कुवैत में प्रवासी भारतीयों के साथ एनईपी पर परिचर्या
दिनांक: 22 जनवरी, 2021
माननीय शिक्षा मंत्री, डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’
भारतीय प्रवासी परिषद कुवैत द्वारा एनईपी 2020 पर आज बहुत ही महत्वपूर्ण सम्मेलन आपने आयोजित किया है तो मैं सबसे पहले सभी आयोजकों का हृदय की गहराइयों से बहुत अभिनंदन कर रहा हूं और इस बहुत ही महत्वपूर्ण कार्यक्रम में यहां पर उपस्थित भारत के राजदूत श्री सीबी जॉर्ज जी, प्रवासी भारतीय परिषद् के संरक्षक और कई संगठनों के संस्थापक सदस्य श्री वेणु गोपाल जी,अधिवक्ता व अध्यक्ष भारतीय प्रवासी परिषद्श्री सुमोध जी, आयोजन समिति के सचिव और भारतीय प्रवासी परिषद के आयोजन सचिव श्री विजय राघवन जी, उपाध्यक्ष भारतीय प्रवासी परिषद् संपत कुमार जी, उपाध्यक्ष भारतीय प्रवासी परिषद महिला शक्ति श्रीमती रेम धनेश जी और महासचिव भारतीय प्रवासी परिषद महिला प्रकोष्ठ श्रीमती विद्या सुबोध जी, प्रिय भाई मुकेश गुप्ता जी, परिषद से जुड़े सभी सदस्य गण, पदाधिकारी गण, भारतीय दूतावास के सभी अधिकारी और कर्मचारी वर्ग कुवैत में रहने वाले सभी सीबीएसई के हजारों छात्र और उनके सभी अभिभावक गण, सीबीएसई स्कूलों के प्राचार्य और सभी अध्यापक गण तथा यहां पर 10 लाख से भी अधिक जो भारतीय हैं जो आज मुझसे जुड़े हुए हैं, मैं भारत की धरती से आप सब लोगों को अभिवादन कर रहा हूँ तथा आपका अभिनंदन कर रहा हूँ क्योंकि आप इतनी दूर जाकर के भी भारत की गहरी जड़ों से जुड़े हैं और वो भारत जो पूरे विश्व के लिए है और उस भारत के लिए आपके मन में हमेशा से ही श्रद्धा और विश्वास, निष्ठा और समर्पण का भाव रहा है और मुझे आज खुशी है कि पूरी दुनिया में सबसे बड़े रिफॉर्म के रूप में हमारी नई शिक्षा नीति आई है। भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री जिनकी पूरी दुनिया के सर्वाधिक लोकप्रिय नेताओं में गिनती होती है, उनके सानिध्य में तथाउनके संरक्षण में एवं उनके मार्गदर्शन में भारत में पूरे आमूलचूल परिवर्तन की दिशा में नईशिक्षा नीति आयी है।नई शिक्षा नीतिबहुतबड़े बदलाव और सुधारों के साथ आई है और वो पूरी दुनिया के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण साबितहोगी। इससे न केवल भारतीय लोगों को इसका लाभ मिलेगा बल्कि कुवैतको भी इसका पूरा लाभ मिलेगा क्योंकि यह पूरी दुनिया मेंसबसे बड़े विमर्श के बाद आनेवाली शिक्षा नीति है। दुनिया में शायद ही कभी किसी नीति पर इतना बड़ा परामर्श हुआ होगा। आप समझ सकते हैं कि हिंदुस्तान में शिक्षा का वैभव कितना बड़ा है।हमाराहिंदुस्तान दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है और इसमें शिक्षा के व्याप को यदिआपभी देखेंगे तो हमारे पास एक हजार से भी अधिक विश्वविद्यालय हैं, हमारे पास 50 हजार से भी अधिक डिग्री कॉलेज हैं, हमारे पास लगभग 16 लाख स्कूल हैं और केवल यदि अध्यापक की गणना करूं तो 1 करोड़ 10 लाख अध्यापक हैं और जो विद्यार्थियों की संख्या है मेरे हिन्दुस्तान की वो कुल मिलाकर के अमेरिका जैसे देश की कुल जनसंख्या जितनी नहीं है उससे भी अधिक 33 करोड़ छात्र-छात्राएं हिन्दुस्तान की धरती पर हैं। आप समझ सकते हैं किअगले 35 वर्षों तक हमारा देश यंग इंडिया रहने वाला है। ऐसे वक्त में उसकी एक ऐसी शिक्षा नीति आई है जो आमूलचूल परिवर्तन करेगी और जो न केवल भारत मेंनए भारत के निर्माण की बात करती हैबल्कि विश्व फलक पर एक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तमाम परिवर्तनों के रूप में उभर कर के सामने आती है। हम नहीं भूलते हैं कि भारत विश्वगुरु रहा है और पूरी दुनिया ने भारत से आकर सीखा है। आपको मालूम होगा कि तक्षशिला, नालंदा औरविक्रमशिला जैसे विश्वविद्यालय हमारे देश में थे, जहां ज्ञान विज्ञान अनुसंधान नवाचार और जीवन मूल्यों को सीखने के लिए पूरी दुनिया के लोग आते थे और वो भारत जिसमेंसुश्रुत जैसे शल्य चिकित्सकपैदा हुए,आचार्य चाणक्य जैसे विधि तथा नीतिवेताइस देश में पैदा हुए, कणाद जैसे अणुओं और परमाणुओं का विश्लेषण करने वाले भी इसी धरती पर पैदा हुए हैं। आयुर्वेद जो आयु का विज्ञान है और जिस आयुर्वेद के पीछे आज पूरी दुनिया खड़ी है, उसके महान् ज्ञाता चरक ऋषि की ‘चरक संहिता’ की रचना भी इसी देश में हुई है।पीछे केसमय में दुनिया में हिन्दुस्तान के प्रधानमंत्रीजी नेपूरे विश्व के सबसे बड़े मंच पर मनुष्य की रक्षा हेतु चाहे वहकिसी भी देश का क्यों नहीं है लेकिन इस मानव की आज जिस तरीके से उसकी रक्षा की बात की और आज उसके स्वास्थ्य से लेकर के उसके तन और मन के स्वास्थ्य की चिंता की और योग को उसके लिए उपयोगी बताया और पूरी दुनिया ने उसको माना। शायद दुनिया के इतिहास में यह पहली बार हुआ होगा कि इतने कम समय में कोई प्रस्ताव पारित हो जाए और 197 देश उसके पीछे खड़े हो जाएं और लागू भी हो जाए। 21 जून को पूरी दुनिया योग दिवस मनाती है और योग के जनक पातंजलि भी भारत की धरती पर पैदा हुए हैं। अभी कुछ दिन पहले जब हमारी नई शिक्षा नीति आई है तो उसकी प्रशंसा कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय जो दुनिया के शीर्षविश्वविद्यालयों में से एक है,उसने कहा कि हां, भारत एक ज्ञान की शक्ति पहले से रहा है और यदि भारत के आर्यभट्ट गणित नहीं देतेतो शायद विश्व के बहुत कुछ अपने हाथ में नहीं रहता। बीज गणित को देने वाला आर्यभट्ट हो या भास्कराचार्य यह सब हिन्दुस्तान की धरती पर ही पैदा होते हैं। यदि अर्थशास्त्र की दिशा में भी देखेंगे तो कौटिल्य के अर्थशास्त्र काकोई सानी नहीं है। जिस आत्मनिर्भरभारत की मेरे देश के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने बात की है वो कौटिल्य के अर्थशास्त्र में निहित है, जिसको लेकर देश को सोने की चिड़िया कहते थे। जहां एक ओर दुनिया उसको विश्व गुरु कहती है तो दूसरी ओर उसको सोने की चिड़िया भी कहते थे और इसीलिए चाहे बौधायन होऔर चाहे नागार्जुन हों और चाहे ऋषि कणाद हो और चाहे आर्यभट्ट हो यदि इनकी एक लंबी श्रृंखला को मैं कहूंगा तो एक लंबा समय हो जाएगा लेकिन निचोड़ यह है कि भारत पूरी दुनिया में ज्ञान की महाशक्ति के रूप में रहा है। वो आज भी हमारे पास है और भारत का विचार कभीछोटा नहीं रहा है। मेरा देश ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की बात करने वाला है। हमने कहा है कि ‘अयं निज: परो वेति गणना लघु चेतसाम्। उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्’ अर्थात्पूरी वसुधा को हमने अपना कुटुम्ब माना है और उसके लिए ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया सर्वे भद्राणी पश्यन्तु मा कश्चिद् दुखभाग्भवेत’की कामना की है। जब तक धरती पर एक भी प्राणी दुखी होगा तब तक मैं सुख का अहसास नहीं कर सकता यह है हमारा संकल्प, यह है हमारा विचार और उस विचार को पुख्ता करने के लिए जो हमारे प्राचीन वैज्ञानिकों, शिक्षाविदों, भाषाविदों,का कोई सानी नहीं हैं। चाहेबौधायन हो, कौटिल्य का अर्थशास्त्र आज भी उन्हीं मुद्दों पर खड़ा है और मैं समझता हूं कि जो मेरे देश के यशस्वी प्रधानमंत्री जी ने नये भारत की बात की है और ऐसा भारत जो स्वच्छ भारत हो, स्वस्थ भारत हो, सशक्त भारत हो, श्रेष्ठ भारत हो, आत्मनिर्भर भारत हो औरएक भारत हो और जो21वीं सदी का स्वर्णिम भारत होउसस्वर्णिम भारत के लिए यहनई शिक्षा नीति आई है। यह नयी शिक्षा नीति नए आयाम के साथ आयी हैजोकमजोर तबके को जोड़नेकी बात करेगी और शिखर पर पहुंचने की बात भी करेगी।इसलिए नईशिक्षा नीति पर आज जो चर्चा की है उसे हम बहुत बेहतर तरीके से लायेहैं। हमने इस नीति में मातृभाषा से शुरू किया है कि हमारी प्रारंभिक शिक्षाबच्चे की अपनीमातृभाषा में होगी क्योंकि जितनी अभिव्यक्ति बच्चाअपनी मातृभाषा में दे सकता है उतनी किसी दूसरी सीखी हुईभाषा में नहीं हो सकती है। इसलिए यूनेस्को लगातार इस बात का दबाब देता रहा है।जबसतत विकास के लक्ष्यों की यूनेस्को ने चर्चा की थी, उस समय भी यूनेस्को ने शुरू से ही इस बात को कहा था कि अपनी मातृभाषा में ही शिक्षा होनी चाहिए।हमने10+2को हटा दिया और उसके स्थान पर 5+3+3+4 लेकर आये हैं। वैज्ञानिकों का यह कहना है कि बच्चे में तीन से छह वर्ष तक बहुतविलक्षण प्रतिभा होती है और उसका लगभग 85 प्रतिशत का जो मस्तिष्क का विकास होता है वह तीन से और छह वर्ष के बीच होता है इसलिए हम इस अवसर को भी हाथ मेंपकड़ करके रखना चाहते हैं। खेल-खेल में बच्चे की प्रतिभा को समग्र तरीके से बाहर निकाला जा सकता है। हम भी खेल के माध्यम से उस 3 वर्ष के बच्चे को लेकर के आगे बढ़ायेंगे। हमने 5 को भी 3+2 में किया है जिसके तहत तीन वर्ष तो बच्चा आंगनबाड़ी में रहेगा औरमौज मस्ती के साथ रहेगा लेकिन वह क्या देखना चाहता है, क्या बोलना चाहता है, क्या समझना चाहता है, क्या अभिव्यक्त करना चाहता है, इन सबको ध्यान में रखकर उसके मन के अनुरूप शिक्षा देंगे उसे इस तरीके का परिवेश देंगे कि वह चाहता क्या हैऔर उसकेअंदर क्या है और कैसे करते उसकी सब प्रतिभा बाहर निखर कर क्या सकती है और उसके बाद यह शिक्षा आगे जाती है तो हम छठी कक्षा से ही बच्चे को व्यावसायिक शिक्षा देंगे आज की शिक्षा केवल डिग्रीधारी है,डिग्री कौन से लाभ दे रही है उसकाजीवन में लोगों को पता ही नहीं था और इसीलिए अब छठी क्लास से वोकेशनल एजुकेशनवो भी इन्टर्नशिप के साथ हमदेंगे। हम केवल अंक ज्ञान और पुस्तकीय ज्ञान मात्र नहीं देना चाहते बल्कि हम उसको स्थानिकता से जोड़कर व्यावहारिक ज्ञान प्रदान करना चाहते हैं। हमने मातृभाषाओं को शिक्षा का माध्यम बनाने पर बल दिया है। तमिल, तेलुगू, मलयालम, कन्नड़, गुजराती, मराठी, बंगाली, असमिया,उड़िया,संस्कृत, हिन्दी, पंजाबी ये सभीहमारीभारतीयसंविधान में हमारी 22 भारतीय भाषाएं हैं,हमेंउन 22 भारतीय भाषाओं को और सशक्त करना है। इन भाषाओं में विज्ञान है, अनुसंधान है,आचार है,विचार है,सदाचार है, परंपराएं हैं तथा तमाम ज्ञान और विज्ञान और व्यवहार उसमें समाया है, उसकी संस्कृति समाई हुई इसलिए इन भाषाओं के माध्यम से उसकी भी शिक्षा शुरू करनी है। कोई राज्य चाहे तो ऊपर तक भी अपनी मातृभाषा में शिक्षा को दे सकता है। लेकिन छठवीं कक्षा से हीजो वोकेशनल एजुकेशन होगा उसके तहत बच्चा छठवीं, सातवीं, आठवीं, नौवीं, दसवीं तक जाते जाते एक ऐसे योद्धा के रूप में बाहर निकलेगा जब उसेकिसी के पैरों पर खड़े होने की जरूरत नहीं होगी औरवो अपना स्टार्ट-अप स्वयंभी शुरू कर सकता है। यह‘आत्म निर्भर’ भारत की जो बात है उसको मालूम है मेरे गांव के आस-पास क्या है मेरे प्रदेश में क्या है, मेरे क्षेत्र में क्या है,उन पर शोध अनुसंधान और नवाचार करके उसको उबार सकता हूं। उन समस्याओं का भी समाधान कर सकता एक नई संभावनाओंको तलाश सकता हूं और यह इतना बड़ा देश है135 करोड़ लोगों का देश है। जैसा कि मैंने कहा हिन्दुस्तान दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है और इसीलिए हम उसको वोकेशनल एजुकेशन भी दे रहें हैं और उस के स्कूली शिक्षा से आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस भी दे रहे हैं जहां हम अभी तक आईआईटी में पढ़ाते थे जाकरके बच्चा आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस पढता था अब उसको स्कूली शिक्षा से देंगे। शायद दुनिया का हिंदुस्तान पहला देश होगा जो स्कूली शिक्षा से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस देगा। मैंने देखा आज 50 हजार बच्चे कुवैत के मेरे साथ जुड़े हैं। सीबीएसई के बोर्ड में भी सारे के सारे आमूल चूल परिवर्तन किए हैं और सीबीएसई के आज हमारे पूरी दुनिया में लगभग 18 से 30 देशों में सीबीएसई के स्कूल चल रहे हैं और पूरी दुनिया का हम पर दबाव है कि हमको भी सीबीएसई स्कूल चाहिए क्योंकि सीबीएसई से पढ करके निकलने वाला बच्चा हीरा होता है हीरा। और मैं आपको शुभकामना देता हूं कि जो नई शिक्षा नीति आई है आप वो हीरे चमकेंगे जो सारी दुनिया में ऐसा प्रकाश देगे जिससे दुनिया को सुख और शांति और समृद्धि भी प्राप्त होगी। और इसीलिए हम यह एजूकेशन दे रहे हैं लेकिन बच्चे काअबएक सूत्री रिपोर्ट कार्ड भी नहीं होगा कि उसको केवल रिपोर्ट कार्ड हम उसको नहीं दे रहे हैं।अब बच्चे का रिपोर्ट कार्ड की बजाय प्रोग्रेस कार्ड होगा अब बच्चे की प्रगति का 360 डिग्री होलिस्टिक मूल्यांकन होगा। उसका अध्यापक तो मूल्यांकन करेंगे ही करेंगे साथ ही अभिभावक भी उसका मूल्यांकन करेगा। वो स्वयं भी अपना मूल्यांकन करेगा तथा उसका साथी भी उसका मूल्यांकन करेगा। जब इस प्रकार चार लोग मूल्यांकन करेंगे तो बहुआयामी तरीके से उसकी प्रतिभा विकसित होगी। उसको संबंधों की अच्छी पहचान भी हो होगी उसको मालूम होगा कि मेरा जो साथी बगल में बैठता है उसके साथ मेरे को अच्छे संबंध रखने हैं मुझे उनकी प्रतिभा को समय-समय पर अवगत कराते रहना है।इससे बच्चा आत्मविश्वास से भरा होगा तथा उसका व्यवहारभी विनम्र होगा और वो अपनी प्रतिभा को लगातार विश्लेषित करेगा। इस प्रकार उसका 360 डिग्री का होलिस्टिक मूल्यांकन होगा जो उसको एक योद्धा के रूप में खड़ा करके और आत्मविश्वास के रूप में खड़ा करेगा। जहांस्कूली शिक्षा में हम लोगों ने बहुत सारे परिवर्तन किए हैं,वहीं उच्च शिक्षा में भी बहुत व्यापक तरीके से परिवर्तन हमने किया है। अब विद्यार्थी कोई भी विषयले सकता है,उसकी क्या इच्छा है। अब उस पर कोई विषय थोपा नहीं जाएगा। हमने उसके लिए भी मैदान खाली छोड़ दिया हैं। इस शिक्षा नीति के अंतर्गत यदि कोई 4 वर्ष का कोर्स है और यदि कोई छात्र दो साल में परिस्थितिवशछोड़के जा रहा है तो पहले उसका पैसा एवं वर्ष दोनों खराब हो जाते थे लेकिन अब उसकोनिराश नहीं होना पड़ेगा। यदिवह परिस्थितिवश एक वर्षमें छोड़ कर जा रहा है तो उसको सर्टिफिकेट देंगे,दो साल में छोड़ कर जा रहा है तो डिप्लोमा देगें, तीन साल में छोड़ेकर जा रहा है तो उसकोडिग्री देंगे लेकिन यदि फिर वह लौट कर अपने भविष्य को संवारना चाहता है तो फिर जहां से उसने छोड़ा था वहीं से शुरू कर सकता है। उसके लिए हम एक ऐसा क्रेडिट बैंक बनायेंगे जहां उसके सारे क्रेडिट जमा होंगे इसलिए उसके लिए आगे बहुत आपार संभावनाएं है।वह कहां जाना चाहता है। यदि वह शोध और अनुसंधान के क्षेत्र में जाना चाहता है तोहमने ‘नेशनलरिसर्च फाउंडेशन’ की स्थापना की है, जो कि प्रधानमंत्री जी के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार की अध्यक्षता में होगी और उससे शोध की संस्कृति को तेजी से आगे बढ़ेगीवहीं हम तकनीकी को नीचे स्तर तक, अंतिम छोर के व्यक्ति तक कैसे पहुंचा सकते हैं इसके लिए ‘नेशनल एजूकेशन टैक्नोलॉजीफोरम’का भी गठन कर रहे हैं। जिससेतकनीकी दृष्टि से भी देश समृद्ध हो सके और जो मेरे देश के प्रधान मंत्री जी ने कहा ‘वोकल फॉर लोकल’हमउस लोकल पर तो जाएंगे ही और उस लोकल से उसकी स्किल को, उसकी प्रतिभा का विकास करके उसको ग्लोबल तक ले करके जाएंगे अर्थात् अंतरराष्ट्रीय स्तर तक ले करके जाएंगे। अभी कुछ दिन पहले ब्रिटेन के विदेश मंत्री जी जब यहां आए तो उनसे भी संवाद करने का अवसर मिला,उन्होंने कहाकि यह शिक्षा नीति हिन्दुस्तान के लिए ही नहीं पूरे विश्व के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।हमने इस उस शिक्षा नीति को बनाने के लिएएक हजार विश्वविद्यालयों के कुलपतियों से संवाद किया,हमने 45-50 हजार डिग्री कॉलेज के प्रिंसिपल से संवाद किया,हमने33 करोड़ छात्र-छात्राओं से और उनके माता-पिता यदि देखें तो 99 करोड़ हो जाते हैं, तो सौ करोड़ लोगों से परामर्श किया। ग्रामप्रधान से लेकरप्रधानमंत्री जी तक और गांव से लेकर के संसद तक, अध्यापक से लेकर शिक्षाविद् तक संवाद किया और उसके बाद भी इस नीति के मसौदे को हमने पब्लिक डोमेन मेंडाला था और यह कहा था कि अभी भी किसी को कोई सुझाव देना है तो दे सकता है और लगभगदो लाख सुझाव आए थे हमारे पास औरउन दो लाख सुझावों के विश्लेषण के लिए हमनेतीन-तीन सचिवालय बनाये।एक स्कूली शिक्षा का अलग, तकनीकी शिक्षा का अलग, उच्च शिक्षा का अलग और तब जाकर यी हमारी नयी शिक्षा नीति निकली है। इसलिए यहनईशिक्षा नीति नेशनल भी है क्योंकि यहभारतीय मूल्यों पर आधारित है। आज शिक्षा ने मनुष्य को मशीन बना दिया है और जो मशीन बनकरभाग रहा है,पैसा भी आ रहा है लेकिन जीवन मूल्य खो रहे है। पीछे के दिनों में यूनेस्कोकी डीजी मुझे मिलने के लिए आई थी उन्होंने मुझसे पूछा डॉ. निशंक जी बच्चो में अनुशासनहीनता हो रही है तथा इस प्रकार की प्रवृत्तियां बढ़ रही हैं। तो मैंने उनको कहा कि इसके मूल में अशांति का कारण जीवन मूल्यों की शिक्षा का अभाव है। हमने जो मानवहै उसको मशीन बना दिया, उसे मनुष्य बनाने की प्रक्रिया ही नहीं दी। हमारी जो शिक्षा नीति है यह मानवीय मूल्यों के आधार पर खड़ी हो करके ज्ञान, विज्ञान, अनुसंधान, नवाचार कीश्रेष्ठता को भी पाएगी। इसकी जड़ में मानवीय मूल्य होंगे और इसलिए हमने इसे भारत केन्द्रित बोला है।लेकिन यहनेशनलभी होगी, तो यह इंटरनेशनल भी होगी, यह इम्पैक्टफुल भी होगी,इंटरऐक्टिव भी होगी, इनक्लूसिव भी होगी और यह क्वालिटी,एक्विटी और एक्सेस कीआधारशिला परखड़ी होगी और इसलिए इसमें पेटेंट भी है, इसमें कंटेंट भी है। शोध और अनुसंधान की दिशा में भी हमवैसे तो इस समय ‘स्पार्क’के तहत पूरी दुनिया के शीर्ष 127विश्वविद्यालयों के साथ शोध और अनुसंधान कर रहे हैं। लेकिन हम भूलते नहीं हैं कि इस समय हिन्दुस्तान से आठ लाख छात्र विदेशों में पढ़ रहे हैं और हिन्दुस्तान का लगभग दो लाख करोड़ रुपया प्रति वर्ष जा रहा है। हम चाहते हैं कि जो दुनिया के शीर्ष सौ विश्वविद्यालय हैंवोहमारी धरती पर आएं क्योंकि हमने अपनीशिक्षा को शीर्षतमरूपदिया है और वे जो शीर्षसौ विश्वविद्यालय हैं उनको हम अपनी धरती पर आमंत्रित करेंगे और जो हमारे शीर्ष विश्वविद्यालय हैं उनको भी हम बाहर भेजेंगे।मुझे खुशी इस बात की है अभी आसियानदेशों के एक हजार से भी अधिक बच्चे हमारे आईआईटी में शोध और अनुसंधान कर रहे हैं। हमने ‘स्टे इन इंडिया’ कानारा दिया है कि आपको कहीं भीबाहर जाने की जरूरत नहीं हैं लेकिन यदि आप कुवैत में बैठे हैं और हिन्दुस्तान में पढ़ना चाहते हैं तो आप घर बैठे बैठे भी हिन्दुस्तान की शिक्षा ले सकते हैं। मैं हिन्दुस्तान में बैठा हूं लेकिन मुझे किसी भीदेश में जाकर के पढ़ना है तोमैंयहां बैठे-बैठे यह कर सकता हूं। हमारा अंतरराष्ट्रीय फलक पर जो शिक्षा का विजन है उसे हम बहुत तेजी से आगेबढ़ाना चाहते और मैं यह भी कहना चाहता हूं कि हमारे जो आईआईटी हैं उसमें बहुत अच्छा स्तर है और ऐसा नहीं है किअमेरिका में ही बहुत अच्छी शिक्षा होगी। यदि ऐसा होता तो चाहे वो गूगल हो अथवा माइक्रोसॉफ्ट इनके और जितनी भी बड़ी कंपनियां हैं उनके जो सीईओ हैं वो सब मेरे इस आईआईटी से पढ़कर के गए हुए छात्र हैं। जब मैं अपने आईआईटी का, एनआईटी का,आईसर का विश्लेषण करता हूं तो देखता हूं कि इन संस्थानों के छात्र कहां-कहां हैं तो मुझे लगता है पूरी दुनिया में हिंदुस्तान के यह नौजवान छात्र-छात्रा नेतृत्व दे रहे हैं। हम चाहते हैं कि उनको यहां पर पूरी सुविधा मिले और इसीलिए बहुत तेजी से जो नयी शिक्षा नीति है उसकोबड़े व्यापक फलक में ले करके हमने क्रियान्वयन करना शुरु कर दिया है और लोगों ने इसकी बहुत प्रशंसा है, पूरी दुनिया के लोग इसको चाहते हैं। अभी पीछे के दिनों में संयुक्त अरब अमीरात के शिक्षा मंत्री जी से जब मेरा संवादहुआ तो उन्होंने कहा कि हम किसी भी स्थिति में इस एनईपी कोअपने यहां लागू करना चाहते हैं। मुझे लगता है कि इसको 21वीं सदी के भारत का विजन डॉक्यूमेंट कह सकते हैं जो टैलेंट और टेक्नोलॉजी के साथदोनों में अद्भुत समन्वयकरता है और मैं यह समझता हूं कि निश्चित रूप से हिंदुस्तान में व्यापक चिंतन-मंथन के बाद नई शिक्षा नीति आई है जो इसेज्ञान की महाशक्ति के रूप में स्थापित करेगी। मेरे देश के प्रधानमंत्री जी ने 5ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था की बात की है और वो इसमें समाया है तथाउसका रास्ता भी इधर से जाताहै। वो रास्ता अब मेक इन इंडिया, डिजिटल इंडिया, स्किल इंडिया, स्टार्ट अप इंडिया और स्टैंडअप इंडिया से होकर गुजरता है।हम अपनी प्रतिभा का व्यापक तरीके से उपयोगकर सकते हैं, उसको आगे विकसित कर सकते हैं और इसीलिए यह जो नयी शिक्षा नीति है इसको पूरी दुनिया ने आज स्वीकार भी किया है। दुनिया चाहती है कि यह वैज्ञानिक सोच के आधार पर खड़ीनीतिभविष्य का निर्माण करेगी और इसीलिए कैपिसिटी बिल्डिंग से नेशन बिल्डिंग की ओर मूलतः इसका भाव है। व्यक्तित्व निर्माण से राष्ट्र निर्माण और राष्ट्र के बाद पूरे विश्व का ऐसा निर्माण हो। हमारे देश के प्रधानंत्री अक्सर कहते हैं कि मुझे एक अच्छा नागरिक चाहिए लेकिन साथ ही मुझे विश्व मानव भी चाहिए क्योंकि हमारी कल्पना औरसोच पूरे विश्व के लिए है और इसीलिए पूरी दुनिया हमारे कोविश्व गुरू के रूप में जानती भी है। मुझे लगता है कि लर्निंग के साथभाषा का बहुत गहरा संबंध है जिस तरीके से भाषाको आगे बढ़ाने की बात है तो यह स्पष्ट है कि किसी भीराज्य पर कोई भाषा थोपी नही जाएगी। पारदर्शिता और उत्तरदायित्व तथास्वायतता इन तीनों केसम्मिश्रण के तहत हम पूरी ताकत के साथ संस्थानों को भी स्वायतता देने के पक्षधर हैं और इसलिए इस समय बेहतर प्रबंधन, प्रकाशन संस्कृति के पोषण एवं सुधार के साथ और बहु -आयामी विषयों के साथ यह नई शिक्षा नीति आयी है। निश्चित रूप में हम बहु-भाषावादी भी बनेंगे और आशावादी भी बनेंगे।इस नीति में विश्वस्तरीय कंटेंटभी होगा और उससे विश्वस्तरीय पेटेंट भी होगा। हम रिफॉर्म भी करेंगे और हम ट्रांसफॉर्म भी करेंगे। मैं समझता हूं कि आज आपने बहुत महत्वपूर्ण गोष्ठीरखी है यह कई दृष्टियों से बहुत ही महत्वपूर्ण है।माननीयअध्यक्ष महोदय मैं आपकाबहुत अभिनंदन करता हूं और आज जो आपने यह सम्मान दिया है,मैंइस सम्मान को पूरी दुनिया में फैले सभी प्रवासियों के चरणों में समर्पित करता हूं। मेरी कामना है कि हम पूरी ताकत के साथ मेरे भारत को पूरे विश्व के उसी शिखर पर पहुंचा सकें जहां आज पूरी दुनिया छटपटा रही है। पूरी दुनिया को लगता है कि मानवता कहीं खो गई है। हम मानवता के साथ-साथ ज्ञान में भी, विज्ञान में भी, अनुसंधान में भी, नवाचार में भी एवं तकनीक में भी शिखर को छू लेंगे क्योंकि हमारे पास प्रतिभा की कमी नहीं है। सीबीएसई के बच्चों,मैं आपको बहुतशुभकामना देना चाहता हूं। हमने समय पर आपकी परीक्षाएं भी कराईं। आपका वर्ष हमने खराब नहीं होने दिया। पूरी दुनिया के देशों ने अपने को एक साल पीछे कर दिया। विशेष करके के मैं अपने बच्चों को बहुत बधाई देता हूं जिन्होंने अपने को भी सुरक्षित रखा तथा अपने घर में अपने माता-पिता एवं परिवार को भी सुरक्षा दी और अपने अगल-बगल में भी मेरे सीबीएसई के बच्चों ने बहुत लीडरिशप ली है।हम आपको ऑनलाइन शिक्षा पर लाए,यह भी दुनिया का सबसे बड़ा उदाहरण होगा। 33 करोड़ बच्चोंकोएक साथ ऑनलाइन पर लाना, बहुत कठिन कार्य था जिसके बारे में कोई सोच भी नहीं सकता। जब बच्चे घरों में कैद हो गए हों और ऐसी परिस्थितिहो कि एक दिन दो दिन नही, दो सप्ताह नहीं बल्कि महीने हो गए हों और वो बाहर निकलने की स्थिति न हो, ऐसे वक्त में हमनेऑनलाइनपरीक्षा, पाठ्यक्रम, एजुकेशन दी।अंततोगत्वा आप देखेंगे तो मेरे छात्रों ने जिस तरीके से अपने को अनुशासित रख करके लीडरशिप ली है वो शायद दुनिया के इतिहास में अपने में अद्भुत होगा। इसलिए मैं कुवैत स्थित अपने अध्यापकों सहितहमारे जो राजदूत हैं वो काफी रुचि लेते हैं और उनका व्यवहार अच्छा है। जब मैं उनके चेहरे पे नज़र डाल रहा था तो मुझे लगा कि यह बहुत प्यारे हैऔर यह व्यावहारिक है तथाप्रखर भी हैं। इनका संवाद भी बहुत अच्छा है। जहां हमारे देश के राजदूत, प्रतिनिधित्व करने वाले प्रखर भी हों, व्यावहारिक भी होंतो मुझे लगता है कि वहां और भी अच्छा माहौल बनना चाहिए। दस लाख से भी अधिक जो भारतीय दूसरे देश में रहे रहे हैं, उस देश के लोगों को लगना चाहिए। भारतीय हमारे लिए वरदान है।मुझे मालूम हैकि आप बहुत अच्छा काम कर रहे हैं हिन्दुस्तान को हम शिखर पर ले करके जाएंगे। एक बार फिर मैं आप सभी को बहुत धन्यवाद एवं शुभकामनाएं देता हूं।
बहुत-बहुत धन्यवाद!
कार्यक्रम में गरिमामयी उपस्थिति:-
- डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’, माननीय शिक्षा मंत्री, भारत सरकार
- श्री सी. बी. जॉर्ज, कुवैत में भारतीय राजदूत
- श्री विजय राघवन, सचिव, भारतीय प्रवासी परिषद्