पंजाब विश्वविद्यालय के मानव संसाधन विकास केंद्र का उद्घाटन
दिनांक: 01 अक्टूबर, 2020
माननीय शिक्षा मंत्री, डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’
पंजाब विश्वविद्यालय के मानव संसाधन विकास केन्द्र के उद्घाटन के अवसर पर उपस्थिति पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़ के कुलपति प्रो. राजकुमार जी, इस कार्यक्रम में उपस्थित पद्मावती विश्वविद्यालय तिरूपति की कुलपति डॉ. जमना जी,विश्वविख्यातमनोवैज्ञानिक और शिक्षाविद् डॉ. मीना हरिहरन जी, प्रो. आर. के. सिंघंला जी, प्रो. वी. आर. सिन्हा जी, प्रो. सुखबीर जी,श्री सुखविन्दर जी, सभी संकाय सदस्य,सभी छात्र-छात्राएं, रजिस्टार और पंजाब विश्वविद्यालयका पूरा परिवार और हैदराबाद विश्वविद्यालयके सभी संकाय सदस्य,छात्र-छात्राएं और सम्पूर्णविश्वविद्यालयपरिवार। आज यहां परजिसमानव संसाधन विकास केन्द्र कालोकार्पण हुआ है उसके लिए मैं पंजाब विश्वविद्यालय के कुलपति और उनके पूरे परिवार को शुभकामनाएं देना चाहता हूं। आज जिस भवन का लोकार्पणहुआ है, वह बहुत खूबसूरत तरीके से बना है और बहुत सुंदर भी लग रहा है। मुझे भरोसा है कि उसके अंदर सुन्दर और खूबसूरत मन पलेंगे, ऐसे मन विकसित होंगे जिनकी सुगंध दुनिया तक जाएगी जो भारत का मान और सम्मान पूरे विश्व में बढ़ाएंगे, ऐसी मैं आशा कर रहा हूं। वैसे भी जब भी हम लोग पंजाब विश्वविद्यालय के बारे में विचार करते हैं क्योंकि मैं विगत एक साल से अधिक समय से लगातार देश के तमामउत्कृष्ट संस्थानों कीहर महीने समीक्षा करता हूँ, आन्तरिक समीक्षा करता हूँ। उसके विभागों से लेकर, प्रशासनिक से लेकर,एकेडमिक से लेकर,उनका जनता के बीच समन्वय और धारणा से लेकरहर पक्ष को जानने की कोशिश करता हूँ। मुझे इस बात की खुशी है कि पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ लगातार अपनी उत्कृष्टता को बनाए हुए है और बना रहा है। मैं इसके लिए भी पंजाब विश्वविद्यालय के कुलपति और उनकीपूरी टीम को बहुत बधाई एवंशुभकामनाएं देना चाहता हूँ। मैं समझता हूँजैसे अभी कुलपति जीने कहा और उनके बाद सिंगला जी ने विस्तारपूर्वक अपनीबातों को रखा है तोइसमें कोई दो राय नहीं है कि इसविश्वविद्यालय नेदेश का सम्मान एवंगरिमा बढ़ाई है और अकैडमिक तरीके से उसने बहुत अच्छी आधारशिला को खड़ा किया है।चाहेइस विश्वविद्यालय से पढ़ कर गए हमारे देश के पूर्व प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह जी हों, चाहे इंद्रकुमार गुजराल जी हों,हरगोविन्द खुराना जी हों, सुषमा स्वराज जी हों,यशपाल जी हों, कल्पना जी हों, जब मैं इस विश्वविद्यालय की सूची देख रहा था क्योंकि मैं पीछे के समय में चाहे मेरे आईआईआईटीहैं, आईसर हैं, इन महत्वपूर्ण संस्थानों ने किन-किन लोगों को दिया है वो किन-किन स्थानों पर देश का गौरव बढ़ा रहे हैं इसकी मैं लगातार जानकारी लेता रहता हूं। मुझे बहुत खुशी होती है कि पंजाब विश्वविद्यालय ने ऐसेबहुत सारे लोगों को दिया है जिन्होंने देश में ही नहीं दुनिया में हमारा माथा ऊँचा किया है और इसलिए चाहे शैक्षणिकक्षेत्र हो,शोध का क्षेत्र हो,अनुसंधान का क्षेत्र हों, खेल काक्षेत्रहो सभी क्षेत्रों में पंजाब विश्वविद्यालय अच्छा काम कर रहा है। मुझे खुशी होती कि मेरे देश के संस्थान हरक्षेत्र में तेजी से आगे बढ़ रहे हैं और हम दुनिया के मुकाबले प्रतिस्पर्धा में आगे बढ़ते जा रहे हैं। मुझे इस बात की भी खुशी है कि अकादमिक,कला-संस्कृति और खेल जगत में भी पंजाब विश्वविद्यालय अच्छे तरीके से काम कर रहा है। मैं देख रहा था कि अटल रेंकिंग में भी आपनेदूसरा स्थान प्राप्त किया है यहबहुतअच्छी बात है और टाइम्स रैंकिंग में भी आपनेचौथा स्थान प्राप्त किया है। हमारादेश दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है यदि आप देखेंगे तो यहां पर एक हजार से भी अधिक विश्वविद्यालय हैं, 45 हजार से भी अधिक डिग्री कॉलेज हैं, 15 लाख से भी अधिक स्कूल हैं और एक करोड़ 9 लाख से भी अधिक अध्यापकगण हैं और जितनी कुल अमेरिका की जनसंख्या नहीं है उससे भी अधिक 33 करोड़ यहांछात्र-छात्राएं हैं आप समझ सकते हैं कि दुनिया के दर्जनों देशों की भी कुल जनसंख्या 33 करोड़ नहींहोती है और ऐसी स्थिति में इतनी बड़ी प्रतिस्पर्धा में एक हजार विश्वविद्यालयों के अंदर टाइम्स रैंकिंग में आपने चौथा स्थान प्राप्त किया इसके लिए भीमैं आपकोबहुत बधाई देता हूं।मैं समझ सकता हूं क्योंकि एक अध्यापक से लेकर केशिक्षा मंत्री तक की मेरी यात्रा में मैंमहसूस कर सकता हूं कि जब एक लीडर अच्छा होता है तो उसकी टीम भीउत्साहपूर्वक काम करती है औरसफलता के शिखर को चूमती हैं और निश्चित रूप से मैं कह सकता हूं कि पंजाब विश्वविद्यालय के संकाय सदस्य एवं कर्मचारी जूनूनी हैंक्योंकि जब संकाय सदस्य जूनूनी तरीके से काम करते हैं तो उसका रजिल्ट दिखाई देता है। इसलिए मैं पंजाब विश्वविद्यालय को बहुत बधाई देना चाहता हूं मैं आपको कहना चाहता हूं कि दुनिया में कुछ भी किया जा सकता है, आज जो तमाम लोग हमारे साथ जुड़े हैं,छात्र भी जुड़े हैं,संकाय सदस्य जुड़ेहैं,आपके पूर्व छात्र जुड़े हैं मैं आप सबसे कहना चाहता हूं किजब लीडरिशिप ठीक होती है तो सब ठीक हो जाता है। अध्यापक एक ऐसा लीडर है जो कुछ भी कर सकता है। वो अलग बात है कि सैकड़ों वर्षों की गुलामी ने हमारेमन-मस्तिष्क को ऐसा किया है कि अभी थोड़ा सा वक्त लगेगा क्योंकि लार्ड मैकाले ने तब कहा था कि यदि हिन्दुस्तान को बदलना है तो इसकी शिक्षा-संस्कृति बदलनी पड़ेगी लेकिन वो हमारी भाषाऔर संस्कृति कोनहीं बदल पाए। हम आज भी कहते हैं कि‘यूनान मिस्र रोमा सब मिट गये जहां से, अब तक मगर है बाकी नामोनिशां हमारा। कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी, सदियों रहा है दुश्मन दौर ए जहां हमारा’ कुछ तो बात हैहमारीरगों में जोमिटाने से भी नहीं मिटती। अभीराजकुमारजी चर्चा कर रहे थे कि हमने पूरी दुनिया को अपना परिवारमाना है और हमने केवल माना ही नहीं है बल्किउसको साबित भी किया है। हमने हमेशा विश्व बंधुत्व की बात की है। हमने ‘अयं निजं परोवेती गणना लघुचेतसाम्। उदारचरितानां तुवसुधैव कुटुम्बकम’की बात की है,हमने हमेशा‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’की भी बात की है।दुनिया का ऐसा कौन सा देश है जहांपर व्यक्ति सुबह उठते हीयहप्रार्थना करता होकि हेईश्वर! धरती पर पैदा होने वाला हर व्यक्ति सुखी रहे हम यह प्रार्थना करते हैं क्योंकि हमने धरती को अपनी माता माना है,इसलिए धरती पर पैदा होने वाला हर जीव जंतु मेरा अंग है और इसके सुख की कामना करना मेरा कर्तव्य है। मैं कहना चाहता हूं जब तक्षशिला, नालंदा और विक्रमशिला जैसे विश्वविद्यालय इस देश के अंदर थे तब दुनिया के अन्दर कौन साविश्वविद्यालय था और तब दुनिया केलोगहमसे आकर शिक्षा ग्रहण करते थे। हमें अपने को कम नहींआंकनाचाहिए।ठीक है, हमारे लिए विपरीत परिस्थितियां रही होंगी,जबहमारे विश्वविद्यालयोंको ध्वस्त किया गया,हमारीशिक्षा को ध्वस्त किया गया, हमारी भाषाओं को बदल दिया गया। आज भी इस देश के अन्दर हमारी 22 भारतीय भाषाएं हैं। तमिल, तेलुगु, मलयालम, कन्नड़, गुजराती, मराठी, बंगाली, पंजाबी, असमिया, उर्दू, संस्कृत सहितजितनीहमारे संविधान में उल्लेखित 22 ऐसी भाषाएं हैं वो ऐसा गुलदस्ता है कि दुनिया सोच भी नहीं सकती। इसलिए अभी जो हम नई शिक्षा नीति में लाये हैंकुछ लोग कहते हैं कि हमको ग्लोबल पर जाना है तो अंग्रेजी सीखनी पड़ेगी। मैंने कहा हम अंग्रेजी का विरोध नहीं करते, अंग्रेजी ही नहीं और दो-तीन भाषाएं सीखों।लेकिन अपनी भाषाओं को मत छोड़ो। हमारेसंविधान ने हमें 22 खुबसूरत भाषाएं दी हैंइनमेंअपना ज्ञान है,जीवंता है,तोक्यों हम अपनी भाषाओं को खोयंगे।हमने अंग्रेजी का कभी विरोध नहीं किया लेकिन अंग्रेजी इस देश की भाषा नहीं है। हमें अंग्रेजीक्या पूरी दुनिया की भाषाओं को पढना है लेकिन मैं उन लोगों से पूछना चाहता हूं कि क्या जो देशनीचे से लेकर उच्च शिक्षा तकअपनी मातृभाषा में शिक्षा देते हैं वो किसी से पीछे हैं? क्या जापान, फ्रांस, इंग्लैंड और दुनिया के तमाम जो विकसित देश हैं वो अपनी मातृभाषा में शिक्षा देते हैं क्या वो किसी से पीछे हैं?फिर ऐसे तर्क दे करके देश को कमजोर करने की बातक्यों की जाती हैं।मैं इस बात को लेकर के उत्साहित हूं कि इस कोरोना के काल में भीमेरे अध्यापकों ने एकयोद्धा की तरह काम किया। मेरे देश के प्रधानमंत्री जी ने भीबड़े खुले दिल से इस बात को स्वीकारा है और अध्यापकों को बधाई भी दीहै कि जब पूरी दुनिया कोरोना के संकट से गुजर रही थी तब हमारे अध्यापकों ने उस चुनौती का मुकाबला किया और एक योद्धा की तरहचुनौती का मुकाबला करके बच्चों को भटकने नहीं दिया, बच्चे का वर्ष भी खराब नहीं होने दिया। यह छोटी बातनहीं हैबहुत बड़ी बात है। भारत दुनिया का पहला देश होगा जिसने रातों-रात देश के करीब 33 करोड़ बच्चों को ऑनलाइन पर लेकर आया। कोई सोच भी नहीं सकता था कि 33करोड़ बच्चे एक साथ ऑनलाइन एजुकेशन पर आ जाएंगे। यह हमारे अध्यापकों का ही पुरुषार्थ थाजिन्होंने 14-14 घंटे मेहनत करके बच्चे का वर्ष खराब नहीं होने दिया,उसका भविष्य खराब नहीं होने दिया, उसको भटकने नहीं दिया, उसको अवसाद में जानेनहीं दिया। इसलिए मुझे शिक्षकों पर बहुत भरोसा होता है। इसीलिए हमने कहाकि ‘गुरुर ब्रह्मा,गुरुर विष्णु, गुरुर देवो महेश्वर गुरु साक्षात परब्रह्म तस्मै श्री गुरु नम:’ यह जो गुरु है यह कुछ भी कर सकता है। हमारे यहां कहा गया है कि‘गुरु गोविन्द दोऊ खड़े काके लागू पाय बलिहारी गुरु आपने गोविन्द दियो बताये’यदिएक तरफ भगवान हो औरदूसरी तरह गुरु हो तो इसमें कोई भी संकोच नहीं करेगा कि मुझे प्रथम किसके चरण स्पर्श करने हैं क्योंकि मुझे भगवान तक जाने का रास्ता तोगुरु ने ही दिया है। इसलिए मैं पहले गुरू की चरण वंदना करूंगा। हमारे देश के बारे में कहा गया है कि ‘एतद्द्देशप्रसूतस्य सकाशादग्रजन्मनः स्वं स्वं चरित्रं शिक्षेरन्पृथिव्यां सर्वमानवाः’जहां पूरी दुनिया ज्ञान-विज्ञान, शोध, अनुसंधान करने के लिए आती थी। मैं मीना हरिमोहन जी आपको भी बधाई देना चाहता हूं और पंजाब विश्वविद्यालयकेजितने भीलोग हमारे साथ जुड़े हैंइनका भी मैं ह्रदय की गहराइयों से अभिनन्दन करता हूं।कोरोना काल में आपने जिस तरीके से इन दोनों खूबसूरत पुस्तकों का लोकार्पण किया यीपुस्तकें आपकी ऊर्जा का प्रमाण हैं, आपका मन मेंकहीं न कहीं कुछचल रहा हैं क्योंकि जो बोल सकता है वहकरभी सकता है।जिसमें कुछ कर गुजरने की ताकत न हो, क्षमता न हो वह क्या कर सकता है? कुछ व्यक्ति केवल सोचते रहते हैं और कुछ करते नहीं है।उनको हमारे यहां मजाक में कहते हैं मुंगेरी लाल के हसीन सपने।ऐसाआदमी जो सोचता तो बहुत है, सपने देखता हैलेकिनकरताकुछ नहीं है ऐसे व्यक्ति का कोई अस्तित्व नहीं होता। मैंहमारे देश के पूर्व राष्ट्रपति डॉक्टर अब्दुल कलाम जी से भी मिला हूं,उन्होंने मेरी पुस्तक का लोकार्पण किया तो उनको मैंने काफीनिकटता से देखा और उनके जीवन दर्शन पर भी मैने लिखा था। वो कहते थे किसपने ऐसे बुनो जो सोने न दें जब तक की वह सपना क्रियान्वित नहीं हो जाता तब तक वो सपना आपको सोने ना दें, चैन से न बैठने दे,जब तक की वह सपना साकार नहीं हो जाता। यह है हमारे सपनों की उड़ान और हमारे सपनों की उड़ान कोरीनहीं है। हम अपने पुरुषार्थ से, अपने तन-मन-धन से शिखर को चूमने की पूरी कोशिश करते हैं और इसीलिए कोरोना काल में जिस तरीके से आप सब लोगो ने काम किया मुझे इस बातकीखुशी है। अभी मीना जीकह रही थी कि मुझे चुनौतियां पसंद है, चुनौतियां तो हर कदम पर है,लेकिन जब चुनौतियां का डटकर मुकाबला होता है तो वही चुनौती अवसरों में तब्दील होती है और इसलिए हमने भी कोरोना की इस चुनौती का डटकरमुकाबला किया। मुझे मालूमहै किइस कोरोना के संकट के समय जब हमारे देश प्रधानमंत्री जी ने मेरे नौजवानों को आह्वान किया कि मेरे देश के नौजवानों क्या कर सकते हैं? इस संकट के समय जबकि पूरी दुनिया कोरोना की महामारी से गुज़र रही है और उससे भारत भी अछूता नहीहै तो जब सभी लोग अपने घरों में कैद थे, मेरे छात्र-छात्राओं,अध्यापकों ने, प्रयोगशालाओं में जाकर शोध, अनुसंधान किया उन्होंने वेंटिलेटर, मास्क,ड्रोन, टेस्टिंग किट एवं ऐसी अन्य चीजों का निर्माण किया जो पहले देश में होती ही नहीं थी। इसलिए मुझे भरोसा है कि पंजाब विश्वविद्यालय बहुत ताकत के साथ काम कर रहा है, ऊंचाइयों को छू रहा है।हमारा देश विश्वगुरू रहा है, हम किसी भी क्षेत्र में पीछे नहीं रहेहैं। सुश्रुत शल्यचिकित्सा का जनक इसी देश में पैदा हुआ है, चरक आयुर्वेद का जनक,भास्कराचार्य, आर्यभट्ट आखिर इसीदेश में ही तो पैदा हुए हैं। हमारे देश ने ऐसे महान वैज्ञानिकों को दुनिया को दिया है,वह चीज आज भी हमारे पास हैंतभी तो आज जर्मनी जैसा देश भी 14-14 संस्कृत के विश्वविद्यालयों को स्थापित करके, उन संस्कृत ग्रंथों को पढ़ा रहे हैं। इसलिए हम जो नई शिक्षा नीति लाये हैं यह उन वेद, पुराण, उपनिषदों के ज्ञान-विज्ञान दुनिया के फलक पर लाने के लिए है, जो जमीन पर खड़े होकर विश्व के शिखर पर पहुंचेगी। यह शिक्षा नीति सामान्य नहीं है। यह नेशनल भी है, इंटरनेशनल भी है, यह इंटरेक्टिवभी है, इम्पैक्टफुल भी है,इनोवेटिवभी है और यहइक्विटी, क्वालिटी और एक्सेस की आधारशिला पर खड़ी होती है।हम इसमें कंटेंट भी पैदा करेंगें और उसको टैलेंट केसाथ भीजोड़ेगें और उसका पेटेंट भी करायेंगे। आज भी देश के अन्दर छात्रों में केवल पैकेज की होड़लगीहै।इस पैकेज की होड़ को खत्म करके पेटेंट के होड़को तैयार करना होगा तभी देश प्रगति के पथ पर आगे बढ़ सकता है और वो दिन दूर नहीं है। अभीकुछ दिन पूर्व कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय ने भी हमारी नई शिक्षा नीति की तारीफ की है, हमारे देश के अन्दर उत्साह का वातावरण है, वहीं पूरी दुनिया भी इस नई शिक्षा नीति के साथ जुड़ना चाहती है। इस शिक्षा नीति के अंतर्गत यदि कोई 4 वर्ष का कोर्स है और यदि कोई छात्र दो साल में परिस्थितिवशछोड़के जा रहा है तो पहले उसका पैसा एवं वर्ष खराब हो जाते थे लेकिन अब उसकोनिराश नहीं होना पड़ेगा,यदि आप परिस्थितिवश एक वर्षमें छोड़ कर जा रहे हैं तो उसको सर्टिफिकेटदेंगे,दो साल में छोड़ कर जा रहा है तो डिप्लोमा देगें, तीन साल में छोड़ेकर जा रहा है तो उसकोडिग्री देंगे लेकिन यदि फिर वह लौट कर अपने भविष्य को संवारना चाहता है तो फिरवह जहां से उसने छोड़ा था वहीं से शुरू कर सकता है। उसके लिए हम एक ऐसा क्रेडिट बैंक बनायेंगे जहां उसके सारे क्रेडिट जमा रहेंगेअध्यापकों की दिशा में भी हमने जहां‘ज्ञान’ में बाहर के विदेशी संकाय सदस्यों को हमने अपने देश में पढ़ाने के लिए आमंत्रित किया है, वहींअब‘ज्ञान प्लस’ मेंहमारे भी शिक्षक बाहर पढ़ाने के लिए जाएंगे।हमने जो अंतर्राष्ट्रीयकरण की दिशा में दुनिया के शीर्ष सौ विश्वविद्यालयों को अपनी धरती पर आमंत्रित किया है वहीं हमारे जो शीर्ष विश्वविद्यालय हैं वह भी दुनिया में जाएंगे। अभीहमने ‘स्टेइन इंडिया’कीभी बात कीक्योंकि हमारे देश से 7-8 लाख छात्र प्रतिवर्ष विदेशों में पढ़ने के लिए जा रहे हैं। हमारे देश का पैसा और प्रतिभा दोनों बाहर चली जाती हैं तो वापस वह हमारे देश में नहीं आती है। इसलिए हमने‘स्टे इन इंडिया’अभियान आरम्भ किया है हमने छात्रों को भरोसा दिलाया कि हमारे आईआईटी, एनआईटी, आईएसर, केन्द्रीय विश्वविद्यालयों में योग्यता है, क्षमता है, आपको बाहर जाने की जरूरत नहीं है,अब लोगों की समझ में आ गया है। मुझे इस बात की खुशी है कि पीछे के समय जब हमने जेईई परीक्षाएं करवाई। मुझे इसबात की भी खुशी है कि दो लाख से भी अधिक छात्रों ने जोछात्रविदेश में जा रहे थेवे जेईई और नीट की परीक्षाओं में सम्मिलित हुए। हम ‘स्टे इन इंडिया’ के तहत दुनिया के शीर्ष सौविश्वविद्यालयों को अपनी धरती पर आमंत्रित कर रहे हैं, आपकोकहीं जाने की जरूरत नहीं है और यहां के जो शीर्ष विश्वविद्यालय हैं वेभीबाहर जा रहे हैं। ये आदान-प्रदान हम करेंगे।इन संस्थानों में क्षमता है।मैं समझता हूँ हमारे लिए यह ऐसा अवसर है जब हम शोध और अनुसंधान के क्षेत्र में भी आगे बढेंगे। जब मैं टाईम्स रैंकिंग एवं क्यूएस रैंकिंग की समीक्षा करता हूं और अपने संस्थानों को उसके साथ जोड़ता हूं तो मुझे लगता है कि कहीं न कहीं हमारे पास अनुसंधान की कमी है, पेटेंट की कमी है। हम आज दुनिया के शीर्ष127 देशों के साथ ‘स्पार्क’ के तहत पारस्परिक अनुसंधान कर रहे हैं, हम स्ट्राइड के तहत अंतर विषयी शोध और अनुसंधान कर रहे हैं।हमवर्तमान में प्रधानमंत्री जीके प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार की अध्यक्षता में ‘नेशनल रिसर्च फाउंडेशन’ की स्थापना कर रहे हैं जो शोध की संस्कृति को खड़ा करेगाऔर प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भी हम तेजी से आगे बढ़ेंगे और इसलिए उस दिशा में भी हम ‘नेशनल टेक्नोलॉजी फोरम’ का गठन कर रहे हैं, जिसके तहत प्रौद्योगिकी में भी हम विश्व के शिखर पर पहुंचेंगे और इसलिए मैं आप सबको बहुत बधाई देना चाहता हूं। आज जिस भवन का यहां पर आपने लोकार्पण किया है उसके लिए भी राजकुमार जी मैं आपको बहुत बधाई देना चाहता हूं। मैं समझता हूं कि देश के प्रधानमंत्री जी ने जो नये स्वर्णिम भारत की कल्पना की है वहऐसा भारत होगा जो स्वच्छ भारत होगा, सशक्त भारतहोगा, समृद्ध भारत होगा, श्रेष्ठ भारत होगा और आत्मनिर्भर होगा। उस भारत की आधारशिला यह नई शिक्षा नीति बनेगी औरइसका रास्ता निश्चित रूप में ‘मेक इन इंडिया’,‘डिजिटल इंडिया’,‘स्किल इंडिया’सेहोकरगुजरता है। हमारे पास सब कुछ है।हमारा देश आगामी25 वर्षों तक यंग इंडिया रहनेवाला है, लेकिन हमेंउसके लिए तैयार होना पड़ेगा, हर व्यक्ति को तैयार होना पड़ेगा। जब एक बार परिवेश बनता है तो कुछ भी हो सकता है। मैं देख रहा हूंनई शिक्षा नीति को लेकर पूरे देश के अंदर अद्भुत वातावरण है।99प्रतिशत लोगों ने इस नीति का समर्थन किया है। दुनिया के तमाम देश हमारी नीति पर चर्चा कर रहे हैं और उसको अपने देश मेंलागू करना चाहते हैं। इसलिए हमने जो भारतीय ज्ञान परंपरा की भी बात कीहै, इसमें भी हम अतीत को वर्तमान से जोड़कर नवाचार, अनुसंधान और शोध के क्षेत्र में आगे बढ़ेंगे और इसमें मेरे अध्यापकगण निश्चित रूप से एकयौद्धाकी भूमिका निभाएंगे। इसलिए मुझे भरोसा है कि आज पूरे देश का मानस पूरी ताकत के साथ खड़ा हुआ है औरपंजाब तो वैसे भी गौरवशाली धरती रही है उसका अलग इतिहास रहा है और इस विश्वविद्यालय ने अपनेजीवन काल में निश्चित रूप से बड़ा आधार स्थापित किया है। मैं एक बार फिर विश्वविद्यालय के सभी परिवारिक जनों को, विभागाध्यक्षों, प्रोफेसर्स,संकाय सदस्यों,शिक्षणेत्तर कर्मचारीगण, अधिकारीगण और पंजाब की जनता को धन्यवाद एवं शुभकामनाएं देता हूं।
बहुत-बहुत धन्यवाद!
कार्यक्रम में गरिमामयी उपस्थिति:-
- डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’, माननीय शिक्षा मंत्री, भारत सरकार
- प्रो. राजकुमार, कुलपति, पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़
- डॉ. जमुना दुवुरू, कुलपति, श्री पद्मावती महिला विश्वविद्यालय, तिरूपति
- डॉ. मीना हरिहरन, मनोवैज्ञानिक एवं शिक्षाविद्
- प्रो. आर. के. सिंघंला जी, प्रो. वी. आर. सिन्हा जी, प्रो. सुखबीर जी, श्री सुखविन्दर जी एवं पंजाब विश्वविद्यालय तथा श्री पद्मावती महिला विश्वविद्यालय के संकायगण, कर्मचारीगण एवं अन्य शिक्षाविद्