ब्रिटिश इंस्‍टीट्यूशन ग्रुप, इंग्‍लैंड द्वारा आयोजित वातायन-यूके सम्‍मान समारोह

ब्रिटिश इंस्‍टीट्यूशन ग्रुप, इंग्‍लैंड द्वारा आयोजित वातायन-यूके सम्‍मान समारोह

 

 

दिनांक: 21 नवम्‍बर, 2020

 

 

 

माननीय शिक्षा मंत्री, डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’

 

यूके सम्‍मान समारोह में उपस्‍थित इस परिवार के और इस परिवार से जुड़े देश और दुनिया के सभी भाइयों और बहनों तथा सभी लेखक मित्रों का मैं अभिनन्‍दन कर रहा हूं। आज अतिथि के रूप में यहां पर प्रख्‍यात लेखक, चिंतक, विचारक और हमारे अनुज जो बहु-आयामी प्रतिभा के धनी हैं प्रिय अमिश त्रिपाठी जी, जो भारतीय उच्‍चायोग के  सांस्‍कृतिक मंत्री है और नेहरू केन्‍द्र लंदन के निदेशक भी हैं। आदरणीय और ब्रिटिश सांसद जो हमेशा गौरव बढ़ा रहे हैं श्रद्धेय श्री वीरेन्‍द्र शर्मा जी,  मेरे बहुत ही प्रिय जिनको आज यह सम्‍मान मिला तो मुझे बहुत खुशी हुई है जिनके चेहरे पर मैं हमेशा मुस्‍कुराहट देखता हूं, जो रंगकर्मी, गीतकार,पटकथाकार ऐसे मेरे प्रिय मनोज जी, मैं आज विशेषकर आपको शुभकामना देना चाहता हूं। हम सब लोग आपको बहुत बधाई देना चाहते हैं कि आप उसी गति से और आगे बढ़े, आपके लिए पूरा मैदानखाली है और अभी आपके पास बहुत वक्‍त है। दिव्‍जा जी को भी मैं धन्‍यवाद देना चाहता हूं कि जब आपके मन में यह विचार आया होगा तो मैं समझ सकता हूं और पद्मेश को भी मैं काफी समय से जानता हूं तो उनके पिता जी के बारे में अभी सुना उनकेपास भी मैं यदा कदा जाता था। उनका स्‍नेह, प्‍यार औरगुस्सा सबसेमैं अवगत हूं क्‍योंकि मैं तो अचानक राजनीति में आया था। मेरा राजनीति में आने का न मन था, न संभव था तथान परिवेश था और ऐसे समय में उत्तर प्रदेश जैसे राज्य की विधान सभा में और युवापनमें आना तो उनके पास में यदा-कदा जाकर के उनका आशीर्वाद भी लेता रहा हूं और जैसाउन्होंने कहा किविद्वान सर्वत्र पूजे जाते हैं तो यहजितने विद्वतगण हैं इनका मैं अभिनंदन करता हूं और उनके चरणों में मैं अपना प्रणाम करता हूं। इसलिए दिव्या जी मैं बहुत बधाई एवं शुभकामना दे रहा हूं और उनकी पूरी टीम को जिन्होंने इसको स्थापित किया और जिस तरीके से आप उसको बढ़ा रहे हैं, मैं जान सकता हूं कि किसी संस्था को स्थापित करना तो बहुत सरल होता है लेकिन उसको जिंदा रख करके, उसको दौड़ाते रहना, उसकी भावनाओं पर उसको क्रियान्वित करना कम चुनौती नहीं होती है। बहुत चुनौतियां होती हैं और लगातार इस संस्था के द्वारा हिन्दी को पूरे विश्व के पटल पर प्रसारित किया गया है। अकेले हिन्दी का 9 लाख शब्दों का कोश है और इसलिए हिन्दी पूरे विश्व के लिए एकसंजीवनी का काम करेगी। हिन्दी केवल भाषा नहीं है,हिन्‍दीकेवल विचार है,बल्‍किहिन्दी तोमन की तरंगों का उल्लास है, हिन्दी संस्कार है, हिन्दी सम्मान है जो भी आप हिंदी को कह सकते हैं और उसका जो विपुल साहित्य है,उस साहित्यके निकट आना किसी के लिए भी बहुत अच्छे सौभाग्य का क्षण होता है और इसीलिए उस हिंदी की समृद्धता के लिए आपसब लोग काम कर रहे हैं जब अनिल जोशी जी से मेरी पीछे के दिनों में भी बात हुई और मुझे याद है जब मैं मुख्यमंत्री था, तब वेविदेशों से हिंदी के बच्चों को लेकर आते थे औरतब तेजेन्द्र शर्मा जी सहित सब लोगों से बातचीत होती रहती थी और मुझे अच्छा लगता था कि आप अभियान के तहत बच्चों को लाते हैं और अनिल जी कोमैंनेदेखा और जब मुझे लगा कि हिंदी के प्रति वेकिस सीमा तक लगाव रखते हैं तो अचानक ही यह संयोग है कि फिर इन्हीं के हाथों सेहमने हिंदी की बागडोर हिन्दुस्तान में दे दी है और हिंदी जो संस्थान है उसके यशस्वी उपाध्यक्ष के रूप में वे भारत सरकार के एक महत्त्वपूर्ण स्थान को विराजमान हो गये हैं। पद्मेश जी आपको भी तब से मैं जानता हूं और मुझे मालूम है कि तब आप पत्रिका भी निकालतेथे मुझे याद है कि जब आप लखनऊ में थे तब आपकी हिंदी की पत्रिका होती थी और इस बीच आपसे कुछ समय के लिए संवाद जरूर टूटा लेकिन हमेशा मन जुड़ा रहा हैक्योंकि आप उन स्थानों पर भी रह करके जो काम कर रहे हों वह मेरे लिए बहुत सुखद हैऔर मेरे लिए बहुत सौभाग्य का विषय होता है। इसीलिए पद्मेश जी, दिव्या जी और आपकी पूरी टीम को मैंबधाई देना चाहता हूं।मीराकौशिक जी जो वातायन की अध्यक्ष हैं उनको भी मैं बहुत बधाई देना चाहता हूँ। मैं शुभकामना देना चाहताहूँ अदिति माहेश्वरी जी को जो वाणी प्रकाशन की कार्यकारी निदेशक हैं। अभी कुछ ही दिन पहले हमारी बात हो रही थी अदिति बहुत प्रखर है, शालीन है और मैं देख रहा हूँ क्योंकि मैं 1999के आसपास से अरुण भाई के साथ जुड़ा हुआ हूं और उनका हिंदी को विश्व में ले जाने के लिएकाफी बड़ा योगदान है। हिंदी के लेखकों को उन्होंने हमेशा प्रोत्साहित किया है और अरुण जी यदि मेरी बात सुन रहे हैं तो मैं उनको भी अभिनन्दन करता हूँ और अदिति को जो उन्होंने जिम्मेदारी दी है अब इनके हाथों में काफी कुछ है और इसको नईपीढ़ी को भी बढाना है। हिन्दी को उसके शिखर तक पहुंचाना है। एक अच्छी टीम के रूप में यह लोग आगे काम करेंगे तो मैं सोचता हूं कि अच्‍छा ही होगा। आज रीना भारद्वाजजी का जो गीत है वह मुझे बहुत अच्छा लगा क्‍योंकि विदेशी धरती पर रहकर भी रीना अपने को बनाए हुए हैं और एक-एक शब्द उनका मां सरस्वती का ऐसा झंकार पैदा करता है कि मैं उनकाबहुत अभिनन्दन कर रहा हूं और आदरणीय निखिल जी आपका भी आभार प्रकट करता हूं। मुझे लगता है कि शेखावत जी भी हमारे साथ जुड़े होंगे और शेखावत जी से भी मेरी कल बातचीत हुई थी तो सभी लोग जुड़े हैंऔर मुझे जब बताया गया और जब से आपने घोषणा की तब से पूरे देश और दुनिया के हजारों लाखों संदेश आ रहे हैं। इस समय जो लोग हमसे जुड़े हैं या जिनका संदेश आरहा है वो संयुक्त राज्य अमेरिका है,कनाडा है, कोलंबिया है, त्रिनिनाद है, टौबोगो है, एक्वाडोर है,संयुक्‍तअरब अमीरात है, जापान, नेपाल, अफगानिस्तान, मास्को, यूक्रेन, थाईलैंड, इंडोनेशिया, श्रीलंका, भूटान, रूस, कजाकिस्तान, ओमान, यूनाइटेड किंगडम, जर्मनी डेनमार्क, बुल्गारिया, नार्वे, मॉरीशस, नाइजीरिया, यूगांडा, ट्यूनीशिया, न्यूजीलैंड, सहित लगभग 50-60 देशों के लोग कहीं न कहीं मुझसेसीधे-सीधे जुड़े हैं याजिनके संदेश हमको मिले हैं इसलिए बहुत लोग पूरी दुनिया से और मेरे हिंदुस्तान से आज हमारे साथ जुड़े हैं। मैं उन सभी लोगों का इस अवसर पर जबकि यूकेवातायन एकअंतरराष्ट्रीय शिखर सम्मान का आयोजन कर रहे हैं तो मैंइस सम्मान को उन सभी लोगों को समर्पित करता हूं जिनके मन में छटपटाहट है, वेदना है, पीड़ा है जो कुछ करने का मन रखते हैं, जो विषम और विपरीत परिस्थितियों में भी आगे बढ़ने की छटपटाहट करते हैं, मैं  उन सभी नवोदित लेखकों को और उन सभी लोगों का जो अपने विचारों के साथ अपने संघर्षमय जीवन की ताप और धार पर खड़े होकर आगे बढ़ रहे हैं मैं उन सब का अभिनंदन करता हूं तथा यह जो आपने मुझे सम्मान दिया है मैं इसको प्रत्येक भारतवासी का सम्मान महसूस करता हूं। मैं उन सभी लोगों का विशेषकर युवाओं का सम्मान महसूस करता हूं जो मेरे भारत को विश्व गुरु के रूप में स्‍थापित करना चाहते हैं क्योंकि जो मेराभारत है वो विश्‍व गुरू है‘एतद् देश प्रसूतस्य शकासाद् अग्रजन्मन : , स्वं-स्वं चरित्रं शिक्षरेन् पृथ्वियां सर्व मानव:’यह पूरी दुनिया ने मेरे हिंदुस्तान से आकर सीखाहै। पूरा विश्‍व हमारे से ज्ञान, विज्ञान, अनुसंधान तथा नवाचार को ले कर के गया है और वो विचार जो सारे विषयों में हमको विश्वगुरु के रूप में स्थापित करता है जब हम ‘वसुधैवकुटुम्बकम’ की बात करते हैं। एक ओर हम ‘‘अयं निजः परो वेति गणना लघु चेतसाम् | उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्’’ अर्थात्पूरी वसुधा को यदि किसी ने परिवार माना है तो केवल मेरे हिन्दुस्तान ने माना है,मेरी संस्कृति ने माना है, मेरे विचार ने माना है और केवल परिवार ही नहीं माना है बल्कि उस परिवार के लिए ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया, सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुःखभाग् भवेत्’की कामना की है। जब तक धरती पर एक भी प्राणी दुखी होगा तब तक में सुखकाएहसास नहीं कर सकता यह हैहमारा विचार, यह है हमारा विजन। यह हमारा मिशन भी है क्योकि हमने पूरी धरती को माता माना है। हम वो लोग नहीं हैं जो इस विश्व को मार्किट मान रहे हैं। लोगों की नजर में यह जो विश्‍व है,वो एकमार्किट है एक बाजार है। हमने वर्ल्ड को परिवारमाना है। हमने पूरे संसार को परिवार माना है क्योंकि हम जानते हैं कि मार्केट अथवा बाजार में व्यापार होता है और परिवार में प्यार होता है। हम पूरे विश्व कोएक परिवार के रूप में बढ़ाना चाहते हैं।औरउस पूरे परिवार के सुख-दुख और दर्द को मिल करके बांटना चाहते हैं। हमारे इस विचार ने पूरी दुनिया में हमको अलग रखता है और इसीलिए मुझे अच्छा लगा कि अभी चर्चा कर रहे थे, आपने कहा वातायन अर्थात् खिड़की या झरोखा। मुझे भरोसा है कि आपके इस झरोखा से नई ऊर्जा, नई रोशनी, नई उमंग, नए उल्लास तथा नए उत्साह का संचार होगा। हमनेहमेशासर्जनात्मक रूप में प्रकृति से जुड़ करके काम किया है क्योंकि प्रकृति के विपरीत विकृति होती है वो विनाश का कारण होती है और जब प्रकृति एवं संस्कृति का समन्‍वय होता है तो एक रचना होती है, एक कृति निकलती है और हमारी अंधकार को मिटाने के लिए हमेशालालसा रहीहै। एक ओर हम कहते हैं‘असतो मां सद्गमया’ हम असत्य से सत्यकीऔर चलेंगे। ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ हम तमस को चीरते हुएहम घनघोर अंधेरे को चीरकरके रोशनी लाएंगे।हमदुनिया में अंधेरा देखना ही नहीं चाहते। हम अपने ज्ञान, विज्ञान, अनुसंधान के तहत पूरी दुनिया के अज्ञान को भी मिटाने की बात करते हैं और जो मन के अंदर बसा अंधेरा है उसको भी हटाने की बात करते हैं और इसलिए मैं समझता हूं कि जो हमारी पहचान है उसको हमें खोना नहीं है।हमआज विशेष कर के साहित्य पर तो बहुत सारी चर्चाओं को करेंगे। उपन्यासों को भी पढ़ेंगे, कहानियों को भी पढ़ेंगे, कविताओं को भी पढ़ेंगे, गीत भी सुनेंगे लेकिन जो हमारी जड़ें हैं जो हमारे संस्कार हैं वह पूरी दुनिया के लिए हैं हमारी सांस्‍कृतिकवृक्षफलना-फूलना चाहिए औरउसकी छांव पूरी दुनिया की मानवता को मिलनी चाहिए क्योंकि पूरी दुनिया कीसुख समृद्धि और शांति हिंदुस्तान से होकर गुजरती है। हमारी नई शिक्षा नीति के बारे में अनिल जी ने चर्चा की।नई शिक्षा नीति लॉर्ड मैकाले की पद्धति से हटकर भारतीयता की जमीन पर खड़ी है। हमारी जो वास्‍तविक  शिक्षा नीति थी उस शिक्षा नीति के तहत तक्षशिला, नालंदा औरविक्रमशिला जैसे विश्वविद्यालय हमारेदेश की अंदरथे और तब दुनिया में कोई विश्वविद्यालय नहीं था। इसका मतलब हिन्‍दुस्‍तानज्ञान में, विज्ञान में, अनुसंधान में प्रथम स्‍थान पर था।सुश्रुत शल्‍य चिकित्सा का जनक इस धरती पर पैदा होता है,आयुर्वेद का जनक इस धरती पर पैदा होता है भाषा वैज्ञानिक पाणिनी भीइसी धरती पर होता है और आर्यभट जैसा गणितज्ञ जिसने पूरी दुनिया को  शून्‍य दिया वो भी इसी हिन्दुस्तान धरती पर पैदा होता है नागार्जुन जैसा रसायनशास्त्री भी इसी धरती पर पैदा होता यदि मैं उस श्रृंखला को कहूंगा तो बहुत लंबी होगी। लेकिन मैं कहना चाहता हूं कि हिन्दुस्तान पूरी ताकत के साथ पूरे विश्व का मार्गदर्शन करता रहा है। हम पूरे विश्व को एक परिवार के रूप में देखते हैं। हम विस्तारवादी कभी नहीं रहे हैंऔर इसीलिए अपनी रचनाओं से, अपने कृतित्व से अपने व्यक्तित्व से, अपने कामों से किस तरीके से फिर उस विश्व तक हम अपनी हिन्दुस्तान की इस खूबसूरतियों कोदूर तक ले जा सकते हैं,आज इसकी जरूरत है और मैं जिस संस्कृति की बात कर रहा हूं वो कभी खत्‍म नहीं हो सकती क्योंकि हम कहते हैं कि ‘यूनान, मिस्र, रोमां सब मिट गए जहां से, अब तक मगर है बाकी नामो निशां हमारा और कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी’ कुछ तो बात है जो मिटाने से भी नहीं मिटती है,उसी बात को हमें पकड़े रखना है तथाउसी को आगे बढ़ाने की जरूरत है। मुझे भरोसा है कि हम इस दिशा में आगे बढ़ेंगे जो हम नई शिक्षा नीति लाई हैं वह21वीं सदी का स्वर्णिम भारत होगा, वहस्‍वच्‍छ भारत होगा,सुंदर भारत होगा, सुदृढ भारत होगा, आत्मनिर्भर भारत होगा, श्रेष्ठ भारत होगा और एक भारतहोगा यह नीति उसभारत की है।इसनई शिक्षा नीति को हम व्यापक परिवर्तनों के साथ लाएं हैं। पूरी दुनिया में इस बात की खुशी है औरतमाम देश के लोग कह रहे हैं कि हम भी भारत की इस एनईपी को चाहते हैं। हमारे देश के प्रधानमंत्री जीने कहा है कि हमें मनुष्य को मनुष्य बनाना है, एक अच्छे नागरिक के साथ विश्व मानव बनाना है। हमने मनुष्य को मशीन बना दिया था और इसलिए यहजोनई शिक्षा नीति है यहनेशनल भी है इंटरनेशनल भी है, यह इंटरएक्टिव भी है,इम्पैक्टफुल भी है,इन्‍क्‍लुसिव भी है और इनोवेटिव भी है और यदि इसकी आधारशिला को देखेंगे तो यहइक्विटी, क्वालिटी और एक्सेस की आधार शिला पर खड़ी होकर के आज विश्व का मार्गदर्शन कर रही है। इसीलिए पूरे देश के अंदर उत्साह और उल्लास का माहौल है। मैं आज इस अवसर पर आपको बहुत बधाई देना चाहता हूं। मुझे अच्छा लगा कि आपने इस अभियान लिया है और आज मनोज जी को सम्मानित किया है और मेरी अमिश जी से भी बातचीत हुईमुझे अच्छा लगा और अमिश अच्छा विचारक है तथा उसमें छटपटाहट भी है। मैं अमिश को कहना चाहता हूं कि यह अभियान जो आपने लिया है औरआपशंकर को मानते हैं और मैं तो उस धरती से आता हूं जहां कंकड कंकड में शंकर है,हिमालय से मैं आता हूं और इसलिए जो कंकड़कंकड़ में शंकर है उस पहाड़ की मैंआपको कविता सुनाना चाहता हूं, विशेष करके अमिशआपको सुनाना चाहता हूं कि मैं पहाड़ हूं इसलिए चुप नहीं कि मैं इतना शांत हूं, मैं इसलिए चुप नहीं कि मैं इतना शांत हूं तुम नहीं जानते कि मैं कितना अक्रांत हूं,मौन हूंतो सिर्फ इसलिए कि कहीं मेरे शांत मन में अशांति न आए। कई मंद पवन, मलय समीर स्‍वयंतूफान बन कर न छाए और फिर मुझे हिमालय का अनुपम धैर्य नहीं खोना है। विश्व शांति का ध्‍वज लिए मेरा हर एक कोना है। मुझे तो देश की एकता और अखंडता की चिंता है। मुझे गंगा और यमुना सरसा के जलघूंट भी पीना है और मुझे तो विषवमन करते विषैले सांप मिटाने हैं । मुझे तो विषवमन करते विषैले नाग मिटाने हैं। जन-जन के ह्रदय पटल में समता के बीज उगाने हैं। वैसे तो मेरी एक छोटी सी चीख भी प्रलयला सकती है,दिग्‍-दिंगतक्या यहब्रह्माण्‍डहिला सकती है पर मैं ऐसे नहीं होने दूंगा। मैं तो देश की आत्मा, प्यारा पहाड़ हूं। मैं संकल्प और शांति का प्रतीक देश के सौन्दर्य की अनुपम बहार हूं, मैं पहाड़ हूं।और इसीलिए मैं समझता हूं कि यह बात सही है कि पहाड़ में कठिनाइयां हैं, पहाड़ के लोगों को तो पहाड़ सा जीवन है। मेरे से लोग पूछते हें कि आप कैसे लिखते हैं,इतनीचीजें कैसे कल्पना में आती हैं, कविताएं लिखते हैं, कहानी लिखते हैं, उपन्यासों को लिखते हैं, यात्रा संस्मरण लिखते हैं गीतों को लिखते हैं तो मैं उनको केवल इतना बताता हूं कि यदि कोई लड़का गरीब घर में पैदा हो और नंगे पांव सात-आठ किलोमीटर पैदल कहीं स्कूल पढने के लिए जाए। पहाड़ी गांवसे जाए, भयंकर जंगल को पार करते हुएजाए और जंगली जानवरों का मुकाबला करते हुए जाए और वो वहां से शिक्षक बन जाए और शिक्षक से भारत के शिक्षा मंत्री तक की यात्रा करे। उसके जीवन में क्या-क्या घटा होगा, क्या-क्या हुआ होगा वो यात्रा ही मेरे मेरी कहानियों की यात्रा है, मेरी कविताओं की यात्रा है,मेरे गीतों की यात्रा है मेरे संस्मरणों की यात्रा है। इसलिए मैं समझता हूं कि जो हमने झेला है, देखा है, महसूस किया है, जिससे हो करके गुजरे हैं वही मेरा लेखनहै। आज जिन वेदनाओंसे होकरके हर कदम पर गुजरना पड़ता हैतो स्‍वाभाविक ही है कि वो बातें आपको कहांचैन से बैठने देंगी, जब तक उनको आप बाहर नहीं निकालें और बाहर भी इसलिए नहीं निकालेंगे कि केवल अपने गुबार कोखत्म करना है बल्‍कि मेरे जैसे निशंक तो न जाने कितने पैदा होते हैं और आधे में ही वो कमर तोड़ देते होंगे क्योंकि संघर्षों की ताप अंततोगत्‍वासबको झेलनी होती है और इसीलिए मेरे जैसे निशंक खड़े होकर आगे बढ़ सकें इसलिए उनके लिए मैंटूटे-फूटे शब्दों मेंउनके लिए कहानी छोड़ के जाता हूं,कविता भी छोड़ के जाता हूं। मैं आपका बहुत आभारी हूं और मैं एक बार फिर आप सब लोगों को इस काम के लिए जो यह बहुत अच्छी आपने शुरुआत की मुझे भरोसा है कि यह आपकी छोटी शुरुआत नहीं है, बहुत व्यापक शुरुआत है।इससे बौद्धिक वातावरण बनेगा तथा भारत का  नाम फिर से रोशन होगा। भारत रत्‍न डॉ. अब्‍दुल कलाम जी ने मेरी एक पुस्‍तक ‘ए वतन तेरे लिए’ का लोकार्पण  किया था, उसका एक संस्‍मरण सुनाते हुए मैं अपनी बात समाप्‍त करना चाहूंगा। वे मेरी एक छोटी सी कविता को गुनगुनातेथेजिसमें था ‘‘अभी भी है जंग जारी, वेदना सोई नहीं है,मनुजताहोगीधरा पर, संवेदना खोई नहीं है।‘’ हम बहुत भरोसे वाले लोग हैं। हम भारत के लोग कभी निराश नहीं हो सकते। हम संवेदनाओं को जिंदा रखेंगेक्‍योंकिहमको मालूम है कि ‘‘किया है बलिदानजीवन, निर्बलता ढोई नहीं है, कह रहा हूं ये वतन तुझसे बड़ा कोई नहीं है,तुझसेबड़ा कोई नहीं है।’’ मैं आपका एक बार फिर हिंदुस्तान की धरती से अभिनंदन कर रहा हूं। मुझसे देश और दुनिया के तमाम जो लोग जुड़े हैं, मैं उनको प्रणाम करता हूं।

 

बहुत-बहुत धन्‍यवाद!

 

 

कार्यक्रम में गरिमामयी उपस्‍थिति:-

 

  1. डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’, माननीय शिक्षा मंत्री, भारत सरकार
  2. श्री अमिश त्रिपाठी, निदेशक, नेहरू युवा केन्‍द्र लंदन,
  3. श्री वीरेन्‍द्र शर्मा, संसद सदस्‍य, ब्रिटिश संसद,
  4. वातायन परिवार, यूके के अन्‍य सम्‍मानित सदस्‍य।