एनईपी 2020 के कार्यान्वयन पर अमिटी विश्वविद्यालय की राष्ट्रीय संगोष्ठी
दिनांक: 06 नवम्बर, 2020
माननीय शिक्षा मंत्री, डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’
राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के कार्यान्वयन की दृष्टि से आज इस महत्वपूर्ण कार्यक्रम में उपस्थिति विश्व विद्यालयअनुदान आयोग के अध्यक्ष प्रो. डी.पी. सिंह जी, भारतीय विश्वविद्यालय संघ के अध्यक्ष और गोविन्द बल्लभ पंत कृषि और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. तेज प्रताप सिंह जी, यूजीसी के उपाध्यक्ष डॉ. भूषण पट्टवर्धन जी,अमिटीके संस्थापक अध्यक्ष डॉ. अशोक कुमार चौहान जी, कुलाधिपति डॉ. अतुल चौहान जी, कुलपति डॉ. बलविन्दर शुक्ला जी, अन्य विश्वविद्यालयों के सभी कुलपति गण, कुलाधिपतिगण, सभी आईआईटी,एनआईटी तथा सभी संस्थाओं के निदेशक, सभी छात्र, अध्यापकगण, शोध छात्रऔरउपस्थित देश और विदेश से जुड़ने वाले हजारों भाइयो और बहनों जिनके मन में नई शिक्षा नीति के क्रियान्वयन के लिए छटपटाहट है ऐसे जो आप इस महत्वपूर्ण कार्यक्रम में जुड़े हैं, मैं आप सबका स्वागत कर रहा हूं।
मुझे लगता है कि जैसा अभी कुलपति जी ने कहा है कि यह शिक्षा ही है जो जीवन के तमाम लक्ष्यों के लिए रास्ता देती है और उस शिक्षा के लिए आज हम सब लोग यहां पर एकत्रित हुए हैं इसलिए मैं आप सबका अभिनन्दन कर रहा हूं और विशेष करके डॉ. अशोक चौहान जी का जो विन्रमता और प्रखरता की पराकाष्ठा हैं।
मैं जब-जब भी इनसे मिलता हूं तो आपने बहुत ही विन्रम स्वभाव से अपने विजन को और भारतीयता के साथ विज्ञानको जोड़कर के देश और विदेशमें शिक्षाका प्रसार करने का जो काम किया है उसके लिए मैं आपका और आपकी पूरी टीम का अभिनन्दन कर रहा हूं और मैंबधाई भी देता हूं कि इस नई शिक्षा नीति के प्रति पूरे देश में जागरूकता, उत्साह, उमंग और उल्लास है और न केवल देश में बल्कि पूरी दुनिया में बहुत उत्सुकता भरी दृष्टि से देख रही है।
नई शिक्षा नीति के क्रियान्वयन के लिए आज बहुत ही महत्वपूर्ण आपने सम्मेलन किया है यह दो दिवसीय जोसम्मेलन है यह अपने आप में नयी शिक्षा नीति के क्रियान्वयन की दिशा में एक आधारशिला बनेगाऐसा मेरा भरोसा है। और इसलिए मैं सोचता हूं कि दो दिन तक लगातार जो आपके सभी देश-विदेश से उपस्थित शिक्षक हैं,शिक्षाविद हैं, वैज्ञानिक हैं, शोधार्थी हैं वो सभी मिलकर के विचार-विमर्श और परामर्श करेंगे जिससे ज्ञान का पुंज निकलेगा औरवहहमारे देश को ज्ञान आधारित महाशक्ति के रूप में न केवल स्थापित करेगा बल्कि पूरे विश्व में ज्ञान के महाशक्ति के रूप में भी स्थापित करने की दिशा में एक मील का पत्थर साबित होगा, ऐसा मेरा भरोसा है।
मैं देख रहा था कि अभी दो दिन तक जो आपकी यहगोष्ठी चलने वाली है उसमेंतमाम प्रकार के बहुत खास सत्र आपने शुरू किए हैं। इन सत्रों में वंचितों तक गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की पहुंच सुनिश्चित करने की दिशा में आपविमर्श कर रहे हैं और जोनई शिक्षा नीति है उसके क्रियान्वयन का रास्ता क्या होगा इसपर चर्चा करनेवाले हैं।
वहीं उच्चशिक्षा को समावेशी और उसको वहनयोग्य करने का जो विषय है इस पर भी चर्चा करने के लिए आपने एक सत्र रखा है।सीखनेके लिए सम्पूर्ण परिवेश निर्माण की बात करनी चाहिए कि अंततोगत्वा परिवेश कैसे करके सृजित होगा, निर्मित होगा। नई शिक्षा नीति में भी हमव्यावसायिक शिक्षा व वोकेशनल शिक्षा को लेकर आ रहे हैं।हर प्रणाली में शिक्षक ही तो मूल आधार है इसी कोयोद्धा के रूप में नीचे तक ले जाने का जो काम करना है उसको किस तरीके से पुनर्गठन करने की बात हुई है और उसका क्रियान्वयन कैसे होगा। उच्च शिक्षा और अनुसंधान की दिशा में भी विमर्श करने वाले इन सत्रों में शिक्षा के डिजिटलीकरण की दिशा में भी आपएक सत्र चला रहे हैं और एक सत्र आप औद्योगिकिकरण एवं समाज कल्याण तथा गुणवत्तापूर्ण शैक्षिकअनुसंधान पर भी सत्र चला रहे हैं क्योंकि शोध और अनुसंधान पर ही अधिकांशविकास टिका हुआ है।
किसी चीज को अनुसंधान करके उसे नवाचार के रूप में परिणति तक लाकर उसको अर्थतंत्र से और जीवन से जोड़ने का चुनौतीपूर्ण काम है तथा वो बड़ा काम है।मुझे खुशी है कि आप नवाचार उत्प्रेरण का भी एक सत्र ले रहे हैं। उच्च शिक्षण संस्थानों के लिए प्रभावी प्रशासन और नेतृत्व का विकास जिसकी हमारी बहुत चिंता रही है क्योंकि आपको शिक्षण संस्थानों को लीडरशिप देनी है। जो लीड कर रहे हैं अन्ततोगत्वा उनको किस तरीके से कर रहे हैं, इस पर भी चर्चा करने की जरूरत है अब यूजीसी के चेयरमैन बताएंगे कि उनके नेतृत्व में लीपप्रोग्राम और अर्पित प्रोग्राम शिक्षण संस्थानों में किस तरह से आगे बढ़ रहे हैं। नई शिक्षा नीति में लीडरशिप के विषय को विशेष ध्यानरखा गया है। लीडरशिप बहुत जरूरी है क्योंकि लीडरशिप के अभाव में बहुत सारी चीजें बिखर जाती है और स्वरूप भी बदल जाता है तो यह भी बहुत महत्वपूर्ण है।
भारतीय ज्ञान प्रणाली का एकीकरण जिसके बारे में आपसबको पता है कि अंततोगत्वा भारतीय ज्ञान जिसकी हमलोग चर्चा कर रहे हैं क्योंकि हमारा देश को विश्व गुरु को कहा गया है। इसके बारे में हमेशा से एक उक्ति प्रचलित थी ‘एतद् देश प्रसूतस्य शकासाद् अग्रजन्मन : , स्वं-स्वं चरित्रं शिक्षरेन् पृथ्वियां सर्व मानव:’ तक्षशिला, नालंदा औरविक्रमशिला जैसे विश्वविद्यालय तो हमारे यहां थे। विज्ञान, अनुसंधान, कला, जीवन दर्शन और प्रौद्योगिकी सहित कौन-सा क्षेत्र ऐसा था जहां हम आगे नहीं थे। इस समय जो नई शिक्षा नीति आई है।
उसमें सौ डेढ सौ सालों के बाद ऐसा हो रहा है कि जब लार्ड मैकाले की उस शिक्षा नीति के विपरीत जिसने हमारी शिक्षा को जड़ से मिटाने की कोशिश की क्योंकि हमारी जड़ें गहरी थीं। जबइन बातों को कहते हैं तो कुछ लोगों को बहुत आश्चर्य होता है। मुझे उनके आश्चर्य होने पर कोई दुख इसलिए नहीं होता कि उनको उस वैभव का ज्ञान नहीं कराया गया तथा लोगों को उनसे दूर रखा गया। भारत की उस ज्ञान परंपरा में जिसमेंसुश्रुत जैसे शल्य चिकित्सकइस देश में पैदा हुए आचार्य चाणक्य जैसे विधि तथानीतिवेताइस देश में पैदा हुए, कणाद जैसे अणुओं औरपरमाणुओं का विश्लेषण करने वाले भी इसी धरती पर पैदा हुए हैं। आयुर्वेद जो आुय का विज्ञान है जिस आयुर्वेद के पीछे आज पूरी दुनिया खड़ीहै, उसके महान् ज्ञाता चरक ऋषि की ‘चरक संहिता’ की रचना भी इसी देश में हुई है। मेरा देश ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की बात करने वाला है।
हमने हमेशा से कहा है औरहमारा विचार हमेशा बहुतविशाल रहा हैतथाउसमें हमने कहा है कि अयं निज: परो वेति गणना लघु चेतसाम्। उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् अर्थात्पूरी वसुधा को हमने अपना कुटुम्ब माना है और उसके लिए सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया सर्वे भद्राणी पश्यन्तु मा कश्चिद् दुखभाग्भवेत की कामना की है। जब तक धरती पर एक भी प्राणी दुखी होगा तब तक मैं सुख का अहसास नहीं कर सकता यह है हमारा संकल्प, यह है हमारा विचार और उस विचार को पुख्ता करने के लिए जो हमारे प्राचीन वैज्ञानिकों, शिक्षाविदों, भाषाविदों,का कोई सानी हैं।
चाहे बौधायन हो, कौटिल्य का अर्थशास्त्र आज भी उन्हीं मुद्दों पर खड़ा है और मैं समझता हूं जो मेरे देश के यशस्वी प्रधानमंत्री जी ने नये भारत की बात की है और ऐसा भारत जो स्वच्छ भारत हो,स्वस्थ भारत हो, सशक्त भारत हो, श्रेष्ठ भारत हो, आत्मनिर्भर भारत होऔरएक भारत हो और जो21वीं सदी का स्वर्णिम भारत हो उस स्वर्णिम भारत के लिए यहनई शिक्षा नीति आई है।यह नयी शिक्षा नीति नए आयाम के साथ आयी हैजोकमजोर तबके कोजोड़नेकी बात करेगी और शिखर पर पहुंचने की बात भी करेगी। मैं उन बातों पर पीछे नहीं जाता कि देश की गुलामी के थपेड़ों ने हमको बहुत दूर पटक करके खड़ा किया और हमारी जो शिक्षा है उसका पूरा स्वरूप ही बदल दिया। उसमें चर्चा करके समय गंवाने की जरूरत नहीं है।
अब तो यह है कि जैसे अभी तेजप्रताप जी कह रहे थे कि हम को रूकना नहीं है हमको झुकना नहीं है, हमको जोश के साथ निरंतर आगे बढ़ना है।विवेकानन्द जी ने हमेशा कहा है कि उठो जागो और तब तक नहीं रुको जब तक मंजिल प्राप्त ना हो जाए।
हम तो उस संस्कृति के लोग हैं यदि कोई बीड़ा उठाया है तो उसे हर कीमत पर परिणति तक पहुंचाना ही है। हर कीमत जब बोलते हैं तो जीवन-मरण के सवालों से ऊपर गुजरते हैं क्योंकि पहले तो हम निश्चित रूप से हम मानवता के लिए हम दुनिया के लिए हैं, इस पूरी पृथ्वी के लिए हैं। इसलिए इस विजनके साथ हम कोई चीज सोचते हैं तो फिर हम भारत केन्द्रित होते हैं क्योंकि भारत के बारे में कहा गया है कि ‘अरुण यह मधमेय देश हमारा, जहां पहुंच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा।‘ हम तो पूरी दुनिया को सहारा देने वाले लोग हैं इसकी और मजबूती चाहिए। डॉक्टर अशोक चौहान के प्रति मैं बहुत गदगद रहता हूं क्योंकि वो उन चीजों को पकड़कर आगे बढ़ना चाहते हैं जिन चीजों पर मेरा देश विश्व गुरु रहा है और ऐसे में मैं यह समझता हूं कि यह बड़ा काम है,यहछोटा काम नहीं है और इसीलिए यह जो नई शिक्षा नीति आई हैं इसे बड़े फलक पर देंखें तो यह नेशनल भी है, यह इंटरनेशनल भी है, इम्पैक्टफुल भी है, इन्क्लूसिव भी है और यह इनोवेटिव भी है और यदि आप देखेंगे तो यह इक्विटी, क्वालिटी, एक्सेस की आधारशिला पर खड़ी है।
यदि इस नई शिक्षा नीति को देखेंगे तो इसेमातृभाषा में हमशुरू कर रहे हैं।मातृभाषा में जितनी अभिव्यक्ति सामने आ सकती है वहकिसी और भाषा में नहीं आ सकती है इसलिए प्रारंभिक शिक्षा बच्चे की अपनी मातृभाषा में होगी और उच्च शिक्षा तक यदि कोई प्रदेश करना चाहता है तो वह भी स्वतंत्र है।कुछ लोग कहते हैं कि हमको ग्लोबल पर जाना है तो अंग्रेजी सीखनी पड़ेगी। मैंने कहा हम अंग्रेजी का विरोध नहीं करते, अंग्रेजी ही नहीं और दो-तीन भाषाएं सीखों,लेकिन अपनी भाषाओं को मत छोड़ो। हमारेसंविधान ने हमें 22 खुबसूरत भाषाएं दी हैं। हिन्दी, तमिल, तेलगू, मलयालम, कन्नड़, गुजराती, मराठी, बंगाली,ओडिया, असमिया, उर्दू,यहहमारी 22 खूबसूरत भाषाएँ हैं।
इनमेंअपना ज्ञान है,जीवंता है,तोक्यों हम अपनी भाषाओं को नहीं अपनाएंगे। हमने अंग्रेजी का कभी विरोध नहीं किया लेकिन अंग्रेजी इस देश की भाषा नहीं है। हमें अंग्रेजीक्या पूरी दुनिया की भाषाओं को पढना है। लेकिन मैं उन लोगों से पूछना चाहता हूं क्या जो देशनीचे से लेकर उच्च शिक्षा तकअपनी मातृभाषा में शिक्षा देते हैं वो किसी से पीछे हैं, क्या जापान, फ्रांस, इंग्लैंड और दुनिया के तमाम जो विकसित देश हैं वो अपनी मातृभाषा में शिक्षा देते हैं क्या वो किसी से पीछे हैं,फिर ऐसे तर्क दे करके देश को कमजोर करने की बातक्यों की जाती हैं। इसलिए देश के प्रधानमंत्री जीने कहा कि अब व्यक्ति अपनी मातृभाषा में डॉक्टर भी बन सकता है औरइंजीनियर भी बन सकता है क्योंकि जो बच्चा जिस भाषा को बोलता है यदि उसको उसकी भाषा में शिक्षा दी जाए तो वह उसमें ज्यादा अभिव्यक्त कर सकता है।
यह नीति बहुत अच्छी है। हमारे देश में शिक्षा का कितना बड़ा व्यापक हैं।मैं समझता हूं यहां एक हजार से अधिक विश्वविद्यालय हैं, 45 हजार से अधिक डिग्री कॉलेज हैं,15 लाख से अधिक स्कूल हैं, 1 करोड़ 9 लाख से अधिक अध्यापक हैंऔर कुल अमेरिका की जितनीजनसंख्या नहीं है उससे भी अधिक 33 करोड़ यहां छात्र-छात्राएं हैं।यह बात बिल्कुल सही है कि यह देश यंग इंडिया रहने वाला है। पूरी दुनिया की सर्वाधिक यंगआबादी भारत में है हमारा देश क्या नहीं कर सकता। इसलिए जो तेज प्रताप ने कहा कि इसको क्रियान्वित कैसे करेंगे हमको इसे जुनूनी मूड में लाना पड़ेगा और एक व्यापक परिवर्तन के साथ देश खड़ा हो रहा है।हमारी नई शिक्षा नीति किसी एक व्यक्ति या सरकार की शिक्षा नीति नहीं है।यहभारत की शिक्षा नीति है और जिसने विश्व को लीडरशीप दी है। सभी क्षेत्रों में चाहेज्ञान हो, विज्ञान हो, अनुसंधान और प्रौद्योगिकी का क्षेत्र हो, प्रत्येक क्षेत्र में भारत ने लीडरशिप दी है लेकिन मैं यह निवेदन करना चाहता हूं कि नीति का जब निर्माण होता है तो लगभग नीतियां हमेशाबहुतअच्छी ही बनती है। लेकिन नीति के निर्माण के बाद जो उसके क्रियान्वयन का पक्ष है वह बहुत महत्वपूर्ण है।
आज इस नीति के निर्माण और नीतियों के क्रियान्वयन के जो महत्वपूर्ण कार्य को सम्पन्न करने वाले हैं, वे हमारे बीच बैठे हैं इस लीडरशिप से पहले नीति को जमीन तक ले जाने का जो महत्वपूर्ण काम है,मिशन है,उसमेंमेरे कुलपतिगण हैं, मेरे निदेशक हैं, इन संस्थानों के प्रमुख लोग हैं,अध्यापकगण हैं और शिक्षाविद् हैं उन्हें यह चुनौतीपूर्ण कार्य करना है। चुनौती का मुकाबला यदिडटकर के होता है तोफिर वो अवसरों में तब्दील होती है और वही एक नए सृजन के साथ एक नया निर्माण देती है। इसलिए मुझे लगता है इसके लिए सबको एक मिशन मोड में आना पड़ेगा और मुझे जो वर्तमान में परिस्थितियां लग रही हैं उससे औरमैं तेज प्रताप जी की बात से बहुत सहमत हूं किदेश के अंदर बहुत उत्साह है। उस उत्साह से लोग काम करनाशुरू कर रहे हैं।इस शिक्षा नीति के घोषित होने से पूर्व बहुत बड़ा विचारविमर्श हुआ है। ग्रामप्रधान से लेकर आदरणीय प्रधानमंत्री जी तक परामर्श हुआ,शिक्षकोंसे लेकर शिक्षाविदों तक, वैज्ञानिकों से लेकर विशेषज्ञों तक और एनजीओ से लेकर के राजनीतिज्ञों तक परामर्श हुआ है। 33 करोड़ छात्र छात्राओं के अभिभावकों से परामर्श हुआ है तथा अध्यापकों से परामर्श हुआ है एवं ढाई लाख ग्राम समितियों तक से परामर्श हुआ है।
उसके बाद भी पब्लिक डोमेन में डालने के बाद सवा दो लाखसुझाव आये हैं। दुनिया का पहला ऐसा उदाहरण होगा और उन एक-एक सुझाव पर व्यापक विश्लेषण के बाद यह नीति बनी और इसलिए नीति बहुत खूबसूरत है। प्रारंभिक अवस्था से ही अब कक्षा छह से वोकेशनलस्ट्रीम के साथ हम शिक्षा ला रहेहैं। हम शिक्षण एवं शिक्षेणेतर जिसमें सभी गतिविधियां होंगी, सांस्कृतिक गतिविधियां होंगी, योग होगा, खेलकूद होगा, विभिन्न प्रकार की गतिविधि होंगी, शिक्षणेत्तर गतिविधियां और वोकेशनल स्ट्रीम वो भी इंटर्नशिप के साथ होगा तो जब बच्चा स्कूल से बाहर निकलेगा तो एक योद्धा की तरह निकलेगा और अब उसका मूल्यांकन भी बिल्कुल नयी पद्वति से होगा। अब 360 डिग्री होलिस्टिक उसका मूल्यांकन होगा जिसमें वो अपना स्वयं का मूल्यांकन भी करेगा, उसका अभिभावक भी उसका मूल्यांकन करेगा और उसके अध्यापकगण भी उसका मूल्यांकन करेंगें, उसका साथी भीउसका मूल्यांकन करेगा।
नई शिक्षा नीति के तहत स्कूली शिक्षा से ही आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पढ़ाने वाले शायद हम दुनिया का पहला देश होंगे। स्कूली शिक्षा से ही हम कृत्रिम बुद्धिमत्ता को ला रहे हैं और अब बच्चे के मूल्यांकन की जोमैंने बात की है उसको रिपोर्ट कार्ड नहीं मिलेगा, उसको प्रोग्रेस कार्ड मिलेगा और उच्च शिक्षा में भी देखेंगे तो यह नीति कितना व्यापक परिवर्तन लाई हैं।
अब विद्यार्थी किसी भी विषय को चुन सकता है वो साईंस के साथ साहित्य को भी ले सकता है एवं तकनीकी के साथ संगीत को लेसकता है। जिसक्षेत्र में तथाजिस विषय में महारत हासिल कर सकता है तथा उसके अंदर की ऊर्जा अब बाहर निकल निकल सकती है और वो अपनेजीवन में प्रगति कर सकता है। अब बच्चे के लिए पूरा मैदान खाली है और इतना ही नहीं इस शिक्षा नीति के अंतर्गत यदि कोई 4 वर्ष का कोर्स है और यदि कोई छात्र दो साल में परिस्थितिवश छोड़के जा रहा है तो पहले उसका पैसा एवं समय दोनों खराब हो जाते थे लेकिन अब उसको निराश नहीं होना पड़ेगा,यदि आप परिस्थितिवश एक वर्षमें छोड़ कर जा रहे हैं तो उसको सर्टिफिकेट देंगे, दो साल में छोड़ कर जा रहा है तो डिप्लोमा देगें, तीन साल में छोड़कर जा रहा है तो उसको डिग्री देंगे लेकिन यदि फिर वह लौट कर अपना भविष्य को संवारना चाहता है तो फिरवह जहां से उसने छोड़ा था वहीं से शुरू कर सकता है। उसके लिए हम एक ऐसा क्रेडिट बैंक बनायेंगे जहां उसके सारे क्रेडिट जमा होंगेइसलिए उसके लिए आगे बहुत आपार संभावनाएं है।पूरी दुनिया में अपने तरीके से नए अभिनव प्रयोग के साथ हम इसको ला रहे हैं।
शोध और अनुसंधान की जैसे अभी आपने चर्चा भी की है तो मुझे लगता है मेरी संस्थान कहां कमजोर हुए हैं जबकि हमारे पास व्यापकता है। मुझे ऐसा लगता है कि हमेंशोधऔर अनुसंधान के क्षेत्र में तेजी से थोड़ा आगे बढ़ना पड़ेगा और हमको पेटेंट भी करना पड़ेगा।अभी भी ऐसा नहीं हैं किहमनहीं कर रहे हैं। हम ‘स्पार्क’के तहतदुनिया के 127 शीर्ष विश्वविद्यालयों के साथ हमलोग शोध और अनुसंधान कर रहे हैं,हम‘ज्ञान’ के तहत जहां बाहर की फैकल्टी को यहां बुला रहे हैं वहीं‘ज्ञान प्लस’में हमारी भी फैकल्टी बाहर पढ़ाने के लिए जाएंगी।इसलिए फैकल्टी को आने और जाने का इतनाहीनहीं बल्कि भविष्य में ‘स्टडी इन इंडिया’और ‘स्टे इन इंडिया’ की अभीबातचीत हुई है, स्टडी इन इंडिया को एकब्रांड बनायेंगे।मुझे इस बात को कहते हुए खुशी है कि दुनिया के देशों में अब भारत में पढ़ने के लिए हौड़ सी लगती है।
हमने जब ‘स्टडी इनइंडिया’ अभियान लिया और उसमें हजारों नामांकनहो रहे हैं और अब हमारा दूसरा महत्वपूर्ण कदम‘स्टे इन इंडिया’ है।अभीहमने ‘स्टेइन इंडिया’कीभी बात कीक्योंकि हमारे देश से 7-8 लाख छात्र प्रतिवर्ष विदेशों में पढ़ने के लिए जा रहे हैं। हमारे देश का पैसा और प्रतिभा दोनों बाहर चली जाती हैं तो वापस वह हमारे देश में नहीं आती है।हमने छात्रों को भरोसा दिलाया कि हमारे आईआईटी, एनआईटी, आईएसर, केन्द्रीय विश्वविद्यालयों में योग्यता है, क्षमता है आपको बाहर जाने की जरूरत नहीं है,अब लोगों की समझ में आ गया है।
मुझे इस बात की भी खुशी है कि दो लाख से भी अधिक छात्रों ने जो विदेश में जा रहे थे वे जेईई और नीट की परीक्षाओं में सम्मिलित हुए। हम ‘स्टे इन इंडिया’ के तहत दुनिया के शीर्ष सौविश्वविद्यालयों को अपनी धरती पर आमंत्रित कर रहे हैं, आपकोकहीं जाने की जरूरत नहीं है और यहां के जो शीर्ष विश्वविद्यालय हैं वेभीबाहर जा रहे हैं।मुझेइस बात की खुशी हैकि जब दुनिया के उन परिसरोंके बारे में मैं अध्ययन करता हूं तो हमारे संस्थानोंको अधिकांश क्षेत्रों में शीर्ष पर देखता हूं। ऐसे ही हम यहां भी उनके कुछ विश्वविद्यालयों को लाएंगे और अपने विश्वविद्यालयों को आईओई सहित हमारे एनआईआरएफ में जो टॉप 100 विश्वविद्यालयों को हम ऑनलाइन भी ले करआ रहे हैं।
नई शिक्षा नीति में हम शोध और अनुसंधान के दिशा में नेशनल रिसर्चफाउंडेशन ला रहे हैं जो प्रधानमंत्री जी के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार की अध्यक्षता होगा, इससे शोध और अनुसंधान की गतिशीलता को बढ़ावा मिलेगा और वही तकनीकी के क्षेत्र में अंतिम छोर तक उसको पहुंचाने के लिए हमनेशनल एजुकेशन टेक्नोलॉजी फोरम का गठन कर रहे हैं। इस शिक्षा नीति के तहत हम मूल्यांकन भी करेंगे उसको आगे भीबढ़ाएंगे। विश्व के शिखर तक संस्थाओं को किस तरीके से आगे बढना है और रैंकिंग में हमारे संस्थान कैसे करके जंप मार सकते है, इस पर काम करने कीआवश्यकता है। इसीलिए उच्चतर शिक्षा आयोग का गठन कर रहे हैं ताकि शैक्षणिक गुणवत्ता और सशक्तता हमारी बनी रहेगी। मुझे भरोसा है कि जो नई शिक्षा नीति है वो नई शिक्षा नीति जिस स्तर पर विश्वविद्यालय अपना शुरू करना चाहते हैं वो शुरुआत कर सकते हैं। मुझे यह भी कहते हुए खुशी है कि बहुत सारी चीजें जोनई शिक्षा नीति में जोहम लेकरआये हैं उनका हमने पालन करना शुरू कर दिया है।
भारतीय शिक्षण प्रक्रिया के विकेन्द्रीकरण, सशक्तिकरण और स्वायत्तता के हम पक्षधर हैं उसका लाभ लेकर के यह जो नई लहर है शिक्षा की वो अंतिम कोने तक पहुंचेगी क्योंकि हमको इस बात पर भी चिंता है कि अभी हमारा जीईआर 26-27 प्रतिशत है। हमें वर्ष 2035 तक इसको 50 प्रतिशत करने का टारगेट रखा है जिसमें साढ़े तीन करोड़ से भी अधिक छात्र नई और उच्च शिक्षा में नया स्थान प्राप्त कर सकेंगे। मैं सोचता हूं कि व्यापक परामर्श और सुझाव कीअभूतपूर्व प्रक्रिया से होकर हमगुजरे हैं अब यह जो दूसरी प्रक्रिया है जो निश्चित रूप से बहुत ताकत मांगती है, जो समर्पण मांगती है, जो प्रखरता मांगती है, जो विनम्रता मांगती है, जो धैर्य मांगती है इसलिए जो भी हमारे योद्धा जुड़े हुए हैं, मैं उनसे कहना चाहता हूं कि मुझे ऐसा लगता है कि हमको 5 डी मॉडल के साथ आगे बढना पड़ेगा।
डिस्कस, डिबेट, डिसाइड, डिसिमिनेट और डिलिवर इन पांचों कोलेकर हमें आगे बढ़ना पड़ेगा और तब जाकर के हम एक अच्छे मार्गदर्शक के रूप में हो सकते हैं क्योंकि मैं समझता हूं कि छात्र इस नीति का केन्द्र बिन्दु है लेकिन इसका फोकस प्वाइंट हमारे ब्रांड अम्बेसडर हैं।इसनयी शिक्षा नीति में एक ओर छात्र हैं तो दूसरी ओर शिक्षक और शिक्षाविद हैं।
\नई शिक्षा नीति के क्रियान्वयन के लिए विश्वविद्यालय और महाविद्यालय को कार्य योजना बनाकर उसको समयबद्ध लागू करना पड़ेगा क्योंकि कितने समय में हम क्या-क्या कर सकते हैं उसमें प्रशासन केविकेंद्रीकरण और सशक्तिकरण के साथ जोड़कर हमकोआगे बढ़ानापड़ेगा। मुझे भरोसा है कि हम स्टडी इन इंडिया और स्टे इन इंडिया इन दोनों लक्ष्यों को भी हम प्राप्त कर सकेंगे और ग्लोबल पार्टनरशिप के माध्यम से हम दुनिया को बताना चाहते हैं कि अब जो हमारी संस्कृति है, जो हमारी विविधता है, जो हमारे देश का सॉफ्ट पावर है, वो दुनिया के फलक पर कैसे महक सकता है। मैं समझता हूं कि शोधअनुसंधान के द्वारा हमें टैलेंट को ढूंढना भी है, उसका विकास भी करनाहै औरउसका विस्तार भी करना है तथाटैलेंट को पेटेंट के साथ जोड़नाभी है।मैंदेख रहा था पीछे के समय 10-15 साल पहले जहां चीन हमारे बराबरथा लेकिन उसने जंप मारा है। वहां जमीन-आसमान का अंतर है तो इस बीच हमारा पीछे के समय में जो 10 15 वर्ष पीछे के थे और उनमें हम लोग उस दिशा में और गंभीरता से आगे बढ़ नहीं पाये। अब जरूरत हो गई है और परिवेशभी बनरहा है।
हमारे देश के प्रधानमंत्री जी ने तो जय अनुसंधान का नारा दिया है कि जयअनुसंधान के साथ विश्व फलक पर मेरे देश को आगे बढऩा है। मुझे भरोसा है कि इसके लिए आपविशेषज्ञों को अपने-अपने संस्थानों में, विश्वविद्यालयों में,अपनेप्रोफेसर, शिक्षाविद और विशेषज्ञों की टास्कफोर्स बनाकर इस नीति को नीचे तक ले जाने का तरीका भी बनाएंगेऔर उसको क्रियान्वित भी करेंगे। हर कदम पर व्यवधान आते हैं जब कोई नई चीज होती है लेकिन हमें व्यवधान से समाधान की ताकत चाहिए और मुझे भरोसा है कि जो टास्कफोर्स आपतैयार करेंगे वो व्यवधान से समाधान की ओर बढ़ने के सभी बिन्दु तैयार करेंगे। राज्य के विश्वविद्यालय हों, चाहेकेन्द्रीय विश्वविद्यालय हो, चाहे प्राइवेट विश्वविद्यालय हों उन सभी में पारस्परिक समन्वय हो, इसकी भी हम लोग पूरी कोशिश कर रहे हैं। इसलिए मैं अपने सभी कुलपति गण से, सभी निदेशक से औरसभीशिक्षाविदों से यह आग्रह करूंगा कि मेक इन इंडिया डिजिटल इंडिया स्किल इंडिया स्टार्टअप इंडिया जो भारत की 5 ट्रिलियन डॉलर की आर्थिकी के रूप में सुनिश्चित करेगा।इक्कीसवीं सदी का जो स्वर्णिम भारत होगा उसके निर्माता के रूप में आप सारे लोग हमारे देश के प्रधानमंत्री जी के उस विजन को, उस मिशन को, उस संकल्प को पूरा करेंगे।आप निश्चित रूप में दो दिन के इस सेमिनार में ‘सबका साथ सबका विकास और सबका विश्वास’ मंत्र को ले करके आगे बढ़ेंगे। टीम इंडिया के रूप में हम ‘इंडिया फर्स्ट’ का नारा ले करके कैसे आगेबढ़ सकते हैं, इसको जुनून के साथ हम करेंगे।मैंएमिटी का आभारी हूं कि उन्होंने यह शुरुआत कर दी है और बहुत खूबसूरत शुरूआत है। मैं देखता हूं सभी प्रदेशों के शिक्षा मंत्रियों से औरमुख्यमंत्रियों से लगातार मेरी बातचीत होती है और मुझे इस बात की खुशी है कि लगभग देश के सभी मुख्यमंत्री एवं सभी शिक्षा मंत्री इस मूड में हैं कि अबमैं अपने प्रदेश में कैसे करके पहले इसको लागू कर सकता हूं, मेरी शुभकामनाएं।
बहुत-बहुत धन्यवाद!
कार्यक्रम में गरिमामयी उपस्थिति:-
- डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’, माननीय शिक्षा मंत्री, भारत सरकार
- डॉ. अशोक कुमार चौहान, संस्थापक, अमिटी विश्वविद्यालय
- डॉ. बलविन्दर शुक्ला, कुलपति, अमिटी विश्वविद्यालय,
- डॉ. अतुल चौहान, कुलाधिपति,अमिटी विश्वविद्यालय
- प्रो. डी.पी. सिंह, अध्यक्ष, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग,
- डॉ. भूषण पट्टवर्धन, उपाध्यक्ष, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग,
- डॉ. तेज प्रताप सिंह, कुलपति, गोविन्द बल्लभ पंत कृषि और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय एवं अध्यक्ष, भारतीय विश्वविद्यालय अनुदान संघ