुला रहे हैं और उनकी फैकल्टी को बुला रहे हैं।‘ज्ञान’ योजना के अंदर अब हमारे जो आचार्य हैं यह भी बाहर जायेंगे।दुनिया के देशों में जायेंगे वहां पढ़ाने के लिए जाएंगे। अभी जब हमको लगा कि हमारे देश से सात लाख 8 लाख छात्र बाहर जा रहे हैं। ऐसा इसलिए हो रहा है किया तो कुछ मजबूरियां होंगी अथवाकुछ कमियां हमारी भी रही होंगी लेकिन अब हम नई शिक्षा नीति को लाकर उन कमियों को टोटली ख़त्म करना चाहते है। सात लाख, आठ लाख छात्र दुनिया में पढ़ रहा हो हिन्दुस्तान का और लगभग डेढ लाख करोड़ रुपया प्रतिवर्ष हिंदुस्तान की धरती से जाता हो विश्व में, हमारी प्रतिभा भी, हमारा पैसा भी और प्रतिभा जो गई वहफिर लौट के नहीं आती। वो फिरउस देश के विकास पर जुट जाता है वो दूसरा देश उसको सारी सुविधाएं देता है और आगे बढ़ाता है। आज उन देशों को मजबूत कर देने में हमारा नौजवान जुटा है। मेरी धरती से मेरी प्रतिभा भी जाती है औरमेरा पैसा भी जाता है।अब नई शिक्षा नीतिउस प्रतिभा को भी रोकेगी तथा उस पैसे को भी रोकेगी। अब हम दुनिया के जो शीर्षसौ विश्वविद्यालय हैं उनको हमारी शर्तों पर हम अपनी धरती पर यहां पर आमंत्रित करेंगे और जो हमारे शीर्ष विश्वविद्यालय हैं उनको भी दुनिया की धरती पर भेजेंगे।प्रत्येक शाखा को बच्चे तक कैसे पहुंचा सकते हैं यह भी हमारी नई शिक्षा नीति में है और इंटर्नशिप को वोकेशनल ट्रेनिंग के साथ हम लोग करने जा रहे हैं। हम लोग समझते हैं कि अपनी भारतीयभाषाओं में शिक्षा देकरजहां कैपिसिटी, कैरेक्टर और नेशन बिल्डिंग का हम काम करेंगे।स्वामीजी कहते थे कि चरित्र निर्माण तो राष्‍ट्रका निर्माण है, यदि चरित्र का निर्माण नहीं होगा तो फिर राष्ट्र का निर्माण नहीं हो सकता और उसके चरित्र-निर्माण को खड़ा करने के लिए हम लोगों ने भारत केन्द्रित शिक्षा को बनाया है तथामूल्य आधारित शिक्षा को भी आधार बनाया है। पीछे के समय में जब यूनेस्को की जो डीजी हैं यहां आई थी औरमुझऐ मिली थी तो उन्होंने इस बात को लेकर के चिंता व्यक्त की कि डॉ. निशंक यह जो पूरी दुनिया में अनुशासनहीनता हो रही है, हिंसा हो रही है तथा संवेदनशीलता खत्म हो रही है ऐसा क्‍यों हो रहा है?मैंने फिर उनको कहा कि आना पड़ेगा पूरी दुनिया को फिर भारत की उसी शिक्षा पर जो मूल्यपरक शिक्षा की बात करता है, जो मानव बनाने की बात करता है। हमारे देश के प्रधानमंत्री जी तो बार-बार इस बात को कहते हैं कि जहां हम अच्छा नागरिक पैदा करें, वहीं विश्व के लिए महामानव भी पैदा करने कीजरूरत है। यह शिक्षा नीति मानव को तैयार करेगी, मशीन को तैयार नहीं करेगी बल्कि मानव से भीएक कदम आगे जाकर के दुनिया के लिए महामानव को भी बनाएगी, जो स्वामी जी चाहते थे और इसलिए यह नई शिक्षा नीति स्वामीजी के मन के अनुरूप है। जहां उन्होंने कहा कि उठो और जागो और तब तक रुको नहीं जब तक तुम अपना लक्ष्य प्राप्त नहीं कर लेते। मैं आपको भरोसा दिलाना चाहता हूं कि जो यह नयी शिक्षा नीति 2020 आयी है यह न तो रुकने का नाम लेगी, न थकने का नाम लेगी बल्कि यहभारत के अंतिम छोर के बच्चे तक आत्मविश्वास के साथ पहुंच रही है। तब तक हम इसको क्रियान्वित नहीं कर लेते तब तक थकने और रुकने का तो विषयनहीं उठता है और इसलिए आप सबका आशीर्वाद रहेगा तो इस नीति का तेजी से क्रियान्‍वयन भी होगा। नीति और उसके क्रियान्वयन केबीच का जो कार्य होता है वो लीडरशिप का होता है। जिसे लीडरशिप मिली है, वे पूरे समर्पण के साथ तथा आपसी उत्साह से जुड़े हुए हैं। स्वामीजी ने भारतीय आदर्शों को, चिन्तन को तथा उस विचार को क्रियान्वित करने के लिए अपना जीवन खपाया है और आप लोग भी उनके एक-एकक्षण को संजो रहे हैं इससे बड़ा सौभाग्य मेरे देश का क्या हो सकता है। मुझे भरोसा है किजो यह नई शिक्षा नीति हम ला रहे हैं और जिस तरीके से इस विश्वविद्यालय को मैंने देखा कि इसको साकार करने के लिए आपका जो मुख्य परिसर है और रामकृष्ण मिशन के विभिन्न कैम्पस और केन्द्रों के माध्यम से सक्रियता से आप काम कर रहे हैं। विभिन्न परिसरों में पुनर्वास,खेल विज्ञान, कृषि तथा ग्रामीण विकास,भारतीय विरासत, मानिवकी,गणित, जीव-विज्ञान,पर्यावरण, आपदा प्रबंधन, जैसीहर चीज को अपने स्पर्श किया है भारतीय आध्यात्मिक, सांस्कृतिक, विरासतों, हमारे प्राचीन ग्रंथों यथा उपनिषदों, गीता तथा रामकृष्ण परमहंस एवं विवेकानंद के विचारों पर आधारित पाठ्यक्रमों को आपने समाहित किया और अभी हमने मंत्रालय के स्तर पर भारतीय ज्ञान परंपरा का एक प्रकोष्ठ भी बनाया है जिसमेंजिसने हमारे भाषा के वैज्ञानिक हैं, संस्कृत के विद्वान हैं और तकनीकी के विद्वान हैं जो उस क्षेत्र में हमारी प्राचीन तकनिकी थी उसको कैसे करके बढा सकते हैं। यह कार्य भी हमने किया है,विज्ञान के साथ जोड़करके जो हमारे संस्कृत के वो ग्रंथ हैं जिसमें ज्ञान विज्ञान समाया हुआ है उसको कैसे करके जोड़ करके विज्ञान के माध्यम से कैसे आगे ला सकते हैं इसके लिए भी हमने फोर्म का गठन किया है।मुझे यह भी खुशी है कि एक दशक के भीतर आपके विश्वविद्यालय को राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं प्रत्यायन परिषद नैक द्वारा उत्कृष्टA++का दर्जा मिला है जिसके लिए मैं आपको बधाई देना चाहता हूं। आपकी अनूठी विशेषताओं और सामाजिक प्रतिबद्धताओं के कारण इस विश्वविद्यालय को यूरोप आधारित संगठन ग्लोबल यूनिवर्सिटी नेटवर्क फॉर इनोवेशन ने भी आपको स्थाई सदस्यता दी है और उसने भी आप को सराहाहै। यह मेरे लिए बहुत खुशी का विषय है कि यूनेस्को ने पुनर्वास एवंसमावेशी शिक्षा पर बल देते हुए विश्वविद्यालय में इन्क्लूसिव स्टेट ऑफ फिजिकल एजुकेशन एंड योगाचेयर की स्थापना की है। मेरे लिए यहबहुत खुशी का विषय है और पूरे एशिया में उच्च शिक्षण संस्थान का यह शायद पहला इस तरीके का ये उदाहरण होगा।स्वामीजी ने जिस राजयोग, कर्मयोग, भक्तियोग और ज्ञानयोग की बात की है तथाउस पथ पर चलने के लिए जो अतुल्य सन्देश दिया थाजोपूरी दुनिया के लिए उनका मार्गदर्शन था, जो संदेश था भारत केज्ञान, आध्यात्म और योग कामुझे लगता है कि स्वामी जी हमारे पास ऐसे ब्राण्ड एम्बेसडर हैं जिनको लेकर के हम आगे बढ़ेंगे।अपनी नई शिक्षा नीति के साथ हम इसको आगे चलाएंगे और निश्चित रूप में मुझे लगता है कि अब वो समय आ गया है। जिस समय पूरी दुनिया फिर भारत को महसूस कर रही है। जर्मनी जैसा देश 14विश्वविद्यालयों में संस्कृत का अध्‍ययन-अध्‍यापन करा रहा है और उनको लगता है वेदों में बहुत कुछ है, पुराणों में बहुत कुछ है,उपनिषदों में बहुत कुछ है। इन ग्रंथों का अध्ययन करके मानवता के विकास के लिए तथाविश्व के कल्याण के लिए बहुत उपयोग हो सकता है।नई शिक्षा नीति जो ज्ञान, विज्ञान, अनुसंधान से युक्त होगी और जो नवाचार के साथ प्रौद्योगिकी के शिखर पर पहुंचेगी जो ज़मीन पर खड़ी होगी तथा अपने मूल्यों पर आधारित होगी लेकिन विश्व के प्रतिस्पर्धा में श्रेष्ठता को अर्जित करेगी। निश्चित रूप से स्वामी जी के विचारों के अनुरूप हमने शिक्षा नीति तैयार की है। स्‍वामी जी के उदारवादी विचार थे तो बहुत दूरगामी सोच भीथी जो विचार उन्होंने हमको दिया है वो इस नई शिक्षा नीति में समाहित है। नई शिक्षा नीति 21वीं सदी के स्वर्णिम भारतकी आधारशिला बनेगी। मुझे भरोसा है कि आपका विश्वविद्यालय जो इस गरिमा को बना कर के आगे बढ़ रहा है, वह एक उदाहरण के रूप में काम करेगा और मेरा शिक्षा मंत्रालय हमेशा आपके साथ है। मैं व्यक्तिगत भी आपके इस मिशन के साथ हूँ। जब मैं पांच वर्ष पहले आया था तभी मैंने पूरा विश्‍वविद्यालय देखा था कि किस तरीके से आप लोग काम करते हैं। आप बहुत समर्पण के साथ काम कर रहे हैं और मुझे भरोसा है कि स्वामी जी का जो मिशन है उसे आप जिस तरह फैला रहे हैं वोनिश्चित रूप में भारत विश्वगुरु बनेगा। स्वामी जी के मन में जो कल्पना एवं संकल्‍प था कि प्रबुद्ध भारत मेरा देश है और वो विश्व गुरू है और इसीलिए जब मैं मुख्यमंत्री बना उत्तराखंड का तब भी मैं मायादेवी के उस संस्थान पर जा कर के कई घंटों तक स्वामी जी का को याद किया था औरमैं कसार देवी भी गया था।राजपुर रोड देहरादून स्‍थितकुटिया में स्वामी जी ने कुछ समय के लिए साधना की थी मैं उस कुटिया में भीजाता हूँ। मैं स्वामी जी केजहां-जहां उनके चरण पड़े है मैं कोशिश करता हूँ कि वहां अवश्‍य जाऊं। स्‍वाजी जी ने भारतीय संस्‍कृति का प्रचार-प्रसार करते हुए दुनिया की मानवता के लिए एवं उसके कल्याण के लिए उन्‍होंने काम किया।हमारीजो शिक्षा नीति हैवो पूरे विश्व में मेरे भारत को समृद्ध और सशक्त नेतृत्व देने वालाहर क्षेत्र में बनाएगीऐसा मेरा भरोसा है। आपने नई शिक्षा नीति और स्वामीजी के विचारों पर जो यहअद्भुत आयोजन किया है जिसमेदेश और दुनिया से मेरे छात्र साथ जुड़े और जो छात्र इस संस्थान में पढ़ रहे हैं मैं उनको भीबधाई देना चाहता हूँकि आप एक ऐसे संस्थान में जुड़े हुए हैं जिसमें जो आपका अपने ढंग का चिंतन होगा। आपको पूरे विश्व में एक योद्धा की तरह स्वामी जी की बातों को लेकर के ज्ञान, विज्ञान, अनुसंधान के क्षेत्र में भारत का विचार ले करके आपपूरे विश्व में छाऐंगे,इन्हीं शुभकामनाओं के साथ मैं स्वामीजी के चरणों में प्रणाम करता हूँ और आप सबको धन्यवाद देता हूँ।

 

 

बहुत-बहुत धन्यवाद!

 

 

कार्यक्रम में गरिमामयी उपस्‍थिति:-

 

  1. डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’, माननीय शिक्षा मंत्री, भारत सरकार
  2. स्‍वामी सुविरन्‍द जी महाराज, कुलाधिपति, रामकृष्‍ण मिशन विवेकानन्‍द एजुकेशनल एवं रिसर्च संस्‍थान
  3. स्‍वामी सर्वोत्‍तमानन्‍द जी महाराज, कुलपति, रामकृष्‍ण मिशन विवेकानन्‍द एजुकेशनल एवं रिसर्च संस्‍थान
  4. प्रति-कुलाधपति, रामकृष्‍ण मिशन विवेकानन्‍द एजुकेशनल एवं रिसर्च संस्‍थान
  5. कुलसचिव, रामकृष्‍ण मिशन विवेकानन्‍द एजुकेशनल एवं रिसर्च संस्‍थान

 

आईआईटी इंदौर के 8वें दीक्षांत समारोह के अवसर पर केवी कम्‍प्‍यूटर एवं सूचना प्रौद्योगिकी केन्‍द्र, केन्‍द्रीय कार्यशाला, अभिनन्‍दन भवन एवं तक्षशिला व्‍याख्‍यान हॉल परिसर का उद्घाटन

आईआईटी इंदौर के 8वें दीक्षांत समारोह के अवसर पर केवी कम्‍प्‍यूटर एवं सूचना प्रौद्योगिकी केन्‍द्र, केन्‍द्रीय कार्यशाला, अभिनन्‍दन भवन एवं तक्षशिला व्‍याख्‍यान हॉल परिसर का उद्घाटन

 

दिनांक: 19 अक्‍टूबर, 2020

 

 

माननीय शिक्षा मंत्री, डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’

 

आज के इस ऐतिहासिक उत्‍सव में जहां हम आईआईटी इंदौर की बहुत सारी परियोजनाओं को लोकार्पित कर रहे हैं वहीं आठवें दीक्षांत समारोह जैसे भव्‍य आयोजन में उपस्‍थित इस आईआईटी परिषद्  के यशस्‍वी अध्‍यक्ष आदरणीय प्रो. दीपक भास्‍कर पाठक जी, मेरेसाथ मंत्रालय में जो इस क्षेत्र को देख रहे हैं अपर सचिव,श्री राकेश रंजन जी, इस संस्‍थान के कार्यवाहक निदेशक प्रो. निलेश कुमार जैन जी, डीन शैक्षणिक डॉ. देवेन्‍द्र देशमुख जी और सभी विभागध्‍यक्ष, संकाय सदस्‍य, अभिभावकगण, सदस्‍यगण और आईआईटी इंदौर परिवार के सभी उपस्‍थित भाइयो और बहनो! इस उत्‍सव में देश और दुनिया से हमारेपूर्व छात्र भी जुड़े हुए हैं, मैं इस अवसर पर आप सभी का अभिनन्‍दन कर रहा हूं, स्‍वागत कर रहा हूं। मुझेलगता है कि आप सब देश के सबसे स्‍वच्‍छ शहर एवं स्मार्ट शहर से इन यादगार क्षणोंके साक्षी बन रहे हैं। आज मेरे विद्यार्थी इस संस्‍थान से शिक्षा को प्राप्त करके और अब मैदान में जा रहे हैं ऐसे क्षणों में हम और आप उनके इस दीक्षांत समारोह में एकत्रित हो करके उनको बधाई देने के लिए आये हैं, हम उनकी पीठ थपथपाने के लिए आये हैं, हम उनका हौसला बढ़ाने के लिए आये हैं, हम उनको याद दिलाने के लिए आये हैं कि हां,जो कई वर्षों की अनवरत साधना आपने की है अब वो वक्त आ गया है जब उस साधना को, उस ज्ञान को लेकर के आपनिर्माण के क्षेत्र में मैदान में जा रहे हैं और इसलिए आप सबको मैं बधाई देना चाहता हूँ।वैसे तो शिक्षा का अंत कभी नही होता लेकिन यह जितना ज्ञान आपने अर्जित किया है उस ज्ञान को बाँटने के लिए, उस ज्ञान का वैभव विकसित करने के लिए आप आज संस्थान से मैदान में जा रहे हैं और निश्चित रूप में आपकी असली परीक्षा तो अब आरम्‍भ होती है अभी तक तो केवल पुस्तक की परीक्षा थी लेकिन जीवन की जो परीक्षा है अब आज से वो शुरू होती है जब आप परयोद्धा की मुहर लग करके अपने क्षेत्र में जाने वाले हैं, अपने अनुभवों को लेकर के जाने वाले हैं। इस अवसर पर मैंआपको बहुत सारी बधाई देता हूं और स्वभाविक है कि यह क्षण आपके लिए  बहुत भावुकहोंगे। आपके अध्‍यापकगण, आपके अभिभावक इन क्षणों में कितने खुशी और आनंद का अनुभव कर रहे होंगे। मेरे प्रिय छात्र छात्राओं! केवल आप अपनी आशाओं का केंद्र  नहीं हैं बल्‍कि आप अपने परिवार, समाज एवं राष्‍ट्र की भी आशाओं का केन्‍द्र हैं। आज न केवल आप अपने इस आईआईटी इंदौर की आशाओं का केन्द्र हैं तथा न केवल मध्यप्रदेश की आशाओं का केन्द्र हैंबल्कि मेरे भारत की भी आशाओं का केन्द्र है और मैं इससे आगे भी जाना चाहता हूं कि आप पूरी दुनिया की आशाओं का केन्द्र हैं। और क्यों न हों? यह देश विश्वगुरु रहा है। इस देश के बारे में हमेशा कहा गया है कि‘‘एतद्देशप्रसूतस्य सकाशादग्रजन्मनः। स्वं स्वं चरित्रं शिक्षेरन् पृथिव्यां सर्वमानवाः।।’’तक्षशिला और नालंदा जैसे विश्वविद्यालय इस देश के अंदर थे। यहां पूरी दुनिया के लोग शिक्षा ग्रहण करने के लिए आते थे।दुनिया के लोग ज्ञान-विज्ञान-अनुसंधान हर क्षेत्र में यहां से शिक्षा ग्रहण करके जाते थे।ऐसा वैभव पूरी दुनिया में आपके ज्ञान और विज्ञान का फैला हुआ था।मैं समझता हूं उस देश के ही हम वासी हैं जिस देश ने पूरे विश्व को अपना परिवार माना है। हमने ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की बात की। पूरी वसुधा को पूरे संसार को हमने परिवार माना है। दुनिया के दूसरे देशों ने संसार को केवल बाजार माना है लेकिन हमारा यहविचार नहीं रहा है। हमने संसार को अपना परिवार माना क्योंकि हमारी मान्यता रही है कि परिवार में प्यार होता है और बाजार में केवल व्यापार होता है, व्यवसाय होता है। उस प्यार को लेकर हम दुनिया में जाना चाहते हैं और उस पूरे परिवार की रक्षा, सुरक्षा उसकी सुख-समृद्धि और प्रगति की न केवल कामना के लिए कार्य कर रहे हैं बल्कि उसे मिशन में कररहे हैं।जहांसुबह उठते ही हमकहते हैं-‘‘सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया’’ यह हमारासूत्ररहाहै।हमने लोगों को मशीन नहीं बनाया बल्‍कि मनुष्य बनाया है और इसीलिए हमारे देश के प्रधानमंत्रीजी जब अभी नई शिक्षा नीति को लेकर आये थे तो उनकी यह चिंता रही है किहमारे जो जीवन मूल्य हैं वो दुनिया के लिए बहुत जरूरी हैं।हमारे जीवन मूल्‍य दुनिया के लिए अनुकरणीय हैं। हमारे लिएहमारेछात्र केवल विद्यार्थी नहीं हैं बल्कि हमारे लिए देवता हैं। हमारे छात्र सम्‍पूर्णविश्व के लिए एक ऐसा वैश्विक नागरिक अर्थात् महामानव बनकर जा  रहे हैं जो हर क्षेत्र में प्रगति के शिखर को चूमेंगें और मानवता का भी पाठ पढ़ाऐंगे।ऐसे ही विद्यार्थियों को तैयार करने के लिए हमारी एनईपी-2020 आई है, मुझे खुशी है कि हमारे बीओजी के अध्यक्ष प्रो.दीपक भास्कर पाठक जी जिनका जीवन बहुत ही प्रेरणादाई एवं संघर्षमय रहा है, ऐसे व्‍यक्‍तित्‍व के निर्देशन में इस नीति का बहुत ही अच्‍छे तरीके से क्रियान्‍वयन भी होगा मैं क्योंकि हर संस्थान का लगातार सर्वेक्षण भी करता रहता हूं परीक्षण भी करता रहता हूं और अनुसंधान भी करता है एवंउसके बारे में जानकारी भी लेता रहता हूं। संस्थान के अधिकारी वर्ग में चाहे डीन हों, चाहे विभागाध्यक्ष हों,अथवा चाहे वहां के कौन से छात्र हैं जो विगत समय में निकलकर वर्तमान में दुनिया के किन पदों पर हैं तथा वर्तमान में संस्था के अंदर चल क्या रहा है?क्‍यागतिशीलता है? सोच क्या रहे हैं? कर क्या रहे हैं? यह मेरी कोशिश रही है कि हमेशामैं हर संस्थान के अंदर घुस कर के हर चीज की जानकारी प्राप्त करूं।मुझे ख़ुशी है कि इस संस्थान ने अपनी छोटी सी आयु में ही लंबी छलांग मारी है इसलिए पहले केजितने भी  निदेशक हैं उनको भी मैं उसके लिए बधाई देना चाहता हूं और इस साल जो यह हमारी युवा आईआईटी है उसके मेरे उन्नायक इतनी बड़ी छलांग मार रहे है तथा पूरी कोशिश कर रहे है इसलिए एनआईआरएफ रैंकिंग में वर्ष2019में यह संस्‍थान 13वें स्थान पर था फिर इसने तीन वर्षों में छलांग मार कर के इस समय 2020 में दसवें स्थान पर आया है तो 2020 में और प्रगति इसने की है। टाइम्स हायर एजुकेशन रैंकिंग में और एशियाई विश्वविद्यालय रैंकिंग में भी वर्ष 2020 में इस संस्‍थान  ने 55वां स्थान प्राप्त किया और यंगयूनिवर्सिटी रैंकिंग में इसने 64वीं रैंक प्राप्त की है।यहदेश बहुत विशाल देश  है औरजब मैं हिन्दुस्तान के बारे में कहता हूं कि यह दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है और इस सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश में एक हजार से अधिक तो विश्वविद्यालय हैं,45 हजार से अधिक डिग्री कॉलेज हैं,15लाख से अधिक स्कूल  हैं,एक करोड़ 9 लाख से भीअधिक अध्यापक हैं और कुल मिलाकर अमेरिका की जितनी आबादी नहीं है 33 करोड़ से ज्यादा छात्र-छात्राएं है।यह वैभव है इस देश का और इसीलिए प्रतिस्पर्धा में किसी स्थान पर आना यह अपने आप में बहुत बड़ी गरिमा की बात है।आज मैंबधाई देना चाहता हूं उसकी फैकल्टी को भी बधाई देना चाहता हूं कि उन्होंने कोशिश करके अपनी प्रगति का गौरवशाली अध्‍याय लिखा है मुझे इस बात की खुशी है कि आज जितने भवन यहां पर लोकार्पित हुए हैं वो चाहे अभिनंदन भवन हो सब एक से बढ़कर एक शानदार हैं। हमने तो हमेशा अभिनंदन किया है। ‘अतिथि देवो भव’ कहा है। हमने अतिथियों को भी भगवान के रूप में मानाहैऔर फिर अभिनंदन की हमारी परंपरा रही है, हमारे संस्कार रहे हैं। मुझे ख़ुशी है कि 95 करोड़ की लागत से निर्मित यह भव्य अभिनन्दन भवन जिसमें बहुत अच्छे मनों का सृजन होगा जो दुनिया में अपनी छाप छोड़ेंगे। मुझे यह भी अच्छा लगा कि आपने तक्षशिला को याद किया और तक्षशिला व्याख्यान कक्षों के साथ ही शैक्षणिक उष्‍यामान केन्द्र सहित जितने भी भवनों का आपने यहां पर आज जो उद्घाटन किया है, उसके लिएमैं आपको बहुत बधाई देना चाहता हूं और उससे जुड़े फैकल्टी सदस्‍यों तथा छात्रों को भी बहुत सारी शुभकामना देना चाहता हूं, यह बहुत अच्छा अवसर है।इस अवसर पर आपने केन्द्रीय विद्यालय जो कि देश की स्‍कूली शिक्षा का आभूषण है औरकेन्द्रीय विद्यालय के जो मेरे छोटे-छोटे छात्र-छात्राएं हैं वे जिस तरीके से अपना प्रस्तुतीकरण करते हैं, वह अपने आप में अद्भूत हैं। आपने आज केन्द्रीय विद्यालय भवन का भी उद्घाटन कराया है यह भविष्‍य की महत्वपूर्ण आधारशिला है।इसलिए मेरे विद्यार्थियों में सोचता हूँ कि आज आप यहाँ से दीक्षांत समारोहों से जायेंगे तो पूरा मैदान आपके लिए खाली है,पूरी दुनिया आपको निहार रही है और पूरी ताकत के साथ आपको दौड़ने का पूरा मौका है। मैं समझता हूँ कि आपको प्रौद्योगिकी के साथ-साथबहुआयामी क्षेत्रों में जैसेमानविकी तथा सांस्कृतिक एवं सामाजिक जीवन से जुड़े विषयों को भी साथ लेकर काम करनाहै और मुझे इस बात की खुशी है कि आईआईटीइन्दौर ने खगोल विज्ञान में एमएससी प्रोग्राम प्रारम्भ किया है और मुझे लगता यह भारत का यहपहला ऐसा आईआईटी रहा है जिसने खगोल विज्ञान में एमएससी प्रोग्राम प्रारंभ किया है और उसमेंअपेक्षित सफलता मिल रही है।मेरे प्रिय विद्यार्थियों,खगोल प्राचीन भारत की ऐसीविद्या है जिसके बारे में हमें अतीत से शोध करके उसको नवाचार के रूप में बहुत तेजी से अब आगे बढ़ाना है।आप भले ही आज दीक्षांत समारोह से डिग्री ले करके जा रहे हैं लेकिन वास्‍तविकता यह है कि आप अपनेअनुभवों को बाँटने के लिए तथानए सृजन के लिए जा रहे हैं। जो नयी शिक्षा नीति हम लेकर आये हैं यह भी आपके भविष्य कोसंवारने  लिए है। अब विद्यार्थी किसी भी विषय के साथ कोई भी दूसरा विषय चुनने के लिए स्‍वतंत्र है तथा परिस्‍थितिवश यदि विद्यार्थी ने अपना पाठ्यक्रम बीच में छोड़ दिया है तो आपका क्रेडिट बैंक सुरक्षित रहेगा और जब भी दो साल बाद अथवा एक साल बाद फिर लौट कर के आना चाहेंगे वहीं से आप आगे शुरू कर सकते हैं। यदि आप किसी भी डिग्री कोर्स को दो साल में परिस्‍थितिवशछोड़करके जा रहे हैं तो दो साल उसके खराब नहीं होंगे बल्कि पहले साल में उसको सर्टिफिकेट मिल जाएगा और दूसरा साल है तो उसको डिप्लोमा मिलेगा और तीसरे साल में वो छोड़ के जा रहे हैं तो डिग्री मिलेगी। लेकिन यदि बीच में ही वो आना चाहता है तो जहां उसने छोड़ा है वो वहीं से शुरू कर सकता है ऐसी नयी शिक्षा नीति में हम व्यवस्था लेकर आये हैं और इसलिए आपके पास तो बहुत अच्छा अवसरहै। मैं यह भी कहना चाहता हूं कि वो चाहे इंजीनियरिंग का क्षेत्र हो, चाहे मैनेजमेंट का क्षेत्र हो, चाहे रसायन विज्ञान का हो,भौतिक विज्ञान का हो, खगोल शास्त्र का हो, सभी क्षेत्र में चाहे वैज्ञानिक भास्कराचार्य को देखेंगे वो इस धरती पर पैदा हुआ आज विश्व का फलक पर मेरे वैज्ञानिकों को इसे शोध और अनुसंधान करके आगे ले जाने की जरूरत है। हमारा शल्य चिकित्सा का जनक सुश्रुतइसी धरती पर पैदा हुआ है औरपूरी दुनिया आज उनसे सीख रही है। आयुर्वेद के महान् ज्ञाता चरक, महानगणितज्ञ आर्यभट्ट सहित चाहेबौधायन हों,चाहेनागार्जुन हों किस किस का मैं नाम लूं पूरी ऐसी श्रृंखला मौजूद है जिन्‍होंने हमारे लिए एक बहुतबड़ी थाती कोसौंपा है। हम उसको नए अनुसंधान के साथ हम आगे कहां तक बढ़ा सकते हैं  यह हमारे सामने चुनौती है और आपने उस चुनौती को स्वीकार किया है मैं देख रहा था कि जब पूरी दुनिया कोरोनाके संकट से होकर करके गुजरी और मेरा भी देश उससे अछूता नहीं रहातब मेरे देश के प्रधानमंत्रीजी ने कहा था नौजवानों तुम क्या कर सकते हो? मुझे गौरव महसूस होता है कि ऐसे वक्त पर ऐसे वक्त पर मेरे आईआईटी के नौजवानों ने जब लोग अपने घरों में बैठे रहे होंगे तब प्रयोगशालाओंमें जा करके एक से एक नये अनुसन्धान आपने किए।चाहेमास्‍क हो,वेंटिलेटर हो,ड्रोन हो, टेस्टिंग किटहो,आपने पच्चीसों परियोजनाओं पर एक साथ काम किया। मैं इसके लिए भीआपको बहुत बधाई देना चाहता हूं। जब चुनौती का मुकाबला होता है तो वह चुनौती अवसरों में तब्दील हो जाती है और आपने चुनौतियों का मुकाबला किया हैऔर मुझे भरोसा है किजब आपबाहर जा रहे हैंतोआप किसी भी क्षेत्र में पीछे नहीं रह सकते औरआप तो प्रगति के शिखर को चुमेंगें क्योंकि आखिर आपके आचार्यों ने, आपके गुरुजनों ने, आपकी फैकल्टी ने आपको एक योद्धा की तरह बनाया है। मुझे इस बात की भी खुशी है कि अकैडमिक और इन्डस्ट्रीज के बीच भी आपने गैप को कम करते हुए पेटेंट फाइल किए हैं और 175 से भी अधिक आपने रिसर्च पेपरबड़े स्तर पर प्रकाशित किए हैं। मैं फैकल्टी से भी अनुरोध करूंगा। अभी इस दिशा में बहुत तेजी से हमें कार्य करने की जरूरत है।जब मैं क्‍यूएसरैंकिंग और टाईम्‍स रैंकिंग काअध्‍ययनकरता हूं तो हमारे यहां थोड़ी-सी कमी है। अभी हमें शोध और अनुसंधान के क्षेत्र में ताकत के साथ तेजी से दौड़ने की जरूरत है, पेटेंट करने की जरूरत है, नई शिक्षा नीति के  माध्‍यम से हम अब ‘नेशनल रिसर्च फाउंडेशन’की स्‍थापना कर रहे हैं जिसके अध्‍यक्ष प्रधानमंत्री जी के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार होंगे और हम शोध और अनुसंधान के क्षेत्र में भीबहुत तेजी से आगे बढ़ेंगे।हमारेदेश के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी ने बड़ी कठिन परिस्‍थितियोंमें ‘जय जवान, जय किसान’ का नारा दिया। बाद में आदरणीयअटलबिहारी बाजपेयी जी ने ‘जय विज्ञान’ का नारा दिया तो आज जरूरत है नये अनुसंधानकी और इसलिए हम नये अनुसंधान और नवाचार के साथ विश्व के फलक पर जाएंगे। जहां हम‘नेशनल रिसर्च फाउंडेशन’ का गठन कर रहे हैं वहीं हम तकनीक और टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में ‘नेशनल एजुकेशन टेक्नोलॉजी फोरम’ का गठन कर रहे हैं ताकि अंतिम छोर तक भी उसका उपयोग किया जा सके और जीवन के प्रत्‍येक क्षेत्र में प्रौद्योगिकी और तकनीकी के उपयोग में समर्थ हो सकें। हम ‘स्पार्क’ के तहत दुनिया के 28 देशों के 127 शीर्ष विश्वविद्यालयों के साथ शोध और अनुसंधान कर रहे हैं साथ ही अभी हम लोग स्‍ट्राइडस और स्‍टार्स इन दोनों के माध्यम से भी अनुसंधान के क्षेत्र में कार्य कर रहे हैं लेकिन यह अभी नया मैदान खोला है। मेरा भरोसा है कि आप अनुसंधान की दिशा में आगे आएंगे। जो छात्र आज डिग्री लेकर के जा रहे हैं अथवापीएच.डी लेकर जा रहे हैं उन्‍हें भी नित नए अनुसंधानों के साथ और आगे बढ़ने की जरूरत है,मैं देख रहा था कि25 स्टार्टअप आपनेसूचीबद्ध किए हैं। पीछे के समय मैंने समीक्षा की थी तो उद्योग और मेरे आईआईटी के बीच में थोड़ा सा मुझे अंतर नजर आता था कि उद्योग कुछ और चाहता है तथामेरे आईआईटीकुछऔर पढा रहे हैं, अब हमने समन्वय किया है। अबआईआईटी और उद्योग दोनों मिलकर के काम करेंगे। उद्योगों को क्या जरूरत हैवो विषय-वस्‍तु हमारे पाठ्यक्रम में आएगी और मेरा जो छात्र है वहफिफ्टी परसेंट तक उद्योगों में जुड करके अपना काम करेगा और अपने अनुसंधान तथा अनुभव से उद्योगों को भी ऊंचा उठाएगा।मेरे छात्र-छात्राओं में यह कहना चाहता हूं कि किसी भी संस्थान की जो ताकत है उसकी क्षमता का यदि पता लगाना है तो भवनदीवारों से नहीं बल्कि संस्थान द्वारा जो चुनौतीपूर्ण समय में किए गए काम होते हैं उनकाआकलन करके उसकी क्षमता का पता चलता है। इस संस्थान से निकलने वाला छात्र देश और दुनिया में कहां पर है वेक्या रास्ता अपना रहे हें, मेरे राष्ट्र को क्या दे रहे हैं,उस संस्थान की क्षमता का उससे पता चलता है और मुझे खुशी है कि आपने इन चुनौती भरे क्षणों में एक योद्धा की तरह मेरे अध्यापकों ने और छात्रों ने भूमिका निभाई है। मुझे भरोसा होता है क्‍योंकि जो चीज हमारे देश में भी नहीं थी उस परहमारे आईआईटी केशोध और अनुसंधान के बल पर हमने न केवल अपने देश को बल्कि दुनिया के देशों को भी उन चीजों को सप्लाई किया है। इसलिए मुझे खुशी है कि आपने चाहे वो आपने मास्‍कबनाए हों, चाहे किट बनाए हों,चाहेदुनिया के देशों के का जो अंतर्राष्ट्रीय नेटवर्क नार्वे, स्वीडन,फ्रांस, डेनमार्क सहित छठवें रिसर्च ग्रुप के रूप में जुड़कर आप देश का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं इस बात की भी मुझे खुशी है।मैं आपको बधाई देना चाहता हूँ कि आपने संस्‍थान सामाजिक जिम्मेदारियों का भी बहुत श्रेष्‍ठतापूर्वक निर्वहन किया हैमेरेभारत की जो भाषाएँ हैं उनकी सर्वांगीण उन्‍नति एवं विकास के लिए आपने भारतीय ज्ञान परंपरा और जो प्राचीन भाषाओं के केन्द्र की स्थापना करके अत्‍यन्‍त सराहनीय कार्य किया है,कृषि,जल संसाधन प्रबंधन, धातु विज्ञान औषधि और अर्थव्यवस्था आदि क्षेत्रों में भी आपने महत्‍वपूर्ण किया है। हमारे देश के प्रधानमंत्री ने कहा है 2024 में हमको 5 ट्रिलियन डॉलर की आर्थिकी पर जाना है और जो इक्कीसवीं सदी का आत्‍मनिर्भर भारत होगा, वह स्वर्णिम भारत होगा जो स्वच्छ भारत होगा, सशक्त भारत होगा,समृद्ध भारत होगा। उस भारत के लिए हम रात-दिन खपने के लिए जिस तरीके से मैदान में उतरे हुए हैं उसके लिए मैं आपको बहुत सारी शुभकामना देना चाहता हूं।मैं देख रहा हूँ कि आपने उन्नत भारत अभियान के तहत भी बहुत सारे काम किये हैं।यह बहुत जरूरी भी है क्योंकि यह समाज हमारा है, पूरी की पूरी धरती मेरी मां है और हम इसके पुत्र हैं तो फिर तो पूरा देश हमारा अपना होता है तो क्यों न हम आगे आकर के जो गांव हमारे इर्द गिर्द हैं उनका भी यदि आईआईटीइंदौर विकास करें तो वे भी बहुत शिखर पर पहुंचेंगे।इसलिए जरुरी है कि उस संस्‍थानके माध्‍यम से इसके इर्द-गिर्द रहने वाले लोगों को भी उसकी छाया उन गाँव में दिखनी चाहिए।मुझे खुशी है कि अपने 5 गांव गोद लिये हैं और इन पांचों गांवों में आपके द्वारा किये गये कार्य का मैंने विश्‍लेषण किया है और यह पाया है कि आप काम कर रहे हैं और मुझे भरोसा है कि इस काम को आप और तेजी से काम करेंगे। मैं देख रहा था आपने रक्त दान किया है, आप स्वच्छता अभियान चलाते हैं। पीछे के समय में हमने कहाथा ‘एक छात्र एक पेड़’ उस वृक्षारोपण के अभियान को भी आपने बहुततेजी से बढ़ाया है।गरीब छात्रों के लिए पाठ पढ़ाने का जो सिस्टम आपने किया वह बहुत अच्छाहै।मैं सोचता हूं कि मेरे देश के अन्दर 30 करोड़ लोग निरक्षर क्यों हैंअब हरछात्र यदि अपने इर्द-गिर्द किसी को भी तय करे कि वह दो लोगों को, चार लोगों को अथवा पांच लोगों को पढ़ाएगा तथासाक्षर भी करेगा और उन्‍हेंअपनी तरह बनाएगा।आईआईटी में आने वाला मेरा हर छात्र मॉडलहोता है। उसको देखकर के भी प्रेरणा मिलती है, वो क्या सोचता है, उसके आँखों में कितना बड़ा सपना है। हमारे कलाम साहब कहते थे कि सपने जो सोने न दें। ऐसा सपना आँखों में होना चाहिए जो तुमको एक मिनट चैन से न बैठने दे। जब तक ऐसेसपनोंको आप क्रियान्‍वित नहींकर देते हैं। जब भी आईआईटी से निकलने वाले छात्र बाहर जाता है तो उसकी अलग पहचान होती है। उसकी गंभीरता होती है, उसकी तात्कालिकता होती है,उसकी प्रखरता होती हैं। उसमें आप हर दृष्टि से अद्भुत क्षमता होती है, उसमें जिज्ञासा होती है,जिजीविषा होती है, वो किसी भी चीज़ कोकर सकने का सामर्थ्य रखने के लिए योद्धा की तरह खड़ा होता है। मुझे भरोसा हैकि आज आप बाहर निकल रहे हैं तो आप इस आईआईटी का नाम देश में नहीं पूरी दुनिया में आगे बढ़ाएंगे। मुझे भरोसा है और इसके लिएमैं इस संस्थान को बधाई देता हूं कि यह तमाम गतिविधियों में भाग ले रहा है तथा यह ये सर्वांगीण विकास बहुत जरूरी है। किसी एक क्षेत्र में एक व्यक्ति अथवा संस्‍था बहुत आगे है लेकिन दूसरे क्षेत्र में आगे नहीं है तो यह आज की परिस्‍थितियों में नहीं चलेगा। आज की परिस्‍थितियां बिल्कुल भिन्न हो गई हैं आज की परिस्‍थितियों में व्यावहारिक होना भी जरूरी है तथा सामाजिक होना भी।यहलोकतांत्रिक देश है और वोभीऐसादेश जो विश्व बंधुत्व की बात करता है, जो पूरी वसुधा को अपना कुटुंब मानता है, उसके लिए हर प्रकार की लीडरशिप एवं प्रखरता चाहिए।अभीहमारी नई शिक्षा नीति आई है।नई शिक्षा नीति नए फलक के साथ आई है और यह अब राष्ट्रीय नहीं अंतरराष्ट्रीय फलक पर आई है। अभी निदेशकजिस बात पर चर्चा कर रहे थे कि यह नेशनल भी होगी, यह इंटरनेशल भी होगी,यह इम्पैक्टफुल भी होगी तो यहइंटरएक्टिव एवंइन्‍क्‍लुसिवभी होगी। यह इक्विटी,क्‍वालिटीऔर एक्‍सेसके आधारशिला पर खड़ी होगी तथायह हर क्षेत्र में आगे बढ़ेगी।इसमें कंटेंट भी होगा और हम इसकापेटेन्ट भीकरेंगे। इसके तहत नेशनल फर्स्ट औरकेरेक्‍टर मस्ट यह रास्ता होगा क्योंकि हम चाहेंगे कि यह देश की आधारशिला है।जिस परिवार का, जिस व्यक्ति का, जिस राष्ट्र का अपना चरित्र नहीं होता वो बहुत दिनों तक खड़ा नहीं रहता क्‍योंकि उसकीअपनी जमीन नहीं होती है।वह तो टूटी हुई पतंग की तरह रहता है जिसकी अपनी जमीन या धरती नहीं है तो उस कटी हुई पतंग की तरह होता है जो आसमान में उड़ तो रही होती है लेकिन उसको भी पता नहीं होता है कि वो किस गर्त में गिरेगी। आपने देखा होगा कि कोई ठूंठ सा खड़ा पेड़ खड़ा रहता है जिसमें ना पत्ते, न फूल, नाफल लेकिन लंबा बहुत होता है और वो एक छोटे से हवा का झोंका आता है और उसको बहा ले जाता है, उठा ले जाता है लेकिन एक छोटा सा ही सही छोटा पेड़ होता है लेकिन उसकी जड़ें गहरी होती हैं तो उसमें पत्ते भी आते हैं और छोटी-मोटी आंधी और तूफान उसको कभी भी उखाड़कर नहीं ले जा पाते हैं।इसीलिए हम नई शिक्षा नीति को भारत केन्द्रित लायेहैं।भारत की अपनी पूरी विश्व में पहचान है। हमारी जड़ें कमजोर नहीं हैं।यहअलग बात है जब लार्ड मैकाले ने हमारी जड़हमसे दूर की है और इतने सैकड़ों वर्षों की गुलामी के थपेड़ों ने हमको ऐसी स्थिति में लाकर के खड़ा किया हैकिहम जब अपनी प्राचीन बात को कहते हैं तो लोगों की हंसी उड़ाने की कोशिश होती है।हमकों साबित करना हैइसी बात को कि मेरा जो देश था वो विश्वगुरु था। हमारे पास ज्ञान, विज्ञान, अनुसंधान की कमी नहीं थी। हमारे उन वैज्ञानिकों ने पूरे विश्व का मार्गदर्शन किया और आज फिर यह देश स्वाधीन हुआ है। श्रीनरेन्द्र मोदी जीजैसा देश का प्रधानमंत्री जो विजनरी और मिशनरी भी है वेदेश के लिए अपना एक तिल-तिल खपा करके आगे बढ़ रहे हैं।वेइस देश को 21वीं सदी का स्वर्णिम भारत बनाना चाहते हैं जो सारे विश्व के फलक पर उसको शिखर तक पहुंचाए। इसीलिए हमारे पास भी मैदान है, हमारे पास भी विजन है, हमारे पास भीसमय है और पूरी दुनिया हमारी ओर निहार रही है। हम टैलेंट की पहचान भी करेंगे, टैलेंट का विकास भी करेंगे और टैलेंट का विस्तार भी करेंगे। हम तीनों चीजों को करेंगे और इसलिए केवलटैलेंट की खोजे हीनहीं करेंगे बल्‍कि उसका विकास भीकरेंगे और उसका विस्तार भी करेंगे। इस दिशा में हम लोग आर्टिफिशल इंटेलिजेंस जोस्कूली शिक्षा से लायें हैं हम शायद दुनिया का पहला देश होंगे जो स्कूली शिक्षा से आर्टिफिशल इंटेलिजेंस पढ़ायेंगे और हमने अभी स्‍कूली शिक्षा से ही वोकेशनल स्ट्रीम के साथ शुरू किया है। अब मूल्यांकन का भी आधार  हमने परिवर्तित किया है और अब हमारे स्कूल में भी 360 डिग्री हॉलिस्‍टिकमूल्यांकन होगा। छात्र अपना स्‍वयं मूल्यांकन करेगा, अध्यापक भी मूल्यांकन करेगा, उसका साथी भी उसका मूल्‍यांकन करेगा और उसका अभिभावक भी करेगा और उसको हम अब रिपोर्ट कार्ड नहीं देंगे बल्‍किहमउसको प्रोग्रेस कार्ड देंगे और इसलिए आमूल चूल परिवर्तन के साथ ही नयी शिक्षा नीति आई है जिसका पूरे देश ने बहुत स्वागत किया है।दुनिया के तमाम देशों ने भी कहा है कि हम भी चाहते हैं कि इसएनईपी को हम अपने देश में लागू करें तो इसीलिए मैं समझता हूं कि इसएजुकेशन पॉलिसी के माध्‍यम से निश्चित रूप से हम रिफॉर्म भी करेंगे, ट्रांसफॉर्म भी करेंगे और परफॉर्म भी करेंगे।इस इच्छाशक्ति के साथ हमको तेजी से काम करना है और अंतर्राष्‍ट्रीयकरण कीजहां तक बात है तो आप सबको मालूम है कि हमारा ‘स्टडी इन इंडिया’ अभियान एक ब्रांडबनेगा। जब पूरी दुनिया के लोग अब भारत की धरती पर पढ़ने के लिए आ रहे हैं तथाबहुत तेजी से आ रहे हैं। अभी तो 50 हजार विद्यार्थियों का रजिस्ट्रेशन हो गया था लेकिन इस कोविडकी महामारी के कारण थोड़ा रुका। लेकिन हम‘स्टे इन इंडिया’ भी चाहते हैं क्‍योंकि मेरे देश का छात्र आज दुनिया में जा रहा है तथासात से आठ लाख छात्र आजविदेशों में हैं।मेरे देश का डेढ लाख करोड़ रुपया बाहर चला जाता है।मेरी प्रतिभा भी बाहर चली जाती है और मेरा पैसा भी बाहरचला जाता है और जोप्रतिभाहोतीहै फिर उसको वहां मौका मिलता वहउस देश की प्रगति में रहता है। दुनिया की बड़ी से बड़ी कंपनियों में भी मेरे आईआईटी के छात्र जा रहे हैं।चाहे गूगल हो और चाहेमाइक्रोसॉफ्ट हो,उसका सीईओ हमारे ही संस्‍थानों से निकले हुए विद्यार्थी हैं आपके छात्र अभी बहुत तेजी से आगे बढ रहे हैं तो हम अपने देश को पहले मजबूत करेंगे।हमारे मन में पैकेज के स्‍थान पर पेटेंट की बात होनी चाहिए।हमशोध तथाअनुसंधान करेंगे। हम इन चुनौतियों का मुकाबला करेंगे। हम अपने देश को पूरे विश्व में शिखर पर ले जाने की इस पवित्र मंशा से आगे बढ़ेंगे। मुझे भरोसा है और जब-जब मेरे युवाओं से बात होती है तो मुझे आशा भरी बातें सुनाई देती हैं। हमने इसीलिए इस समय ‘स्‍टे इन इण्डिया’कहा है छात्रों को बाहर जाने की कोई जरूरत नहीं है। जब इस देश में अच्छे संस्थान हैंतो विदेशों में जाने की जरूरत क्या है। और अब तो इस नयी शिक्षा नीति के तहत हम दुनिया के शीर्ष 200 विश्वविद्यालयों कोभी यहां आमंत्रित कर रहे हैंऔर जो हमारे भीशीर्ष विश्वविद्यालय अथवासंस्थान हैंवेभी दुनिया में जाएंगे। हम पारस्परिक आदान प्रदान करेंगे। अभी भी जैसे मैंने कहा कि हम ‘स्‍पार्क’के तहत दुनिया के अट्ठाईस देशों के श्रेष्‍ठ127 विश्वविद्यालयों के साथ आज भी हम लगातार अनुसंधान कर रहे हैं और हमारी प्रतिभा की कमी नहीं है।यह अलग बात है कि हमने शोध और अनुसंधान में ज्यादा ध्यान नहीं दिया है। लेकिन अब तो हम लोग उस पर पूरा ध्यान दे रहे हैं। नई शिक्षा नीति के तहत जो नेशनल रिसर्च फाउंडेशन है और जो नेशनल टेक्नोलॉजी फोरम है इन दोनों के माध्‍यम से बहुत अच्‍छावातावरण बनेगा। एक और दो वर्ष में पूरा परिवर्तनहोगा और इसमें मुझे भरोसा है कि आप लोग आगे बढ़ेंगे और तेजी से आगे जाएंगे।आप यहां से जो शिक्षा ग्रहण करके जा रहे हैं जो आपने इतने वर्षों में पाया है उसको ब्राण्ड के रूप में आप समाज के बीच खड़े हो करके कह सकेंगे, चल सकेंगे, बढ सकेंगे, ऐसा मेरा भरोसा है।वैसेभी हमारे जितने भी आईआईटी  हैं और जो हमारे पूर्व छात्र हैं वे हमारे देश के ब्राण्ड एम्बेसडर होते हैं। आप चाहे देश के अंदर हों अथवा चाहे कहीं भी दुनिया के अंदर हों हमको एक टीम इंडिया की तरह काम करके अपने देश के लिए काम करना है, मिलकर के काम करना है। इसीलिए भारत को ज्ञान की महाशक्ति बनाने की दिशा में हम लोगों ने एक अभियान लिया है, संकल्प लिया है और यहं संकल्प तथाअभियान आपसे होकर गुजरता है।मुझे पूरा भरोसा है कि आप आगे बढ़ेंगे और आपके माध्‍यम से जो स्वर्णिम भारत है उसको भी बढाएंगे और बड़े मन के साथ तथा बड़े उद्देश्य के साथ और बड़ी मेहनत के साथ तथा बड़े धैर्य के साथ आप इसको करेंगें अटल जी बोलते थेछोटे मन वाला कभी बड़ा नहीं हो सकता तथाटूटे तनवाला कभी खड़ा नहीं हो सकता। जिसका मन ही टूटा है वह है दूर तक नहीं सोच सकता, दूर तक नहीं चल सकता तथा न ही दूर तक अपने को ले जाने इच्‍छाशक्ति रख सकता है।जिस व्‍यक्‍ति की छोटी सोच होगी वो बड़ा कहां से हो सकता है, जो छोटा संघर्ष करेगा वो बड़ी चीज कहां से पा सकता है। जिसमें धैर्य नहीं होगा वो कहां से सफल हो सकता है तो इसलिए बड़े बनने के लिए बड़ा संघर्ष चाहिए,बड़ा धैर्य चाहिए, बड़ा विजन चाहिए। मुझे भरोस हैजब मेरेछात्र-छात्राएं निकलते हैं तो जुनून के साथ निकलते हैं, उनमें मेहनत की कमी नहीं, उसको तब्दील करने के मिशन की कमी नहीं है। हमारे अध्यक्ष जी ने एक रचना सुनाई और बीच में उनका संदर्भ भी आया हमारे कलाम साहब का। जब मेरे अब्दुल कलाम  साहब एक पेपर बेचने वाला एक बच्चा, एक छात्र, एक युवा यदि दुनिया का सबसे बड़ा वैज्ञानिक हो सकता है,यदि वो भारत रत्न हो सकता है,भारत का नंबर एक नागरिक हो सकताहै तो हमक्‍योंनहीं हो सकते?उन्‍होंने मुझे एक पुस्‍तक के संकलन के लिए प्रेरित  किया था और उन्‍होंने कहा था कि मेरी देशभक्ति की रचनाएं जो 1983से आकाशवाणी तथा दूरदर्शन परप्रसारित होते थे उन सब गीतों को मैं एक जगह एकत्रित करूँ।उसका जब लोकार्पण किया तो मैं उस छोटी सी कविता सुनाना चाहता हूं जिसको गा करके कलाम साहब की आँखों से आँसू छलक आये थे। उस देशभक्ति का ज्वार मैंने तब महसूस किया था। कलाम जी सामान्य व्यक्ति नहीं थे वेइतने ही भावुकतथाइतने ही संवेदनशील व्‍यक्‍ति थे। इसी से पता लगता है कि देश के प्रति किस सीमा तक कि उनकी देशभक्ति रही होगी वह कविताउन्होंने अपने कमरे में लगाई थी और जब मेरा हाथ पकड़ कर के टहलने लगे तथा उस कविता को गुनगुनाते क्‍योंकि उन्‍हें हिन्दी कम बोलना आता था तथा फिर टूटी-फूटी हिन्दी में कहा-  ‘‘अभी भी है जंग जारी, वेदना सोई नहीं है अभी भी है जंग जारी वेदना सोई नहीं है। मनुजता होगी धरा पर संवेदना खोई नहीं है।’’ और उसके आगे फिर रुके बोले नहींअभी और सुनो ‘‘कियाहै बलिदान जीवन, निर्बलता ढोई नहीं है। कह रहा हूँ ये वतन, तुझसे बड़ा कोई नहीं है तुझसे बड़ा कोई नहीं है।’’ और यह कह रहा हूँ किऐवतन तूझसे बड़ा कोई नही है, कहते-कहते उनकी आंखों से आंसू टपकते हुए मैंने देखे थे। मैं इस बात को मेरे नौजवानों आपसे इसलिए बाँटना चाहता हूंकिडॉ. कलाम साहब का सामान्य व्‍यक्‍तितत्‍व नहीं रहा है देश भक्ति ने उसको भारत-रत्न बना दिया, देशभक्ति ने उनको महानवैज्ञानिक बना दिया।देशभक्ति ने उनको राष्ट्पति बनाया। एक सामान्य लड़का उठकर के भारत का राष्टपति बन जाये यह उस देशभक्ति का ज्वार है,यह उस देशभक्ति का सागर है जो उनके मन मस्तिष्क में उमड़ता रहा था। हम भी तो उसश्रृंखला में आ सकते हैं। मुझे भरोसा है कि आज ऐसे क्षण में आपमैदान में जा रहे हैं जबदेश करवट ले रहा है। अब इस देश को विश्वगुरू भी बनाएंगे और इस देश को सोने की चिड़िया भी बनाएंगे, इस देश को ऐसा मजबूत बनाएंगे।हम जब संकल्प लेंगे तो क्यों नहीं देश मेरा मजबूत होगा और पूरी दुनिया के शिखर पर होगा। एक बार फिर मैं आपके अध्यापकगण को भी,आईआईटीके निदेशक को भी, आदरणीय बीओजी के चेयरमैन साहब को, पाठक साहब को भी, अभिभावकों को भी तथा अपने छात्र-छात्राओं को भी मैं ढेर सारी बधाई और शुभकामनाएं देना चाहता हूं और सप्तऋषि बोस जिसने प्रेसीडेंट ऑफ इंडिया गोल्ड मैडल लिया है, मैं आपको और आपके परिवार को भी ढेर सारी बधाई देना चाहता हूं।इंस्‍टीट्यूटसिल्वर मेडल आरुषि ने लिया है। मैंउनके पूरे परिवार को, इनकी फैकल्टी को इन सबकोभीबधाई देता हूं और इधर जो एम.टेक, एम.सी.ए. और एम.एस. में मनीष जी हैं, आँचल हैं और जड़ी-बूटी फाउंडेशन गोल्ड मैडल में सृजा हैं और वेस्ट प्रोजेक्ट में मेहता, चेतन तथा मुकेश हैं। इन सब को भी मैं बहुत बधाई देना चाहता हूं, मेरी शुभकामना कि आपने कुछअलग पहचान बनाने की कोशिश की है आप अपने जीवन में प्रगति के शिखर को चूमें।मैं एक बार फिर आप सबको इस अवसर पर बहुत बधाई और शुभकामनाएं देता हूं।

 

बहुत-बहुत धन्यवाद!

 

कार्यक्रम में गरिमामयी उपस्‍थिति:-

 

  1. डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’, माननीय शिक्षा मंत्री, भारत सरकार
  2. श्री संजय शामराव धोत्रे, माननीय शिक्षा राज्‍य मंत्री, भारत सरकार
  3. प्रो. निलेश कुमार जैन, कार्यवाहक निदेशक, आईआईटी इंदौर
  4. श्री राकेश रंजन, अपर सचिव, उच्‍चतर शिक्षा विभाग, शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार
  5. प्रो. दीपक भास्‍कर पाठक, अध्‍यक्ष, आईआईटी परिषद्, इंदौर
  6. डॉ. देवेन्‍द्र देशमुख, डीन शैक्षणिक, आईआईटी इंदौर

राष्‍ट्रीय अभिनव दिवस के अवसर पर कपिला बौद्धिक सम्‍पदा, साक्षरता एवं जागरूकता के लिए कलम कार्यक्रम

राष्‍ट्रीय अभिनव दिवस के अवसर पर कपिला बौद्धिक सम्‍पदा, साक्षरता एवं जागरूकता के लिए कलम कार्यक्रम

 

दिनांक: 15 अक्‍टूबर, 2020

 

 

माननीय शिक्षा मंत्री, डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’

 

          मेरे सहयोगी शिक्षा राज्‍य मंत्री आदरणीय संजय जी, उच्‍च शिक्षा के सचिव अमित खरे जी, अपर सचिव श्री राकेश रंजन जी, एआईसीटीई के चैयरमैन अनिल सहस्‍त्रबुद्धे जी, कंट्रोलर जनरल पैटेन्‍ट एंड ट्रैडमार्क आफिस श्री ओ. पी. गुप्‍ता जी, जिनका आज सबसे बड़ा रोल होने वाला है, श्री पी.एल पूनिया जी हमारे यशस्‍वी उपाध्‍यक्ष जी और इस सारेनवप्रवर्तन के हमारे प्रकोष्‍ठ के मुख्‍य प्रवर्तन अधिकारी अभय जैरे जी, सचिव राजीव कुमार जी, सभी विश्‍वविद्यालयों के कुलपतिगण, प्राचार्यगण और अध्‍यापकगण और एआईसीटीई का परिवार तथा गुप्‍ता जी से जुड़ा परिवार।

 

मुझे लगता है कि हमारे मंत्री जी ने भी और एआईसीटीई के चैयरमैन ने भी और अभी जो प्रस्‍तुतिकरण सामने हुआ है उसके बाद हम एक स्‍थान पर पहुंचते हैं और पहुंचते यहां हैं कि बहुत कुछ करने की जरूरत है। अभी कहीं न कहीं कुछ चूक हुई है जो आंकड़े आपने दिये हैं, वो चौंकाने वाले हैं। इस देश में जब यहां तक्षशिला और नालन्‍दा जैसे विश्‍वविद्यालय थे तब भारतमें 97 प्रतिशत साक्षरता होती थी। दुनिया में ज्ञान,विज्ञान,अनुसंधान और नवाचार के क्षेत्र में हमारे देश का कोई सानी नहीं था। यदि आप उस युग को देखेंगे तो भारत तो वही भारत है और इसलिए मैं यह समझता हूं कि जिसकी अपनी संपदा नहीं है तो फिर दूसरे की संपदा पर तो बहुत दिनों तक न तो ज़िंदा रहा जा सकता है और न हीनंबर एक हुआ जा सकता है। अपनी जो बौद्धिक संपदा नहीं है किसी के पास तो कोई भी संपदा नहीं है। इसीलिए आज हमारे सामने सबसे बड़ी चुनौती है इतना बड़ा देश जो दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है, इतना बड़ा देश जिसमें उच्च शिक्षा की दिशा में एक हजार से अधिक विश्वविद्यालय हों और 45 हजार से अधिक डिग्री कॉलेज हों, जिसमें एक करोड़ नौ लाख से अधिक अध्यापकगण हों, इतना बड़ा तंत्र और आज जो हमारा पेटेंट है जो हमारीशोध की स्‍थितिहै उसमेंअभी हम बहुत पीछे हैं।आपने जो आंकड़े बतायें हैं वो बहुत चौंकाने वाले है। मैं पीछे के समय में देख रहा था कि आज से 10-15 वर्ष पूर्व चीन और हम लगभग लगभग समान रूप में थे। उन 15 वर्षों में वो क्या कुछ हुआ कि उसने इतना जंप मार कर के, उस आसमान को छू रहे है और हम जहां के तहां खड़े हो रखे हैं। अभी भारत में अनुसंधान से संबंधित चिंताएं, स्‍वाभाविक है कि हमारी चिंताएं विज्ञान तथा इंजीनियरिंग को लेकर है उसमें मैंदेख रहा था 2018 का आंकड़ाजिसमें चीन में528200 शोध पत्रों की संख्या होगी जबकि अमेरिका में 422802 की संख्‍या थी जबकि भारत में 135788।अब कहां 135788, कहां 4 लाख और कहां 5 लाख। यह बहुत चिंता का विषय है। यदि पेटेंट की बात करेंगे यह तो केवलशोध पत्र की बात है। यदि पेटेंट की बात करेंगे तो 2019 कोही हम देखते हैं तो चीन में 154000 पेटेंट हैं, अमेरिका में 597141 हैं, जापान जैसे छोटे से देश में 313567हैं,कोरिया जैसे गणराज्य में 29992 हैं।यदि भारत की स्थिति देखते हैं तो 50000। हमारे यहां पैंतालीस हजार तो डिग्री कॉलेज  हैं,45 हजार डिग्री कॉलेजों में केवल 50 हजार पेटेंट हैं। आखिर देश प्रगति कैसे कर सकेगा? हमारे अपने पेटेंट के सन्‍दर्भ में उस खाई को पाटने की जरूरत है तो इसकोपाटने का काम गुप्ता जी करेंगेऔर हम उनके पीछे उनके साथ दौड़ेंगे।पेटेंट आज हमारे लिए बहुत बड़ी चुनौती है। मेरेदेश के प्रधानमंत्री जी ने इक्कीसवीं सदी के स्वर्णिम भारत की कल्पना की है वह ऐसा भारत होगा जो जो स्वच्छ भारत होगा,सशक्त भारत होगा,समृद्ध भारत होगा,आत्मनिर्भर भारत होगा और श्रेष्ठ भारत होगा जो इस पेटेंट से होकर गुजरेगा। हम अपनी समस्याओं पर शोध करके पेटेंट क्यों नहीं कर सकते इसमें कठिनाई क्या है। मुझे पता है कि विगत समय में कुछ दिक्‍कतें रही हैं तथा उचित वातावरण नहीं बन पाया है। मैं पहले वर्ष 2013-14 से पहले का आंकड़ा देख रहा था, उसकी मैं यहां अधिक चर्चा नहीं करना चाहता हूं लेकिन इतना तो निश्‍चित है कि आदरणीय मोदी जी के आने के बाद इस दिशा में एक वातावरण बना है और मैं अभी देख रहा था कि वैश्‍विक नवाचार सूचकांक में 2020 की जो रैंकिंग है उसमेंभी हमने आठ स्‍थान ऊंचाई पर पहुंचेहैं जबकि वर्ष 2015 में हम 81वें स्‍थान पर थे। लेकिन अब हमें छलांग मारनी पड़ेगी क्‍योंकि हमारी जो गति है चलने की, अभी जो स्‍पीड है उसको बहुत बढ़ाना पड़ेगा और इसलिए मैं समझता हूं कि दो-तीन प्रकार की हमारे सामने चुनौतियां होंगी। हमारे महान् वैज्ञानिक, पूर्व-राष्‍ट्रपति, भारत रत्‍न श्री अब्‍दुल कलाम जिन्‍होंने हमारा माथा पूरी दुनिया में ऊंचा किया है आज उनके जन्‍म दिवस के अवसर पर हम सब लोग नवाचार की प्रक्रिया और ज्ञान-सम्‍पदा पर परिचर्चा कर रहे हैं। अब्‍दुल कलाम जी के जम्‍नदिन पर आज हम नवाचारका जो शुभारम्‍भ कर रहे हैं उसके लिए हमने तय किया  है कि हम इसको नेशनल इनोवेशन डे के रूप में मना करके उनको श्रद्धांजलि देंगे। आज उनके जन्‍मदिवस पर इस ‘कपिला’ के माध्‍यम से एक ऐसा संकल्‍प आज हम लेंगे कि नवाचारों और शोध तथा अनुसंधान के उनके विजन को पूर्ण कर सकें। एक तरफ हमारे इंजीनियरिंग कॉलेज हैं, दूसरी तरफ हमारे विश्‍वविद्यालय हैं और तीसरी ओर जो ये हमारे राष्‍ट्रीय महत्‍व के संस्‍थान हैं राकेश रंजन हमारे साथ जुड़े हुए हैं और मैं कहना चाहूंगा कि रोकश जी उसे आपको मिशन मोड में लेना होगा। यशस्‍वी प्रधानमंत्री श्री नरेन्‍द्र मोदी जी के नेतृत्‍व एवं मार्गदर्शन में हमारी नई शिक्षा नीति आ रही है जो भारत केन्‍द्रित होगी और साथ ही यह अंतर्राष्‍ट्रीय स्‍तर की भी होगी। जर्मनी जैसे देश 14-14 विश्‍वविद्यालय संस्‍कृत के बना रहे हैं और उस पर शोध और अनुसंधार कर रहे हैं। हमारे प्राचीन साहित्‍य में इतनी सम्‍पदा बिखरी पड़ी है जिसे आज तक किसी ने छुआ भी नहीं है जैसे आयुर्वेद के क्षेत्र में जो 30-35 हजार जड़ी-बूटियां हैं जिनमें संजीवनी बूटीहैं जो पूरी दुनिया को जिन्‍दा कर सकती हैं। दुनिया के मानव के तन को ठीक कर सकती हैं। हमारे महान् चरक ऋषि ने इस पर जो काम किया है उस पर हजारों-हजारों लाखों पेटेंट हो सकते हैं। हमारे पास आर्यभट्ट जो महान् गणितज्ञ हैं उनकी तमाम संपदा भी हैं जिन्‍होंने पूरी दुनिया को गणित के क्षेत्र में सबकुछ दिया। उसको क्‍या-क्‍या पेटेंट कर सकते हैं, सैंकड़ों, हजारों, लाखों नवाचार के साथ उसका अध्‍ययन करने की जरूरत है। उस वैदिक गणित को और चाहे विश्‍व सभ्‍यता के विषय रहे हों हम पीछे से उनको पढ़ पा रहे हैं जिन्‍हें नवाचार के साथ, अनुसंधान के साथ तथा पेंटेंट की प्रक्रिया के साथ आगे बढ़ाना होगा। हमारा देश हमेशा विश्‍वगुरू रहा है जिसके बारे में कहा गया है ‘एतद्देशप्रसूतस्‍य सकाशादग्रजन्‍मन:। स्‍वं स्‍वं चरित्रं शिक्षेरन पृथिव्‍यां सर्वमानवा:।।’ तक्षशिला, नालन्‍दा और विक्रमशिला  जैसे विश्‍वविद्यालयों को देने वाला यह देश जहां पूरी दुनिया आ करके ज्ञान, विज्ञान, अनुसंधान का अनुसरण करती हो, हमारे पेटेंट तो पूरी दुनिया में रहने ही चाहिए। हमसे लोगों को कुछ पाना चाहिए और इसलिए मैं यह समझता हूं कि चाहे कपित मुनि का सर्वजन दर्शन का विषय हो और चाहे उनकी प्रकृति के स्‍वयं तत्‍व के विवेचन का विषय रहा हो और चाहे कणाद ऋषि का वैशेषिक दर्शन हो या भौतिक विज्ञान की दिशा में उनका काम रहा हो हमको किसी से मांगने की जरूरत नहीं है बल्‍कि शोध अनुसंधान करके नवाचार को आगे बढ़ाने की जरूरत है। यह शल्‍य चिकित्‍सा का जनक भी भारत की धरती पर ही पैदा हुआ है। पूरी दुनिया सुश्रुत को समझती है। हमारे यहां इतना अधिक काम हुआ है लेकिन हमने पेटेंट नहीं किये हैं जिसे अब शोध और अनुसंधान के माध्‍यम से आगे बढ़ाना है। पहले की यदि बात करेंगे तो कितना कुछ है हमारे पास। ज्‍योतिष विज्ञान के क्षेत्र में हम शिखर पर थे। आज लोग हंसी उड़ाते हैं जब हम ज्‍योतिष विज्ञान की बात करते हैं। हंसी तो उड़ाते हैं लेकिन क्‍या कभी शोध और अनुसंधान के माध्‍यम से उसको उस सीमा तक आगे बढ़ाने की कोशिश हुई।  नागार्जुन के नाम से तो आप सभी लोग परिचित होंगे रसायन विज्ञान के आप सब वैज्ञानिक लोग बैठे हुए हैं। उनका सम्‍पूर्ण ज्ञान साहित्‍य भी आज हमारे पास पड़ा हुआ है, तब आप कैसे तर्क कर सकते हें। आर्यभट्ट के बारेमें भी मैंने बताया, पातंजलि के योगसूत्र के बारे में मैंने बताया लेकिन कब उस पर अनुसंधान हुआ कब उसमें नवाचार के साथ पेटेंट होने की बात आई। इसलिए मैं समझता हूं कि हमारे पास यदि पीछे मुड़ कर देखें तो बहुत अपार संपदा है। मैं आह्वान करना चाहूंगा अपने नौजवानों को, अपने छात्रोंको कि पूरा मैदान खाली है आपके लिए और दुनिया को बताने की जरूरत है। ऐसे समय में जबकि हमारी नई शिक्षा नीति आई है जिसमें हमने स्‍कूली शिक्षा से वोकेशनल स्‍ट्रीम के साथ इंटर्नशिप भी शुरू किया है।  मेरे देश के प्रधानमंत्री ने कहा कि हम लोकल से ही ग्‍लोबल होंगे और उसे अंतर्राष्‍ट्रीय स्‍तर पर लेकर जायेंगे। आज उस पर काम करने की जरूरत है। मुझे भरोसा है और पीछे के समय में आपने किया भी है और जो हमारे ज्ञान की संपदा है इसके लिए छात्रों ने स्‍टार्ट अप के लिए भी रणनीति बनाई है और रणनीति की दिशा में अब वो अपना काम भी कर रहे हैं। अभी जिस अभियान में आपने कहा है कि 10 हजार पेटेंट करेंगे, मैं गुप्‍ता जी को कहूंगा कि अभी जब चर्चा करते हैं कि कोई कॉलेज क्‍यों नहीं कर रहे तो उसका शुल्‍क खत्‍म कर दो तथा उसे प्रोत्‍साहन दो कि जो विश्‍वविद्यालय, जो कॉलेज इतना पेटेंट करेगा उसको और प्रोत्‍साहन देंगे और वैसे भी अब ‘नेशनल रिसर्च फाउंडेशन’ जो प्रधानमंत्री जी के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार की अध्‍यक्षता में निर्मित हुआ है। उसके द्वारा हम कोशिश कर रहे हैं कि पूरे देश के अंदर शोध और अनुसंधान का माहौल बनें। दुनिया के श्रेष्‍ठ विश्‍वविद्यालयों के साथ अनुसंधान कर रहे हैं। अभी तो दुनिया के एक हजार आसियान देशों के छात्र हमारे आईआईटी में शोध के लिए आ रहे हैं। अभी एआईसीटीई के चेयरमैन ने जब पिछली बार ‘युक्‍ति-2’ आयोजित किया था। जब आईआईटी के छात्रों ने शोध और अनुसंधान किया तो हमने सब एक पोर्टल पर लाकर के किया था। जब दुनिया में कोरोना की महामारी के संकट से दुनिया गुजर रही थी तब ऐसे अवसर पर मेरे भारत की धरती पर शोध और अनुसंधान करने वाले मेरे छात्र अध्यापकों की कोई कमी नहीं रही है और उस युक्ति पोर्टल का आप विजिट करेंगे तो आपको खुशी होगी। मैंने पूछा युक्ति-2 क्यों चाहिए तब हमारे एआईसीटीई के चेयरमैन ने कहा कि हजारों-हजार छात्रों के दिमाग में बहुत सारे आइडियाज हैं और युक्ति-2 का हम ऐसा प्लेटफॉर्म बनाएंगे जब पूरी दुनिया तथा देश के लोग विजिट करेंगे मुझे इस बात की खुशी है और मैं बधाई देना चाहता हूं और एआईसीटीई के चेयरमैन को कि उनकी अगुवाई में उनकी टीम ने बहुत अच्छा कार्य किया। आज वह बहुत तेजी से आपका पोर्टल अब बढ़ रहा है तथा लोग उसकी प्रशंसा कर रहे हैं तथा जो आत्मनिर्भर भारत है वह भी इसकी एक बड़ी आधारशिला बनेगा। मैं समझता हूं इसको कैसे करके और आगे तेजी से कैसे बढ़ा सकते हैं तथा एक रणनीति के तहत कैसे कर सकते हैं इस पर काम करने की जरूरत है मैं सोचता हूं देश को ग्लोबल इनोवेशन उद्यमिता और स्टार्ट अप का हाल कैसे करके हम लोग इसको सुनिश्चित कर सकते हैं इस पर भी एक रणनीति बनाने की जरूरत है और जो स्किल है क्योंकि हम कक्षा 6 से वोकेशनल स्ट्रीम के साथ इंटर्नशिप भी लाए हैं और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में दुनिया का पहला देश होंगे जो स्कूली शिक्षा से इसको शुरू करेंगे मैं यह समझता हूं कि यह बहुत अच्छा अवसर है और अब हम लोग सब जुनूनी तरीके से इस क्षेत्र में जुड़ेंगे तो निश्चित रूप में जिस तरीके से हमने स्टडी इन इंडिया के तहत एक और पूरी दुनिया के लोगों को एक ब्रांड बनाया है आज 50 हजार के करीब दुनिया के छात्रों ने हमारे यहां रजिस्ट्रेशन किया है और अब होड़ लग रही है हमने स्टडी इन इंडिया के साथ-साथ स्टे इन इंडिया भी कहा है क्योंकि जो छात्र बाहर जा रहे हैं हम उनको आश्वस्त करना चाहते हैं नई शिक्षा नीति के तहत हम दुनिया के शीर्ष सौ विश्वविद्यालय को भारत की धरती पर आमंत्रित करेंगे और हमारे भी विश्वविद्यालयों को दुनिया में जाने की इजाजत देंगे और निश्चित रूप में हम अपने संस्थानों को ऐसा परिवेश बनाएंगे वैसे भी हमारी संस्थाएं समृद्ध हैं ऐसा नहीं है कि हमारे संस्थानों में क्षमता नहीं है मैं आह्वान करना चाहता हूं अपने देश के नौजवानों को इस गलतफहमी को दूर करना चाहिए कि विदेशों में ही शिक्षा प्राप्त करके वह किसी ऊंचे स्थान पर पहुंच सकते हैं यदि सुंदर पिचाई हमारे आईआईटी खड़कपुर से जाकर दुनिया का नेतृत्व कर सकता है और मेरे जो आईआईटी इंजीनियरिंग कॉलेज और विश्वविद्यालय हैं उनकी जब मैं एक श्रंखला देखता हूं अपने पूर्व छात्रों की तो विश्व के शीर्ष संस्थाओं में लीडरशिप ले रहे हैंहिन्‍दुस्‍तान की धरती से पढ़ करके जा करके यह नौजवान उसकी लीडरशिप ले रहे हैं तो मैं उन छात्रों से और नौजवानों से भी आह्वान करना चाहूंगा कि मेरे देश का पैसा भी प्रतिवर्ष डेढ़ लाख करोड़ रूपये जाता है विदेशों में और आठ लाख छात्र विदेशों में पढ़ रहे हैं। मेरे देश का पैसा भी और प्रतिभा भी दोनों देश के काम नहीं आते हैं। पैसा इधर का लगता है और वो प्रतिभा दूसरे देशों को उठाने का काम करती हैं उनके आर्थिक सुदृढ़ता से लेकर काम करती है। अब देश करवट ले रहा है जो नया भारत, समृद्ध भारत, सक्षम भारत बन रहा है, वह 21वीं सदी का स्‍वर्णिम भारत हो रहा है और इसमें शोध और अनुसंधान के क्षेत्र में नवाचार के कदम तेजी से आगे बढ़ रहे हैं इसलिए मैंने अभय को कहा था कि वह तेजीसे इस दिशा में एक निश्‍चित अवधि के अंदर-अंदर कहां-कहां, क्‍या-क्‍या हो सकता है इस पर कार्य करें अब शोध और अनुसंधान के क्षेत्र में जहां नेशनल रिसर्च फाउंडेशन की हम स्‍थापना कर रहे हैं वहां नेशनल एजुकेशन टैक्‍नोलॉजी फोरम का गठन भी कर रहे हैं ताकि तकनीकी दृष्‍टि से अंतिम छोर तक उसका पूरा उपयोग कर सकें और इसको भी हम तेजी से आगे बढ़ाना चाहते हैं। मुझे भरोसा है कि हम विश्‍व स्‍तर पर अपने टैलेंट को भी बढ़ाएंगे और पेटेंट को भी बढ़ाएंगे। हम टैलेंट को ढूंढेंगे, उसको विकसित भी करेंगे, उसका विस्‍तार भी करेंगे और हम पेटेंट को भी विस्‍तार देंगे और  इसी के आधार पर हम रिफॉर्म करेंगे और परफॉर्म भी करेंगे। हमारे लिए चुनौती है लेकिन मैदान हमारे सामने पूरा मैदान खाली है। हम अनुसंधान और नवाचार दोनों को लेकर निश्‍चित रूप में आगे बढ़ेंगे ऐसा मेरा भरोसा हैं। मैं समझता हूं कि जितने भी उच्‍च संस्‍थाएं हैं उन सबको आगे बढ़कर इस दिशा में काम करना चाहिए और जो आज ‘कपिला’ का यहां पर शुभारम्‍भ हो रहा है मुझे भरोसा है कि ‘कपिला’ के माध्‍यम से हम देश को आत्‍मनिर्भर और मेरे देश के प्रधानमंत्री की वर्ष 2024 तक 5 ट्रिलियन डॉलर की आर्थिकी की उनकी जो संकल्‍प है उस रास्‍ते को भी हम पूरी दुनिया में आगे बढ़ा सकेंगे। समयबद्ध तरीके से सभी संस्‍थानों में चलाया जाएगा। यह अभियान पैंतालिस पचास हजार डिग्री कॉलेजों में जाए, एक हजार से भी अधिक महत्‍वपूर्ण और राष्‍ट्रीय महत्‍व की संस्‍थाओं तक जाए, एक हजार से भी अधिक विश्‍वविद्यालयों के अंदर जाए और इसके लिए समन्‍वय के साथ एक मिशन मोड में काम करेंगे तो निश्‍चित रूप में हम लोग इस दृष्‍टि से बहुत आगे जा सकते हैं। हमें एक मॉडल भी बनाना है ताकि विश्‍व उसका अनुसरण कर सके। जैसे मैंने कहा कि टैलेंट को पेटेंट तक पहुंचने का रास्‍ता तैयार करेंगे क्‍योंकि टैलेंट तो हमारे पास है लेकिन उसका रास्‍ता पेटेंट तक जाना है। जितने भी लोग हम यहां बैठे हुए हैं और जितनी भी संस्‍थाएं हैं उन्‍हें आपस में एक सेतु का काम करना है कि किस तरीके से जो कार्य हम कर लेते हैं पेटेंट तक की उसकी यात्रा सफलतम हो सके। मैं समझता हूं हम लोगों को कलाम साहब की इस भावना के साथ सलाम करने की आवश्‍यकता है कि हम जो नवाचार की उनकी कल्‍पना थी उसको हम साकार करने के लिए संकल्‍प लेंगे। आज शिक्षा मंत्रालय हर दिशा में चाहता है कि आगे बढ़ें, सब लोग मिलकर काम करेंगे तभी इस सफलता को हम पा सकते हैं और जो बिखरी हुई समस्‍याएं हैं हमारी उनके माध्‍यम का रास्‍ता तलाश सकते हैं। हमारा इतना बड़ा देश, 130 करोड़ लोगों का देश है, दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है जितनी बड़ी समस्‍याएं हैं उतने बड़े विजन भी हैं और छोटे बड़े अवसर भी हैं तो इन अवसरों को पकड़ने की जरूरत है। मुझे लगता है कि निश्चित रूप में जो हम बार-बार कहते हैं कि समाज और शोध एक दूसरे के पूरक हैं और हमें इन कड़ियों को जोड़ना है हम बार-बार कह रहे हैं कि भारत को हम ज्ञान की महाशक्ति बनाएंगे भारत आत्मनिर्भर बनेगा और 21वीं सदी का स्वर्णिम भारत होगा और जो मेक इन इंडिया डिजिटल इंडिया से होकर जो हमारा रास्ता जाता है उसको हम सशक्त कर सकते हैं अब स्टडी इन इंडिया के तहत एक अभियान चला है वह भी इसमें काम करेगा तो निश्चित रूप में राज्य और केंद्र सरकार के संयुक्त अभियान में एक यह जो बड़ा अभियान है यह राष्ट्र की उन्नति के शिखर का अभियान है क्योंकि कोई भी देश बिना नवाचार के बिना तथा पेटेंट के बिना कभी खड़ा नहीं हो सकता है मैं अपनी संस्थाओं को देखता हूं कि क्‍यूएस रैंकिंग में हमारी संस्थाएं कहां खड़ी है तो मुझे एक ही गड्ढा दिखाई दे रहा है और बहुत तेजी से अब उस गड्ढे को भी पाटना है अनुसंधान का पेटेंट का जिस दिन गड्ढा खत्म हो जाएगा और पैटेंट हम करना शुरू कर देंगे और ताकत के साथ करेंगे यदि हम मिशन मोड में आ गए तो आप देखेंगे कि एक ही साल में या 2 साल में आप किस शिखर पर पहुंच जाएंगे नई शिक्षा नीति बिल्कुल नीचे स्कूली शिक्षा लेकर के और उच्च शिक्षा तक हर क्षेत्र में आगे बढ़ाएगी मुझे लगता है जैसे आपने 1600 संस्थाओं को जोड़ा है आपने रजिस्ट्रेशन किए हैं और मेरे को बताया गया है कि 25000 कार्यक्रम नवाचार के माध्यम से हुए और 115 संस्थाओं को जो फाइव स्टार मिले हैं मैं उनको बधाई और शुभकामना देना चाहता हूं यह हमारी स्टार संस्थाएं हैं और यह इस काम को आगे बढ़ाएंगे और उनके सानिध्य में जो और संस्थाएं आगे बढ़ेगी यह भी एक बहुत अच्छा संकेत है कि हम बौद्धिक संपदा अभियान में कपिला को लेकर जाएंगे तो अपनी इस नहीं शिक्षा नीति का संदेश लेकर जाएंगे जो नेशनल भी है इंटरनेशनल भी है यह भारत केंद्रित मेरी नई शिक्षा नीति 2020 जिसको व्यापक तरीके से गांव से लेकर लोकसभा तक और ग्राम प्रधान से लेकर प्रधानमंत्री तक और शिक्षक से लेकर शिक्षाविदों तक छात्र से लेकर अध्यापक तक विशेषज्ञों से लेकर एनजीओ तक सभी क्षेत्रों से व्यापक परामर्श के बाद जो यह अमृत निकला है जिसको आज देश के 99% लोगों ने स्वीकार किया है राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 को दुनिया के तमाम देश लागू करने के लिए लगातार कोशिश कर रहे हैं हम लोगों से संपर्क एवं संवाद कर रहे हैं यह शिक्षा नीति मूल्य परक होगी भारत केंद्रित होगी और इसलिए पूरी दुनिया के शिखर पर पहुंचने कि इसमें ताकत है हम अपनी मातृभाषा से शुरू करेंगे और दुनिया के शिखर तक जाएंगे इससे लोगों में बहुत खुशी है ऐसे अवसर पर जबकि नई शिक्षा नीति का माहौल पूरे देश के अंदर है तब यह कपिला का शुभारंभ होना देश के लिए शुभ सूचक है गुप्ता जी जल्दी से जल्दी आप एक मीटिंग बुलाई है जिसमें राकेश रंजन प्रोफेसर अनिल सहस्त्रबुद्धे प्रोफेसर पूनिया जी जो इसको लीड कर रहे हैं जो इस क्षेत्र में आपके साथ जोड़ करके जिसमें आप आयुष के सचिव को बुला सकते हैं और एक टीम बना दीजिए और आप टारगेट दे दीजिए कि आगे 2 वर्ष के अंदर आप हिंदुस्तान की धरती पर इतना काम करेंगे तथा 24 घंटे को 48 घंटे में बदल कर दुनिया के लोगों को बताएंगे कि हम रात दिन काम करके दुनिया को अपना असली स्वरूप दिखा सकते हैं हमारी सब चीजें पेटेंट हो सकती है क्योंकि हमारे पास टैलेंट है टैलेंट और पेटेंट दोनों का समन्वय करना है मेरी शुभकामना आपके साथ है मेरा सौभाग्य है कि कलाम साहब के बहुत निकट रहने का मुझको अवसर मिला उनके विजन को मैं महसूस कर सकता हूं जब एक बार उन्होंने मुझसे कहा था कि आपके तो 1983 से ही देश के आकाशवाणी केंद्रों पर देशभक्ति के गीत आते हैं तो इन सबको एक साथ इकट्ठा क्यों नहीं कर सकते हो उनकी प्रेरणा से मैंने लगभग सौ सवा सौ देशभक्ति के गीतों का संग्रह किया जिसका लोकार्पण करते समय जिस तरीके से उन्होंने एक कविता को गुनगुनाया था देशभक्ति का जो सागर था पिछली बैठक में हमारे आईआईटी खड़कपुर ने उनके नाम पर एक अंतरराष्ट्रीय अतिथि गृह बनाया है तब मैंने उनको कहा कि देश भक्ति का उनके मन के अंदर क्या जुनून था एक अखबार बेचने वाला एक सामान्य बच्चा पूरी दुनिया में भारत का माथा ऊंचा करता हो और भारत रत्न कहला कर के देश की पीढ़ी को प्रेरित करता हो उनके लिए शब्द कम है वह एक छोटी सी कविता गुनगुनाते थे और उनको बहुत प्रिय लगती थी अभी है जंग जारी वेदना सोई नहीं है मनुष्यता होगी धरा पर संवेदना कोई नहीं है किया है बलिदान जीवन निर्मलता दो ही नहीं है और कह रहा हूं ए वतन तुझ से बड़ा कोई नहीं है और जब वह लास्ट की पंक्तियों को बोलते थे तो उनकी आंखों से आंसू निकलते हुए मैंने स्वयं अपने सामने देखे थे तो उस समय मेरे मन में आया था कि मैं कलाम साहब की अंदर की हलचल पर एवं उनके जीवन दर्शन पर मैं कुछ जरूर लिखूंगा उनके जीते जी तो नहीं लिख पाया लेकिन मैंने बाद में उनके एक वाक्य को आधार बनाकर सपने जो सोने ना दे यह पुस्तक लिखी थी और यह बहुत लोकप्रिय हुई उन्होंने कहा था कि सपने ऐसे बुनो जो तुमको चैन से ने बैठने दे सोने ही ना दें ऐसे सपने जब तक क्रियान्वित नहीं हो जाते आज उनकी स्मृति में यह पुस्तक 13 14 भाषाओं में है नौजवानों मैं आपसे अनुरोध करूंगा कि देशभक्त प्रकार प्रख्यात विज्ञानिक विचारक कलाम साहब के विचारों को अपने जीवन में धारण करें इसी के साथ में आप सभी को बहुत-बहुत बधाई देता हूं।

बहुत-बहुत धन्‍यवाद!

कार्यक्रम में गरिमामयी उपस्‍थिति:-

 

  1. डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’, माननीय शिक्षा मंत्री, भारत सरकार
  2. श्री संजय शामराव धोत्रे, माननीय शिक्षा राज्‍य मंत्री, भारत सरकार
  3. श्री अमित खरे, सचिव, उच्‍च शिक्षा, शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार
  4. श्री राकेश रंजन, अपर सचिव, शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार
  5. प्रो. अनिल सहस्‍त्रबुद्धे, अध्‍यक्ष, एआईसीटीई
  6. श्री ओ. पी. गुप्‍ता, कंट्रोलर जनरल, पैटेन्‍ट, डिजाईन एवं ट्रेडमार्क
  7. विभिन्‍न विश्‍वविद्यालयों के कुलपतिगण, अध्‍यापगण, प्राचार्यगण एवं अन्‍य उपस्‍थित जन।

 

ओडिशा, राजस्थान एवं हरियाणा में 4 केन्द्रीय विद्यालयों केभवनों का उद्घाटन

ओडिशा, राजस्थान एवं हरियाणा में 4 केन्द्रीय विद्यालयों केभवनों का उद्घाटन

 

दिनांक: 08 अक्टूबर, 2020

 

 

माननीय शिक्षा मंत्री, डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’

 

आज के इस बहुत महत्वपूर्ण उत्सव में ओडिशा के दो केन्द्रीय विद्यालय, राजस्थान के एक केन्द्रीय विद्यालय और हरियाणा के एक केन्द्रीय विद्यालय के उद्घाटन के अवसर पर केन्द्रीय मंत्री आदरणीय श्री कृष्णपाल सिंह गुर्जर जी, हमारे ओडिशा के उच्च शिक्षा मंत्री और जिनके पास और कई विभाग भी हैं श्री अरूण कुमार साहू जी, आदरणीय श्री पिनाकी मिश्रा जी पुरी से, पुरी से सत्यनारायण प्रधान जी विधायक जुड़े हैं, पुरी से ही वैजन्तीमाला मोहंती जी जुड़े हैं। ओडिशा के ही जो दूसरे केन्द्रीय विद्यालय हैं महुलदिया उससे हमारे सांसद विश्वेश्वर टुडु जी जुड़े हुए हैं और राज्यसभा की सांसद श्रीमती ममता मोहंता जुड़ी हुयी हैं वहां के विधायक भी जुड़े हैं। राजस्थान के जो हमारे केन्द्रीय विद्यालय हैं, उसमें हमारे यशस्वी सांसद श्री निहालचन्द जी भी जुड़े हुए हैं। श्रीगणेशराज बंसल, सभापति नगर पालिका परिषद्, हनुमानगढ़ वो भी जुड़े हुए हैं और केन्द्रीय विद्यालय फरीदाबाद, हरियाणा जहां कृष्णपाल गुर्जर जी जुड़े हुए हैं,वहीं सीमा तिरखा जो उस क्षेत्र की विधायक हैं वो भी जुड़ी हुयी हैं और मैं देख रहा हूं कि बहुत बड़ी संख्या में वहां के प्रधानाचार्य, अध्यापकगण,अभिभावकगण, जनप्रतिनिधिगण पूरे क्षेत्र से जुड़े हुए हैं और यहां पर स्कूली शिक्षा और साक्षरता विभाग की सचिव श्रीमती अनिता करवल और उनकी पूरी टीम के साथ केन्द्रीय विद्यालय संगठन की आयुक्त निधि पांडे जी और उनकी पूरी टीम इस उत्सव के अवसर पर जुड़ी हुई है। मैंसबसे पहले तो इन तीनों प्रदेश के प्रदेशवासियों को और इन चारों विद्यालयों के प्राचार्यों को और उसके स्टाफ को, वहां के अभिभावकों को, छात्रों को बहुत सारी शुभकामना देना चाहता हूं, बधाई देना चाहता हूं। मुझे बहुत खुशी है। मैं जब देख रहा था, बहुत लंबे समय से चिर प्रतीक्षित यह केन्द्रीय विद्यालय के भवन बनना जैसेकि आपसबको पता है कि हमारे जो केन्द्रीय विद्यालय हैं वो देश की शान हैं। यदि देश की  शैक्षणिकदृष्टि से  समीक्षा की जाए तो सबसे पहले केंद्रीय विद्यालय के छात्र-छात्रा प्रथमपंक्ति में खडे हो करके देश के गौरव कोबढ़ाते हैं। इन केन्द्रीय विद्यालयों ने बहुत सारे ऐसे छात्र-छात्राओं को सृजित किया है, तैयार किया है, बढाया है, बनाया है, तराशा है जो आज विभिन्न क्षेत्रों में देश की प्रगति की दिशा में बहुत अहम भूमिका  निभा रहे हैं। चाहे वो राजनैतिक क्षेत्र में हैं, प्रशासनिक क्षेत्र में हैं, वैज्ञानिक क्षेत्र में हैं, तकनीकी के क्षेत्र में विभिन्न क्षेत्रों से विभिन्न क्षेत्रों में जाकर के आज केन्द्रीय विद्यालयों के छात्र-छात्राएं देश का गौरव बढ़ा रहे हैं। यहां जो  लाखों अभिभावकहमारे साथ जुड़े हैं, मैं उनको भी बहुत बधाई देना चाहता हूं कि जब भी आपके मन में अपने बच्चों को केन्द्रीय विद्यालय में प्रवेश कराने की  बातया परिकल्पना आपके मन में रही होगी जब तक हो नहीं जाता तब तक यहमेरामिशनरहेगा। मैं समझ सकता हूंकि पिछले एक डेढ़ साल से मैं देख रहा हूं कि केन्द्रीय विद्यालय में प्रवेश के लिए किस सीमा तक का दबाव रहता है। एक प्रवेश के पीछे हजारों-हजारों आवेदन पत्र आते हैं ।उन हजारों-हजारों आवेदन पत्रों में सेएक छात्र चुनकर के आता है तो यह समझ सकते हैं कि केन्द्रीय विद्यालयों के प्रति छात्रों में, अभिभावकों में, लोगों में किस सीमा तक की अभिरुचि है और निश्चित रूप से जब आप अपने बच्चे को यहां पर प्रवेश दिलाते हैं तो आप गौरव महसूस करते हैं कि हां, उसमें अनुशासन भी है, उसमें संस्कार भी हैं, उसमें प्रतिभा भी है, उसमें संवेदनशीलता भी है और उसमें विजन भी है और विजन को क्रियान्वित करने का मिशन एवं गतिशीलता भीहै और तब आपको यह महसूस होता है कि हां,मेरा बच्चा अब मेरा भविष्य है,मेरे देश का भविष्य है और इसलिए मैंबहुत बधाई देना चाहता हूं।  केन्द्रीय विद्यालय नयागढ,उड़ीसा का भवन 2000-11 से प्रतीक्षित था कि कैसे करके यह भवन बने लेकिन आज वो क्षण आया है जिसमें दस एकड़ भूमि में कक्षा एक से 12वीं तकसंचालित हैं और 16.39 करोड़ की लागत से यह भवन जो आपने देखा बहुत खूबसूरत भवन बना हुआ है और जिसके अन्दर संगीत है, खेल का मैदान है, तमाम गतिविधियां हैं,प्रयोगशालाएं हैं। इन चारों विद्यालयों में आपने देखा होगा, छोटी-छोटी एक डेढ मिनट की फिल्म में आपने देखा होगा कि कितने खूबसूरतयह भवन बने हुए हैं। उड़ीसा केशिक्षा मंत्री जुड़े हुए हैं और इसीलिए अरुण भाई आपसे मेरीलगातार बात भी होती है,मैं जरूर चाहूंगा कि आपके नेतृत्व में लगभग जो यह 62 मेरे केन्द्रीय विद्यालय हैं जिसमें केवल बयालीस के लिए अभी भवन हैं और शेष अभी अस्थाई भवन मेंचल रहे हैं,हमको जमीन उपलब्ध नहीं होती है तो मैं जरूर चाहूंगा क्योंकि यह उड़ीसा के हैं। चाहे वो नयागढ़ हो और दूसरा उड़ीसा का जो महुलदिया,रंगपुर उड़ीसा का जो एक दूसरा विद्यालय है जो 2016-17 में स्वीकृत हुआ था और आठ एकड़ भूमि पर यह16.06करोड़ की लागत से  बना है। मैं समझता हूं कि बहुत अच्छी तरीके से इसी जिले में तीन केन्द्रीय विद्यालय संचालित हैं। नंबर एक का बड़ीपदा, बड़ीपदा मुहल बाड़ी है और नंबर तीन महुलदिया जिसकाइस समय उसका उद्घाटन हो रहा है और तीनों बहुत अच्छे विद्यालय हैं,अच्छे चल रहे हैं तो मैं आपसे निवेदन करूँगा कि उड़ीसा के यह जो शीर्षबीस हमारे केंद्रीय विद्यालय हैं जिनके भवन की अपेक्षा है, भवन के आभाव में इनका स्तर नीचे होता हैजिससे बहुतकठिनाइयां होती हैं तो यहउस प्रदेश की शान हैं,आपके बच्चे देश में,दुनिया में आपका सम्मान बढ़ाते हैं  तो मैं चाहूंगा मेरी ओर से पटनायक जी से भी विनम्र अनुरोध करिएगा और थोड़ा सा लीडलेकर के यह जो विद्यालय हैं, जिनको जमीन की जरूरत है जैसे ही आप जमीन उपलब्ध करा देंगे हम इन शेष विद्यालयों के भवन निर्माण के लिए धनराशि भी आपको आबंटित करेंगे तो मैं एक बारपुन:उड़ीसा के पूरे प्रदेशवासियों को और वहां के सभी जन प्रतिनिधियों को,वहां छात्रों अभिभावकों को मैं बहुत सारी बधाई और शुभकामनाएं इस अवसर पर दे रहा हूं हमारे साथसारे लोग जुड़े हुए हैं और निश्चित हीउड़ीसा के लिए यह गौरव के क्षण भी हैं जब उसके केन्द्रीय विद्यालय बहुतआगे जा रहे हैं।मैं समीक्षा कर रहा था तो मैंने देखा कि इन केंद्रीय विद्यालयों मेंबहुतअच्छे तरीके से बच्चे आगे बढ़ रहेहैं। मेरी शुभकामनाएंकि दोनों विद्यालयों के प्राचार्य और अध्यापकगण जो धुरी बन करके और ऐसे छात्र-छात्राओं को तैयार कर रहे हैं, अपना रात-दिन जुट करके जिनके चौबीस घंटे मन और मस्तिष्क में केवल छात्र और उसकी शिक्षा, उसका संस्कार,उसकी प्रगति घूमती रहती है वो उसीदुनिया में आप चौबीसों घंटे खोये रहते हैं और फिर अपने बच्चों को तैयार करते हैं तो मैंसमझ सकता हूं कि एक अध्यापक की जिम्मेदारी किस तरीके की होती है,कौनसी उसके सामने चुनौती होती है और क्योंकि मैं भी एक शिक्षक से लेकर यहां शिक्षा मंत्री के इस यात्रा पर में आया हूं तो मैं महसूस कर सकता हूं कि शिक्षा की कितनी महत्वपूर्ण भूमिका होती है।मैंसभीशिक्षकोंकोशुभकामना देना चाहता हूं।मुझे इस बात की भी खुशी है कि राजस्थान में भी 2014-15 से  हनुमानगढ़ का यहविद्यालय स्वीकृत थाजोआज यहां पर 9.24 एकड़ भूमि पर 16.26 करोड़ की लागत से आजइसका भवन  तैयार हैजोबहुत खूबसूरत भवन है और श्रीनिहालचंद जी आप तो बहुत चिन्तित भी रहते हैं और आप लगातार लोकसभा में मिलते भी रहते हैं। आपकी बड़ी चिंता रहती है कि किसी तरीके से उस क्षेत्र में शिक्षा का कैसे करके आधार बढ़े और आप समझ सकते हैं कि आप पर भी इन केंद्रीय विद्यालयों में प्रवेशकोलेकर कितना दबाव रहता है। मैं आपको बधाई देना चाहता हूँ और मैं समझता हूँ कि यहजो नये भवनहैं एक हजार से भी अधिक विद्यार्थी इससे लाभान्वित होंगे और उस क्षेत्र का प्रगति की दिशा में यह विद्यालयबहुतबड़ीआधारशिला बनेगा। मैं आपसे भी निवेदन करना चाहूंगा,मैं गहलोत साहब को भी निवेदन करूँगा कि राजस्थान में जो हमारे 59केंद्रीयविद्यालय संचालित हैं वेस्थाईभवनों में हैं,जबकि 77 कुल विद्यालय हैं तो 77 और 59आप समझ सकते हैं कि इन 17-18विद्यालयोंमें भवन अभी तक बने नहीं हैं। आपपूर्व केंद्रीय मंत्री भी हैं और जागरूक भी हैं तो मैं समझता हूँ कि  जितने शेष भवन हैं, उनकेलिएभीराजस्थान सरकारको आगे आकर के जमीन उपलब्ध करवानीचाहिएताकि उन शेष विद्यालयों मेंभवन-निर्माण हो सके और उन विद्यालयों कास्तरबढ़ा सकें और मैं चौथा जो केन्द्रीय विद्यालय नंबर 3 फरीदाबाद, हरियाणा का जिसका उद्घाटन हुआ है और यह5 एकड़ में 2003-04 सेसंचालितथा और आज 16-17 वर्षों के बाद  इसको अपना खूबसूरत भवन मिला है और जो 20.19करोड़ की लागत से बना है और एक हजार से भी अधिक विद्यार्थी इससे लाभान्वित होंगे। वैसे भी फरीदाबाद में फरीदाबाद नंबर एक, फरीदाबाद नंबर दो व फरीदाबाद नंबरतीन,यहतीन विद्यालय चल रहे हैं और मैं सभी अभिभावकों को बहुत बधाई देना चाहता हूं वहां के प्राचार्यों को,वहां के अध्यापकगण को भी बहुत सारी बधाई एवंशुभकामना देना चाहता हूं और मेरा भरोसा है कि यहफरीदाबाद, हरियाणा में जो विद्यालय का भव्य भवन बना है जिसमें सभी प्रकार की सुविधाएं हैं आज इन सुविधाओं को बहुत अच्छे से मेरा छात्र इसका उपयोग करेगा और अभिभावकों और अध्यापकों के बीच जो मेरा यहछात्र-छात्रा है, ऐसा निर्मित होगा ताकि इस पर गौरव महसूस कर सकेंगे। हरियाणा में मैं यहसमझता हूं और कृष्णपाल जी यदि मेरी आप बात सुन पा रहे होंगे और नहीं तो मैं कहूंगा अपने कमिश्नर से कि कभी आपसे भी व्यक्तिगत आकर के वो मुलाकात करें और मैं आपके मुख्यमंत्री जी को भी बात करूंगा लेकिन मुझे लगता है कि हरियाणा में अभी हमारे कुल चौंतीस विद्यालय स्वीकृत हैं जिसमें से मात्र अभी 25 का भवन है तो जो जो शेष विद्यालय हैं, उसमें  जमीन काअभाव है।जमीन नहीं मिलने के कारण हम उन भवनों का निर्माण नहीं कर पाए  हैं। मुझे भरोसा है कि आप जमीन भी उपलब्ध कराएंगे और कृष्णपाल जी विशेष करके आपसे अनुरोध करूंगा और मुख्यमंत्री जी से भी अनुरोध करूंगा कि आपके प्रदेश में संचालितकेंद्रीयविद्यालयोंकीमैंने समीक्षा भीकी है औरवहां पर हमारे जो केन्द्रीय विद्यालय चल रहे हैं,बहुत अच्छे चल रहे हैं आपके राज्य का बहुत सम्मान बढ़ाया है। मैं पीछे से सब देख रहा था कि एक से एक छात्र ने विभिन्न क्षेत्रों में चाहे खेल के क्षेत्र में हो, अब विभिन्न क्षेत्रों में, कला के क्षेत्र में हो और वैज्ञानिक क्षेत्र में हो,सामाजिक क्षेत्र में हो और विभिन्न क्षेत्रों में बहुत अच्छे तरीकेसे यहां पर बच्चे उभर कर के आए हैं और जो राष्ट्रीय स्तर पर छाए हैं और कुछ बच्चे विदेशों में भी हैं जो इन विद्यालयों से पढ़ करके गए हैं और बहुत अच्छेस्थानों को वो अर्जित कर रहे हैं तो मैं हरियाणा की जनता को हरियाणा की सरकारकेजन-प्रतिनिधियों को मैं अपनी ओर से बहुत बधाई देना चाहता हूं। सीमा जी, आपको विशेष करके मैं बधाई देता हूं क्योंकि आपको मैं जानता हूं,मैं आपके क्षेत्र में आया हूं और तभी आपने इस बात की चिंता की थी किहमारे एक-एक विद्यालय किस तरीके से ठीक हो सकते हैं ? मुझे मालूम है कि आज आपको खुशी हो रही होगी कि एक बहुत लंबे समय के बाद यहविद्यालय भवन,बहुत खूबसूरत भवन आपकेअभिभावकों को,आपके बच्चों को यहअर्पित हुआ है और इस क्षेत्र की यह शान है। इस क्षेत्र का यह मान और अभिमान भी होगा क्योंकि बच्चे जब निकलेंगे तो हमारा छात्र ही हमारा भविष्य, राष्ट्र का भविष्य है और मैं तो एक कदम आगे जाकर के कहना चाहता हूं,पूरे विश्व का भविष्य है। भारत का छात्र इसलिए भी कहना चाहता हूं कि इस देश को विश्वगुरु कहा गया है। हमेशा मैं इस धारणा का प्रबलसमर्थकरहा हूँ कियह देश विश्वगुरुहै और यहविश्वगुरु रहेगा क्योंकि कुछ चीजें तो ऐसी है मेरे हिन्दुस्तान कीधरती पर जो दुनिया में ढूंढने से भी नहीं मिल सकती हैं और इसलिए वो चीजेंहमारी थाती हैं। हमने हमेशा कहा ‘यूनान,मिश्र,रोमा सब मिट गए जहां से, अब तक मगर है बाकी नामोनिशां हमारा और कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी।’  इतिहास में कितने दुनिया के लोग,कितने देश तब पैदा हुए और मिट्टी में मिल गए, उनका इतिहास नहीं मिलता । हां,जरूर तमाम थपेड़े खाने खाने के बाद भी मेरा हिन्दुस्तान हमेशा जिंदा रहा है और आज भी पूरी दुनिया के सामने लीडरशिप ले रहा है। हमारे देश के ऐसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी अभी आपने देखा कि कुछ देर पहले हमने शपथ ली और यह कहा कि हम कोरोना को हराएंगे, हम यहसंकल्प ले रहे हैं, जनजागरण कर रहे हैं। जिस देश का प्रधानमंत्री स्वयं ही आगे आकर केहर कदम पर इन सारे अभियानों को अपने हाथ में ले करके और जनजागरण के लिए सड़कों पर उतर आए, लोगों के बीच चला जाए, बच्चों से बातचीत करे,देश की जनता से बात करे तो निश्चित रूप से उसदेशको आगे बढने से, प्रगति से कोई दुनिया की ताकत नहीं रोक सकती ।अभी जिस तरीके से नयी शिक्षा नीति हमारे देश के प्रधानमंत्री जी के संरक्षण में, उनके मार्गदर्शन में,उनके विजन को क्रियान्वितकरतेहुए 21वींसदीकेस्वर्णिमभारतकानिर्माणकियाजासके। 21वीं सदी के भारत की आधारशिला मेरीयहजो नयी शिक्षा नीति 2020 है और जिसकापूरे देश के लोगों ने बहुतअच्छा स्वागत किया है और उत्साह-उल्लास पूर्वक आज भी लोगों को लगता है कि हां, अब देश की अपनी शिक्षा नीति आई हैजिससेअब फिर भारत  विश्वगुरु के रूप में स्थापित होगा। जब तक्षशिला और नालंदा और विक्रमशिला जैसे विश्वविद्यालय थे और जब इस देश में एक उक्ति चरितार्थ थी-“एतद्देशप्रसूतस्य सकाशादग्रजन्मनः स्वं स्वं चरित्रं शिक्षेरन्पृथिव्यां सर्वमानवाः” पूरी दुनिया के लोगों ने तो हमसे आकर के सीखा है ।ज्ञान हो, विज्ञान हो, अनुसंधान हो,नवाचारहो कौन से क्षेत्रमें हम पीछे थे ? तब भी हम पीछे नहीं रहे। मैं तो सोचता हूं सुश्रुत, शल्य चिकित्सा का जनक भी इसी देश ने दिया है। आयुर्वेद का जनक भी इसी देश ने दिया है। योग के पीछे जहां पूरी दुनिया खड़ी हो गई,वह पातंजलि भी इसी धरती पर पैदा हुआ और उसका योगभी इसी धरती पर पैदा हुआ है और इसलिए चाहे आर्यभट्ट हो या भास्कराचार्य इसी धरती पर पैदा हुए। हमारे पास आज जो सारी थातियां हैं हमारे बच्चों को शोध और नवाचार के साथ अपनी उन संपत्तियों को, इन बिन्दुओं को, उन चीजों को, उन धरोहरों को आगे बढाने की जरूरत है । पूरी दुनिया हमारी ओर देख रही है और निश्चित रूप में जो हमारे देश के प्रधानमंत्री जिन्हें नये भारत के निर्माण के बात की है जो स्वच्छ भारत होगा,स्वस्थ भारत होगा,समर्थ भारत होगा, सशक्त भारत होगा, आत्मनिर्भर भारत होगा और श्रेष्ठ भारत होगा। इस श्रेष्ठ भारत की जो आधारशिला है वह मेरे छात्र हैं और अभिभावकों मैं आपको कहना चाहता हूं कि- पूत कपूत तो धन संचय क्यों और पूत सपूत तो धन संचय क्यों? यदि पुत्र,सुपुत्र निकल गया तो उसके लिए धन केसंचय की ज़रूरत नहीं है। वो पूरीदुनिया को आपके चरणों में लाकर के खड़ा कर देगा लेकिन यदि पुत्र, कुपुत्र निकल गया तो आपकी सारी संपदा को बीच चौराहे पर नीलाम कर देगा। इसलिए जरूरत है संस्कार चाहिए, इस पीढ़ी को खड़ा करने केऔर इसलिए मैं समझता हूं कि निश्चित रूप में आपकोआज खुशी हो रही होगी कि आज केन्द्रीय विद्यालयों के चार-चार भवनों का यहां पर शुभारंभ हो रहा है। मैं एक बार फिर आप सबको बहुतबधाई देना चाहता हूं, मैं शुभकामना देना चाहता हूं और विशेष करके केंद्रीय विद्यालय संगठन केपूरे परिवार को मैं बधाई देना चाहता हूं कि उन्होंने अपने स्तर को बना कर के रखा है ।किसीभी विजनकोवे  मिशन मोड में अपने इन विद्यालयों में संरक्षित कर रहे हैं और मैं पीछे के समय में देखता हूं, जहां भी जाता हूं मैं अपने केंद्रीय विद्यालय के बच्चों के बीच जरूर जाता हूं। मैं दक्षिण में रामेश्वरम जाता हूं तो बच्चों के बीच जाता हूं,चाहे उत्तर में जाता हूंया पश्चिम में जाता हूं तोमुझे पूरा देश एक नजर आता है । मैं बच्चों के बीच जब खड़ा होता हूं तो मुझे लगताहै यहमेरा हिंदुस्तान है जहां तमिल,तेलगू,मलयालम, कन्नड़,गुजराती,मराठी, बंगाली, उड़िया, हिन्दी,संस्कृतऔरउर्दूसहित तमाम हमारी22 भारतीय भाषाओं को बोलने वाले मेरे बच्चे एक दूसरे की संस्कृति के निकट भी आते हैं और ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ के तहत मैंने स्वयं इनके कार्यक्रमों को देखा है,अद्भुत है। अभी जो एक छात्राजिसकेबारेमें अभी कमिश्नर ने बताया थाकि यहहमारे केन्द्रीय विद्यालय की छात्रा थी, जिसने सबसे पहले प्रस्तुति दी। मैं उस छात्रा को बहुत बधाई देना चाहता हूं और उसके प्राचार्य को कहना चाहता हूं कि मेरी ओर से एक हजार एक रुपये उसको इनाम स्वरूप दें। ऐसी ही प्रतिभाएं हमकोआगेप्रत्येकक्षेत्रमेंउभारनीहैं।नई शिक्षा नीति तो हमारी यही कहती है पूरा मैदान खाली है, किसी पर कोई विषयथोपा नहीं जाएगा। जिसकी जोऊर्जाहैउसी क्षेत्र मेंहम तेजी से उसको आगे बढ़ाएंगे और इसलिए यह जो नईशिक्षा नीति है जोदुनिया में भारतकानामगौरवसेऔरऊंचाकरेगी।पिनाकी मिश्रा जी भीजुडे हुए हैं और वो जानते हैं उनका मैं वक्तव्य संसद में सुनता रहता हूं उनको भी इस बात के लेकर के खुशी होती होगी कि यह जो केंद्रीय विद्यालय हैं, वो हमारे बहुत ही खूबसूरत हैं, आगे बढ़ रहे हैं। भारत की उन भावनाओं का सम्मान करते हुए, उसकी गरिमा विश्व स्तर पर बढ़ातेहुएकेंद्रीयविद्यालयआगेबढ़रहेहैं। पिनाकीभाई आप भी खुश नज़र आए मुझे और आपको भी मैंअभिनंदन कर रहा हूं,एक बार फिर आपको भी शुभकामनाएंएवं बधाई! एक बारमैंपुन: अपने सभी छात्रों को,अभिभावकों को बधाई देना चाहता हूं और केंद्रीय विद्यालय संगठन की इस मुहिम को कि वो शिक्षा के माध्यम से राष्ट्र को न केवल आत्मनिर्भर भारत की ओर बढ़ाएंगे बल्कि विश्वगुरु की दिशा में मेरे छात्रों को शिक्षा के माध्यम से तैयार करके पूरे विश्व के शिखर पर पहुंचाएंगे। एक बार पुन:  अब सब लोगों को मेरी बधाई है, मेरी शुभकामनाएं।

 

बहुत-बहुत धन्यवाद!

 

कार्यक्रम में गरिमामयी उपस्थिति:

 

  1. डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’, माननीय शिक्षा मंत्री, भारत सरकार
  2. श्री कृष्णपाल गुर्जर, माननीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता राज्य मंत्री, भारत सरकार
  3. श्री अरूण कुमार साहू, उच्च शिक्षा मंत्री, ओडिशा सरकार
  4. श्री पिनाकी मिश्रा, संसद सदस्य (लोक सभा)
  5. श्री सत्यनारायण प्रधान, विधायक, पुरी
  6. श्री विश्वेश्वर टुडु, संसद सदस्य (लोक सभा)
  7. श्रीमती ममता मोहंता, संसद सदस्य (राज्य सभा)
  8. श्री निहालचन्द, संसद सदस्य (लोक सभा)
  9. श्री गणेश राज बंसल, सभापित, नगर पालिका परिषद, हनुमानगढ़

10.श्रीमतीनिधि पांडे, आयुक्त, केन्द्रीयविद्यालय संगठन ।

 

 

 

आईआईआईटीएससी चित्‍तूर में इलैक्‍ट्रानिक और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा वित्‍त पोषित प्रौद्योगिकी व्‍यवसाय इन्‍क्‍यूवेटर- ज्ञान सर्कल वेंचर्स का उद्घाटन

आईआईआईटीएससी चित्‍तूर में इलैक्‍ट्रानिक और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा वित्‍त पोषित प्रौद्योगिकी व्‍यवसाय इन्‍क्‍यूवेटर- ज्ञान सर्कल वेंचर्स का उद्घाटन

 

दिनांक: 08 अक्‍टूबर, 2020

 

 

माननीय शिक्षा मंत्री, डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’

 

ज्ञान सर्कल वेंचर के उद्घाटन के अवसर पर यहां उपस्‍थित आईआईआईटी श्रीसिटी बीओजी के अध्‍यक्ष श्री बाला एम. एस जी, हमारे उच्‍च शिक्षा के सचिव श्री अमित खरे जी,आईआईटी के सचिव श्री अजय प्रकाश साहनी जी, आंध्र प्रदेश के विशेष मुख्‍य सचिव श्री सतीश चन्‍द्रा जी, आईआईआईटी के निदेशक प्रो. जी. कन्‍नावरन जी, श्रीसिटी फाउंडेशन के अध्‍यक्ष श्री श्रीनवासाराजू जी,  सभी संकाय सदस्‍य, छात्र-छात्राएं! आंध्र प्रदेश के सभी अधिकारी और हमारे साथ जुड़े विभिन्‍न संस्‍थाओं के सभी उपस्‍थिति भाइयो और बहनों! मुझे आज इस सेन्‍टर का उद्घाटन करते हुए बहुत खुशी हो रही है और पीछे के समय में जब मैं आंध्र प्रदेश के प्रवास पर था तब श्रीसिटीकेबारे मुझे अवगत कराया गया था वो बहुत सारी आशाओं का संचार करता है,उससे मुझको एक नयी किरण महसूस होती है और आज उस अभियान को आपने आगे बढ़ाया है, इसके लिएमैं बहुत बधाई देना चाहता हूं।

आज मैं समझता हूं कि हिन्दुस्तान में आईआईआईटीपीपीपी मोड का यह बहुत खूबसूरत मॉडल है। पूरी दुनिया के लिए यह बहुत ही सुंदरतम है और देश के लिए भीबहुत सुंदरतम हैं। जबमैंट्रिपलआईटी की समीक्षा करता हूं तो मुझे बहुत खुशी मिलती है कि ऐसा पीपीपी मॉडल जिसमें केंद्र सरकार, राज्य सरकार और उद्योगों के लोग जुड़े सभी लोगों की सहभागिता है। इसमें 50 प्रतिशत का जो अंशदान है वो केंद्र सरकार करती है और 35 प्रतिशत का राज्य सरकार करती है और शेष15 प्रतिशत में उद्योग जगत की सहभागिता होती है। बहुत खूबसूरत तरीके से हमारे देश भर में पच्चीस आईआईआईटीसंचालित हो रहे हैं जिसमें केवल पांच सरकारी हैं और जो शेष 20 हैं वो पीपीपी मोड में हैं और बहुत अच्छा काम कर रहे हैं यदि इनकी अवस्थापना से लेकर के  इस विकास की यात्रा को मैं देखता हूं तो मुझे खुशी होती है और यह निश्चित रूप में नई आशा को बोते हैं, नई आशा का संचार करते हैं।

मैं बीओजी के चेयरमैन श्री बालाजी जिनको अभी हाल में ही हम लोगों ने नियुक्त किया है, मैं आपको शुभकामना देना चाहता हूं। आपने ज्वाइन करते ही यहबहुतअच्छा कार्यक्रम आयोजित किया है।मैं समझ सकता हूं कि आपमें क्या छटपटाहट है? मेरे निदेशक और आप दोनों मिल करके जो मंशा मेरे देश के प्रधान मंत्री जी की आत्मनिर्भर भारत और21वीं सदी के स्वर्णिम भारत की है जो समर्थ भारत होगा, जो सशक्‍त भारत होगा,जो आत्मनिर्भर भारत होगा और जो श्रेष्ठ होगा। ऐसा भारत जो मेक इन इंडिया, डिजिटल इंडिया, स्किल इंडिया, स्टार्ट अप इंडिया,स्टेंडर्ड इंडियाके रास्ते से होकरके विश्व की प्रतिस्पर्द्धा पर 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था की दिशा में 2024 तक खड़ा होगा ।

ऐसे भारत की उस यात्रा में जहां इस समय नई शिक्षा नीति उसका आधार स्तंभ बन कर के होगी । जिस नई शिक्षा नीति के बारे में आपने देखा है कि यह नेशनल भी होगी,यह इन्टरनेशनल भी होगी, यह इन्क्लूसिव भी होगी तो इम्पैक्टफुल भी होगी तो इसमें इक्विटी भी होगी, क्वालिटी एवंएक्सेस इसकी आधारशिला होगी। मैं समझता हूं कि जो यह नई शिक्षा नीति आई है वह भारत केंद्रित होगी लेकिन ज्ञान, विज्ञान, अनुसंधान, प्रौद्योगिकी और नवाचार की दिशा में पूरे विश्व की प्रतिस्पर्धा पर कहीं भी खड़ी होगी। ऐसे वक्त पर आपके संस्थान ने इस समय जोयह शुरुआत की है मैं समझता हूं यह बहुत अच्छी शुरुआत है औरमुझे मालूम है कि 2013 में श्री सिटी प्राइवेट लिमिटेड की भागीदारी के साथ हम लोगों ने यह संस्थान शुरू किया है और कंप्यूटर विज्ञान और अभियांत्रिकी और इलेक्ट्रॉनिक्स और संचार अभियान्त्रिकी में जो बी.टेक कार्यक्रमों के अतिरिक्त आपने जो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और मशीन लर्निंग मेंएम.टेक और पीएचडी के कार्यक्रम शुरू किये हैं इसकी भी मैं आपको बधाई देना चाहता हूँ। उभरते हुए क्षेत्रोंमें विशिष्‍ट इंजीनियर्स तैयार करने की एक अन्य नई पहल के साथ ही आपने कुछ और भी अभी पाठ्यक्रम शुरू किए हैं।

मैं समझता हूँ कि आज सूचना प्रौद्योगिकी के सन्‍दर्भ में जैसाअमित खरे जी ने कहा और साहनी जी ने भी जिस बात को कहा है और साहनी जी ने बहुत सारी चीजों को कहा है जो मेक इन इंडिया और डिजिटल इण्डिया और इनतीनों को जोड़तेहैं। बालाजी हमइन तीनों के बीच की कड़ी को आईआईआईटी औरआईआईटी जैसे हमारे उन संस्थानों के हाथों में देते हैं तो मैं यह समझता हूँ कि निश्चित रूप में जो आज यह शुरूआत हुई है यह बहुत गर्व की बात है और यह शुरुआत निश्चित रूप से अन्य अवसर प्रदान करेगी और नवाचार कोनिश्चित रूप में आगे बढ़ाएगी।

अभी हमारे आन्ध्र प्रदेश के मुख्य विशेष सचिव ने कहा है तो मैं उन्‍हें भरोसा दिलाता हूं कि आन्ध्र को हमने संभवत जितना दियाहै जैसेतीन-तीन तो केन्द्रीय विश्वविद्यालय मैंने आपके हाथों में सौंपे हैं, एक जनजाति विश्वविद्यालय दिया है और एक संस्कृत विश्वविद्यालय भीदिया हैजो आपका पहले डीम्ड था अब उसको केन्द्रीय विश्वविद्यालय बना दिया है। आपका आईआईटी, एनआईटी, आईसर सारा सब कुछ हमने आंध्र को दे दिया। यह देश के इतिहास में एक वर्ष में सबसे ज्यादा केन्‍द्र की योजनाओं का लाभ मिलने वाला कोई प्रदेश है तो वह आंध्र प्रदेश है तथा साथ ही हजारों करोड़ रुपए भी दे रहे हैं। आप अपने चीफ मिनिस्टर साहब को मेरी शुभकामना दीजिए और उनको कहिए कि हम चाहते हैं कि आन्ध्र प्रदेश तथा इस श्रीसिटी पर पूरा ध्यान केन्द्रित होना चाहिए। हम भी इस दिशा में इन सबके एक संयुक्‍त प्रबंधन बनाने के बारे में विचार कर रहे हैंताकिश्रीसिटी को एक विश्व के लेबल का संस्‍थान हम बना सकें। देश और दुनिया के लोग हमारे पास आकर के कुछ ले करके जाएं। अभी इसकी जरूरत है और अभी उसकी शुरूआत हो गई है।

हमारा देश अबकरवट ले रहा है और भारत अभी कहीं भी पीछे नहीं है। विज्ञान एवं अनुसंधान की दिशा में हम लोग आगे बढ़ रहे हैं। जब अभी कोरोना के इस संकट काल में भी मैंने देखा जब हमारे देश के प्रधानमंत्री जी ने कहा कि इस विषम परिस्थिति में मेरे नौजवान क्या कर सकते हैं? तो मेरे आईआईटी,आईआईआईटी और हमारे विश्वविद्यालय के लोग आगे आए। जब लोग अपने घरों में होंगे तब मेरे छात्रों, मेरे अध्यापकगणों ने प्रयोगशालाओंमें जुटकर के कई सस्ता वेंटीलेटर और कहीं वो मास्‍कतैयार कर रहे थे तो कहीं वो ड्रोन तैयार कर रहे थे जो स्‍वत: संचालित सभी कार्य करता हो तथा कहीं वे टेस्‍टिंग किट के निर्माण की दिशा में सक्रिय थे आपको याद होगा इससे पहले देश में ऐसी कुछ परिस्‍थितियांनहीं थी और हम बहुत कम टेस्ट कर पाए थे लेकिन हमारे आईआईटी के छात्रों ने ऐसे टेस्टिंग किट का निर्माण किया जो कम समय में और लगभग शत-प्रतिशत रिजल्ट देने की क्षमता  रखते हों और आज दुनिया को हम उसको दे रहे हैं।

कोरोना की महामारी से जो चुनौतियां उत्‍पन्‍न हुई थीं उन चुनौतियों को हमने अवसरों में तब्दील किया है और इसलिए मैं कह सकता हूं कि हमारे इन संस्थानों में बहुत ताकत है। 21वीं सदी में पूरे विश्व को भारत से बहुतउम्मीदें हैं। हम टैलेंट और टेक्नोलॉजी इन दोनों का समन्वय करेंगे। हमारे पास टैलेंट की कमी नहीं है। दुनिया की बड़ी से बड़ी कम्‍पनियों केसीईओ बन कर के हमारे यहां का छात्र उसको लीडरशिप देता है और इसीलिए जैसे अभी अमित खरे जी ने कहा है कि विद्यार्थियों में क्रिटिकल थिंकिंग और इनोवेटिव थिंकिंग के माध्यम से हमें शिक्षा को बढाना है और आज इसी की जरूरत है। पाश्‍चात्‍य विद्वान अनातोली फ्रांसिस ने एक जगह लिखा था कि शिक्षा का यह मतलब नहीं है कि आपने कितना कुछ याद किया हुआ है या यह नहीं है कि आप कितना जानते हैं। शिक्षा का मतलब है कि आप जो जानते हैं और जो नहीं जानते हैं उसमें अंतर कर पाते हैं कि नहीं कर पाते। उस दिन दोनों के बीच अंतर ही वास्‍तविक शिक्षा है।मैं यह समझता हूँ कि आज के समय में जानने और समझने तथाउसके बीच के अंतर को निश्चित रूप से हमें टेक्नोलॉजी के माध्यम से दूर करना है।

मैं समझता हूं कि कैसे करकेइसकी और संभावनाओं को तलाशना है। आज भौगोलिक और सामाजिक परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए सभी को गुणवत्तापूर्ण शिक्षण सामग्री कैसे हम प्रदानकर सकते हैं इसकी भी जरूरतहै।वैसे भी हिन्दुस्तान आगे 25 वर्षों तक यंग इंडिया रहने वाला है। पूरी दुनिया के सामने हिंदुस्तान यंग इंडिया के रूप में रह कर कुछ भी कर सकता है और उसके लिए यह बहुत अच्छा अवसर है। आज वैश्विक अर्थव्यवस्था के प्रमुख चालकों में से एक ‘ज्ञान’ अर्थव्यवस्था है यदि ‘ज्ञान’ अर्थव्यवस्था कोदेखंगे तो इस पर निर्भर करता है कि ज्ञान और उद्यमशीलता को पनपने के लिए उन्नत संस्थान  से ज्ञान के प्रसार के लिए दक्ष कार्यबल वाला शिक्षित समाज खड़ा हो रहा है कि नहीं।

तीसरा शैक्षिक विमर्शों, सिविल सोसाइटी और निजी संस्थानों के मध्य में एक अच्छे अनुसंधान और अन्वेषण की दिशा में हम आगे बढ़ रहे हैं कि नहीं और जो चौथा है वह यह है कि सूचना और संचार प्रौद्योगिकी एक समान पहुंच कैसे हो सकती है।यह हमारे सामने चुनौती है और इन चुनौती का जब हम मुकाबला करेंगे तो यह अवसर में तब्दील होगी। मुझे खुशी है कि ज्ञान सर्किल वेंचर्स जैसे केन्द्रों से युवाओं मेंउद्यमिता की भावना पैदा करने और उनको नवाचार के साथ आगे बढ़ने का एक बहुत सुखद अवसर मिलेगा।

भारत विश्व कीतेजी से उभरती अर्थव्यवस्था है। आपने देखा होगा कि यह संभवत दुनिया के इतिहास में पहला अवसर था जबभारत को 200 बिलियन से 3 ट्रिलियन डॉलर अर्थव्यवस्था बनाने में केवल 5 वर्ष लगे हैं और अब हमारे देश के प्रधानमंत्रीजी ने कहा है 2024 में 5 ट्रिलियनअर्थव्यवस्था की ओर जाना है। आत्मनिर्भर भारत का जो रास्ता है वह आपसे होकर गुजरता है और इसीलिए हमने जो यहपीपीईमॉडल रखा है जिसमें ट्रिपलआईटी का जो यह कार्यक्रम कर रहे हैं। अभी तक क्या था कि हमारे आईआईटीज जो पाठ्यक्रम चलाते थे, सिखाते थे, जो आगे बढना दिखाते थे वो और इन उद्योगों के बीच अंतर था। हमने इसके अंतर को पाटा है। उद्योगों को हम अपनी आईआईटीकेसाथ जोड़ करके पाठ्यक्रम तैयार कर रहे हैं ताकि उद्योगों को पाठ्यक्रम औरपाठ्यक्रम को उद्योगों की आवश्‍यकता समझ में आ सके इसीलिए इस नई शिक्षा नीति में हम वोकेशनल स्ट्रीम के साथ इंटर्नशिप के साथ लाये हैं।

अब हम कक्षा 6 से ही वोकेशनल ट्रेनिंग देंगे। शायद दुनिया का पहला देश होगा हिंदुस्तान जो स्कूली शिक्षा से आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस को पढ़ाएगा। एक समय था जब देश सीमाओं पर सुरक्षा के संकट से जूझ रहा था और उसीसमय देश आन्तरिक खाद्यान के संकट से भीजूझ रहा था। लालबहादुर शास्त्री जी जब देश के प्रधानमंत्री थे तब इन दोनों संकटों को एक साथ देश ने झेला और लालबहादुर शास्त्री जी ने ‘जय जवान जय किसान’ का नारा दिया तथा पूरा देश खड़ा हो गया दोनों संकटों का हमने मुकाबला किया। उसके बाद जब भारत रत्न अटल बिहारी बाजपेयी जी देश के प्रधानमंत्री बने तो अटल जी ने ‘जय विज्ञान’ का नारा दिया था और परमाणु परीक्षण करके पूरी दुनिया को बताया था कि हिंदुस्तान कमजोर नहीं है औरतीसरी महाशक्ति के रूप में उभरने का रास्ता दिखाया था और हमारेवर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने कहा है कि ‘जय जवान जय किसान’,‘जय विज्ञान’ के बाद अब ‘जय अनुसंधान’ की जरूरत है। हमारे पास जो कुछ भीहै उसे हमनवाचार एवं अनुसंधान के साथउच्चतम शिखर तक ले जाना चाहते हैं। पूरी दुनिया की प्रतिस्पर्धा पर आना चाहते हैं इसलिए अनुसंधान की दिशा में भी ऐसा नहीं है कि हम चुप हैं। हम ‘स्पार्क’ के तहत पूरी दुनिया के 127 शीर्ष विश्वविद्यालयों के साथ शोध कर रहे हैं।

अभी आसियान देशों केएकहजार बच्चे हमारे आईआईटी में शोध और अनुसंधान के लिए आ रहे हैं और अब हमनेशनल रिसर्च फाउंडेशन की स्थापना कर रहे हैं जो प्रधानमंत्री के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार की अध्यक्षता में हो रहा है। मैं जब-जब इन संस्थानों की समीक्षा करता हूं और विश्व स्‍तरपर उनकीप्रतिस्पर्धा का आकलन करता हूं तो मुझे लगता है शोध और अनुसंधान हमारी कमजोर कड़ी है।

हम पेटेंट की दिशा में अभी पीछे हैं। हम उस खाई को भी तेजी से पाटना चाहते हैं और नेशनल रिसर्च फाउंडेशन की दिशा में हम आगे बढ़ रहे हैं। वहीं टेक्नालोजी के क्षेत्र में नेशनलटेक्नोलॉजी फोरम का गठन करके हम तेजी से टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में भी‘वन नेशन वन डिजिटल प्लेटफार्म’ के माध्यम से इस दिशा में आगे बढ़ना चाहते हैं और यह नयी शिक्षा नीति इसी दिशा में एक सशक्त कदमहै। मुझे भरोसा है कि हम इस दिशा में आगे बढ़ेंगे और वैश्विक नवाचार तथा ग्लोबल ब्रांड के रूप में हम शानदार प्रदर्शन अभी भी कर रहे हैं।हमनेग्लोबल इनोवेशन इंडेक्स 2020 में चार पायदानों पर छलांग लगायी है औरविश्व बौद्धिक संपदा संगठन की वार्षिक रैंकिंग में सर्वोच्च 50 नवाचारी राष्ट्रों की सूची में अभी हम 48वें नंबर पर आये हैं तो इसका मतलब जो रैंकिंग में सुधार की लगातार गतिमयता को हम सार्वजनिक और निजी स्रोत संगठनों की सहभागिता से शानदार प्रदर्शन दुनिया में कर पा रहे हैं। इसीलिए मैं समझता हूं कि ठीक है लाखों समस्याएँ हमारे सामने हैं लेकिन उन समस्याओं के निदान के लिए लाखों नहीं करोड़ों मस्तिष्क हमारे पास हैं।

हम उन समस्याओं के समाधान की दिशा में तेजी से आगे बढ़ेंगे, ऐसा मेरा विश्वास है। आज इस कार्यक्रम मेंआईआईआईटी श्रीसिटी और शिक्षा मंत्रालय के नवाचार प्रकोष्ठ भाग ले रहे हैं और हमारा भी नवाचार प्रकोष्ठ जिसने अभी स्मार्ट इंडिया हैकाथन किया था और आपको मालूम है कि उसमें किस तरीके से हमारे बच्‍चे बड़ी तेजी से बढ़ कर के आगे आये थे तो मैं यह समझता हूँ कि जो आज का कार्यक्रम शुरू हो रहा है निश्चित रूप में ज्ञान, विज्ञान, अनुसंधान, कौशल विकास आदि सभी क्षेत्रों में हम इस नयी शिक्षा नीति के साथ इन चीजों को उभरते हुए आगे विश्वपटल पर हिंदुस्तान को पूरे विश्व में ज्ञान की महाशक्ति के रूप में हम स्थापित करने में सफल होंगे। हम विश्वस्तरीय कंटेंट से लेकर के पेटेंट तक रिफॉर्मभी करेंगे, ट्रांसफॉर्मभी करेंगे और परफॉर्म भी करेंगे तथा निश्चित रूप में हम हर क्षेत्र में आगे बढ़ेंगे और इसीलिए मैं एक बार जो आज यहबहुतसुखद और बहुत अच्छी जो एक नई शुरुआत आपनेकी है उसके लिए आपको बधाई देता हूं और मैं साहनी जी से कहना चाहूंगा कि मैदान आपके लिए खाली है। मैं अमित जी से भी कहना चाहूंगा आप दोनों लोग मिल करके कुछ भी कर सकते हैं। मेरे आईआईआईटी, मेरे आईआईटी, मेरे एनआईटी,मेरे आईसर तथाहमारे विश्वविद्यालय पूरी ताकत के साथ सामने खड़े हैं। मैदान भी खाली है अब तो दौड़ने की ज़रूरत है और नवाचार के साथ, नए अनुसंधान के साथ, नई तकनीकीके साथ, नए विचारों के साथ और जो आत्मनिर्भर भारत का एक सूत्र हमारे देश के प्रधानमंत्री जी ने दिया है हमें उस रास्‍ते पर आगे बढ़ने की आवश्‍यकता है।हमने आज शुरूआत की है जोन केवल आन्ध्र प्रदेश को सशक्त करेगी बल्कि मेरे देश को भी सशक्‍त करेगी और देश में इसकापरिवेशभी बनेगा।

पूरी दुनिया के लोग तो हिंदुस्तान में पहले भी आते थे।अभी हमारे बीओजी के चेयरमैन ने भगवद् गीता के कई उदाहरण दिए और मैं कहना चाहता हूँ कि इस देश के बारे में एक उक्ति है ‘एतद्देशप्रसूतस्य सकाशादग्रजन्मनः स्वं स्वं चरित्रं शिक्षेरन्पृथिव्यां सर्वमानवाः’ सारी दुनिया के लोग हमारे यहाँ आकर के सीखते थे। तक्षशिला, नालंदा, विक्रमशिला जैसे विश्वविद्यालय हमारे पास थे जो ज्ञान, विज्ञान, अनुसंधान के शिखर पर थेशल्‍य चिकित्सा का जनक सुश्रुत,भास्कराचार्य जैसा वैज्ञानिक,योग के आचार्य पतंजलि से लेकर नागार्जुन तथा आर्यभट्ट जैसे विद्वान हमारी ही धरती  पर पैदा हुए हैं इसलिए  ज्ञान और विज्ञान की पराकाष्‍ठा पर हम रहे हैं।

पूरी दुनिया इस बात को जानती है कि दुनिया में ज्ञान और विज्ञान का कोई खजाना था तो हिन्दुस्तान था। वह मेरा हिन्दुस्तान इस समय करवट ले रहा है और निश्चितरूप से वो फिर विश्वगुरु के रूप में आगे बढ़ेगा और इसकी आधारशिला में हम लोग साक्षीबन करके काम करेंगे। मैं एक बार फिर आपको शुभकामनाएं देता हूं और बधाई देता हूं।

 

बहुत-बहुत धन्‍यवाद!

 

कार्यक्रम में गरिमामयी उपस्‍थिति:-

 

  1. डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक, माननीय शिक्षा मंत्री, भारत सरकार
  2. श्री अमित खरे, सचिव, उच्‍चतर शिक्षा, शिक्षा मंत्रालय
  3. श्री अजय प्रकाश साहनी, सचिव, आईआईटी
  4. श्री सतीश चन्‍द्रा, विशेष मुख्‍य सचिव, आंध्र प्रदेश सरकार
  5. श्री बाला एम.एस, अध्‍यक्ष बीओजी, आईआईआईटी श्रीसिटी, आंध्र प्रदेश
  6. प्रो. जी. कन्‍नावरन, निदेशक, आईआईआईटी श्रीसिटी, आंध्र प्रदेश
  7. श्री श्रीनिवासाराजु, अध्‍यक्ष, श्रीसिटी फाउंडेशन