आईआईटी रोपड़ के स्‍थायी परिसर का उद्घाटन

आईआईटी रोपड़ के स्‍थायी परिसर का उद्घाटन

 

दिनांक: 22 अक्‍टूबर, 2020

 

 

माननीय शिक्षा मंत्री, डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’

 

आज  के इस महत्‍वपूर्ण कार्यक्रम में उपस्‍थित मेरे सहयोगी और भारत सरकार में शिक्षा राज्यमंत्री आदरणीय संजय धोत्रे जी,हमारे सचिव उच्च शिक्षा श्री अमित खरे जी, अपर सचिव श्री राकेश रंजन जी, आईआईटी रोपड़ के यशस्वी निदेशकप्रो.सरित कुमार दास जी,कुलसचिव श्रीरवीन्‍द्रकुमार जी,प्रभारी अधिष्ठाता प्रो.पीके रैना जी,अधिष्ठाता अनुसंधान प्रो.जावेद आगरेवाला,अधिष्ठाता संकाय मामले और प्रशासन प्रो. दीपक कश्यप,अधिष्ठाता औद्योगिकी परामर्शी प्रो. हरप्रीत सिंह,अधिष्ठाता शैक्षणिक प्रो.राज छाबड़ा और अधिष्ठाता योजना प्रो. जेएसआर सेन, सभी डीन, सभी विभागाध्यक्षों,सभीफैकल्टी औरमेरे छात्र-छात्राओं!आई.आई.टी रोपड़ परिवार के सभी सदस्यगण ने ऐसे अवसर पर जबकि हम एक अपने ऐसे ऐतिहासिक भवन परिसर के उद्घाटन के लिए यहां एकत्रित हुए हैं जहां ऐसीप्रतिभाओं का निर्माण होगा जो केवल मेरे रोपड़ का हीनाम ऊंचा नहींकरेंगे बल्कि मेरे देशका भीप्रखर तरीके से पूरे विश्व में नाम उजागर करेंगे। ऐसे भव्य परिसर जिसका अभी आपने दर्शन कराया मैं इस अवसर पर आप सभी को बहुत-बहुत शुभकामनाएं और बधाई देने के लिए आपके बीच आया हूं। आपका यह संस्‍थान सतलज नदी के किनारे 500 एकड़ के विस्तृत भूखंड पर स्थापित है और यह जो नया भव्य परिसर हमको अभी आप ने दिखाया उस परिसर के दस विभागों में20324विद्यार्थियोंऔर 170 संकाय सदस्यों के साथ बारह वर्ष पूर्ण करने वाला आईआईटी रोपड़ बहुत कम समय में प्रगति कीछलांग मार रहा है। इसके लिए यह फैकल्टी जो मुझे दिखाई दे रही हैं और जो मुझको सुन रही है इसी को सबसे बड़ा श्रेय जाता है। आज जैसे सुपर अकैडमिक ब्लॉक, सेंट्रल लाइब्रेरी, आडिटोरियम बहुत सारी चीजें आपने दिखाई, आप बहुत अद्भुत तरीके से,नयेविजन के साथ एक स्‍थाईभवन ले करके आए हैं और मुझे इस बात की खुशी है कि इस यंग आईआईटी ने क्‍योंकिजब मैं सभी आईआईटी के बारे में विश्लेषण करता हूं तो कम समय में प्रगति करने वाले आईआईटीज में इसका नाम आता है। चाहे एनआईआरएफ रैंकिंग में यदि देखेंगे तो आपने स्‍वयं को 39वें स्‍थान पर स्थापित किया है और क्‍यूएस रैंकिंग में 25वें स्थान पर आप आये हैं। मुझे इस बात की भी खुशी है कि वर्ल्ड रैंकिंग में भी हमारे संस्‍थान बहुत तेजी से अपना स्‍थान बना रहे हैं। वर्ष2013 से पहले तो हमारे कोई संस्थान इस प्रकार की रैंकिंगों में रहते ही नही थे। अब हमारे संस्‍थान वर्ल्ड रैंकिंग में भी तेजी से हमारे संस्थान आने लगे है। मेरे लिए ख़ुशी का विषय है किएशिया यूनिवर्सिटी रैंकिंग 2020 में भी आईआईटी रोपड़ ने47वां स्थान प्राप्त किया है। अभी प्रो.सरित नेकहा है कि हम आने वाले समय में टॉप फाइव में इस संस्‍थान को लेकर आएंगे। हमारा यहसंकल्प है। मैं उस संकल्प के लिए आपको और आपकी पूरी टीम को बहुत बधाई देना चाहता हूँ, शुभकामना देना चाहता हूँ कि यह संकल्प आप का पूरा हो।मुझे बहुतख़ुशी है कि आईआईटी रोपड़ गुणवत्ता में, विविधता में तथा तमाम प्रतियोगिताओं में नित नए अनुसंधानों के क्षेत्र में लगातार काम कर रहा है और उच्‍चगुणवत्तापूर्ण तकनीकी और वैज्ञानिक शिक्षा को दे रहा है। कोई भी संस्थान ज्ञान के प्रति योगदान, समाज के प्रति योगदान तभी दे सकता है जब वह स्‍वयं एक योद्धा की तरह खड़ा हो।मैं समझता हूं कि जो मेरे सामने बैठे हैं  तथा जो सुन रहे हैं उन सभी फैकल्टी को मैं अच्छा योद्धा मानता हूं क्योंकि मैं अभी देख रहा था जब मेरा देश हीक्‍यापूरी दुनिया कोरोना के महासंकट से होकर गुजर रही थी और तब मेरे देश के प्रधानमंत्री जी ने कहा था कि नौजवानों इस चुनौती भरे समय में, संकट के समय में आप क्या कर सकते हैं? तो मुझे खुशी है कि मेरे आईआईटी के छात्रों और अध्यापकों ने जब लोग अपने घरों में रहे होंगे तब प्रयोगशालाओं में रात-दिन खप करके शोध औरअनुसंधान कर रहे थे।जब मैं अपने रोपड़ की ओर देखता हूं तो चाहे वो निगेटिव प्रेशर रोम के निर्माण का विषय हो, चाहे जो अद्वितीय यूजीआई कीटाणु शोधन उपकरण का निर्माण का विषय रहा हो, चाहे शक्ति चालित ट्रॉली का विषय रहा हो और चाहे वो रोपड़ द्वारा तमाम प्रकार के स्‍वास्‍थ्‍य यूनिटों केविकास का विषय रहा हो, मैं इन सबके लिए आपको बधाई देना चाहता हूँ और आपने यह साबित किया है कि देश जब संकट से गुजरता है और चुनौती होती है तो चुनौती का मुकाबला करने के लिए मेरे आईआईटी रोपड़ जैसा संस्‍थान पूरी ताकत के साथ खड़ा है। हमारे देश के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने 21वीं सदी के स्वर्णिम भारत की परिकल्पना की है। ऐसा भारत जो स्वच्छ भारत होगा, स्वस्थ भारत होगा, सुंदर भारत होगा,समृद्धभारत होगा, सशक्त भारत होगा, श्रेष्ठ भारत होगा  और एक भारत होगा।21वीं सदी के ऐसे स्वर्णिम भारत का रास्ता मेक इन इंडिया, डिजिटल इंडिया, स्टार्ट अप इंडिया, स्टैण्ड अप इंडिया से होकर गुजरता है लेकिन उस गुजरने वाले रास्ते की आधारशिला हमारी नई शिक्षा नीति है जो बहुत लंबे समय के बाद आई है।मैं प्रो. सरित की इस बात से सहमत हूं किइस बात को बार-बार याद दिलाने की जरूरत है अपनी नई पीढी को भीअपने प्रतिभाशाली लोगों को भी,अपने वैज्ञानिकों को भी, अपनी तकनीशियनों को भी, कि मेरा देश भारत क्या है? वो भारत जिसकी अभीआपने चर्चा की। जब तक्षशिला, नालंदा और विक्रमशिला जैसे विश्वविद्यालय इस देश के अंदर थे तब दुनिया में कौन सा विश्वविद्यालय था। हमारे यहां यह उक्ति कही जाती थी‘‘एतद्देशप्रसूतस्य सकाशादग्रजन्मनः स्वं स्वं चरित्रं शिक्षेरन्पृथिव्यां सर्वमानवाः’’पूरी पृथ्वी के लोग तो हमारे पास आ करके सीखते थे। ज्ञान,विज्ञान, अनुसंधान के क्षेत्र में हम कहीं भीपीछे नहीं थे।मैं सोचता हूं कि क्‍या दुनिया इस बात को जानती है कि सुश्रुत, शल्य चिकित्सा का जनक इसी धरती पर पैदा हुआ था। दुनिया में आयुर्वेद कहने वाला वो चरक भी इसी धरती पर पैदा हुआ था और आज पूरी दुनिया आयुर्वेद की पीछे आ करके खड़ी है। हमारे देश के यशस्‍वी प्रधानमंत्री योग की बात को तोविश्व फलक पर कहते हैं। हम मानववादी दृष्टिकोण का देश हैं। भारत विश्व बंधुत्व की बात करता है। भारत में जहाँ एक ओर‘अयं निज: परो वेति गणना लघु चेतसाम् उदारचरितांना तु वसुधैव कुटुम्‍बकम्’’ अर्थात् पूरी वसुधा कोअपना परिवार माना है। हम पाश्‍चात्‍य दोनों की इस होड़ में जाने वाले नहीं जो पूरी दुनिया को, पूरे विश्व को एक मार्किट मानते हैं। दुनिया कोबाजार एवं परिवार मानने में बहुत अंतर है। क्योंकि हम महसूस करते हैं परिवार में प्यार होता है और बाजार में केवल व्यापार होता है। हम व्यापार नहीं प्यार के साथ पूरी दुनिया को साथ लेकर आगे बढ़ाना चाहते हैं हमारे पास क्या नहीं है? हां इतना जरूर हुआ है कि देश गुलामी की जंजीरों में जकड़ाऔर तब हमारे साथ छल कपट हुआ। हमको हमारी जड़ों से काट दिया गया और उससे अलग करने की कोशिश हुई है। लार्ड मैकाले की शिक्षा नीति जब शुरू हुई थी और जिस दिन लार्ड मैकाले इस देश में आया उस समय मेरे देश में 97प्रतिशत साक्षरता थी। लेकिन लार्ड मैकाले के आने के बाद जिस तरीके से देश को उसकी जड़ों से दूर करने की कोशिश हुई, हमारी पीढ़ी केमन-मस्तिष्क को बदलने की कोशिश हुई। हमारी संस्कृति, हमारी शिक्षा और हमारे परिवेशको हमारी जड़ों से दूर करने की कोशिश हुई है। मुझे पीछे को नहीं जाना है लेकिन आगे बढ़ने के लिए पीछे जरूर सोचना चाहिए। इसलिए जो प्रो. सरित आपने कहा इसको बार-बारयाद दिलाने की जरूरत है, आगे छलांग मारने के लिए विश्व की नकल करने के लिए नहीं। विश्व में एक कदम आगे बढ़ करके और जो देश हमेशा लीडरशीप देता रहा है इस देश को खड़ा करना है। जो विश्वगुरु भारत था,वोविश्व गुरु भारत रहेगा। आज भी हम ही सम्‍पूर्ण विश्‍व में लीडरशिप करेंगेक्‍योंकिहमारे पास सब कुछ है। आज की दिनांक में भले ही कुछ लोगों ने अपने को हीन भावना से अंकित किया होगा लेकिन मैं तो विगत डेढ़ साल से देखरहा हूं कि मेरे आईआईटी, एनआईटी, विश्वविद्यालय, आईआईएम  कैसी प्रतिभाओं को तरास रहे हैं। यदि विदेश की ही शिक्षा बहुत अच्छी थी तो मैं पूछना चाहता हूं अमेरिका की और दुनिया की जो शीर्ष कंपनियां है चाहे माइक्रोसॉफ्ट हो,चाहे गूगल हो उनके सीईओ मेरे आईआईटी औरहिंदुस्तान की धरती से पढ़कर गया है।  हमारे संस्‍थानों से पढ़े छात्र पूरे विश्‍व में लीडरशिप दे रहे हैं तो हमारी शिक्षा कहां कमजोर है। ऐसा नहीं है और आज भी हमारीसामर्थ्य है। यदि आज रोपड़एक हजार करोड़ की लागत से इस भव्‍य भवन को तैयार करइसकी आधारशिला स्‍थापित कर रहा है और आज आसियान देशों के एक हजार से भी अधिक बच्चे भारत के आईआईटीज में अनुसंधान करने के लिए आरहे हैं। यदि हमने‘स्‍टडी इन इंडिया’ कहा है जिसमें पूरी दुनिया के लोग,अब हमारे देश में पढ़ने के लिए आएंगे और 50 हजार से भी अधिक जिसके रजिस्ट्रेशन हो गये थे और यदि कोविड का संकट नहीं आता तो शायद ओर भी अधिक लोग इससे जुड़ते क्‍योंकि लोगों में यहां भारत आकर के अध्‍ययन करने की बहुत उत्‍सुकता है। इसीलिए हम ‘स्टडी इन इंडिया’कीब्रांडिंग करेंगे औरपूरी दुनिया के लोगों को बुलाएंगे। आपने देखा कि देश की आजादी के बाद आने वाली यह जो नई शिक्षा नीति है इससेपूरे देश में उल्लास एवंउत्साह का माहौल है। ऐसा लगता है कि देश अंगड़ाई ले रहा है, तेजी से बदल रहा है यह 99 प्रतिशत लोगों ने इसको न केवल सराहा है बल्कि उत्सव के रूप में लिया है। जब हम मातृभाषा में शिक्षा की बात को लेकर लोगों ने कहा कि बहुत सारा विरोध हो सकता है। हमने पूछा कि क्यों विरोध हो सकता है? आखिर अपनी मातृभाषा में अपने बच्चों को पढ़ाने में कोई भी क्‍योंविरोध करना चाहता है? अपनी मातृभाषा में तो ज्यादा अभिव्यक्ति हो सकती है। इसी बात को हमारे वैज्ञानिकों औरविशेषज्ञों ने कहा है।युनेस्‍कोतो लगातार इस बात परचर्चा करता रहा है कि बच्चा अपनी मातृभाषा में जितनीअभिव्यक्ति कर सकता है वैसीदूसरी भाषा में अथवासीखी हुई भाषा में या थोपी हुई भाषा में नहीं कर सकता हैऔर इसलिए जो भारत की खुबसुरत भाषाएं है, जो हमारे संविधान कीअनुसूची 8 में हैं उनमें शिक्षा होनी चाहिए।चाहे मलयालम है,कन्नड़ हैं, गुजरातीहैं, मराठीहैं, बंगालीहैं, ओड़ियाहैं, असमियाहैं, पंजाबीहैं, संस्कृतहैं, उर्दूहैं, हिंदीहैं,यह सभीहमारी 22 खूबसूरत भाषाएं हैं। इनके अंदर ज्ञान है,विज्ञान है, अनुसंधान है, परंपराएं है, हमारे जीवन-मूल्‍य हैं, इन भाषाओं कोकैसे मरने देंगे हम?जिन देशों ने अपनी इंजीनयरिंग,तकनीकी,विज्ञानइन सभी की शिक्षा अपनी मातृभाषा में दी है, जापान अपनी मातृभाषा में शिक्षादेता हैं, क्‍या यह किसी से पीछे है? यह जर्मनी अपनी मातृभाषा में शिक्षा देता है यह किसी से पीछे है? यह अमेरिका अपनी मातृभाषा में शिक्षा देता है, यह किसी से पीछे है? यह फ्रांस अपनी मातृभाषा में शिक्षा देता है,क्‍यायह किसीसे पीछे  है और हमारे बाद में आजाद होने वाला इजराइल वो भीडे वन से नीचे से लेकर ऊपर तक अपनी मातृभाषा में शिक्षा देता है। वो भी किसी भी दृष्‍टि से पीछे नहीं है। मैं ऐसा सोचने वाले लोगों कोमैं दोष नहीं देता क्योंकि सैकड़ों वर्षों की गुलामी ने हमको इतने थपेड़े पर लाकर के खड़ाकर दिया है कि अभी हम उससे ऊपर नहीं उठे। लेकिन मैं आह्वान करता हूं तो नौजवानों से यदि मेरी बात को आप सुन रहे हैं कि यह अवसर है हिंदुस्तान को खड़ा करने का, देश अंगड़ाई ले रहा है। नई शिक्षा नीति भी ऐसे ही तमाम परिवर्तन और संभावनओंको लेकर के आई है। हम पूरा मैदान खाली करेंगे।हमने10+2 को हटा करके 5+3+3+4 किया है और शोधएवंअनुसंधान के क्षेत्र में हम नीचे बेसिक शिक्षा से लेकर बल्‍किउससे भी पीछे नीचे आंगनबाड़ी से लेकर के अंतरराष्ट्रीय स्तर तक सर्वांगीण विकास का कार्य किया है। ऐसा नहीं कि इससमय भी हम शोध और अनुसंधान में आगे नहीं हैं।शोध और अनुसंधान में आज भी हम ‘स्‍पार्क’ के तहत 127 दुनिया के शीर्ष विश्वविद्यालयों के साथ अनुसंधान कर रहे हैं। हम स्‍पार्कके तहत जहां पूरी दुनिया के देशों के साथ शोधकर रहे हैं, वहीं स्‍ट्राइड के तहत अंतर-विषयक शोध भी कर रहे हैं।हमारे विविध कार्यक्रम जैसे इम्‍प्रिंट है, इम्‍प्रेस है,प्रधानमंत्री फेलोशिपहैहम इन तमाम क्षेत्रों में उत्‍कृष्‍ट कार्य कर रहे हैं।लोगों को मत था कि देश को नई शिक्षा नीति चाहिए क्योंकि सरितजी ने जिस बात को कहाउनसेमैं सहमत हूं कि अभी हमारी आवश्यकताएँ  हैं।जब मैं अपने संस्‍थानों की समीक्षा करता हूं किक्‍यूएस रैंकिंग में,टाइम्स रैंकिंग में हमारी संस्थाएं क्यों नहीं आ पा रही हैं, कठिनाई कहां-कहां हैं?तब मालूम होता है कि वहां बहुत विशेष कठिनाई नहीं हैं उन्होंने अपने तरीके का मानक बनाया है क्योंकि यदि वो हिन्दुस्तान की धरती पर आकर के मानक बनाएंगे तो वो कहीं खड़े नहीं हो सकते और अभी वो अपने मानक चेंज भी करेंगे लेकिनहम शोध और अनुसंधान में कुछ कमजोर हैं। अभी हमारे पास पेटेंट की कमी है। पीछे के दस साल कीजब मैं समीक्षा करता हूं औरदुनिया के देशों सेअपनी तुलना करता हूं तो मुझे लगता है किक्‍योंअचानक दस साल में रूस, चीन जैसे देशों ने अचानक जंप मारा है। क्‍या हमने कभी इस ओर ध्यान दिया है?क्‍या हमारा ध्‍यान शोध एवं अनुसंधान के माध्‍यम से पैकेज के स्‍थान पर पेटेंट की ओर रहा है। हमको लगा कि हम बीटेक और एमटेक करने के बाद केवल अच्‍छा पैकेज पायेंगे। हम लोग उस होड़ में चले गए। आज इस होड़ को थोड़ा सा रोक करके शोध और अनुसंधान के क्षेत्र में काम करने की जरूरत है। मैं अपनेयुवाओं को आह्वानकरना चाहता हूंकि यह चुनौती आपके सामने है, उस भारत की चुनौती है जिसमें तमाम संभावनाएं हैं। आज हम दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है। इस देश में एक हजार विश्वविद्यालयहैं, पैंतालीस हजार डिग्री कॉलेज हैं, एक करोड़ नौ लाख से भी अधिक अध्यापक हैं, पंद्रह लाख स्कूल हैं और कुल अमेरिका की जितनी जनसंख्या नहीं है,33 करोड़ से भी अधिक छात्र-छात्राएं है। हमाराभारत आगेपच्चीस वर्षों तक यंग इंडिया रहने वाला है। क्या नहीं कर सकते हम लोग, सारी दुनिया को दिखा सकते हैं हम? आज यदि जर्मनी 14-15 विश्वविद्यालय संस्कृत के खोल रहा है तो केवलसंस्कृत भाषा को पढ़ाने के लिए नहीं खोलरहा है। संस्कृत के अंदर जो ज्ञानहै, उसके जो ग्रंथ हैं,उन पर शोध और अनुसंधान को करके पूरी दुनिया में नंबर एक पर जाने के लिए कर रहा है। हमारी संपदा दुनिया पकड़ के लेकर जातीहै। हमारे देश के प्रधानमंत्री जी में इच्छा शक्ति की कमी नहीं है और उन्होंने जब हम नई शिक्षा नीति को लेकर आए तो कहा कि मैं चट्टान की तरह खड़ा हूं, मेरेनौजवानों आगे बढ़ो। मैं भी एक शिक्षक से लेकर के यहां शिक्षा मंत्री तक आया हूंऔर मैं जानता हूं कि एक शिक्षक में कितनी ताकत होती है, वह कुछ भी कर सकता है। मैं कहना चाहता हूं अपने सभी फैकल्टी से कि चंद्रगुप्त तो बिखरे पड़े हैं, चाणक्य की जरूरत हैं और इसलिए जिस पर आपहाथ रखेंगे वह हीरा बन करके आगे आपकी खुशबूको पूरी दुनिया में महका सकता है। अब आवश्‍यकता है थोड़ा सा जुनूनी मूड में आने की और इसलिए मैं समझता हूं कि इसको बार-बार याद दिलाने की जरूरत है। जो चीज हमने खोई है, जो चीज हमारी है, हमें उन जड़ों को हरा-भरा भी करना है और उनको खड़ा भी करना है। यहजो लोग ठूंठसे खड़े होते हैं जिनमें फल देने की ताकत नहींहोती है और एक छोटा सा हवा का झोंका भी उसे उखाड़ कर ले जाता हैक्योंकि उसकी जड़ें गहरी नहीं हैं। हम हमेशा दूसरों को कुछ देने वाले तथा स्‍वयं अपनी ताकत पर खड़े रहने वाले देश रहे हैं,इसलिए हिंदुस्तान का विचार समझना पड़ेगा क्‍योंकि यह देश विश्वगुरु रहा है। हम केवल लकीर खींचकर केविश्वगुरु नहीं रहे है। हम ज्ञान, विज्ञान, अनुसंधान के किसी भी क्षेत्र में पीछे नहीं रहे और अभी भी हमारे पास बहुत कुछ है जिसको दुनिया ले जाकर के शोध एवंअनुसंधान कर रही हैऔर जब वो कर देती है तब हमें पता चलता है।मैं पिछले एक डेढ साल में इस देश का शैक्षणिक वैभव देख रहा हूं और इसलिए पूरी दुनिया आज हमारे ऊपर निगाहलगाए हुए हैंऔर इसलिए आज जो यह आपने उद्घाटन किया है  इसकी मुझे बहुत खुशी है। आपने तमाम इसकी मांग के तहत 2016 में भी टेक्नोलॉजी बिजनेस इनक्यूबेटर फाउंडेशन की स्थापना की और इसके पाँच स्टार्टअप की शायद कंपनियां भी मेजबानी कर रही हैं। इधर अब आपके पूर्व छात्रों मैं देख रहा था तबमैंने कहा था किइसकी एकसूची बनाओ।आपको जरूर इन पूर्व-छात्रों को एकत्रित करके और बाकायदा इनकी सहभागिता लेनी चाहएि।आपकोखुशी होगी बहुत सारे छात्रों को मैंने देखा के जो बहुत अच्छा काम कर रहे हैं और पूरे देश का नाम दुनिया में फैला रहे हैं। यह हमारी पूंजी है और इसलिए मुझे लगता है कि इनकी लीडरशिप में हम बहुत आगे हैं। जहां हमने ‘स्टडी इन इण्डिया’ की बात की है वहीं हमने‘स्टेइनइण्डिया’ की भी बात की है। इस देश से लगभग8 लाख छात्र बाहर जा रहे हैं और डेढ लाख करोड़ रुपया प्रति वर्ष हमाराविदेशों  में जा रहा है। शोध एवं अनुसंधान के नाम पर हमारी प्रतिभाओं को जो प्रोजेक्‍ट एवं सुविधाएं मिलती हैं,तो वो फिर लौटने का नाम नहीं लेती। मेरी देश की प्रतिभा और पैसा दोनों जा रहा है। उसके मन में भी ऐसा नहीं है कि शौक से जा रहे हैं,हां,इस बात की होड़ जरूर लगी कि  मेरा बच्चा कैसेविदेश में पढ़े  अनेक गलतियां हमारी भी रही होंगी, उन गलतियों को हम भी सुधारेंगे। हम अवस्थापना को विकसित करेंगे और इसलिए‘स्टे इन इंडिया’ के तहत अभी सबसे आह्वान किया। हमने अपने छात्रों से कहा है कि जो दुनिया में जाकर मिलता है, वह अब हमारी हिन्दुस्तान की धरती पर मिलेगा।इसलिए हमने दुनिया के शीर्ष सौ विश्वविद्यालयों को यह कहा है कि आप हिंदुस्तान की धरती पर आयें और हमारी भी शीर्षजो संस्थाएँ उनको भीकहा कि जाओ।पूरी दुनिया में जाओ जहां हम लोगों ने ‘ज्ञान’ में बाहर की फैकल्टी को आमंत्रित किया वहींअब हम ‘ज्ञान प्लस’ में जो हमारी फैकल्टी है वह दुनिया को पढ़ाने के लिए बाहर जाएगीऔर इसलिए बहुत तेजी से अबआमूलचूल परिर्वतन होना है जिसके लिए सबको मन बनाना पड़ेगा और सबको मिशन मोड में आना पड़ेगा। नई शिक्षा नीति के तहत सभी के लिए मैदान खाली है। मेरे प्रिय छात्रों, इस नीति के तहत आप कुछ भी विषय ले सकते होऔर जब चाहो तुम आ जाओ और जब चाहो तुम चले जाओ।इस शिक्षा नीति के अंतर्गत यदि कोई 4 वर्ष का कोर्स है और यदि कोई छात्र दो साल में परिस्‍थितिवशछोड़के जा रहा है  तो पहले उसका पैसा एवं समयदोनों खराब हो जाते थे लेकिन अब उसकोनिराश नहीं होना पड़ेगा।यदि आप परिस्‍थितिवश एक वर्षमें छोड़ कर जा रहे हैं तो उसको सर्टिफिकेटदेंगे,दो साल में छोड़ कर जा रहा है तो डिप्लोमा देगें, तीन साल में छोड़कर जा रहा है तो उसकोडिग्री देंगे लेकिन यदि फिर वह लौट कर अपने भविष्य को संवारना चाहता है तो फिरउसनेजहां से छोड़ा था वहीं से शुरू कर सकता है। उसके लिए हम एक ऐसा क्रेडिट बैंक बनायेंगे जहां उसके सारे क्रेडिट जमा रहेंगेइसलिए उसके लिए आगे बहुत आपार संभावनाएं है।शोध और अनुसंधान के क्षेत्र में भी हमारे प्रधानमंत्री जी ने‘जय अनुसंधान’ का नारा दिया है। एक समय था जब देश बाहरी और आतंरिक संकटों से जूझ रहा था,खाद्यान्‍नके संकट से जूझ रहा था, सीमाओं पर सुरक्षा के संकटों से जूझ रहा था तो उससमय हमारे देश के प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री जी होते थे, लालबहादुर शास्त्रीजी ने‘जय जवानजय किसान’ का नारा दिया था। पूरा देश एक साथ खड़ा हो गया था। दोनों संकटों का हमने मुकाबलाकिया था और उसके बाद जब अटल बिहारी बाजपेयी आए। उनको लगा कि विज्ञान की जरूरत है तो उन्होंने ‘जय विज्ञान’ का नारा दिया और पोखरण परीक्षण करके पूरी दुनिया में हिंदुस्तान को तीसरी महाशक्ति के रूप में स्थापित करने का रास्ता प्रशस्त किया। हमारे देश के वर्तमान प्रधानमंत्रीजी श्री नरेन्द्र मोदीजी ने कहा‘जय अनुसंधान’,अब अनुसंधान की जरूरतहै। इसलिए ‘नेशनल रिसर्चफाउंडेशन’ की अभी हम स्थापना कर रहेहैं जो प्रधानमंत्री के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार की अध्यक्षता में होगा।शोध और अनुसंधान की संस्कृति विकसित होगी और उधर तकनीकी की दृष्टि से राष्‍ट्र को समृद्ध करने के लिए ‘नेशनल एजुकेशन टेक्नोलॉजी फोरम’ का गठन कर रहे हैं। हमारे छात्र तकनीक औरप्रौद्योगिकी में शिखर तक कैसे जा सकते हैं उसके लिए भी हम लोग विविध योजनाओं पर काम कर रहे हैं। इसलिए मैं यह सोचता हूं कि जो नयी शिक्षा नीति आई है यह नयी शिक्षा नीति अब बिल्कुल नए कलेवर में आई है। यह राष्ट्रीय भी होगी, यह अंतरराष्ट्रीय भी होगी तथा इसमें सब प्रकार के संभावनाएं हैं। कहीं किसी को भटकने की जरूरत नहीं है। अभी मैं यह देख रहा था किआपने कई विदेशी संस्थाओं के साथ भी अपने अनुबंध किये हैं मुझे खुशी हुई है। बहुत सारे विश्वविद्यालयों को मैं देख रहा हूं और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की भी अभी आपने बात की। शायद दुनिया में हिन्दुस्तान पहला देश होगा जो स्कूली शिक्षा से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पढ़ाएगा। इस नई शिक्षा नीति के तहत हम वोकेशनल स्ट्रीम भी इंटर्नशिप के साथ ला रहे हैं।अब तकशिक्षण शिक्षणेत्तर और वोकेशनल इन तीनों में जो गैप रहता था हमनेइसको पाट दिया।अबजब बच्चा स्कूली शिक्षा  पूर्ण कर बाहर निकलेगा तो वह योद्धा के रूप में सामने आएगा और जब वो आईआईटी तक पहुंचेगा तब अपनी प्रतिभासेवो देश को शिखर पर पहुंचाएगा जो ‘आत्म निर्भर भारत’ मेरे देश के प्रधानंत्री जी ने कहा  है उस आत्मनिर्भर भारत कीनई शिक्षा नीति आधारशिला है और इसलिए हम हर दिशा में बहुत तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। मैं यह सोचता हूं कि जिस तरीके से आपने काम करना शुरु किया है। सामाजिक क्षेत्र में भी देख रहा हूं कि जब आपनेउन्नत भारत अभियान तथा एक भारत श्रेष्ठ भारत में बेहतरीन कार्य किया है। हमारी  सोच यह होनी चाहिए कि यदि मैं अच्‍छा हूं तो मेरा समाज भी अच्‍छा होना चाहिए और यदि वो संस्था बहुत अच्छी है तो उसके इर्द-गिर्द उसकी खुशबू जानी चाहिए और मुझे खुशी है कि आपने पांच गांवों को लिया और जब भी मैं रोपड़ आउंगा तो सबसे पहले मैं आपके गांवोंमें ज़रूर जाऊंगा क्योंकि उन गांवों में मुझे रोपड़ दिखाई देगा तथा रोपड़ की प्रतिमा दिखाई देगी औरउनगांवों में मुझे उसका दर्शन होगाकि वो गांवबदल रहा है,उसके युवाओं में जिज्ञासा पैदा हो रही है। गांव में सफाई के काम के साथ ही पर्यावरण के क्षेत्र में मृदा गुणवत्ता निर्धारण,जल उपकरण तथा कृषि के क्षेत्र में भी मैं देख रहा था कि आप 110 करोड़ की लागत से बहुत सारी परियोजनाओं पर आप कर रहे हैं। आप टैलेंट को विकसित भी कर रहे हैं और उसका विस्‍तार भी कर रहे हैं। इस भव्‍य परिसर के उद्घाटन के अवसर पर मैं आपको एक बार फिर बहुत सारी बधाई एवं शुभकामनाएं देता हूं।

 

बहुत-बहुत धन्‍यवाद!

 

 

कार्यक्रम में गरिमामयी उपस्‍थिति

 

  1. डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’, माननीय शिक्षा मंत्री, भारत सरकार
  2. श्री संजय शामराव धोत्रे, माननीय शिक्षा राज्‍य मंत्री, भारत सरकार
  3. श्री अमित खरे, सचिव , उच्‍च शिक्षा, शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार
  4. श्री राकेश रंजन, अपर सचिव, उच्‍च शिक्षा, शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार
  5. प्रो. सरित कुमार दास, निदेशक, आईआईटी रोपड़,
  6. श्री रविन्‍द्र नागर जी, कुलसचिव, आईआईटी रोपड़,
  7. प्रो. पी.के. रैना, प्रभारी अधिष्‍ठाता, आईआईटी रोपड़,
  8. प्रो. जावेद आगरेवाला, अधिष्‍ठाता अनुसंधान, आईआईटी रोपड़,
  9. प्रो. दीपक कश्‍यप, अधिष्‍ठाता संकाय मामले और प्रशासन, आईआईटी रोपड़,
  10. प्रो. हरप्रीत सिंह, अधिष्‍ठाता औद्योगिकी परामर्शी, आईआईटी रोपड़,
  11. प्रो. राज छाबड़ा, अधिष्‍ठाता शैक्षणिक, आईआईटी रोपड़,
  12. डीन, सभी विभागध्‍यक्ष, संकाय सदस्‍य एवं छात्र-छात्राएं।