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आईआईआईटीएससी चित्‍तूर में इलैक्‍ट्रानिक और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा वित्‍त पोषित प्रौद्योगिकी व्‍यवसाय इन्‍क्‍यूवेटर- ज्ञान सर्कल वेंचर्स का उद्घाटन

आईआईआईटीएससी चित्‍तूर में इलैक्‍ट्रानिक और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा वित्‍त पोषित प्रौद्योगिकी व्‍यवसाय इन्‍क्‍यूवेटर- ज्ञान सर्कल वेंचर्स का उद्घाटन

 

दिनांक: 08 अक्‍टूबर, 2020

 

 

माननीय शिक्षा मंत्री, डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’

 

ज्ञान सर्कल वेंचर के उद्घाटन के अवसर पर यहां उपस्‍थित आईआईआईटी श्रीसिटी बीओजी के अध्‍यक्ष श्री बाला एम. एस जी, हमारे उच्‍च शिक्षा के सचिव श्री अमित खरे जी,आईआईटी के सचिव श्री अजय प्रकाश साहनी जी, आंध्र प्रदेश के विशेष मुख्‍य सचिव श्री सतीश चन्‍द्रा जी, आईआईआईटी के निदेशक प्रो. जी. कन्‍नावरन जी, श्रीसिटी फाउंडेशन के अध्‍यक्ष श्री श्रीनवासाराजू जी,  सभी संकाय सदस्‍य, छात्र-छात्राएं! आंध्र प्रदेश के सभी अधिकारी और हमारे साथ जुड़े विभिन्‍न संस्‍थाओं के सभी उपस्‍थिति भाइयो और बहनों! मुझे आज इस सेन्‍टर का उद्घाटन करते हुए बहुत खुशी हो रही है और पीछे के समय में जब मैं आंध्र प्रदेश के प्रवास पर था तब श्रीसिटीकेबारे मुझे अवगत कराया गया था वो बहुत सारी आशाओं का संचार करता है,उससे मुझको एक नयी किरण महसूस होती है और आज उस अभियान को आपने आगे बढ़ाया है, इसके लिएमैं बहुत बधाई देना चाहता हूं। आज मैं समझता हूं कि हिन्दुस्तान में आईआईआईटीपीपीपी मोड का यह बहुत खूबसूरत मॉडल है। पूरी दुनिया के लिए यह बहुत ही सुंदरतम है और देश के लिए भीबहुत सुंदरतम हैं।

जबमैंट्रिपलआईटी की समीक्षा करता हूं तो मुझे बहुत खुशी मिलती है कि ऐसा पीपीपी मॉडल जिसमें केंद्र सरकार, राज्य सरकार और उद्योगों के लोग जुड़े सभी लोगों की सहभागिता है। इसमें 50 प्रतिशत का जो अंशदान है वो केंद्र सरकार करती है और 35 प्रतिशत का राज्य सरकार करती है और शेष15 प्रतिशत में उद्योग जगत की सहभागिता होती है। बहुत खूबसूरत तरीके से हमारे देश भर में पच्चीस आईआईआईटीसंचालित हो रहे हैं जिसमें केवल पांच सरकारी हैं और जो शेष 20 हैं वो पीपीपी मोड में हैं और बहुत अच्छा काम कर रहे हैं यदि इनकी अवस्थापना से लेकर के  इस विकास की यात्रा को मैं देखता हूं तो मुझे खुशी होती है और यह निश्चित रूप में नई आशा को बोते हैं, नई आशा का संचार करते हैं। मैं बीओजी के चेयरमैन श्री बालाजी जिनको अभी हाल में ही हम लोगों ने नियुक्त किया है, मैं आपको शुभकामना देना चाहता हूं। आपने ज्वाइन करते ही यहबहुतअच्छा कार्यक्रम आयोजित किया है।

मैं समझ सकता हूं कि आपमें क्या छटपटाहट है? मेरे निदेशक और आप दोनों मिल करके जो मंशा मेरे देश के प्रधान मंत्री जी की आत्मनिर्भर भारत और21वीं सदी के स्वर्णिम भारत की है जो समर्थ भारत होगा, जो सशक्‍त भारत होगा,जो आत्मनिर्भर भारत होगा और जो श्रेष्ठ होगा। ऐसा भारत जो मेक इन इंडिया, डिजिटल इंडिया, स्किल इंडिया, स्टार्ट अप इंडिया,स्टेंडर्ड इंडियाके रास्ते से होकरके विश्व की प्रतिस्पर्द्धा पर 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था की दिशा में 2024 तक खड़ा होगा । ऐसे भारत की उस यात्रा में जहां इस समय नई शिक्षा नीति उसका आधार स्तंभ बन कर के होगी ।

जिस नई शिक्षा नीति के बारे में आपने देखा है कि यह नेशनल भी होगी,यह इन्टरनेशनल भी होगी, यह इन्क्लूसिव भी होगी तो इम्पैक्टफुल भी होगी तो इसमें इक्विटी भी होगी, क्वालिटी एवंएक्सेस इसकी आधारशिला होगी। मैं समझता हूं कि जो यह नई शिक्षा नीति आई है वह भारत केंद्रित होगी लेकिन ज्ञान, विज्ञान, अनुसंधान, प्रौद्योगिकी और नवाचार की दिशा में पूरे विश्व की प्रतिस्पर्धा पर कहीं भी खड़ी होगी।

ऐसे वक्त पर आपके संस्थान ने इस समय जोयह शुरुआत की है मैं समझता हूं यह बहुत अच्छी शुरुआत है औरमुझे मालूम है कि 2013 में श्री सिटी प्राइवेट लिमिटेड की भागीदारी के साथ हम लोगों ने यह संस्थान शुरू किया है और कंप्यूटर विज्ञान और अभियांत्रिकी और इलेक्ट्रॉनिक्स और संचार अभियान्त्रिकी में जो बी.टेक कार्यक्रमों के अतिरिक्त आपने जो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और मशीन लर्निंग मेंएम.टेक और पीएचडी के कार्यक्रम शुरू किये हैं इसकी भी मैं आपको बधाई देना चाहता हूँ। उभरते हुए क्षेत्रोंमें विशिष्‍ट इंजीनियर्स तैयार करने की एक अन्य नई पहल के साथ ही आपने कुछ और भी अभी पाठ्यक्रम शुरू किए हैं।

\मैं समझता हूँ कि आज सूचना प्रौद्योगिकी के सन्‍दर्भ में जैसाअमित खरे जी ने कहा और साहनी जी ने भी जिस बात को कहा है और साहनी जी ने बहुत सारी चीजों को कहा है जो मेक इन इंडिया और डिजिटल इण्डिया और इनतीनों को जोड़तेहैं। बालाजी हमइन तीनों के बीच की कड़ी को आईआईआईटी औरआईआईटी जैसे हमारे उन संस्थानों के हाथों में देते हैं तो मैं यह समझता हूँ कि निश्चित रूप में जो आज यह शुरूआत हुई है यह बहुत गर्व की बात है और यह शुरुआत निश्चित रूप से अन्य अवसर प्रदान करेगी और नवाचार कोनिश्चित रूप में आगे बढ़ाएगी।

अभी हमारे आन्ध्र प्रदेश के मुख्य विशेष सचिव ने कहा है तो मैं उन्‍हें भरोसा दिलाता हूं कि आन्ध्र को हमने संभवत जितना दियाहै जैसेतीन-तीन तो केन्द्रीय विश्वविद्यालय मैंने आपके हाथों में सौंपे हैं, एक जनजाति विश्वविद्यालय दिया है और एक संस्कृत विश्वविद्यालय भीदिया हैजो आपका पहले डीम्ड था अब उसको केन्द्रीय विश्वविद्यालय बना दिया है। आपका आईआईटी, एनआईटी, आईसर सारा सब कुछ हमने आंध्र को दे दिया। यह देश के इतिहास में एक वर्ष में सबसे ज्यादा केन्‍द्र की योजनाओं का लाभ मिलने वाला कोई प्रदेश है तो वह आंध्र प्रदेश है तथा साथ ही हजारों करोड़ रुपए भी दे रहे हैं। आप अपने चीफ मिनिस्टर साहब को मेरी शुभकामना दीजिए और उनको कहिए कि हम चाहते हैं कि आन्ध्र प्रदेश तथा इस श्रीसिटी पर पूरा ध्यान केन्द्रित होना चाहिए।

हम भी इस दिशा में इन सबके एक संयुक्‍त प्रबंधन बनाने के बारे में विचार कर रहे हैंताकिश्रीसिटी को एक विश्व के लेबल का संस्‍थान हम बना सकें। देश और दुनिया के लोग हमारे पास आकर के कुछ ले करके जाएं। अभी इसकी जरूरत है और अभी उसकी शुरूआत हो गई है। हमारा देश अबकरवट ले रहा है और भारत अभी कहीं भी पीछे नहीं है। विज्ञान एवं अनुसंधान की दिशा में हम लोग आगे बढ़ रहे हैं। जब अभी कोरोना के इस संकट काल में भी मैंने देखा जब हमारे देश के प्रधानमंत्री जी ने कहा कि इस विषम परिस्थिति में मेरे नौजवान क्या कर सकते हैं? तो मेरे आईआईटी,आईआईआईटी और हमारे विश्वविद्यालय के लोग आगे आए। जब लोग अपने घरों में होंगे तब मेरे छात्रों, मेरे अध्यापकगणों ने प्रयोगशालाओं में जुटकर के कई सस्ता वेंटीलेटर और कहीं वो मास्‍कतैयार कर रहे थे तो कहीं वो ड्रोन तैयार कर रहे थे जो स्‍वत: संचालित सभी कार्य करता हो तथा कहीं वे टेस्‍टिंग किट के निर्माण की दिशा में सक्रिय थे आपको याद होगा इससे पहले देश में ऐसी कुछ परिस्‍थितियांनहीं थी और हम बहुत कम टेस्ट कर पाए थे लेकिन हमारे आईआईटी के छात्रों ने ऐसे टेस्टिंग किट का निर्माण किया जो कम समय में और लगभग शत-प्रतिशत रिजल्ट देने की क्षमता  रखते हों और आज दुनिया को हम उसको दे रहे हैं। कोरोना की महामारी से जो चुनौतियां उत्‍पन्‍न हुई थीं उन चुनौतियों को हमने अवसरों में तब्दील किया है और इसलिए मैं कह सकता हूं कि हमारे इन संस्थानों में बहुत ताकत है।

21वीं सदी में पूरे विश्व को भारत से बहुतउम्मीदें हैं। हम टैलेंट और टेक्नोलॉजी इन दोनों का समन्वय करेंगे। हमारे पास टैलेंट की कमी नहीं है। दुनिया की बड़ी से बड़ी कम्‍पनियों केसीईओ बन कर के हमारे यहां का छात्र उसको लीडरशिप देता है और इसीलिए जैसे अभी अमित खरे जी ने कहा है कि विद्यार्थियों में क्रिटिकल थिंकिंग और इनोवेटिव थिंकिंग के माध्यम से हमें शिक्षा को बढाना है और आज इसी की जरूरत है। पाश्‍चात्‍य विद्वान अनातोली फ्रांसिस ने एक जगह लिखा था कि शिक्षा का यह मतलब नहीं है कि आपने कितना कुछ याद किया हुआ है या यह नहीं है कि आप कितना जानते हैं। शिक्षा का मतलब है कि आप जो जानते हैं और जो नहीं जानते हैं उसमें अंतर कर पाते हैं कि नहीं कर पाते। उस दिन दोनों के बीच अंतर ही वास्‍तविक शिक्षा है।मैं यह समझता हूँ कि आज के समय में जानने और समझने तथाउसके बीच के अंतर को निश्चित रूप से हमें टेक्नोलॉजी के माध्यम से दूर करना है।

मैं समझता हूं कि कैसे करकेइसकी और संभावनाओं को तलाशना है। आज भौगोलिक और सामाजिक परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए सभी को गुणवत्तापूर्ण शिक्षण सामग्री कैसे हम प्रदानकर सकते हैं इसकी भी जरूरतहै।वैसे भी हिन्दुस्तान आगे 25 वर्षों तक यंग इंडिया रहने वाला है। पूरी दुनिया के सामने हिंदुस्तान यंग इंडिया के रूप में रह कर कुछ भी कर सकता है और उसके लिए यह बहुत अच्छा अवसर है। आज वैश्विक अर्थव्यवस्था के प्रमुख चालकों में से एक ‘ज्ञान’ अर्थव्यवस्था है यदि ‘ज्ञान’ अर्थव्यवस्था कोदेखंगे तो इस पर निर्भर करता है कि ज्ञान और उद्यमशीलता को पनपने के लिए उन्नत संस्थान  से ज्ञान के प्रसार के लिए दक्ष कार्यबल वाला शिक्षित समाज खड़ा हो रहा है कि नहीं। तीसरा शैक्षिक विमर्शों, सिविल सोसाइटी और निजी संस्थानों के मध्य में एक अच्छे अनुसंधान और अन्वेषण की दिशा में हम आगे बढ़ रहे हैं कि नहीं और जो चौथा है वह यह है कि सूचना और संचार प्रौद्योगिकी एक समान पहुंच कैसे हो सकती है।यह हमारे सामने चुनौती है और इन चुनौती का जब हम मुकाबला करेंगे तो यह अवसर में तब्दील होगी। मुझे खुशी है कि ज्ञान सर्किल वेंचर्स जैसे केन्द्रों से युवाओं मेंउद्यमिता की भावना पैदा करने और उनको नवाचार के साथ आगे बढ़ने का एक बहुत सुखद अवसर मिलेगा। भारत विश्व कीतेजी से उभरती अर्थव्यवस्था है।

आपने देखा होगा कि यह संभवत दुनिया के इतिहास में पहला अवसर था जबभारत को 200 बिलियन से 3 ट्रिलियन डॉलर अर्थव्यवस्था बनाने में केवल 5 वर्ष लगे हैं और अब हमारे देश के प्रधानमंत्रीजी ने कहा है 2024 में 5 ट्रिलियनअर्थव्यवस्था की ओर जाना है। आत्मनिर्भर भारत का जो रास्ता है वह आपसे होकर गुजरता है और इसीलिए हमने जो यहपीपीईमॉडल रखा है जिसमें ट्रिपलआईटी का जो यह कार्यक्रम कर रहे हैं। अभी तक क्या था कि हमारे आईआईटीज जो पाठ्यक्रम चलाते थे, सिखाते थे, जो आगे बढना दिखाते थे वो और इन उद्योगों के बीच अंतर था। हमने इसके अंतर को पाटा है। उद्योगों को हम अपनी आईआईटीकेसाथ जोड़ करके पाठ्यक्रम तैयार कर रहे हैं ताकि उद्योगों को पाठ्यक्रम औरपाठ्यक्रम को उद्योगों की आवश्‍यकता समझ में आ सके इसीलिए इस नई शिक्षा नीति में हम वोकेशनल स्ट्रीम के साथ इंटर्नशिप के साथ लाये हैं।अबहम कक्षा 6 से ही वोकेशनल ट्रेनिंग देंगे। शायद दुनिया का पहला देश होगा हिंदुस्तान जो स्कूली शिक्षा से आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस को पढ़ाएगा। एक समय था जब देश सीमाओं पर सुरक्षा के संकट से जूझ रहा था और उसीसमय देश आन्तरिक खाद्यान के संकट से भीजूझ रहा था। लालबहादुर शास्त्री जी जब देश के प्रधानमंत्री थे तब इन दोनों संकटों को एक साथ देश ने झेला और लालबहादुर शास्त्री जी ने ‘जय जवान जय किसान’ का नारा दिया तथा पूरा देश खड़ा हो गया दोनों संकटों का हमने मुकाबला किया।

उसके बाद जब भारत रत्न अटल बिहारी बाजपेयी जी देश के प्रधानमंत्री बने तो अटल जी ने ‘जय विज्ञान’ का नारा दिया था और परमाणु परीक्षण करके पूरी दुनिया को बताया था कि हिंदुस्तान कमजोर नहीं है औरतीसरी महाशक्ति के रूप में उभरने का रास्ता दिखाया था और हमारेवर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने कहा है कि ‘जय जवान जय किसान’,‘जय विज्ञान’ के बाद अब ‘जय अनुसंधान’ की जरूरत है। हमारे पास जो कुछ भीहै उसे हमनवाचार एवं अनुसंधान के साथउच्चतम शिखर तक ले जाना चाहते हैं। पूरी दुनिया की प्रतिस्पर्धा पर आना चाहते हैं इसलिए अनुसंधान की दिशा में भी ऐसा नहीं है कि हम चुप हैं। हम ‘स्पार्क’ के तहत पूरी दुनिया के 127शीर्ष विश्वविद्यालयों के साथ शोध कर रहे हैं।

अभी आसियान देशों केएकहजार बच्चे हमारे आईआईटी में शोध और अनुसंधान के लिए आ रहे हैं और अब हमनेशनल रिसर्च फाउंडेशन की स्थापना कर रहे हैं जो प्रधानमंत्री के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार की अध्यक्षता में हो रहा है। मैं जब-जब इन संस्थानों की समीक्षा करता हूं और विश्व स्‍तरपर उनकीप्रतिस्पर्धा का आकलनकरता हूं तो मुझे लगता है शोध और अनुसंधान हमारी कमजोर कड़ी है। हम पेटेंट की दिशा में अभी पीछे हैं। हम उस खाई को भी तेजी से पाटना चाहते हैं और नेशनल रिसर्च फाउंडेशन की दिशा में हम आगे बढ़ रहे हैं।

वहीं टेक्नालोजी के क्षेत्र में नेशनलटेक्नोलॉजी फोरम का गठन करके हम तेजी से टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में भी‘वन नेशन वन डिजिटल प्लेटफार्म’ के माध्यम से इस दिशा में आगे बढ़ना चाहते हैं और यह नयी शिक्षा नीति इसी दिशा में एक सशक्त कदमहै। मुझे भरोसा है कि हम इस दिशा में आगे बढ़ेंगे और वैश्विक नवाचार तथा ग्लोबल ब्रांड के रूप में हम शानदार प्रदर्शन अभी भी कर रहे हैं।हमनेग्लोबल इनोवेशन इंडेक्स 2020 में चार पायदानों पर छलांग लगायी है औरविश्व बौद्धिक संपदा संगठन की वार्षिक रैंकिंग में सर्वोच्च 50 नवाचारी राष्ट्रों की सूची में अभी हम 48वें नंबर पर आये हैं तो इसका मतलब जो रैंकिंग में सुधार की लगातार गतिमयता को हम सार्वजनिक और निजी स्रोत संगठनों की सहभागिता से शानदार प्रदर्शन दुनिया में कर पा रहे हैं।

इसीलिए मैं समझता हूं कि ठीक है लाखों समस्याएँ हमारे सामने हैं लेकिन उन समस्याओं के निदान के लिए लाखों नहीं करोड़ों मस्तिष्क हमारे पास हैं। हम उन समस्याओं के समाधान की दिशा में तेजी से आगे बढ़ेंगे, ऐसा मेरा विश्वास है। आज इस कार्यक्रम मेंआईआईआईटी श्रीसिटी और शिक्षा मंत्रालय के नवाचार प्रकोष्ठ भाग ले रहे हैं और हमारा भी नवाचार प्रकोष्ठ जिसने अभी स्मार्ट इंडिया हैकाथन किया था और आपको मालूम है कि उसमें किस तरीके से हमारे बच्‍चे बड़ी तेजी से बढ़ कर के आगे आये थे तो मैं यह समझता हूँ कि जो आज का कार्यक्रम शुरू हो रहा है निश्चित रूप में ज्ञान, विज्ञान, अनुसंधान, कौशल विकास आदि सभी क्षेत्रों में हम इस नयी शिक्षा नीति के साथ इन चीजों को उभरते हुए आगे विश्वपटल पर हिंदुस्तान को पूरे विश्व में ज्ञान की महाशक्ति के रूप में हम स्थापित करने में सफल होंगे। हम विश्वस्तरीय कंटेंट से लेकर के पेटेंट तक रिफॉर्मभी करेंगे,ट्रांसफॉर्मभी करेंगे और परफॉर्म भी करेंगे तथा निश्चित रूप में हम हर क्षेत्र में आगे बढ़ेंगे और इसीलिए मैं एक बार जो आज यहबहुतसुखद और बहुत अच्छी जो एक नई शुरुआत आपनेकी है उसके लिए आपको बधाई देता हूं और मैं साहनी जी से कहना चाहूंगा कि मैदान आपके लिए खाली है।

मैं अमित जी से भी कहना चाहूंगा आप दोनों लोग मिल करके कुछ भी कर सकते हैं। मेरे आईआईआईटी, मेरे आईआईटी, मेरे एनआईटी,मेरे आईसर तथाहमारे विश्वविद्यालय पूरी ताकत के साथ सामने खड़े हैं। मैदान भी खाली है अब तो दौड़ने की ज़रूरत है और नवाचार के साथ, नए अनुसंधान के साथ, नई तकनीकीके साथ, नए विचारों के साथ और जो आत्मनिर्भर भारत का एक सूत्र हमारे देश के प्रधानमंत्री जी ने दिया है हमें उस रास्‍ते पर आगे बढ़ने की आवश्‍यकता है।हमने आज शुरूआत की है जोन केवल आन्ध्र प्रदेश को सशक्त करेगी बल्कि मेरे देश को भी सशक्‍त करेगी और देश में इसकापरिवेशभी बनेगा। पूरी दुनिया के लोग तो हिंदुस्तान में पहले भी आते थे।

अभी हमारे बीओजी के चेयरमैन ने भगवद् गीता के कई उदाहरण दिए और मैं कहना चाहता हूँ कि इस देश के बारे में एक उक्ति है ‘एतद्देशप्रसूतस्य सकाशादग्रजन्मनः स्वं स्वं चरित्रं शिक्षेरन्पृथिव्यां सर्वमानवाः’ सारी दुनिया के लोग हमारे यहाँ आकर के सीखते थे। तक्षशिला, नालंदा, विक्रमशिला जैसे विश्वविद्यालय हमारे पास थे जो ज्ञान, विज्ञान, अनुसंधान के शिखर पर थेशल्‍य चिकित्सा का जनक सुश्रुत,भास्कराचार्य जैसा वैज्ञानिक,योग के आचार्य पतंजलि से लेकर नागार्जुन तथा आर्यभट्ट जैसे विद्वान हमारी ही धरती  पर पैदा हुए हैं इसलिए  ज्ञान और विज्ञान की पराकाष्‍ठा पर हम रहे हैं।

पूरी दुनिया इस बात को जानती है कि दुनिया में ज्ञान और विज्ञान का कोई खजाना था तो हिन्दुस्तान था। वह मेरा हिन्दुस्तान इस समय करवट ले रहा है और निश्चितरूप से वो फिर विश्वगुरु के रूप में आगे बढ़ेगा और इसकी आधारशिला में हम लोग साक्षीबन करके काम करेंगे। मैं एक बार फिर आपको शुभकामनाएं देता हूं और बधाई देता हूं।

 

बहुत-बहुत धन्‍यवाद!

 

कार्यक्रम में गरिमामयी उपस्‍थिति:-

 

  1. डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक, माननीय शिक्षा मंत्री, भारत सरकार
  2. श्री अमित खरे, सचिव, उच्‍चतर शिक्षा, शिक्षा मंत्रालय
  3. श्री अजय प्रकाश साहनी, सचिव, आईआईटी
  4. श्री सतीश चन्‍द्रा, विशेष मुख्‍य सचिव, आंध्र प्रदेश सरकार
  5. श्री बाला एम.एस, अध्‍यक्ष बीओजी, आईआईआईटी श्रीसिटी, आंध्र प्रदेश
  6. प्रो. जी. कन्‍नावरन, निदेशक, आईआईआईटी श्रीसिटी, आंध्र प्रदेश
  7. श्री श्रीनिवासाराजु, अध्‍यक्ष, श्रीसिटी फाउंडेशन

 

 

भारतीय दर्शन के संदर्भ में जगतगुरुनानक देव जी के विचारों पर चर्चा

भारतीय दर्शन के संदर्भ में जगतगुरुनानक देव जी के विचारों पर चर्चा

 

दिनांक: 05 अक्‍टूबर, 2020

 

 

माननीय शिक्षा मंत्री, डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’

 

आज जो यहां भारतीय दर्शन के परिप्रेक्ष्‍य में गुरू नानक जी के चिंतन से संबंधित बहुत ही महत्‍वपूर्ण कार्यक्रम आयोजित हो रहा है, मैं इस अवसर पर देश के विभिन्‍न क्षेत्रों से और पूरी दुनिया से इस महत्‍वपूर्ण कार्यक्रम में जुडने वाले सभी भाइयों ओर बहनों का अभिनन्‍दन करना चाहता हूं।  सरदार इन्‍द्रजीत जी अध्‍यक्ष, राष्‍ट्रीय सिक्‍ख संगठन दिल्‍ली प्रदेश एवं गुरू नानक देव जी के 550वें प्रकाशोत्‍सव की आयोजन समिति के सदस्‍य डॉ. अमरजीत जी निदेशक संकल्‍प ग्रुप तथा अन्‍य सभी सम्‍मानित सदस्‍यगण।

मुझे लगता है कि इन दोनों लोगों ने जिस प्रकार इस आयोजन को किया है उसके लिए मैं इनका अभिनन्‍दन करता हूं और जो इस कार्यक्रम की अध्‍यक्षता कर रहे हैं आदरणीय सरदार गुरूचरण जी अध्‍यक्ष, राष्‍ट्रीय सिक्‍ख संगत उनके अलावाकुलपति डॉ. एन. के तनेजा जी, कुलपति प्रो.आशा शुक्‍ला जी, डॉ. सच्‍चिदानन्‍द जोशी जी,सदस्‍य सचिव आईजीएनसीए प्रो. रतन जी, सदस्‍य सचिव आईसीकेआर और अन्‍य बहुत सारे महत्‍वपूर्ण लोग इस कार्यक्रम से जुड़े हैं।जब हम भारत की बात करते हैं, भारत के दर्शन चिंतन और संस्कृति की बात करते हैं तो फिर हमको भव्य भारत का दृश्य नजर आता है।ऐसा भारत जिसने पूरी दुनिया का मार्गदर्शन किया है,पूरी पृथ्वी के लोग जिस भारत में आकर के नया जीवन दर्शन ले करके जाते हैंवोभारत विश्वगुरु रहा है जिस देश की धरती पर आकर के मानवता का पाठ लेकर दुनिया गई है, जिसकी धरती पर आकरके उसने नया जीवन जीना सीखा है, जिस धरती की प्रेरणा पाकर उसनेअपने जीवन को सफल बनाया है और वोभारत जो ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की बात करता हैऔरधरती कोमां मानताहै और इस धरती पर रहने वाले हर प्राणी, जीव-जंतु को अपना अंग मानता है और उसके सुख की कामना करता है।

इसलिए हमने उस पूरे परिवार की कल्पना की और उसके बारे में कहा‘अयं निज: परो वेति गणना लघु चेतसाम्। उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्‍बकम्’यह जो पूरीवसुधा है यहमेरापरिवार है। मैं इसकी सुख शांति की कल्पना ही नहीं करूँगा बल्‍कि‘सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया’ जब तक धरती पर कोई भी प्राणी दुखी रहेगा तब तक मैं सुख काअहसासनहीं कर सकता,यह जो चिन्तन है यह मेरे भारत का चिंतन है, जिस भारत के चिंतन से इसधरती पर पैदा हुए गुरू नानक जी जिन्होंने उस परम्परा को, उस चिन्तन को, उस मंथन कोपूरी दुनिया में सरसाया है उस भारत के चिन्तन पर खड़े हो करके जो कहता है ‘असतो मा सद्गमया’असत्य से सत्य की ओर जानाहै और ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ अंधकार से प्रकाश की ओर जाने की बात करता है,आज हम जैसा कि गुरू नानक देव जी का 550वां प्रकाशोत्‍सव मना रहे हैं औरगुरु नानक देव की जरूरत भारत को हीनहीं बल्‍किपूरी दुनिया को है और इसलिए पूरी दुनिया इस उत्सव को मना रही है और यहउत्सव भी प्रकाश का उत्सव है ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’यह जो भारत का चिंतन है अर्थात्अंधेरे को मिटा करके उजियारा करने की जोअभिप्षाहै, जो अंधकार को हटाकर प्रकाश देने की अभिप्‍षा है इस समय उस प्रकाश के उत्सव का आयोजन निश्चित रूप में बहुत महत्वपूर्ण है।

मैं सबसे पहले आयोजकों को बहुतशुभकामनाएं देना चाहता हूं, बधाई देना चाहता हूं, उनका आभार प्रकट करना चाहता हूं क्‍योंकिजब समाज में इस तरीके की सक्रियता और गतिविधियां होती हैं तो संस्कार पैदा होता है, एक परिवेश बनता है जोउस भारत को खड़ा करता हैजिस भारत कीपूरी दुनिया को जरूरत है और इसीलिए आजजो यहकार्यक्रम आयोजित हुआ है यह अपने आप में बहुत महत्वपूर्ण है और इसलिए मैंने कहा कि यह प्रकाश का उत्सव है चाहेअंधेरा अज्ञान का हो, चाहे अन्‍य प्रकार का अंधेर हो, मनुष्य के हृदय के पटल में कहींभी कुछ अंधेरा है तो उसको प्रकाशितकरनेकी जरूरतहै उसका जो हेतु है उस हेतु को साकार करने के लिए आज आपने भारतीय दर्शन के परिपेक्ष्य में गुरु नानक देव जी के चिन्तन संबंधितगोष्ठी का आयोजन किया है। इस अवसर पर प्रकाशक जी आपने गुरू नानक देव जी पर जोपुस्तक छापी है वह बहुत ही खूबसूरत है। गुरु नानक देव जीसंस्कारों की बात करतेथे,विचारों की बात करते थे।

पीछे के समय में जबयूनेस्को की डीजी भारत आई थी तो उन्‍होंने इस बात को लेकर चिंता व्यक्त की थीकि आतंक की बात क्‍यों हो रही है, हिंसा की बातक्यों हो रही, अनुशासनहीनता की बातक्यों हो रही है, ऐसी परिस्‍थितियांक्‍यों पैदा हो गयी कि असंतोष है,अनुशासनहीनता है तो इसको लेकर के पूरी दुनिया चिंतित है तो आज जब हम गुरू नानक देव जी की 550वां प्रकाशोत्‍सव मना रहे हैं, तो मुझे लगता है कि गुरू नानक देव जी वाणी को, उनके विचारों को, उनके अंदर की आत्मा की आवाज को सरल और सहज शब्दों में अपनी पीढ़ी में बांटने की जरूरत है और इसीलिए जो पुस्तक आपने निकाली हैं उसके लिएमैंप्रकाशक जी को धन्यवाद देना चाहता हूं। इस पुस्‍तक के माध्‍यम से गुरू नानक देव जी के विचारों को विभिन्‍न छोटी-छोटी कहानियों वो चाहे‘गुरु ज्ञान’ हो,‘बैद्य की व्याधि’हो,‘सच्चा सौदा’हो,‘सब कुछ तेरा’ हो,‘मानवता सच्चा धर्म’ हो,‘सच्ची आराधना’ हो,‘मेहनत को सम्मान’ हो,‘अनोखा आशीर्वाद’हो,‘सिद्धों के परीक्षा’ हो,‘हृदय परिवर्तन’ हो इन सबको जब छात्र पढ़ेंगे तो वे अपने जीवन में गुरू नानक देव जी के विचारों को उतारेंगे। गुरु माने जो प्रकाश दे, गुरु माने ज्ञान, गुरु माने जो राह दिखाए और हमारे यहां तो यही परंपरा रही है।

भारतीय दर्शन में हमने कहा है ‘गुरुर ब्रह्मा गुरुर विष्णु गुरु देवो महेश्‍वरागुरु साक्षात् परम ब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नमा:’ गुरू ईश्‍वर से बढ़कर है, यह जो गुरु है यह ब्रह्मा भी है, यह ईश्वर भी है और इसीलिए हमारे संत कबीर ने कहा ‘गुरुगोबिंद दोऊ खड़े काके लागू पाय बलिहारी गुरु आपने गोबिन्द दियो बताए’कियदि एक तरफ ईश्वर है और दूसरी तरफ गुरू है तो पहले किसको प्रणाम करेंतो इस बात को लेकर किसी के मन में कोई संकोच नहीं होगा कि वह प्रथम अपने गुरू की चरण वंदना करेगा क्‍योंकि भगवान तक जाने का रास्‍ता तो मुझे गुरू ने ही दिया है इसलिए पहले गुरु का स्थान है।यह है हमारी परम्परा, यह है हमारी संस्कृति, यहहैहमारे विचार, यह है हमारा दर्शन और उसी दर्शन को गुरु नानक देव जी ने किस तरीके से आगे बढ़ाया हैउस उपलक्ष्‍य में आप सब लोगों ने बहुत अच्छा कार्यक्रम आज आयोजित किया है। मुझे लगता है की जो भारत आध्यात्म की धरती रही है और हमेशाही संतों, महात्माओं और गुरुओं ने यहां जन्म लिया है। जब भी किसीहताशा और कुहासा से हो कर के दुनिया केलोग गुजरे हैं तब-तब भारत की धरती ने एक ऐसे सपूत को जन्म दिया है जिसने उस अंधकार को मिटाने की कोशिश की है और जिसके पथ-निर्देशन में समाज राष्ट्र और मानवता फिर खड़ी हुई है।

हम सभी को मालूम है की गुरु नानक देव जी केदौर में जात-पात, धार्मिक कट्टरता एवंतमाम प्रकार की विषमता समाज में थी।ऐसे दौर में गुरु नानक देव जी को स्वीकार्यताप्राप्त होना छोटी बात नहीं थी और उनकी स्वीकार्यता इस बात से समझी जा सकती है उनके बारे में कहा गया कि ‘बाबानानक शाहफकीर हिन्दू दागुरु मुसलमान दा पीर’यहहैउनकी स्वीकार्यता और इसीलिए ऐसे वक्त पर उनकी स्वीकार्यता का आना कोई सामान्य बात नहीं है। उन्होंने ऊंच-नीच का विरोध करते हुए स्पष्ट कहा था कि ‘नानक उत्तम नीच न कोई’यानीईश्वर की निगाह में न कोई छोटा है न बड़ा है,सब एक समान हैं।जैसे अटल जी ने कहा है कि छोटे मन वाला कभी बड़ा नहीं हो सकता और टूटे तन वाला कभी खड़ा नहीं हो सकता।चाहे छोटी-छोटी बातों में उलझने वाला व्यक्ति हो, समाज हो, परिवार हो, राष्ट्र हो वह कभी आगे नहीं बढ़सकता है।बड़ा बनने के लिए बड़ा विचार चाहिए, बड़ा धैर्य चाहिए तबजाकर के व्यक्ति बड़ा हो सकता है और इसलिए हमारे गुरु ने कहा है किसहजता, सरलता औरमधुरता यह तीन गुण दुनिया के सबसे शक्तिशाली गुण हैं और जो न तो कर्ज में लिए जा सकते हैं, न ही छीने जा सकते हैं, न हीमोल लिए जा सकते है,यह स्वतः स्फूर्त आपकी संपत्ति है।

लेकिन उस संपत्ति को किस तरीके से आप आगे बढ़ा सकते हैं इसकी जरूरत है।गुरूनानक देव जी ने कहा है किआपअच्छा क्यों नहीं बोल सकते,अच्छा क्यों नहीं सोच सकते,अच्छा क्यों नहीं कर सकतेऔर मैं समझता हूं कि ऐसे वक्त पर उन्होंने जिस तरीके से भारतीयजागरण के अग्रदूत बन करके धर्मान्धता, अंधविश्वास और पाखंड जैसीकुरीतियों को समाप्‍त करते हुए लोगों को नयी दिशा, नयी सोच और विचार दिये यह सहज नहीं हैं।हमारे जितने भी गुरू रहे हैं चाहे वो गुरु गोबिन्द सिंह जी हों,गुरु नानक देव जी हों उनके संस्कार, विचार हमेशा जिन्दा रहे हैं जिन्‍होंनेसमाज को जोड़ा है,केवलसमाज को जोड़करके ही नहीं रखा है बल्कि आगे बढ़ने की दिशा में नये विचार के साथ मानवता को खड़ा करने की आधारशिला को भी तैयार किया है।

आज कल की जो दौड़ती-भागती जिन्दगी है, इसभौतिकवादीयुग में हम लोगों ने सब कुछ छोड़ दिया है क्योंकिभारतीय चिंतन और पाश्चात्य चिंतन में यही अंतर है कि पाश्चात्य चिंतन ने इस पूरी दुनिया को मार्केटमाना है लेकिन हमारे भारतीय चिंतन ने तो दुनिया को कभी बाजार नहीं माना है।हमने उसको परिवार माना है। हमारे गुरु ने हमको बताया है कि बाजार में हमेशा व्यापार होता है और परिवार में हमेशाप्यार होता है। यदि आपको प्यार करना है तो परिवार की भावना को पालना पड़ेगा और उस परिवार में यदि कोई खुशी का उत्सव होता है तो उसको सभी लोग मिलकर के बांटते है क्‍योंकिखुशियांहमेशाबाँटने से बढ़ती हैं और जब कभी कष्ट आता है, दुख कासंकट आता है तो पूरा परिवार उसको मिलकर  बांटते हैं क्‍योंकि  दु:ख बांटने से घटता है।जबआपको कोई पुरुस्कार मिलता है तो आपके इर्द-गिर्द, नाते-रिश्तेदार भी आनंदका अनुभव करते हैं, काम तो आप करते हैं लेकिन खुशियां पूरा परिवार बांटता है।

गुरूनानक देव जी ने कहा किकुछ नहीं हो सकत्ता से क्या हो सकता है इसपरविचार करो,इसनकारात्मक सोच को खत्म कर दो जब हर चीजना से शुरूहोगीतो वहहां मेंकैसेतब्दील हो जाएगी।इसभौतिकवादी युग में हमने मनुष्‍य को मशीन बना दिया है,मनुष्य को थोड़ा-सा नया विचार देने की जरूरत है, जब आदमीसोच सके किमैं मशीननहीं हूं, मैं इंसान हूं, मैं भगवान की सबसे सुंदरतम कृति हूं इसीलिए आपने देखा होगाकि जो हमारा चिंतन है, उसनेहमेंकुछ न कुछ देने की कोशिश की है।

हमारे गुरूओं ने कहा कि केवल उतना ही प्राप्त करो जितनी आपको जरूरत है, संग्रह मत करो, दूसरे का छीनकर अपने पास इकट्ठा मत करो यदि जिस दिन उन विचारों पर दुनिया खड़ी हो जाएगी,आधी समस्याओं का समाधान उसी दिन होजाएगा, इस अभियान की जरूरत है। ऐसे अवसर पर मैं देख रहा हूं कि गुरूजी की अमृत बाणी प्रत्येक व्यक्ति के अन्दर शांति, सहजता और धीरज कासमावेश कर रही है। मैं यह समझता हूं कि सदैव प्रसन्न रहना,ईश्‍वर से सदा अपने लिए क्षमा मांगना और ईश्वर से लगातार संवाद करना यह भी बहुतअच्‍छी बात है। करोनासंवाद, क्या पूछना चाहते हो ईश्‍वर से,दूसरेसे पूछने की जरूरत ही नहीं है। जिस दिन आदमी अपने से पूछना शुरू कर देगा, जिस दिन स्‍वयंअपना विश्लेषण करना शुरू कर देगा और फिर ईश्वर से पूछकर के उनसेसंवाद करना शुरू कर देगा, उस दिन बहुत सारी समस्याओं का समाधान निकल आएगा। मेहनत और ईमानदारी की कमाई में से जरूरत मंदों को कुछ न कुछ देना चाहिए। गुरू नानक देव जी ने कितना बड़ा लंगर शुरू कर दिया।

गुरू जी ने कहा कि हम साथ खाएंगे, साथ चलेंगे, साथ संघर्ष करेंगे, साथ पुरुषार्थ करेंगे, हम सब मिलकर क्या करना चाहते हैं जो मेरे पास है वो मेरा नहीं आपसबका है।यह हमारी संस्कृति है और इसीलिए गुरु नानक देव जी ने भाषण नहीं दिए बल्‍किउन्होंने करना शुरू किया। छोटी-छोटी बातें हमारे जीवन के अंदर डाली कि यदि तुम जो कमाते हो तो उसमें से जितनी तुम्‍हें जरूरत है उतना ही अपने पास रखोबाकि सब समाज में बांट दो, यह तुम्हारा नहीं है, तुम न तो साथ लाए थे न ही लेकर जाओगे। यह हमारा विचार है और इसलिए मैं समझता हूं कि इस अवसर पर जबकि हम550वां प्रकाशोत्‍सव मना रहे हैं, शिक्षा विभाग ने भी इस अवसर पर बहुत सारे कार्यक्रम किए है। हम पूरी दुनिया के तमाम बड़े विश्वविद्यालयों के साथ संवाद कर रहे हैं।

गुरूनानक देव जी के जीवन दर्शन पर बात कर रहे हैं और कनाडा केविश्वविद्यालयों में गुरु नानक देव जी की चेयर को  भी स्थापित किया जा रहा है ताकि दुनिया के लोगों को हमारे गुरु के बारे में पता चल सके कि हमारे गुरु के विचार कैसे थे। अभी हम जो नई शिक्षा नीति 2020 लेकर  आये हैं,यह शिक्षा नीति सामान्य नहीं है। यह नेशनल भी है, इंटरनेशनल भी है, यह इंटरेक्‍टिवभी है, इम्पैक्टफुल भी है,इनोवेटिवभी है और यहइक्विटी, क्वालिटी और एक्सेस की आधारशिला पर खड़ी होती है।हम इसमें कंटेंट भी पैदा करेंगें और उसको टैलेंट केसाथ भीजोड़ेगें और उसका पेटेंट भी करायेंगे। आज भी देश के अन्‍दर छात्रों में केवल पैकेज की होड़लगीहै।इस पैकेज की होड़ को खत्म करके पेटेंट के होड़को तैयार करना होगा तभी देश प्रगति के पथ पर आगे बढ़ सकता है और वो दिन दूर नहीं है।

अभी कुछ दिन पूर्व कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय ने भी हमारी नई शिक्षा नीति की तारीफ की है, हमारे देश के अन्‍दर उत्साह का वातावरण है, वहीं पूरी दुनिया भी इस नई शिक्षा नीति के साथ जुड़ना चाहती है। इस शिक्षा नीति के अंतर्गत यदि कोई 4 वर्ष का कोर्स है और यदि कोई छात्र दो साल में हीपरिस्‍थितिवशछोड़के जा रहा है  तो पहले उसका पैसा एवं वर्ष खराब हो जाते थे लेकिन अब उसकोनिराश नहीं होना पड़ेगा,यदि आप परिस्‍थितिवश एक वर्षमें छोड़ कर जा रहे हैं तो उसको सर्टिफिकेट देंगे, दो साल में छोड़ कर जा रहा है तो डिप्लोमा देगें, तीन साल में छोड़कर जा रहा है तो उसकोडिग्री देंगे लेकिन यदि फिर वह लौट कर अपने भविष्य को संवारना चाहता है तो फिरउसनेजहां से उसने छोड़ा था वहीं से शुरू कर सकता है। उसके लिए हम एक ऐसा क्रेडिट बैंक बनायेंगे जहां उसके सारे क्रेडिट जमा होंगे इसलिए उसके लिए आगे बहुत आपार संभावनाएं है।

वह कहां जाना चाहता है, शोध और अनुसंधान के क्षेत्र में जाना चाहता है।जहां हमने ‘नेशनलरिसर्च फाउंडेशन’ की स्थापना की है,जो कि प्रधानमंत्री जी के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार की अध्यक्षता में होगी जो शोध की संस्कृति को तेजी से आगे बढ़ाएगा। वहींहमनेतकनीकी के क्षेत्र मेंअंतिम छोर के व्यक्ति तक कैसे पहुंचा सकते हैं इसके लिए ‘नेशनल टैक्‍नोलॉजीफोरम’का भी गठन कर रहे हैं। जिससे तकनीकी दृष्टि से भी देश समृद्ध हो सके।

मैं जब अपनेविश्वविद्यालयों की समीक्षा करता हूं तो मैं देखता हूं किस विभाग में क्या-क्या हो रहा है, मैं चुपचाप बैठने वाले लोगों में नहीं रहा हूं। मैं हर विभाग के बारे में बता सकता हूं कि उसने क्‍या-क्‍या किया है, क्‍या कर रहा है और भविष्‍य में उसके क्‍या प्‍लान हैंअभीहमने ‘स्टेइन इंडिया’कीभी बात कीक्‍योंकि हमारे देश से 7-8 लाख छात्र प्रतिवर्ष विदेशों में पढ़ने के लिए जा रहे हैं। हमारे देश का पैसा और प्रतिभा दोनों बाहर चली जाती हैं तो वापस वह हमारे देश में नहीं आती है।

इसलिए हमने‘स्‍टे इन इंडिया’ किया  हमने  छात्रों को भरोसा दिलाया कि हमारे आईआईटी, एनआईटी, आईएसर, केन्‍द्रीय विश्‍वविद्यालयों में योग्‍यता है, क्षमता है, आपको  बाहर जाने  की जरूरत नहीं है,अब लोगों की समझ में आ गया है। मुझे इस बात की खुशी है कि पीछे के समय जब हमने जेईई परीक्षाएं करवाई। मुझे इसबात की भी खुशी है कि दो लाख से भी अधिक छात्रों ने जोछात्रविदेश में जा रहे थेवे जेईई और नीट की परीक्षाओं में सम्‍मिलित हुए।  हम ‘स्‍टे इन इंडिया’ के तहत दुनिया के शीर्ष सौविश्वविद्यालयों को अपनी धरती पर आमंत्रित कर रहे हैं आपकोकहीं जाने की जरूरत नहीं है और यहां के जो शीर्ष विश्वविद्यालय हैं वे भी बाहर जा रहे हैं।

यह आदान-प्रदान हम करेंगे।हमारे संस्‍थान अब एनआईआरएफ ही नहीं,अटल रैंकिंग ही नहीं बल्‍कि क्‍यूएस रैंकिंग और टाईम्‍स रैंकिंगमें भीछलांग मार  रहे हैं क्योंकि हममें सामर्थ्य है।जब देश और दुनिया कोविडकी माहमारी के संकट से गुजर रही थी तोहमारे देश के प्रधानमंत्री जी ने कहा है कि नौजवानों आगे आओ,आपक्या कर सकते हैं मैं इस बात को लेकर बहुतखुशहूं कि तब मेरे छात्रों ने, मेरे अध्यापकों ने प्रयोगशाला में जाकर एक से एक नये अनुसंधान किये। हमनेमास्‍कतैयार किए, हमने ड्रोन तैयार किए, हमने सस्‍ते एवं टिकाऊ वेंटिलेटर तैयार किए, टेस्टिंग किट तैयार किए जो पहले देश में कभी बनता ही नहींथा।यदि आप युक्ति पोर्टल पर जाएंगे। आपको लगेगा कि इस कोरोना काल में भी इस देश के नौजवानों, अध्यापकों और छात्र-छात्राओंबहुत सारे शोध एवं अनुसंधान किये हैं,यह हमारी ताकत है। दुनिया ने हमारी ताकत को देखा है। हमको इस ताकत को बचाकररखने की जरूरत है और इसलिए मुझे लगता है जो यह नयी शिक्षा नीति अभी आई है जिस पर हम लोग लगातार परामर्श कर रहे है मुझे इस बात की भी खुशी है।

देश के सब शिक्षा मंत्रियों से जब मेरी बात होती है तो प्रदेशों मेंहोड़ लगी हुई हैकि हम शिक्षा नीति को सबसे पहले अपने प्रदेश में क्रियान्वित कराएंगे और मुझे इस बात की आशा है, मुझे संतोष भी है कि वक्त तेजी से बदल रहा है, हमने विभिन्न क्षेत्रों में क्रियान्‍वयनशुरू कर दिया है।कुछ लोग कहते हैं कि हमको ग्‍लोबल पर जाना है तो अंग्रेजी सीखनी पड़ेगी। मैंने कहा  हम अंग्रेजी का विरोध नहीं  करते, अंग्रेजी ही नहीं और दो-तीन भाषाएं सीखों,लेकिन अपनी भाषाओं को मत छोड़ो।

हमारे संविधान ने हमें 22 खुबसूरत भाषाएं दी हैं। हिन्दी, तमिल, तेलगू, मलयालम, कन्नड़, गुजराती, मराठी, बंगाली,ओडिया, असमिया, उर्दू,यहहमारी 22 खूबसूरत भाषाएँ हैं इनमेंअपना ज्ञान है,जीवंता है,तोक्यों हम अपनी भाषाओं को खोयंगे।हमने अंग्रेजी का कभी विरोध नहीं किया लेकिन अंग्रेजी इस देश की भाषा नहीं है। हमें अंग्रेजीक्या पूरी दुनिया की भाषाओं को पढना है लेकिन मैं उन लोगों से पूछना चाहता हूं। क्या जो देशनीचे से लेकर उच्च शिक्षा तकअपनी मातृभाषा में शिक्षा देते हैं वो किसी से पीछे हैं, क्‍या जापान, फ्रांस, इंग्लैंड और दुनिया के तमाम जो विकसित देश हैं वो अपनी मातृभाषा में शिक्षा देते हैं क्‍या वो किसी से पीछे हैं,फिर ऐसे तर्क दे करके देश को कमजोर करने की बातक्यों की जाती हैं।

इसलिए देश के प्रधानमंत्री जीने कहा कि अब व्‍यक्‍ति अपनी मातृभाषा में डॉक्टर भी बन सकता है औरइंजीनियर भी बन सकता है क्‍योंकि  जो बच्‍चा जिस भाषा को बोलता है यदि उसको उसकी भाषा में शिक्षा दी जाए तो वह उसमें ज्यादा अभिव्यक्त कर सकता है। अभी मैं पीछे के दिनों बैठककर रहा था तो मेरे आईआईटी केसारे लोग जुड़े हुए थे, तो आईआईटी मद्रास के निदेशक ने कहा कि सर जैसे हमारा तमिल बच्‍चा है तो यदि उसे उसी कीभाषा पढ़ाते हैं तो तुरंत समझजाताहै और अंग्रेजी में पढ़ाते हैं तो समझ में नहीं आपातातो अब भाषा का कोई मुद्दा नहीं होगा, उसी की भाषा में प्रवेश भी होगा, पढ़ाई  भी होगी, परीक्षा भी होगी।

इसलिए जो देश के प्रधानमंत्री जी ने कहा कि21वीं सदी का स्वर्णिम भारत चाहिए जो भारतसुन्‍दर हो,स्वस्थ हो,सशक्त हो,समृद्ध हो,आत्मनिर्भर हो,श्रेष्ठ हो और एक भारत हो,ऐसा भारत जिसका रास्ता ‘मेक इन इंडिया’,‘डिजिटल इंडिया’,‘स्किल इंडिया’,‘स्टार्टअप इंडिया’ और ‘स्टैंडअप इंडिया’ से होकर गुजरता हो और उस भारत की आधारशिला यह नई शिक्षा नीति है और मुझे भरोसा है कि हम एक मिशन मोड में इसको करेंगे। यह शिक्षा नीति दुनिया के सबसे बड़े परामर्श के बाद आई है। इस नई शिक्षा नीति में 1000 विश्‍वविद्यालय के कुलपतियों से, 45 हजार डिग्री कॉलेज के प्रिंसिपलगणों से, 33 करोड़ छात्रों से, 33 करोड़ छात्र-छात्राओं के माता-पिता से  विचार-विमर्श किया गया है। इसके साथ ही साथ ग्रामप्रधान से लेकर प्रधानमंत्री तक, गांव से ले करके संसद तकहरक्षेत्र में हमने चर्चा की है और उसके बाद भी इसकोपब्लिक डोमेन में डालने के बादसवा दो लाख सुझाव आए और एक-एक सुझाव का विश्लेषण करने के बाद जो अमृत निकाला है,जोशक्ति का पुंज निकला है वह यह नई शिक्षा नीति है।

यहीं शक्ति का पुंज पूरे विश्व में भारत को ज्ञान की महाशक्ति के रूप में स्थापित करेगा। मेरा भरोसा है क्योंकि मैं देख रहा हूं मेरे अध्यापकों के मन के अंदर भी छटपटाहट है, इस कोविड के संकट के समय जब  पूरी दुनिया घरों में कैद हो गई हो तब भारत जैसा देश अपने 33 करोड़ छात्र-छात्राओं को रातों-रातऑनलाइन पर लाता है जिसके बारे में कोई सोच भी नहीं सकता है।हमने समय पर परीक्षाएं करवाई,हमने अपने बच्‍चों का वर्ष भी खराब नहीं होने दिया, उसको अवसाद में नहीं जाने दिया। हम पूरी ताकत के साथ अपने शिक्षा परिवार को मिशन मोड में ले करके उस अभियान कोआगे बढ़ायेंगे।

भारत विश्व गुरु था,भारत विश्व गुरु है और भारत विश्वगुरु रहेगा क्योंकि हमारे पास वो सब चीजें हैं और इसलिए पूरे देश के अंदर बहुत अच्छा माहौल इस समय बना है।मुझे भरोसा है कि हम सब टीम इंडिया काम करेंगे।  आज हम गुरु नानक देव जी के 550वें प्रकाश उत्सव के अवसर पर एकत्रित हुए है यह प्रकाशोत्‍सव निश्‍चित रूप से अंधकार को मिटा करकेमेरे भारत को विश्व गुरु के रूप में स्थापित करेगा। मैं आप सबके प्रति बहुत आभारी हूँ और पुस्‍तक जो विशेष करके बच्चों को मैंने समर्पित की है। मुझे आप पर भरोसा है कि आप मेरी मदद करेंगे ताकि मेरे बच्चों तक ज्यादा से ज्यादा विभिन्न भाषाओं मेंयहपुस्‍तकपहुंच सकें इसके लिए भी मैं आपसे विनती करूंगा। इसके साथ ही मैं एक बार फिर आप सभी को बहुत बधाई देता हूं।

 

बहुत-बहुत धन्‍यवाद!

 

 

कार्यक्रम में गरिमामयी उपस्‍थिति:-

 

  1. डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’, माननीय शिक्षा मंत्री, भारत सरकार
  2. सरदार इन्‍द्रजीत सिंह, अध्‍यक्ष, राष्‍ट्रीय सिक्‍ख संगठन, दिल्‍ली प्रदेश
  3. डॉ. अमरजीत सिंह, निदेशक, संकल्‍प ग्रुप
  4. सरदार गुरूचरण जी, अध्‍यक्ष, राष्‍ट्रीय सिक्‍ख संगत
  5. डॉ. एन. के. तनेजा, कुलपति, चौधरी चरण सिंह विश्‍वविद्यालय
  6. प्रो. आशा शुक्‍ला, कुलपति, डॉ. बी.आर. अम्‍बेडकर सामाजिक विज्ञान विश्‍वविद्यालय, मध्‍य प्रदेश

 

पंजाब विश्वविद्यालय के मानव संसाधन विकास केंद्र का उद्घाटन

पंजाब विश्वविद्यालय के मानव संसाधन विकास केंद्र का उद्घाटन

 

दिनांक: 01 अक्‍टूबर, 2020

 

 

माननीय शिक्षा मंत्री, डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’

 

पंजाब विश्‍वविद्यालय के मानव संसाधन विकास केन्‍द्र के उद्घाटन के अवसर पर उपस्‍थिति पंजाब विश्‍वविद्यालय चंडीगढ़ के कुलपति प्रो. राजकुमार जी, इस कार्यक्रम में उपस्‍थित पद्मावती विश्‍वविद्यालय तिरूपति की कुलपति डॉ. जमना जी,विश्‍वविख्‍यातमनोवैज्ञानिक और शिक्षाविद् डॉ. मीना हरिहरन जी, प्रो. आर. के. सिंघंला जी, प्रो. वी. आर. सिन्‍हा जी, प्रो. सुखबीर जी,श्री सुखविन्‍दर जी, सभी संकाय सदस्‍य,सभी छात्र-छात्राएं, रजिस्टार और पंजाब विश्‍वविद्यालयका पूरा परिवार और हैदराबाद विश्‍वविद्यालयके सभी संकाय सदस्‍य,छात्र-छात्राएं और सम्‍पूर्णविश्‍वविद्यालयपरिवार। आज यहां परजिसमानव संसाधन विकास केन्द्र कालोकार्पण हुआ है उसके लिए मैं पंजाब विश्वविद्यालय के कुलपति और उनके पूरे परिवार को शुभकामनाएं देना चाहता हूं। आज जिस भवन का लोकार्पणहुआ है, वह बहुत खूबसूरत तरीके से बना है और बहुत सुंदर भी लग रहा है। मुझे भरोसा है कि उसके अंदर सुन्दर और खूबसूरत मन पलेंगे, ऐसे मन विकसित होंगे जिनकी सुगंध दुनिया तक जाएगी जो भारत का मान और सम्मान पूरे विश्व में बढ़ाएंगे, ऐसी मैं आशा कर रहा हूं। वैसे भी जब भी हम लोग पंजाब विश्वविद्यालय के बारे में विचार करते हैं क्‍योंकि मैं विगत एक साल से अधिक समय से लगातार देश के तमामउत्कृष्ट संस्थानों कीहर महीने समीक्षा करता हूँ, आन्तरिक समीक्षा करता हूँ। उसके विभागों से लेकर, प्रशासनिक से लेकर,एकेडमिक से लेकर,उनका जनता के बीच समन्वय और धारणा से लेकरहर पक्ष को जानने की कोशिश करता हूँ। मुझे इस बात की खुशी है कि पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ लगातार अपनी उत्कृष्टता को बनाए हुए है और बना रहा है। मैं इसके लिए भी पंजाब विश्‍वविद्यालय के कुलपति और उनकीपूरी टीम को बहुत बधाई एवंशुभकामनाएं देना चाहता हूँ। मैं समझता हूँजैसे अभी कुलपति जीने कहा और उनके बाद सिंगला जी ने विस्तारपूर्वक अपनीबातों को रखा है तोइसमें कोई दो राय नहीं है कि इसविश्वविद्यालय नेदेश का सम्मान एवंगरिमा बढ़ाई है और अकैडमिक तरीके से उसने बहुत अच्छी आधारशिला को खड़ा किया है।चाहेइस विश्वविद्यालय से पढ़ कर गए हमारे देश के पूर्व प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह जी हों, चाहे इंद्रकुमार गुजराल जी हों,हरगोविन्द खुराना जी हों, सुषमा स्वराज जी हों,यशपाल जी हों, कल्पना जी हों, जब मैं इस विश्वविद्यालय की सूची देख रहा था क्योंकि मैं पीछे के समय में चाहे मेरे आईआईआईटीहैं, आईसर हैं, इन महत्वपूर्ण संस्थानों ने किन-किन लोगों को दिया है वो किन-किन स्‍थानों पर देश का गौरव बढ़ा रहे हैं इसकी मैं लगातार जानकारी लेता रहता हूं। मुझे बहुत खुशी होती है कि पंजाब विश्वविद्यालय ने ऐसेबहुत सारे लोगों को दिया है जिन्होंने देश में ही नहीं दुनिया में हमारा माथा ऊँचा किया है और इसलिए चाहे शैक्षणिकक्षेत्र हो,शोध का क्षेत्र हो,अनुसंधान का क्षेत्र हों, खेल काक्षेत्रहो सभी क्षेत्रों में पंजाब विश्वविद्यालय अच्‍छा काम कर रहा है। मुझे खुशी होती कि मेरे देश के संस्थान हरक्षेत्र में तेजी से आगे बढ़ रहे हैं और हम दुनिया के मुकाबले प्रतिस्पर्धा में आगे बढ़ते जा रहे हैं। मुझे इस बात की भी खुशी है कि अकादमिक,कला-संस्कृति और खेल जगत में भी पंजाब विश्‍वविद्यालय अच्छे तरीके से काम कर रहा है। मैं देख रहा था कि अटल रेंकिंग में भी आपनेदूसरा स्थान प्राप्‍त किया है यहबहुतअच्छी बात है और टाइम्स रैंकिंग में भी आपनेचौथा स्‍थान प्राप्‍त किया है। हमारादेश दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है यदि आप देखेंगे तो यहां पर एक हजार से भी अधिक विश्वविद्यालय हैं, 45 हजार से भी अधिक डिग्री कॉलेज हैं, 15 लाख से भी अधिक स्कूल हैं और एक करोड़ 9 लाख से भी अधिक अध्यापकगण हैं और जितनी कुल अमेरिका की जनसंख्या नहीं है उससे भी अधिक 33 करोड़ यहांछात्र-छात्राएं  हैं आप समझ सकते हैं कि दुनिया के दर्जनों देशों की भी कुल जनसंख्या 33 करोड़ नहींहोती है और ऐसी स्थिति में इतनी बड़ी प्रतिस्पर्धा में एक हजार विश्वविद्यालयों के अंदर टाइम्स रैंकिंग में आपने चौथा स्‍थान प्राप्‍त किया इसके लिए भीमैं आपकोबहुत बधाई देता हूं।मैं समझ सकता हूं  क्‍योंकि एक अध्यापक से लेकर केशिक्षा मंत्री तक की मेरी यात्रा में मैंमहसूस कर सकता हूं कि जब एक लीडर अच्छा होता है तो उसकी टीम भीउत्साहपूर्वक काम करती है औरसफलता के शिखर को चूमती हैं और निश्चित रूप से मैं कह सकता हूं कि पंजाब विश्वविद्यालय के संकाय सदस्‍य एवं कर्मचारी जूनूनी हैंक्‍योंकि जब संकाय सदस्‍य जूनूनी तरीके से  काम  करते हैं तो उसका रजिल्‍ट दिखाई देता है। इसलिए मैं पंजाब विश्वविद्यालय को बहुत बधाई देना चाहता हूं मैं आपको कहना चाहता हूं कि दुनिया में कुछ भी किया जा सकता है, आज जो तमाम लोग हमारे साथ जुड़े हैं,छात्र भी जुड़े हैं,संकाय सदस्‍य जुड़ेहैं,आपके पूर्व छात्र जुड़े हैं मैं आप सबसे कहना चाहता हूं किजब लीडरिशिप ठीक होती है तो सब ठीक हो जाता है। अध्यापक एक ऐसा लीडर है जो कुछ भी कर सकता है। वो अलग बात है कि सैकड़ों वर्षों की गुलामी ने हमारेमन-मस्तिष्क को ऐसा किया है कि अभी थोड़ा सा वक्त लगेगा क्योंकि लार्ड मैकाले ने तब कहा था कि यदि हिन्‍दुस्‍तान को बदलना है तो इसकी शिक्षा-संस्कृति बदलनी पड़ेगी लेकिन वो हमारी भाषाऔर संस्कृति कोनहीं बदल पाए। हम आज भी कहते हैं कि‘यूनान मिस्र रोमा सब मिट गये जहां से, अब तक मगर है बाकी नामोनिशां हमारा। कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी, सदियों रहा है दुश्‍मन दौर ए जहां हमारा’ कुछ तो बात हैहमारीरगों में जोमिटाने से भी नहीं मिटती। अभीराजकुमारजी चर्चा कर रहे थे कि हमने पूरी दुनिया को अपना परिवारमाना है और हमने केवल माना ही नहीं है बल्‍किउसको साबित भी किया है। हमने हमेशा विश्व बंधुत्व की बात की है। हमने ‘अयं निजं परोवेती गणना लघुचेतसाम्। उदारचरितानां तुवसुधैव कुटुम्बकम’की बात की है,हमने हमेशा‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’की भी बात की है।दुनिया का ऐसा कौन सा देश है जहांपर व्‍यक्‍ति सुबह उठते हीयहप्रार्थना करता होकि हेईश्वर! धरती पर पैदा होने वाला हर व्‍यक्‍ति सुखी रहे हम यह प्रार्थना करते हैं क्योंकि हमने धरती को अपनी माता माना  है,इसलिए धरती पर पैदा होने वाला हर जीव जंतु मेरा अंग है और इसके सुख की कामना करना मेरा कर्तव्‍य है। मैं कहना चाहता हूं जब तक्षशिला, नालंदा और विक्रमशिला जैसे विश्वविद्यालय इस देश के अंदर थे तब दुनिया के अन्‍दर कौन साविश्‍वविद्यालय था और तब दुनिया केलोगहमसे आकर शिक्षा ग्रहण करते थे। हमें अपने को कम नहींआंकनाचाहिए।ठीक  है, हमारे लिए विपरीत परिस्‍थितियां रही होंगी,जबहमारे विश्‍वविद्यालयोंको ध्वस्त किया गया,हमारीशिक्षा को ध्वस्त किया गया, हमारी भाषाओं को बदल दिया गया। आज भी इस देश के अन्दर हमारी 22 भारतीय भाषाएं हैं। तमिल, तेलुगु, मलयालम, कन्नड़, गुजराती, मराठी, बंगाली, पंजाबी, असमिया, उर्दू, संस्कृत सहितजितनीहमारे संविधान में उल्‍लेखित 22 ऐसी भाषाएं हैं वो ऐसा गुलदस्ता है कि दुनिया सोच भी नहीं सकती। इसलिए अभी जो हम नई शिक्षा नीति में लाये हैंकुछ लोग कहते हैं कि हमको ग्‍लोबल पर जाना है तो अंग्रेजी सीखनी पड़ेगी। मैंने कहा  हम अंग्रेजी का विरोध नहीं  करते, अंग्रेजी ही नहीं और दो-तीन भाषाएं सीखों।लेकिन अपनी भाषाओं को मत छोड़ो। हमारेसंविधान ने हमें 22 खुबसूरत भाषाएं दी हैंइनमेंअपना ज्ञान है,जीवंता है,तोक्यों हम अपनी भाषाओं को खोयंगे।हमने अंग्रेजी का कभी विरोध नहीं किया लेकिन अंग्रेजी इस देश की भाषा नहीं है। हमें अंग्रेजीक्या पूरी दुनिया की भाषाओं को पढना है लेकिन मैं उन लोगों से पूछना चाहता हूं कि क्या जो देशनीचे से लेकर उच्च शिक्षा तकअपनी मातृभाषा में शिक्षा देते हैं वो किसी से पीछे हैं? क्‍या जापान, फ्रांस, इंग्लैंड और दुनिया के तमाम जो विकसित देश हैं वो अपनी मातृभाषा में शिक्षा देते हैं क्‍या वो किसी से पीछे हैं?फिर ऐसे तर्क दे करके देश को कमजोर करने की बातक्यों की जाती हैं।मैं इस बात को लेकर के उत्साहित हूं कि इस कोरोना के काल में भीमेरे अध्यापकों ने एकयोद्धा की तरह काम किया। मेरे देश के प्रधानमंत्री जी ने भीबड़े खुले दिल से इस बात को स्वीकारा है और अध्‍यापकों को बधाई भी दीहै कि जब पूरी दुनिया कोरोना के संकट से गुजर रही थी तब हमारे अध्यापकों ने उस चुनौती का मुकाबला किया और एक योद्धा की तरहचुनौती का मुकाबला करके बच्चों को भटकने नहीं दिया, बच्चे का वर्ष भी खराब नहीं होने दिया। यह छोटी बातनहीं हैबहुत बड़ी बात है। भारत दुनिया का पहला देश होगा जिसने रातों-रात देश के करीब 33 करोड़ बच्‍चों को ऑनलाइन पर लेकर आया। कोई सोच भी नहीं सकता था कि 33करोड़ बच्चे एक साथ ऑनलाइन एजुकेशन पर आ जाएंगे। यह हमारे अध्यापकों का ही पुरुषार्थ थाजिन्होंने 14-14 घंटे मेहनत करके बच्चे का वर्ष खराब नहीं होने दिया,उसका भविष्य खराब नहीं होने दिया, उसको भटकने नहीं दिया, उसको अवसाद में जानेनहीं दिया। इसलिए मुझे शिक्षकों पर बहुत भरोसा होता है। इसीलिए हमने कहाकि ‘गुरुर ब्रह्मा,गुरुर विष्णु, गुरुर देवो महेश्वर गुरु साक्षात परब्रह्म तस्मै श्री गुरु नम:’ यह जो गुरु है यह कुछ भी कर सकता है। हमारे यहां कहा गया है कि‘गुरु गोविन्द दोऊ खड़े काके लागू पाय बलिहारी गुरु आपने गोविन्द दियो बताये’यदिएक तरफ भगवान हो औरदूसरी तरह गुरु हो तो इसमें कोई भी संकोच नहीं करेगा कि मुझे प्रथम किसके चरण स्‍पर्श करने हैं क्‍योंकि मुझे भगवान तक जाने का रास्ता तोगुरु ने ही दिया है। इसलिए मैं पहले गुरू की चरण वंदना करूंगा। हमारे देश के बारे में कहा गया है कि ‘एतद्द्देशप्रसूतस्य सकाशादग्रजन्मनः स्वं स्वं चरित्रं शिक्षेरन्पृथिव्यां सर्वमानवाः’जहां पूरी दुनिया ज्ञान-विज्ञान, शोध, अनुसंधान करने के लिए आती थी। मैं मीना हरिमोहन जी आपको भी बधाई देना चाहता हूं और पंजाब विश्वविद्यालयकेजितने भीलोग हमारे साथ जुड़े हैंइनका भी मैं ह्रदय की गहराइयों से अभिनन्दन करता हूं।कोरोना काल में आपने जिस तरीके से इन दोनों खूबसूरत पुस्तकों का लोकार्पण किया यीपुस्‍तकें आपकी ऊर्जा का प्रमाण हैं, आपका मन मेंकहीं न कहीं कुछचल रहा हैं  क्‍योंकि जो बोल सकता है वहकरभी सकता है।जिसमें कुछ कर गुजरने की ताकत न हो, क्षमता न हो वह क्‍या कर सकता है? कुछ व्‍यक्‍ति केवल सोचते रहते हैं और कुछ करते नहीं है।उनको हमारे यहां मजाक में कहते हैं मुंगेरी लाल के हसीन सपने।ऐसाआदमी जो सोचता तो बहुत है, सपने देखता हैलेकिनकरताकुछ नहीं है ऐसे व्‍यक्‍ति का कोई अस्‍तित्‍व नहीं होता। मैंहमारे देश के पूर्व राष्ट्रपति डॉक्टर अब्दुल कलाम जी से भी मिला हूं,उन्होंने मेरी पुस्तक का लोकार्पण किया तो उनको मैंने काफीनिकटता से देखा और उनके जीवन दर्शन पर भी मैने लिखा था। वो कहते थे किसपने ऐसे बुनो जो सोने न दें जब तक की वह सपना क्रियान्वित नहीं हो जाता तब तक वो सपना आपको सोने ना दें, चैन से न बैठने दे,जब तक की वह सपना साकार नहीं हो जाता। यह है हमारे सपनों की उड़ान और हमारे सपनों की उड़ान कोरीनहीं है। हम अपने पुरुषार्थ से, अपने तन-मन-धन से शिखर को चूमने की पूरी कोशिश करते हैं और इसीलिए कोरोना काल में जिस तरीके से आप सब लोगो ने काम किया मुझे इस बातकीखुशी है। अभी मीना जीकह रही थी कि मुझे चुनौतियां पसंद है, चुनौतियां तो हर कदम पर है,लेकिन जब चुनौतियां का डटकर मुकाबला होता है तो वही चुनौती अवसरों में तब्दील होती है और इसलिए हमने भी कोरोना की इस चुनौती का डटकरमुकाबला किया। मुझे मालूमहै किइस कोरोना के संकट के समय जब हमारे देश प्रधानमंत्री जी ने मेरे नौजवानों को आह्वान किया कि मेरे देश के नौजवानों क्या कर सकते हैं? इस संकट के समय जबकि पूरी दुनिया कोरोना की महामारी से गुज़र रही है और उससे भारत भी अछूता नहीहै तो जब सभी लोग अपने घरों में कैद थे, मेरे छात्र-छात्राओं,अध्‍यापकों ने, प्रयोगशालाओं में जाकर शोध, अनुसंधान  किया उन्‍होंने वेंटिलेटर, मास्‍क,ड्रोन, टेस्‍टिंग किट एवं ऐसी अन्‍य चीजों का निर्माण किया जो पहले देश में होती ही नहीं थी। इसलिए मुझे भरोसा है कि पंजाब विश्वविद्यालय बहुत ताकत के साथ काम कर रहा है, ऊंचाइयों को छू रहा है।हमारा देश विश्‍वगुरू रहा है, हम किसी भी क्षेत्र में पीछे नहीं रहेहैं। सुश्रुत शल्‍यचिकित्सा का जनक इसी देश में पैदा हुआ है, चरक आयुर्वेद का  जनक,भास्कराचार्य, आर्यभट्ट आखिर इसीदेश में ही तो पैदा हुए हैं। हमारे देश ने ऐसे महान वैज्ञानिकों को दुनिया को दिया है,वह चीज आज भी हमारे पास हैंतभी तो आज जर्मनी जैसा देश भी 14-14 संस्कृत के विश्वविद्यालयों को स्‍थापित करके, उन संस्‍कृत ग्रंथों को पढ़ा रहे हैं। इसलिए हम जो नई शिक्षा नीति लाये हैं  यह उन वेद, पुराण, उपनिषदों के ज्ञान-विज्ञान दुनिया के फलक पर लाने के लिए है, जो जमीन पर खड़े होकर विश्व के शिखर पर पहुंचेगी। यह शिक्षा नीति सामान्य नहीं है। यह नेशनल भी है, इंटरनेशनल भी है, यह इंटरेक्‍टिवभी है, इम्पैक्टफुल भी है,इनोवेटिवभी है और यहइक्विटी, क्वालिटी और एक्सेस की आधारशिला पर खड़ी होती है।हम इसमें कंटेंट भी पैदा करेंगें और उसको टैलेंट केसाथ भीजोड़ेगें और उसका पेटेंट भी करायेंगे। आज भी देश के अन्‍दर छात्रों में केवल पैकेज की होड़लगीहै।इस पैकेज की होड़ को खत्म करके पेटेंट के होड़को तैयार करना होगा तभी देश प्रगति के पथ पर आगे बढ़ सकता है और वो दिन दूर नहीं है। अभीकुछ दिन पूर्व कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय ने भी हमारी नई शिक्षा नीति की तारीफ की है, हमारे देश के अन्‍दर उत्साह का वातावरण है, वहीं पूरी दुनिया भी इस नई शिक्षा नीति के साथ जुड़ना चाहती है। इस शिक्षा नीति के अंतर्गत यदि कोई 4 वर्ष का कोर्स है और यदि कोई छात्र दो साल में परिस्‍थितिवशछोड़के जा रहा है  तो पहले उसका पैसा एवं वर्ष खराब हो जाते थे लेकिन अब उसकोनिराश नहीं होना पड़ेगा,यदि आप परिस्‍थितिवश एक वर्षमें छोड़ कर जा रहे हैं तो उसको सर्टिफिकेटदेंगे,दो साल में छोड़ कर जा रहा है तो डिप्लोमा देगें, तीन साल में छोड़ेकर जा रहा है तो उसकोडिग्री देंगे लेकिन यदि फिर वह लौट कर अपने भविष्य को संवारना चाहता है तो फिरवह जहां से उसने छोड़ा था वहीं से शुरू कर सकता है। उसके लिए हम एक ऐसा क्रेडिट बैंक बनायेंगे जहां उसके सारे क्रेडिट जमा रहेंगेअध्यापकों की दिशा में भी हमने जहां‘ज्ञान’ में बाहर के विदेशी संकाय सदस्‍यों को हमने अपने देश में पढ़ाने के लिए आमंत्रित किया है, वहींअब‘ज्ञान प्‍लस’ मेंहमारे भी शिक्षक बाहर पढ़ाने के लिए जाएंगे।हमने जो अंतर्राष्ट्रीयकरण की दिशा में दुनिया के शीर्ष सौ विश्वविद्यालयों को अपनी धरती पर आमंत्रित किया है वहीं हमारे जो शीर्ष विश्‍वविद्यालय हैं  वह भी दुनिया में जाएंगे। अभीहमने ‘स्टेइन इंडिया’कीभी बात कीक्‍योंकि हमारे देश से 7-8 लाख छात्र प्रतिवर्ष विदेशों में पढ़ने के लिए जा रहे हैं। हमारे देश का पैसा और प्रतिभा दोनों बाहर चली जाती हैं तो वापस वह हमारे देश में नहीं आती है। इसलिए हमने‘स्‍टे इन इंडिया’अभियान आरम्‍भ किया है हमने  छात्रों को भरोसा दिलाया कि हमारे आईआईटी, एनआईटी, आईएसर, केन्‍द्रीय विश्‍वविद्यालयों में योग्‍यता है, क्षमता है, आपको  बाहर जाने  की जरूरत नहीं है,अब लोगों की समझ में आ गया है। मुझे इस बात की खुशी है कि पीछे के समय जब हमने जेईई परीक्षाएं करवाई। मुझे इसबात की भी खुशी है कि दो लाख से भी अधिक छात्रों ने जोछात्रविदेश में जा रहे थेवे जेईई और नीट की परीक्षाओं में सम्‍मिलित हुए।  हम ‘स्‍टे इन इंडिया’ के तहत दुनिया के शीर्ष सौविश्वविद्यालयों को अपनी धरती पर आमंत्रित कर रहे हैं, आपकोकहीं जाने की जरूरत नहीं है और यहां के जो शीर्ष विश्वविद्यालय हैं वेभीबाहर जा रहे हैं। ये आदान-प्रदान हम करेंगे।इन संस्थानों में क्षमता है।मैं समझता हूँ हमारे लिए यह ऐसा अवसर है जब हम शोध और अनुसंधान के क्षेत्र में भी आगे बढेंगे। जब मैं टाईम्‍स रैंकिंग एवं क्‍यूएस रैंकिंग की समीक्षा करता हूं और अपने संस्थानों को उसके साथ जोड़ता हूं तो मुझे लगता है कि कहीं न कहीं हमारे पास अनुसंधान की कमी है, पेटेंट की कमी है। हम आज दुनिया के शीर्ष127 देशों के साथ ‘स्पार्क’ के तहत पारस्परिक अनुसंधान कर रहे हैं, हम स्‍ट्राइड के तहत अंतर विषयी शोध और अनुसंधान कर रहे हैं।हमवर्तमान में प्रधानमंत्री जीके प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार की अध्यक्षता में ‘नेशनल रिसर्च फाउंडेशन’ की स्थापना कर रहे हैं  जो शोध की संस्‍कृति को खड़ा करेगाऔर प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भी हम तेजी से आगे बढ़ेंगे और इसलिए उस दिशा में भी हम ‘नेशनल टेक्नोलॉजी फोरम’ का गठन कर रहे हैं, जिसके तहत प्रौद्योगिकी में भी हम विश्व के शिखर पर पहुंचेंगे और इसलिए मैं आप सबको बहुत बधाई देना चाहता हूं। आज जिस भवन का यहां पर आपने लोकार्पण किया है उसके लिए भी राजकुमार जी मैं आपको बहुत बधाई देना चाहता हूं। मैं समझता हूं कि देश के प्रधानमंत्री जी ने जो नये स्वर्णिम भारत की कल्पना की है वहऐसा भारत होगा जो स्‍वच्‍छ भारत होगा, सशक्त भारतहोगा, समृद्ध भारत होगा, श्रेष्ठ भारत होगा और आत्मनिर्भर होगा। उस भारत की आधारशिला यह नई शिक्षा नीति बनेगी औरइसका रास्‍ता निश्चित रूप में ‘मेक इन इंडिया’,‘डिजिटल इंडिया’,‘स्किल इंडिया’सेहोकरगुजरता है। हमारे पास सब कुछ है।हमारा देश आगामी25 वर्षों तक यंग इंडिया रहनेवाला है, लेकिन हमेंउसके लिए तैयार होना पड़ेगा, हर व्यक्ति को तैयार होना पड़ेगा। जब एक बार परिवेश बनता है तो कुछ भी हो सकता है। मैं देख रहा हूंनई शिक्षा नीति को लेकर पूरे देश के अंदर अद्भुत वातावरण है।99प्रतिशत लोगों ने इस नीति का समर्थन किया है। दुनिया के तमाम देश हमारी नीति पर चर्चा कर रहे हैं और उसको अपने देश मेंलागू करना चाहते हैं। इसलिए हमने जो भारतीय ज्ञान परंपरा की भी बात कीहै, इसमें भी हम अतीत को वर्तमान से जोड़कर नवाचार, अनुसंधान और शोध के क्षेत्र में आगे बढ़ेंगे और इसमें मेरे अध्यापकगण निश्चित रूप से एकयौद्धाकी भूमिका निभाएंगे। इसलिए मुझे भरोसा है कि आज पूरे देश का मानस पूरी ताकत के साथ खड़ा हुआ है औरपंजाब तो वैसे भी गौरवशाली धरती रही है उसका अलग इतिहास रहा है और इस विश्वविद्यालय ने अपनेजीवन काल में निश्चित रूप से बड़ा आधार स्थापित किया है। मैं एक बार फिर विश्वविद्यालय के सभी परिवारिक जनों को, विभागाध्‍यक्षों, प्रोफेसर्स,संकाय सदस्‍यों,शिक्षणेत्तर कर्मचारीगण, अधिकारीगण और पंजाब की जनता को धन्‍यवाद एवं शुभकामनाएं देता हूं।

 

बहुत-बहुत धन्‍यवाद!

 

कार्यक्रम में गरिमामयी उपस्‍थिति:-

 

  1. डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’, माननीय शिक्षा मंत्री, भारत सरकार
  2. प्रो. राजकुमार, कुलपति, पंजाब विश्‍वविद्यालय, चंडीगढ़
  3. डॉ. जमुना दुवुरू, कुलपति, श्री पद्मावती महिला विश्‍वविद्यालय, तिरूपति
  4. डॉ. मीना हरिहरन, मनोवैज्ञानिक एवं शिक्षाविद्
  5. प्रो. आर. के. सिंघंला जी, प्रो. वी. आर. सिन्‍हा जी, प्रो. सुखबीर जी, श्री सुखविन्‍दर जी एवं पंजाब विश्‍वविद्यालय तथा श्री पद्मावती महिला विश्‍वविद्यालय के संकायगण, कर्मचारीगण एवं अन्‍य शिक्षाविद्

 

पंडित मदन मोहन मालवीय राष्ट्रीय शिक्षक एवं प्रशिक्षण योजना के तहत जामियामिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के अकादमिक ब्लॉक का उद्घाटन

पंडित मदन मोहन मालवीय राष्ट्रीय शिक्षक एवं प्रशिक्षण योजना के तहत जामियामिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के अकादमिक ब्लॉक का उद्घाटन

 

दिनांक: 28 सितम्‍बर, 2020

 

 

 

माननीय शिक्षा मंत्री, डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’

 

आज हम स्‍कूल ऑफ एजुकेशन बिल्‍डिंग के उद्घाटन के अवसर पर एकत्रित हुये हैं इस अवसर पर मैं इस विश्‍वविद्यालय की यशस्‍वी कुलपति प्रो. नजमा जी, डीन एजुकेशन एजाज जी, रजिस्‍ट्रार ए. पी. सिद्दकी जी, संकाय के सभी सदस्‍य गण, छात्र-छात्राओंऔर जामिया के प्रबंधन से जुड़े सभी सदस्‍यगणमैं इस अवसर पर आप सभी को बधाई देने के लिए आपके बीच आया हूं। मुझे खुशी है कि जब भी जामिया की बात होती है तो एक अच्‍छा संस्‍थान, एक प्रगतिशील संस्‍थान, ज्ञान-विज्ञान और अनुसंधान के क्षेत्र में पनपता और छलांग मारता ऐसा संस्‍थान ऐसी स्‍वत: स्‍फूर्तउसकी छवि चेहरे पर सामने आनी शुरू होती है। मैं यह समझता हूं कि आप जो शिक्षाके 100 वर्ष मना रहे हैं,आपने इन 100 वर्षों में तमाम उतार-चढ़ावों का सामना किया होगा, बहुत सारी कठिनाईयां भी आई होंगी। उस समय गांधी जी और हमारे राष्‍ट्रीय भावना से ओत-प्रोत जो हमारे मुस्‍लिम लीडर थे, उनके मन की उपज जामिया थी जो एक पौधे के रूप में रोपित हुआ आजवह वट वृक्ष के रूप में छांवऔर फल दे रहा है और उसके नीचे बहुत सारी भावनाएं पल्‍लवित और पुष्‍पित हो रही है जिसको देखकर राष्‍ट्र बहुत गौरवान्‍वित भी होता है। मैं विशेषकर के यहां के अध्‍यापक वर्ग को क्‍योंकि किसी भी संस्‍थान का भवन उसका बाहरी स्‍वरूप तो तय कर सकता है लेकिन उसका आंतरिकस्‍वरूप सुनिश्‍चित करने के पीछे उसकीजोपूरीफैकल्‍टी है जिन्‍होंने अपना तिल-तिल खपा करकेशिक्षा के क्षेत्र में एक ऐसा दिया जलाने की कोशिश की है जो तमाम तूफानों में भी बुझता नहीं है बल्‍कि आगे रोशनी करता है। इस ढंग का संस्‍थान मेरे देश का गौरव बढ़ाता है जो राष्‍ट्र की प्रगति के लिए, राष्‍ट्र के विभिन्‍न आयामों में शोध और अनुसंधान करके और राष्‍ट्र की उन्‍नति की दिशा में काम करता है। मैं समझता हूं कि जामिया का यह भवन है जो पं. मदन मोहन मालवीय जी को समर्पित है,जो एक शिक्षक के रूप में, एक दार्शनिक के रूप में,विचारक के रूप में,एकऐसे लीडर के रूप में जिन्होंने अपना तिल-तिल खपा करकेशिक्षा की रोशनी को दिया है, मैं समझता हूं कि महामना मदन मोहन मालवीय राष्‍ट्रीय शिक्षक एवंप्रशिक्षण योजनाके तहत आज जिस भवन  का यहां पर उद्घाटन हुआ है,जिसका लोकार्पण हुआ है यह निश्चित रूप से उस मन्‍शाको, जिस मंशा से जामिया की स्थापना हुई है जिन तमाम बाधाओं और दिक्‍कतों के बाद भी जामिया ने अपने मुकाम पर पहुँचने की कोशिश ही नहीं की बल्कि उस मुकाम तक पहुँच कर के दिखाया भी है। ऐसे उन सभी विचारों को, भावनाओं को, उस विजन को, उस मिशन को यह भवन और गति देगा जिससे मेरा देश फिर 21वीं सदी का स्वर्णिम भारत बनेगामेरे देश के प्रधानमंत्री जी ने यह संकल्प लिया है कि 21वीं सदी में पूरी दुनिया में मेरा भारत एक स्वर्णिम भारत के रूप में उभरकरके सामने आये और मैं समझता हूँ कि उसका रास्ता प्रशस्त हो रहा है।21वीं सदी के स्वर्णिम भारत की आधारशिला के रूप में जैसाकि अभी नजमा जी ने बताया, जो मेरे संचालक महोदय बता रहे थे किउसकी आधारशिला के रूप में यह नई शिक्षा नीति2020 आई है और मैं समझता हूँ यह हम सब लोगों केलिए बहुत अच्छा अवसर है। दुनिया में लोगों को अवसर मिले हैं और जो अवसरों का लाभ ले करके उसको जिन्दा रख पायें है, वही हमेंशा जिन्दा रहे हैं। विचार हमेशा जिंदा रहते हैं,किया हुआ काम हमेशा जिंदा रहता है। यह एक ऐसा अवसर आ रहा है इस समय जब पूरी दुनिया हिंदुस्तान कीओरदेख रही है और हिंदुस्तान एक नए हिंदुस्तान के रूप में करवट ले रहा है और उस नए हिंदुस्तान के निर्माण की दिशा में हम लोगों के हाथों में यह नई शिक्षा नीति आई है। हम उस बात के साक्षी रहेंगे कि हिन्दुस्तान के बदलाव के लिए जोहिंदुस्तान हमेशा ज्ञान, विज्ञान, अनुसंधान, नवाचार केक्षेत्र में, प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में पूरे विश्व को लीडरशिप देता था,हिन्दुस्तान ने दुनिया में लीडरशिप दी है हिन्दुस्तान कभी पीछे नहीं रहा है। उस हिंदुस्तान को उसी ऊर्जा के साथ फिर आगे बढ़ाने की दिशा में यह जो नई शिक्षा नीति आई है यह बहुत सारे सुधारों के साथ, व्यापक परिवर्तनों को लेकर के आई है। उसमें चाहे स्कूली शिक्षा हो और चाहे उच्च शिक्षा हो, तकनीकी शिक्षा हो, सामाजिक विज्ञान की शिक्षा हो हर क्षेत्र में पूरा मैदान खाली है। कहां तक भाग सकता है मेरा छात्र। जहां तक दौड़ सकता है पूरा मैदान उसके लिए खाली है और इसलिए मैं समझता हूं कि यहनई शिक्षा नीति एक ऐसे युग परिवर्तन का कारण बनेगीजिसपर पूरी दुनिया को गर्व महसूस हो सकता है लेकिन इसका रास्ता आप से होकर गुजरता है।जिस देश का शिक्षक समर्थ होता है, विजनरी होता है, मिशनरी होता है वह देश कभी पीछे नही रहसकता है। आप सबको मालूम है कि दुनिया मेंतमाम उदाहरण हैं कि शिक्षकों ने जो परिवर्तन किया है, शिक्षक वह आधारशिला है जो कुछ भी कर सकता है और इसलिए मैं समझता हूँ कि यह जो कुछ भी कर सकने की जो लालसा है,छटपटाहट है, जो संकल्प है और जो राष्ट्र-निर्माण जिस बिल्डिंग की आज हम बात कर रहे हैं वो बिल्डिंग,नेशलबिल्डिंग में किस तरीके से परिवर्तित होकर नए स्वरूप में अपने देश को शिखर पर पहुंचाती है इसकी ज़रूरत है। मुझे यह बात कहते हुए खुशी होती हैकिमैं पिछले एक साल से शिक्षा परिवार के सदस्य के रूप में काम देख रहा हूँ। मैं सब विश्वविद्यालयों को देखता हूँ,आईआईटीकोदेखता हूँ,आईआईआईटी को देखता हूँ,एनआईटीको देखता हूँ, केन्द्रीय विश्वविद्यालयों को देखता हूँ और मुझे बहुत गौरव महसूस होता है कि हम आज भी दुनिया में कहीं पीछे नहीं है। हम शिखर पर हैं और इसीलिए यह जो हमारे विश्वविद्यालय हैं यह विश्वविद्यालय हमारी थाती हैं। हमारे मार्गदर्शक हैं। राष्ट्र की आधारशिला हैंजितने भी व्यक्ति आज इधर बैठे हुए है, शिक्षा ही आपको यहां तक लेकर आई है और इसलिए कोई भी व्यक्ति हो, कोई भी परिवार हो, कोई भी समाज हो, कोई भी राष्ट्र हो जिसकी शिक्षा मजबूत नहीं होगी वो कभी भीअधिक दिनों तक जिंदा नहीं रह सकता। हाँ अपने को ढो तो सकता है लेकिन जिन्दा रहकरजिंदादिली के साथ प्रगति के शिखर को चूम नहीसकता है और इसलिए बहुत जरूरी है कि हमारी शिक्षा का आधार बहुत मजबूतहोउसमें बहुत व्‍याप होजो हम दूसरों को दे सकते हैं। इस देश में क्षमता है और इसलिए अध्यापकगण को मैं विशेष करके अनुरोध करता हूँ,उनका अभिनंदन करता हूँ। मैं भी एक अध्यापक से ले करके यहां तक आया हूँ । मैं एक अध्यापक के अन्दर की पीड़ा और छटपटाहट को महसूस कर सकता हूँ, उसके विजन को महसूस कर सकता हूँ ,उसके मिशन को महसूस कर सकता हूँ , उसके अंदर की जो आग है उसको महसूस कर सकता हूँ, क्योंकि एक शिक्षक दीपक की तरह होता है,जैसे दीपकहोता है वो रोशनी देता है लेकिनउसके नीचे अंधेरा रहता है वो कभी अपने अंधेरे को लेकर दुखी नहीं होता है कि मैं तो रोशनीकर रहा हूँ लेकिन मेरे तले तो अंधेरा है वह उसको नजरअंदाज करके अपनी रोशनी बिखेरता हैउसका आनंद लेकर दूसरों को दिशा देता है। मुझे भरोसा है कि शिक्षक ने हमेशा बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और आज जो यह शिक्षण प्रशिक्षण का भवन उद्घाटित हो रहा है क्योंकि हम देश को तब ही समर्थ बना पाएंगे जब हमारे शिक्षक समर्थ होंगे,जब हमारे शिक्षक विजनरीहोंगे, जब उनके अंदर छटपटाहट होगी,कुछदेने की अभिलाषा होगी तब हीतो एक नई पीढ़ी को बना सकते है। बच्‍चा तो कोरा पन्ना है हम जो लिखना चाहें उस पर लिख सकते हैं अब लिखना क्या चाहते हैं और कितना सुंदर लिखना चाहते हैं, कितनी मजबूती से लिखना चाहते हैं यह बहुत जरूरी हैऔर मुझे भरोसा है कि इस देश का शिक्षक जब खड़ा हुआ है तो सब कुछ बहुत बेहतर ही होगाजबमैं पीछे की दिनों यूनेस्को में था और यूनेस्को में मैंने कहा कि मैं दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश की शिक्षा का प्रतिनिधित्व करता हूं जहां1000 से अधिक विश्वविद्यालय हैं,पैंतालीस हजार से भी अधिक डिग्री कॉलेज हैं,15 लाख से भीअधिक स्कूल हैं, एक करोड़ नौ लाख से भी अधिक अध्यापक  है और कुल अमेरिका की जितनी जनसंख्या नहीं है उससे भी ज्यादा 33 करोड़ यहां छात्र छात्राएं  है तो सारे लोग हतप्रभ हो करके देखते हैं। मेरा हिन्दुस्तान आगे 25 साल तक यंग इंडिया रहने वाला हैहम कुछ भी कर सकते हैं।दुनिया में बदलाव की जरूरत है और इसलिए यह जो नई शिक्षा नीति आई है वह तमाम सुधारों के साथ, व्यापक परिवर्तनों के साथ आई है। कुछ लोग कहते हैं कि हमको ग्‍लोबल पर जाना है तो अंग्रेजी सीखनी। पड़ेगी मैंने कहा  हम अंग्रेजी का विरोध नहीं  करते, अंग्रेजी ही नहीं और दो-तीन भाषाएं सीखों लेकिन अपनी भाषाओं को मत छोड़ो। हमारेसंविधान ने हमें 22 खुबसूरत भाषाएं दी हैं। हिन्दी, तमिल, तेलगू, मलयालम, कन्नड़, गुजराती, मराठी, बंगाली,ओडिया, असमिया, उर्दू,यहहमारी 22 खूबसूरत भाषाएँ हैं जिनमेंअपना ज्ञान है,जीवंता है,तोक्यों हम अपनी भाषाओं को खोयंगे।हमने अंग्रेजी का कभी विरोध नहीं किया लेकिन अंग्रेजी इस देश की भाषा नहीं है। हमें अंग्रेजीक्या पूरी दुनिया की भाषाओं को पढना है लेकिन मैं उन लोगों से पूछना चाहता हूं। क्या जो देशनीचे से लेकर उच्च शिक्षा तकअपनी मातृभाषा में शिक्षा देते हैं वो किसी से पीछे हैं, क्‍या जापान, फ्रांस, इंग्लैंड और दुनिया के तमाम जो विकसित देश हैं वो अपनी मातृभाषा में शिक्षा देते हैं क्‍या वो किसी से पीछे हैं,फिर ऐसे तर्क दे करके देश को कमजोर करने की बातक्यों की जाती हैंऔर इसीलिए हम भाषा के मुद्दे पर अपनी भारतीय भाषाओं को मजबूत करना चाहते हैं।इस शिक्षा नीति के अंतर्गत यदि कोई 4 वर्ष का कोर्स है और यदि कोई छात्र दो साल में परिस्‍थितिवशछोड़के जा रहा है  तो पहले उसका पैसा एवं वर्ष खराब हो जाते थे लेकिन अब उसकोनिराश नहीं होना पड़ेगा,यदि आप परिस्‍थितिवश एक वर्षमें छोड़ कर जा रहे हैं तो उसको सर्टिफिकेटदेंगे,दो साल में छोड़ कर जा रहा है तो डिप्लोमा देगें, तीन साल में छोड़ेकर जा रहा है तो उसकोडिग्री देंगे लेकिन यदि फिर वह लौट कर अपने भविष्य को संवारना चाहता है तो फिरवह जहां से उसने छोड़ा था वहीं से शुरू कर सकता है। उसके लिए हम एक ऐसा क्रेडिट बैंक बनायेंगे जहां उसके सारे क्रेडिट जमा होंगेइसलिए उसके लिए आगे बहुत आपार संभावनाएं है।वह कहां जाना चाहता है, शोध और अनुसंधान के क्षेत्र में जाना चाहता है।जहां हमने ‘नेशनलरिसर्च फाउंडेशन’ की स्थापना की है,जो कि प्रधानमंत्री जी के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार की अध्यक्षता में होगी जो शोध की संस्कृति को तेजी से आगे बढ़ाएगा। वहींहमनेतकनीकी के क्षेत्र में कि हमतकनीकी को नीचे स्‍तर तक, अंतिम छोर के व्यक्ति तक कैसे पहुंचा सकते हैं इसके लिए ‘नेशनल एजूकेशन टैक्‍नोलॉजीफोरम’का भी गठन कर रहे हैं। जिससेतकनीकी दृष्टि से भी देश समृद्ध हो सके। हम ‘स्‍पार्क’के तहत दुनिया के शीर्ष 127 देशों के साथ शोधकर रहे हैं। हम ‘स्टार्स’ में शोध कर रहे हैं,लेकिन अभी पेटेंट की जरूरत है। अभी जिस गतिशीलता से हमको आगे बढना है उस गतिशीलता से अभी भी हम बढ़े नहीं हैं और इसलिए एक शोध की संस्कृति हम तैयार करेंगे। इसलिए मेरे छात्रों को  मैंने हमेशा कहा यह समय लौटकर नहीं आएगा,समय कभी वापस नहीं आता है। एक-एक मिनट को, एक-एक दिन को 24 घंटों को 48 घंटे में बदलने की कोशिश करो। हमको दुनिया को कुछ देना है हमहिन्दुस्तान की धरती पर जन्मे हैं दुनिया को देने के लिए पैदा हुए हैं और इसीलिए मैं समझता हूं चाहे शोध और अनुसंधान की दिशा में,चाहेतकनीकी के क्षेत्र में ‘नेशनल एजुकेशन तकनीकी फोरम’ बनाकर के ‘वन नेशन वन डिजिटल प्लेटफार्म’ और ‘वन क्‍लास वन चैनल’ अभीहम लोगों ने शुरू किया है मुझे यह बताते हुये भी खुशी होती है कि ‘स्‍वयं’ प्‍लेटफॉर्म कादुनिया के तमाम देश लाभ ले रहे हैं तो इसलिए मेरे छात्र-छात्राओं को पूरी ताकत के साथ आगे बढना है और हमने ‘लीप’ प्रोग्राम और‘अर्पित’ प्रोग्राम सिर्फ इसलिए रखा ताकि जो हमारे अध्यापक हैउनअध्यापकगणों को अत्याधुनिक तकनीकीजानकारी भी उपलब्ध होती रहे। अध्‍यापक  जितना ताकतवर रहेगा, छात्र उतना ही आगे बढ़ेगा और इसीलिए यह जो लीपऔरअर्पित प्रोग्राम है यह जो शोधअनुसंधान के क्षेत्र में और अध्यापक प्रशिक्षण के क्षेत्र में जो कार्यक्रमहै इसके माध्‍यम से हम समर्थ हो सकेंगे। हम तभी जो हमारे लीडर हैं उनको एक यौद्धा की तरह तैयार करके मैदान में भेज सकते हैं।अभी जो नई शिक्षा नीति आयी है इसको देश के 99 प्रतिशत लोगों ने स्‍वीकार किया है और मुझे लगता है कि दुनिया में इससे पहले  शायद ही किसी नीति पर इतना विमर्श हुआ होगा। हम 2.5 लाख ग्राम समितियों तक गए, हम गांव सेलेकर संसद तक गए,हम ग्राम प्रधान से हमारे आदरणीय प्रधानमंत्री जी तक सबका विमर्श लिया। हमने राजनीतिज्ञों, विशेषज्ञों, वैज्ञानिकोंसे परामर्श लिया। उसके बाद भी उसको पब्लिक डोमेन में डाला ताकि किसी के मन में कोई शंका न रहे और उसमें भी हमें 2.25 लाख सुझाव आए तथा उस एक-एक सुझाव काबाकायदा विश्लेषण करने के बाद जो अमृत निकला वो नई शिक्षा नीति के रूप में पूरे देश के अंदर है। यही कारण है कि आज चाहे इंडोनेशिया हो, चाहे संयुक्‍तअरब अमिरात हो, चाहे आस्ट्रेलिया हो तमाम देशों के लोग हमसे संपर्क कर रहे हैकिहमअपने यहां भी आपकी शिक्षा नीति को लागू करना चाहते हैं। आजपूरी दुनिया में इसकी खूबसूरती महक रही है। मैं सोचता हूं कि अभी हमको जो यह अवसर मिला है इस अवसर को हमको अपने हाथ में लेना है। हम इसके ध्वजवाहक बनेंगे ताकि आने वाली पीढ़ी कह सके कि हम लोगों ने इस शिक्षा नीति को क्रियान्वित किया है और तेजी से किया है और बहुत तेजी से बहुत सारी चीजों को शुरू भी कर दिया है। मुझे भरोसा है कि मैंपहले भी जामिया में आया हूं और नजमा जी आपकी टीम बहुत अच्छी है और जहां टीम भावना नहीं होती है वहां तो लोग अपने को ढोते हैं, समय व्यतीत करते हैं। मेरा जामिया समय व्यतीत नहीं करता बल्कि एक मिशन मोड में काम करता है औरमुझे उसका रिजल्ट दिखता है।मैं सभी संस्‍थानों की बाकायदा समीक्षा करता रहता हूं। मैं इधर हूं लेकिन मुझे मेरे किसी भी विश्वविद्यालय के बारे में आप पूछेंगे कि किस विभाग की, किस विश्वविद्यालय कीक्‍यासहभागिता है। मैं उस संस्थान के अंदर घुसकर उसके विभागाध्यक्ष क्या-क्या कर रहे हैं, कौन किस क्षेत्र में शोध कर रहा है, कितना हो गया मेरे को सब मालूम है और इसलिए देश के चाहे जितने संस्थान हैं जब मैं उनकीसमीक्षा करता  हूं मुझे आशा होती हैउसमें आपका भीविश्वविद्यालय पूरी ताकत के साथ काम कर रहा है। तोआपकी जो कुछ समस्याएं हैं, आपने बताई हैं, उसमें मंत्रालय आपको पूरा सहयोग करेगा और जो भी हो आप बताइये लगातार आप संवाद में भी रहती हैं। मुझे मालूम है किअध्यापक में परिवर्तन करने की चाह और राह दोनों होती है, वह कुछ भी कर सकता है और इसलिए मैं अध्यापकों के साथ चट्टान की तरह हमेशा खड़ा रहा हूं। मुझे भरोसा है कि हम इस नई शिक्षा नीति के आधार पर नए भारत के निर्माण की दिशा में और तेजी से आगे बढ़ेंगे और पूरे देश के अंदर एक ऐसा माहौल पैदा करेंगे कि देश में शोध की संस्कृति हो। दुनिया के सब विश्वविद्यालयों को मैं देख रहा हूं, दुनिया के सब शिक्षा मंत्रियोंसे भी मेरा निरंतर संवाद रहा है। ‘स्टडी इन इंडिया’ के तहत पूरी दुनिया के बच्‍चेहमारे देश में पढ़ने के लिए आ रहे हैं,जहां‘ज्ञान’के तहत बाहर की फैकल्टी यहां पढ़ाने के लिए आरही हैं वही ‘ज्ञान प्लस’ में हमारी भी फैकल्टी बाहर जाएगी क्‍योंकि हममेंसामर्थ्‍य है औरहम दुनिया को पढ़ाने के लिए जाएंगे और इस समय जो हमने‘स्टे इन इंडिया’ कार्यक्रमशुरू कियाक्‍योंकि हमारे देश से 7-8 लाख छात्र प्रतिवर्ष विदेशों में पढ़ने के लिए जा रहे हैं। हमारे देश का पैसा और प्रतिभा दोनों बाहर चली जाती हैं और वापस वह हमारे देश में नहीं आती है। इसलिए हमने‘स्‍टे इन इंडिया’ अभियान किया।  हमने  छात्रों को भरोसा दिलाया कि हमारे आईआईटी, एनआईटी, आईएसर, केन्‍द्रीय विश्‍वविद्यालयों में योग्‍यता है, क्षमता है आपको  बाहर जाने  की जरूरत नहीं है, यहअब लोगों की समझ में भी आ गया है। मुझे इस बात की खुशी है कि पीछे के समय हमने जेईई परीक्षाएं करवाई। मुझे इसबात की भी खुशी है कि दो लाख से भी अधिक छात्र जोविदेश में जा रहे थेवे जेईई और नीट की परीक्षाओं में सम्‍मिलित हुए।  हम ‘स्‍टे इन इंडिया’ के तहत दुनिया के शीर्ष सौविश्वविद्यालयों को अपनी धरती पर आमंत्रित कर रहे हैं। आपकोकहीं जाने की जरूरत नहीं है और यहां के जो शीर्ष विश्वविद्यालय हैं वेभीबाहर जा रहे हैं। यह आदान-प्रदान हम करेंगे। हमइन प्रतिभाओं को हर हालत में देश के अंदर रोकने की कोशिश करेंगे और निश्चित रूप में हमको सफलता मिलेगी। एक बार फिर मैं आप सबको धन्यवाद देता हूं और आपको बहुत शुभकामनाएं।

 

 

 

बहुत-बहुत धन्‍यवाद!

 

 

कार्यक्रम में गरिमामयी उपस्‍थिति:-

 

  1. डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक, माननीय शिक्षा मंत्री, भारत सरकार
  2. श्री संजय शामराव धोत्रे, माननीय शिक्षा राज्‍य मंत्री, भारत सरकार
  3. प्रो. नज़मा अख्‍तर, कुलपति, जामिया मिलिया इस्‍लामिया केन्‍द्रीय विश्‍वविद्यालय
  4. श्री ए.पी. सिद्दिकी, कुलसचिव, जामिया मिलिया इस्‍लामिया केन्‍द्रीय विश्‍वविद्यालय
  5. डॉ. एज़ाज मसीह, डीन एजुकेशन, जामिया मिलिया केन्‍द्रीय इस्‍लामिया विश्‍वविद्यालय

शिक्षक पर्व

शिक्षक पर्व

 

दिनांक: 16 सितम्‍बर, 2020

 

 

माननीय शिक्षा मंत्री, डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’

 

शिक्षकपर्व पर उपस्‍थित भारत सरकार के यशस्‍वी रक्षा मंत्री आदरणीय राजनाथ सिंह जी, अभी जिनका हमको बहुत ही प्रेरक उद्बोधन मिला है, भारत के युवा कल्‍याण एवं खेल मंत्री आदरणीय किरेन जी, मेरे सहयोगी शिक्षा राज्‍य मंत्री श्री संजय धोत्रे जी, उच्‍च शिक्षा के सचिवश्री अमित खरे जी और स्‍कूली शिक्षा की सचिव अनिता जी, खेल और युवा कल्‍याण की सचिव श्रीमती ऊषा जी, प्रो.डी.पी. सिंह अध्‍यक्ष विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, तमाम विश्‍वविद्यालयों के कुलपति एवं निदेशक। हम सभी लोग देश के अंदर बेहतर तरीके से इस शिक्षा के उत्सव को मना रहे हैं और देश की आजादी के बाद 1968 में एवं 1986 में भी शिक्षा नीति आई लेकिन मूलभूत जो भारत की जड़ों पर खड़े हो करकेअंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा में जाने की क्षमता रखती है और जो ज्ञान, विज्ञान, अनुसंधान, तकनीकी और नवाचार की दिशा में अपने को विश्व स्पर्धा में शीर्ष पर खड़ी करती है और जीवनमूल्यों की आधारशिला पर खड़ी हो करके विभिन्‍न आयामों को लेकर आगे बढ़ने वाली ऐसी राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 हमारे देश के यशस्वी प्रधानमंत्री श्रीनरेन्द मोदी जी के लगातार निर्देशन में सशक्त तरीके से उभर करके आई है जिसका पूरे देश नेअभिनंदन किया है और जिसको पूरी दुनिया के देशों ने स्वीकार किया है।दुनिया के तमाम देशों ने आज अपने देश में भी इस एनईपी को लागू करने की मंशा व्यक्त की है ऐसी राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के इस शिक्षा के उत्सव में मैं आप सबका अभिनंदन कर रहा हूं। मुझे लगता है जैसा कि किरण भाई ने कहा कि आज 75 लाख से भी ज्यादा युवा हमसेजुड़े हैं और यदि एनसीसी एनएसएस और एनवाईकेएसऔर उन्नत भारत अभियान को देखेंगे तो कुल मिलाकर 1 करोड़ से भी अधिकलोग आज इससंवाद जुड़ेहैं जिन्होंने सेवा और समर्पण का संकल्प लिया है,जिन्‍होंने राष्ट्र की रक्षा का संकल्प लिया है, जिन्होंने सामाजिक उत्थान की दिशा में अहम भूमिका निभानेका संकल्प लिया है। यह सब लोग हैंजो रात-दिन खपकरके अभियान के रूप में, एक मिशन मोड में जुनून के साथ किसी भी बात को अंतिम छोर तक पहुँचाने का दम रखते हैं और इसलिए मैं समझता हूं यह ऐसा समय है जबकि पूरा देश उत्सव मना रहा हैं, ऐसा समय जबकि पूरा देश अपने अतीत को भी याद कर रहा हो, वर्तमान में जी रहा हो और भविष्य की उड़ान को भरने के लिए इस शिक्षा नीति को अपने हाथों में रखा हुआ हो, ऐसा समय जब भारतविश्वगुरु था जिसके ज्ञान विज्ञान और अनुसंधान को पाने के लिए पूरी दुनिया यहां तक्षशिला, नालंदा और विक्रमशिला जैसे विश्वविद्यालयों में ज्ञान अर्जन करने के लिए आते थे तब उसका स्मरण करके उस ज्ञान विज्ञान अनुसंधान कोवर्तमान से जोड़ कर के भविष्य की छलांग मारने का जो यह अभियान है उस अभियान की बीच की कड़ी के रूप में हम लोग जुड़ रहे हैं। जैसे कि अभी किरन भाई ने बताया कि यह दुनिया का किसी भी नीति को बनाने का सबसे बड़ा परामर्श है। जब हम ढाई लाख ग्राम समितियों तक जाते हैं, जब हम एक हजार विश्वविद्यालयों तक जाते हैं, जब हम पैंतालीस हजार डिग्री कॉलेजों तक जाते हैं, जब हम एक करोड़ नौ लाख से भी अधिक अध्यापकों तक जाते हैं, जब हम पन्‍द्रहलाख से भी अधिक स्कूलों तक जाते हैं, जब हम इस देश के 33 करोड़ छात्र-छात्राओं तक जाते हैं और उनके अभिभावकों से परामर्श करते हैं तो यह इस नीतिकी ताकत है। इसलिए हमारे देश के प्रधानमंत्री ने कहा है कि यह किसी एक विभाग की नीति नहीं है, यह केवल सरकारकी नीति नहीं है, यह देश की नीति हैऔर यह शिक्षा की नीति है क्योंकि शिक्षा किसी भी व्यक्ति की, परिवार की, समाज की और राष्ट्र की आधारशिला होती है और यदि वो ठीक है तो सब कुछ ठीक है। इसलिए इस अभियान मेंप्रधानमंत्री जी की प्रेरणा से,हमारे रक्षा मंत्री जी के मार्गदर्शन में और जैसा कि अभी किरन भाईनेचर्चा की कि जितने भी हमारे स्वयंसेवी युवा हैं वो इस अभियान को ले करके किस तरीके से उन अंतिम छोर के व्यक्ति तक जा सकते हैं,उनको भीबधाई देने के लिए जाना है क्योंकि हमने सुझाव मांगा था, सुझाव दिए थे और सुझाव देने के बाद हमने उसको नीति में परिणित किया और आज वोनीति आपके हाथों में है। एक बार उन कोधन्यवाद देने की जरुरत है और हम क्या महत्वपूर्ण इस शिक्षा नीति में लाये हैं, इसे पूरे देश को बताने की जरूरत है। इस शिक्षा नीति को देश के 99 प्रतिशत लोगोंने स्‍वीकार किया है,देश की आजादी के बाद पहलीऐसी नीति आ रही है जब पूरा देश एकजुट हो करके खड़ा है और उसका अभिनंदन कर रहे हैं तो इसशिक्षा नीति की जो खुशबु है वह सर्वत्र प्रसारित हो रही है। आज हमें सुनिश्‍चित करना है कि वो कौन से ऐसे महत्वपूर्ण बिन्दु हैं उन्हीं को लेकर के उनसे संवाद करना है।मुझे मालूम है कि युवा कल्याण विभाग हरब्लॉक स्तर पर जो आपके स्‍वयंसेवी संगठन हैं उनसे मैं काफी निकटता से परिचित हूं वो एक मिशन मोड में काम करते हैं। हमारे एनएसए सेवा भाव को लेकर कामकरते हैं। एनसीसी का तो जो देश के प्रति समर्पण का भाव है वह अद्भुत है। हमाराउन्नत भारत अभियान है वह सामाजिक दायित्व के साथ जुड़ करके गांव और सब लोगों को साथ जोड़ करके उन्हें एक अभियान के रूप में आगे बढा रहा है और तमाम स्‍वयं सेवीसंगठनों के युवा आज इस अभियान के साथ जुड़े हुए हैं।इस शिक्षा नीति की संक्षिप्‍त चर्चा अब मैं आप लोगों के मध्‍य करना चाहता हूंइस नई शिक्षा नीति में पहले 10+2 होता था, अब 10+2 नहीं होगा, क्‍योंकि उसमें छात्र के ऊपर विषय थोपे जाते हैं, बस उन्हीं को वो पढ़ता रहता है, लेकिन अब ऐसा नहीं होगा।अब हमने 10+2की जगह5+3+3+4 किया है और शुरू के 5 वर्षों को भी अब हमने3+2में बदल दिया है। इसमें तीन वर्ष का जो आंगनबाड़ी पाठ्यक्रमहोगा वह जो तीन वर्षबच्चा है क्योंकि वैज्ञानिकों एवं विशेषज्ञों ने भी यह कहा है कि तीन वर्ष से छह वर्ष तक के बच्चे का मस्तिष्क के विकास सर्वाधिक तीव्र गति से होता है और हम उस मौके को चूकना नहीं चाहते हैं। इसलिए तीन वर्ष के बच्चे कोसांस्कृतिक कार्यक्रमों के माध्यम से, खेल के माध्यम से उसके अंदर की प्रतिभा को बाहर निकाल सकते हैं, उस आधारशिला को और मजबूत कर सकते हैं। उसमें संस्कार भी होगा और उसमें विज्ञान भी होगा, उसका हर आधार सर्वांगीण होगा और इसीलिए वहां से बच्चे कोआगे ले जा रहे हैं और आपने देखा होगा कि हम इस शिक्षा नीति में वोकेशनल कक्षा छठवीं से ही लारहे हैंऔरअभी जब किरन भाई बोल रहे थे कि पुनानी पद्धति में यह होता था कि खेल नहीं तो पढाई करो, पढ़ाई नहीं तो खेल करो,खेल-कूद और पढ़ाई दोनों नहीं ले सकते। अब कितनी स्वतंत्रता है हम तो कक्षा 6 से ही वोकेशनल स्ट्रीम के साथ शिक्षण और शिक्षणेत्तर गतिविधियां जिसमें खेल,सांस्कृतिक कार्यक्रम होंगे तमाम गतिविधियों होंगी,इन तीनों का अद्भुत संगम होगा और जो वोकेशनल स्ट्रीम होगी वो इन्टर्नशिप के साथ होगी। अब बच्‍चास्‍कूल में जाएगा तो केवल पढ़ाई नहीं करेगा, वह गांव में जाएगा, क्षेत्र में जाएगा उसको प्रैक्टिकल करेगावहक्या बनना चाहते है। छोटी-छोटी चीजों को आत्मसात करेगा और उसको प्रैक्टिकल रूप में करेगा और उसके बाद जो उसका मूल्यांकन होगा वो भी 360 डिग्री होलिस्टिक मूल्यांकन होगा।उसमें बच्चा स्वयं भी अपना मूल्यांकन करेगा, उसका अध्यापक भी मूल्यांकन करेगा, अभिभावक भी करेगा और उसके साथी भी उसकामूल्‍यांकन करेगा। यह नई शिक्षा नीति उच्च शिक्षा में भी व्‍यापक परिवर्तनों के साथ आई है,विषय की पूरी छूट है, कोई भी विषय छात्र ले सकता है, वह साइंस के साथ साहित्य को ले सकते हैं,इंजीनियरिंग के साथ संगीत को ले सकते हैं। पूरा मैदान खाली है युवाओं के लिएवह किस क्षेत्र में दौड़ना चाहता है, बढ़ना चाहता  हैउनके लिए टोटली छूट है। यह पहली बार ऐसा हो रहा है कि कोई भी छात्र कुछ भी ले सकता है और जिसमें उसकी चाह है उसको ले सकता है और इतना ही नहीं उच्च शिक्षा में भीयह कर दिया है। शोध और अनुसंधान की दिशा में भी हम तीव्र गति से काम कर रहे हैं। हमारे प्रधानमंत्री जी ने कहा है कि अब अनुसंधान की जरूरत है।  एक समय था जब हम खाद्यान्‍न एवंसीमाओं पर संकट से गुजर रहे थे, तो देश एकजुट हुआ था और दोनों संकटों का सामना हमने डटकर के किया था और देश फिर ताकत के साथ उभर कर आगे आया और जब अटल बिहारी वाजपेयी जी प्रधानमंत्री बने तो उन्‍होंने कहा कि अब विज्ञान को आगे लेकर जाने की जरूरत है तो उन्‍होंने ‘जय विज्ञान’ का नारा दिया था और आपको पता है कि अटल जी का परमाणु से संबंधित जो निर्णय था उसने हिन्‍दुस्‍तान को पूरी दुनिया में महाशक्‍ति के रूप में आगे बढ़ने का ऐसा रास्‍ता दिया था और जय विज्ञान की दिशा में हमने अद्भुत काम किया। जब हमारे वर्तमान प्रधानमंत्री श्री नरेन्‍द्र मोदी जी आये तो उनके मन में आया कि अब एक कदम और आगे जाने की जरूरत हैऔर उन्‍होंने‘जय अनुसंधान’ का नारा दिया।‘जय जवान, जय किसान’‘जय विज्ञान’ और  ‘जय अनुसंधान’। अनुसंधान क्‍योंकि हमारे पास जो भी कुछ है उसे नवाचार के साथनये शोध के साथ विश्‍व के शिखर पर हमको पहुंचना है। इसलिए हम ‘नेशनल रिसर्च फाउंडेशन’का गठन कर रहे हैं ताकि देश के अन्‍दर शोध की संस्‍कृति बन सके हमें अनुसंधान को लेकर आगे बढ़ना है क्‍योंकि हमारे देश के प्रधानमंत्री जी ने जो 21वीं सदी के स्‍वर्णिम भारत की बात की है। ऐसा भारत जो स्‍वच्‍छ हो, स्‍वस्‍थ हो, सशक्‍त हो, आत्‍मनिर्भर हो, श्रेष्‍ठ हो और एक भारत हो और इसका रास्‍ता ‘मेक इन इंडिया’,‘डिजिटलइंडिया’,‘स्‍किल इंडिया’,‘स्‍टार्ट अप इंडिया’ और ‘स्‍टैंड अप इंडिया’से होकर गुजरता है और इसलिए ‘जय अनुसंधान’,अब हम शोध और अनुसंधान की दिशा में पीछे नहीं रहेंगे, पूरी दुनिया में हम विश्‍व के शिखर पर पहुंचेगे और यह शिक्षा नीति उसी को लेकर के आयी है। प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आप सबको मालूम है कि किस तरीके से जो प्रौद्योगिकी है हम उसका ज्‍यादा से ज्‍यादा उपयोग कर सकते हैं। इसलिए प्रौद्योगिकी की उन्‍नति के लिए एक अलग से फोरम गठित किया जा रहा है। अभी हमने ऑनलाइन शिक्षा दी जिसके बारे में कोई सोच भी नहीं सकता था। हिन्‍दुस्‍तान दुनिया का शायद पहला देश है जो 25 करोड़ से भी अधिक छात्रों को रातों-रात ऑनलाइन पर लेकर के आया है। हमको मालूम है कि हम अभी अंतिम छोर के बच्‍चे तक पहुंचने के लिए काफी छटपटा रहे हैं लेकिन हमारा लक्ष्‍य है कि अंतिम छोर पर बैठे रहने वाला छात्र भी, जिसके पास स्‍मार्ट टेलीफोन नहीं है, नेट की सुविधा नहीं है हम उस तक भी जायेंगे और जा रहे हैं। लेकिनमेरे युवा साथियो, यह एक ऐसा अवसर है जब आप तीनों-चारों संगठन जुड़कर के काम करेंगे। आप सामान्‍य नहीं है, आपके अन्‍दर समाज के प्रति असीम भावना है, आपमें ऊर्जा भी है तथा देश और समाज को जोड़ने की विविध कला भी है और आप सब एक साथ उसको ज्ञान के सागर से भी जोड़ेंगे। जो हमारी शिक्षा नीति के प्रमुख विषय है निश्‍चित रूप में उनको आप लोगों तक लेकर जाएंगे और जैसा कि इस नीति का लक्ष्‍य है नेशन फर्स्‍ट और केरेक्‍टर मस्‍ट। हमारे लिए राष्‍ट्र प्रमुख है। राष्‍ट्र व्‍यक्‍ति से भी अधिक महत्‍वपूर्ण है। इसलिए इस भावना को लेकर आप सब लोग जाएंगे। मैं समझता हूं कि कोविड काल में भी आपने जिस तरीके से काम किया है उससे हमारा सीना चौड़ा होता है। हमको मालूम है कि आपने किस तरीके से काम किया है और चाहे वृक्षारोपण हो या रक्‍त दान का विषय हो हर कदम पर आपने अहम् भूमिका निभाई है। मुझे भरोसा है कि यह नई शिक्षा नीति नये परिवेश को लेकर के नयी सोच और नई दिशा और नई उड़ान को लेकर के आयी है। जो मेरे युवाओं ने सपने संजोये हैं और सपने भी ऐसे जो सोने न दे,ऐसे सपनों की उड़ान को ले करके यह नई शिक्षा नीति आयी है। मुझे भरोसा है कि जो विवेकानन्‍द जी ने कहा था कि ‘उठो, जागो और तब तक मत रूको जब तक कि हमारा लक्ष्‍य हमको प्राप्‍त नहीं हो जाता। आप इस चरितार्थ करके दिखायेंगे। इस अभियान के साथ इस नई शिक्षा नीति के उत्‍सव को हम मनायेंगे, ऐसा मेरा भरोसा है। मैं एक बार फिर किरेन जी को भी धन्‍यवाद देता हूं लेकिन हमारे रक्षा मंत्री जिनका हमको लगातार मार्गदर्शन मिलता रहा है और उनके मार्गदर्शन में हमें इस अभियान को गांव के अंतिम छोर के व्‍यक्‍ति तक पहुंचाना है। यह नई शिक्षा नीति जो नये भविष्‍य को लेकर के छात्रों के हाथों में होगी, इस अभियान को हम अंतिम छोर तक ले जाने के लिए आज संकल्‍प लेंगे, ऐसा मेरा भरोसा है। आज जितने भी लाखों-लाखों लोग, माननीय रक्षा मंत्री के नेतृत्‍व में हम सबके साथ जुड़े हैं, मैं आप सबका अभिनन्‍दन करता हूं, शुभकामनाएं देता हूं।

 

बहुत-बहुत धन्‍यवाद!

 

कार्यक्रम में गरिमामयी उपस्‍थिति:-

  1. डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’, माननीय शिक्षा मंत्री, भारत सरकार
  2. श्री राजनाथ सिंह, माननीय रक्षा मंत्री, भारत सरकार
  3. श्री किरेन रीजिजू, माननीय युवा कल्‍याण एवं खेल मंत्री, भारत सरकार
  4. श्री संजय शामराव धोत्रे, माननीय शिक्षा राज्‍य मंत्री, भारत सरकार
  5. श्री अमित खरे, सचिव, उच्‍चतर शिक्षा विभाग, शिक्षा मंत्रालय
  6. सुश्री अनिता करवल, सचिव, स्‍कूली शिक्षा विभाग, शिक्षा मंत्रालय
  7. प्रो. डी.पी. सिंह, अध्‍यक्ष, विश्‍वविद्यालय अनुदान आयोग

आचार्य देवो: भव: नेक कॉन्‍क्‍लेव

आचार्य देवो: भव: नेक कॉन्‍क्‍लेव

 

दिनांक: 11 सितम्‍बर, 2020

 

 

माननीय शिक्षा मंत्री, डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’

 

‘आचार्य देवो भव:’ के नाम सेजो नैक ने आज यह महत्वपूर्ण कार्यक्रम आयोजित किया है, मैं सबसे पहले नैक के अध्यक्ष श्रीचौहान जी और नैक के निदेशक डॉ.शर्मा  कोविशेष बधाई देना चाहता हूं,उनका आभार प्रकट करना चाहता हूं। अभी हमारे यूजीसी के अध्यक्ष जो शालीनताकेधनी हैं, मैंने उन्‍हेंबहुत लंबे समय से यहां तक कि बचपन से ही देखा है, जब वेश्रीनगर में थे, पढ़ रहे थे, तब से ही हम उनको जानते थे और उनकी यात्रा को, उनके संघर्षों को मैंने निकटता से देखा है। शालीनता से कैसे शिखर तक जाया जा सकता है, वो भी उनसे अच्छे से सीखने की जरूरत है। हमलोगों को जैसे कि डी.पी सिंह जी ने डॉक्टर चौहानजी के बारे में बताया कि वो न केवल अद्भुत व्यक्तित्व के धनी हैं,बल्‍कि अपने कमिटमेंट के बहुत पक्के हैं कि मन में आया तो करना है, तो उनका भी हमको मार्गदर्शन मिला है। डॉक्टर शर्मा आपको मैं धन्यवाद देना चाहता हूं क्योंकि मैंने आपसे कहा था कि हमशिक्षक दिवस मना रहे हैं तो शिक्षक दिवस के अवसर पर मैंने आपसे अनुरोध किया था कि क्या हो सकता है? मेरा मन है कि एक बात सभी शिक्षक जितने अपनेहैं आचार्य उन सबको मैं अभिनंदन करूं। मैं उनको बधाई दूं उनको मैंप्रत्‍यक्षशुभकामना दूं और आपने इसबेड़े को उठाय।मैं देख रहा हूं कि लगभग 330 कुलपतिगण आज हमारे साथ जुड़े हुए हैं। आईआईटी और आईआईएम के 79डायरेक्‍टरइस समय हमारे साथ जुड़े हुए हैं। तीन हजार प्रधानाध्यापक जुड़ेहैं।31 हजार से अधिक सहायक प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर और प्रोफेसर्स जुड़ेहैं,कुल मिला कर के लगभग डेढ लाख से भी अधिक लोग अभीप्रत्यक्ष तरीके से हमारे साथ जुड़े हुए हैं। मैं विशेषकरके आपको धन्यवाद देना चाहता हूं और आपके माध्यम से जो आज यह आचार्य देवो भव: के रूप में जो हम सब लोग आज अपने आचार्योंका विशेष करके देश के शिक्षा मंत्री होने के नाते मैं अपने आचार्यों को प्रणाम करना चाहता हूं, उनको मैं बधाई देना चाहता हूं,ह्रदय की गहराइयों से उनका अभिनंदन करने के लिए विशेष करके यह कार्यक्रम मैंने चाहा था। मैंबहुत गहरे मन से आपका आभार प्रकट कर रहा हूं क्योंकि मैं जानता हूं, मैं शिक्षक से लेकर शिक्षा मंत्री तक की अपनी यात्रा मेंउन तमाम पड़ावोंको महसूस कर सकता हूं कि एक शिक्षक की कितनी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। कितनी वेदनाओं से, कितनी कठिनाइयों से, किस मन:स्थिति से होकर एक शिक्षक गुजरता है। शिक्षक केवल शब्द नहीं देता, शिक्षक अपने अंदर का उडेल कर अपने छात्र को देता है और उसका जो अंदर का अंतस मन है उसको किस सीमा तक को वोअपने को जोड़ करके छात्र के अंदर प्रवेश करता है। यहसामान्य बात नहीं है। शिक्षक एक वैज्ञानिक है ऐसा वैज्ञानिक है जो महसूस कर सकता है कि मुझे अपनेछात्रों के मन और मस्तिष्क पर किस तरीके से प्रवेश करना है। जब आप किसी के मन-मस्तिष्क में प्रवेश करते हैं, किसी के जीवन में प्रवेश करते हैं, किसी के संस्कारों में प्रवेश करते हैं,किसी की प्रकृति-प्रवृत्ति में प्रवेश करते हैं तो मैं समझ सकता हूं क्योंकि मैं लेखन से भी जुड़ा हूं। उन कठिनाइयों सेअध्यापक को गुजरना पड़ता है क्योंकि रचना तभी निकल सकती है। बड़ी वेदना के बाद वो रचना बाहर निकलती है और मैं इस बात को भी लेकर उतना ही महसूस करता हूं जैसे किडॉ.चौहान ने चिंता व्यक्त की है। मैं महसूस कर सकता हूं कि जो लोग मन के अंदर से अकलुशिततरीके से उस संवाद को नहीं बढ़ा पाते मुझे लगता है कि वहां कोई न कोई कमी रही है क्योंकि यह प्रकृति का नियम है। जब हमअंदर से कभी किसी को बोलते हैं तो वहआपसे जुड़ता है। वह आपका सम्मान करता है। वह गदगद् होता है। जब हम किसी व्यक्ति सेकभी मिलते नहीं हैं, लेकिन जब उसकी बातों को सुनते हैं तो स्वतःस्फूर्त मन के अंदर सम्मान पैदा होता है। ऐसा महसूस होता है कि यदि वह मेरे सामने होता तो मैं चरण स्पर्श करता। मैंइनकेपैरों पर लोट-पोट हो जाता, अंदर से आस्था प्रकट होती है। भावनाएंआह्लादित होती है। मन के अंदर से निकले उद्गार के तहत जब आदमी अपने को तैयार करता है, तभी वहदूसरे को कुछ दे सकता है। मैं इसकोबहुत ताकत के साथ कह सकता हूं और यदि मन के अंदर से तैयारी है जिसको कुछ देना है, वह देने का भी अधिकार उसी का है जिसके पास है। जब किसी के पास है ही नहीं यह किताब पढ़ी और इधर के शब्द उधर कोदिये वो देना नहीं हो सकता है। इसलिए मैं समझता हूं आज की उन परिस्‍थितियोंमें हमारी बहुत बड़ी जिम्मेदारी हो गई है और निश्चित रूप में जो चिन्ता चौहान जी ने व्यक्त कीउसको भी हमेंपाटना है, वह हमसे ही पैदा हुई है। परिस्‍थितियोंने पैदा की और तमाम प्रकार की परिस्‍थितियां पैदा हुई। एक ओर तो हमारे देश की गुलामी के उन थपेड़ों ने हमको जड़ों से काटा है। अन्यथा हम कैसे भूल जाएंगे हम उस देश के लोग है जो विश्वगुरु कहलाया है। ‘एतद्देशप्रसूतस्य सकाशादग्रजन्मनः स्वं स्वं चरित्रं शिक्षेरन्पृथिव्यां सर्वमानवाः’सारी दुनिया के लोगों ने हमसे आकर शिक्षा ली है,तक्षशिला, नालंदा और विक्रमशिला तमाम वो विश्वविद्यालय थे। दुनिया के कोई विश्वविद्यालय बताएं तो और यदि पूरी दुनियां हमसे आकर इतिहास, ज्ञान, विज्ञान, अनुसंधान और प्रौद्योगिकी कौन सा क्षेत्र था जिसमें भारत ने विश्‍व में लीडरशिप नहीं दी है। लेकिन वो तमाम जो भी परिस्‍थितियांरहीं उन पर मैं पीछे नहीं जाना चाहता। लेकिन हां, उन थपेड़ों ने हमको हमारीजड़ों से काटने की कोशिश की। मैं लार्ड मैकाले जी को दोष नहीं देता क्योंकि देश गुलाम था और स्वाभाविक रूपसे उनके मन में आया कि जब तक इस देश की शिक्षा और संस्कृति नहीं बदल देंगे तब तक भारत जैसे देश पर राज करना आसान नहीं होगा। उन्होंने अपने पत्रों में लिखा कि मैं जो चाहता हूं वह तब तक नहीं हो सकता क्‍योंकि यह देश बहुत बड़ा है। इसमें विविधता है, अनेकता में भी एकता है। यह संस्कारों से जुड़ा है और बिल्कुल सही है, जो उन्होंने सोचा। यह हम हमेशा कहते हैं कि‘‘यूनान, मिस्र रोमा सब मिट गए जहां से अब तक मगर है बाकी नामोनिशां हमारा और उसके बाद कुछ आगे कहते हैं कि कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी’’ कौन सी बात है? कुछ तो बात है कि तमाम लोग आए दुनिया के इतिहास में कितने देश खड़े हुए, कब मिट्टी में मिल गए उनका पता भी नहीं चलता। हिन्दुस्तान ने तमाम थपेड़े सहे हैं लेकिन हिंदुस्तान को मिटाने के कोशिशों पर लोग सफल नहीं हो सके हैं। यह जो हमारी थाती है, यह जो हमारा संस्कार है, यह जो हमारी विशेषता है यह हमारी रगों में बहने वाला वो खून जो हमको संकीर्णता में नहीं विश्‍व को लेकर विश्‍व बंधुत्‍व के रूप में स्‍थापित करता है। आज देश की आजादी के बाद एक ऐसे नेतृत्व में यशस्‍वीप्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी, जो इच्छाशक्ति के धनी हैं और जिन्होंने कम समय में भारत को दुनिया में लीडरशिप दी, जो विजनरीभीहैंऔर मिशनरी भी हैं। विजन होना कोई बहुत बड़ी मुश्किल नहीं है लेकिन उस विजन को मिशन में तब्दील करके धरती पर क्रियान्‍वितकरने की ताकत चाहिए। भाषण देने वाले तो बहुत मिल जाएंगे बड़ी बड़ी बातें करने, बड़ी बातों में क्या जा रहा है? लेकिन छोटी-छोटी बातें बड़े परिवर्तन का कारण बनती हैं। लोग जमीन पर क्रियान्‍वित हों, और इसीलिए बहुत लंबे समय के बाद देश को 70 वर्षों काचिर प्रतीक्षित जो लोगों का मानस था किअपने देश की शिक्षा नीति होनी चाहिए। मैं समझ सकता हूं मैंने शिशु मंदिर में भी पढ़ाया है। यह जो बच्चा हमारे पास उच्च शिक्षा में आया और नीचे से आ रहा है हमने तो उनको संस्कारों से हटा दिया है। वो संस्कार तो उसको स्कूली शिक्षा से मिलेंगे। हमने काटा है, उसको जड़ों से। हमने वहां जहां पर बोना था,वो संस्कार पढ़ने थे, तो उसे हटा दिया। आज पूरी दुनिया इस बात को महसूस करती है कि भारत कीशिक्षा जीवन मूल्यों पर खड़े हो करके ही संभव है जो इसकी बड़ी ताकत होगी। जबयूनेस्को की डीजे पीछे के समय में भारत आयी थी इस बात को लेकर चिंतित थीकिहमारे यहां अनुशासन हीनता क्यों है, हिंसा क्यों है, एक-दूसरे को सम्मान क्यों नहीं दे रहे हैं? मैंने उनसेचर्चा की। यह इसलिए नहीं हो रहा है कि जीवन-परक मूल्यपरक शिक्षा नहीं है। तुम यह चीज को, यह चीज को लेकिन मशीन बना रहे हैं मनुष्य नहीं।हमारे देश के प्रधानमंत्री ने कहा कि हम एक अच्छा नागरिक, विश्व मानव बनाएंगे उसकी आधारशिला यहशिक्षा और इसलिए आज मैं आप सबका बहुत अभिनंदन करना चाहता हूं। मैं सोचता हूं कि इसमें कोई दोराय नहीं है। हमारे देश में पहले से ही यह परंपरा रही है। उस परंपरा कोफिरताकत के साथ खड़ा करना जरूरी है दुनिया के लिए, अपनी पीढ़ी के लिए, अपने भविष्‍य के लिए और मानवता के लिए। हमने हमेशा गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुर्गुरुर्देवो महेश्वरः। गुरुः साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः॥  सारे देवताओं के भी ऊपर हमने गुरु को रखा है। क्या हम इसका आंकलन कर रहेहैं? अभी डॉ.सिंह कह रहे थे कि हम होंगे कामयाब, क्यों नहीं होंगे? हम पूरी ताकत के साथ समाहित करेंगे उन ताकतों को,उन संस्कारों को अपने अंदर। इसलिए यदि ‘‘गुरु गोविन्द दोऊखड़े काके लागो पाय, बलिहारी गुरु आपने, गोविन्द दियो बताय। उस बच्चे को कोई कन्फ्यूजन नहीं है। एक तरफ भगवान खड़े हैं दूसरी तरफ गुरु खड़े हैं। किसके पांव को मैं पहले स्पर्श करूं। गुरु के पांव को करना है। गुरु के कारण तो भगवान के दर्शन हुए हैं। गुरु वह जो प्रकाश देता है, जो अंधकार को मिटाता है, जो जीवन देता है। बिना गुरु के, बिना शिक्षा के, तो क्या है, मौत हीतो है गुरू के बिना मनुष्‍य एक चलता-फिरता पुतला है। मानव यदि शिक्षित नहीं है, यदि उसको गुरु का ज्ञान नहीं, गुरु उसको शिक्षित करके आगे नहीं बढ़ा रहे हैं तो क्या है फिर एक चलता-फिरता पुतला है और इसलिए मैं यहसमझता हूं आज हमारे पास गुरुहै। गुरु वही जो शिष्यों को जगाते हैं,दिशा बतातेहैंसिर्फ ज्ञान का संस्कार आप प्रदीप्त करते हैं, साधना भी सिखाते हैं आत्मा से परिचय करना भी सिखाते, प्रेरित भी होते हैं औरउत्प्रेरक भी होतेहै। गुरु इसकी सीमायें नहीं है। एक राजा का सम्मान तो उसके देश में हीहो सकता है लेकिन मेरे गुरु का सम्मान पूरे विश्व में होता है। वो देश की सीमाओं को पार करके जाता है क्योंकि ज्ञान का पुंज  है उसके अंदर ज्ञान हैवो गुरु है वो अंधकार को मिटाने की ताकत है, क्षमता है उनमें। इसीलिए वो जो गुरु होता है, वह पूरे विश्व में उसके लिए पूरी दुनिया एक होती है पूरा संसार उसके चरणों में आकर के खड़ा होता है। आपने डॉ.राधाकृष्णन जी की बात की और वो तो तब भी उन्होंने क्या किया था, मुझे कहने की ज़रूरत नहीं है। आप सब लोग जानते हैंऔर हम सब लोग जानते हैं। मेरा सौभाग्य है कि अब्दुल कलाम जी मुझे बहुत प्यार करते थे और जब-जब वह मिले उन्होंने शिक्षा पर यह हमेशा बात की और मेरी तो एक पुस्तक का जब लोकार्पण किया था तो कितनी देशभक्ति उनके मन के अंदर समाई थी। एक छोटी सी कविता सुनकरउनकी आंखों से आंसू टपकते, मैंने देखे थे।उन्होंने एक बार मेरे से कहा किमैंने सुना कि आपके सन्1883 सेदेशभक्ति के गीत रेडियो पर आते रहे हैं फिर एक जगह क्यों नहीं हो सकते देशभक्ति के गीत। मैंने कहा कि यदि आपका आदेश हैतो मैं जरूर कोशिश करूंगा।‘ऐ वतन तेरे लिए’ मेरे लगभग सौ देशभक्ति के गीतों को उठा करके वह लोकार्पण उन्होंने राष्ट्रपति भवन में किया। उससे पहले जब उनके पास प्रति गई छोटी सी कविता उन्होंने और उसको हिंदी में टाइप करके लगा रखा था। उसको याद किया था और वो था ‘अभी भी है जंग जारी, वेदना सोई नहीं है, मंजुता होगी धरा पर, संवेदना खोई नहीं है, किया है बलिदान जीवन, निर्बलता ढोई नहीं है, कह रहा हूं ऐ वतन तुझसे बड़ा कोई नही है। यह जो पीछे की अंतिम पंक्ति थी उसको एक बार,दो बार कह रहा हूं ‘ऐ वतन तूझसे बड़ा कोई नहीं है’ फिर मेरा हाथ पकड़ते बोलते हैं कह रहा हूं ऐ वतन तूझसे बड़ा कोई नहीं है और आंखों से उनके आंसू टपकते नजर आते। मैंने उस दिन महसूस किया कि इस व्यक्ति के अंदर देशभक्ति का कितना बड़ा सागर है और उसी दिन मेरे मन में आया कि मैं ज़रूर जब मुझे मौका मिलेगा मैं कलाम सर पर कुछ ज़रूर लिखूंगा। उनके जीते जी तो मैं नहीं लिख पाया लेकिन उसके बाद मैंने ‘सपने जो सोने न दें’ उनके व्यक्तित्व और कृतित्व पर लिखा। मैंने इसलिएकहा किवो अध्यापक हैं वो यदि अध्यापक नहीं होते वो गुरु नहीं होते उनके जीवन का अंतिम क्षण भी अध्यापक के ही रूप में खत्म हुआ। वो जो अंदर सेउस बात को महसूस करके बाहर उनके शब्द के रुप में एक-एक शब्द, एक-एक शब्द, उन भावनाओं की गंगा की धारा की तरह जब प्रवाहित होता है तो वो असर करता है और इसलिए मुझे भरोसा है कि हम इसको करेंगे।मैं समझता हूँ कि चाणक्य आपके सामने हैं, अगर चाणक्‍य नहीं होते तो चंद्रगुप्त कैसे होते। वैसे पचासों ऐसे-ऐसे उदाहरण हैं  कि क्या नहीं कर सकता गुरु? और चाणक्य ने कहा था कि शिक्षक कभी साधारण नहीं होता। निर्माण और प्रलय उसकी गोद में पलते हैं। निर्माण और प्रलयदोनों उसकी गोद में पलते हैं शिक्षक के। उस चाणक्य ने आज जिसने सारे विश्व में एक उदाहरण स्थापित किया। इसलिए मैं यह कहना चाहता हूं कि गुरु का जो स्थान है उसका तो व्याख्यान भी हम कर सकते हैं। बस थोड़ा सा, हम जब बैठें तो हम सब लोग आपस में आत्म-चिंतन कर सकते हैं। यहक्षणहम लोगों के लिए आत्मचिंतन का है न तो केवल भाषण दे करके कुछ संभव है, क्योंकि किसको बोलेंगे, हम सब एक परिवार के लोग ही एक-दूसरे को क्या बोल सकते हैं। लेकिन हां, ये क्षणहमारे लिएआत्मचिंतन का जरूर है। जो खाई है उसको कैसे पाटना है, वो खाई बनी तो उसकोपाटना है, क्या मैं उसके लिए महत्वपूर्ण व्यक्ति हो सकता हूं? उस खाई को पाटने के लिए तो कौन आएगा। आसमान से टपक कर तो कोई नहीं आएगा, हमकोहीखड़ा होना पड़ेगा। हमको जो भी खाई दिखती है ताकत के साथ उसको पाटने की प्रक्रिया में आगे आना पड़ेगा, लीडरशिप लेनी पड़ेगी। यह नई शिक्षा नीति जोआई है और नई शिक्षा नीति आपसबको पता है मुझे कहने की जरूरत नहीं है। मुझे इस बात की खुशी है कि आज पूरे देश ने उत्सव के रूप में इस नई शिक्षा नीति को गले लगाया है। खुश हैं लोग। लोगों को कितने खुशी है आप उसकी कल्पना नहीं कर सकते हो। अभी मेरे पासएक पश्‍चिम बंगाल के दूरस्‍थ क्षेत्र के एक सांसद का टेलीफोन आया तो उन्होंने मुझसेकहा कियह क्या जादू कर दिया है आपने इधर हमारा प्रधान भी बोलता है कि कुछ हो रहा है नई शिक्षा नीति आ रही है मैंने उनको कहा, क्यों नहीं बोलेगा गांव का। यह जब ग्राम प्रधान से प्रधानमंत्री जी तक सबके सुझाव आए हैं,प्रधानमंत्री जी का भी एक-एक शब्द का मार्गदर्शन मिला सबको। जब ग्राम प्रधान से प्रधानमंत्री जी तक सबकी सहभागिता है। गांव से लेकर संसद तक की है 2.5 लाखग्रामसभाओं तक हम लोग गए। मेरे एक हजार से अधिक विश्वविद्यालयों के कुलपति गण का सीधा-सीधा इसमें, पैंतालीस हजार डिग्री कॉलेजों के प्रिंसिपल का सीधा सीधा है,मेरे देश के एक करोड़ नौ लाख अध्यापकों की सीधे-सीधे इसमें सहभागिता है।  मेरे देश के पंद्रह लाख स्कूलों की और इस देश के तीस करोड़ से भी अधिक छात्रों उनके अभिभावकों की शिक्षा नीति में सहभागिता है। हमने कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। हमने सबको आमंत्रित किया। हमने तो जोइसका ड्राफ्ट हैउसेबाकायदा पब्लिक डोमेन में डालकर के छह महीने तक रखा।अब किसी को यह लगता हो कुछ और रह गया तो सुझाव दीजिए। शिक्षक दे,शिक्षाविददें,वैज्ञानिक दें,समाज में काम करने वाले लोगों आप दीजिए। जिस-जिस क्षेत्र के लोग हैं, जो-जो अपने देश की अच्छी नीति के लिए दे सकते हैं, दीजिए अपने अनुभव उनको दीजिए। बाद में मत कहनाकि कोई कोर कसर रह गई। कोई किसी को कहने की गुंजाइश नहीं छोड़ी हमने और मैं कह सकता हूं कि उसके बाद भी सवादो लाख सुझाव आए। एक-एक सुझाव का विश्‍लेषण किया हमने और दो-दो, तीन-तीनसचिवालय बनाए। उच्च शिक्षा का अलग बनाया, तकनीकी शिक्षा का अलग बनाया, स्कूली शिक्षा का अलग बनाया, एक पंक्ति भी नहीं छूटनी चाहिए। यह हमारे रिकॉर्ड में आना चाहिए कि क्या किसने कहा है। आज यदि देश का कोई व्यक्ति यह बोले कि मैंने क्या बोला है तो मैं कह सकता हूं, किसने क्‍या बोला है चाहे वो राजनैतिक क्षेत्र का है,प्रशासनिक क्षेत्र का है,जनप्रतिनिधि है चाहे कोई विशेषज्ञ हैं। मैं कह सकता हूं कि किस आदमी ने क्या सुझाव दिया और इसलिए मैं लगातार छह महीने तक सबको आमंत्रित भी करता रहा। लेकिन मुझे खुशी है कि आज इतने बड़े मंथन के बाद जो नीति आई उसने लोगों के मन और मस्तिष्क में एक उत्सव का वातावरण दिया। देश के अंदर आजशिक्षा का उत्सव मनाए जाने  से मुझे खुशी है कि दुनिया के तमाम देश हमसे लगातार संवाद कर रहेहैं। उनको लगता है इसकी खुशबू इतनी तेजी से पूरे विश्व में फैल रही है कि लगभग सात-आठ देशों के शिक्षा मंत्री हमलोगों से संवाद कर रहे हैं। वेकह रहे हैं कि हम भी हिंदुस्तान के एनईपीको अपने देश में लागू करना चाहते हैं। यह इसकी ताकत है। मैं सिर्फ यह कहना चाहता हूं कि हम लोगों के बीच बिल्कुल जो चौहान जी ने भी कहा और सिंह साहब  ने भी कहा कि हमारी दोहरी भूमिका होगी हमारा कितना बड़ा सौभाग्य है। हमारे समय में यहनीति आ रही है,इससे बड़ा सौभाग्य क्या हो सकता है हम को इसकी लीडरशिप मिल रही है और आज भी हमारे प्रधानमंत्री जी उच्च शिक्षा में उस दिन हमारे साथ बैठे थे। उन्होंने आह्वान किया था कि यदि कुछ लोगों के मन में कोई शंका होगी कि नई शिक्षा नीति तो अच्छी बनी है लेकिन इसका क्रियान्वयन कैसे होगा तो उन्होंने कहा था कि यहसरकारइच्छाशक्ति की धनी है और आप इसको लागू करें मैं आपके साथ चट्टान की तरह पीछे हूंऔर आज भी उन्होंने कहा कि यह जो अध्यापक हैं, यदि कोई जहाज जिसको उड़ना है उसका इंजन चाहे कितना ही पावरफुल क्यों नहीं है, लेकिन चलाएगा तो उसको पायलेट ही। जब तक पायलेट नहीं चलाएगा तब तक वो जहाज उड़ेगा नहीं। इसलिए इसमें अध्यापकों की भूमिका है, प्राध्यापक की भूमिका है यह जो लीडरशिप लेनी है हम को, यह लीडरशिप अपने हाथ में लेकर इस चुनौती का मुकाबला करके इनको अवसरों में तब्दील करना है। मुझे खुशी है कि सभी देश के शिक्षा मंत्रियों से मेरी बातचीत होती है और सबके मन में बहुत अच्छाभाव है। जो लोग थोड़ा सा भाषा के मुद्दे पर कभी किसी मुद्देमें बोलते हैं, उन्‍हें मैं कहना चाहता हूं कि भाषाका कोई मुद्दा नहीं  है। हमने तो खुला मैदान छोड़ दिया है। मातृभाषा में हमारी प्रारंभिक चिंता रही है, कोई राज्य यदि उच्च शिक्षा में ले जाना चाहता है तो जरूर ले जाएँ। हां,कुछलोगों ने ऐसा कहा कि नहीं-नहीं हमको देश को आगे बढाना है और अब अंग्रेजी में ही शिक्षा जरूरी है। तो मैंने उनका जबाब तो नहीं दिया लेकिन जब मैंने इसको स्पष्ट किया तो उन्होंने भी कहा कियह बात तो सही है। वो चाहेअमेरिका हो,जर्मनीहो, जापान हो और चाहे इस्राईल हो यह शीर्षजो दुनिया के जो देश हैं क्या वो अपनी भाषा में अपनी मातृभाषा में पढ़ाकर के पीछे चले गए? अपनी मातृभाषा में ज्यादा अभिव्यक्त मिलती है। भाषा तो केवल माध्यम होता है। इसलिए भाषाएं भी जितनी बढ़ा सकते हैं उसे खुली छूट दी है। क्यों बंधनों में बाँधना चाहते हैं कि क्यों दो ही भाषा सीखें,आठ दस भाषाओंको सीखों। लेकिन हां, भारत की जो मातृभाषाएं हैं,जिसकोबच्चे सुन कर के बढ रहेहैं, उस भाषा में उसकी प्रारंभिक शिक्षा होगी और उसके साथ देश की एक भारतीय भाषा आपको जरूर लेनी पड़ेगी। यदि वो उत्तर प्रदेश में है तो मलयालम को पढ़ सके। यदि उधर आंध्रमें है तो वो पंजाबी को पढ़ सके। यह देश एक है। अनेकतामें एकता है और यही हमारी विशेषता भी है। इसीलिए एक भारतीय भाषा को ले और उसके बाद जो आपको भाषा लेनी हैखूब लो, क्या दिक्कत है। मुझे अच्छा लगा कि देश के लोगों ने इस बात को महसूस किया जो लोग थोड़ा सा नाक भौं सिकोड़ने की कोशिश भी कर रहे थे उनको भी समझ में आया कि नहीं इससे अच्छा तो कोईविकल्प नहीं हो सकता है। मुझे इस बात की खुशी है और कितने आधारभूत परिवर्तनों के साथ हम इस शिक्षा नीति को लाए  हैं। मैं सोचता हूं यदि देखा जाय तो यहशिक्षा नीति नेशनल भी है औरइंटरनेशल भी है। यहइन्‍टरेक्‍टिव भी है, इन्क्लूसिव भी है। यदि इस इस शिक्षा नीति को आप जिस रूप में देखेंगेतो यह इंटरनेशनल भी है, इंटरएक्टिव भी है, इम्पैक्टफुल भी है। जिस कोने से भी आप देखेंगे उसको आपको इसकी खुशबू नजर आएगी और इक्विटी, क्वालिटी और एक्सेस इन तीनों की आधारशिला है। ये इसकी पहुँच भी है,उत्कृष्टता भी और समानता भी। ये तीनों चीजें इससेजुडी हुई हैं इसकी आधारशिला हैं। मुझे लगता है कि हमलोगों ने यहमहसूस कराया कि नेशन फर्स्‍ट और करेक्टर मस्ट। इसलिए हम रिफार्म भी करेंगे ट्रांसफोर्मभी करेंगे और हम रिजल्‍ट भी देंगे। हम केवल बोलने के लिए नहीं, हम रिजल्ट देना चाहते हैं। लेकिन मैं जरूर इस बातका आपसे अनुरोध करूंगा कि जो शिक्षक हैंक्‍याउसमें ट्रांसफार्म, टैलेंट, टेंपरामेंट,ट्रेजर, ट्रेनिंग इनपर आधारित है कि नहीं है और यदि है तो फिर इसको ये जो फोर क्‍यूहैं आईक्यू, ईक्यू, एसक्‍यू और टीक्‍यू। बुद्धिमत्ता भी, भावनात्मक भी, आध्यात्मिकता भी, तकनीकी क्षेत्र में इसको साथ समन्‍वय करने की जरूरत है, यह है इसका आधार। कुछबोल करके काम चलने वाला नहीं है मुझे भरोसा है कि इसके एक-एक सूत्र मेंनई शिक्षा नीति है लेकिन इसको जितना विस्तार आप दे सकते हैं जिस सीमा तक जा सकते है उस सीमा तक जा सकतेहैं। हम लोगों ने नेशनल एजुकेशन टेक्नोलॉजी फोरम बनाया है। जिसमें तकनीकी को उस सीमा तक बढ़ाएंगे  जिसका हर जगह उपयोग करें। दूसरी तरफ अनुसंधान के क्षेत्र में हमलोगों ने नेशनल रिसर्च फाउंडेशन बनाया है जिस पर प्रधानमंत्री के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार की अध्यक्षता में तेजी से काम चला चल रहा है। हम शोध और अनुसंधान की प्रवृति को और तेजी से बढ़ाना चाहते हैं क्‍योंकिमुझे मालूम है कि ऐसा नहीं कि हमारे संस्थानों में कोई कमी है। लेकिन हां, अनुसंधान में हम पीछे हैं। पूरी दुनिया के सामने जब मैंनेपीछे के समय क्‍यूएसरैंकिंग औरटाईम्‍सरैकिंग पर बुला-बुलाकर के कहा कि उनको बताओ क्या मानकहैंआपके? क्या मेरे संस्थान पीछे हैं? मुझे महसूस होता है कि जहां थोड़ीबहुत कमियों को भी दूर करके हम अच्‍छा कर सकते हैं। हां, संवाद की कमी है वो वातावरणबनाने की कमीहै थोड़ा-सा संसाधनों की भी कमी होगी लेकिन पूरा करेंगे। अभी हमने स्‍टडी इन इंडिया के तहत पूरी दुनिया के लोगों को हमारे पास आओऔर50 हजारसे भी अधिक बच्‍चे स्टडी इन इंडिया के तहत कोरोना काल में भी आए हैं। उसमें भी आपकी भूमिका कम नहीं रही योद्धा की तरह अपने काम किया। रात-रात में 25 करोड़ छात्रों को ऑनलाइन पर लाकर के खड़ा कर दें। यहदुनिया का पहला उदाहरण होगा। उसमें भी मेरे शिक्षकों ने जिस तरीके की भूमिका निभाई किसी योद्धा की भूमिका से कम नहीं और इसलिए शोध और अनुसंधान में हम थोड़ा सा पीछे रहे हैं इसको भी हम तेजी से आगे बढ़ाएंगे। वह तेजी से बढ़ेगी और अपना मूल्यांकन भी करेंगे। जो संस्था, जो व्यक्ति, जो परिवार, स्वयं मूल्यांकन नहीं करता वो कभी आगे बढ़ नहीं सकता। इसलिए सभी संस्थानों से मैंने बार-बार कहा कि मूल्यांकन की प्रवृति जरूर हो। नीचे सारी संस्थाओं का मैंयूजीसी के चेयरमैन साहब को भी अनुरोध करूंगा कि सब लोगों में यह भावना आए कि जब उसको लगता है कि मेरा मूल्यांकन हो रहा है तो तैयार करता है। अपने को तैयार करने की प्रवृति और प्रकृति होने होने चाहिए। जिस तरीके से विषयों के चुनाव के लिए बिल्कुल मैदान खाली छोड़ दिया कि किस विषय को लेना चाहते हो। किसी भी विषय को आप ले सकते हो।  यह इस नई शिक्षा नीति की खूबसूरती है और इसलिए यह हमसे होकरके गुजरेगी। हम अपने को मन से तैयार करें और मैं सोचता हूं लीडर को तो पूरी मस्ती के साथ आगे बढना है। जो लीडर आधा सोचता है, उसका सिर झुका रहता है। चेहरे पर देखो तो कुंठा दिखती है। जो चेहरा रो रहा वो दूसरों को हंसा कैसे सकता है। जो स्वयं हीनिराशाओं की चपेट में हैं वह दूसरों को जीत कैसे दिला सकता है। इससे पहले जरूर एक लीडर को अपने को सक्षम बनाना पड़ेगा।जब हम कहते हैं कि विपरित परिस्थितियों में लड़ना सीखो, बढ़ना सीखो तो फिर हम क्‍यों नहींविपरीत परिस्थितियों का मुकाबला करें। मुझे भरोसा है हम मुकाबला भी करेंगे और हम रिजल्ट भी देंगे जिस दिन इस देश का आचार्य खड़ा हो गया, जिस दिन इस देश के शिक्षक ने यह ठान ही लिया कोई दुनिया की ताकत हमको फिर विश्वगुरु बनने से रोक नहीं सकती। इस देश में ताकत है और मेरा भरोसा है जो आज आपने यहां पर यह कार्यक्रम किया है। मैं डॉक्टर शर्मा विशेष करके आपको धन्यवाद देना चाहता हूं क्योंकि मैं चाहता था मेरे मन में था मैंसभी अध्यापकगण का अभिनंदन करूं। मैंप्रणाम करूं,शिक्षक दिवस के रूप में यह दिन नहीं कर सके हम लोग, लेकिन यह मेरा परिवार है। इस परिवार को एकजुट हो करके आगे जाना है। इन चुनौतियों का मुकाबला मेरे पूरे परिवार को करना है। अकलुषित मन से करेंगे, ताकत के साथ करेंगे, संकल्प के साथ करने के विजन के साथ करेंगे, मिशन के साथ करेंगे, तब जाकर रिजल्ट निकालेंगे और देश को हम पर भरोसा होगा। हमारे देश के प्रधानमंत्री हमारे पीछे खड़े हैं। पूरा तंत्र आपके पीछे खड़ा है। नीति आपके हाथ में है, 21 करोड़ छात्रों का वैभव आपके पास है। कमी किस चीजहै,जो कमी होगी उसको भी दूर करेंगे। मैं एक बार फिर आप सबको बहुतबधाई देना चाहता हूं। मेरी आपको सबको बहुतशुभकामनाएं।

 

बहुत-बहुत धन्‍यवाद!

 

कार्यक्रम में गरिमामयी उपस्‍थिति:-

  1. डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’, माननीय शिक्षा मंत्री, भारत सरकार
  2. श्री वीरेन्‍द्र सिंह चौहान, अध्‍यक्ष, राष्‍ट्रीय मूल्‍यांकन एवं प्रत्‍यायन परिषद्
  3. प्रो. एस. सी. शर्मा, निदेशक, राष्‍ट्रीय मूल्‍यांकन एवं प्रत्‍यायन परिषद्
  4. डॉ. डी. पी. सिंह, अध्‍यक्ष, विश्‍वविद्यालय अनुदान आयोग

 

 

 

21वीं सदी की स्‍कूल शिक्षा पर आधारित दो दिवसीय कॉन्‍क्‍लेव

21वीं सदी की स्‍कूल शिक्षा पर आधारित दो दिवसीय कॉन्‍क्‍लेव

 

दिनांक: 10 सितम्‍बर, 2020

 

 

माननीय शिक्षा मंत्री, डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक

           

मेरे सहयोगी श्री संजय धोत्रे जी, सचिव उच्‍च शिक्षा, श्री अमितखरे जी, स्‍कूली शिक्षा की सचिव अनिता जी, हमारी राष्‍ट्रीय शिक्षा नीति की ड्राफ्ट समिति के अध्‍यक्ष के. कस्‍तूरीरंगन जी, सभी राज्यों के सचिव, निदेशक और सभी अधिकारीगण, शिक्षकगण, अभिभावकों और छात्र-छात्राएं। आज स्‍कूल एजुकेशन कन्‍क्‍लेव में देश के 15 लाख से भी अधिकस्‍कूल जुड़े हुए हैं जिसमें हमको माननीय प्रधानमंत्री जी का आशीर्वाद मिलने वाला है। इसमें 26 लाख छात्र-छात्राएं जुड़े हुए हैं, इसमें हमारे सीबीएसई बोर्ड के दुनिया भर में चल रहे शीर्ष देशों के अध्‍यापक गण और उनके छात्र एवं अभिभावक जुड़े हैं। मैं इन सबको आज के इस महत्‍वपूर्ण दिवस पर जबकि हम एक नई शिक्षा नीति पर परामर्शकर रहे हैं उसका उत्‍सव मना रहे हैं जिस नीति पर हमारे देश के यशस्‍वी प्रधानमंत्री श्री नरेन्‍द्र मोदी जी का हमको हमेशा मार्गदर्शन मिलने वाला है, ऐसे अवसर पर मैं आप सबका अभिनंदन करना चाहता हूं आप सबका स्‍वागत करना चाहता हूं। आपको मालूम है कि नई शिक्षा नीतिऐसी नीति है जिसका उद्देश्‍य हमारे देश की कई जरूरतों को पूराकरना है। यह संयुक्‍त राष्‍ट्र के सतत विकास एजेंडा 2030 के अनुरूप है। राष्‍ट्रीय शिक्षा नीति क्‍वालिटी, एक्‍सेस के मूलभूत स्‍तंभों पर खड़ी है यह सभी जरूरतों को पूरा करने के लिए है। जहां वर्गीकृत करने की जरूरत थी वहांवर्गीकृत कियागया है और जहांनही थी वहां अवर्गीकृत भी किया गया है। शिक्षा को समकालीन बनाने की दिशामें अब हम आगे बढ़े हैं। इसमें जरूरी लचीलापन भी है तो जरूरी स्‍थायित्‍व भी है। जहां एक ओर हम भारतीय फाउंडेशन पर खड़े होंगे, वहीं दूसरी ओर हमारा दृष्‍टिकोण इंटरनेशनल होगा। दोनों के बीच संतुलन का एक नई  शिक्षा नीति के माध्यम से विशेष ध्यान रखा गया है। शिक्षा को राष्ट्र निर्माण का सबसे शक्तिशाली प्रयोग माना गया है। जिस बदलाव की प्रगति कि हम आशा करते हैं उसका रास्ता शिक्षा और विशेष रूप से स्कूली शिक्षा से ही हो करके गुजरता है। कहा भी जाता है कि बुनियाद जितनी मजबूत होगी, इमारत उतनी ही बुलंद होगी। छात्रों में बाल्यावस्था से ही निवेश करना होगा ताकि हम मजबूत पीढ़ी का निर्माण कर सकें। आज स्कूली शिक्षा कॉन्‍क्‍लेब के अवसर पर मैं विशेष करके अपने प्रधानमंत्री जी का धन्यवाद देना चाहता हूं जो राष्ट्रीय शिक्षा नीति के निर्माण से लेकर अनुमोदन तक और अब क्रियान्वयन की प्रक्रिया तक निरंतर सुझाव और संवाद और चर्चा के जरिये देश तथा शिक्षा मंत्रालय का लगातार और लगातार मार्गदर्शन करते रहे। हमारी जो समिति है उस समिति सेभी बार-बार प्रधानमंत्री जी ने विमर्शकरके और अपने महत्वपूर्ण सुझावों से इसको समर्थवान बनाया है। इस पूरे एजुकेशन कॉन्क्लेव को हमने कुछ खास सत्रों में भी बांटा। एक सामूहिक परिचर्चा का केन्द्र भी बनाया। इन सत्रों की एक संक्षिप्त में रूपरेखा अनिता जी, सचिव स्कूली शिक्षा ने बताया कि कल भी दिनभर हमारापरामर्शहुआ है। कक्षा एक से तीन तक भाषा कौशल तथा गणितीय कौशल पर ध्यान केन्द्रित करने के लिए बुनियादी साक्षरता और संख्यात्मक ज्ञान पर एक राष्ट्रीय मिशन की स्थापना की जाएगी। इसमें पढने-लिखने, बोलने, गिनती करने अंकगणित और गणितीय सोच पर विशेष ध्यान केन्द्रित करने बुनियादी साक्षरता और संख्या ज्ञान पर उच्च क्वालिटी वाले संसाधनों का विकास महत्वपूर्ण पहल की गई है। हर छात्र को स्कूल तक ले जाना और हर छोर तक शिक्षा को पहुंचाना यह हमारा संकल्प है। बच्चों को शिक्षिततो किया ही जाना चाहिए लेकिन खुद भी शिक्षित होने के लिए बच्चों को उन पर छोड़ देना चाहिए। मैं यह समझता हूं यह एक ऐसी शिक्षा पद्धति है जो बच्चों को एक समूह में सीखना और काम करना सिखाती है। टीम भावना व सामूहिक भावना का विकास बाल्यावस्था से ही हो इस दिशा में हमारा विशेष प्रयास है। इससे न केवल बच्चों को उनकी पांचों इंद्रियां विकसित होंगी बल्कि उनमें वैज्ञानिक स्वभाव और सामुदायिकता की भावना भी विकसित होगी। अर्ली चाइल्ड केयर एंड एजुकेशन की यदि हम बात करें तो नई शिक्षा नीति 2025 तक 3 से 6 वर्ष तक की आयु के बच्चों के लिए गुणवत्तापूर्ण प्रारंभिक बाल्यकाल देखभाल और शिक्षा सुनिश्चित करने के लिए प्रारंभिक वर्षों के महत्व पर बहुत बल दिया गया है। इसलिए आपने देखा होगा कि हमने टेन प्लस टू को हटा करके फाइव प्लस थ्री, थ्री प्‍लस फोर प्रस्तुत किया है। आज एनसीईआरटी द्वारा आठ वर्ष की आयु तक के बच्चे के लिए प्रारंभिक बाल्यकाल देखभाल और शिक्षा के लिए एक राष्ट्रीय पाठ्यक्रम औरशिक्षाकी रूपरेखा तैयार की जा रही है। प्रारंभिक बाल्‍यावस्‍था शिक्षा की योजना बनाने और कार्यान्वयन का कार्य शिक्षा मंत्रालय, महिला और बाल विकास मंत्रालय, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय तथा जनजाति कार्य मंत्रालय द्वारा संयुक्त रूप से किया जाएगा। अंतर-मंत्रालय सहयोग से सहभागीता के साथ हम एनर्जी भी पाएंगे और सिनर्जी भी पाएंगे। मैं यह समझता हूं कि यह एक परिवर्तनकारी काम इस शिक्षा नीति के तहत किया जा रहा है। एक मुखी रिपोर्ट कार्ड नहीं होगा बल्कि आप 360 डिग्री होलिस्टिक मूल्यांकन होगा बच्चे का और वो एकमुखी नहीं बल्कि बहुमुखी, चहुंमुखी और रिपोर्ट कार्ड नहीं बल्कि प्रोग्रेस कार्ड उसको दिया जाएगा, बच्चा स्वयं अपना मूल्यांकन भी करेगा। अभिभावकभी मूल्यांकन करेंगे। अध्यापक भी मूल्यांकन करेंगे और उसका साथी भी उसका मूल्यांकन कर पाएगा । यह जो चौमुखी मूल्यांकन होगा इससे उसकी हर प्रकार की क्षमता निखर कर के सामने आएगी। जहां एक ओर इनपुट का आकलन होगा अब वहीं आउटपुट का भी आकलन इसी नीति के तहत किया जाएगा। लर्निंग आउटकम को वैज्ञानिक तरीकों से जांचा परखा और तय किया जाएगा। लक्ष्‍यआधारित कार्य योजना तैयार की जाएगी जिसको एक समय अवधि के अंदर बांटा जाएगा। भाषा की दृष्टि से बात करें तो भारतीय भाषाओं का प्रचार-प्रसार एवं संरक्षण-संवर्धन जीवंतता को सुनिश्चित करने के लिए बहुत सारी पहले इसमें की गई हैं। शास्त्रीय, जनजातीय और लुप्त प्राय: भाषाओं से सभी भारतीय भाषाओं को संरक्षित करने और उन्हें बढ़ावा देने के प्रयास किए जाएंगे। चाहे तेलगू है, मलयालम, गुजराती, मराठी है, बंगाली है, उड़िया है,उर्दू है, संस्कृत और हिन्दी है सभी भारतीय भाषाएं जो संविधान की अनुसूची 8 में जो हमारी 22 भारतीय भाषाएं हैं उनको और सशक्त किया जाएगा और किसी भी प्रदेश अथवा क्षेत्र पर कोई भाषा नहीं थोपी जाएगी, कोई भी सत्र पृथककरण नहीं होगा। सत्रमें शिक्षा का लचीलापन, इंटरएक्टिव तथा बहु पक्ष पर लगातार चर्चा की जाएगी। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के दौर में हमारी शिक्षा नीति आधुनिकता के सारे आयामों को बहु विषयक और बहुभाषी पक्षों को लेकर के आगे बढ़ रही है। आज कृत्रिम बुद्धिमत्ता यानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से प्रभावित हमारी पीढ़ी को प्रभावी बुद्धिमत्ता की ओर ले जाए इसका भी विशेष ध्यान रखा गया है। छात्र प्रतिभावान हो सकता है परंतु यदि शिक्षा नीति उसकी प्रतिभा का विस्तार नहीं करती तो पूरी तरह हम अपने उद्देश्य में सफल नहीं हो सकते। इसलिए जो प्रतिभाशाली है तो उसकी प्रतिभा को कैसे करके आगे बढ़ाया और किसदिशा में और किस सीमा तक बढ़ाना है यह भी इस शिक्षा नीति का एक बहुत अहम् हिस्सा है। इस शिक्षा नीति में टैलेंट की पहचान तो होगी और टैलेंट को विकास भी किया जाएगा और उसका विस्तार भी किया जाएगा। अपनी प्रतिभा को साबित करने के लिए उसको पूरा अवसर दिया जाएगा क्योंकि छात्र ही हमारी इस रणनीति का केन्द्र बिन्दु है। हमारी नीति और हमारी रणनीति काजो केन्द्र है, वह हमारा छात्र है। इसी प्रगतिवादी सोच को सामने रखकर ही स्कूली शिक्षा में मूलभूत बदलाव किए गए हैं। मैं समझता हूं जो अब सबके सामने है जिसने अपने आप को खुलापन दिया है। बच्चों को छठी से ही वोकेशनल स्ट्रीम के साथ ही शैक्षणिक गतिविधियों के साथ उसकी शिक्षणेत्तर गतिविधियां और व्यावसायिक को तोजोड़ा, वोकेशनल स्ट्रीम के साथ उसे बढ़ाने का हो और चाहे स्कूली शिक्षा से कृत्रिम बुद्धिमता को आगे करने का विषय हो, मैं समझता हूं कि भविष्य का सोचिए तो हम उस युग की ओर बढ़ रहे हैं जहां कोई व्यक्ति जीवन भर किसी एक जगह स्थिर नहीं होगा। उसे क्रिएटकरते रहना होगा वरना डिफेन्‍डहोने का खतरा बना रहेगा। आज के दौर में चाहे हमारे कंप्यूटर हो या मोबाइल हो आज छात्र हो या स्वयं शिक्षक हो, यदि खुद को अपडेट नहीं करेंगे तो आउटडेटेड होने की संभावनाएं बनी रहेंगी और इसलिए इस दिशा में भी हम चौकस हैं। आज नई शिक्षा नीति खुद को स्किल और वोकेशनल ट्रेनिंग के जरिए अपडेट रखने में ज्यादा कारगर साबित होगी। अपडेट करते रहने की संस्कृति और सोच के साथ यह शिक्षा नीति आगे बढने की दिशा में बहुत अद्भुत परिणाम भी देगी, ऐसा मेरा भरोसा है। अच्छे सेअसेसमेंट और इनफ्लेशन से इंटीग्रेशन तक प्राथमिक शिक्षा से रिसर्च तक और थिंकिंग से अब थॉट प्रोसेस तक की यह नई शिक्षा नीति की यात्रा है। यह नीति सोच को अब सारे रूप में परिणित करने का भी आधार खड़ा करेगी। अगर हम लोग कार्यान्वयन की बात करें तो नीति निर्माण यह एक बहुत महत्वपूर्ण हिस्सा है और इसलिए नीति का जो क्रियान्वयन है यह स्‍वाभाविक ही है कि यह लीडर बहुतकुछ निर्भर करती है और इसलिए यह जो दोनों चीजें हैं यह लीडर पर ज्यादा निर्भर करेगी। ऐसी लीडरशिप जो नीति को जमीन पर उतार सकेगी। मैं आशा करता हूं कि शिक्षक से लेकर अभिभावक, संस्थान से लेकर के शिक्षाविद सचिव स्तर से लेकर के शिक्षा मंत्री हम सब मिलकर के अपने स्तर पर इस नीति को नेतृत्व देंगे, दिशा देंगे। हम इसी नीति का ऊर्जा के साथ क्रियान्वयन करेंगे और जिससे हमारे राष्ट्रीय स्तर पर एक क्रांतिकारी बदलाव आएगा।ऐसा बदलाव जिसका इंतजार इस देश को पिछले 75 वर्षों से है और निश्चित रूप से यह बदलाव भारत को ज्ञान की महाशक्ति के रूप में परिवर्तित भी करेगा। शिक्षा में राज्यों की भूमिका निश्चित रूप से बहुत महत्वपूर्ण है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति राज्यों को संविधान की समवर्तीप्रावधानों को ध्यान में रखते हुए विभिन्न मामलों पर निर्णय लेने की स्‍वायत्‍ता का अधिकार भी देती है।हमें केंद और राज्यों के इस स्तर पर व्यापक सुनियोजित और समझने वाली रणनीति बनानी होगी। राज्य सरकारों से सभी हितधारकों के साथ चर्चा के बाद एक नये व्यापक राष्‍ट्रीय पाठ्यक्रम की रूपरेखा का निर्माण एनसीईआरटी उस दिशा में काम कर रही है और राज्यों सेमैंनिवेदन करूँगा कि उनके जो एससीईआरटी हैं राज्यों में उन्होंने भीअपना काम करना शुरू कर दिया होगा। एनईपी 2020 के लक्ष्यों और उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए हमने प्रत्येक सिफारिश को मिशन मोड में लिया है। जितनी भी सिफारिशें हमारी समिति ने हमको दी हैंउन पर एक जुनूनी तरीके से हमनेमिशन मोड में लाने की कोशिश की है और इसको समय सीमा के साथ जोड़ते हुए और हम लोगोंने निश्चित कार्ययोजना उसमें बनाई है और लगातार हम बना रहे हैं। इस कार्यान्‍वयनयोजना का मुख्य फोकस इस बात पर है कि केंद्र और राज्यों द्वारा संयुक्त क्रियान्वन किया जा सके। राज्यों की भूमिका और केन्द्र के साथ हम राज्य और केंद्र दोनों मिलकर के इस और जो महत्वपूर्ण सूत्र है हमारा नई शिक्षा नीति का उसको निश्चित क्रियान्वित करेंगे,मिल करके करेंगे।जहां संवाद की आवश्यकता होगी, वहां संवाद भी किया जाएगा और विवाद को पीछे छोड़कर के संवाद को सहभागिता के साथ हम सकारात्मक दिशा में आगे बढ़ेंगे। हम कोशिश करेंगे कि छोटी-छोटी चीजों में ना उलझें क्योंकि स्वाभाविकहीचाहे कोई व्यक्ति है, परिवार है,अथवा राष्‍ट्र है कभी प्रगति नहीं कर सकता। इसलिए हम छोटी छोटी बातों में न उलझ कर हम एक बड़े लक्ष्य की ओर  सब मिलकर इसको क्रियान्वित करेंगे। क्रियान्वन योजना में नीति की भावना और सहयोगात्मक संघवाद जैसी बुनियादी बातों के साथ हम इसको अमल में लाएंगे।शीघ्रही टास्क लिस्ट को आने वाले दिनों में राज्यों और केन्द्र शासित राज्यों को हम लोग साझा कर रहे हैं। लगभग 300 से अधिक बिंदु हम लोगों ने बनाए हैं जिसमेंराज्‍य और हम आपस में परामर्श करेंगे उनके सुझाव मिलेंगे और उनके क्रियान्वन की दिशा में चरणबद्ध तरीके से कैसे काम करेंगे उस पर भी विचार विमर्श होगा। बिना किसी संकोच और पूर्वाग्रह के जरूर हमको आप सुझाव भेजेंगे,ऐसी मैं आशा कर रहा हूं। जैसे हमारे देश के प्रधानमंत्री जीने पीछे के समय कहा कि यहकिसी एक सरकार की नीति नहीं है,यह किसी एक विभाग के नीति नही है यह देश की शिक्षा नीति है और इस नीति में सभी का हित निहित है। जिस प्रकार का विस्तृत विचार मंथन और चिंतन नीति के प्रथम चरण में मिला वैसी समावेशी सोच के साथ क्रियान्वयन में भी हमें ‘सबका साथ और सबका विश्वास’ मिलेगा। ऐसी मैं आशा कर रहा हूं। मुझे पूर्ण विश्वास है कि कश्मीर से कन्याकुमारी तक कच्छ से अरुणाचल तक सभी छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिलेगी और देश का हर छात्र शिक्षित होगा, ऐसी संपदा के रूप में ताकत बन कर के आत्मनिर्भर, शिक्षित और सशक्त भारत के निर्माण में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकेगा। हमारे देश के प्रधानमंत्री ने कहा है कि 21वीं सदी भारत की स्वर्णिम सदी है तो जिस स्वर्णिम भारत की उन्होंने कल्पना की है जो स्‍वच्‍छ भारत,स्वस्थ भारत, सशक्त भारत होगा,श्रेष्‍ठ भारत होगा। ऐसा एक श्रेठएवंआत्मनिर्भर भारत जो 21वीं सदी का स्वर्णिम भारत होगा। उस भारत की नींव बनेगी यह नयी शिक्षा नीति। मैं सभी हितधारकों, अभिभावकों, शिक्षकों, स्कूली छात्रों, शिक्षाविदों से आह्वान करना चाहूंगा कि क्रियान्वन हेतु अपने सुझावदें, चर्चा करें, हर स्तर पर चर्चा करें, नीचे के स्तर पर चर्चा करें। राष्ट्रीय शिक्षा नीति को जमीनी स्तर तक पहुँचाने के लिए जागरूकता अभियान और शिक्षा के संवाद आयोजित करें। हर छात्र, हर शिक्षक, हर संस्था, हर एक प्रदेश,अपनी-अपनी रणनीति बनाएं और हर छात्र, हर शिक्षक इसका ब्राण्ड एम्बेसडर बनें ताकि नीचे तक उस बात, उस भावना को लेकर की जा सकें। पूरे राष्ट के विमर्श और चिंतन के बाद पूरे राज्य की आकांक्षाओं को समेटे हुए राष्ट्र की शिक्षा नीति पर आप सबके क्रियान्वन का सुझाव फिर आमंत्रित करना चाहूंगा। जैसेकि हमारे माननीय मंत्री मेरे सहयोगी आदरणीय  शिक्षा राज्य मंत्री जी ने अपने विचारों में भी कहा कि हम चाहते हैं कि खुल कर के हम सब  मिल कर के साथ आगे बढ़े और हमारे प्रधानमंत्रीजी नेहमको समय समय पर आशीर्वाद दिया। मुझे विश्वास है कि आप सभी के सहयोग, समन्वय,सहभागिता और नेतृत्व से हम शिक्षा नीति का सफलतापूर्वक क्रियान्वयन कर पाएंगे। भारत एक वैश्विक ज्ञान की महाशक्ति के रूप में उभरेगा जिसकी पूरी दुनिया प्रतीक्षा कर रही है। मैं कस्तूरीरंगन जी आपको, मंजुल भार्गव जी,डॉ.श्रीधर जी, डॉ.वसुधा तामत जी सहित मैं जितने भी आप के सदस्य हैं मुझे आपका बार-बार अभिनन्दन करने का मन होता है क्योंकि आपने रात-दिन एक मिशन मोड में आपने यह नहीं सोचा कि हमको कुछ काम सौंपा है, इसको केवल पूरा करना है बल्‍कि वो काम, उसका रिजल्ट कैसे अंतिम छोर तक पहुँच सकता यह आपकी सोच रही है। मैंने बहुतनिकटता से आपलोगों को देखा है। मंजुल जी मैं विशेष कर के आपको क्‍योंकि आप अमेरिका से जुड़े हैं और जैसे अनीता जो सचिव हैं उन्होंने कहाहै कि वहां अभी तो रात के दो-तीन बज रहे होगें लेकिन आपहमेशा से जुड़े रहे हैं। मंजुल ने इस देश का गौरव भी बढ़ाया है, दुनिया में और हमकोउनसे बहुत आशाएं भी हैं लेकिन जब-जब भी हमने उनसे अपेक्षा की उन्होंने बिना किसी संकोच के और चलकर के यहांआये और यहां भी सप्ताहों तक में एक-एक शब्द हमारे प्रधानमंत्री जी से होकर के गुजरा है, सब कमेटी से वो करके गुजरा है और इसीलिए इस पर इतनी ताकत है। मंत्री संजय जी ने कहा कि इतना बड़ा विमर्श तो शायद दुनिया में हुआही नहीं होगा। किसी भी नीति पर दुनिया में सबसे बड़ा विमर्श है। आज करोड़ों छात्रोंके साथ विमर्श,करोड़ों अभिभावकों के साथ विमर्श ग्रामप्रधान से ले कर के प्रधानमंत्री जी तक आज चाहे संसद का सदस्य हो या किसी विधान सभा का सदस्‍य हो,ग्राम प्रधान हो या उच्च शिक्षाका कोई अधिकारी हो, बेसिक शिक्षा का कोई अधिकारी हो,चाहे अपने शिक्षाविद् हों, विशेषज्ञ हों, एनजीओज हों, कोई क्षेत्र नहीं छोड़ा और मुझे लगता है उसी का परिणाम है कि यह जो अमृत हमारे सामने निकला है आज देश का कोना-कोना स्वागत कर रहाहैदुनिया के देश भी इस एनईपीको अपने देश में लागू करने के बारे में भी लगातार संवादकरते जा रहे हैं। यह इस नई शिक्षा नीति की ताकत है। मुझे भरोसा है कि इस नई शिक्षा नीति को हम तेजी से क्रियान्वित करेंगे और जो कल से लेकर के आज तक छह थीमों पर लगातार परामर्श हो रहा है जिसमें हमारे राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित हमारे अध्यापकगणजो लगातार कल से विमर्श कर रहे इन छह थीमोंपर जो आपने अपना सुझाव दिया है, परामर्श दिया, चर्चा की है। यह भी हमारी ताकत बनेगी और आज पूरे दिन भर उन छह थीमोंपर जिस पर कल हमारे अध्यापक दल ने अपनेसुझाव दिए हैं, आज विशेषज्ञों की टीम पूरे दिन भर उस पर संवाद करेगी और उससे भी कुछ ऐसा निकलेगा जिससे हम इस नयी शिक्षा नीति को नीचे तक क्रियान्‍वितकरने की दिशा में बहुत अहम भूमिका उन विषयों की सफलतापूर्वक संचालित हो सकेगी उसको रिजल्ट दे सकेगी जो हम चाहते हैं वह हमारी इच्छा को पूर्ति कर सकेगी तो एक बार मैं पूरे देश के कोने-कोने से जुड़े मेरे 27 करोड़ से भी अधिक छात्र छात्राओं को कहना चाहता हूं कि आपके लिए पूरा मैदान खाली है। हमारे देश के प्रधानमंत्री जी समय समय पर हमारे साथ मिलते भी रहे हैं,अपना आशीर्वाद भी देने के लिए हमेशाआए हैं। कभी परीक्षा पर चर्चा हो तो हमारे बीच आये हैं चाहे वो ध्रुव तारा को बनाने की दिशा में आपकामार्गदर्शन रहा हो विभिन्न प्रकार से अपना महत्वपूर्ण समय देकर अपना आशीर्वाद देने के लिए आते रहें हैं। अभी थोड़ी देर में प्रधानमंत्री जी आपके बीच आ रहे हैं हम सबको आशीर्वाद देने के लिए। इसलिए छात्र-छात्राओं मैं आपको शुभकामनाएं दे रहा हूं। मैं अभिभावकों को भी शुभकामना देता हूं और विशेष करके अध्यापकगण जो इसकी महत्‍वपूर्णकड़ी होंगे जिनके मार्गदर्शन में हम इस बड़ी संरचना को धरती पर क्रियान्वित कर सकेंगे । एक बार फिर हृदय की गहराइयों से इन सबका मैं आभार प्रकट करता हूं।

 

बहुत बहुत धन्यवाद!

 

कार्यक्रम में गरिमामयी उपस्‍थिति:-

 

  1. श्री नरेन्‍द्र मोदी, माननीय प्रधानमंत्री, भारत
  2. डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’, माननीय शिक्षा मंत्री, भारत सरकार
  3. श्री संजय शामराव धोत्रे, माननीय शिक्षा राज्‍य मंत्री, भारत सरकार
  4. श्री अमित खरे, सचिव, उच्‍चतर शिक्षा विभाग, शिक्षा मंत्रालय
  5. सुश्री अनिता करवल, स्‍कूली शिक्षा विभाग, शिक्षा मंत्रालय,
  6. प्रो. के. कस्‍तूरीरंगन, अध्‍यक्ष, ड्राफ्ट समिति, राष्‍ट्रीय शिक्षा नीति

अंग्रेजी एवं विदेशी भाषा विश्‍वविद्यालय, तेलंगाना द्वारा निर्मित मोबाइल एप का शुभारम्‍भ

अंग्रेजी एवं विदेशी भाषा विश्‍वविद्यालय, तेलंगाना द्वारा निर्मित मोबाइल एप का शुभारम्‍भ

 

दिनांक: 31 अगस्‍त, 2020

 

 

माननीय शिक्षा मंत्री, डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’

 

आज के इस कार्यक्रम में एक बहुत हीमहत्वपूर्ण ऐप के निर्माण में हमारा यह अच्छा विश्वविद्यालय जिसका शिक्षा जगत में बड़ा नाम है वहमहत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। वहां से ऐसेऐप को जन्म मिला है जिसकी वर्तमान में जरूरत थी और इस कार्यक्रम में हमारे बहुत ही अनन्य सहयोगी आदरणीयसंजय धोत्रे जी,जिनका भी हमको मार्गदर्शन मिला है और जो इंजीनियरिंग क्षेत्र से हैं और विविधक्षेत्रोंमें जिनको बहुत महारत हासिल है जोमृदु स्वभाव और प्रखरता का अद्भुत संगम भी है। हमारे इस विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.सुरेश कुमारजी और मैं देख रहा हूँ कि सभी फैकल्टी जुडी हुई हैं और कार्यपरिषद् सहित सभी परिषदों के सभी आदरणीय सदस्यगण जुड़े हुए हैं। कुलपति जी ने बताया है कि तमाम छात्र आज इस कार्यक्रम से जुड़े हैं सबसे पहले तो मैं आपको ढ़ेर सारी बधाई देना चाहता हूँ क्योंकि विश्वविद्यालय ज्ञान का ऐसा कोष है जहांसे हर चीज़ को बाहर निकलना ही निकलना है। जो छात्र वहां पढ़ रहे हैं और जो अध्यापक शोध कर रहे हैं यह सभी लोगमिल करके प्रतिदिन कुछ नया क्या हो सकता है यहशोध अनुसंधान की जो अभिलाषा है इसको लेकर के जिस तरीके से यहां काम शुरू हुआ है उसके लिए मैं बहुत बधाई देना चाहता हूं और सामाजिक दायित्व के तहत आपने यह किया है क्योंकि यहशिक्षा का एक ऐसा केन्द्र है जिसपर सबकीनिगाह है,यह हमारा भविष्य है। जो छात्र हैवो स्‍वयंअपनी आशाओं का तो केन्द्र हैं,अपने परिवार की भी आशाओं एवं अपेक्षाओं का केन्द्र हैं, मेरे देश की आशाओं का केन्द्र है और मैं कह सकता हूँ जैसे हमारे माननीय मंत्री संजय जी ने अभी बताया कि यह देश सामान्य देश नही रहा है और इस देश में तक्षशिला, नालंदा और विक्रमशिला जैसे विश्वविद्यालय रहे हैं जहाँ से पढ़कर के पूरी दुनिया में हमारा ज्ञान-विज्ञान-अनुसंधान गया है और हमने लीडरशिप ली है। हमारे देश नेविज्ञान में, ज्ञान में, प्रौद्योगिकी में किसी भी क्षेत्र में आप देखेंगे तो पूरी दुनिया को एक लीडरशिप दी तब तो दुनिया में कोई विश्वविद्यालय नहीं होते थे। जब तक्षशिला, नालंदा और विक्रमशिला जैसे इसभारत में विश्वविद्यालय होते थे तो दुनिया के लोग हमसे सीखनेके लिए आते थे और शिक्षा ग्रहण करके जाते थे। मैं यह समझता हूँ कि वह आपको याद रखना है और उसको याद रख कर के वर्तमान से जोड़ना है और वर्तमान से छलांग मारकर हमको वैश्विक शिखर पर जाना है, यहहमारा रास्ता है और उस रास्ते  पर जाने के लिए हमें बहुत ताकत के साथ आगे बढ़ना है क्योकि मेरे देश के प्रधानमंत्री जी ने हमको हमेशाकहा है कि नए भारत के निर्माण की जरूरत है।ऐसाभारत जो विश्वगुरु रहा है जिसके बारे में संस्कृत में एक उक्ति है‘एतद्देशप्रसूतस्य सकाशादग्रजन्मनः स्वं स्वं चरित्रं शिक्षेरन्पृथिव्यां सर्वमानवाः’ जहां पूरी दुनिया हमारे पास आकर खड़ी हो जाती थी और वैसे भी यह देश विश्व बंधुत्व की बात करता है, मानव कल्याण की बात करता है। इसलिए मेरे देश के प्रधानमंत्री कहते हैं कि नए भारत के निर्माण की जरूरत है।ऐसा भारत जो स्‍वच्‍छ भारत हो, जो स्‍वस्‍थ भारत हो, जो सशक्त भारत हो, जो समृद्ध भारत हो, जो श्रेष्ठ भारत हो, जो एक भारत हो तो वहीश्रेष्ठता हमें लानी है और अभीजैसा हमारे माननीय मंत्री जी ने कहा कि उसका रास्ता भी हमारे देश के प्रधानमंत्री जी ने हमको बताया है और सूत्र रूपमेंबताया है। इसका रास्‍ता‘मेक इन इंडिया’,‘डिजिटल इंडिया’,‘स्किल इंडिया’,‘स्टार्ट अप इंडिया’ और ‘स्‍टैंड अप इंडिया’ से होकर गुजरता है। क्‍यों‘मेक इन जापान’ हो,क्‍यों ‘मेक इन चीन’हो?मेरे हिन्दुस्तान में प्रतिभा की कमी नहीं है, विजन की कमी नहीं है, विजन को मिशन में क्रियान्वित करने की कोई कमी नहीं है फिर पूरी दुनिया में ‘मेक इन इंडिया’ क्‍यों नहीं हो सकता है क्योंकि ‘मेक इन इण्डिया’,‘डिजिटल इण्डिया’,‘स्टार्टअप इंडिया इन तीनों का बहुत अद्भुत समन्वय रहा है।आपने भारतीय शैली में अंग्रेजी बोलने के लिए जोऐप तैयार किया हैताकि कोई भी छात्र अपने को कमजोर महसूस न करें। हमें तो पूरी दुनिया मेंजाना है, दुनिया हमको देख रही है। तमिल, तेलगू, मलयालम, कन्नड़, गुजराती, मराठी, बंगाली, उड़िया, उर्दू, हिन्दी, संस्कृत, पंजाबी एवं अन्‍य भाषाएं जो हमारे संविधान की अनुसूची 8 में हैं, हमारे देश की जो 22 भाषाएं हैं उनके साथ पूरे विश्व के फलक पर दौड़ना हैतो अंग्रेजी सहित विश्व की तमाम भाषाओं को मेरे छात्र-छात्राएं कैसे सीख सकते हैं इसके लिए जो प्रयास आज आपने किया है, जितने भी छात्र, अध्यापकगण इस मिशन में जुटे हुए हैं, मैं उनको बधाई देना चाहताहूं।आपको मालूम होगा कि अभीपीछे के दिनों में भारत सरकार ने कई विदेशी ऐप पर प्रतिबन्ध लगाया था जो भारतीय मानकों पर खरी नहीं उतरते थे।मैं छात्रों से कहना चाहता हूँ कि आपके लिए पूरा मैदान खाली है और जो नई शिक्षा नीति आ रही है जिसमें पूरा मैदान आपके लिए खाली छोड़ा हैआप कोई भी विषय चुन सकते हैं, आप विज्ञान के साथ साहित्य ले सकते हैं,भाषा का भी कोई बंधन नहीं है और न विषयों का बंधन है। आप किसी भी भाषा को ले सकते हैं, मातृभाषा में शुरू कर सकते हैं। यूनेस्को सहित दुनिया के तमामविशेषज्ञों और वैज्ञानिकों ने कहा है कि बच्चा अपनी मातृभाषा में ज्यादा सीखता है और तीन से छह वर्ष की आयु समूह के बच्‍चों में मस्‍तिष्‍क का विकास सर्वाधिक होता है।इसलिएहम उस आयु समूह को भी पकड़ना चाहते हैं क्योंकि बच्चा हमारी निधि है। मेरे देश की निधि हैं, देश की धरोहर है,देशका भविष्य है। इसलिए हमने नई शिक्षा नीति में 10+2 को खत्‍म करके5+3+3+4 किया है,हम उस बच्चे के विजन के साथ, जो वहबच्चा सोचता है उसको साथ लेकर आगे बढ़ना चाहते हैं।यह शायद दुनिया का पहला देश होगा जो स्कूली शिक्षा सेआर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को पढ़ायेगा और हम इसको वोकेशनल स्ट्रीम के साथ, इंटर्नशिप के साथ आगे बढ़ाएंगे। अब हम बच्चे को रिपोर्ट कार्ड नहींदेंगे बल्‍किप्रोग्रेस कार्ड देंगे कि वह क्‍या प्रगति कर रहा है। अब हम उसका360 डिग्री होलिस्टिक मूल्यांकन करेंगे।बच्‍चा स्‍वयं भी अपना मूल्यांकन करेगा, उसका अध्यापक भीमूल्यांकन करेगा, उसका अभिभावक भीमूल्‍यांकन करेगा और उसका साथी भी उसका मूल्यांकन कर सकेगा।जब वह स्कूली शिक्षा से बाहर निकलेगा तो वो स्किल से भरा योद्धाहोगा,वहकौशलयुक्‍तहोगा औरउसेदर-दर भटकने जरूरत नहीं पड़ेगी।उधर हम लोगों ने आईआईटी, ट्रिपलआईटी, आईसीआर,आईआईएमसे यह कह दिया कि आप उद्योगों के साथ मिलकर पाठ्यक्रम बनाओ। ऐसा नहीं होना चाहिए कि मेरा छात्र पढ़ कुछ और रहा है औरउद्योग कुछ और चाहते हैं। इसलिए हम जो यह नई शिक्षा नीति लेकरआये हैं उसमें आप किसी भी विषय को ले सकते हैं और इतना ही नहीं,मैं छात्रों से कहना चाहता हूँ इस शिक्षा नीति के अंतर्गत यदि कोई 4 वर्ष का कोर्स है और यदि कोई छात्र दो साल में परिस्‍थितिवशछोड़के जा रहा है  तो पहले उसका पैसा एवं वर्ष दोनों खराब हो जाते थे लेकिन अब उसकोनिराश नहीं होना पड़ेगा।यदि आप परिस्‍थितिवश एक वर्षमें छोड़ कर जा रहे हैं तो  आपको सर्टिफिकेटदेंगे,दो साल में छोड़ कर जा रहा है तो डिप्लोमा देगें, तीन साल में छोड़कर जा रहे हैं तो उसकोडिग्री देंगे लेकिन यदि फिर वह लौट कर अपने भविष्य को संवारना चाहता है तो फिर जहां से उसने छोड़ा था वहीं से शुरू कर सकता है। उसके लिए हम एक ऐसा क्रेडिट बैंक बनायेंगे जहां उसके सारे क्रेडिट जमा होंगेइसलिए उसके लिए आगे बहुत आपार संभावनाएं है।मुझे लगता हैकि जिस तरीके का परिवेशहै,प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भीहम बहुत तेजी से आगे बढ़ेंगे। हम लोगों ने शोध और अनुसंधान के क्षेत्र मेंतय किया है क्योंकि मुझे लगता है कि जब मैं अपने संस्थानों कीविश्‍व के शिखर के संस्थानों के साथ समीक्षा करता हूं तोटाईम्‍सरैंकिंग होया क्‍यूएसरैंकिंग हो, उसमें हम कहां पर थोड़ा सा कमजोर हैं, तो मुझे लगता है कि हम थोड़ा सा शोध और अनुसंधान में कमजोर हैं और इसलिए हम उस कमी को भी दूर करना चाहते हैं। हम प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में,जहाँ हमारी प्रौद्योगिकी नवाचार से युक्‍त होगी,गुणवत्तापरक होगी, उत्कृष्टता से युक्त होगी, उदारवादी होगी और अंतिम छोरपर बैठे रहने वाले व्यक्ति तक जाने में भी समर्थ होगी और यह समावेशी भीहोगी तथा सार्वभौमिक भी होगी। मैं समझता हूं कि जिस तरीके से स्‍वायत्‍ताके क्षेत्र में, संबद्धता के क्षेत्र में और ‘नेशनल एजुकेशन टेक्नोलॉजी फोरम’ को गठित करके चाहे ‘स्वयं’ है,‘स्‍वयं प्रभा’ है,‘एनडीएल’ है,‘ई-पाठशाला’ है,‘दीक्षा’हैइसको हम‘वन नेशन वनडिजिटल प्लेटफॉर्म’ पर लाना चाहते हैं और ‘वन क्लास वन चैनल’कोविकसित करना चाहते हैं और यदि मैंनिचोड़ में बोलूं कि इसको क्या कह सकते हैं तो मैं कहना चाहता हूं यह शिक्षा नीति नेशनल भी है, इंटरनेशनल भी है, यह इंटरेक्‍टिवभी है, इम्पैक्टफुल भी है,इनोवेटिवभी है और यहइक्विटी, क्वालिटी और एक्सेस की आधारशिला पर खड़ी होती है।हमारेदेश के प्रधानमंत्री समय-समय पर कहते हैं कि ‘सबका साथ सबका विकास’हमसबको साथ ले करके चलना चाहते हैं। यदि देश को, राष्ट्र को मजबूत करना है तो अंतिम छोर के बच्चे को, अंतिम छोर के व्यक्ति को भी साथ ले करकेदौड़ना पड़ेगा।यह जो नई शिक्षा नीति आई है इसने आपके लिए पूरा मैदान खाली छोड़ाहै। अभी हम दुनिया के जो शिखर के विश्वविद्यालय हैं उनको अपनी धरती पर आमंत्रित कर रहे हैं क्योंकि लोगों की यी मनोस्थिति बन गई हैकि अगरउनको विदेश में जाना है तो विदेशों में पढ़ाई करनी  चाहिए। मैं छात्रों से कहनाचाहता हूं कि दुनिया में हमारी शिक्षा उत्कृष्ट शिक्षा है। यदि अमेरिका केमाइक्रोसॉफ्ट और गूगल जैसी विश्व कीशीर्ष कंपनियों का सीईओ मेरी धरती से पढ़ कर जाने वाला युवक होता है और जब मैंने अपनेआईआईएमसे लेकर के अपने विश्वविद्यालय के पूर्व छात्रों की सूची को देखा तो मैं आश्चर्यचकित था, मेरा छात्र पूरी दुनिया के तमाम देशों केमहत्वपूर्ण क्षेत्रों में लीडरशिप दे रहाहै।हमने ‘स्‍टडी इन इंडिया’ के तहत कहाकि दुनिया के लोगों हमारे पास आओ, हमारे पास क्षमता है,अभी हम 5 तारीख को अध्यापक दिवस के अवसर पर बड़ा कार्यक्रम मना रहे हैं और उसमें हम लोगों ने कहा ‘आचार्य देवो: भव:। यह जो गुरु है यह ज्ञान का पुंजहै, यह सब कुछ कर सकता है। इसलिए जोहमारे टीचर हैं यह सामान्य नहीं है यह इस देश केवो विजनरी योद्धा हैं जो अपने छात्र को किसी भी सीमा तक बढा सकता है और बढ़ा रहे हैं और अब एक बार फिर परिवेशबन रहा है। आपको मालूम है कि ‘स्टडी इन इंडिया’ के तहत लगभग 50 हजार से भी अधिक छात्रों ने अपना रजिस्ट्रेशन कराया हैऔरआसियान देशों के लगभग एक हजार छात्र हमारे यहां शोध और अनुसंधान के लिए आ रहे हैं।शोध और अनुसंधान के क्षेत्र में हम ‘स्पार्क’ के तहत दुनिया के शीर्ष127 देशों के विश्‍वविद्यालयों के साथ शोध एवं अनुसंधान कर रहे हैं, हम ‘स्‍ट्राइड’के तहत अंतर-विषयी शोध कर रहे हैं। हम ‘स्टार्स’ के तहत शोध कर रहे हैं,‘इम्‍प्रिंट’और ‘इम्प्रेस’ के तहत सामाजिक विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में शोध एवं अनुसंधान कर रहे हैं।नई शिक्षा नीति लोकल से ग्लोबल तकहोगी, इसमेंलोकस भी होगा, इसमें फोकस भी होगा। इसमें टैलेंट भी हेागा,इसमें पेटेंट भी होगा। यह सामान्य नहीं है,इसमें हम टैलेंट को उभारेंगे भी और टैलेंट का विस्तार भी करेंगे।इसलिए यह जो नई शिक्षा नीति आ रही है इसमें जहां हमने‘स्टडी इन इंडिया’ बोला है वही हमने ‘स्टे इन इंडिया’ भी कहा कि भारत में रूकोक्‍योंकि हमारे देश से 7-8 लाख छात्र प्रतिवर्ष विदेशों में पढ़ने के लिए जा रहे हैं। हमारे देश का पैसा और प्रतिभा दोनों बाहर चली जाती हैं तो वापस वह हमारे देश में नहीं आती है। इसलिए हमने‘स्‍टे इन इंडिया’ किया  हमने  छात्रों को भरोसा दिलाया कि हमारे आईआईटी, एनआईटी, आईएसर, केन्‍द्रीय विश्‍वविद्यालयों में योग्‍यता है, क्षमता है आपको  बाहर जाने  की जरूरत नहीं है,अब लोगों की समझ में आ गया है। मुझे इस बात की खुशी है कि पीछे के समय जब हमने जेईई परीक्षाएं करवाई। मुझे इसबात की भी खुशी है कि दो लाख से भी अधिक छात्रों ने जोछात्रविदेश में जा रहे थेवे जेईई और नीट की परीक्षाओं में सम्‍मिलित हुए।  हम ‘स्‍टे इन इंडिया’ के तहत दुनिया के शीर्ष सौविश्वविद्यालयों को अपनी धरती पर आमंत्रित कर रहे हैं आपकोकहीं जाने की जरूरत नहीं है और यहां के जो शीर्ष विश्वविद्यालय हैं वेभीबाहर जा रहे हैं। यह आदान-प्रदान हम करेंगे।हमारे देश के प्रधानमंत्री जीने कहा कियह नई शिक्षा नीति 21वीं सदी केस्वर्णिम भारत कीआधारशिला है। मुझे पूरा भरोसा है कि जो देश के प्रधानमंत्री ने कहा है किएक नए भारत के निर्माण की जरूरत है। यह नई शिक्षा नीति उसकी आधारशिला बन करके यह साबित करेगी कि यहवही भारत है जो कभी विश्वगुरु के नाम से जाना पहचाना जाता था उसभारत का फिर युग आ गया है और इसलिए उस भारत के उस नए युग में, उस स्वर्णिम युग में कौन-सी संस्था, कौन सा व्यक्ति, कौन सा विभाग आधारशिला बन करके खड़ा है अब प्रतिस्पर्धा तो इसकी है और मुझे भरोसा है हमारेलोगों के मन में छटपटाहट है, ऐसा नहीं है कि हममें प्रतिभा की कमी है, ऐसा नहीं कि हममें विजन की कमी है, ऐसा नहीं कि विजनको क्रियान्वित करने की ताकत नहीं है। हममें विजन भी है,मिशन भी है, धैर्य भी है, प्रखरता भी है। हमइन सबका समन्वय करेंगे। अभी जो हमने‘स्टे इन इंडिया’ अभियान लिया है उसके तहत हजारों छात्रों ने तय किया है कि वह विदेश नहीं जाना चाहते। नई शिक्षा नीति को लेकर पूरे देश में उत्‍सव का माहौल है,इसनई शिक्षा नीति को देश के 99 प्रतिशत लोगों नेस्‍वीकार किया है,किसी ने कोई टीका-टिप्पणी नहीं की। कुछ लोग भाषा पर टीका-टिप्पणी करते थेकुछ लोग कहते हैं कि हमको ग्‍लोबल पर जाना है तो अंग्रेजी सीखनी पड़ेगी मैंने कहा  हम अंग्रेजी का विरोध नहीं  करते, अंग्रेजी ही नहीं और दो-तीन भाषाएं सीखों,लेकिन अपनी भाषाओं को मत छोड़ो। हमारेसंविधान ने हमें 22 खुबसूरत भाषाएं दी हैं हिन्दी, तमिल, तेलगू, मलयालम, कन्नड़, गुजराती, मराठी, बंगाली,ओडिया, असमिया, उर्दू,यहहमारी 22 खूबसूरत भाषाएँ हैं इनमेंअपना ज्ञान है,जीवंता है,तोक्यों हम अपनी भाषाओं को खोयेंगे।हमने अंग्रेजी का कभी विरोध नहीं किया लेकिन अंग्रेजी इस देश की भाषा नहीं है। हमें अंग्रेजीक्या पूरी दुनिया की भाषाओं को पढना है लेकिन मैं उन लोगों से पूछना चाहता हूं। क्या जो देशनीचे से लेकर उच्च शिक्षा तकअपनी मातृभाषा में शिक्षा देते हैं वो किसी से पीछे हैं, क्‍या जापान, फ्रांस, इंग्लैंड और दुनिया के तमाम जो विकसित देश हैं वो अपनी मातृभाषा में शिक्षा देते हैं क्‍या वो किसी से पीछे हैं,फिर ऐसे तर्क दे करके देश को कमजोर करने की बातक्यों की जाती हैं। भाषा का भी कोई विवाद नहीं रहा, कौन ऐसा चाहेगा कि उसका बच्चा आगे न निकले, प्रतिस्पर्धा में न आये, उसका पूरा विकास न हो। इस समय देश के सभी राज्योंमें नई शिक्षा नीति के क्रियान्‍वयन को लेकर होड़ मची हुई है। मुझे खुशी होती है जब मैं देश के सभी मुख्यमंत्रियों से बात करता हूं,देश के सभी शिक्षामंत्रियोंसे मैं बात करताहूं तो मुझे खुशी होतीहै कि नई शिक्षा नीति को लेकर लोगों में उत्साह है, उमंग है उनको लगता है कि भारत में पहली बार ऐसी शिक्षा नीति आई है जो भारत की धरती पर खड़े हो करके आसमान को छूने की ताकत रखती हैऔर इसीलिए  हम उसके क्रियान्वन के लिए मिशन मोड मेंआगे बढ़ चुके हैं। मेरा भरोसा है कि आपका यह विश्वविद्यालय इस नई शिक्षा नीति के साथनये आयाम को स्थापित करेगा क्योंकि इस विश्वविद्यालय की प्रगति को मैं देख रहा हूं। कुलपति की लीडरिशप में यह विश्वविद्यालय काफी आगे बढ़ रहा है।इसके लिए मैं आपको शुभकामनाएं देता हूँ। जो ऐप आपने सृजित किया है यहश्रृंखला रुकनी नहीं चाहिए, टूटनी नहींचाहिए, बाधित नहीं होनी चाहिए अब यहां से ऐसी ऊर्जा पैदा होगी कि जिससेछात्र कुछ नया करेंगे।मुझे भरोसा है क्योंकि आपमें छटपटाहट है और आपमें पूरी क्षमता है और आप उस क्षमता का पूरा उपयोग करेंगे तो इस अवसर पर मैं कुलपति को, उनके सभी सहयोगियों को, विश्वविद्यालय के पूरे परिवार को, मुझे बताया गया हैकि दूर-दूर से लोग मेरे साथ जुड़े हुए हैं, मुझे तो लोग फोन करके बोलते हैं कि हमको तोजेल्‍यसीहो रही है कि यह शिक्षा नीति पहले आती तो हमको भी स्वतंत्रता होती,अपनी इच्‍छानुसार विषय लेने की।आपकोमैंनई शिक्षा नीति की ढेर सारी शुभकामनाएं देना चाहता हूं और जो पांच सितंबर को अध्यापक दिवस आता है इस अवसर पर हम पूरे विश्व में एक ऐसा वातावरण बनायेंगेजिससे किपूरी दुनिया को लगे किगुरु माने क्या होता है। टीचर्स का अर्थ क्या होता है और 5 तारीख को हम इसको भी भव्य तरीके से मनाएंगे और 5 सितंबर से लेकर 25 सितंबर तकयह जो नई शिक्षा नीति आई है उसको  देश की ढाई लाख ग्राम समितियों तक लेकर जाएंगे। आप‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ के अभियान में भीजुटे होंगे और जो ‘उन्नत भारत अभियान’ है उसमें भी आपने आस-पास केकुछ गांवों को लिया होगा।आप वहां भी सर्जनके बीज बो रहे होंगे क्‍योंकि इस विश्वविद्यालय केअगल-बगल में जो भी गांव है वो भी उन्‍नत होने चाहिए। मैं एक बार फिर आप सभी को धन्‍यवाद एवं शुभकामनाएं देना चाहता हूं।

 

बहुत-बहुत धन्‍यवाद!

 

 

कार्यक्रम में गरिमामयी उपस्‍थिति:-

 

  1. डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’, माननीय शिक्षा मंत्री, भारत सरकार
  2. श्री संजय शामराव धोत्रे, शिक्षा राज्‍य मंत्री, भारत सरकार
  3. प्रो. सुरेश कुमार, कुलपति, अंग्रेजी एवं विदेशी भाषा विश्‍वविद्यालय, तेलंगाना
  4. अंग्रेजी एवं विदेशी भाषा विश्‍वविद्यालय, तेलंगाना के संकाय सदस्‍य, अध्‍यापकगण एवं कर्मचारी।

 

शिक्षा-संवाद: भारत को वैश्‍विक ज्ञान महाशक्‍ति के रूप में स्‍थापित करना

 

दिनांक: 27 अगस्‍त, 2020

 

 

माननीय शिक्षा मंत्री,डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’

 

आज के इस महत्‍वपूर्ण विषय पर आयोजित बेवीनार में जुड़े हुए सभी विद्वानों का मैं हार्दिक स्‍वागत एवं अभिनंदन करता हूं। पीछे के समय में जब सतनाम जी मुझसे मिलने के लिए आए थे तो उनसे काफी चर्चा हुई और आप सब लोग आज यहां पर एकत्रित हुए हैं।मैंसबसे पहले तो आप सबके अभिनंदन के लिए मैं आपके बीच आया हूं,मुझेखुशी है कि आज यह संस्थाएं मिलकर के अपने देश के भविष्य को सुधारने, संवारने और उसकी उत्कृष्टता बढाने के लिए एकजुट हुई हैं। यह भी बहुत अच्छा परिवेश है और मैंने जितना सुना है सब लोगों को मुझे बेहद खुशी होती है। पीएसआई और जीसीए  दोनों ने मिलकर के एक संयुक्‍त प्रयास का जो निर्णय लिया है और जो चंडीगढ़ में जोआस-पास ये दोनों विद्यालय हैं। मैं सोचता हूं कि इनकी दोनों की ताकत मिलकर दोनों संस्थाओं के समन्वित प्रयास से बहुतबड़ा-बड़ा काम हो सकता है और मुझे इस बात की बेहद खुशी है। आज इसबहुत ही महत्वपूर्ण कार्यक्रम में आज हजारोंशिक्षाविद्जुड़ेहुए हैं। यह हमारा सौभाग्य है कि सरदार सतनाम सिंह संधू जी कुलाधिपति चंडीगढ़ विश्वविद्यालय, सरदार जगजीत सिंह जी अध्यक्ष जेसीए,श्रीअशोक मित्तल जी कुलाधिपति,लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी,डॉक्टर एच. चतुर्वेदी जी,निदेशक विमटैक, विश्वनाथन जी भी इस आयोजन से जुड़े हैं। मुझे लगता है वीआईटी को तो वैसे भी हमने आईओई में रखा हुआ है। जो संस्थापक और अध्‍यक्ष प्रशांत जी हैं, उनकोबहुत अच्‍छे से मैं जानता हूं। मुझे लगता है किमेरे सहयोगी भी जो शिक्षा मंत्री राज्य हैं संजय जी भी हमसे जुड़े हुए हैं। मुझे अच्छा लगा कि आपलोग केवल चिंता ही नहीं कर रह हैं, चर्चाएँ नहीं कर रहे हैं, बल्कि उसके क्रियान्वयन की भी दिशा में आगे बढ़ने का आपका सबका मन है।क्यों न हो, क्योंकि हम सब शिक्षा से जुड़े आम मन में हर व्यक्ति को छटपटाहट होती है, उसका लक्ष्य होता है, जीवन में कहीं पहुँचने का कुछ करने का और यदि उसको कहीं पहुँचना है, कुछ करना है तो उसका रास्ता भी वह तय करता है और फिर उन चुनौती भरे रास्तों से होकर अपने शिखर को चूमने की कोशिश करता है। मैं समझता हूं कि सबसे पहली बात तो यह है कि जितने भी लोग मुझसे जुड़े हैं उनका अभिनंदन करता हूं क्योंकि शिक्षा एक ऐसा क्षेत्र है जो किसी भी व्यक्ति का, किसी परिवार का, किसी समाज का, किसी राष्ट्र की धुरी होता है। शिक्षा नहीं है तो कुछ भी नहीं है। इसलिए जो शिक्षा है वह अच्छे मानव के स्वरूप में उसको हष्‍ट-पुष्ट रख करके उसको गतिशील रखती है। उसकीजो रीढ की हड्डी है उससे तमाम धमनियां जुड़ीहैं, हड्डिया जुड़ी हैं, लेकिन उस ढाँचे को ताकत के साथ खड़े रखने का काम शिक्षा करती है। यदि उस ढ़ाचे को खड़ा रखने वाली रीढ़ की हड्डी जब कहीं टूटती है तो सारे शरीर का अस्‍तित्‍वखतरे में आता है और इसीलिए जब जब भी शिक्षा पर चोट होती है जब जब भी शिक्षा अपने रास्ते से विमुख होती है, किसी व्‍यक्‍ति की,संस्था की,किसी राष्ट्र की हो तब तब प्रकृति से विकृति कीओर जाता है और विकृति हमेशा विनाश का कारण होती है। भिन्‍न-भिन्‍न कारणों से भिन्‍न-भिन्‍नसमय पर और भिन्‍न-भिन्‍नपरिस्थितियों में तो मैं यह समझता हूं कि सबसे अच्छी बात तो यह है कि हम सब लोग किसी अच्छे मन के साथ, अच्छे विजन के लिए, अब अच्छे मिशन के साथ हम लोग सब एकजुट हुए हैं,यहांपर एकत्रित हुए हैं तो में सबसे पहले तो आप सबका बहुत आभार प्रकट कर रहा हूं,तमाम संस्थाएं जुड़ी हैं, विश्वविद्यालय जुड़े हैं, कॉलेज से जुड़े हैं। जो नई शिक्षा नीति आई है उसके संदर्भ में यह बात सही है कि मुझे लगता है कि दुनिया में शायद ही किसी नीति पर इतना बड़ा व्यापक परामर्श हुआ हेागा। यदि दुनिया के सबसे बड़े परामर्श वाली यह नीति हमारे हाथों में आई है तो अब उसकी ताकत भी समझ आएगी। क्योंकि यह उन चंद लोगों के द्वारा बैठ करके बनाई गई शिक्षा नीति नहीं है। यह इस देश के गांव से ले के ग्रामप्रधान से ले करके और प्रधानमंत्री जी तक एक-एक शब्द विचार विमर्श के बाद यह पैदा हुई शिक्षा नीति है जिसमें इस देश के ढाई लाख ग्राम समितियां भी हैं तो इस देश के एक हजार से अधिक विश्वविद्यालयों के कुलपति भी हैं, पैंतालीस हजार से अधिक डिग्री कॉलेजों के प्रिंसिपल भी हैं, पंद्रह लाख से अधिक स्कूलों के प्राध्यापक अध्यापक भी हैं और यदि कुलअध्यापकों को देखा जाए तो आज एक करोड़ नौ लाख से भी अधिक अध्यापकों शिक्षकों और शिक्षाविदों का इसमें परामर्श जुड़ा हुआ है और जो तैतीस करोड़ छात्र-छात्राएं इस देश में जो अमेरिका की जनसंख्या से भी ज्यादा हैं, इनका फलक है उन तीस करोड़ छात्रों से भी संवाद और उनके अभिभावकों से भी सीधे संवाद से निकली यह शिक्षा नीतिहै। इतना ही नहीं फिर भी यह कहा गया है कि यदि किसी कोने पर कोई कोर-कसर वैज्ञानिक, शिक्षाविद्, विचारक,एनजीओ, राजनैतिक लोग, सामाजिक क्षेत्र के लोग यदि किसी के मन में किसी कोने पर कोई-किंतु परंतु रहे हैं तो उसके बाद इस पॉलिसी को हमने पब्लिक डोमेन में डाला और इसे पब्लिक डोमेन में डालने के बाद छह महीने तक लगातार हम सोशलमीडिया के माध्यम से, इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से, तथा प्रिन्ट मीडिया के माध्यम से और अपने संवादों के माध्यम से सबसे अनुरोध करते रहे कि देश की आजादी के बाद भारत की अपनी शिक्षा नीति आ रही है यदि किसी के मन में कोई और अच्छा सुझाव हो सकता है अपने देश की शिक्षा नीति के लिए तो उसको सुझाव जरूर देना चाहिए। सवा दो लाख से भी अधिक उसमें भी सुझाव आये। एक-एक सुझाव का दो-दो सचिवालयबना करके उच्च शिक्षा का अलग और स्कूली शिक्षा का अलग सचिवालय बना कर एक-एक सुझाव का विश्‍लेषण करने के बाद, मंथन करने के बाद,अमृत के रूप में यहनई शिक्षा नीति आयी है। मुझे यह बात कहते हुए बहुत खुशी है कि पूरे देश ने इसकी खूबसूरती को स्वीकारा है, उत्सव मनाया है, सभी लोगों ने इसको बहुत अच्छा माना है, इसका स्वागत किया है और यदि उसकी स्वीकार्यता हुई है तो आप स्वीकार्यता से फिर सहभागिता की और अब आगे बढ रही है।उससहभागिता का पहला कदम आप सब लोग मिलकर कर रहे हैं और आपकी जो चिन्ता है हां, हमने नीति में भी सबको साथ लेकर काम किया । हमने हर उस अच्छी चीज को कस्तूरीरंगन जी की अध्यक्षता मेंजो एक बहुत बड़े विचारक भी हैंतथावैज्ञानिकहैं। पद्म श्री, पद्मभूषण, पद्मविभूषण और तमाम देश और दुनिया के उनको सम्मान मिले  हैंऔर बहुत ही संवेदनशील हैं उनके मार्गदर्शन में जो ऐसी शिक्षा नीति बनी है।जहांतक भी हमारा फैलाव हो सकता है, जिस सीमा तक भी अच्छाई को हम अपने में समाहित कर सकते हैं अपने विजनमेंडाल करके दुनिया के शिखर पर पहुँचने का रास्ता तय कर सकते हैं, वह सब कुछ इसमें डालने की हमने कोशिश की है। इसलिए आपने भी कहा कि यदि शुरूआती शिक्षा से आपने मातृभाषा की जो बात की है वो मातृ भाषाजो बच्चा बोलता है, जो उसकीअपनी क्षेत्रीय भाषा है। इसके दो पक्ष हैं एक तो बच्चाजो अपनी भाषा में अभिव्यक्ति कर सकता है वो दूसरीसीखीहुई भाषा मेंनहीं कर सकता और तीन वर्षों से हमारी कमेटी ने भी जो कहा और वैज्ञानिकों ने भी और विशेषज्ञों ने भी जिस बात को कहा कि 3 वर्ष से 6 वर्ष तक के बच्चे को जो मस्तिष्क का विकास है वो 85 प्रतिशत तक होता है तो जो हमारी धरोहर है, जो हमारा भविष्य है, हम उसको शुरू से ही पकड़ना चाहते हैं, उसको आगे बढ़ाना चाहते हैं उसकी उन सभी क्षमताओंका जो उसके अंदर सृजनकी शक्तियां समाई हुई हैं उसको ख़ूबसूरती से खेल-खेल के माध्यम से और उसकी उसी की भाषा में आगे कैसे करके उभारते हैं। यहांसेइस नई शिक्षा नीति की यात्रा शुरू होती है और आप जाती है जोअंतर्राष्‍ट्रीयस्तर की प्रतिस्पर्धा में शिखर को चूमेगी। चाहे ज्ञान हो और विज्ञान हो और अनुसंधान हो, प्रौद्योगिकी हो और चाहे वो नवाचार के साथ श्रेष्ठता को प्राप्त करने की विश्व में यह है इसकी यात्रा। कुछ लोगों के मन में था कि जैसेआपने अभी कहा कि क्या शुरू से हीदुनिया में अंग्रेजी में ही जाना है? तो मैंने पूछा कि मातृभाषा में पढ़ाने वालाफ्रांस वो पीछे है? मातृभाषा में ही पढ़ाने वाला जो जापान है, वो क्या पीछे है? मातृभाषा में ही पढ़ाने वाला अमेरिका क्या वो पीछे है? मातृभाषा में ही पढ़ाने वाला इजराइल क्‍या वो पीछे है?यदि टॉप ट्वंटी को देखेंगे जो विकसित देश हैं। वेअपनी मातृभाषा में पढ़ाई कर रहे हैं क्योंकि उनको मालूम है कि अपनी चीज पर ही वो छलांग मार सकते हैं और इसीलिए यूनेस्को ने भी कहाथा  कि बच्चे की प्रारंभिक भाषा,उसकी मातृभाषा में ही उसका विकास हो सकता है और उसमें भी अंग्रेजी का कोई विरोध नहीं है। लेकिन हां, मेरे देश की भारतीय भाषाओं काइसमेंआग्रह है। मेरे देश की 22 भारतीय भाषाएं हैं। वो तमिल, तेलुगु, मलयालम, कन्नड़, गुजराती, मराठी, बंगाली, पंजाबी, हिन्दी औरउड़ियाहै । हमारी खूबसूरती हैंयह22 भारतीय भाषाएंजो हमको संविधान के अनुच्छेद 8 में मिलती है। इन 22 भारतीय भाषाओं के सशक्तिकरण की हमारी बात है, कौन देश का ऐसा व्यक्ति होगा जो अपनी भारतीय भाषाओं का सम्मान नहीं करना चाहता है। आखिर क्यों? हां, हम पूरी दुनिया के फलक पर जाएं किसी भाषा का विरोध नहीं है। कभी भी कोई भाषा से कोई दुराग्रह नहीं है। किसी पर कोई भाषाथोपी नहीं जाएगी। सबको स्वाधीनता है लेकिन आप कहें कि दो ही भाषा चाहिए, तीन ही भाषा चाहिए,  छात्र को स्वतंत्रता देनी चाहिए। कितनीभाषाएं सीख सकता है, सीखो ना। जितनी वह भाषाएं सीख सकता है, उसकी स्वाधीनता है सीखसकता है उसको क्यों रोके उसके लिए आगे बढने के लिए बाधा क्यों बनेंगें हम। इसलिए जो मातृभाषा मेंकोई राज्य आगे बढ़ाना चाहते हैं, उसको आगे तक बढ़ाएं। सभी राज्यों को इसकी छूट है और बहुत सारे राज्यों ने यह किया भी है क्योंकि उस भाषा का जिंदा रहना भी बहुत जरूरी है,उसकी जड़ें हैं और वो तभी जिन्दा रह सकती जब वो अपने बच्चों को जब-जब बचपन से ही उसकी मातृभाषा में नहीं सीखेगा तब मातृभाषा जिन्‍दारहेगी कहां? इसलिए बहुतसोच-समझ करके इस बात को रखा गया है। मुझे खुशी है कि पूरे देश ने इसको बहुत अच्छे से स्वीकारा है और इसे उत्सव के रुप में मनाया है। अपनी जड़ों पर खड़े हो करके आसमान को छूने की तमन्ना चाहिए क्‍योंकि जड़ों से कटा हुआ इन्सानजड़ों से कटाहुआराष्ट्र कटी हुई पतंग की तरह होता है, जो आसमान में उड़ तो रहा है लेकिन वो किस गर्त में गिरेगा उसको भी पता नहीं है और इसीलिए इसकी खूबसूरती है कि यह नीतिभारत केन्द्रित है। हम अपने जीवन मूल्‍यों के आधार पर पूरी दुनिया में विश्वगुरु रहे हैं। हमारी खूबसूरती हैहममानवीय मूल्यों के विश्‍वके संवाहक रहे हैं। हमने सम्‍पूर्ण विश्‍व केअपना परिवार माना है। एक ओर हम कहते हैं ‘ अयं निज: परो वेति गणना लघु चेतसाम्। उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्‍बकम्।। पूरी वसुधा को अपना कुटुम्‍बमानने वाला हिन्दुस्तान ही हो सकता है।हमारी पूरे विश्व के मानवतावादी कल्याण की सर्वोच्च भावना है, जिसके कारण हमें विश्व गुरु के रूप में लोग स्वीकारते हैं, महसूस करते हैं। ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामया’- इस दुनिया का कोई भी प्राणी यदि दु:खी है तो मैं सुख का अहसास नहीं कर सकता। इसका मतलब उसके दुख को दूर करने के लिए किसी भी पराकाष्ठा तक जा सकता हैऔर तभी मैं खुश हो सकता हूं। जब दूसरे के दु:ख को दूर करूंगा।यही हमारा मूल है, यही मेरा आधार है, यही मेरा चिंतन है। हम अपने चिंतन को कैसे छोड़ सकते हैं। जिस चिंतन ने पूरी दुनिया में हमको भविष्य के शिखर पर पहुंचाया है। इसीलिए यह जो नयी शिक्षा नीति है वो अपनी जमीन पर खड़े होकर के ज्ञान, विज्ञान, अनुसंधान,प्रौद्योगिकी,नवाचार के साथ आगे बढ़ाएगी। हम अपने अतीत को वर्तमान के साथ जोड़ेंगे क्योंकि हम अपने अतीत को कैसे भूल सकते हैं। हम उस अतीत को कैसे भूल जाएंगे जिसमेंसुश्रुत,शल्य चिकित्सा का जनक इस भारत-भूमिपर पैदा हुआ हम उस चरकको कैसे भूल जाएंगे जो आयुर्वेद का जनक है। आज आयुर्वेद के पीछेपूरी दुनिया आकर के खड़ी हो गई। कैसे भूल जाएंगे वो तो हमारी संपत्ति है । वही हमारी थाती है। हम कैसे भूल जाएंगे आर्यभट्ट को, वह आर्यभट जिसने दुनिया के लिए शून्‍य का आविष्‍कार किया। हम कैसे भूल जाएंगे उन श्रेष्ठ वैज्ञानिकों को, भास्कराचार्य को कैसे भूल जाएंगे, आचार्य कणाद को जिसने परमाणु के बारे में बतायाहो, कैसे भूल सकते हैं। पजंजलि के योग के पीछे पूरी दुनिया अपने को बचाने के लिए इकट्ठा हो गई हो,हमप्रति वर्ष योग दिवस मनाते हैं। हमारे पास जो ज्ञान का भंडार है हमारे पास वेद, पुराण, उपनिषद जैसीबहुतसारी चीजें हैं जिनको हम उस अतीत कोवर्तमान के साथ जोड़ करके उसमें ज्ञान, विज्ञान,अनुसंधान के साथ आगे बढ़ाएंगे।हमारे देश के प्रधानमंत्रीजी नेअनुसंधानकी बात की है और उनका बहुत सीधा सपाट मन है। उन्होंने कहा मुझे ऐसे नए भारत की जरूरत है, जो स्‍वच्‍छ भारत हो, स्वच्छता मतलब की गंदगी नहीं। स्वच्छता मतलब पवित्रता मन की भी, पवित्रता जैसे विचारों में पवित्रता चाहिए, स्वच्छता चाहिए सब चीजों में पारदर्शिता चाहिए तो स्वच्छ भारत चाहिए, स्वस्थ भारत चाहिए। वह व्यक्ति भी स्वस्थ चाहिए तो परंपराएं भी स्वस्थ चाहिएतो विचार भी स्वस्थ चाहिए तो ऐसेस्वस्थ भारत की जरूरत है। समर्थ भारत जो आत्मनिर्भर भारत की बात की है ऐसे आत्मनिर्भर भारत समृद्धभारत इसकी समृद्धता में यह तो देश सोने की चिड़िया कहलाता था। कहां समृद्धता की कमी थी हममें और सशक्त भारतसशक्त बहुत जरूरी है। आदमी सब कुछ हो लेकिन ताकतवर नहीं है तो बेकार हो जाता है। देश सशक्त भी चाहिए तभी जब ताकतवर आदमी होता है तो उसकी बातों को भी कोई सुनता है। किसी परिवार का मुखिया यदि ताकतवर न हो तो परिवार बर्बाद हो जाता है। ताकतवर माने उसका विजन भी चाहिए,उसको क्रियान्‍वित करने की ताकत भी चाहिए। ताकतवर भारत चाहिए,श्रेष्ठ भारत और एक भारत चाहिए ऐसा हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी बार-बार कहते हैं और उन्होंने जिस बात को कहा कि इसका रास्ता मेक इन इंडिया, डिजिटल इंडिया यह रास्‍ता है इसका। इस रास्ते से होकर आगे जा सकते हैं हम। क्यों मेक इन जापान हो और क्यों मेक इन चाइना?हममें प्रतिभा की कमी नहीं है, हममें संघर्षशीला की कमी नहीं है। यदि नहीं है तो फिर शुरू करना है। हर चीज को शुरू करेंगे और पीछे के चार-पांच सालों में देश ने हर क्षेत्र एवं दिशा में छलांग मारी है। इसीलिए यह डिजिटल इंडिया अब एक बटन दबाकर के हमसमय को बचा भीरहे हैं और पैसे को बचा रहे हैं, बेमानी और भ्रष्टाचार को खत्म कर रहे हैं क्योंकि पूरे देश में जब डिजिटल इंडिया हो जाएगा तो दूरियां भी कम होंगी और कई प्रकार की सुविधाएं एक क्लिक दबाने से सारे की सारी चीजें आपके पास एक सेकंड में सब सारी दुनिया इकट्ठा हो जाती है तो इसलिए देश को डिजिटल इंडिया भी करना है। हमबहुततेजी से काम कर रहे है और स्किल तो चाहिए। जब तक हम अपने कौशलका विकास नहीं करेंगे तब तक विकास सम्‍भव नहीं है। इसीलिए आपने देखा होगा कि हम इस नई शिक्षा नीति में कक्षा 6 से ही वोकेशनल स्ट्रीम लाए है और वो भी इंटर्नशिप के साथ लाए हैं। अबबच्चा ज्ञान को केवल किताबों में ही नहीं पढ़ेगा बल्कि वो इंटर्नशिप करेगा गांव में जाएगा, वो किसान के साथ बात करेगा वो उद्यानिकी के साथ जुड़ेगा। वहबानगीके साथ जुड़ेगा और वोस्थानीय उत्पादोंके साथ जुड़ेगा, जिधर उसका मन जा रहा है उसी को आगे बढ़ाएंगे और इसीलिए यह अद्भुत प्रयोग है। वहबच्चाजब स्कूल से बाहर निकलेगा तो आत्मनिर्भर हो करके निकलेगा तो वो किसी भी क्षेत्र में उसका स्किल किसी भी क्षेत्र में आगे बढ़ाएगा और उसके बाद ऊपर भी हमने जो आईआईटी, हमारे एनआईटी,आईसरहैं,उनको भी यह कहा है कि उद्योगों के साथ जुड़कर के पाठ्यक्रम बनाओ। आधा समय उसका उन उद्योगों में लगना चाहिए ताकि वो पाठ्यक्रम क्या चाहता है। उस उद्योग को जरूरत क्या है। अभी तो यहबिल्कुल खाली थी जो पाठ्यक्रम में कुछ और पढ़ाते थे और वो उद्योग कुछ और करते थे, दोनों में समन्‍वयनहीं था। प्रतिभा केअनुरूप समन्वय के अभाव में देश और उद्योग दम तोड़ते थे और प्रतिभा भी पलायन करती थी। अब इन दोनों का बेहतर समन्वय होगा। यह जो नई शिक्षा नीति आ रही है यह प्रतिभा का उसके समन्वय के साथ उस उद्योग को खड़ा करेगी और उसमें भी कोशिश करेंगें कि हम 50 प्रतिशत को जो हैं, उसका जोकाम है वो उस उद्योग के साथ जुड़कर कार्य करें। आप जो पढ़ते हैं, वो उस उद्योग को शिखर तक ले करके चला जाएगा। उसका पूराविजनवहां आजाएगा वो दोनों काम करेगा और इसलिए यह भी बहुत जरुरी था कि शिक्षा को उद्योग, शिक्षा को गांव से जोड़ना, शिक्षा को आत्‍म्‍निर्भरता से जोड़ना। हम दुनिया का पहला देश होंगे जो कृत्रिम बुद्धिमत्ता लेकर आ रहे हैं। छठवीं कक्षा से ही आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस वाला पहला देश होगा जो इस स्कूली शिक्षा से हम शुरू कर रहे हैं।मैं पूरे देश के अन्दर भ्रमणकरताहूं।मैं स्कूल में भी जाता हूं तो मैं विश्वविद्यालय के अंदर भी जाता हूं तो मैं अपने आईआईटी के अंदर भी जाता हूं तो मैंअपने आईसर के अंदर भी जाता हूं और कितनी विविधताएं हैं इस देश में।मैं यह समझता हूँ यह जो राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 आई है यहबहुतबड़े विजन के साथ आई है और निश्चित रूप में यह पूरी दुनिया में हिन्दुस्तान को ज्ञान की महाशक्ति के रूप में स्थापित करने का सामर्थ्‍यहैइसमें।इसमें हमनें कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है। कितनी खूबसूरती है और उच्च शिक्षा में सब फ्री छोड़ दिया है। कहांतक दौड़ना चाहते हो, किस विषय को लेना चाहते हो, लो ना। आप अपने मन के राजा होलेकिन राजा अपने अस्तित्व को बचाए और बनाए रखने के लिए जीवन-मरण का संघर्ष करताहै। तभी उसका अस्तित्व कायम रहता है। इसका मतलब जब आपको फ्री है, पूरा मैदान खाली छोड़ दिया है। जिस भी विषय को ले करके मेरा छात्र जाना चाहता है उसके शिखर तक पहुँचने के लिए उसको अपनाखूनपसीना बहाना पड़ेगा और फिर रिजल्ट तो जरूर देना पड़ेगा और इतना ही नहीं जहां उसको विषयों की छूट दी है, लचीलापन दिया है,वहां पर यदि वो परिस्‍थितिवश बीच में भी छोड़ करके चला जाता है मानोइंजिनियरिंग कर रहाहै या बीएससी कर रहा है या एमएससी कर रहा है औरदो ही साल में छोड़ करके जाता है तो पहलेदो साल उसके बर्बाद हो जाते थे, अब ऐसा नहीं होगा। उसका एक साल भी खराब नहींहोगा। एक साल पढ़ाई करने के बाद जाने की परिस्‍थितिउसकी है तो एक साल में उसको सर्टिफिकेट मिल जाएगा। दो साल में उसको डिप्लोमा मिल जाएगा। तीन साल में उसको डिग्री मिल जाएगी और उसको और भी सुविधादे दी है। हम एक क्रेडिट बैंक ऐसा बनाएंगे जिसमें उसका सारा क्रेडिट रहेगा और जहां से वो छोड़ करके गया दुबारा वहींसेशुरू कर सकता है। उसके लिए पूरे तरीके से छूट है। मैं यह समझता हूं कि ये बहुत खूबसूरती के साथ यह चीजें आई हैं। आपने कहा कि आयोग बनेगा तो एक ऐसी छतरी के नीचे जहांआपको दर-दर भटकना नहीं पड़ेगा। एक आयोग बनेगा, उसके साथ तीन चार काउंसिलबनेंगी। यह एक काउंसिल पाठ्यक्रम को सुनिश्चित करेगी तो दूसरे उसके क्रियान्वयन पर ध्यान देगी, तीसरा उसका प्रशासनिक नियंत्रण करेगी और चौथी उसका वित्तीय पोषण करेगी। यह चारों होंगी लेकिन एक छत के नीचे। इसकी भी खूबसूरती है जो आपने कहा कि इसमें प्राइवेट का भी किस तरीके से सहभागिता हो सकती है उस पर जब काउंसिल बनेगी तो उसमें इस पर भी विचार होगा क्योंकि हम जो सरकारी तथा गैर-सरकारीकीबात करते अभी आईओई में इधर यह चेयरमेन विश्वनाथन जी बैठे हुए। इनके संस्थान को भी अभी यह तो सरकारी नहीं है लेकिन आईओईमें इनका संस्थान भी है। दस सरकारी और दस प्राइवेट मिलकर के देश कीशिक्षा का उत्थान करना चाहते हैं और इसलिए इसमें शंका की कोई गुंजाइश नहीं है। हम मिलकर काम करेंगे और इसीलिए उच्च शिक्षा में यदि मैं यह कहूं कि यह जो शिक्षा नीतिहै, यह5आईयदि मैं बोलूं कि यह इन्डियन भी है,इन्‍टरनेशनल भी है,इंटरएक्टिव भी है, इम्पैक्ट फुल भी है और इन्क्लूसिव भी है। इसलिए मैं समझता हूँ कि यदि इस शिक्षा नीति को आप देखेंगे तो तो यह लोकल से लेकरग्लोबल तक है, जो हमारे देश के प्रधानमंत्रीजी ने कहा कि यह लोकल से ग्लोबल तक है और यदि इसमें देखेंगे तो लोकस भी है और फोकस भी है। यदि इसको देखेंगे तो टैलेंट भी होगा, उनका पेटेंट होगा। यदि टैलेंट है तो पेटेंट भी हमारा होना है तो इसके साथ टैलेंट भी होगा, पेटेंट भी होगा कंटेंट भी होगा,रिलेवेंट होगा। यदि इस शिक्षा नीति को देखें आपतो बहुत सारी खूबसूरत चीजोंको साथ लेकर की यह शिक्षा नीति आई है। इसीलिए आपने ठीक कहा कि एक समय था जब देश आंतरिक दृष्टि से खाद्यान के संकट से गुजर रहा था, देश सीमाओं पर संकट से गुजर रहा था लालबहादुर शास्त्री जी के समयमें तो उस समय लालबहादुर शास्त्री ने नारा दिया था ‘जय जवान जय किसान’। पूरा देश इकट्ठा हो गया था और इन दोनों संकटों का देश ने बहुत अच्छे तरीके से मुकाबला किया था। उसके बाद भारत रत्न अटल बिहारी बाजपेयी आए। उनके मन में आया कि नई दुनिया में हमेंहर दिशा में ताकत चाहिए। हमने किसी को छेड़ा नहीं लेकिन हमारे भीतर इतना सामर्थ्य जरूर चाहिएकि हम ताकतवर बने रहें। हम किसी को छेड़ने के लिए ताकतवर नहीं बनना चाहते। हम ताकतवर बनना चाहते हैं ताकि कोई हमको छेड़े नहींऔर इसीलिए उन्होंने कहा‘जयविज्ञान’की जरूरत है और परमाणुपरीक्षण करके उन्होंने दुनिया को यह महसूस करा दिया था कि इस देश में ताकतवर क्षमताएं हैंदेश अपने आप में खड़ाहोता है और इसीलिए जब अटलजी ने ‘जय विज्ञान’ का नारा दिया तो हमारे प्रधानमंत्री जी ने जब उनको लगा कि अब अनुसंधान की जरूरत है जिसकी मैं भी चर्चा कर रहा हूं कि आखिर सब कुछ है लेकिन अगर अनुसंधान नहीं है तो सब कुछ होते हुए भी बेकार हो जाता है या हमारी चीज को दूसरा ले करके अनुसंधानकर्ता उस शिखर को प्राप्त करता है और हम उसको पकड़ नहीं पातेहैं तो इसीलिए मैं यह समझता हूं कि जो नरेंद मोदी जी ने जो एक सूत्र दिया है ‘जयअनुसंधान’ का उस क्षेत्र में हमें तेजी से बढ़ना है । हम ‘स्‍पार्क’ के तहत दुनिया के शीर्ष 127 देशों के साथ अनुसंधान कर रहे हैं। हम स्‍ट्राइडके तहतअंतरविषयीशोधों को कर रहे हैं, हम स्टार्स के साथ हम वैज्ञानिक शोध और अनुसंधान में जुटे हुए हैं। हम इम्प्रिंट, इम्प्रेस के साथ जहां प्रौद्योगिकी वहीं सामाजिक विज्ञान इनदोनों को साथ लेकर चल रहे हैं।इस नई शिक्षा नीति में नेशनल रिसर्च फाउंडेशन की जो बात की है जिसमें देश के प्रधानमंत्री के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार की अध्यक्षता में शोध और अनुसंधान की इस संस्कृति को नई ताकत मिलेगी वो और तेजी से आगे बढ़ेगा। मैं समझता हूं जो अनुसंधान है जहां हमने नेशनल साइंस रिसर्च फाउंडेशन की बात कीवहीं हम प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भी तेजी से आगे बढना चाहते हैं इसलिए हमने तय किया है कि नेशनल एजुकेशन टेक्नोलॉजी फोरमनाम से ऐसा फोरम गठित करेंगे जहांएक राष्ट्र और एक डिजिटल प्लेटफॉर्म होगा। ‘वन नेशन वन डिजिटल प्लेटफॉर्म’ और हमने देखा है कि ‘वन क्लास, वन चैनल’ हम स्वयं, स्‍वयं प्रभा, ई-पाठशाला, दीक्षा,एनडीएल आदि तमाम क्षेत्रों में बहुत तेजी से आगे बढ रहे हैं और अब तो हमें अपनी गतिशीलता को और आगे बढ़ाना है। हम लोगों ने जहां ज्ञान, विज्ञान, अनुसंधान के क्षेत्र में बोला है वहां भाषा पर भी बोला है कि सभी भाषाओंको इस सीमा तक हम लेकर के जाएंगे कि इस देश को ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ का गौरव महसूस हो  सके। हम अनेकता में एकता वाले देश हैं और इसलिए मैं यह समझता हूंजैसाकिअभी आपने चर्चा की है कि अंतरराष्ट्रीय फलक पर क्या होगा, हम तेजी से बढ़ेंगे ना। हम स्टडी इन इंडिया अभियान को अब बहुत तेजी से बढ़ रहे हैं।मैं पीछे केदिनों लवली विश्‍वविद्यालय में एक घंटे के लिए गया था तो लगभग वहां इन्होंने पौन घंटे में अलग-अलग दस कार्यक्रम किए होंगे तो लगभग 50 देशों के बच्चे उधर दिखाई दिए। अभी तो हम लोगों ने यह शुरू किया हैअभी सतनाम जीसे मैंने पूछा तोइन्‍होंने कहा हमारे यहां भी 60 देशों के बच्चे थे। पूरी दुनिया हमारे पास आ रही है। ‘स्टडी इन इंडिया’ भारत को जानो। पूरी दुनिया के लोग बहुत बहुत तेजी से इधर आ रहे हैं। अभी हमने‘स्टे इन इंडिया’ कहा,‘स्टे इन इंडिया’ इसलिए कहा क्‍योंकि हमारे देश के साढे सात आठ लाख बच्चे बाहर जाते हैं और हमारे यहां काएक लाख से डेढ़ लाख करोड़ रूपए प्रति वर्ष बाहरजा रहा है, हमारा पैसा भी हमारी प्रतिभाभी बाहर जा रही है और इसलिए यह हमारे लिए चुनौती है। आप जैसे संस्‍थानों को खड़े होने की जरूरत है।‘स्टे इन इंडिया’ के तहत हम अपने बच्चों को भरोसा दिला सकते हैं किआपको विदेश में जाने की जरूरत नहीं है, जो आप दुनिया में पढ़ना चाहते हैं वो हमारे पास है। यह भरोसा उन लोगों को हो रहा है और तेजी से होना भी है इस भरोसे को और मैं यह समझता हूं कि यह भरोसा क्यों न हो? यह भरोसा होगा क्‍योकिइस देश के प्रधानमंत्री जी ने पीछे की दिनों जैसे अभी आप कह रहे थे कि नई शिक्षा नीति तो आई है लेकिन इसके क्रियान्वयन का क्या होगा, किस तरीके से होगा? आपको मालूम है कि अभी जब कुछ दिन पहले प्रधानमंत्री जी आप सबसे मिले थे तब उन्होंने चर्चा की थी। कुछ लोगों के मन में शंका है कि इसका क्रियान्वयन कैसेहोगा कि नीति तो बहुत अच्छी है। देश की आजादी के बाद पहली बार भारत की अपनी शिक्षा नीति आई है तो इसका लोगों में उत्साह उल्लास है। सतनाम जी ने अपने भाषण में भी कहा कि दो बार प्रधानमंत्री जी हम लोगों से जुड़े औरदोनों बार उन्होंने यह कहा कि शंका की कोई गुंजाइश नहीं है। मेरी सरकारइच्छा शक्ति की बहुत धनी है। आप लोग इसको क्रियान्वित करें मैं चट्टान की तरह आपके पीछे खड़ा हूं तो कहींदूर दूर तक कोई शंका का विषय नहीं है और यह तो देश की आधारशिला है। इसलिए 21वीं सदी का जो नया भारत जो पूरे विश्व का ऐसा भारत बनेगा उसकी आधारशिला यह शिक्षा नीति है और इसीलिए हर व्यक्ति, देश का कोने-कोने का व्यक्ति निश्चित रूप में काम करेगा। टीम इंडिया के रूप में मेरे देश के प्रधानमंत्री का ‘सबका साथ सबका विकास सबका विश्वास’ का सूत्र हैं। हम टीम इंडिया की तरह काम करेंगे, मिलकर के काम करेंगे केंद्र और राज्य मिलकर कामकरेंगे। किसको क्या दिक्कत है? क्या कोई राज्य अपने बच्चों का भविष्य नहीं बनाना चाहता? कौन राज्य होगा और वो कौन परिवार होगा, कौन मां बाप होगा जो अपने बच्चे का भविष्य अच्‍छा  नहीं  चाहता है। कौनदेश होगा जो अपनी पीढ़ी का भविष्य नहींचाहता है और यदि सब चाहते हैं तो समन्‍वयकरने के लिए हम लोग बैठे हुए है। हमारे ही जो परिवार है इसको जोड़ेंगे और मैंने एहसास किया औरइस नयी शिक्षा नीति को लेकर के आया। मेरे देश के प्रधानमंत्री जी का एक-एक मिनट हमको मार्गदर्शन मिला। मैंने इसकी खूबसूरती को निकटता से देखा। पूरा देश आज एकजुट है। पूरे देश में उत्सव का वातावरण है। अभी मुझे एक मित्र मिले उन्होंने कहा कि मैं वहां गया था तब किसी गांव के प्रधान ने कहा किनई शिक्षा नीति आ रही है,कुछ हो रहा है देश में। मेरे गांव के अंतिम छोर का व्यक्ति भी यह कह रहा है कि कुछ होने वाला है देश में, नयी शिक्षा नीति आ गई। नए भारत बनने वाला है। यह इसकी खूबसूरती है कि अंतिम छोर पर बैठने वाले व्यक्ति के मन में भी बहुत उत्सुकता  है,उल्लास है,हर्ष है, उसको भी लगता है कि कुछ होने वाला है। कुछ नया आने वाला है। यह इस शिक्षा नीति की खूबसूरती है और इसीलिए मुझे लगता है देश के सभी शिक्षा मंत्री गण से मेरी बातचीत होती है लगातार बात होती है। सभी लोग बातचीत सुनते हैं। ऐसे करके इसको लागू करें। हर हालत में लागू करना चाहते हैं और जो भी राज्य अपने को आगे बढाना चाहें तो उसे लागू करना ही करना है क्योंकि कोई भी राज्य क्यों चाहेगा कि उसकी पीढ़ीबहुत तेजी से आगे न बढ़े। इसलिए जो नई शिक्षा नीति है जिसके सन्‍दर्भ में अभी स्‍वायत्‍ताकी आपने बात की है। देश के प्रधानमंत्री चाहते हैं कि स्वायतता हो और हमने स्‍वायत्‍तादी भी है। पैंतालीस हजार से अधिक डिग्री कॉलेजों को जिनमें स्वायतता वाले हैंऔर लेकिन अभी हम चाहते हैं कि उनकी उत्कृष्टता बढे।उनको चरणबद्ध तरीके से जो जैसे जैसे सामर्थ्य में आते रहेंगे वैसे-वैसे उनकी स्वायतता भी बनती चली जाएगी। कुछ लोग कहते हैं स्वायत्तता का मतलब यह है कि मनमर्जी हो सकती है स्वायत्तता को लेकर जो विजन है, जो रास्ता, जो सूत्र है, उसके साथ आगे बढ़ेंगे क्योंकि स्वायतता में उत्तरदायित्व और पारदर्शिता भी बराबर होती है और हम चौकस हैं इस दिशा में हमको कोई कन्फ्यूजन नहीं है। इसीलिए मैं यह समझता हूं कि देश के विश्वविद्यालय देश के विश्वविद्यालयों में पीछे की समय में एक विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में गया तो मैंने कहा कि कितने कॉलेजों से जुड़े हैं?तब पता चला कि इस विश्वविद्यालय से आठ सौ कॉलेज जुड़े हैं। मैंने कहा कि यह आठ सौ कॉलेजों के साथ न्‍याय नहीं होगा,यहां  के कुलपति को 800 कॉलेजों को प्रिंसिपल का नाम क्या पांच सौ दो सौ कभी याद नहीं होगा तो न्याय कैसे हो सकता है। इसकी गुणवत्ता कैसे बढ़ सकती है। इसकी सक्रियता और समानता कैसे रह सकती है और इसीलिए हम लोगों ने इस शिक्षा नीति में कहा है कि क्रमबद्ध तरीके से एक विश्वविद्यालय 300 से अधिक संबद्धता नहीं रख सकता है। इसका मतलबविश्वविद्यालय बढ़ेंगे और जो डिग्री कॉलेज हैं वो भीविश्वविद्यालय की श्रेणी में आएंगे तो मैं समझता हूं कि यदि आप किसी कोने से भी शिक्षा नीति को देखेंगे तो हर कोने पर आपको ऐसा नजर आएगा कि यह आपके लिए बहुत अच्छे तरीके से और अभी जैसे मैं देख रहा था कि सतनाम जी आपने नीति केलचीलापन और बहुभाषीय तथाबहुविषय के बारे में जो कहा है कि उत्तरदायित्व और उत्तरदायी कैसे ले सकते हैं। मुझे लगता है कि आपने जो आत्मनिर्भर भारत की बात की है और मैंने उन बिन्दुओं को आपके साथ जोड़ा है कि वोकेशनल में कैसे करके आप लोग कर सकते हैं।आपको मालूम है कि जो शिक्षा नीति है उससे पहले हमने कुछ चीजों को शुरू किया। आईआईटी का कितनाखुबसुरत पीपीपी मोड है जिसमें 50 प्रतिशत केंद्र सरकार देती है 35 प्रतिशत राज्‍य सरकार देती है और 15 प्रतिशत उद्योग लगाता है और इतनी अच्‍छी मेरी ट्रिपलआईटी चल रहे हैं,बहुत अच्छे तरीके से चल रहे हैं। मुझे लगता कि रिफॉर्म भी करना है, परफॉर्म भी करना है।ज्ञान की शक्ति कोबढ़ाना है।हम बिल्‍कुल तैयार हैं और पूरी टीम इंडिया के तहत जब हम लोग बढना चाहेंगे काम करना चाहेंगे तो क्यों नहीं होगा। मैं समझता हूं कि जो आपने इन बिन्‍दुओं को कहा है और जीईआर बढ़ाने की भी आपने आज चर्चा की है, आप उसदिशा में निश्चित रूप में हम लोगों ने यह तय किया है किहम 50 प्रतिशत तक ले करके जाएंगे। अभी आपने क्रियान्वन के लिए जो प्रयास की बात की है सतनाम जी और हम उसके लिए कमेटियों का गठन कर रहे हैं। जिस तरीके से अभी हमने नीति बनाने के लिए लोगों से आवेदन किया, सुझाव मांगे हैं। अभी हम लोग उसका भी सुझाव मांग रहे कि आप बतायें। बिन्दुवार बताएं कि क्रियान्वयन में किस तरीके से हो सकता है। अभी कमेटी बनाई है, टास्कफोर्स भी बना दिया है। शिक्षाविदों से भी जो उच्च शिक्षा के क्षेत्र में काम कर  रहे हैं उनसे हम लगातार अनुरोध भी कर रहे हैं कि अब बताएं उनके मन में क्या है कि किस तरीके से इसका क्रियान्वन होना है, लेकिन उसके गंभीर प्रयास शुरू हो गए हैं। आप लोगों के साथ जैसे आपने कहा कि जो प्राइवेट संस्‍थानहैंवो भीयदि लीडरशिप के साथ इसका क्रियान्वन करेगा हमारे दिमाग में हैं और हम उन संस्थाओं का अभिनंदन करेंगे। जो संस्थान इसकोकरने के लिए आगे आएंगे पूरी ताकत के साथ उसके साथ चट्टान की तरह खड़े होकर उसको क्रियान्वित करेंगे। उद्योगों कोमैंने कह दिया कि जो उद्योग हैं उसके समन्‍वय की जरूरत हमने शुरू से महसूस की है और उसको भी आगे ले जाने कीसमय सीमा कोहमने तय किया है हमने चरणबद्ध तरीके से किया है कुछ तो हमने अभी शुरू कर दिया है औरकुछ को हम प्रशासनिक शासनादेशों के तहत करेंगे। जो अर्थ से संबंधितहै वो तीनों चरणों में राज्यों के साथ विमर्श करके लेकिन निश्चित समय के अंदर करेंगे यह तय है। मुझे लगता है कि सतनाम जी जो तीन-चार विषय आपने कहे हैं उसेपूरी ताकत के साथ हमलोग उसको क्रियान्वित करने और आपके साथ समन्वय भी करेंगे। मुझे लगता है कि आपके मन में कभी शंका होजाती है, आपने कहा कि बहुत सारी नीतियां बनती हैं लेकिन मुझे भी मालूम है कि बहुत सारी नीतियां बनती हैं लेकिन लागू नहीं होती हैं। अभी आपके मन में क्यों शंकाएं हैंकि जो नीति बनी हैवो लागू नहीं होगी। इन नीति लागू होने के लिए ही बनी है, यह पैदा ही इसलिए हुई है। फिर मैंने कहाकिदेश के प्रधानमंत्रीजी ने कहा है कि हम इच्छा शक्ति के धनी हैंइसीलिए तो देश की आजादी के बाद से यह महत्‍वपूर्ण शिक्षा नीति लाई है। हमें इस देश की शिक्षा व्यवस्था को विश्व स्तर का बनाने के लिए सभी लोगों को मिलकर करके करना है और यह दो-तीन जो सुझाव थेमैंने बीच-बीच में आपसेऔर चर्चा के दौरान भी उन पर बात की है लेकिन अब बहुत ताकत के साथ इस शिक्षा नीति को हम क्रियान्वित भी करेंगे। डॉक्टर चतुर्वेदी साहब ने मुझे लगता है वो बहुत आशावादी है मुझे अच्छा लगा। जो भी उन्होंने चर्चाएं की है वो बहुत अच्छे तरीके से उन्होंने अपनी बातों को कहा है, कलाम साहब ने यदि इसकी स्थापना की तो मैं समझता हूं कि बहुत ही पवित्र मन से इस संस्‍था की उन्होंने स्थापना की होगी। जितना मुझे कलाम साहब के निकट रहने का मौका मिला है। मुझे याद आता है जब मैं पहली बार उनसेमिला था तो उन्होंने कहा कि मैंने सुना है कि आपकी 1983से देश के आकाशवाणी केन्द्रों पर गीत आते  हैं देशभक्ति के।देशभक्ति के जो गीत आपने समय-समय पर लिखा वे एक जगह क्यों नहीं आ सकते?उन्होंने मुझे कहाएक जगह करिये और मैंने उनके आदेश पर उन गीतों को एक जगह किया फिर उन्होंने कहा कि हम उनको राष्टपति भवनमें गुनगुनाएंगे और ‘ए वतन तेरे लिए’ जो देशभक्ति के गीत थे उस संग्रह को उनके हाथों से लोकार्पित करवाया। आप सोच नहीं सकते कि कलाम जैसा विश्वविख्यात वैज्ञानिक,जितनेसंवेदनशील व्यक्ति के एक छोटी सी कविता को गुनगुनाते हुए उनकीआँखों से आँसू आते हुए मैंने देखे,वह छोटी सी कविता थी:-

 

अभी भी है जंग जारी, वेदना सोयी नहीं है

मनुजता होगी धरा पर, संवेदना खोयी नहीं है

किया है बलिदान जीवन, निर्बलता ढोयी नहीं है,

कह रहा हूं ऐ वतन तुझसे बड़ा कोई नहीं है।

 

यह जो अंतिम पंक्‍ति है इसको उन्‍होंने 4-5 बार गुनगुनाया और उनकी आंखों से आंसु टपकने शुरू हो गये। उस दिन मैंने देखा कि देशभक्‍ति का जो सागर उमड़ रहा था उनके ह्रदय में उसका मैंने साक्षात दर्शन किया। तो ऐसे व्‍यक्‍तित्‍व ने कुछ न कुछ सोचकर इसकी स्‍थापना की है। मेरी शुभकामनाएं कि ऐसी संस्‍था से जुड़े रहने वाले पवित्र लोग निश्‍चित रूप में बहुत तेजी से आगे बढ़ेगें। एक फिर मैं आप सभी को बहुत-बहुत शुभकामनाएं देना चाहता हूं।

 

बहुत-बहुत धन्‍यवाद!

 

कार्यक्रम में गरिमामयी उपस्‍थिति:-

  1. डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’, माननीय शिक्षा मंत्री, भारत सरकार
  2. सरदार सतनाम सिंह संधु, कुलाधिपति, चंडीगढ़ विश्‍वविद्यालय
  3. श्री अशोक मित्‍तल, कुलपति, लवली प्रोफेशनल विश्‍वविद्यालय, जालंधर
  4. सरदार जगजीत सिंह, अध्‍यक्ष, जेसीए
  5. डॉ. एच. चतुर्वेदी, निदेशक, विमटैक

केन्‍द्रीय विद्यालय आईजीएनटीयू, अमरकंटक (मध्‍य प्रदेश) के नवनिर्मित भवन का उद्घाटन

केन्‍द्रीय विद्यालय आईजीएनटीयू, अमरकंटक (मध्‍य प्रदेश) के नवनिर्मित भवन का उद्घाटन

 

दिनांक: 26 अगस्‍त, 2020

 

 

 

माननीय शिक्षा मंत्री, डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’

 

आज के इस कार्यक्रम में उपस्‍थित मेरे अनन्‍य सहयोगी और भारत सरकार में शिक्षा राज्‍य मंत्री आदरणीय श्री संजय धोत्रे जी, हमारे इस कार्यक्रम में जुड़ी इस क्षेत्र की बहुत ही लोकप्रिय और जुझारू सांसद श्रीमती हिमाद्री सिंह जी, विधायक श्री सुन्‍दर लाल जी, इस विश्‍वविद्यालय के यशस्‍वी कुलाधिपति डॉ. मुकुल साह जी, केंद्रीय विश्‍वविद्यालय के बहुत ही प्रखर और विद्वान कुलपति प्रो. प्रकाशमणि त्रिपाठी जी, इस परिसर के डीन प्रो. अनुप जी, केंद्रीय विद्यालय के प्रधानाचार्य नितिश कुमार जी, आज बहुत अच्‍छा संयोग है कि केंद्रीय विश्‍वविद्यालय और केंद्रीय विद्यालय इन दोनों के सभी आचार्यगण, शिक्षकगण और सभी छात्र-छात्राएं, अभिभावकगण, दूर-दूर से जुड़े जनप्रतिनिधिगण और विभिन्‍न हमारे प्रशासनिक अधिकारी। आज जो केंद्रीय विद्यालय के नवनिर्मित भवन का लोकार्पण हो रहा है इस अवसर पर जो सभी लोग एकत्रित हुए हैं, केंद्रीय विश्‍वविद्यालय संगठन के आयुक्‍त, इस केन्‍द्रीय विद्यालय के प्रधानाचार्य उनकोबहुत सारी बधाई देता हूं कि उनको एक बहुत अच्‍छा परिवेश मिला है, परिसर मिला है अपनी गतिविधियों को और शैक्षणिक गतिविधियों को बढ़ाने के लिए खूबसूरत भवन आज स्‍थापित हुआ है जहां केंद्रीय विद्यालय इसके लिए बधाई का पात्र है वहींकेंद्रीयविश्‍वविद्यालय जिसके परिसर में बच्‍चे पढ़ने के लिए आएंगे आप ऐसे बच्‍चों को तैयार करेंगे जो आपकेलिए बहुत बड़ी निधि होगी, आपके लिए बहुत बड़ी उपलब्‍धि होगी, मैं कुलपति जी को, कुलाधिपति जी को उनके परिवार को बधाई देना चाहता हूं। मैं समझता हूं कि शिक्षा पर, नई शिक्षा नीति पर जो हमारे कुलपति जी ने, हमारे कुलाधिपति जी ने प्रकाश डाला है। बच्‍चों, मैं सोचता हूं जब मैं आपसे बात करता हूं आप सबको मालूम है कि हमारा देश भारतपूरीदुनिया में विश्‍वगुरू रहा है और ऐसा विश्‍वगुरू रहा है जिसने ज्ञान,विज्ञान, अनुसंधान, नवाचार के क्षेत्र में पूरी दुनिया को लीडरशिप दी है बीच में कुछ परिस्‍थितियां आई हैं जिसके कारण हमें गुलामी की जंजीरों में जकड़े रहना पड़ा और सदियों की गुलामी के बाद फिर हम स्‍वाधीन हुए हैं और आज फिर पूरी दुनिया उस गौरवशाली भारत की ओर देख रही है।हम एक योद्धा की तरह खड़े होकर ज्ञान, विज्ञान, अनुसंधान और नवाचार की दिशा में आगे बढ़ने की मंशा रखते हैं। इसलिए मैं आपको शुभकामना देना चाहता हूं कि इस समय देश में जो परिवेश है वो बहुतअच्‍छा परिवेश है, पूरीदुनिया की नजरेा हम पर टिकी हैं। मेरे देश के प्रधानमंत्री जी ने जिस ‘नए भारत’ के निर्माणकी बात की है, आप सभी उस अभियान से जुड़े हैं। जब प्रधानमंत्री जी ने‘स्‍वच्‍छ भारत अभियान’ शुरू किया था तो स्‍कूली शिक्षा के छात्र-छात्राएं उसके ब्रांड अम्‍बेस्‍डर बने थे, जिन्‍होंने उसको अभियान के रूप में लिया जो कि सारी दुनिया में एक बहुत बड़ा अभियान रहा। स्‍वच्‍छ भारत का तात्‍पर्य केवल गंदगी को हटाना नहीं है, स्‍वच्‍छता परिसर की भी होनी चाहिए, स्‍वच्‍छता मन की भी होनी चाहिए,स्‍वच्‍छता विचारों की भी होनी चाहिए क्‍योंकि जहां स्‍वच्‍छता होती है वहीं पवित्रता होती है। जहां पवित्रता होती है, वहीं विचार आता है, जहां विचार आता है वही प्रगति का कारण बनता है और इसलिए हमने यह स्‍वच्‍छ भारत अभियान लिया। देश के प्रधानमंत्री जी ने कहा कि ऐसा भारत चाहिए जो स्‍वच्‍छ हो, स्‍वस्‍थ हो, सशक्‍त हो। एक बीमार मन, बीमार व्‍यक्‍ति कभी किसी को आगे नहीं बढ़ा सकता, उन्‍नति के  शिखर पर नहीं पहुंचा सकता और इसलिए जहांस्वच्छ भारत हो, वहीं स्वस्थ भारत हो, सशक्त भारत भी हो, एक आदमी हष्‍ट-पुष्‍ट है लेकिन ताकतवर नहीं है,ताकत केवल शरीर की नहीं होती,ताकत विचारों की भी होती है और इसीलिए जो सशक्त होना चाहिए वहीं ताकतवर भी होना चाहिए और समृद्ध भीहोना चाहिए। मेरे देश को सोने की चिड़िया कहा जाताथा, विश्वगुरु कहा जाताथा,जहां एक ओर धन धान्य से संपन्न इस देश को सोने की चिड़िया कहा जाता था तभी तो कहा गया कि‘यूनान मिस्र, रोमां सब मिट गये जहां से, अब तक मगर है बाकी नामो निशां हमारा’ और वो जो तीसरी और चौथी बात है वो हमारा संस्कार है, हमारी संस्कृति है। इसलिए देश के प्रधामंत्री जी ने कहा स्वच्छ भारत, स्वस्थ भारत,समृद्ध भारत,आत्मनिर्भर भारत, श्रेष्ठ भारत और एक भारत। श्रेष्ठ भारत चाहिए वो श्रेष्ठ भारत जिसकी गरिमा, जिसकी आभा पूरी दुनिया को आलोकित करती हो ऐसा भारत चाहिए और ऐसा भारत बनाने के लिए हम सब लोग मन से, तन से और अपने विजन से समर्पित होकर उस दिशा में दौड़ रहे हैं। मुझे लगता है इससे बड़ा सौभाग्य क्या मिलेगा कि‘मेक इन इंडिया’,‘डिजिटल इंडिया’,‘स्किल इंडिया’,‘स्टार्ट अप इंडिया’और‘स्‍टैंड अप इंडिया’जैसे सूत्र हमें मिल रहे हैं वहीं आत्मनिर्भर भारत केभीतमाम सूत्र मिल रहे हैं जिससे यह देश फिर आत्मनिर्भर होकर पूरे विश्व को बता सकेगा कि भारत फिर उन्हीं ऊंचाईयों को स्‍पर्श करेगा और इसीलिए यह जो नई शिक्षा नीति आयी है जो राष्‍ट्रीयशिक्षा नीति 2020 है जिसका मंत्री जी ने भी जिक्र किया है, यह बहुत अद्भुत है। देश में पहली बार ऐसा माहौल हो रहा है,देश के अंदर उत्सव का वातावरण है। छात्र भी खुश हैं,अभिभावक भी खुश है, अध्यापकभी खुश है क्योंकि शिक्षा किसी भी व्यक्ति की, परिवार की, समाज की,राष्‍ट्र की रीढ की हड्डी होती है यदि वो मजबूत नही है तो वो व्यक्ति कभी खड़ा नहीं हो सकता, व्यक्ति खड़ा नहीं होगा तो परिवार खड़ा नहीं हो सकता, परिवार सशक्त नहीं होगा तो फिर कैसे समाज और राष्ट्र खड़ा हो जाएगा। इसलिए किसी भी राष्ट्र की पहली धुरी है उसका व्यक्ति, उसका व्यक्ति सशक्त होना चाहिए,वह हर दिशा में सशक्त होना चाहिए। मेरे छात्र-छात्राओं आपको मालूम है कि हम भारतवासी पूरे विश्व को अपना परिवार मानते हैं । हम हमेशा कहते हैं कि‘अयं निज: परो वेति गणना लघु चेतसाम् उदारचरितांना वसुधैव कुटुम्बकम’ पूरी दुनिया कोहम अपना परिवार मानते हैं। हम हमेशाकहते हैं कि‘सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया सर्वे भद्राणी पश्‍यन्‍तु मां कश्‍चित् दुख: भाग भवेत’ जब तक इस धरती पर एक भी इंसान, एक प्राणी भी दुखी होगा तब तक में सुख का अहसास नहीं कर सकता।मैं एक योद्धा की तरह मनुष्‍य पर आने वाले हर संकट का मुकाबला कर सकता हूं, मैं मनुष्य पर आने वाली हर त्रासदी को हर सकता हूं। यह है हमारा विजन, यही हमारा मिशन है और इसलिए जोयह नयी शिक्षा नीति है यहभारत के मानवीय मूल्यों कीआधारशिला पर खड़े हो करके आई है।इसकीसुगंध पूरी दुनिया में जा रही है। दुनिया केतमाम देश भी यह कहरहे हैं कि हमको भी भारत जैसी शिक्षा नीति की ज़रूरत है। इससे ज्यादा सुखद बात क्‍या हो सकती है। हम तमाम परिवर्तन के साथ इस नई शिक्षा नीति को लाए हैं। आप सबको मालूम है, चाहे स्कूली शिक्षा हो, बच्चों को भी खूब मजा आएगा जब उनको लगेगा कि वोस्वयं अपना मूल्यांकन कर सकेंगे, अध्यापक भी मूल्यांकन करेगा, अभिभावक भी मूल्‍यांकनकरेगा और उसका साथी भी उसका मूल्‍यांकन कर सकेगा। पूरी पारदर्शिता के साथ मूल्यांकन होगा जब उसको लग सकेगा कि उसमें कोई कमी नहीं है। जब व्यक्ति अपना मूल्यांकन स्‍वयंकरता है तो बहुत सारी चीजों पर वो अंदर से झांकता हैकिक्या मूल्यांकन करूं? फिर दूसरी बात मुझे अपने नंबर स्‍वयं देने हैं तो मुझे क्या-क्या करना है, क्या करना चाहिए, यहहैइसकी ताकत और इतना ही नहीं भारतदुनिया में पहला देश होगा जो कृत्रिम बुद्धिमत्ता छठवी से शुरू करेगा,स्‍कूली शिक्षा से शुरू करेगा।हमारा देश दुनिया का पहला देश होगा जहां हमछठवीं कक्षा से ही वोकेशनलशुरू करेंगे,जहांशैक्षणिक गतिविधियां होंगी, वही शिक्षणेत्तर गतिविधियां भी होंगी और वहीं वोकेशनल गतिविधियां भी होंगी और इसको हम इंटर्नशिप के साथ लाएंगे।ऐसानहीं है कि केवल किताब पढ़कर के करेंगे, पढ़ाई के साथ बच्‍चे को अन्‍य गतिविधियों में भी शामिल करेंगे। अभी जो जनजातीयविश्वविद्यालय इस समय यहां पर है। मैं अभी देख रहा था कि इस क्षेत्र में बहुत सारी ऐसी जनजातिहैं,यह जो क्षेत्र है यहा बहुत दुर्लभ वनस्पतियां हैं और जैसाकि अभी हमारे मंत्री जी ने कहा कि विध्‍यं और सतपुड़ा की संधि पर यह स्थल मैकल पर्वत श्रृंखला से घिरा है जोखूबसूरत है और इसीलिए हमाराजोजड़ी बूटियों का भंडार है वो भी हमारे लिए वरदान साबित हो सकता है। किस तरीके से वरदान साबित होंगी? जो पहले के हमारे वैज्ञानिक थे, जो ऋषि-मुनि थे अभी जब विश्‍वविद्यालयका कुल गीत गाया जा रहा था,तो ऋषि मुनियों को याद करके अभियान आगे बढ़ाया जा रहा था। हम सब को पता है, पूरी दुनिया को पता है कि जो आयु का विज्ञान  है वह आयुर्वेद है। हमारेपाससंजीवनी बूटी रही है और उन पर शोध करनेकी जरूरत है। हमारा जो पुराना वैभव है सुश्रुत शल्य चिकित्सा का जनक जिस धरती पर पैदा होता है आपको मालूम है कि चाहे वो भास्कराचार्य हों, चाहे आर्यभट्ट हों,चाहे वराहमिहीरहों तमाम ऐसे-ऐसे आचार्य रहे हैं, चाहे आचार्य कणाद हों,ऐसे-ऐसे वैज्ञानिकहमारी धरती पर पैदा हुए। आज जरूरत है कि जो पीछे का हमारा ज्ञान है उसको पकड़ के अनुसंधान के क्षेत्र में, नवाचार के क्षेत्र में हमको आगे बढ़ना है और यह नई शिक्षा नीति उस क्षेत्र मेंसबकोआगे बढ़ाने के लिए हीहै। उच्च शिक्षा में छात्र आज बहुत खुश है उसको लगता है उस पर कोई पाबंदी नही है कि इस विषय कोलो, उस विषय को लो,कोई भी विषय ले सकता है। वो गणित के साथ विज्ञान, विज्ञान के साथ संगीत, संगीत के साथ दूसरा विषय,कोई भी विषय, कुछ भी विषय ले सकता है। वो अपने मन का राजा है लेकिन राजा ताकतवर होता है, मेहनती होता है। वो अपने अस्तित्व को कायम रखने के लिए अपने जीवन और मरण के सवालों से गुजरता है और इसीलिए जब भी आप अपने विषयों का चयन करेंगे उस विषय में आप कोमहारथ होना चाहिए। आपको छूट है बताओ किस क्षेत्र में जाना चाहते हैं और केवलविषय लेने की ही छूट नहीं है बल्‍किइस शिक्षा नीति के अंतर्गत यदि कोई 4 वर्ष का कोर्स है और यदि कोई छात्र दो साल में हीपरिस्‍थितिवशछोड़के जा रहा है  तो पहले उसका पैसा एवं वर्ष खराब हो जाते थे लेकिन अब उसकोनिराश नहीं होना पड़ेगा,यदि आप परिस्‍थितिवश एक वर्षमें छोड़ कर जा रहे हैं तो उसको सर्टिफिकेटदेंगे,दो साल में छोड़ कर जा रहा है तो डिप्लोमा देगें, तीन साल में छोड़ेकर जा रहा है तो उसकोडिग्री देंगे लेकिन यदि फिर वह लौट कर अपने भविष्य को संवारना चाहता है तो फिर जहां से उसने छोड़ा था वहीं से शुरू कर सकता है। उसके लिए हम एक ऐसा क्रेडिट बैंक बनायेंगे जहां उसके सारे क्रेडिट जमा होंगेइसलिए उसके लिए आगे बहुत आपार संभावनाएं है।वह कहां जाना चाहता है, शोध और अनुसंधान के क्षेत्र में जाना चाहता हैऔर इसलिए इस उच्च शिक्षा नीति में हम लोग बहुत सारे परिवर्तन को लेकर आए हैं। हमको अनुसंधान की जरूरत है। आप सबको मालूम होगा कि एक वक्त ऐसा था देश लालबहादुर शास्त्री देश के प्रधानमंत्री थे उस समय देश सीमाओं के संकट से जूझ रहा था, सीमाओं पर संकट था और देश के अंदर खाद्यान्‍न की बहुत परेशानी थी दोनों संकटों से देश गुजर रहा था। ऐसे वक्‍त पर हमारे देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री ने ‘जय जवान जय किसान’ का नारा देकर पूरे देश को एकजुटकर दिया था। पूरे देश नेएकजुट होकर इन दोनों संकटों का मुकाबला किया थाऔर उसके बाद भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी ऐसा योद्धा जिसको पूरी दुनिया मानती है, जानती है और महसूस करती है किजबभारत रत्न अटल बिहारी बाजपेयी जी भारत के प्रधानमंत्री बने तब उनको महसूस हुआ कि विज्ञान को और तेजी से बढ़ाने जरूरत है और उन्‍होंने‘जय विज्ञान’ का नारा दिया था और ‘जय विज्ञान’ का नारा देकर परमाणु परीक्षण करकेउन्‍होंने हिंदुस्तान को दुनिया में महाशक्ति के रूप में स्‍थापित किया था तो विज्ञान के क्षेत्र में हम तेजी से आगे बढ़ रहे हैंऔर अब जो वर्तमान में हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी हैं उनके मन में आया कि अबअनुसंधान की जरूरत है,हमारा अतीत गौरवशाली रहा है, उस अतीत की जो चीजें हैं उस पर अनुसंधान और नवाचार के साथ विश्व फलक पर ले जाने की हमारी अगली चुनौती है इसलिए  उन्‍होंने ‘जयअनुसंधान’ का नारा दिया हम अनुसंधान करेंगे, हम शोध करेंगे इसलिएशोधकी प्रकृति और शोधकी संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए हम देश के अंदर ‘नेशनल रिसर्च फाउंडेशन’ की स्थापना कररहे हैं क्योकि जब भी मैंबड़े संस्थानों की समीक्षा करता हूं तब मुझकोलगता है कि इंटरनेशनल स्तर पर हम कहांपीछे रह रहे हैं ऐसी स्‍थिति मेंतोमुझे लगता है कि हां अभी हमारा शोध और अनुसंधान के क्षेत्र में, पेटेंट के क्षेत्र में हमारा इतना काम नहीं हुआहै। मैं यहांके यशस्‍वी कुलपति जीको आग्रह करूंगा कि उसपर बहुत ध्यान दें और शोध और अनुसंधान की दिशा में छात्रों को आगे बढ़ाएं। वैसे भी हम ‘स्‍पार्क’के तहत दुनिया के 127देशोंके शीर्ष विश्वविद्यालयों के साथ शोध एवंअनुसंधान कर रहे हैं। हम‘स्‍ट्राइड’के तहत अंतर-विषयी शोध कर रहे हैं। हम ‘स्टार्स’ के तहत वैज्ञानिक क्षेत्र में शोध कर रहे हैं।हम ‘इम्‍प्रैस’ और‘इम्‍प्रिंट’ के साथ प्रौद्योगिकी,सामाजिक विज्ञान के क्षेत्र में शोध कर रहे हैं। अब अवसर आ गया है किहमको अनुसंधान के क्षेत्र में बहुत तेजी से दौड़ना है,भागना है और पूरे विश्व के शिखर पर जा करके यह साबित करना है कि हममें क्षमताएं हैं,हममें विजन भी है और उस विजन को क्रियान्वित करने का हममें मिशन भी है। इसलिए मैं समझता हूं यहबहुतअच्छा अवसर है। प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हर जगह हम उसका उपयोग करना चाहते हैं।इसलिएआपको मालूम होगा कि इस नई शिक्षा नीति में हम ‘नेशनलटेक्नोलॉजी फोरम’ ला रहे हैं। हम‘वन नेशन वन डिजिटल प्लेटफार्म’ और ‘वन क्लास वन चैनल’ यह दोनों पहलकर रहे हैं क्योंकि हम जो ऑनलाइन शिक्षा प्रदानकर रहे रहे हैं उससेअंतिम छोर का बच्चा भीशिक्षा से वंचित न रहे जिसके पास स्मार्ट टेलीफोन नहीं है, जिसके पास नेटकी सुविधा नहीं है वह हमारा टारगेट है वो इससेदूर नहीं रहनाचाहिए। इसके लिए भी हमनेजहां‘स्‍वयं’  है, वहीं ‘स्वयं प्रभा’ के32चैनलों पर हम काम कर रहे हैं जो चौबीसों घंटे चलेंगे जोकि डिश टीवी, रिलायंस टीवी,टाटा स्‍काई दूरदर्शन आदि पर प्रसारित होंगे। हम सामुदायिक रेडियो के द्वारा भीजाएंगे क्‍योंकि हमारा टारगेट उस अंतिम बच्चे को भी पकड़ना है और आपको मालूम है कि इस देश का कितना बड़ा वैभवहै।हिन्‍दुस्‍तान दुनिया में सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देशहै।यहांएक हजार से भी अधिक विश्वविद्यालय हैं, पैंतालीस हजार से भी अधिक डिग्री कॉलेजहैं और 55 लाख से भी अधिक स्कूल हैं, एक करोड़ नौ लाख से भी अधिक अध्यापक हैं और अमेरिका की कुल जितनी जनसंख्या नहीं है उससे भी अधिक 33 करोड़ छात्र-छात्राएं हैं और आगे आने वाले 25 वर्षों में यह देश यंग इंडिया रहने वाला है। मेरे छात्र-छात्राओं! आपके लिए पूरा मैदान खाली है आप कहां तक दौड़ सकते हैं। पूरी दुनिया आपको निहार रही है हर क्षेत्र में आपको महारत हासिल करनी है। ज्ञान में भी, विज्ञान में भी, शोध में भी अनुसंधान में भी, नवाचार में भी, प्रौद्योगिकी में भी हमको छलांग मारनीहै और मुझे भरोसा है कि मेरे सारे केंद्रीय विश्वविद्यालय इस दिशा में बहुत अच्छा काम कर रहे हैं और जिस केन्‍द्रीय विद्यालय के भवन का आज लोकार्पण हुआ है, जो नई कमिश्नर यहां पर आई हुयी हैंजब वह  मुझसे मिलने के लिए आई थी तो मैंने निधि से कहा कि ऐसा सौभाग्य बहुत कम लोगों को मिलता है कि कोई केन्द्रीय विद्यालय का कमिश्नर बन करके ऐसे जो हमारे हीरे हैं इनके बीच सुशोभित होमैं जब भी केन्द्रीय विद्यालयों में जाता हूं मेरा माथा ऊँचा होता है। मेरे बच्चे इतने प्रखर, संस्कारी, अनुशासित हैं। केन्द्रीयविद्यालय देश के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि है। इसीलिए आज केन्द्रीय विद्यालय का यहां पर उद्घाटन हो रहा है। मैं इसके प्राचार्य को धन्यवाद देना चाहता हूं, बधाई देना चाहता हूँ। मुझे भरोसा है कि केन्द्रीय विद्यालय जो यहाँ जनजाति का क्षेत्र है वहां पर जिस तरीके से हम लोग वोकेशनल एजुकेशन छठी से शुरू कर रहे हैं और जो परंपरा की बात हमने विश्‍वविद्यालय से लेकर के जो स्कूली शिक्षा तक कीहै जो हमारी धरोहर रही हैं जो हमारी सम्पदा है उसमें शोध अनुसंधान कैसे हो सकता है, वो आत्मनिर्भर भारत की धुरी कैसे बन सकता है, इसकी जरूरत है और इसलिए मुझे भरोसा है कि यहां से निकलने वाला मेरा छात्र पूरे देश के लिए एक ऐसे हीरे की तरह लोगों के आकर्षण का केन्द्र बन सकता है उस देश के लिए एक विजनवाला छात्र कैसे हो सकता है। मेरे केन्‍द्रीय विश्‍वविद्यालय होंऔर चाहे मेरा केन्द्रीय विद्यालय है और मुझे भरोसा है कि आज जिस भवन का उद्घाटन हो रहा है मैं उनके अभिभावकों को बहुत बधाई देना चाहता हूँ जो बहुतअच्छे तरीके से अपने बच्चों को केंद्रीय विद्यालयों में प्रवेश करा रहे हैं। मेरा बच्चा अगरकेन्द्रीय विद्यालय में चला गया तोवहहीरा बन जायेगा और बन भी रहा है। मैं आपको कहना चाहता हूँ आपसे बहुत अपेक्षाएँ होती हैं। आपसे आपके मां बाप की अपेक्षाएं बहुत हैं। आपसे आपके प्रदेश की अपेक्षाएं बहुत हैं। आपसे मेरे देशकी अपेक्षाएं बहुत हैं। आपको हीरा बनना है वो खुशबू बिखेरनी है दुनियामें जब पूरा देश आप पर गर्व कर सकेगा।जब दुनियाभी आप पर गर्व कर सकेगी और वो दिन दूर नहीं सारी दुनिया आज हिन्दुस्तान की ओर निहार रही है। हमारे देश के यशस्‍वी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी की अगुवाई में जिस तरीके से चौतरफा,जैसाकिअभी कुलपति कह रहे थे कि चाहे ‘सबका साथ सबका विकास’ हो और चाहे वो ‘आत्मनिर्भर भारत’ की बात हो और चाहे ‘वो मेक इन इंडिया’ की बात हो चाहे ‘स्‍किलइंडिया’ की बात हो हरक्षेत्र में भारत लीडरशिप ले रहा है और इसीलिए यह हमारे लिए बहुत अच्छा क्षण है और मैं शुभकामना देना चाहता हूं आप बधाई के पात्र हैं। इसराष्ट्रीय जनजाति विश्वविद्यालय कीअलग पहचान होनी चाहिए। इस क्षेत्र की जो सम्‍पदाएं हैं, जो कलाएं हैं, जो परंपराएं हैं हमउन परम्पराओं, कला, विचार,कौशल को कैसे विकसित कर सकते हैं। यहजो हमारे छात्र हैं, उसी के हाथों उनका कौशल विकास होते होते यह भारत आत्म निर्भर किस तरीके से बन सकता है, इसके लिए भी मैं आपको शुभकामना देना चाहता हूँ। मुझे भरोसा है कि आप इस मिशन में सफल होंगे। केन्द्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति जी और आदरणीय कुलाधिपति जी, मैं देख रहा था कि कुलाधिपति जी भी जीवनभरशिक्षा के लिए समर्पित रहे हैं और अब अमरकंटक जैसे विश्वविद्यालय में वो कुलाधिपति होकर आये हैं। निश्चित रूप से कुलाधिपति जी के मार्गदर्शन में कुलपति एक योद्धा की तरह अपनी पूरी टीम को साथ ले करके इस विश्वविद्यालय को शिखर तक पहुंचाएंगे, ऐसा मेरा भरोसा है क्योंकि प्रकाश जी कोभी मैं जानता हूं, मेहनती है,विजनरी हैं सबको साथ लेकर चलने की हिम्मत रखते हैं, विजन रखते हैं,मिशन रखते हैं और इसलिए मुझे कोई शंका नहीं है कि मेरा यहजोविश्वविद्यालय है बहुत तेजी से आगे बढ़ेगा। यह अपनीसफलता के शिखर को चुमेगा। देश के अंदर केन्द्रीय विश्वविद्यालयों में एक अलग स्थान बनाएगा। मैं पूरी फैकल्टी को, कर्मचारियों को, छात्रों को, छात्राओं को और पूरे विश्वविद्यालयपरिवार और केन्‍द्रीय विद्यालय परिवार को बहुत बधाई देता हूं।

 

बहुत-बहुत धन्‍यवाद!

 

 

कार्यक्रम में गरीमामयी उपस्‍थिति:-

 

  1. डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’, माननीय शिक्षा मंत्री, भारत सरकार
  2. श्री संजय शामराव धोत्रे, माननीय शिक्षा राज्‍य मंत्री, भारत सरकार
  3. श्रीमती हिमाद्री सिंह, संसद सदस्‍य, लोक सभा
  4. डॉ. मुकुल शाह, कुलाधिपति, इन्‍दिरा गांधी राष्‍ट्रीय जनजातीय विश्‍वविद्यालय, अमरकंटक (मध्‍य प्रदेश)
  5. प्रो. श्री प्रकाशमणि त्रिपाठी, कुलपति, इन्‍दिरा गांधी राष्‍ट्रीय जनजातीय विश्‍वविद्यालय, अमरकंटक (मध्‍य प्रदेश)
  6. श्री पी. सिलुवनाथन, कुलसचिव, इन्‍दिरा गांधी राष्‍ट्रीय जनजातीय विश्‍वविद्यालय, अमरकंटक (मध्‍य प्रदेश)
  7. श्री नीतिश कुमार, प्रधानाचार्य, केन्‍द्रीय विद्यालय, अमरकंटक, मध्‍य प्रदेश