एनआईटी जमशेदपुर के ‘हीरक जयंती व्याख्यान हॉल परिसर’ का उद्घाटन
दिनांक: 20 अक्टूबर, 2020
माननीय शिक्षा मंत्री, डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’
एनआईटी जमशेदपुर में हीरक जयंती व्याख्यान कक्ष परिसर के इस उद्घाटन अवसर पर मैं एनआईटी जमशेदपुर परिवार केछात्रों को, उनके अभिभावकों को,उनकेनिदेशक को, यहां के सभी डीन, विभागाध्यक्ष, फैकल्टी, कर्मी एवं छात्र छात्राओं को मैं बहुत सारी बधाई देना चाहता हूं। इस अवसर पर मेरे सहयोगी मंत्री श्री संजय धोत्रेजीजुड़ नहीं पाएलेकिन उन्होंने भी आप सबको बहुत सारी शुभकामनाएं दी हैं। इस संस्थान के निदेशक प्रो. करुणेश कुमार शुक्ला जी, प्रो.डॉ.वीरेन्द्र कुमार जी,कुलसचिव अनिल कुमार चौधरी जी एवं यहां पर उपस्थित हमारे प्रोफेसरगण,डीन,फैकल्टीइत्यादिजो भी हमसे जुड़े हैं सभी से मैं कहना चाहूंगा कि एनआईटी जमशेदपुर के इतिहास में एक ऐसा मील का पत्थर आज लगा है जो हीरक जयंती व्याख्यान के रुप में ऐसे परिसर की स्थापना हुई जो अपना नाम देश में ही नहीं पूरी दुनिया में उभर करके आएगा इसलिए मैं इस महत्वपूर्ण उपलब्धि के लिए आप सब लोगों कोशुभकामना देना चाहता हूं। इस संस्थान ने बहुत लंबे सफर को तय किया है और अपने जीवन के इन 60 वर्षों में तमाम उतार-चढ़ाव इस संस्थानने देखे होंगे। इन वर्षों में इस संस्थान ने तमाम प्रकार की प्रतिभाएं देश को दी हैं। मैं अभी देख रहा था कि यहां से निकलने वाले चाहे वो सीएमडी पावर ग्रिड कारपोरेशन के आईएस झा रहे हों, चाहे वो पूर्व विद्युत ऊर्जा सचिव आर. वी. शाही रहे हों,चाहेएडमिरल अनिल वर्मा रहे हों और चाहे वो आर पी सिंहपहले सीएमडी औद्योगिक निगम लिमिटेड के रहे हों, पीके गोयलजो सलाहकार लघु उद्योग मंत्रालय में हैं, पी. नारायण जो जीएम भारतीय सुरक्षा प्रेस नासिक वित्त मंत्रालय के हों ऐसे बहुत सारे नाम हैं जो भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में लोगगए हैं और उन्होंने प्रशासनिक क्षेत्र में, तकनीकी क्षेत्र में एवं अन्य विविध क्षेत्रों में इस संस्थान का नाम राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उभारा है। इस संस्थान से बहुत सारे छात्र-छात्राएं विदेश में भी हैं तथा देश में भी हैं औरविभिन्न स्थानों पर विभिन्न पदों पर हैं तथा विभिन्न जिम्मेदारियों को ले करके इस संस्थान से पाने वाली उनकी जो शिक्षा थी अब वो शिक्षा की सुगंधपूरे देश में बिखेर रहे हैं और आज इन 60 वर्षों के बाद 130 करोड़ की लागत से बनने वाला यह भव्य भवन एशिया में चंद अपने ढंग के भवनों में सेएक होगा। इसके लिए आपको बहुत-बहुतबधाई और शुभकामनाएं हैं। एनआईटी जमशेदपुर को जब मैं देख रहा था और जब निदेशक महोदय उसके बारे में बोल रहे थे तथा हमारे साथ हमारे मदन मोहन जी जो अतिरिक्त महानिदेशक हैं वो भी जुड़े हुए हैं और वो भी एनआईटी की बहुत चिंता करते हैं और लगातार आपकी जो भी कठिनाइयां होती हैं उनको दूर करते हैं। मैं यहदेख रहा था कि आपने एनआईआरएएफ रैंकिंग मेंगत वर्ष की तुलना में इक्यावन स्थान की प्रगति की है इसके लिए मैं आपकी पूरी टीम को शुभकामना देना चाहताहूं, बधाई देना चाहता हूं। जो यहां पर फैकल्टीहैं यहइसके अहर्निश अध्यापन का एवं छात्रों की मेहनतका ही परिणाम है।किसी संस्थान के भवन को देखकर के उसका कभी मूल्यांकन नहीं कर सकते हैं उस संस्थान से निकलने वाली प्रतिभाएं उस संस्थान का आधार केस्तर को कितनाऊंचा उठा रही है वहउसके मूल्यांकन का आधार होता है और निश्चित रूप से एनअर्इाटी जमशेदपुर ने लगातार प्रगति की है । आज यह रैंकिंग भी मैं देख रहा था कि आपने अपना स्थान बनाया और लगातार आप अपने स्थानों में सुधार करते जा रहे हैं और मुझे लगता है कि आज आपके जो लगभग साढ़े तीन हज़ार से भी अधिक छात्र हैं वो आपके मार्गदर्शन में लगातार आगे बढ़ रहे हैं। 12 विभागों के साथ प्रतिवर्ष 1300 छात्रों की बहु-आयामी शिक्षा प्रदान करने का औरअध्ययन-अध्यापन काआपउल्लेखनीय कार्य कर रहे हैं। मैं यह समझता हूं कि कोई भी देश अथवा कोई भी समाज बिना तकनीकी और नवाचार के प्रगति नहीं कर सकता और हमारा देश तो शुरू से हीतकनीकी के क्षेत्र में बहुत आगे रहा है। यह अलग बात है कि बीच में एक ऐसा कालखंड रहा है जब हमारी बहुत सारी विधाओं को, हमारी बहुत सारी शिक्षाओं के साथ ज्ञान, विज्ञान, अनुसंधान, नवाचार के क्षेत्र में जो हमारा वैभव था,उसको मिटाने की कोशिश हुई है अन्यथा मैं समझता हूं कि जब तक्षशिला, नालंदा और विक्रमशिला जैसे विश्वविद्यालय इस देश के अंदर थे तो ज्ञान, विज्ञान एवं अनुसंधान किसी भी क्षेत्र में हम पीछे नहीं थे। लार्ड मैकाले ने जिस समय इस देश में प्रवेश किया तोउस समय पूरीदुनिया में मेरे हिंदुस्तान की, मेरे भारत की 97प्रतिशत साक्षरता थी ऐसा विश्वगुरू देश हमनेदेखा है।यहसामान्य देश नहीं है और हम केवल अपने लिए ही नहीं जीते बल्कि हम दुनिया के लोगों के लिए और मानवता के लिए जीते हैं। हमने हमेशा कहा है कि हम विश्व बंधुत्व वाले लोग हैं। हम पूरी दुनिया को अपना परिवार मानते समझते हैं और न केवल मानते तथासमझते हैं बल्कि इस परिवार के लिए किसी भी पराकाष्ठा तक जाकर के समर्पण भी करते हैं। जहां ‘अयं निज: परोवेति गणना लघु चेतसाम्: उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्।।‘हमपूरी वसुधा कोपरिवार मानते हैं।पूरेसंसार को हम अपना परिवार मानते हैं क्योंकि बड़ा दिल है हमारा, हमारा बड़ा मन है,इसचीज को कमजोर आदमी समाहित करनेवाला नहीं होसकता। ताकतवर देश ही इस बात को कह सकता है और उस परिवार के सुख और समृद्धि की कल्पना के लिए लगातार यह याचना ईश्वर से करना कि ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया सर्वे भद्राणी पश्यन्तु मा कश्चिद् दुख: भाग्भवेत:’ यह बहुत बड़ी बात है कि जब तक धरती पर कोई भी इंसान अथवा प्राणी दुखी रहेगा तब तक मैं भी सुख का एहसास नहीं कर सकता। पहले मैंउसकेदु:खों को दूर करूंगा, किसी भी सीमा तक जाकर के मैं उसके दुखों को दूर करूंगा। यह हमारा चिंतन, विचार एवं ऊंचाइयां है। विश्वबंधुत्व वाला विचार जो हमको विश्वगुरु के रूप में स्थापित करता है और इसलिए ज्ञान, विज्ञान, तकनीकी के क्षेत्र में यदि आप1000 साल पीछेदेखें तो हम कहां थे? शल्य चिकित्सा का जनक सुश्रुतभी इसी धरती पर पैदा होता है, शून्य की खोज करने वाला आर्यभट भी इसी धरती पर पैदा होता है,चाहेभास्कराचार्य हो,चाहेनागार्जुन हो,बौधायन हो, चरक हो, महर्षि कणाद हो सभी इसी धरती पर पैदा हुए हैं। लेकिन हमने उनको आगे नहीं बढ़ाया। आज जरूरत है तमाम ज्ञान, विज्ञान, अनुसंधान को नई तकनीकी और नए अनुसंधान के साथ आगे बढाने की, आगे चलाने की और उसका मौका भी अबआ गया। जिस तरीके से काम कर रहे हैं उसके तहत आप हमारे छात्रों को शोध और अनुसंधान की दिशा में आगे बढ़ा रहे हैं। अभी जैसा कि निदेशक महोदय कह रहे थे कि 2020 में 234 ऐसे महत्वपूर्ण लेख संस्थान ने प्रकाशित किये हैं और आठ पेटेंट भी किए हैं। 29पेटेन्टपर आपका काम चलना है और निश्चित रूप से हमने सशक्त भारत तथा आत्मनिर्भर भारत की बात की है और हमारे देश के प्रधानमंत्री जी ने बार-बार कहा है कि जो 21वीं सदी का भारत है वो आत्मनिर्भर भारत होगा तथा वो स्वर्णिम भारत होगा। वो स्वच्छ भारत होगा, वो स्वस्थ भारत होगा तथावो सुन्दर भारत होगा, वो सुदृढ भारत होगा, वो आत्मनिर्भर भारत होगा,वो श्रेष्ठ भारत और एक भारत होगा और इस श्रेष्ठ भारत का रास्ता इन्हीं तकनीकी संस्थानों से होकर गुजरता है तथाउस आत्मनिर्भर भारत का रास्ता भी यहीं से होकर गुजरेगा। हमारे बच्चे क्या सोचते हैं तथा हम किस फलक पर उनको आगे ले करके जा रहे हैं। हम दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश हैं और कई देशों की कुल जनसंख्या नहीं उतनी तो हमारे पास छात्र छात्राएं हैं। मैं लगातार लोगों को कहता हूं कि जहां एक हजार से भी अधिक विश्वविद्यालय हों,पैंतालीस हजार से अधिक डिग्री कॉलेज हों, पंद्रह लाख से अधिक स्कूल हों, एक करोड़ नौलाख से भी अधिक अध्यापक हों और कुल अमेरिका की जितनी आबादी नहीं हैउससे भी ज्यादा 33करोड़ जिस देश में छात्र-छात्राएं हों और वो भी आगे पच्चीस वर्षों तक यह देश यंग इण्डिया रहनेवाला है।हां, ठीक है कि एक ऐसा समय था जब हम गुलाम थे, परतंत्र थे और जब हमारी जड़ों को हम से उखाड़कर फेंक दिया गया। हम ज्ञान, विज्ञान, अनुसंधान में आगे थे हमको हमारी जड़ों से दूर फेंका गया, हमारे ज्ञान को भी कुचलने की कोशिश हुई, हमारे अनुसंधान को कुचलने की कोशिश हुई। लार्ड मैकाले ने जिस तरीके से इस देश के अंदर किया वो किसी से छिपा नहीं है। लेकिन मैं यहसोचता हूं कि उन्हेंऐसाकरना ही था क्योंकि उनको लगता था कि हिन्दुस्तान जैसे देश पर, भारत जैसे देश पर यदि राज करना है तो उसकी मूलभूत जड़ों को उससे दूर करना पड़ेगा, उसकी संस्कृति से उसको दूर करना पड़ेगा, उसके संस्कारों से उसको दूर करना पड़ेगा, उसकी भाषा से उसको दूर करना पड़ेगा और उसकी जो शिक्षा है उससे उसको दूर करना पड़ेगा और उन्होंने किया क्योंकि उनको लगता था कि हिंदुस्तान पर उनको राज करना है और सैकड़ों वर्षों तक लोग यही तो करते रहे।इसलिए हमारी मानसिकता इन सैंकड़ों वर्षों की गुलामी से अभी उबर नहीं पा रही है लेकिन अब जरूरत है इस बात की कि आज देश स्वाधीन हो गया, आज उन जड़ों को जिन जड़ों से हमको अलग हटाया गया था उन जड़ों को सींचने की जरूरत है। सारी दुनिया इस बात को जानती है कि ‘यूनान, मिस्र, रोमां सब मिट गए जहां से अब तक मगर हैबाकी नामोनिशां हमारा और कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी’अर्थात्कुछ बात जरूर है वो जो कुछ बात है जो मिटाने से भी मिटती नहीं हमारी उसी को सृजित करने की जरूरत है, उसको संरक्षित करने की जरूरत है, उसको फलने-फूलने की जरूरत है उसको संरक्षण देने की जरूरत है, उसको ताकत के साथ आगे बढ़ाने की ज़रूरत हैअबयह अवसर तथा मौका मिल गया है। देश आज स्वाधीन है,आज हम किसी दूसरे पर आरोप नहीं लगा सकते हैं। आप पीछे रोकर के आगे नहीं बढ़ सकते हां, पीछे को याद करके आगे बढ़ सकते हैं। रोता वोहै जिसमें ताकत नहीं होती है आज ताकत विचार से होती है और ताकतवर संस्था होती है। हम पूरी ताकत के साथ जान खपा देंगे। लेकिन तब भी हम उस शिखर को पाएंगे इसकी जरूरत है। ऐसा वातावरण बनाया गया पीछे दिनोंमें कि यहां से होड़ लगी दुनिया के देशों में शिक्षा ग्रहण करने की। यहां सेआज भी 7 और 8 लाख छात्र विदेशों में शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। मेरा प्रति वर्ष एक से लेकर डेढ़ लाख करोड़ रुपया दुनिया के देशों में जा रहा है। मेरी प्रतिभा भी चली गई और मेरा पैसा भी चला गया। इस होड़ में तथा इस दौड़ में मेरे इन संस्थानों को इस होड़को रोकना पड़ेगा। इस दौड़ को हिन्दुस्तान की धरती पर दौड़ाना पड़ेगा। इसकी सक्षमता लाना पड़ेगा और ऐसा नहीं है कि मेरे यह संस्थान सक्षम नहींहैं। मैंने इसका भी विश्लेषण किया है। मैं सारे आईआईटी,आईआईआईटी,आईसर हों, एनआईटी सहित सभी केंद्रीय विश्वविद्यालयों का विश्लेषण पिछले एक साल से कर रहा हूं तथा उस आधार पर मैं कह सकता हूं इस बात को कि ऐसा नहीं है कि मेरे इन संस्थानों में शीर्षता नहीं है। यदि मेरे इन संस्थानों में शीर्षता सत्ता नहीं होती और केवल अमेरिका में ही रहने वाले, पढ़ने वाले बच्चे प्रतिभाशाली होते तो यह जो गूगल और माइक्रोसॉफ्ट जैसी कंपनियों का सीईओ हैं वह मेरी धरती का सपूत हैं तथा उनको लीडरशिप दे रहा है। आज भी मेरे बच्चे वहां जाकर के सैकड़ों बड़ी से बड़ी कम्पनियों को लीडरशिप दे रहे हैं तथा वहां अपनी शिखरता को साबित कर रहे हैं। मेरे जो संस्थान हैं इनका मैं विश्लेषण करता हूं तो पाता हूं कि शोध और अनुसंधान की कमी अभी हमारे यहां हैंअभी मेरे संस्थानों में शोध और पेटेंट की कमी है।जब मैंने मेरे देश और दुनिया कीसमीक्षा की, विश्लेषण किया तो मुझे यह महसूस हुआ कि अभी कुछगढ्ढे हैं हमारे पास वो गढ्ढे क्या हैं? पीछे के समय में शोध और अनुसंधान का परिवेश नहीं बना पाया। हमने बस बच्चों को पैकेज की ओर दौड़ाया तथा कभी उनको यह नहीं कहा कि तुम शोध और अनुसंधान के उस क्षेत्र में बढ़ो ताकि हम हिंदुस्तान को पूरे विश्व के शिखर पर पहुंचा सकें। आज समय आ गया है तथा युवाओं को शोध और अनुसंधान की जरूरत है। हम पेटेंट करेंगे, हम शोध करेंगे। हम नवाचार के साथ अपनी चीजों को दुनिया के शिखर परपहुंचाएंगे। क्यों नहीं हम पूरे विश्व के स्तर पर आगे जाएंगे, जरूर जाएंगे और इसलिए अभीहमारी एनईपी आई है। नयी शिक्षा नीति आई है उसकाबहुतखूबसूरत तरीके से केवल इस देश के लोगों ने ही स्वागत नहीं किया बल्कि पूरी दुनिया के लोग बहुत स्वागत कर रहे हैं। देश में उल्लास का वातावरण है। उनको लगता है देश की आजादी के बाद पहली बार उनकी भारत केन्द्रित शिक्षा होगी। हम भारत की धरती पर खड़े हो करके विश्व के शिखर पर पहुंचेंगे। यही हमारी शिक्षा नीति का निचोड़ होगा। हम अपने ज्ञान विज्ञान को साथ लेकर के जाएंगे। कोई भी समाज, कोई भी व्यक्ति अपने मूल पर ही दुनिया में नंबर एक हो सकता है। किसी चीज से सीखे हुए पर और उधार लिए पर नंबर एक नहीं हो सकता है और इसीलिए यह हमारे सामने चुनौती है लेकिन जब चुनौती बड़ी होती है तो वहअवसरों में तब्दील हो करके उतनी बड़ी सफलता लेकर आती है और आप लोगों ने इस चुनौतीपूर्ण कार्य को किया है। जब पूरा देश औरपूरी दुनिया कोरोना के संकट से गुजर रही थी ऐसे वक्त पर मेरे देश के प्रधानमंत्री जी ने युवाओं को कहा कि आप क्या कर सकते हो? यह चुनौती है और कैसे करके इस चुनौती का मुकाबला करना है? मुझे खुशी है कि चाहेमेरे एनआईटी हैं, मेरे आईआईटी है, चाहे मेरे तमाम संस्थान हैं उनके अध्यापक और छात्रों ने जब लोग अपने घरों पर रहे होंगे तब मेरे छात्र, मेरे प्राध्यापक प्रयोगशालाओं में इस देश काभाग्य लिख रहे थे हमने एक से बढ़कर एक अनुसंधान करके यह साबित किया किदेश हर परिस्थिति का मुकाबला कर सकता है। अभी युक्ति पोर्टल पर इसकोविडके दौरान यदियुक्ति का आप विजिट करेंगे तो आपको अद्भुत नजर आएगा। चाहेवेंटिलेटर हो,चाहेटेस्टिंग किट हो,चाहेड्रोन हो,चाहे नए-नए ऐप हों जो पहले देश के अंदर थे ही नहीं और अब हम उन चीजों को लेकर के दुनिया के देशों को भी दे रहे हैं। यहचुनौती थी औरहमनेउस चुनौती का मुकाबला किया और उसको अवसरों में तब्दील किया। अभी हमारे सामने पूरा मैदान खाली है जहां हम स्कूली शिक्षा मेंइस नयी शिक्षा नीति के तहत तीन वर्ष के बच्चे को पकड़ रहें हैं क्योंकि हमको मालूम है कि वह बच्चा जो बहुत अकलुषित है,वह एक कोरा कागज हैं,उस कोरे कागज पर आप क्या लिखना चाहते हैं, कितना सुन्दर लिखना चाहते हैं और कितनी दूर तक कालिखना चाहते हैंवोलिखा जाएगा और इसीलिए उस बच्चे पर तीन वर्ष से लेकर करके ही हम ध्यान केंद्रित कर रहे हैं हमारा नेशनल रिसर्च फाउंडेशन जो प्रधानमंत्री जी के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार की अध्यक्षता में होगा उससेराष्ट्रीय शोध और अनुसंधान की दिशा में एक व्यापक परिवर्तन आएगा,एक संस्कृति बनेगी और मेरे छात्र-छात्राएं शोध और अनुसंधान करेंगे और तकनीकी की दिशा में अंतिम छोर तक कैसे मेरी तकनीक की जा सकती है और समर्थ योद्धा की तरह मेरे तकनीकी छात्र नित नये अनुसंधान कैसे कर सकते हैं इसके लिए भी हम नेशनल एजुकेशन टेक्नोलॉजी फोरम का गठन कर कर रहे हैं ताकि हर तकनीकी का उच्चतम सीमातक विस्तार किया जा सकता है। अभी भी युक्ति-2के रूप में हमने देश के अंदर एक ऐसा प्लेटफार्म खड़ा किया है जिसमेंमेरे छात्रों के तमाम हजारों एवं लाखों जो आइडियाज हैं वो मेरी युक्ति पोर्टल पर हैं और युक्ति पोर्टल पर कोई भी जाकर विजिट कर सकता है। मेरे इन छात्र एवं छात्राओं के आइडियाज को कोई भी अपने गांव और शहर में लेकर जा सकता है। हमारेदेश में पांच-छह करोड़ लघु उद्योग हैं। मेरे इन छात्रों ने यह तय कर दिया कि एक भी छात्र विदेशों में नहींजाएगा और हम यहीं नौकरियां सृजित करेंगें तथा यहीं अनुसंधान करेंगे हम अच्छा परिवेश उनको यहीं प्रदान करेंगे।मेरे छात्र ने यदि तय कर दिया कि हमें उद्योगों को पकड़ कर के उन्हें तकनीकी की दृष्टि से समर्थ करेंगे और दुनिया के सामने लाएंगे इन 5-6 करोड़ लघु उद्योगों मेंमेराएनआईटी वाला तथा आईआईटी वाला छात्र घुस जाएगता तो क्यानहीं कर सकता। एक छात्र में कम से कम दस लोगों को रोजगार देने की हिम्मत होगी, उसके पास आईडिया होगा, उसकी सामर्थ्य होगी और यदि उन पांच करोड़ लोग उद्योगों में एक छात्र 10 लोगों को रोजगारदेना शुरु कर देगा तो आत्मनिर्भर भारत शिखर पर पहुँच जाएगा और इस आत्मनिर्भर भारत की आधारशिला आपके संस्थानों में पड़ेगी। इतना बड़ा देश है कोई कमी नहीं है। प्रतिभा की भी कोई कमी नहीं है। हम विजनरी मिशनरी भी हैं। हम उतना ही कठोर भी हैं उतने ही विनम्र भी हैं। हमारे देश में संस्कार मिलता है,हम तभी तो दुनिया मेंअलग हैं। दुनिया भारत को जैसी देखती ळे त्ज्ञै उसको लगता है कि यह भारत के लोग हैं यहीहमारी पहचान है। हां, हमने कई बार उसकी क्षति भी उठाई है जो सहज-सरल लोग होते हैं वो जल्दी से परेशान भी हो जाते हैं। उनको हर व्यक्ति परेशान एवं दबोचने की की कोशिश करते हैं लेकिन किसी की शालीनता उसकी कमजोरी नहीं कही जा सकती। शालीनता और सहजता तो उसका आभूषण है। जब वह खड़ा होता है तो वह चट्टान की तरह खड़ा भी होता है। भारत में उन दिनों को देखा है औरउन परिस्थितियों को देखा है इसलिए मेरा मानना है कि आप बहुत बेहतरीन कार्य कर रहे हैं मैं देखरहा था कि आपने गणित विभाग में भी इंटरनेशनल प्रोजेक्ट अपने हाथ में लिया है और मुझे भरोसा है विश्वपटल पर यह प्रोजेक्ट आपके नाम को ऊपर उठाएगा।कोविड-19 के समय में भी आपने मरीजों की देखभाल के लिए एक ऐप आपने तैयार किया।ऑनलाइन के माध्यम से आपने शिक्षण प्रशिक्षण की प्रक्रिया को आगे बढाया तथा सामाजिक उत्तरदायित्वों के निर्वहनकी दिशा में भी आपने पांच गांवों को गोदलिया है जब भीयह कोरोना की महामारी कम होगी तो मैं सबसे पहले जो आपके पांच गांव में हैं, उन गांवों का दर्शन जरूर करना चाहूंगा। वहां मुझे आपकी छवि दिखाई देगी तथा संस्थान की भी छवि दिखाई देगी। मुझे लगेगा कि जो काम पहले कुछ नहीं था वहां मेरे जमशेदपुर एनआईटी ने उसको अपनी गोद में ले करके उसकी काया पलट दी। उस दिन मुझे खुशी होगी जब यहां झारखंड के मुख्यमंत्री मुझे यह कहेंगेकिनिशंक जी संस्थान हो तो एनआईटी, जमशेदपुर जैसे होने चाहिए जो हमारा गौरव बढ़ा सकते हैं तथा राज्य की प्रगति कोआगे बढ़ा सकते हैं। यहांकी सरकार आपसे पूछे कि किस क्षेत्र में क्या-क्या कर सकते हैं तो आपके जो फैकल्टी हैं उन्हें योद्धा की तरह काम करना है। छात्रों को ऐसा तैयार करना है कि ऐसा लगे कि जो भी यहांजा रहा हैवोऐसा हीरानिकाल के जा रहा है जो नौकरी के लिए बाहर न जाए बल्कि जिस व्यक्ति को हम खड़ा करेंगे, उसमें यहसामर्थ्य होगी कि हम दुनिया के लोगों को नौकरी देंगे यहविचार होना चाहिए, यह सोच जरुरी है। पीछे के समय एक बार आस्ट्रेलिया के शिक्षा मंत्री जी आए थे और उन्होंने जब मेरे से चर्चा की तो उन्होंने कहा कि आज आपकेहिन्दुस्तानी तो अनेक स्थानों पर शीर्ष पर हैं उनका चार्ट मैंने देखा कि किन-किन स्थानों पर थे। मैंने अमेरिका, लंदन,यूक्रेन सहित कई यूरोपीय देशों को देखा जहां भारतीय शीर्ष पर थे। पोलैंड में मेरी पुस्तक को उन्होंने पाठ्यक्रम में लगाया थातो वहां भी मैं गया। वारसा यूनिवर्सिटी 400 साल पुरानी है वहांवेसंस्कृत एवं हिन्दी पढ़ा रहे थे। वो कहते थे कि संस्कृत में कुछ ऐसी चीजें हैं जिनपर हम शोध और अनुसंधान करकेउसको आगे बढ़ाएंगे। उसी में चाहे वो वेद है, पुराण हैं, उपनिषद है तथा बहुत सारी चीजें हैंजो यदि उनको तकनीकी और वैज्ञानिक विश्लेषण के साथ आगे बढ़ाते हैं तो हम विश्व मानवता को बहुत बड़ी निधि दे सकते हैं। यूक्रेन में मैंने पूछा वहां के राजदूत से कि कितने हिंदुस्तान के लोग हैं। मुझे लगा कि 500 अथवा 1000 लोग ज्यादा से ज्यादा होंगे। लेकिन उन्होंने कहा कि सर आपको आश्चर्य होगा मैं आपको बता दूं कि15 हजार बच्चे तो यहां केवल एमबीबीएस करने के लिए आए हैं और जब मैंने कहा फिर उनको क्या भाषा की परेशानी नहीं होती? यदि 15 हजार बच्चे यहां पर एमबीबीएस कर रहे हैं तो उन्होंने कोई परेशानी नहीं होती तो वे इतने सहज तरीके से बोलेकि साहब ऐसा है ना उनको जो पढाने वाले हैं वो भी लगभग 90 परसेंट हिंदुस्तानी हैं। बच्चा भी हमारा तथा पढ़ाने वाले भी हमारे यह कितनी बड़ी त्रासदी है। अब ऐसानहीं होगा इसलिए हमने ‘स्टडी इन इंडिया’ कहा है। दुनिया के लोगों से आह्वान किया है कि आओ हमारी धरती पर पढ़ों क्योंकि हमारे अध्यापकों में ताकत है। आपको ऐसा पढ़ाएंगे और ऐसा सिखाएंगेकिआप दुनिया में बहुत तेजी से आगेजाएंगे और हमने‘स्टे इन इंडिया’ भी किया है कि भारत के छात्रों को अब दुनिया में भटकने की कोई ज़रूरत नहीं है। अब देश ने करवट ले ली है तथा नरेन्द्र मोदी जी की अगुआई में देश पूरी दुनिया में बहुत ताकत के साथ उभर रहा है। पीछे के समय में शिक्षा के क्षेत्र में आमूल चूल परिवर्तन हुए हैं और इसलिए अब हम नई शिक्षा नीति को अंतरराष्ट्रीय फलक पर लेकर आये हैं।जहां पूरी दुनिया केशीर्ष सौ विश्वविद्यालयों को हम अपनी धरती पर आमंत्रित करेंगे और हमारे भी शीर्ष संस्थान हैंउनको भी दुनिया में भेजेंगे।यहआदान प्रदान करेंगे। हम अभी भी 28 देशों के 127 विश्वविद्यालयों के साथ अनुसंधान कररहें हैं।अभी ‘स्टडी इन इंडिया’ अभियान के तहत 50 हजार छात्रों ने अभी रजिस्ट्रेशन कर दिया था। लोगों में उत्सुकता हैहिंदुस्तान की धरती पर आकर पढ़ने की। अभी मेरे आसियान देशों के एक हजार छात्रों काआईआईटी में अनुसंधान के लिए उनके साथ हमारा एमओयू हो गया है। अब पूरी दुनिया का छात्र यहां आना चाहता है। हिंदुस्तान बड़ा लोकतांत्रिक देश है।इसकाइतना बड़ा फलक है। इसकी जो समस्याएं बिखरी हुए हैं उन समस्याओं के समाधान की दिशा में मेरा छात्र उस चुनौती को स्वीकार करेवह छात्र बिखरी हुई समस्याओं पर शोध एवंअनुसंधान करें और वहीं उनके अनुरूप यूनिटों को खड़ी करे। स्टार्ट अप खड़ी करें। और आज इन छोटी-छोटी चीजों की ही अधिकजरूरतहैक्योंकि छोटी-छोटी बातें बड़ा बदलाव लाती हैं। वह बड़ी बड़ी बातें करके कोई फायदा नहीं होता है। वो उतना बड़ा बदलाव नहीं लाती हैं। छोटी-छोटी बातें बड़े बदलाव का कारण बनती हैं और इन युवाओं को कैसे पारस्परिक हम जोड़ सकते हैं, इसकी जरूरत है। मैंने कहा कि यह जो हमारी शिक्षा नीति है यह नेशनल भी है,यह इंटरनेशल भी है, यह इम्पैक्टफुल भी है, इंटरएक्टिव भी है और यह इन्क्लूसिव भी है। इसीलिए तो दुनिया के तमाम देश कहरहे हैंकिहम भी भारत की एनईपी को अपने देश में लागू करेंगे। उनको लगता है कि हम मातृभाषा में लाएं हैं। प्रारंभिक शिक्षा मातृभाषा में होगी क्योंकि अपनी भाषा में जो अभिव्यक्ति होती है वह दूसरी थोपी हुई भाषा में अभिव्यक्ति बाहर नहीं आ सकती। इसलिए ताकत के साथ हम प्रारंभिक शिक्षा हमारीमातृभाषा से शुरू करेंगे। हमारे देश के संविधान ने22 खुबसूरत भाषाएं चिह्नित की हैंआठवींअनुसूची में तमिल, तेलुगू, मलयालम, कन्नड़, गुजराती, मराठी, बंगाली, ओड़िया, असमिया, उर्दू सहित जो भारतीय भाषाएं हैं उनकी अपनी खूबसूरती है। सभी प्रदेश अपनी भाषा में पढ़ायें और उसके बाद एक अतिरिक्त इन22 भाषाओं में से जिस भाषा को लेना चाहें, उस भाषा को लें क्योंकि हमने किसी प्रदेश पर कोई भाषा थोपी नहीं है लेकिन अपनी मातृभाषा में तमाम दुनिया के देशों ने प्रगति की है। कुछ लोगों के मन में आता है किग्लोबल परजाने के लिए तो अंग्रेजी में पढ़ना जरूरी है हम अंग्रेजी के कभी भी विरोधी नहीं रहे हैं। अंग्रेजी ही नहीं दुनिया कीसब भाषाओं को पढ़ना चाहिए। भाषा तो केवल अभिव्यक्ति का माध्यम होता है। मैंने उन लोगों का हाथ जोड़कर कहा कि आप यह बताइये कि जापान है वो अपनी मातृभाषा में शिक्षा देता है,इजराइलहमारे बाद स्वाधीन हुआ है वह भी मातृभाषा में शिक्षा देता है, जर्मनीभीअपनी मातृभाषा में शिक्षा देता है यदि दुनिया के शीर्ष 20 देशों को चुना जाए तो वे सब अपनी मातृभाषा में शिक्षा दे रहे हैं।फिर यह तर्क इस देश के साथ क्यों? हमारे बच्चे पर जबरदस्ती उन चीजों को क्यों थोपने की कोशिश हो रही है,नहीं अब नहीं थोपा जाएगा। उसके लिए मैदानखालीहै वहजो चाहे करे। जिस भाषा को सीखना चाहे सीखो लेकिन प्रारंभिक शिक्षा अभी मातृभाषा में करो। अपनी भाषा का भी सम्मान करो। उन्हीं भाषाओं में आपकी अभिव्यक्ति ही आपको शिखर तक पहुंचा सकती है। हमारी भाषाएं केवल भाषाएं नहीं हैं बल्कि उनके अंदर उनकी अपनी खुबसूरती ज्ञान, विज्ञान एवं परंपराएं हैं। यह जो आत्म निर्भर भारत हैं यह उन गांवों को खड़ा करेगा, उन विचारों को खड़ा करेगा तथा उन परंपराओं से निकली चीजों को खड़ा करेगा और इसलिए मैं समझता हूं कि यह हमारे सामने एक चुनौती भी है और एक अवसर भी है। हम टैलेंट को भी पहचानेंगे और टैलेंट का विकास भी करेंगे और उसका विस्तार भी करेंगे। ऐसा नहीं कि टैलेंट तो बहुत सारे लोग होते हैं लेकिन प्रतिभाशाली लोग बहुत कम होते हैं। यदि उस पर प्रतिभाशाली का विस्तार नहीं हुआ तो क्या करना उस प्रतिभा का। इसलिएआर्टिफिशल इंटेलिजेंस हम स्कूली शिक्षा से ला रहे हैं।हमकक्षा छह से ही वोकेशनल स्ट्रीम इंटर्नशिप के साथ ला रहे हैं ताकि बच्चाआधा दिन पढ़े तथा आधा दिन वो प्रैक्टिकल में रहे। वो सप्ताह में दो दिन गांव में जाएं। ताकि वो स्कूली शिक्षा से जब बाहर निकले तो वो एक योद्धा की तरह निकले हमारा विद्यार्थी केवल अंक ज्ञान और अक्षर ज्ञान के साथ न निकले और अबउसका मूल्यांकन भी 360 डिग्री होगा। अब विद्यार्थीअपना मूल्यांकन भी करेगा, उसका अभिभावकभी उसका मूल्यांकनकरेगा, उसका अध्यापक भी उसका मूल्यांकन करेगा और उसका साथी भी उसका मूल्यांकन करेगा। जब स्वत:आदमी अपना मूल्यांकन करता है औरयदि अकलुशिततरीके से अपनामूल्यांकन करता है तो उससे ज्यादा विश्लेषक कोई नहीं हो सकता है। हर व्यक्ति को पता है वो कमजोर कहां है वो तो उस कमी को जबरदस्ती दबाता है तथाअपने अहं के कारण बताता नहीं है। लेकिन जिस दिन उसको चिह्नित हो गया कि नहींमेरी यह कमी है और मुझे उसेदूर करनी है तो वह जो योद्धा बन कर के बाहर निकलता है और इसे जब वह अपने विश्लेषण से आरम्भ करता है तब वो बहुत सारी कमियों को स्वत:-स्फूर्त है। वह किसी के कहने से नहीं करता है उसको मालूम है कियह कमी मेरी है और इसीलिए यह नयी शिक्षा नीति का बिल्कुल नया ऐंगलहै। हम छात्रों को कोई भी विषय क्यों न लेने दें, कोई विषय लोना क्या दिक्कत है। विज्ञानके साथ आप तकनीकीले सकते हो, इंजीनियरिंग के साथ अब संगीत ले सकते हो, जिस क्षेत्र में तुम्हारा मन कर रहा हैउस क्षेत्र में चलो।इस शिक्षा नीति के अंतर्गत यदि कोई 4 वर्ष का कोर्स है और यदि कोई छात्र दो साल में परिस्थितिवशछोड़के जा रहा है तो पहले उसका पैसा एवं वर्ष दोनों खराब हो जाते थे लेकिन अब उसकोनिराश नहीं होना पड़ेगा।यदि आप परिस्थितिवश एक वर्षमें छोड़ कर जा रहे हैं तो उसको सर्टिफिकेटदेंगे,दो साल में छोड़ कर जा रहा है तो डिप्लोमा देगें, तीन साल में छोड़कर जा रहा है तो उसकोडिग्री देंगे लेकिन यदि फिर वह लौट कर अपने भविष्य को संवारना चाहता है तो फिर जहां से उसने छोड़ा था वहीं से शुरू कर सकता है। उसके लिए हम एक ऐसा क्रेडिट बैंक बनायेंगे जहां उसके सारे क्रेडिट जमा होंगेतथाउसके लिए आगे बहुत आपार संभावनाएं है।इसीलिए छात्र भी खुश है,अभिभावक भी खुश है, अध्यापक भी खुश हैंऔर पूरा देश खुश है कि उनको लगता है कि अब कुछ परविर्तन होगा। हम आखिरकबतक एक ही व्यवस्था को ढोते चले जाएंगे। मैं आशा कर रहा हूं कि आप अपने पूर्व छात्रों का उपयोग कर रहे होंगे और इस नई शिक्षा नीति केलिए टास्कफोर्स भी बना रहे होंगे।हमारे जो पूर्व-छात्र हैं वो क्या-क्या कर सकते हैं और वो जो पूर्व छात्र आपके जब एक साथ इकट्ठा होंगे तोनई-नई ऊर्जा आती है तथा कुछ करने का मन होता है। जब मिल करके करेंगे तो देखिए आप कितना परिवर्तन होगा। इन 60 वर्षों में निकलने वाले उन छात्रों को आप एकत्रित करेंगे तो उनकी जो बौद्धिक सम्पदा है, उनके जो अनुभव की संपदा है वह आपको या इस संस्थान को फिर मिलेगी और इसीलिए निदेशक महोदय से मैं अनुरोध करूँगा कि आप इन पूर्व छात्रों को एकत्रित करेंगे तथा इनके लिए टास्कफोर्स भी बनायेंगे।नई शिक्षा नीति बड़े व्यापक परिवर्तन और सुधारों के साथ आयी है इसको क्रियान्वित करने की दिशा में आप एक बार योद्धा की तरह आपके सारे अध्यापक आगे आएंगे तो मुझे खुशी होगी और आज जो हीरक जयंती व्याख्यान परिसर का आपने लोकार्पण किया है उसके लिए मेरी ओर से आपको एवं पूरे एनआईटी परिवार को बहुत-बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं।
बहुत-बहुत धन्यवाद!
कार्यक्रम में गरिमामयी उपस्थिति:-
- डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’, माननीय शिक्षा मंत्री, भारत सरकार
- श्री संजय शामराव धोत्रे, माननीय शिक्षा राज्य मंत्री, भारत सरकार
- प्रो. करुणेश कुमार शुक्ला निदेशक, एनआईटी जमशेदपुर
- प्रो.डॉ.वीरेन्द्र कुमार, अधिष्ठाता,एनआईटी जमशेदपुर
- श्रीअनिल कुमार चौधरी,कुलसचिव,एनआईटी जमशेदपुर