बाल सुरक्षा और संरक्षा पर ‘‘डिजिटल ऑनलाइन कार्यक्रम एडोप्ट- सीएसएस का शुभारम्भ’’
दिनांक: 20 अक्टूबर, 2020
माननीय शिक्षा मंत्री, डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’
आज के इस बहुत ही महत्वपूर्ण कार्यक्रम में उपस्थित प्रबोधिनी के यशस्वी अध्यक्ष प्रो. अनिरूद्ध देशपाण्डे जी, डॉ. विनय सहस्रबुद्धे जी, सांसद एवं उपाध्यक्ष, आईसीसीआर एवं अध्यक्ष, संसदीय कमेटी, एचआरडीजिनकाप्रबोधिनी से उनका बहुत लंबे समय से जुड़ाव रहा है, श्री प्रियांक कानूनगो, अध्यक्ष राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग और सदस्य सचिव एवं उपस्थित उनके सभी सदस्यगण, श्री रविन्द्र साठे जी, जो इस प्रबोधिनी के महानिदेशक के नाते बड़ी जिम्मेदारी का निर्वहन कर रहे हैं और जो इस अभियान को न केवल आगे बढ़ा रहे हैं बल्कि गुणवत्ता के साथ वर्तमान परिस्थितियों में आवश्यकता के अनुसार उसको बहुत तेजी से क्रियान्वयन करने की दिशा में भी आगे बढ़ा रहे हैं। मैं देख रहा हूं कि कई बोर्ड के अध्यक्ष हैं, अध्यापकगण हैं, तमाम शैक्षणिक संस्थानों के प्रमुख हैं तथा मनोज जी,जोसीबीएसई बोर्ड के अध्यक्ष हैं, वे भी हमारे साथ जुड़े हुए हैं।इनके अलावा जो भी लोग दूर-दूर से हमारे साथ जुड़े हुए हैं,मैं उन सभी का अभिनंदन कर रहा हूं और बच्चे तो हमारी निधि हैं। किसी भी परिवार की,समाज की, देश की और दुनिया की निधि बच्चे ही होते हैं। यदि किसी परिवार के भविष्य चेहरा देखना हो तो उसके बच्चे के चेहरे में उसका प्रतिबिम्ब नजर आता है।बच्चे का भविष्य क्या है और परिवार का भविष्य क्या है यह बच्चे से ही सुनिश्चित होता हैक्योंकि उस परिवार का भविष्य उस बच्चे पर के भविष्य पर आधारित है, उसकी आगे की गतिविधियों पर पर आधारित है। स्वाभाविक ही है कि जब परिवार का भविष्य अच्छा होगा तभी समाज एवं राष्ट्र का भविष्य अच्छा होगा। हमने यह कहा है कि जो मनुष्य है वह ईश्वर की सबसे सुंदरतम कृति है और उसके बचपन से लेकर बड़े होने तक उसको किस प्रकार का परिवेश मिल रहा है,क्या दिशाएँ मिल रही हैं यह बहुत महत्वपूर्ण है। मुझे इस बात की ख़ुशी है कि जो आपने आज बच्चों पर महत्त्वपूर्ण गोष्ठी आयोजितकी है और प्रबोधिनी लगातार ऐसा कर रही हैं।जैसा कि अभी संचालक महोदय चर्चा कर रहे थे बच्चे भारत के भविष्य के आधार स्तंभ हैं, उनकी सुरक्षा के लिए राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग और प्रबोधिनी ने सयुंक्त रूप से टीचिंग और नॉन टीचिंग स्कूली स्टाफ के प्रशिक्षण के लिए इसऑनलाइन कार्यक्रम उद्घाटन कियाहै। इस अवसर पर प्रबोधिनी और इस आयोग को,जो बच्चों की सुरक्षा के लिए लगातार चिंतित हैं और उस दिशा में गतिशील भी है, मैं आपको बधाई देना चाहता हूं। यदि आप देखेंगे तो हमारे देश के अंदर शिक्षा का बहुतबड़ा व्याप है। यहां एक हजार से भी अधिक विश्वविद्यालय हैं, पैंतालीस हजार से भी अधिक डिग्री कॉलेज हैं, पंद्रह लाख से भी अधिक स्कूल हैं, एक करोड़ दस लाख से भी अधिक अध्यापक हैं और अमेरिका की कुल जितनी आबादी नहीं होगी उससे भी अधिक 33 करोड़ यहां छात्र छात्राएं हैं, यह इस देश का वैभव है। यह दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है। इसलिए मैं समझता हूं कि यह सामान्य बात नहीं है,इस अभियान को मिशन मोडमें लेने की जरूरत है और आप लोग इसको मिशन मोडमें कर रहे हैं।यह मेरे लिए खुशी काविषय है क्योंकि मैं सोचता हूं कि इंद्रधनुषी विकास में यदि आप देखें तो जो उत्प्रेरक के रूप में हमारे जो सतरंगी बच्चे हैं वेविविधता से युक्त हैं और इन बच्चों की संवेदनाओं को केवल शारीरिक सुरक्षा ही नहीं चाहिए बल्कि उनको हर दिशा की सुरक्षा चाहिए। उनको भावनात्मक सुरक्षा भी चाहिए, उनकी विश्लेषणात्मक सुरक्षा भी चाहिए और उनकी संवेदनात्मक सुरक्षा भी चाहिए। बच्चा केवल स्कूल की चारदीवारी के अंदर सुरक्षित रहे अथवा अनुशासित रहे यह मात्र इतने भर का काम नहीं है। बच्चे को सुरक्षा एवंसंरक्षा यहदोनों ही चाहिए और सुरक्षा तथासंरक्षा का जो व्याप हैवहीं, उसका व्यक्तित्व बन करके उभरता है।केवलअक्षर ज्ञान उसकी शिक्षा नहीं हो सकता है और इसीलिए जो वर्तमान में हम नई शिक्षा नीति को लेकर के आयें हैं वो मैं यह समझता हूं कि उसकीएक बहुत बड़ी आधारशिला होगी, जिस बारे में आप आज चिंता कर रहे हैं। यह जो डिजिटल कार्यक्रम है मैं इसके लिए आपको बधाई एवं शुभकामना देता हूं। हम जब भारत के संविधान को थोड़ा सा देखते हैं तो हमारे संविधान ने भी प्रारंभिक बाल्यावस्था की सुरक्षा से ले करके, बच्चों के एजुकेशन की, गरिमापूर्ण जीवन जीने के अधिकार की तथा शोषण के विरुद्ध अधिकार सहित तमाम चीजें हमको दी हैं।जब हमें सोचना होगा कि उसमें किस तरीके से नवनिर्माण और नई गतिशीलता लाई जा सकती है। जो यह संवेदनशीलता है यह भी बहुत जरूरी है और मैं यह समझता हूं कि यहसंवेदनशीलता भावनाओं से होगीपरिवेश से होगी। यह कानून बनाने से भी नहीं हो सकती है। यह जो उसकी संवेदनशीलता है, यह विचारों से होगी। मैं गांधीजी के विचारों से बिल्कुल सहमत हूं, अभी कुछ दिन पहले यूनेस्को कीडीजी जब मुझे मिलने के लिए आई तो उन्होंने सबसे पहले यह चिंता व्यक्त की कि डॉ. निशंक जो परिस्थितियां बन रही हैं, बच्चों में जोअनुशासनहीनता हैं,हिंसा की जो प्रवृति बढ़ रही है तथा सम्मान का भाव कम हो रहा है एवं विनम्रता घट रही है ऐसी स्थिति में कैसे कर के इसका निदान होगा। तो शायद अभी जिस बात को गांधी जी ने कहा और श्रीराम जी ने जिस बात को कहा और आयोग के अध्यक्ष जी ने भी उसको कहा कि जब तक जीवन मूल्यों पर आधारित शिक्षा नहीं होगी तब तक इन सारी चीजों पर हम कानून तो बनाते रहेंगे और यहचर्चा भी करते रहेंगे लेकिन जिस मनुष्य को, जिस बच्चे को हमने आधार शिला पर खड़ा करना है तथा जिसको विचारों की दृष्टि से, संस्कारों की दृष्टि से खड़ा करना है। कहीं ऐसा तो नहीं महल खोकले तरीके से खड़ा हो रहा है। मैं समझता हूं कि इस समय देश एक नई करवट ले रहा है और यह देश, मेरा भारत विश्वगुरु रहा है। हमारे बारे में कहा गया है कि ‘‘एतद्देशप्रसूतस्य सकाशादग्रजन्मनः स्वं स्वं चरित्रं शिक्षेरन्पृथिव्यां सर्वमानवाः’’सारी दुनिया के लोगों ने हमसे आकर के सीखा है। उन्होंने विज्ञान, तकनीकी, प्रौद्योगिकी का ज्ञान हमसे सीखा है कुछ तो बात हमारी ऐसी है जो वे ले करके जाना चाहते हैं और कहा भी गया है कि कुछ तो बात ऐसी है हमारी जो यूनान, मिश्र, रोमां सब मिट गए जहां से, अब तक मगर है बाकी नामो निशां हमारा और कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी। वो कौन सी बातें हैये जानने की जरूरत है, जो मिटाने से भी नहीं मिटी हैं। दुनिया के तमाम देश कब पैदा हुए और कब खत्म हो गएउनका इतिहास भी नहीं मिलतालेकिन जो कुछ बातें हैं हमारी जो तमाम थपेड़ों को खाने के बाद भी जो हमको मिटा नहीं सके हैं उन बातों को संजोने की जरूरत है इसलिए मैं जिस बात को कह रहा था कि वो जो जरूरी चीजें हैं जो तमाम कोशिशों के बाद भी मिटाने से भी नहीं मिटी हैंतमाम थपेड़े खाने के बाबजूद भी जो हमारे साथ रही हैं उन चीजें को जानने-पहचानने, उन उन संस्कारों को अपने मन-मस्तिष्क में समाहित करने अपनी पीढ़ी को देने और उसके भव्य महल को खड़ा करने की आज आवश्यकता है। मैं समझता हूं कि यहमूलभूत समस्या कहां से खड़ी हुई? लार्ड मैकाले ने कहा था कि हिंदुस्तान पर यदि राज करना है तो इसकी शिक्षा और संस्कार दोनों को खत्म कर दो। इसकी भाषाओं को भी क्योंकि जबवह अपनी भाषा में ज्यादा अभिव्यक्ति देगा तो उसकी भाषा,शिक्षा और संस्कार यहतीन चीजें आपबदल दीजिए तो सब कुछ ठीक हो जाएगा और भारत अपने आप बदल जाएगा। मैं सोचता हूं कि चलो ठीक है, यह उनका अपनाअभियान था और वे अपने अभियान में काफी कुछ सफल भी रहे। लेकिन हमें बहुत पीछे जाने की जरूरत नहीं है क्योंकिआज तो हम स्वाधीन हैं, देश की आजादी के 70 वर्षों के बाद भी हमारी जड़ों को बुरी तरीके से उखाड़ने की कोशिश हुई थी लेकिन आज उन जड़ों को फिर से संजोने, पिरोने और उनको संरक्षित करने की जरूरत है। आज उस आधार पर खड़े हो कर के आगे बढ़ने की जरूरत है। मैं तो बेसिक सरकारी स्कूल से पढ़ा हुआ हूं। उनबेसिक सरकारी स्कूल में हम लोग टाट-पट्टी अपने आप ले करके जाते थे और तब बैठते थे। लेकिन जो उस समय का संस्कार था, जो उस समय मन के अंदर गुरुजन के प्रति जो श्रद्धा थी तब और अब में जमीन आसमान का अंतर हो गया और इसीलिए मुझे लगता है किहम केवलऊपर-ऊपर देख रहे हैं लेकिन जब तब जड़ पर बैठ करके उन समस्याओं का समाधान नहीं होगा तब तक केवल कानून बनने से भी बहुत परिवर्तन कहां हो जाता है और इसीलिए कानून उसकी संरक्षा करेगा तब जब आप उनकी जड़ों को मजबूत करेंगे। जब वो पेड़ अच्छा होगा तब उसकी देखरेख करने के लिए माली भी होना चाहिएक्योंकि हमें उसको अच्छा करना है, जड़ों पर खड़ा करना है,बड़ा होने पर वह फल वाला होगा, छांव वाला होगा और ठूंठ सा खड़े पेड़ का फायदा क्या है, जो ना किसी को छांव दे सकता है और न ही फल दे सकता है और वह एक छोटे से हवाके झोकेसे उखड़ करके चला जाएगा। इसलिए मैं समझता हूं कि आज वो क्षण आ गये हैं जब हम सब लोग मिलकर इस दिशा में निश्चित रूप में विचार भी करेंगे और विचार करने के बाद इसको आगे बढ़ाने की कोशिश भी करेंगे। मैंने जैसे कहा कि हम लोगों की जो जड़ें थी वे हमारे संस्कार थे। हमारा वह संस्कार‘‘वसुधैव कुटुम्बकम्’’ का था,हमने अपने बच्चों को कह दिया कि ‘‘अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम्। उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्।।’’तो जब उसको हम पहले दिन से पूरा उदार बनाकर के यह शिक्षा देंगे कि पूरा संसार तुम्हारा है और उस संसार के लिए ‘‘सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया, सर्वे भद्राणी पश्यन्तु मा कश्चिद दुख भाग्भवेत’’ कीभगवान से विनती करेंगे और उसे समझायेंगे कि पूरे विश्व का जो परिवार है, उसमें चाहे कोई हमाराभाई है, बहन है,जीव-जन्तु हैं यह सबकभी दुखी न होंऔरजब तक यह दुखी रहेंगे तब तक मैं भी सुखी नहीं हो सकता। यहभावशुरू से ही बचपन से ही बच्चे केमन-मस्तिष्क में डालें, उसकी बाल्यावस्था से उसका मन तैयार करें, केवल मैं नहीं बल्कि हम का जो भाव उनके अन्दर डालेंसारी समस्याओं का समाधान तो वहां से होगा। हमने हमेशा कहा केवल उतना रखो जितनी तुमको जरूरत है, संग्रह मत करो, संग्रह की प्रवृत्ति ने लोगों को किस अवसाद तक पहुंचा दिया है। बेईमानी और भ्रष्टाचार की पराकाष्ठा को भी इस संग्रह की प्रवृत्ति के कारण हीपार किया है। मैं समझता हूं कि जो हमारे संस्कार थे, जो हमारा चिंतन था, मंथन था जिस तरीके से जो हमारीजड़ें थी,वोगहरी थी आज उनको पुन: विकसित करने कीजरूरत है।मुझे भरोसा है कि जिस बात की हम चिंता कर रहे हैं उसे यह नई शिक्षा नीति संवेदन शीलता से खड़ा करेगी। इन सभी चीजों के आधार पर खड़े हो करके जैसे हमारे देश के प्रधानमंत्री कहते हैं कि हमको एक अच्छा नागरिक ही पैदा नहीं करना हैबल्कि हमको विश्व मानव तैयार करना है और अभी की जो हमारी शिक्षा नीति है वो कमोबेस मानव नहीं वो मशीन तैयार कर रही है।लेकिन हमें बच्चे को संस्कार सम्पन्न बनाकर मानव बनना है और मानव से महामानव बनना है क्योंकि यह हिंदुस्तान विश्वगुरु रहा है, विश्वगुरू है और विश्वगुरू रहना है क्योंकि हमारी रगों में जो हमारा संस्कार है, जो विश्व को नेतृत्व देने का गुण है और समर्थ पराकाष्ठा का जो समर्पण है, जो प्रखरता है और जो हमारे ऋषि मुनियों ने, हमारे वैज्ञानिकों ने जो हमको सौंपा है उसके आधार पर हम कह सकते हैं कि हम बहुत तेजी से आगे बढ़ेंगे। यह बच्चे जैसे मैंने कहा कि यह पौधे की तरह हैं जिसको हर दृष्टि से उसके अनुरूप वातावरण मिले, इसकी जरूरत है।उसको यदि उचित माहौल मिलेगा तो वह विकसित होगा, जो सुरक्षा के आधुनिक तरीके हम लोग इस्तेमाल कर रहे हैं जैसे सीसीटीवी कैमरा है अथवा तमाम प्रकार के सिस्टम सर्विलांस प्रक्रियाओं को सुरक्षित करने का है। क्योंकि अब चौतरफा हमको ध्यान तो रखना ही होगा और उसको भी बहुत सारी संस्थाओं ने अभी शुरू किया है जो बहुस्तरीय सुरक्षा है चाहे घर से निकलकर स्कूल पहुँचने का हो,चाहेचारदीवारी के अंदर का हो, चाहे स्कूल से लौटने का हो इस प्रकार कीतमाम बच्चे की सुरक्षा बहुत जरूरी है। मैं सोचता हूं कि अपना देश तो कितनी विविवधता से जुड़ा है,यह तो अनेकता में एकता वाला देश है और इसमें विभिन्न धर्म हैं, जाति हैं,सुमदाय हैं, क्षेत्र हैं, भाषा है, लिंग है औरतमाम रंग हैं तो यहसभी एक जगह आकर के जो बच्चे पढ़ते हैं वो ऐसी खूबसुरत फुलवारी की तरह दिखते हैं जिसका सभीआनंद ले सकते हैं और उसकीजोखुशबू है वो बिखेर सकते हैं। जो यह बचपन है यह बहुत मूल्यवान बचपन है इसको अच्छीतरह विकसित करने की माता पिता तथाअभिभावकों सबकी जिम्मेदारी हैऔर इसीलिए जब हमने यह महसूस कियाऔर विशेषज्ञों ने और वैज्ञानिकों नेइस बात को कहा और हमारी कमेटी ने भी इस बात को महसूस किया कि हां, यह जो तीन वर्ष से छह वर्ष तक जो बच्चा है इसमें सीखने की सर्वाधिक जिज्ञासा होती है और इसका 88 प्रतिशत तकमस्तिष्क विकसित होता है इसलिए उस अवसर को भी हमने खोने नहीं दिया है। तीन वर्ष के बच्चों को खेल खेल में किस तरीके से हमउसको एक योद्धा की तरह बढ़ा सकते हैं तथा उसके मस्तिष्क का जितना विकासउसके अंदर है उसको बाहर निकाल कर विकसित कर सकते हैं तथाउसकी दिशाओं को देख सकते हैं। हमलोगों ने इसलिए 10+2 को हटाकर 5+3+3+4 किया और इतना ही नहीं हमने फाइव को भी 3+2 किया है। एक ओर गरीबी है, कुपोषण है और मूलभूत सुविधाओं की कमी है और दूसरी ओर यह समस्याएं हमारे सामने है इसलिएदोनों फ्रंट पर हम लोगों को लड़ना पड़ेगा तथा उन व्यवस्थाओं को भीकरना पड़ेगा औरउस परिवेश को भी बनाना पड़ेगा और निश्चित रूप में हम लोग उसमें कर भी रहे हैं। अभी मनोवैज्ञानिक दिशा में आपने देखा कि अचानक पूरी दुनिया कोविडकी महामारी के संकट से गुजर रही थी और अपना देश भी उससे अछूता नहीं था। आप समझ सकते हैं कि एकाएकऐसासंकट आ गया वो और 33 करोड़ छात्र घर के अंदर कैद हो गए। एक दिन, दो दिन, चार दिन, एक सप्ताह तो समझ में आता है लेकिन उसके बाद जो बच्चा जिसमें ऊर्जा का अथाहउफान रहता है वो एक सप्ताह दस दिन के बाद घर पर कैद हो जाए तो क्या परिस्थितिआ सकती है हम उसे रातों-रात ऑनलाइनपर लाए।मैंअध्यापक और अभिभावकदोनों को धन्यवाद देना चाहूंगा कि दोनों ने मिलकर के इस बच्चे को संभाला। यह दुनिया का शायद पहला ऐसा उदाहरण होगा कि पच्चीस करोड़ से भी अधिक बच्चों को अचानक ऑनलाइन पर लाना पड़ा और रात-दिन करके मैंशिक्षा मंत्रालय की टीम को भी बार-बार धन्यवाद देना चाहता हूं कि जुनूनी तरीके से मिशन मोड में रात-दिन खपकरके उन बच्चों के लिए जहां रातों-रात पाठ्यक्रम चैंज हो रहे हैं, आप समझ सकते हैं कि कितने प्रकार की चुनौतियां सामने रही होंगी लेकिन फिर भी बच्चे तक पहुंचने की कोशिश हुई है और अभी जो ‘मनोदर्पण’ करके हमलोगों ने कार्यक्रम शुरू किया ताकि बच्चाअवसाद में ना आए। अभिभावक भी अवसाद मेंजा सकता था अध्यापक भीअवसाद में जा सकता था, क्योंकि चौबीस घंटे वे क्या करेंगे ऐसी परिस्थितियों में और किस ढंग से करेंगे इसलिए मनो दर्पण लेकरके भी हम आएं ताकि बच्चा मानसिक रूप से मुक्त हो सके और उसको किसी प्रकार का कोई भी दबाव एवं तनाव न आए और उसमें500 डॉक्टर थे जिन्होंने अपना बहुमूल्यसमय दिया तथाऑनलाइन एवं टेलीफोन द्वारा परामर्श के लिए एकपोर्टल बनाया ताकि बच्चा यहमहसूस न कर सके कि उसके सामने इतनी खराब और खतरनाक परिस्थिति आ गई हैं,क्योंकि बच्चे का मन भी सबसे मूल्यवान है और उसके उस मन को बचाने के लिए, उसके मन को आगे बढ़ाने के लिए ही हमने यह मनोदर्पण आरम्भ किया है। अटल जी कहते थे कि छोटे मन वाला कभी बड़ा नहीं हो सकता और टूटे तन वाला कभी खड़ा नहीं होसकता। वो मन ही ऐसा है जो आदमी को बढ़ाता है, आदमी को घटाता है, आदमी को ऊंचाई तक पहुंचाता हैऔर आदमी को फर्श पर लाकर खड़ा कर देता है और यहजो मन है यह बहुत खूबसूरत मन है, जिस तरीके के विचार उस मन में आ जाते हैं व्यक्ति वैसे करना शुरू कर देता है इसलिए उस बच्चे के उस कोमल मन को कितना संजो करके रख सकते हैं उस मन में कौन-सीचीजें हम अंकुरित करना चाहते हैंहम बीज जो बोयेंगे और उसी आधार पर वो बच्चे आगे बढ़ेंगे। इसलिए हम लोगों ने इस दिशा में भी काम किया औरसमय-समय पर गाइडलाइन भी हम लोग बच्चों को जारी करते रहे।अभीजैसे प्रियांक जी कह रही थी कि वर्ष2014के बाद फिर अभी जो हम लोगों ने वर्तमान में गाइडलाइन दीऔर मैं जानता हूं कि आप लोग बहुत सजग हो करके कार्य कर रहे हैं मैं सभी जो मेरे बच्चों से जुड़ी संस्थाएं हैं,उनके बारे में लगातार जानकारी लेता रहता हूं और मुझे खुशी है कि आपके नेतृत्व मेंयह आयोग बहुत अच्छा काम कर रहा है। आप बहुत गतिशील मुझे हमेशा लगे हैं और आपकी टीम बाकायदा चिंता करती है। जब-जब भी हम बच्चों के बारे में विचार करते हैं तथा गाइडलाइन देते हैं उसकी फिर समीक्षा भी करते रहते हैं। ऐसा नहीं कि हमने गाइडलाइन जारी कर दी तो बस उतना करने से ही केवल काम हो गया बल्कि यह भी देखते हैं कि उन दिशा-निर्देशों का उस बच्चे पर असर क्या पड़ा। हम लोगों ने तमाम गाइडलाइन को चेंज भी किया। हम लोग गाइडलाइन तैयार करते हैं और उसके बाद उसका विश्लेषणभी करते हैं। यह दिशा-निर्देश का बिन्दूठीक है, अथवा नहीं है, यह ऐसे हो सकता है अथवा नहीं हो सकता है इस पर हम पूर्ण विचार करते हैं। हम तो कभी घंटों के हिसाब से चेज करते हैं तो दिनों के हिसाब से भी चेंज करते हैं,तोपरिस्थितियों के हिसाब से भी पूरी गाइडलाइन को भी और यहां तककी पाठ्यक्रम को भी टोटली चेंज करते हैं। हम बच्चे के पीछे खड़े हैं। वह बच्चा हमसे छूटे ना, वो बच्चा भटके ना क्योंकि वो हमारी जो निधी है, हमारी दृष्टि है।जैसे कि अर्जुन की एक ही दृष्टि होती थी उसी तरहहमारी नजरबस केवल बच्चे पर है।हम दुनिया मैं इधर-उधर नहीं देखते इसलिए पीछे के दिनों में जब हो-हल्ला मचने लगा तो मैंने लोगों से हाथ जोड़कर निवेदन किया कि प्लीज मेरे बच्चों के साथ राजनीति मत करिए। आपके लिए पूरा मैदान खाली है। आप शिक्षा को छोड़ दीजिए राजनीति से बाकी आप पूरे मैदान में जो करना है करलीजिए। मुझे इस बात की खुशी है कि मेरी अपील को लोगों ने महसूस किया उन लोगों ने भी मेरे बच्चों पर दया की कि वो राजनीति न करें उनको ले करके और भविष्य में भी यह भरोसा करूंगा कि देश के चाहे कोई राजनैतिक दल हों,लोग हों,संस्थाएं हों और व्यक्तिगत तो कोई भी मेरे बच्चों के साथ मेरी शिक्षा के साथ राजनीति ना करें बल्कि उसके अच्छे सुझाव आएंगे तोहम उसको स्वीकार करेंगे औरउसको लागू करेंगे और शिक्षा मंत्रालय के तो पूरे द्वार हमेशा खुलें हैं जिस का भी अच्छा सुझाव आता है, हम उसे खुले मन से स्वीकार करते हैं देखिए नई शिक्षा नीति शायद दुनिया के सबसे बड़े विमर्श की नीति रही होगी। सारी दुनिया की शायद किसी भीनीति पर इतना विमर्श कभी नहीं हुआ होगा। हमने जहां 1000 विश्वविद्यालय, पैंतालीस हजारडिग्री कॉलेज, 15 लाख से अधिक स्कूल, एक करोड़ 9लाख से भी अध्यापक से लेकर के 33 करोड़ छात्र-छात्राओं के अभिभावकों से लेकर के, ग्राम सभा से संसद तक और ग्राम प्रधान से लेकर माननीय प्रधानमंत्रीजी तक सबका हमने मार्गदर्शन लियाऔर उसके बाद भी हमने उसेपोर्टल में डाला था। उस पर सार्वजनिक तरीके से लोगों के सुझाव लिए जिसमेंसवा दो लाख से भी अधिक सुझाव आए। उसके बाद हमने फिर एक-एक सुझाव का विश्लेषण किया इस पूरी प्रक्रिया केबाद हम इस नई शिक्षा नीति को लाये हैं। जैसाकि आपने भी कहा कि यह पूरे देश को दिशा देने वाली नीति है। देश के आजादी के बाद लोगों को पहली बार उत्सव जैसा वातावरण महसूस हो रहा है।अबकुछ सकारात्मक बदलाव होगा क्योंकि भारी परिवर्तनों के साथ हम इस नई शिक्षा नीति को लाये हैं। इससे जहां पूरे देश के अंदर इस नई शिक्षा नीति को लेकर के एक माहौल बना वहीं दुनिया के तमाम देश भी हमसेकह रहे हैं कि हमको हिंदुस्तान की एनईपी चाहिए। मुझे इस बात को कहते हुए खुशी हो रही है कि हिन्दुस्तान की यह नई शिक्षा नीति भारत केन्द्रित है तथायहमूल्य आधारित है। यह नीति ज्ञान, विज्ञान, अनुसंधान, नवाचार व प्रौद्योगिकी से युक्त होगी। जमीन पर खड़ी होगी लेकिन विश्व की प्रतिस्पर्धा पर शिखर तक पहुँचने की अपने में क्षमता रखती है और हमारा तीन वर्ष तक की आयु का बच्चा इसका मूलाधार है। अभी मेरे कमिश्नर जुड़े हुए हैं,सीबीएसई के चेयरमैन मनोज भी जुड़े हुए हैं, आपने कोविड महामारी के दौरान भी बहुत अच्छा काम किया है। आप समझ सकते हैं नवोदय विद्यालय के6हजार बच्चों को किस तरीके से डेढ़ हजार सेदो हजार किलोमीटर कीदूरी तक पिथौरागढ़ से केरल तक बच्चों को कैसे सुरक्षित भेजा।यहभी हिन्दुस्तान का दुनिया को अपने आप मेंएक उदाहरण रहा होगा हमाराएक भी बच्चा कोविड की चपेट में नहीं आया हमने उसे सुरक्षित रखा और हमारे सक्रिय प्रयासों से वह सुरक्षित अपने घर तक पहुंचा है। अभी आपने देखा जेईई की परीक्षाएं हमने करवाई। हो-हल्ला मच गया, एक बार हमने जेईई की परीक्षापीछे करवाई, दूसरी बार फिर पीछे करवाई लेकिन हमको यह समझ में आया कि अगर यह कोविड लगातार होता रहेगा तो क्या मेरा बच्चा चुप घर में बैठ जाएगा। नहीं, ऐसा संभव नहीं था।इसलिए जेईई और नेट की परीक्षाओं को लेकरबहुत विरोध हमारा हुआ और यहां तक की कुछ लोग तो सुप्रीम कोर्ट में चले गये थे लेकिन आपको मालूम होगा मैंसुप्रीम कोर्ट का भी आभारी हूँ कि उन्होंने इस बात को कहाकि नहीं,बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ नहीं हो सकता।उनका एक वर्ष भी पीछे जाना देश के लिए बहुत घातक है और इस बच्चे के जीवन के लिए घातक है और इसलिए स्वाभाविक है कि सुप्रीम कोर्ट में भी अब उनकी जो मंशा थी वो समझ में आई। आपने देखा कि एक घंटे में 5 लाख बच्चों ने अपने एडमिट कार्ड डाउनलोड कर दिए और नीट की परीक्षा तो नीट की परीक्षा,शायदइस कोविड काल की इस दुनिया की सबसे बड़ी परीक्षा हुई है। इसके लिए मैंने प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों से भी निवेदन किया था और मैं आभारी हूँ उनका कि उन्होंने अपने-अपने प्रदेशों के बच्चों की सुरक्षित स्थान तक पहुंचाकर और जो हमारी सुरक्षा की गाइडलाइन थी उसका भी पूरी तरीके से पालन किया और जेईई एडवांस में तो 92 प्रतिशत बच्चे बैठे थे। मैं सोचता हूँ कि जब निर्णयहोते हैं और समाज,परिवारतथाछात्र मन से तैयार होता है तो रिजल्ट अच्छा ही आता है। रिजल्ट खराब नहीं आते हैं। मुझे भी ख़ुशी है कि पीछे के समय मैंदेख रहा था कि जब बिहार में चुनाव हो रहे थेतो बिहार के चुनाव आयुक्त महोदय कह रहे थे की नीट और जेईई में जो मानक पालन किये गये उसी आधार पर हम भी चुनाव कराएंगे तो यह देश के लिए उदाहरण प्रस्तुत हुआ है। यह दुनिया के लिए उदाहरण प्रस्तुत हुआ कि हिन्दुस्तान में सबसे बड़ी परीक्षा भी ऐसे विषमपरिस्थितियोंमें सफलतापूर्वक संपन्न हो सकती है और इसलिए बच्चे का स्वास्थ्य, सुरक्षा एवं उसका भविष्य हमारे लिए हमेशा चिंता का विषय रहा है और निश्चित रूप से हम इस पर पूरा ध्यान केन्द्रित भी करेंगे। मुझे इस बात की खुशी है कि प्रारंभिक बाल्यावस्था शिक्षा सुनिश्चित करने के लिए हमलोगों की इस नीति में विशेष फोकस कियागयाहै। भारत सरकार का शिक्षा मंत्रालय हीनहीं बल्कि महिला एवंबाल विकास मंत्रालय, स्वास्थ्य एवंपरिवार कल्याण मंत्रालय तथा जनजातीय कार्य मंत्रालय सहित सब लोग मिल करके बच्चे के लिए तथा उसके स्वर्णिम भविष्य के निर्माण के लिए कार्य कर रहे हैं। यदिआप देखेंगे तो इस नई शिक्षा नीति में बच्चों काभी 360 डिग्री होलिस्टिक मूल्यांकन होगा। 360 डिग्री में वहस्वयं भी अपनामूल्यांकन करेगा, उसका साथी भी उसका मूल्यांकन करेगा,उसकाअध्यापक भी करेगा और उसका अभिभावक भी करेगा तो वो एक योद्धा की तरह अपने आप खड़ा होता चला जाएगा और अब हम उसको रिपोर्ट कार्ड नहीं देंगे बल्कि अब हम बच्चे को प्रोग्रेस कार्ड देंगे। वो क्या प्रोग्रेस कर रहा है, रिपोर्ट कार्ड में यह नहीं झलकता था। बहुत मूलभूत इसमें अंतर आया और शायददुनिया का पहला देश होगा हिन्दुस्तान जो स्कूली शिक्षा से आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस को लागू कर रहा है और वोकेशनल स्ट्रीम के साथ तथा इंटर्नशिप के साथछठवींकक्षासे ही बच्चे को व्यावसायिक रूप में खड़ा करना है। वोकेशनल स्ट्रीम के साथ ही इंटर्नशिपमाध्यम से बच्चा केवल किताबों में ही नहींपढ़ेगा बल्कि वो प्रेक्टिकल करेगा बच्चे के क्षेत्र के जो स्थानीय उत्पाद हैं, चाहे स्थानीयतकनीकी है और चाहे तमाम प्रकार की जो चीजें हैंउसके जीवन में आप उसको बढ़ा सकते हैं। जहां उसकी प्रवृति है, जो मनोस्थिति है, जो परिस्थिति है इन तीनों के अनुपम संगम के माध्यम से उसको आगे बढ़ाएंगे ताकि स्कूली शिक्षा से हीजब बच्चा बाहर निकलेगा तो वहएक योद्धा की तरह बाहर निकल सकता है जो किसी के पैरों पर खड़ा नहीं होगा बल्कि अपने पैरों पर खड़ा हो करके आगे बढ़ सकता है।इसलिए हम जो आंगनबाड़ी है, बाल वाटिका है, बाल भवन है इनको और मजबूत कर रहे हैं। इसके अलावा बुनियादी साक्षरता है, संख्यात्मक ज्ञान है, व्यावसायिक शिक्षा है तथा बहु-भाषावाद पर भी हम बल दे रहे हैं आपने देखा होगा कि समावेशी शिक्षा, सामाजिक चेतना जैसे सब विषय हम लोग ला रहे हैं और शिक्षकों के प्रशिक्षण की भी हमेंबड़ी चिंता है। वहीं हमारे बच्चे की जो प्रारंभिक शिक्षा है,वह इसकी मातृभाषा में होगी क्योंकि वह अपनी मातृभाषा में ज्यादा अभिव्यक्ति दे सकता है। मातृभाषा में जो भी बच्चा बढ़ेगा उसका फलक बड़ा होगा और कुछ लोगों को जरूर चिंता थी और मेरे से कहा जा रहा था कि डॉ.निशंक आप ग्लोबल की बात कर रहे हैं, आप तो विश्व गुरु की बात कर रहे हैं और फिर आप अंग्रेजी माध्यम नहीं करेंगे तो पूरी दुनिया में कैसे छा सकते हैं। तो मैंने बहुत विनम्रता से उनसे यह अनुरोध किया हैकिहम अंग्रेजी का कहीं विरोध नहीं कर रहे हैं। अंग्रेजी भाषा के रूप में जरूर पढ़ें लेकिन हां, हमारे संविधान मेंहमको 22 भारतीय भाषाएं भी प्रदान की गई हैं हम इनके सशक्तिकरण की भी बात करेंगे। तमिल,मलयालम, कन्नड़, गुजराती, मराठी, बंगाली,उड़िया, संस्कृत, हिन्दी, पंजाबी, उर्दू सहित तमाम हमारी जो 22 भारतीय भाषाएं हैं वेबहुत खूबसूरत हैं।इन भाषाओं में हमारी परंपराएं हैं, हमारा ज्ञान है, हमारा विज्ञान है, इसको कैसे छोड़ देंगे और फिर जिन देशों ने अपनी मातृभाषा में शिक्षा दी है क्या वो पीछे हैं? क्या जापान, इटली, जर्मनी, अमेरिका एवं इजराइल जो हमारे बाद स्वाधीन हुए देश हैं,वेसभी अपनी मातृभाषा में ही शिक्षा देते हैं, क्या यहदेश किसी सेपीछे हैं?इसलिएमैं समझता हूं आज जरूरत है इस पहलू को समझने की एवं समझाने की तथाइसपर सकारात्मक चर्चा करने औरनकारात्मकता पर चोट करने की, जो लोग भारत को भारत कहने में शर्म जैसे महसूस करते हैं उनकी भी आत्मा को उजागर करने की जरूरत है और इस समय चौतरफा इस परिवर्तन की लहर आनी चाहिए। मुझे भरोसा है कि हम इन सब चीजों को बहुत ताकत के साथ आगे बढ़ाएंगे क्योंकि अब पूरी दुनिया के शिखर पर इस देश को जाना है और अभी भी हमारी संस्थाएं बहुत महत्वपूर्ण काम कर रही हैं ऐसा नहीं कि अभी भी हम पीछे हैं। हमारे इन संस्थानों से पढ़ने वाले विद्यार्थी आज दुनिया के शीर्ष संस्थानों को लीडरशिप दे रहे हैं। इसलिए मुझे भरोसा हैकि हम इन संस्थाओं के माध्यम से अपनी इन प्रतिभाओं को संस्कारों केसाथ जोड़ करके और नवाचार के साथ ला करके और प्रत्येकक्षेत्र में नये अनुसंधान के साथ, नये संस्कार के साथ और जो मूलभूतमन:स्थिति औरभावनाएं हैंउनको संजो करके, बचा करके हम आगे बढ़ाएंगे। जैसे कि देश के यशस्वी प्रधानमंत्री जी बार-बार कहते हैं कि 21वीं सदी का स्वर्णिम भारत होना चाहिए। ऐसा भारत जो सुंदर भारत हो, जो स्वच्छ भारत हो, जो स्वस्थ भारत हो,जो सशक्त भारत हो, जो समृद्धभारत हो, जो आत्मनिर्भर और जो एक भारत हो ऐसे भारत की जरूरत है और निश्चित रूप से मुझे लगता है किजिस तरीके से परिवेश बढ़रहा है तो निश्चित रूप से उस 21वीं सदी के स्वर्णिम भारत की ओर हम तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। उस स्वर्णिम भारत की आधारशिला यही शिक्षा नीति है और शिक्षा नीति में भी यहबच्चा ही केन्द्र में है जिसकी आज आप चिंता करने के लिए सब यहां पर एकत्रित हुए हैं। मैं प्रबोधनी को और आयोग को इसके लिए शुभकामना देता हूं कि जो ऑनलाइन आपने शिक्षकों के लिए, कर्मियों के लिए, बच्चों के लिए, अध्यापकों के लिए जो अभियानलियाहै यह अब बहुत लाभकारी होगा औरइन परिस्थितियोंमें भीनिश्चित रूप में जोछोटी-छोटी खाइयां हैं हम उनको भी पाटते हुए आगे बढ़ेंगे। मैं एक बार फिर आप सबके प्रति बहुत आभारी हूं और शुभकामनाएं देता हूं।
बहुत-बहुत धन्यवाद!
कार्यक्रम में गरिमामयी उपस्थिति:-
- डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’, माननीय शिक्षा मंत्री, भारत सरकार
- प्रो. अनिरूद्ध देशपाण्डे, अध्यक्ष, प्रबोधिनी
- डॉ. विनय सहस्त्रबुद्धे, संसद सदस्य एवं उपाध्यक्ष, आईसीसीआर
- श्री प्रियांक कानूनगो, अध्यक्ष, राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग
- श्री रविन्द्र साठे, महानिदेशक, प्रबोधिनी
- श्री मनोज आहुजा, अध्यक्ष, केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड