Author: nishankji-user

शिक्षा-संवाद: भारत को वैश्‍विक ज्ञान महाशक्‍ति के रूप में स्‍थापित करना

 

दिनांक: 27 अगस्‍त, 2020

 

 

माननीय शिक्षा मंत्री,डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’

 

आज के इस महत्‍वपूर्ण विषय पर आयोजित बेवीनार में जुड़े हुए सभी विद्वानों का मैं हार्दिक स्‍वागत एवं अभिनंदन करता हूं। पीछे के समय में जब सतनाम जी मुझसे मिलने के लिए आए थे तो उनसे काफी चर्चा हुई और आप सब लोग आज यहां पर एकत्रित हुए हैं।मैंसबसे पहले तो आप सबके अभिनंदन के लिए मैं आपके बीच आया हूं,मुझेखुशी है कि आज यह संस्थाएं मिलकर के अपने देश के भविष्य को सुधारने, संवारने और उसकी उत्कृष्टता बढाने के लिए एकजुट हुई हैं। यह भी बहुत अच्छा परिवेश है और मैंने जितना सुना है सब लोगों को मुझे बेहद खुशी होती है। पीएसआई और जीसीए  दोनों ने मिलकर के एक संयुक्‍त प्रयास का जो निर्णय लिया है और जो चंडीगढ़ में जोआस-पास ये दोनों विद्यालय हैं। मैं सोचता हूं कि इनकी दोनों की ताकत मिलकर दोनों संस्थाओं के समन्वित प्रयास से बहुतबड़ा-बड़ा काम हो सकता है और मुझे इस बात की बेहद खुशी है। आज इसबहुत ही महत्वपूर्ण कार्यक्रम में आज हजारोंशिक्षाविद्जुड़ेहुए हैं। यह हमारा सौभाग्य है कि सरदार सतनाम सिंह संधू जी कुलाधिपति चंडीगढ़ विश्वविद्यालय, सरदार जगजीत सिंह जी अध्यक्ष जेसीए,श्रीअशोक मित्तल जी कुलाधिपति,लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी,डॉक्टर एच. चतुर्वेदी जी,निदेशक विमटैक, विश्वनाथन जी भी इस आयोजन से जुड़े हैं। मुझे लगता है वीआईटी को तो वैसे भी हमने आईओई में रखा हुआ है। जो संस्थापक और अध्‍यक्ष प्रशांत जी हैं, उनकोबहुत अच्‍छे से मैं जानता हूं। मुझे लगता है किमेरे सहयोगी भी जो शिक्षा मंत्री राज्य हैं संजय जी भी हमसे जुड़े हुए हैं। मुझे अच्छा लगा कि आपलोग केवल चिंता ही नहीं कर रह हैं, चर्चाएँ नहीं कर रहे हैं, बल्कि उसके क्रियान्वयन की भी दिशा में आगे बढ़ने का आपका सबका मन है।क्यों न हो, क्योंकि हम सब शिक्षा से जुड़े आम मन में हर व्यक्ति को छटपटाहट होती है, उसका लक्ष्य होता है, जीवन में कहीं पहुँचने का कुछ करने का और यदि उसको कहीं पहुँचना है, कुछ करना है तो उसका रास्ता भी वह तय करता है और फिर उन चुनौती भरे रास्तों से होकर अपने शिखर को चूमने की कोशिश करता है। मैं समझता हूं कि सबसे पहली बात तो यह है कि जितने भी लोग मुझसे जुड़े हैं उनका अभिनंदन करता हूं क्योंकि शिक्षा एक ऐसा क्षेत्र है जो किसी भी व्यक्ति का, किसी परिवार का, किसी समाज का, किसी राष्ट्र की धुरी होता है। शिक्षा नहीं है तो कुछ भी नहीं है। इसलिए जो शिक्षा है वह अच्छे मानव के स्वरूप में उसको हष्‍ट-पुष्ट रख करके उसको गतिशील रखती है। उसकीजो रीढ की हड्डी है उससे तमाम धमनियां जुड़ीहैं, हड्डिया जुड़ी हैं, लेकिन उस ढाँचे को ताकत के साथ खड़े रखने का काम शिक्षा करती है। यदि उस ढ़ाचे को खड़ा रखने वाली रीढ़ की हड्डी जब कहीं टूटती है तो सारे शरीर का अस्‍तित्‍वखतरे में आता है और इसीलिए जब जब भी शिक्षा पर चोट होती है जब जब भी शिक्षा अपने रास्ते से विमुख होती है, किसी व्‍यक्‍ति की,संस्था की,किसी राष्ट्र की हो तब तब प्रकृति से विकृति कीओर जाता है और विकृति हमेशा विनाश का कारण होती है। भिन्‍न-भिन्‍न कारणों से भिन्‍न-भिन्‍नसमय पर और भिन्‍न-भिन्‍नपरिस्थितियों में तो मैं यह समझता हूं कि सबसे अच्छी बात तो यह है कि हम सब लोग किसी अच्छे मन के साथ, अच्छे विजन के लिए, अब अच्छे मिशन के साथ हम लोग सब एकजुट हुए हैं,यहांपर एकत्रित हुए हैं तो में सबसे पहले तो आप सबका बहुत आभार प्रकट कर रहा हूं,तमाम संस्थाएं जुड़ी हैं, विश्वविद्यालय जुड़े हैं, कॉलेज से जुड़े हैं। जो नई शिक्षा नीति आई है उसके संदर्भ में यह बात सही है कि मुझे लगता है कि दुनिया में शायद ही किसी नीति पर इतना बड़ा व्यापक परामर्श हुआ हेागा। यदि दुनिया के सबसे बड़े परामर्श वाली यह नीति हमारे हाथों में आई है तो अब उसकी ताकत भी समझ आएगी। क्योंकि यह उन चंद लोगों के द्वारा बैठ करके बनाई गई शिक्षा नीति नहीं है। यह इस देश के गांव से ले के ग्रामप्रधान से ले करके और प्रधानमंत्री जी तक एक-एक शब्द विचार विमर्श के बाद यह पैदा हुई शिक्षा नीति है जिसमें इस देश के ढाई लाख ग्राम समितियां भी हैं तो इस देश के एक हजार से अधिक विश्वविद्यालयों के कुलपति भी हैं, पैंतालीस हजार से अधिक डिग्री कॉलेजों के प्रिंसिपल भी हैं, पंद्रह लाख से अधिक स्कूलों के प्राध्यापक अध्यापक भी हैं और यदि कुलअध्यापकों को देखा जाए तो आज एक करोड़ नौ लाख से भी अधिक अध्यापकों शिक्षकों और शिक्षाविदों का इसमें परामर्श जुड़ा हुआ है और जो तैतीस करोड़ छात्र-छात्राएं इस देश में जो अमेरिका की जनसंख्या से भी ज्यादा हैं, इनका फलक है उन तीस करोड़ छात्रों से भी संवाद और उनके अभिभावकों से भी सीधे संवाद से निकली यह शिक्षा नीतिहै। इतना ही नहीं फिर भी यह कहा गया है कि यदि किसी कोने पर कोई कोर-कसर वैज्ञानिक, शिक्षाविद्, विचारक,एनजीओ, राजनैतिक लोग, सामाजिक क्षेत्र के लोग यदि किसी के मन में किसी कोने पर कोई-किंतु परंतु रहे हैं तो उसके बाद इस पॉलिसी को हमने पब्लिक डोमेन में डाला और इसे पब्लिक डोमेन में डालने के बाद छह महीने तक लगातार हम सोशलमीडिया के माध्यम से, इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से, तथा प्रिन्ट मीडिया के माध्यम से और अपने संवादों के माध्यम से सबसे अनुरोध करते रहे कि देश की आजादी के बाद भारत की अपनी शिक्षा नीति आ रही है यदि किसी के मन में कोई और अच्छा सुझाव हो सकता है अपने देश की शिक्षा नीति के लिए तो उसको सुझाव जरूर देना चाहिए। सवा दो लाख से भी अधिक उसमें भी सुझाव आये। एक-एक सुझाव का दो-दो सचिवालयबना करके उच्च शिक्षा का अलग और स्कूली शिक्षा का अलग सचिवालय बना कर एक-एक सुझाव का विश्‍लेषण करने के बाद, मंथन करने के बाद,अमृत के रूप में यहनई शिक्षा नीति आयी है। मुझे यह बात कहते हुए बहुत खुशी है कि पूरे देश ने इसकी खूबसूरती को स्वीकारा है, उत्सव मनाया है, सभी लोगों ने इसको बहुत अच्छा माना है, इसका स्वागत किया है और यदि उसकी स्वीकार्यता हुई है तो आप स्वीकार्यता से फिर सहभागिता की और अब आगे बढ रही है।उससहभागिता का पहला कदम आप सब लोग मिलकर कर रहे हैं और आपकी जो चिन्ता है हां, हमने नीति में भी सबको साथ लेकर काम किया । हमने हर उस अच्छी चीज को कस्तूरीरंगन जी की अध्यक्षता मेंजो एक बहुत बड़े विचारक भी हैंतथावैज्ञानिकहैं। पद्म श्री, पद्मभूषण, पद्मविभूषण और तमाम देश और दुनिया के उनको सम्मान मिले  हैंऔर बहुत ही संवेदनशील हैं उनके मार्गदर्शन में जो ऐसी शिक्षा नीति बनी है।जहांतक भी हमारा फैलाव हो सकता है, जिस सीमा तक भी अच्छाई को हम अपने में समाहित कर सकते हैं अपने विजनमेंडाल करके दुनिया के शिखर पर पहुँचने का रास्ता तय कर सकते हैं, वह सब कुछ इसमें डालने की हमने कोशिश की है। इसलिए आपने भी कहा कि यदि शुरूआती शिक्षा से आपने मातृभाषा की जो बात की है वो मातृ भाषाजो बच्चा बोलता है, जो उसकीअपनी क्षेत्रीय भाषा है। इसके दो पक्ष हैं एक तो बच्चाजो अपनी भाषा में अभिव्यक्ति कर सकता है वो दूसरीसीखीहुई भाषा मेंनहीं कर सकता और तीन वर्षों से हमारी कमेटी ने भी जो कहा और वैज्ञानिकों ने भी और विशेषज्ञों ने भी जिस बात को कहा कि 3 वर्ष से 6 वर्ष तक के बच्चे को जो मस्तिष्क का विकास है वो 85 प्रतिशत तक होता है तो जो हमारी धरोहर है, जो हमारा भविष्य है, हम उसको शुरू से ही पकड़ना चाहते हैं, उसको आगे बढ़ाना चाहते हैं उसकी उन सभी क्षमताओंका जो उसके अंदर सृजनकी शक्तियां समाई हुई हैं उसको ख़ूबसूरती से खेल-खेल के माध्यम से और उसकी उसी की भाषा में आगे कैसे करके उभारते हैं। यहांसेइस नई शिक्षा नीति की यात्रा शुरू होती है और आप जाती है जोअंतर्राष्‍ट्रीयस्तर की प्रतिस्पर्धा में शिखर को चूमेगी। चाहे ज्ञान हो और विज्ञान हो और अनुसंधान हो, प्रौद्योगिकी हो और चाहे वो नवाचार के साथ श्रेष्ठता को प्राप्त करने की विश्व में यह है इसकी यात्रा। कुछ लोगों के मन में था कि जैसेआपने अभी कहा कि क्या शुरू से हीदुनिया में अंग्रेजी में ही जाना है? तो मैंने पूछा कि मातृभाषा में पढ़ाने वालाफ्रांस वो पीछे है? मातृभाषा में ही पढ़ाने वाला जो जापान है, वो क्या पीछे है? मातृभाषा में ही पढ़ाने वाला अमेरिका क्या वो पीछे है? मातृभाषा में ही पढ़ाने वाला इजराइल क्‍या वो पीछे है?यदि टॉप ट्वंटी को देखेंगे जो विकसित देश हैं। वेअपनी मातृभाषा में पढ़ाई कर रहे हैं क्योंकि उनको मालूम है कि अपनी चीज पर ही वो छलांग मार सकते हैं और इसीलिए यूनेस्को ने भी कहाथा  कि बच्चे की प्रारंभिक भाषा,उसकी मातृभाषा में ही उसका विकास हो सकता है और उसमें भी अंग्रेजी का कोई विरोध नहीं है। लेकिन हां, मेरे देश की भारतीय भाषाओं काइसमेंआग्रह है। मेरे देश की 22 भारतीय भाषाएं हैं। वो तमिल, तेलुगु, मलयालम, कन्नड़, गुजराती, मराठी, बंगाली, पंजाबी, हिन्दी औरउड़ियाहै । हमारी खूबसूरती हैंयह22 भारतीय भाषाएंजो हमको संविधान के अनुच्छेद 8 में मिलती है। इन 22 भारतीय भाषाओं के सशक्तिकरण की हमारी बात है, कौन देश का ऐसा व्यक्ति होगा जो अपनी भारतीय भाषाओं का सम्मान नहीं करना चाहता है। आखिर क्यों? हां, हम पूरी दुनिया के फलक पर जाएं किसी भाषा का विरोध नहीं है। कभी भी कोई भाषा से कोई दुराग्रह नहीं है। किसी पर कोई भाषाथोपी नहीं जाएगी। सबको स्वाधीनता है लेकिन आप कहें कि दो ही भाषा चाहिए, तीन ही भाषा चाहिए,  छात्र को स्वतंत्रता देनी चाहिए। कितनीभाषाएं सीख सकता है, सीखो ना। जितनी वह भाषाएं सीख सकता है, उसकी स्वाधीनता है सीखसकता है उसको क्यों रोके उसके लिए आगे बढने के लिए बाधा क्यों बनेंगें हम। इसलिए जो मातृभाषा मेंकोई राज्य आगे बढ़ाना चाहते हैं, उसको आगे तक बढ़ाएं। सभी राज्यों को इसकी छूट है और बहुत सारे राज्यों ने यह किया भी है क्योंकि उस भाषा का जिंदा रहना भी बहुत जरूरी है,उसकी जड़ें हैं और वो तभी जिन्दा रह सकती जब वो अपने बच्चों को जब-जब बचपन से ही उसकी मातृभाषा में नहीं सीखेगा तब मातृभाषा जिन्‍दारहेगी कहां? इसलिए बहुतसोच-समझ करके इस बात को रखा गया है। मुझे खुशी है कि पूरे देश ने इसको बहुत अच्छे से स्वीकारा है और इसे उत्सव के रुप में मनाया है। अपनी जड़ों पर खड़े हो करके आसमान को छूने की तमन्ना चाहिए क्‍योंकि जड़ों से कटा हुआ इन्सानजड़ों से कटाहुआराष्ट्र कटी हुई पतंग की तरह होता है, जो आसमान में उड़ तो रहा है लेकिन वो किस गर्त में गिरेगा उसको भी पता नहीं है और इसीलिए इसकी खूबसूरती है कि यह नीतिभारत केन्द्रित है। हम अपने जीवन मूल्‍यों के आधार पर पूरी दुनिया में विश्वगुरु रहे हैं। हमारी खूबसूरती हैहममानवीय मूल्यों के विश्‍वके संवाहक रहे हैं। हमने सम्‍पूर्ण विश्‍व केअपना परिवार माना है। एक ओर हम कहते हैं ‘ अयं निज: परो वेति गणना लघु चेतसाम्। उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्‍बकम्।। पूरी वसुधा को अपना कुटुम्‍बमानने वाला हिन्दुस्तान ही हो सकता है।हमारी पूरे विश्व के मानवतावादी कल्याण की सर्वोच्च भावना है, जिसके कारण हमें विश्व गुरु के रूप में लोग स्वीकारते हैं, महसूस करते हैं। ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामया’- इस दुनिया का कोई भी प्राणी यदि दु:खी है तो मैं सुख का अहसास नहीं कर सकता। इसका मतलब उसके दुख को दूर करने के लिए किसी भी पराकाष्ठा तक जा सकता हैऔर तभी मैं खुश हो सकता हूं। जब दूसरे के दु:ख को दूर करूंगा।यही हमारा मूल है, यही मेरा आधार है, यही मेरा चिंतन है। हम अपने चिंतन को कैसे छोड़ सकते हैं। जिस चिंतन ने पूरी दुनिया में हमको भविष्य के शिखर पर पहुंचाया है। इसीलिए यह जो नयी शिक्षा नीति है वो अपनी जमीन पर खड़े होकर के ज्ञान, विज्ञान, अनुसंधान,प्रौद्योगिकी,नवाचार के साथ आगे बढ़ाएगी। हम अपने अतीत को वर्तमान के साथ जोड़ेंगे क्योंकि हम अपने अतीत को कैसे भूल सकते हैं। हम उस अतीत को कैसे भूल जाएंगे जिसमेंसुश्रुत,शल्य चिकित्सा का जनक इस भारत-भूमिपर पैदा हुआ हम उस चरकको कैसे भूल जाएंगे जो आयुर्वेद का जनक है। आज आयुर्वेद के पीछेपूरी दुनिया आकर के खड़ी हो गई। कैसे भूल जाएंगे वो तो हमारी संपत्ति है । वही हमारी थाती है। हम कैसे भूल जाएंगे आर्यभट्ट को, वह आर्यभट जिसने दुनिया के लिए शून्‍य का आविष्‍कार किया। हम कैसे भूल जाएंगे उन श्रेष्ठ वैज्ञानिकों को, भास्कराचार्य को कैसे भूल जाएंगे, आचार्य कणाद को जिसने परमाणु के बारे में बतायाहो, कैसे भूल सकते हैं। पजंजलि के योग के पीछे पूरी दुनिया अपने को बचाने के लिए इकट्ठा हो गई हो,हमप्रति वर्ष योग दिवस मनाते हैं। हमारे पास जो ज्ञान का भंडार है हमारे पास वेद, पुराण, उपनिषद जैसीबहुतसारी चीजें हैं जिनको हम उस अतीत कोवर्तमान के साथ जोड़ करके उसमें ज्ञान, विज्ञान,अनुसंधान के साथ आगे बढ़ाएंगे।हमारे देश के प्रधानमंत्रीजी नेअनुसंधानकी बात की है और उनका बहुत सीधा सपाट मन है। उन्होंने कहा मुझे ऐसे नए भारत की जरूरत है, जो स्‍वच्‍छ भारत हो, स्वच्छता मतलब की गंदगी नहीं। स्वच्छता मतलब पवित्रता मन की भी, पवित्रता जैसे विचारों में पवित्रता चाहिए, स्वच्छता चाहिए सब चीजों में पारदर्शिता चाहिए तो स्वच्छ भारत चाहिए, स्वस्थ भारत चाहिए। वह व्यक्ति भी स्वस्थ चाहिए तो परंपराएं भी स्वस्थ चाहिएतो विचार भी स्वस्थ चाहिए तो ऐसेस्वस्थ भारत की जरूरत है। समर्थ भारत जो आत्मनिर्भर भारत की बात की है ऐसे आत्मनिर्भर भारत समृद्धभारत इसकी समृद्धता में यह तो देश सोने की चिड़िया कहलाता था। कहां समृद्धता की कमी थी हममें और सशक्त भारतसशक्त बहुत जरूरी है। आदमी सब कुछ हो लेकिन ताकतवर नहीं है तो बेकार हो जाता है। देश सशक्त भी चाहिए तभी जब ताकतवर आदमी होता है तो उसकी बातों को भी कोई सुनता है। किसी परिवार का मुखिया यदि ताकतवर न हो तो परिवार बर्बाद हो जाता है। ताकतवर माने उसका विजन भी चाहिए,उसको क्रियान्‍वित करने की ताकत भी चाहिए। ताकतवर भारत चाहिए,श्रेष्ठ भारत और एक भारत चाहिए ऐसा हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी बार-बार कहते हैं और उन्होंने जिस बात को कहा कि इसका रास्ता मेक इन इंडिया, डिजिटल इंडिया यह रास्‍ता है इसका। इस रास्ते से होकर आगे जा सकते हैं हम। क्यों मेक इन जापान हो और क्यों मेक इन चाइना?हममें प्रतिभा की कमी नहीं है, हममें संघर्षशीला की कमी नहीं है। यदि नहीं है तो फिर शुरू करना है। हर चीज को शुरू करेंगे और पीछे के चार-पांच सालों में देश ने हर क्षेत्र एवं दिशा में छलांग मारी है। इसीलिए यह डिजिटल इंडिया अब एक बटन दबाकर के हमसमय को बचा भीरहे हैं और पैसे को बचा रहे हैं, बेमानी और भ्रष्टाचार को खत्म कर रहे हैं क्योंकि पूरे देश में जब डिजिटल इंडिया हो जाएगा तो दूरियां भी कम होंगी और कई प्रकार की सुविधाएं एक क्लिक दबाने से सारे की सारी चीजें आपके पास एक सेकंड में सब सारी दुनिया इकट्ठा हो जाती है तो इसलिए देश को डिजिटल इंडिया भी करना है। हमबहुततेजी से काम कर रहे है और स्किल तो चाहिए। जब तक हम अपने कौशलका विकास नहीं करेंगे तब तक विकास सम्‍भव नहीं है। इसीलिए आपने देखा होगा कि हम इस नई शिक्षा नीति में कक्षा 6 से ही वोकेशनल स्ट्रीम लाए है और वो भी इंटर्नशिप के साथ लाए हैं। अबबच्चा ज्ञान को केवल किताबों में ही नहीं पढ़ेगा बल्कि वो इंटर्नशिप करेगा गांव में जाएगा, वो किसान के साथ बात करेगा वो उद्यानिकी के साथ जुड़ेगा। वहबानगीके साथ जुड़ेगा और वोस्थानीय उत्पादोंके साथ जुड़ेगा, जिधर उसका मन जा रहा है उसी को आगे बढ़ाएंगे और इसीलिए यह अद्भुत प्रयोग है। वहबच्चाजब स्कूल से बाहर निकलेगा तो आत्मनिर्भर हो करके निकलेगा तो वो किसी भी क्षेत्र में उसका स्किल किसी भी क्षेत्र में आगे बढ़ाएगा और उसके बाद ऊपर भी हमने जो आईआईटी, हमारे एनआईटी,आईसरहैं,उनको भी यह कहा है कि उद्योगों के साथ जुड़कर के पाठ्यक्रम बनाओ। आधा समय उसका उन उद्योगों में लगना चाहिए ताकि वो पाठ्यक्रम क्या चाहता है। उस उद्योग को जरूरत क्या है। अभी तो यहबिल्कुल खाली थी जो पाठ्यक्रम में कुछ और पढ़ाते थे और वो उद्योग कुछ और करते थे, दोनों में समन्‍वयनहीं था। प्रतिभा केअनुरूप समन्वय के अभाव में देश और उद्योग दम तोड़ते थे और प्रतिभा भी पलायन करती थी। अब इन दोनों का बेहतर समन्वय होगा। यह जो नई शिक्षा नीति आ रही है यह प्रतिभा का उसके समन्वय के साथ उस उद्योग को खड़ा करेगी और उसमें भी कोशिश करेंगें कि हम 50 प्रतिशत को जो हैं, उसका जोकाम है वो उस उद्योग के साथ जुड़कर कार्य करें। आप जो पढ़ते हैं, वो उस उद्योग को शिखर तक ले करके चला जाएगा। उसका पूराविजनवहां आजाएगा वो दोनों काम करेगा और इसलिए यह भी बहुत जरुरी था कि शिक्षा को उद्योग, शिक्षा को गांव से जोड़ना, शिक्षा को आत्‍म्‍निर्भरता से जोड़ना। हम दुनिया का पहला देश होंगे जो कृत्रिम बुद्धिमत्ता लेकर आ रहे हैं। छठवीं कक्षा से ही आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस वाला पहला देश होगा जो इस स्कूली शिक्षा से हम शुरू कर रहे हैं।मैं पूरे देश के अन्दर भ्रमणकरताहूं।मैं स्कूल में भी जाता हूं तो मैं विश्वविद्यालय के अंदर भी जाता हूं तो मैं अपने आईआईटी के अंदर भी जाता हूं तो मैंअपने आईसर के अंदर भी जाता हूं और कितनी विविधताएं हैं इस देश में।मैं यह समझता हूँ यह जो राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 आई है यहबहुतबड़े विजन के साथ आई है और निश्चित रूप में यह पूरी दुनिया में हिन्दुस्तान को ज्ञान की महाशक्ति के रूप में स्थापित करने का सामर्थ्‍यहैइसमें।इसमें हमनें कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है। कितनी खूबसूरती है और उच्च शिक्षा में सब फ्री छोड़ दिया है। कहांतक दौड़ना चाहते हो, किस विषय को लेना चाहते हो, लो ना। आप अपने मन के राजा होलेकिन राजा अपने अस्तित्व को बचाए और बनाए रखने के लिए जीवन-मरण का संघर्ष करताहै। तभी उसका अस्तित्व कायम रहता है। इसका मतलब जब आपको फ्री है, पूरा मैदान खाली छोड़ दिया है। जिस भी विषय को ले करके मेरा छात्र जाना चाहता है उसके शिखर तक पहुँचने के लिए उसको अपनाखूनपसीना बहाना पड़ेगा और फिर रिजल्ट तो जरूर देना पड़ेगा और इतना ही नहीं जहां उसको विषयों की छूट दी है, लचीलापन दिया है,वहां पर यदि वो परिस्‍थितिवश बीच में भी छोड़ करके चला जाता है मानोइंजिनियरिंग कर रहाहै या बीएससी कर रहा है या एमएससी कर रहा है औरदो ही साल में छोड़ करके जाता है तो पहलेदो साल उसके बर्बाद हो जाते थे, अब ऐसा नहीं होगा। उसका एक साल भी खराब नहींहोगा। एक साल पढ़ाई करने के बाद जाने की परिस्‍थितिउसकी है तो एक साल में उसको सर्टिफिकेट मिल जाएगा। दो साल में उसको डिप्लोमा मिल जाएगा। तीन साल में उसको डिग्री मिल जाएगी और उसको और भी सुविधादे दी है। हम एक क्रेडिट बैंक ऐसा बनाएंगे जिसमें उसका सारा क्रेडिट रहेगा और जहां से वो छोड़ करके गया दुबारा वहींसेशुरू कर सकता है। उसके लिए पूरे तरीके से छूट है। मैं यह समझता हूं कि ये बहुत खूबसूरती के साथ यह चीजें आई हैं। आपने कहा कि आयोग बनेगा तो एक ऐसी छतरी के नीचे जहांआपको दर-दर भटकना नहीं पड़ेगा। एक आयोग बनेगा, उसके साथ तीन चार काउंसिलबनेंगी। यह एक काउंसिल पाठ्यक्रम को सुनिश्चित करेगी तो दूसरे उसके क्रियान्वयन पर ध्यान देगी, तीसरा उसका प्रशासनिक नियंत्रण करेगी और चौथी उसका वित्तीय पोषण करेगी। यह चारों होंगी लेकिन एक छत के नीचे। इसकी भी खूबसूरती है जो आपने कहा कि इसमें प्राइवेट का भी किस तरीके से सहभागिता हो सकती है उस पर जब काउंसिल बनेगी तो उसमें इस पर भी विचार होगा क्योंकि हम जो सरकारी तथा गैर-सरकारीकीबात करते अभी आईओई में इधर यह चेयरमेन विश्वनाथन जी बैठे हुए। इनके संस्थान को भी अभी यह तो सरकारी नहीं है लेकिन आईओईमें इनका संस्थान भी है। दस सरकारी और दस प्राइवेट मिलकर के देश कीशिक्षा का उत्थान करना चाहते हैं और इसलिए इसमें शंका की कोई गुंजाइश नहीं है। हम मिलकर काम करेंगे और इसीलिए उच्च शिक्षा में यदि मैं यह कहूं कि यह जो शिक्षा नीतिहै, यह5आईयदि मैं बोलूं कि यह इन्डियन भी है,इन्‍टरनेशनल भी है,इंटरएक्टिव भी है, इम्पैक्ट फुल भी है और इन्क्लूसिव भी है। इसलिए मैं समझता हूँ कि यदि इस शिक्षा नीति को आप देखेंगे तो तो यह लोकल से लेकरग्लोबल तक है, जो हमारे देश के प्रधानमंत्रीजी ने कहा कि यह लोकल से ग्लोबल तक है और यदि इसमें देखेंगे तो लोकस भी है और फोकस भी है। यदि इसको देखेंगे तो टैलेंट भी होगा, उनका पेटेंट होगा। यदि टैलेंट है तो पेटेंट भी हमारा होना है तो इसके साथ टैलेंट भी होगा, पेटेंट भी होगा कंटेंट भी होगा,रिलेवेंट होगा। यदि इस शिक्षा नीति को देखें आपतो बहुत सारी खूबसूरत चीजोंको साथ लेकर की यह शिक्षा नीति आई है। इसीलिए आपने ठीक कहा कि एक समय था जब देश आंतरिक दृष्टि से खाद्यान के संकट से गुजर रहा था, देश सीमाओं पर संकट से गुजर रहा था लालबहादुर शास्त्री जी के समयमें तो उस समय लालबहादुर शास्त्री ने नारा दिया था ‘जय जवान जय किसान’। पूरा देश इकट्ठा हो गया था और इन दोनों संकटों का देश ने बहुत अच्छे तरीके से मुकाबला किया था। उसके बाद भारत रत्न अटल बिहारी बाजपेयी आए। उनके मन में आया कि नई दुनिया में हमेंहर दिशा में ताकत चाहिए। हमने किसी को छेड़ा नहीं लेकिन हमारे भीतर इतना सामर्थ्य जरूर चाहिएकि हम ताकतवर बने रहें। हम किसी को छेड़ने के लिए ताकतवर नहीं बनना चाहते। हम ताकतवर बनना चाहते हैं ताकि कोई हमको छेड़े नहींऔर इसीलिए उन्होंने कहा‘जयविज्ञान’की जरूरत है और परमाणुपरीक्षण करके उन्होंने दुनिया को यह महसूस करा दिया था कि इस देश में ताकतवर क्षमताएं हैंदेश अपने आप में खड़ाहोता है और इसीलिए जब अटलजी ने ‘जय विज्ञान’ का नारा दिया तो हमारे प्रधानमंत्री जी ने जब उनको लगा कि अब अनुसंधान की जरूरत है जिसकी मैं भी चर्चा कर रहा हूं कि आखिर सब कुछ है लेकिन अगर अनुसंधान नहीं है तो सब कुछ होते हुए भी बेकार हो जाता है या हमारी चीज को दूसरा ले करके अनुसंधानकर्ता उस शिखर को प्राप्त करता है और हम उसको पकड़ नहीं पातेहैं तो इसीलिए मैं यह समझता हूं कि जो नरेंद मोदी जी ने जो एक सूत्र दिया है ‘जयअनुसंधान’ का उस क्षेत्र में हमें तेजी से बढ़ना है । हम ‘स्‍पार्क’ के तहत दुनिया के शीर्ष 127 देशों के साथ अनुसंधान कर रहे हैं। हम स्‍ट्राइडके तहतअंतरविषयीशोधों को कर रहे हैं, हम स्टार्स के साथ हम वैज्ञानिक शोध और अनुसंधान में जुटे हुए हैं। हम इम्प्रिंट, इम्प्रेस के साथ जहां प्रौद्योगिकी वहीं सामाजिक विज्ञान इनदोनों को साथ लेकर चल रहे हैं।इस नई शिक्षा नीति में नेशनल रिसर्च फाउंडेशन की जो बात की है जिसमें देश के प्रधानमंत्री के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार की अध्यक्षता में शोध और अनुसंधान की इस संस्कृति को नई ताकत मिलेगी वो और तेजी से आगे बढ़ेगा। मैं समझता हूं जो अनुसंधान है जहां हमने नेशनल साइंस रिसर्च फाउंडेशन की बात कीवहीं हम प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भी तेजी से आगे बढना चाहते हैं इसलिए हमने तय किया है कि नेशनल एजुकेशन टेक्नोलॉजी फोरमनाम से ऐसा फोरम गठित करेंगे जहांएक राष्ट्र और एक डिजिटल प्लेटफॉर्म होगा। ‘वन नेशन वन डिजिटल प्लेटफॉर्म’ और हमने देखा है कि ‘वन क्लास, वन चैनल’ हम स्वयं, स्‍वयं प्रभा, ई-पाठशाला, दीक्षा,एनडीएल आदि तमाम क्षेत्रों में बहुत तेजी से आगे बढ रहे हैं और अब तो हमें अपनी गतिशीलता को और आगे बढ़ाना है। हम लोगों ने जहां ज्ञान, विज्ञान, अनुसंधान के क्षेत्र में बोला है वहां भाषा पर भी बोला है कि सभी भाषाओंको इस सीमा तक हम लेकर के जाएंगे कि इस देश को ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ का गौरव महसूस हो  सके। हम अनेकता में एकता वाले देश हैं और इसलिए मैं यह समझता हूंजैसाकिअभी आपने चर्चा की है कि अंतरराष्ट्रीय फलक पर क्या होगा, हम तेजी से बढ़ेंगे ना। हम स्टडी इन इंडिया अभियान को अब बहुत तेजी से बढ़ रहे हैं।मैं पीछे केदिनों लवली विश्‍वविद्यालय में एक घंटे के लिए गया था तो लगभग वहां इन्होंने पौन घंटे में अलग-अलग दस कार्यक्रम किए होंगे तो लगभग 50 देशों के बच्चे उधर दिखाई दिए। अभी तो हम लोगों ने यह शुरू किया हैअभी सतनाम जीसे मैंने पूछा तोइन्‍होंने कहा हमारे यहां भी 60 देशों के बच्चे थे। पूरी दुनिया हमारे पास आ रही है। ‘स्टडी इन इंडिया’ भारत को जानो। पूरी दुनिया के लोग बहुत बहुत तेजी से इधर आ रहे हैं। अभी हमने‘स्टे इन इंडिया’ कहा,‘स्टे इन इंडिया’ इसलिए कहा क्‍योंकि हमारे देश के साढे सात आठ लाख बच्चे बाहर जाते हैं और हमारे यहां काएक लाख से डेढ़ लाख करोड़ रूपए प्रति वर्ष बाहरजा रहा है, हमारा पैसा भी हमारी प्रतिभाभी बाहर जा रही है और इसलिए यह हमारे लिए चुनौती है। आप जैसे संस्‍थानों को खड़े होने की जरूरत है।‘स्टे इन इंडिया’ के तहत हम अपने बच्चों को भरोसा दिला सकते हैं किआपको विदेश में जाने की जरूरत नहीं है, जो आप दुनिया में पढ़ना चाहते हैं वो हमारे पास है। यह भरोसा उन लोगों को हो रहा है और तेजी से होना भी है इस भरोसे को और मैं यह समझता हूं कि यह भरोसा क्यों न हो? यह भरोसा होगा क्‍योकिइस देश के प्रधानमंत्री जी ने पीछे की दिनों जैसे अभी आप कह रहे थे कि नई शिक्षा नीति तो आई है लेकिन इसके क्रियान्वयन का क्या होगा, किस तरीके से होगा? आपको मालूम है कि अभी जब कुछ दिन पहले प्रधानमंत्री जी आप सबसे मिले थे तब उन्होंने चर्चा की थी। कुछ लोगों के मन में शंका है कि इसका क्रियान्वयन कैसेहोगा कि नीति तो बहुत अच्छी है। देश की आजादी के बाद पहली बार भारत की अपनी शिक्षा नीति आई है तो इसका लोगों में उत्साह उल्लास है। सतनाम जी ने अपने भाषण में भी कहा कि दो बार प्रधानमंत्री जी हम लोगों से जुड़े औरदोनों बार उन्होंने यह कहा कि शंका की कोई गुंजाइश नहीं है। मेरी सरकारइच्छा शक्ति की बहुत धनी है। आप लोग इसको क्रियान्वित करें मैं चट्टान की तरह आपके पीछे खड़ा हूं तो कहींदूर दूर तक कोई शंका का विषय नहीं है और यह तो देश की आधारशिला है। इसलिए 21वीं सदी का जो नया भारत जो पूरे विश्व का ऐसा भारत बनेगा उसकी आधारशिला यह शिक्षा नीति है और इसीलिए हर व्यक्ति, देश का कोने-कोने का व्यक्ति निश्चित रूप में काम करेगा। टीम इंडिया के रूप में मेरे देश के प्रधानमंत्री का ‘सबका साथ सबका विकास सबका विश्वास’ का सूत्र हैं। हम टीम इंडिया की तरह काम करेंगे, मिलकर के काम करेंगे केंद्र और राज्य मिलकर कामकरेंगे। किसको क्या दिक्कत है? क्या कोई राज्य अपने बच्चों का भविष्य नहीं बनाना चाहता? कौन राज्य होगा और वो कौन परिवार होगा, कौन मां बाप होगा जो अपने बच्चे का भविष्य अच्‍छा  नहीं  चाहता है। कौनदेश होगा जो अपनी पीढ़ी का भविष्य नहींचाहता है और यदि सब चाहते हैं तो समन्‍वयकरने के लिए हम लोग बैठे हुए है। हमारे ही जो परिवार है इसको जोड़ेंगे और मैंने एहसास किया औरइस नयी शिक्षा नीति को लेकर के आया। मेरे देश के प्रधानमंत्री जी का एक-एक मिनट हमको मार्गदर्शन मिला। मैंने इसकी खूबसूरती को निकटता से देखा। पूरा देश आज एकजुट है। पूरे देश में उत्सव का वातावरण है। अभी मुझे एक मित्र मिले उन्होंने कहा कि मैं वहां गया था तब किसी गांव के प्रधान ने कहा किनई शिक्षा नीति आ रही है,कुछ हो रहा है देश में। मेरे गांव के अंतिम छोर का व्यक्ति भी यह कह रहा है कि कुछ होने वाला है देश में, नयी शिक्षा नीति आ गई। नए भारत बनने वाला है। यह इसकी खूबसूरती है कि अंतिम छोर पर बैठने वाले व्यक्ति के मन में भी बहुत उत्सुकता  है,उल्लास है,हर्ष है, उसको भी लगता है कि कुछ होने वाला है। कुछ नया आने वाला है। यह इस शिक्षा नीति की खूबसूरती है और इसीलिए मुझे लगता है देश के सभी शिक्षा मंत्री गण से मेरी बातचीत होती है लगातार बात होती है। सभी लोग बातचीत सुनते हैं। ऐसे करके इसको लागू करें। हर हालत में लागू करना चाहते हैं और जो भी राज्य अपने को आगे बढाना चाहें तो उसे लागू करना ही करना है क्योंकि कोई भी राज्य क्यों चाहेगा कि उसकी पीढ़ीबहुत तेजी से आगे न बढ़े। इसलिए जो नई शिक्षा नीति है जिसके सन्‍दर्भ में अभी स्‍वायत्‍ताकी आपने बात की है। देश के प्रधानमंत्री चाहते हैं कि स्वायतता हो और हमने स्‍वायत्‍तादी भी है। पैंतालीस हजार से अधिक डिग्री कॉलेजों को जिनमें स्वायतता वाले हैंऔर लेकिन अभी हम चाहते हैं कि उनकी उत्कृष्टता बढे।उनको चरणबद्ध तरीके से जो जैसे जैसे सामर्थ्य में आते रहेंगे वैसे-वैसे उनकी स्वायतता भी बनती चली जाएगी। कुछ लोग कहते हैं स्वायत्तता का मतलब यह है कि मनमर्जी हो सकती है स्वायत्तता को लेकर जो विजन है, जो रास्ता, जो सूत्र है, उसके साथ आगे बढ़ेंगे क्योंकि स्वायतता में उत्तरदायित्व और पारदर्शिता भी बराबर होती है और हम चौकस हैं इस दिशा में हमको कोई कन्फ्यूजन नहीं है। इसीलिए मैं यह समझता हूं कि देश के विश्वविद्यालय देश के विश्वविद्यालयों में पीछे की समय में एक विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में गया तो मैंने कहा कि कितने कॉलेजों से जुड़े हैं?तब पता चला कि इस विश्वविद्यालय से आठ सौ कॉलेज जुड़े हैं। मैंने कहा कि यह आठ सौ कॉलेजों के साथ न्‍याय नहीं होगा,यहां  के कुलपति को 800 कॉलेजों को प्रिंसिपल का नाम क्या पांच सौ दो सौ कभी याद नहीं होगा तो न्याय कैसे हो सकता है। इसकी गुणवत्ता कैसे बढ़ सकती है। इसकी सक्रियता और समानता कैसे रह सकती है और इसीलिए हम लोगों ने इस शिक्षा नीति में कहा है कि क्रमबद्ध तरीके से एक विश्वविद्यालय 300 से अधिक संबद्धता नहीं रख सकता है। इसका मतलबविश्वविद्यालय बढ़ेंगे और जो डिग्री कॉलेज हैं वो भीविश्वविद्यालय की श्रेणी में आएंगे तो मैं समझता हूं कि यदि आप किसी कोने से भी शिक्षा नीति को देखेंगे तो हर कोने पर आपको ऐसा नजर आएगा कि यह आपके लिए बहुत अच्छे तरीके से और अभी जैसे मैं देख रहा था कि सतनाम जी आपने नीति केलचीलापन और बहुभाषीय तथाबहुविषय के बारे में जो कहा है कि उत्तरदायित्व और उत्तरदायी कैसे ले सकते हैं। मुझे लगता है कि आपने जो आत्मनिर्भर भारत की बात की है और मैंने उन बिन्दुओं को आपके साथ जोड़ा है कि वोकेशनल में कैसे करके आप लोग कर सकते हैं।आपको मालूम है कि जो शिक्षा नीति है उससे पहले हमने कुछ चीजों को शुरू किया। आईआईटी का कितनाखुबसुरत पीपीपी मोड है जिसमें 50 प्रतिशत केंद्र सरकार देती है 35 प्रतिशत राज्‍य सरकार देती है और 15 प्रतिशत उद्योग लगाता है और इतनी अच्‍छी मेरी ट्रिपलआईटी चल रहे हैं,बहुत अच्छे तरीके से चल रहे हैं। मुझे लगता कि रिफॉर्म भी करना है, परफॉर्म भी करना है।ज्ञान की शक्ति कोबढ़ाना है।हम बिल्‍कुल तैयार हैं और पूरी टीम इंडिया के तहत जब हम लोग बढना चाहेंगे काम करना चाहेंगे तो क्यों नहीं होगा। मैं समझता हूं कि जो आपने इन बिन्‍दुओं को कहा है और जीईआर बढ़ाने की भी आपने आज चर्चा की है, आप उसदिशा में निश्चित रूप में हम लोगों ने यह तय किया है किहम 50 प्रतिशत तक ले करके जाएंगे। अभी आपने क्रियान्वन के लिए जो प्रयास की बात की है सतनाम जी और हम उसके लिए कमेटियों का गठन कर रहे हैं। जिस तरीके से अभी हमने नीति बनाने के लिए लोगों से आवेदन किया, सुझाव मांगे हैं। अभी हम लोग उसका भी सुझाव मांग रहे कि आप बतायें। बिन्दुवार बताएं कि क्रियान्वयन में किस तरीके से हो सकता है। अभी कमेटी बनाई है, टास्कफोर्स भी बना दिया है। शिक्षाविदों से भी जो उच्च शिक्षा के क्षेत्र में काम कर  रहे हैं उनसे हम लगातार अनुरोध भी कर रहे हैं कि अब बताएं उनके मन में क्या है कि किस तरीके से इसका क्रियान्वन होना है, लेकिन उसके गंभीर प्रयास शुरू हो गए हैं। आप लोगों के साथ जैसे आपने कहा कि जो प्राइवेट संस्‍थानहैंवो भीयदि लीडरशिप के साथ इसका क्रियान्वन करेगा हमारे दिमाग में हैं और हम उन संस्थाओं का अभिनंदन करेंगे। जो संस्थान इसकोकरने के लिए आगे आएंगे पूरी ताकत के साथ उसके साथ चट्टान की तरह खड़े होकर उसको क्रियान्वित करेंगे। उद्योगों कोमैंने कह दिया कि जो उद्योग हैं उसके समन्‍वय की जरूरत हमने शुरू से महसूस की है और उसको भी आगे ले जाने कीसमय सीमा कोहमने तय किया है हमने चरणबद्ध तरीके से किया है कुछ तो हमने अभी शुरू कर दिया है औरकुछ को हम प्रशासनिक शासनादेशों के तहत करेंगे। जो अर्थ से संबंधितहै वो तीनों चरणों में राज्यों के साथ विमर्श करके लेकिन निश्चित समय के अंदर करेंगे यह तय है। मुझे लगता है कि सतनाम जी जो तीन-चार विषय आपने कहे हैं उसेपूरी ताकत के साथ हमलोग उसको क्रियान्वित करने और आपके साथ समन्वय भी करेंगे। मुझे लगता है कि आपके मन में कभी शंका होजाती है, आपने कहा कि बहुत सारी नीतियां बनती हैं लेकिन मुझे भी मालूम है कि बहुत सारी नीतियां बनती हैं लेकिन लागू नहीं होती हैं। अभी आपके मन में क्यों शंकाएं हैंकि जो नीति बनी हैवो लागू नहीं होगी। इन नीति लागू होने के लिए ही बनी है, यह पैदा ही इसलिए हुई है। फिर मैंने कहाकिदेश के प्रधानमंत्रीजी ने कहा है कि हम इच्छा शक्ति के धनी हैंइसीलिए तो देश की आजादी के बाद से यह महत्‍वपूर्ण शिक्षा नीति लाई है। हमें इस देश की शिक्षा व्यवस्था को विश्व स्तर का बनाने के लिए सभी लोगों को मिलकर करके करना है और यह दो-तीन जो सुझाव थेमैंने बीच-बीच में आपसेऔर चर्चा के दौरान भी उन पर बात की है लेकिन अब बहुत ताकत के साथ इस शिक्षा नीति को हम क्रियान्वित भी करेंगे। डॉक्टर चतुर्वेदी साहब ने मुझे लगता है वो बहुत आशावादी है मुझे अच्छा लगा। जो भी उन्होंने चर्चाएं की है वो बहुत अच्छे तरीके से उन्होंने अपनी बातों को कहा है, कलाम साहब ने यदि इसकी स्थापना की तो मैं समझता हूं कि बहुत ही पवित्र मन से इस संस्‍था की उन्होंने स्थापना की होगी। जितना मुझे कलाम साहब के निकट रहने का मौका मिला है। मुझे याद आता है जब मैं पहली बार उनसेमिला था तो उन्होंने कहा कि मैंने सुना है कि आपकी 1983से देश के आकाशवाणी केन्द्रों पर गीत आते  हैं देशभक्ति के।देशभक्ति के जो गीत आपने समय-समय पर लिखा वे एक जगह क्यों नहीं आ सकते?उन्होंने मुझे कहाएक जगह करिये और मैंने उनके आदेश पर उन गीतों को एक जगह किया फिर उन्होंने कहा कि हम उनको राष्टपति भवनमें गुनगुनाएंगे और ‘ए वतन तेरे लिए’ जो देशभक्ति के गीत थे उस संग्रह को उनके हाथों से लोकार्पित करवाया। आप सोच नहीं सकते कि कलाम जैसा विश्वविख्यात वैज्ञानिक,जितनेसंवेदनशील व्यक्ति के एक छोटी सी कविता को गुनगुनाते हुए उनकीआँखों से आँसू आते हुए मैंने देखे,वह छोटी सी कविता थी:-

 

अभी भी है जंग जारी, वेदना सोयी नहीं है

मनुजता होगी धरा पर, संवेदना खोयी नहीं है

किया है बलिदान जीवन, निर्बलता ढोयी नहीं है,

कह रहा हूं ऐ वतन तुझसे बड़ा कोई नहीं है।

 

यह जो अंतिम पंक्‍ति है इसको उन्‍होंने 4-5 बार गुनगुनाया और उनकी आंखों से आंसु टपकने शुरू हो गये। उस दिन मैंने देखा कि देशभक्‍ति का जो सागर उमड़ रहा था उनके ह्रदय में उसका मैंने साक्षात दर्शन किया। तो ऐसे व्‍यक्‍तित्‍व ने कुछ न कुछ सोचकर इसकी स्‍थापना की है। मेरी शुभकामनाएं कि ऐसी संस्‍था से जुड़े रहने वाले पवित्र लोग निश्‍चित रूप में बहुत तेजी से आगे बढ़ेगें। एक फिर मैं आप सभी को बहुत-बहुत शुभकामनाएं देना चाहता हूं।

 

बहुत-बहुत धन्‍यवाद!

 

कार्यक्रम में गरिमामयी उपस्‍थिति:-

  1. डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’, माननीय शिक्षा मंत्री, भारत सरकार
  2. सरदार सतनाम सिंह संधु, कुलाधिपति, चंडीगढ़ विश्‍वविद्यालय
  3. श्री अशोक मित्‍तल, कुलपति, लवली प्रोफेशनल विश्‍वविद्यालय, जालंधर
  4. सरदार जगजीत सिंह, अध्‍यक्ष, जेसीए
  5. डॉ. एच. चतुर्वेदी, निदेशक, विमटैक

केन्‍द्रीय विद्यालय आईजीएनटीयू, अमरकंटक (मध्‍य प्रदेश) के नवनिर्मित भवन का उद्घाटन

केन्‍द्रीय विद्यालय आईजीएनटीयू, अमरकंटक (मध्‍य प्रदेश) के नवनिर्मित भवन का उद्घाटन

 

दिनांक: 26 अगस्‍त, 2020

 

 

 

माननीय शिक्षा मंत्री, डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’

 

आज के इस कार्यक्रम में उपस्‍थित मेरे अनन्‍य सहयोगी और भारत सरकार में शिक्षा राज्‍य मंत्री आदरणीय श्री संजय धोत्रे जी, हमारे इस कार्यक्रम में जुड़ी इस क्षेत्र की बहुत ही लोकप्रिय और जुझारू सांसद श्रीमती हिमाद्री सिंह जी, विधायक श्री सुन्‍दर लाल जी, इस विश्‍वविद्यालय के यशस्‍वी कुलाधिपति डॉ. मुकुल साह जी, केंद्रीय विश्‍वविद्यालय के बहुत ही प्रखर और विद्वान कुलपति प्रो. प्रकाशमणि त्रिपाठी जी, इस परिसर के डीन प्रो. अनुप जी, केंद्रीय विद्यालय के प्रधानाचार्य नितिश कुमार जी, आज बहुत अच्‍छा संयोग है कि केंद्रीय विश्‍वविद्यालय और केंद्रीय विद्यालय इन दोनों के सभी आचार्यगण, शिक्षकगण और सभी छात्र-छात्राएं, अभिभावकगण, दूर-दूर से जुड़े जनप्रतिनिधिगण और विभिन्‍न हमारे प्रशासनिक अधिकारी। आज जो केंद्रीय विद्यालय के नवनिर्मित भवन का लोकार्पण हो रहा है इस अवसर पर जो सभी लोग एकत्रित हुए हैं, केंद्रीय विश्‍वविद्यालय संगठन के आयुक्‍त, इस केन्‍द्रीय विद्यालय के प्रधानाचार्य उनकोबहुत सारी बधाई देता हूं कि उनको एक बहुत अच्‍छा परिवेश मिला है, परिसर मिला है अपनी गतिविधियों को और शैक्षणिक गतिविधियों को बढ़ाने के लिए खूबसूरत भवन आज स्‍थापित हुआ है जहां केंद्रीय विद्यालय इसके लिए बधाई का पात्र है वहींकेंद्रीयविश्‍वविद्यालय जिसके परिसर में बच्‍चे पढ़ने के लिए आएंगे आप ऐसे बच्‍चों को तैयार करेंगे जो आपकेलिए बहुत बड़ी निधि होगी, आपके लिए बहुत बड़ी उपलब्‍धि होगी, मैं कुलपति जी को, कुलाधिपति जी को उनके परिवार को बधाई देना चाहता हूं। मैं समझता हूं कि शिक्षा पर, नई शिक्षा नीति पर जो हमारे कुलपति जी ने, हमारे कुलाधिपति जी ने प्रकाश डाला है। बच्‍चों, मैं सोचता हूं जब मैं आपसे बात करता हूं आप सबको मालूम है कि हमारा देश भारतपूरीदुनिया में विश्‍वगुरू रहा है और ऐसा विश्‍वगुरू रहा है जिसने ज्ञान,विज्ञान, अनुसंधान, नवाचार के क्षेत्र में पूरी दुनिया को लीडरशिप दी है बीच में कुछ परिस्‍थितियां आई हैं जिसके कारण हमें गुलामी की जंजीरों में जकड़े रहना पड़ा और सदियों की गुलामी के बाद फिर हम स्‍वाधीन हुए हैं और आज फिर पूरी दुनिया उस गौरवशाली भारत की ओर देख रही है।हम एक योद्धा की तरह खड़े होकर ज्ञान, विज्ञान, अनुसंधान और नवाचार की दिशा में आगे बढ़ने की मंशा रखते हैं। इसलिए मैं आपको शुभकामना देना चाहता हूं कि इस समय देश में जो परिवेश है वो बहुतअच्‍छा परिवेश है, पूरीदुनिया की नजरेा हम पर टिकी हैं। मेरे देश के प्रधानमंत्री जी ने जिस ‘नए भारत’ के निर्माणकी बात की है, आप सभी उस अभियान से जुड़े हैं। जब प्रधानमंत्री जी ने‘स्‍वच्‍छ भारत अभियान’ शुरू किया था तो स्‍कूली शिक्षा के छात्र-छात्राएं उसके ब्रांड अम्‍बेस्‍डर बने थे, जिन्‍होंने उसको अभियान के रूप में लिया जो कि सारी दुनिया में एक बहुत बड़ा अभियान रहा। स्‍वच्‍छ भारत का तात्‍पर्य केवल गंदगी को हटाना नहीं है, स्‍वच्‍छता परिसर की भी होनी चाहिए, स्‍वच्‍छता मन की भी होनी चाहिए,स्‍वच्‍छता विचारों की भी होनी चाहिए क्‍योंकि जहां स्‍वच्‍छता होती है वहीं पवित्रता होती है। जहां पवित्रता होती है, वहीं विचार आता है, जहां विचार आता है वही प्रगति का कारण बनता है और इसलिए हमने यह स्‍वच्‍छ भारत अभियान लिया। देश के प्रधानमंत्री जी ने कहा कि ऐसा भारत चाहिए जो स्‍वच्‍छ हो, स्‍वस्‍थ हो, सशक्‍त हो। एक बीमार मन, बीमार व्‍यक्‍ति कभी किसी को आगे नहीं बढ़ा सकता, उन्‍नति के  शिखर पर नहीं पहुंचा सकता और इसलिए जहांस्वच्छ भारत हो, वहीं स्वस्थ भारत हो, सशक्त भारत भी हो, एक आदमी हष्‍ट-पुष्‍ट है लेकिन ताकतवर नहीं है,ताकत केवल शरीर की नहीं होती,ताकत विचारों की भी होती है और इसीलिए जो सशक्त होना चाहिए वहीं ताकतवर भी होना चाहिए और समृद्ध भीहोना चाहिए। मेरे देश को सोने की चिड़िया कहा जाताथा, विश्वगुरु कहा जाताथा,जहां एक ओर धन धान्य से संपन्न इस देश को सोने की चिड़िया कहा जाता था तभी तो कहा गया कि‘यूनान मिस्र, रोमां सब मिट गये जहां से, अब तक मगर है बाकी नामो निशां हमारा’ और वो जो तीसरी और चौथी बात है वो हमारा संस्कार है, हमारी संस्कृति है। इसलिए देश के प्रधामंत्री जी ने कहा स्वच्छ भारत, स्वस्थ भारत,समृद्ध भारत,आत्मनिर्भर भारत, श्रेष्ठ भारत और एक भारत। श्रेष्ठ भारत चाहिए वो श्रेष्ठ भारत जिसकी गरिमा, जिसकी आभा पूरी दुनिया को आलोकित करती हो ऐसा भारत चाहिए और ऐसा भारत बनाने के लिए हम सब लोग मन से, तन से और अपने विजन से समर्पित होकर उस दिशा में दौड़ रहे हैं। मुझे लगता है इससे बड़ा सौभाग्य क्या मिलेगा कि‘मेक इन इंडिया’,‘डिजिटल इंडिया’,‘स्किल इंडिया’,‘स्टार्ट अप इंडिया’और‘स्‍टैंड अप इंडिया’जैसे सूत्र हमें मिल रहे हैं वहीं आत्मनिर्भर भारत केभीतमाम सूत्र मिल रहे हैं जिससे यह देश फिर आत्मनिर्भर होकर पूरे विश्व को बता सकेगा कि भारत फिर उन्हीं ऊंचाईयों को स्‍पर्श करेगा और इसीलिए यह जो नई शिक्षा नीति आयी है जो राष्‍ट्रीयशिक्षा नीति 2020 है जिसका मंत्री जी ने भी जिक्र किया है, यह बहुत अद्भुत है। देश में पहली बार ऐसा माहौल हो रहा है,देश के अंदर उत्सव का वातावरण है। छात्र भी खुश हैं,अभिभावक भी खुश है, अध्यापकभी खुश है क्योंकि शिक्षा किसी भी व्यक्ति की, परिवार की, समाज की,राष्‍ट्र की रीढ की हड्डी होती है यदि वो मजबूत नही है तो वो व्यक्ति कभी खड़ा नहीं हो सकता, व्यक्ति खड़ा नहीं होगा तो परिवार खड़ा नहीं हो सकता, परिवार सशक्त नहीं होगा तो फिर कैसे समाज और राष्ट्र खड़ा हो जाएगा। इसलिए किसी भी राष्ट्र की पहली धुरी है उसका व्यक्ति, उसका व्यक्ति सशक्त होना चाहिए,वह हर दिशा में सशक्त होना चाहिए। मेरे छात्र-छात्राओं आपको मालूम है कि हम भारतवासी पूरे विश्व को अपना परिवार मानते हैं । हम हमेशा कहते हैं कि‘अयं निज: परो वेति गणना लघु चेतसाम् उदारचरितांना वसुधैव कुटुम्बकम’ पूरी दुनिया कोहम अपना परिवार मानते हैं। हम हमेशाकहते हैं कि‘सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया सर्वे भद्राणी पश्‍यन्‍तु मां कश्‍चित् दुख: भाग भवेत’ जब तक इस धरती पर एक भी इंसान, एक प्राणी भी दुखी होगा तब तक में सुख का अहसास नहीं कर सकता।मैं एक योद्धा की तरह मनुष्‍य पर आने वाले हर संकट का मुकाबला कर सकता हूं, मैं मनुष्य पर आने वाली हर त्रासदी को हर सकता हूं। यह है हमारा विजन, यही हमारा मिशन है और इसलिए जोयह नयी शिक्षा नीति है यहभारत के मानवीय मूल्यों कीआधारशिला पर खड़े हो करके आई है।इसकीसुगंध पूरी दुनिया में जा रही है। दुनिया केतमाम देश भी यह कहरहे हैं कि हमको भी भारत जैसी शिक्षा नीति की ज़रूरत है। इससे ज्यादा सुखद बात क्‍या हो सकती है। हम तमाम परिवर्तन के साथ इस नई शिक्षा नीति को लाए हैं। आप सबको मालूम है, चाहे स्कूली शिक्षा हो, बच्चों को भी खूब मजा आएगा जब उनको लगेगा कि वोस्वयं अपना मूल्यांकन कर सकेंगे, अध्यापक भी मूल्यांकन करेगा, अभिभावक भी मूल्‍यांकनकरेगा और उसका साथी भी उसका मूल्‍यांकन कर सकेगा। पूरी पारदर्शिता के साथ मूल्यांकन होगा जब उसको लग सकेगा कि उसमें कोई कमी नहीं है। जब व्यक्ति अपना मूल्यांकन स्‍वयंकरता है तो बहुत सारी चीजों पर वो अंदर से झांकता हैकिक्या मूल्यांकन करूं? फिर दूसरी बात मुझे अपने नंबर स्‍वयं देने हैं तो मुझे क्या-क्या करना है, क्या करना चाहिए, यहहैइसकी ताकत और इतना ही नहीं भारतदुनिया में पहला देश होगा जो कृत्रिम बुद्धिमत्ता छठवी से शुरू करेगा,स्‍कूली शिक्षा से शुरू करेगा।हमारा देश दुनिया का पहला देश होगा जहां हमछठवीं कक्षा से ही वोकेशनलशुरू करेंगे,जहांशैक्षणिक गतिविधियां होंगी, वही शिक्षणेत्तर गतिविधियां भी होंगी और वहीं वोकेशनल गतिविधियां भी होंगी और इसको हम इंटर्नशिप के साथ लाएंगे।ऐसानहीं है कि केवल किताब पढ़कर के करेंगे, पढ़ाई के साथ बच्‍चे को अन्‍य गतिविधियों में भी शामिल करेंगे। अभी जो जनजातीयविश्वविद्यालय इस समय यहां पर है। मैं अभी देख रहा था कि इस क्षेत्र में बहुत सारी ऐसी जनजातिहैं,यह जो क्षेत्र है यहा बहुत दुर्लभ वनस्पतियां हैं और जैसाकि अभी हमारे मंत्री जी ने कहा कि विध्‍यं और सतपुड़ा की संधि पर यह स्थल मैकल पर्वत श्रृंखला से घिरा है जोखूबसूरत है और इसीलिए हमाराजोजड़ी बूटियों का भंडार है वो भी हमारे लिए वरदान साबित हो सकता है। किस तरीके से वरदान साबित होंगी? जो पहले के हमारे वैज्ञानिक थे, जो ऋषि-मुनि थे अभी जब विश्‍वविद्यालयका कुल गीत गाया जा रहा था,तो ऋषि मुनियों को याद करके अभियान आगे बढ़ाया जा रहा था। हम सब को पता है, पूरी दुनिया को पता है कि जो आयु का विज्ञान  है वह आयुर्वेद है। हमारेपाससंजीवनी बूटी रही है और उन पर शोध करनेकी जरूरत है। हमारा जो पुराना वैभव है सुश्रुत शल्य चिकित्सा का जनक जिस धरती पर पैदा होता है आपको मालूम है कि चाहे वो भास्कराचार्य हों, चाहे आर्यभट्ट हों,चाहे वराहमिहीरहों तमाम ऐसे-ऐसे आचार्य रहे हैं, चाहे आचार्य कणाद हों,ऐसे-ऐसे वैज्ञानिकहमारी धरती पर पैदा हुए। आज जरूरत है कि जो पीछे का हमारा ज्ञान है उसको पकड़ के अनुसंधान के क्षेत्र में, नवाचार के क्षेत्र में हमको आगे बढ़ना है और यह नई शिक्षा नीति उस क्षेत्र मेंसबकोआगे बढ़ाने के लिए हीहै। उच्च शिक्षा में छात्र आज बहुत खुश है उसको लगता है उस पर कोई पाबंदी नही है कि इस विषय कोलो, उस विषय को लो,कोई भी विषय ले सकता है। वो गणित के साथ विज्ञान, विज्ञान के साथ संगीत, संगीत के साथ दूसरा विषय,कोई भी विषय, कुछ भी विषय ले सकता है। वो अपने मन का राजा है लेकिन राजा ताकतवर होता है, मेहनती होता है। वो अपने अस्तित्व को कायम रखने के लिए अपने जीवन और मरण के सवालों से गुजरता है और इसीलिए जब भी आप अपने विषयों का चयन करेंगे उस विषय में आप कोमहारथ होना चाहिए। आपको छूट है बताओ किस क्षेत्र में जाना चाहते हैं और केवलविषय लेने की ही छूट नहीं है बल्‍किइस शिक्षा नीति के अंतर्गत यदि कोई 4 वर्ष का कोर्स है और यदि कोई छात्र दो साल में हीपरिस्‍थितिवशछोड़के जा रहा है  तो पहले उसका पैसा एवं वर्ष खराब हो जाते थे लेकिन अब उसकोनिराश नहीं होना पड़ेगा,यदि आप परिस्‍थितिवश एक वर्षमें छोड़ कर जा रहे हैं तो उसको सर्टिफिकेटदेंगे,दो साल में छोड़ कर जा रहा है तो डिप्लोमा देगें, तीन साल में छोड़ेकर जा रहा है तो उसकोडिग्री देंगे लेकिन यदि फिर वह लौट कर अपने भविष्य को संवारना चाहता है तो फिर जहां से उसने छोड़ा था वहीं से शुरू कर सकता है। उसके लिए हम एक ऐसा क्रेडिट बैंक बनायेंगे जहां उसके सारे क्रेडिट जमा होंगेइसलिए उसके लिए आगे बहुत आपार संभावनाएं है।वह कहां जाना चाहता है, शोध और अनुसंधान के क्षेत्र में जाना चाहता हैऔर इसलिए इस उच्च शिक्षा नीति में हम लोग बहुत सारे परिवर्तन को लेकर आए हैं। हमको अनुसंधान की जरूरत है। आप सबको मालूम होगा कि एक वक्त ऐसा था देश लालबहादुर शास्त्री देश के प्रधानमंत्री थे उस समय देश सीमाओं के संकट से जूझ रहा था, सीमाओं पर संकट था और देश के अंदर खाद्यान्‍न की बहुत परेशानी थी दोनों संकटों से देश गुजर रहा था। ऐसे वक्‍त पर हमारे देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री ने ‘जय जवान जय किसान’ का नारा देकर पूरे देश को एकजुटकर दिया था। पूरे देश नेएकजुट होकर इन दोनों संकटों का मुकाबला किया थाऔर उसके बाद भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी ऐसा योद्धा जिसको पूरी दुनिया मानती है, जानती है और महसूस करती है किजबभारत रत्न अटल बिहारी बाजपेयी जी भारत के प्रधानमंत्री बने तब उनको महसूस हुआ कि विज्ञान को और तेजी से बढ़ाने जरूरत है और उन्‍होंने‘जय विज्ञान’ का नारा दिया था और ‘जय विज्ञान’ का नारा देकर परमाणु परीक्षण करकेउन्‍होंने हिंदुस्तान को दुनिया में महाशक्ति के रूप में स्‍थापित किया था तो विज्ञान के क्षेत्र में हम तेजी से आगे बढ़ रहे हैंऔर अब जो वर्तमान में हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी हैं उनके मन में आया कि अबअनुसंधान की जरूरत है,हमारा अतीत गौरवशाली रहा है, उस अतीत की जो चीजें हैं उस पर अनुसंधान और नवाचार के साथ विश्व फलक पर ले जाने की हमारी अगली चुनौती है इसलिए  उन्‍होंने ‘जयअनुसंधान’ का नारा दिया हम अनुसंधान करेंगे, हम शोध करेंगे इसलिएशोधकी प्रकृति और शोधकी संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए हम देश के अंदर ‘नेशनल रिसर्च फाउंडेशन’ की स्थापना कररहे हैं क्योकि जब भी मैंबड़े संस्थानों की समीक्षा करता हूं तब मुझकोलगता है कि इंटरनेशनल स्तर पर हम कहांपीछे रह रहे हैं ऐसी स्‍थिति मेंतोमुझे लगता है कि हां अभी हमारा शोध और अनुसंधान के क्षेत्र में, पेटेंट के क्षेत्र में हमारा इतना काम नहीं हुआहै। मैं यहांके यशस्‍वी कुलपति जीको आग्रह करूंगा कि उसपर बहुत ध्यान दें और शोध और अनुसंधान की दिशा में छात्रों को आगे बढ़ाएं। वैसे भी हम ‘स्‍पार्क’के तहत दुनिया के 127देशोंके शीर्ष विश्वविद्यालयों के साथ शोध एवंअनुसंधान कर रहे हैं। हम‘स्‍ट्राइड’के तहत अंतर-विषयी शोध कर रहे हैं। हम ‘स्टार्स’ के तहत वैज्ञानिक क्षेत्र में शोध कर रहे हैं।हम ‘इम्‍प्रैस’ और‘इम्‍प्रिंट’ के साथ प्रौद्योगिकी,सामाजिक विज्ञान के क्षेत्र में शोध कर रहे हैं। अब अवसर आ गया है किहमको अनुसंधान के क्षेत्र में बहुत तेजी से दौड़ना है,भागना है और पूरे विश्व के शिखर पर जा करके यह साबित करना है कि हममें क्षमताएं हैं,हममें विजन भी है और उस विजन को क्रियान्वित करने का हममें मिशन भी है। इसलिए मैं समझता हूं यहबहुतअच्छा अवसर है। प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हर जगह हम उसका उपयोग करना चाहते हैं।इसलिएआपको मालूम होगा कि इस नई शिक्षा नीति में हम ‘नेशनलटेक्नोलॉजी फोरम’ ला रहे हैं। हम‘वन नेशन वन डिजिटल प्लेटफार्म’ और ‘वन क्लास वन चैनल’ यह दोनों पहलकर रहे हैं क्योंकि हम जो ऑनलाइन शिक्षा प्रदानकर रहे रहे हैं उससेअंतिम छोर का बच्चा भीशिक्षा से वंचित न रहे जिसके पास स्मार्ट टेलीफोन नहीं है, जिसके पास नेटकी सुविधा नहीं है वह हमारा टारगेट है वो इससेदूर नहीं रहनाचाहिए। इसके लिए भी हमनेजहां‘स्‍वयं’  है, वहीं ‘स्वयं प्रभा’ के32चैनलों पर हम काम कर रहे हैं जो चौबीसों घंटे चलेंगे जोकि डिश टीवी, रिलायंस टीवी,टाटा स्‍काई दूरदर्शन आदि पर प्रसारित होंगे। हम सामुदायिक रेडियो के द्वारा भीजाएंगे क्‍योंकि हमारा टारगेट उस अंतिम बच्चे को भी पकड़ना है और आपको मालूम है कि इस देश का कितना बड़ा वैभवहै।हिन्‍दुस्‍तान दुनिया में सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देशहै।यहांएक हजार से भी अधिक विश्वविद्यालय हैं, पैंतालीस हजार से भी अधिक डिग्री कॉलेजहैं और 55 लाख से भी अधिक स्कूल हैं, एक करोड़ नौ लाख से भी अधिक अध्यापक हैं और अमेरिका की कुल जितनी जनसंख्या नहीं है उससे भी अधिक 33 करोड़ छात्र-छात्राएं हैं और आगे आने वाले 25 वर्षों में यह देश यंग इंडिया रहने वाला है। मेरे छात्र-छात्राओं! आपके लिए पूरा मैदान खाली है आप कहां तक दौड़ सकते हैं। पूरी दुनिया आपको निहार रही है हर क्षेत्र में आपको महारत हासिल करनी है। ज्ञान में भी, विज्ञान में भी, शोध में भी अनुसंधान में भी, नवाचार में भी, प्रौद्योगिकी में भी हमको छलांग मारनीहै और मुझे भरोसा है कि मेरे सारे केंद्रीय विश्वविद्यालय इस दिशा में बहुत अच्छा काम कर रहे हैं और जिस केन्‍द्रीय विद्यालय के भवन का आज लोकार्पण हुआ है, जो नई कमिश्नर यहां पर आई हुयी हैंजब वह  मुझसे मिलने के लिए आई थी तो मैंने निधि से कहा कि ऐसा सौभाग्य बहुत कम लोगों को मिलता है कि कोई केन्द्रीय विद्यालय का कमिश्नर बन करके ऐसे जो हमारे हीरे हैं इनके बीच सुशोभित होमैं जब भी केन्द्रीय विद्यालयों में जाता हूं मेरा माथा ऊँचा होता है। मेरे बच्चे इतने प्रखर, संस्कारी, अनुशासित हैं। केन्द्रीयविद्यालय देश के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि है। इसीलिए आज केन्द्रीय विद्यालय का यहां पर उद्घाटन हो रहा है। मैं इसके प्राचार्य को धन्यवाद देना चाहता हूं, बधाई देना चाहता हूँ। मुझे भरोसा है कि केन्द्रीय विद्यालय जो यहाँ जनजाति का क्षेत्र है वहां पर जिस तरीके से हम लोग वोकेशनल एजुकेशन छठी से शुरू कर रहे हैं और जो परंपरा की बात हमने विश्‍वविद्यालय से लेकर के जो स्कूली शिक्षा तक कीहै जो हमारी धरोहर रही हैं जो हमारी सम्पदा है उसमें शोध अनुसंधान कैसे हो सकता है, वो आत्मनिर्भर भारत की धुरी कैसे बन सकता है, इसकी जरूरत है और इसलिए मुझे भरोसा है कि यहां से निकलने वाला मेरा छात्र पूरे देश के लिए एक ऐसे हीरे की तरह लोगों के आकर्षण का केन्द्र बन सकता है उस देश के लिए एक विजनवाला छात्र कैसे हो सकता है। मेरे केन्‍द्रीय विश्‍वविद्यालय होंऔर चाहे मेरा केन्द्रीय विद्यालय है और मुझे भरोसा है कि आज जिस भवन का उद्घाटन हो रहा है मैं उनके अभिभावकों को बहुत बधाई देना चाहता हूँ जो बहुतअच्छे तरीके से अपने बच्चों को केंद्रीय विद्यालयों में प्रवेश करा रहे हैं। मेरा बच्चा अगरकेन्द्रीय विद्यालय में चला गया तोवहहीरा बन जायेगा और बन भी रहा है। मैं आपको कहना चाहता हूँ आपसे बहुत अपेक्षाएँ होती हैं। आपसे आपके मां बाप की अपेक्षाएं बहुत हैं। आपसे आपके प्रदेश की अपेक्षाएं बहुत हैं। आपसे मेरे देशकी अपेक्षाएं बहुत हैं। आपको हीरा बनना है वो खुशबू बिखेरनी है दुनियामें जब पूरा देश आप पर गर्व कर सकेगा।जब दुनियाभी आप पर गर्व कर सकेगी और वो दिन दूर नहीं सारी दुनिया आज हिन्दुस्तान की ओर निहार रही है। हमारे देश के यशस्‍वी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी की अगुवाई में जिस तरीके से चौतरफा,जैसाकिअभी कुलपति कह रहे थे कि चाहे ‘सबका साथ सबका विकास’ हो और चाहे वो ‘आत्मनिर्भर भारत’ की बात हो और चाहे ‘वो मेक इन इंडिया’ की बात हो चाहे ‘स्‍किलइंडिया’ की बात हो हरक्षेत्र में भारत लीडरशिप ले रहा है और इसीलिए यह हमारे लिए बहुत अच्छा क्षण है और मैं शुभकामना देना चाहता हूं आप बधाई के पात्र हैं। इसराष्ट्रीय जनजाति विश्वविद्यालय कीअलग पहचान होनी चाहिए। इस क्षेत्र की जो सम्‍पदाएं हैं, जो कलाएं हैं, जो परंपराएं हैं हमउन परम्पराओं, कला, विचार,कौशल को कैसे विकसित कर सकते हैं। यहजो हमारे छात्र हैं, उसी के हाथों उनका कौशल विकास होते होते यह भारत आत्म निर्भर किस तरीके से बन सकता है, इसके लिए भी मैं आपको शुभकामना देना चाहता हूँ। मुझे भरोसा है कि आप इस मिशन में सफल होंगे। केन्द्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति जी और आदरणीय कुलाधिपति जी, मैं देख रहा था कि कुलाधिपति जी भी जीवनभरशिक्षा के लिए समर्पित रहे हैं और अब अमरकंटक जैसे विश्वविद्यालय में वो कुलाधिपति होकर आये हैं। निश्चित रूप से कुलाधिपति जी के मार्गदर्शन में कुलपति एक योद्धा की तरह अपनी पूरी टीम को साथ ले करके इस विश्वविद्यालय को शिखर तक पहुंचाएंगे, ऐसा मेरा भरोसा है क्योंकि प्रकाश जी कोभी मैं जानता हूं, मेहनती है,विजनरी हैं सबको साथ लेकर चलने की हिम्मत रखते हैं, विजन रखते हैं,मिशन रखते हैं और इसलिए मुझे कोई शंका नहीं है कि मेरा यहजोविश्वविद्यालय है बहुत तेजी से आगे बढ़ेगा। यह अपनीसफलता के शिखर को चुमेगा। देश के अंदर केन्द्रीय विश्वविद्यालयों में एक अलग स्थान बनाएगा। मैं पूरी फैकल्टी को, कर्मचारियों को, छात्रों को, छात्राओं को और पूरे विश्वविद्यालयपरिवार और केन्‍द्रीय विद्यालय परिवार को बहुत बधाई देता हूं।

 

बहुत-बहुत धन्‍यवाद!

 

 

कार्यक्रम में गरीमामयी उपस्‍थिति:-

 

  1. डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’, माननीय शिक्षा मंत्री, भारत सरकार
  2. श्री संजय शामराव धोत्रे, माननीय शिक्षा राज्‍य मंत्री, भारत सरकार
  3. श्रीमती हिमाद्री सिंह, संसद सदस्‍य, लोक सभा
  4. डॉ. मुकुल शाह, कुलाधिपति, इन्‍दिरा गांधी राष्‍ट्रीय जनजातीय विश्‍वविद्यालय, अमरकंटक (मध्‍य प्रदेश)
  5. प्रो. श्री प्रकाशमणि त्रिपाठी, कुलपति, इन्‍दिरा गांधी राष्‍ट्रीय जनजातीय विश्‍वविद्यालय, अमरकंटक (मध्‍य प्रदेश)
  6. श्री पी. सिलुवनाथन, कुलसचिव, इन्‍दिरा गांधी राष्‍ट्रीय जनजातीय विश्‍वविद्यालय, अमरकंटक (मध्‍य प्रदेश)
  7. श्री नीतिश कुमार, प्रधानाचार्य, केन्‍द्रीय विद्यालय, अमरकंटक, मध्‍य प्रदेश