भारतीय अनुवाद संघ

भारतीय अनुवाद संघ

 

दिनांक: 22दिसम्बर, 2020

 

 

माननीय शिक्षा मंत्री, डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’

भारतीय अनुवाद संघ के इस कार्यक्रम में उपस्थित सभी लोगों का मैंअभिनंदन कर रहा हूं। मुझे खुशी है कि देश की आजादी के बाद पहली बार इस तरीके का चिंतन प्रत्यक्षीकरण के रूप में प्रकट हो रहा है। इसमेंकेवल चिंता एवंचर्चा नहीं है बल्कि क्रियान्वयन की दिशा में साकार रूप से आज इसका शुभारंभ हो रहा है। मैं इसके लिए विशेष करके महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के यशस्वी कुलपति आचार्य रजनीश कुमार शुक्ल जी को मैं विशेष बधाई देना चाहता हूं, धन्यवाद देना चाहता हूं कि आपने यह पहल की है और उस पहल के निश्चित रूप से सकारात्मक परिणाम आएंगे। केंद्रीय विश्वविद्यालयों के बहुत सारे कुलपतिगण यहां परइस महत्वपूर्ण कार्यक्रम से जुड़ रहे हैं और मुझे बताया गया है कि इसके साथ ही महात्‍मा गांधी अन्‍तर्राष्‍ट्रीय हिन्‍दी विश्‍वविद्यालय के प्रति-कुलपति हनुमान प्रसाद शुक्‍ल, विविध विद्यापीठों के अधिष्‍ठाता एवं प्रोफेसरगण तथा भारतीय अनुवाद संघ के विविध सदस्‍यों सहित तमाम वे लोग जुटे हैं जो मानते हैं तथा जिनका विचार है कि  भारतीय भाषाओं का विस्तार होना चाहिए औरउनका अनुवाद होनाचाहिए और वे भाषाएं लोगों तक जानी चाहिए। उसके अंदर का ज्ञान, विज्ञान और उसका जो दर्शन है उसको दुनिया में बांटना चाहिए और दुनिया में बांटने से पहले अपने देश के लोगों को उसके दर्शन होने चाहिए।इस चिंतन-मंथन में ऐसे लोगजुड़े हैं जिनमें बहुत लंबे समय से इस बात की छटपटाहट थी कि हां, यह देश इतना बड़ा देश है, दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है और उस सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश में जिसे विश्व गुरु कहा गया तो ऐसे ही उसको विश्वगुरु नहीं कहा गया होगा। वो भारत जो गुलामी से पहले का भारत था उसका जब हम दर्शन करते हैं तो स्वाभाविक है कि उस बात को महसूस करते हैं और समझ सकते हैं कि कितने दर्दों से होकर भारत गुजरा है और विश्व गुरु कहलाने वाला भारत को किस तरीके से ध्वस्त करने की कोशिश हुई है। तो एक विषय तो यह है कि हम क्‍या केवल विगत समय के दुखों को याद करके रोते हैं?क्या करें कि ऐसा हुआ, यह हुआ, हमारी भाषा खत्म हो गई, हमारी संस्कृति को यह करने की कोशिश हुई, हमारे ज्ञान विज्ञान सब ग्रंथों को खत्म कर दिया, जला दिया, शिक्षा के केन्द्रों को ध्वस्त कर दिया? इस विषय पर बात तो बहुत पुरानी बात हो गई अब उसकी जरूरत नहीं है। अब जरूरत इस बात की हैकि जो लोग इस बात को समझते हैं, महसूस करते हैं, जानते हैं और जिनके मन में इस बात की पीड़ा है, छटपटाहट है, कि नहीं यदि देश आजादहुए 70 वर्ष हो गए तो कौन सा कारण है कि जहां हम अपने को पुन: खड़ा नहीं कर पा रहे हैं? कौन सा कारण है कि जोहम अपने को और उस भारत की जो असली आत्मा है उस आत्मा को अपने अंदर समाहित नहीं कर पाये तथा देश को भी उस आत्मा का परिचय नहीं दे पा रहे है। मैं समझता हूं कि यह सारे वो तथ्य हैं, वो बिन्दू है जो हमको अंदर तक हिलातेहैं और जब अंदर तक वो हमको झंकृत करते हैं, हिलाते है तो फिर वो चीज प्रकट होकर बाहर आती है तो बाहरआई हुई चीज इकट्टा होकर के एक ताकत के रूप में आगे बढ़नी चाहिए। आज वो जो अलग अलग छटपटाहट थी उन सबको एक संयुक्त रूप में करके जो आज काम हो, मैं इसके लिए आपको बधाई देना चाहता हूं। इसविश्‍वविद्यालय परिवार को और डॉ.रजनीश जी को, कि उन्होंने यह शुरुआत की है और शुरुआत भी की हैतो फिर संकल्प के साथ की है। बहुत सारे लोग होते हैं, अच्छे विचारों की कमी थोड़ी होती है आचार्य रजनीश जी, आपको याद होगा कि एक बार मैंने भारती ज्ञान प्रकोष्ठ की एक बैठक की थी और जब मेरे से कहा गया कि जो इसमें रुचि रखते हैं उनसे मीटिंग की जाए लेकिन बड़ी लम्बी सूची आईतो मेरे से पूछा गया कि फिर किनकी मीटिंग करनी है। क्‍या जो भारती ज्ञान प्रबोध के बारे में जानते हैं, जो अच्छे सुझाव दे सकते हैं फिर किनकी मीटिंग करनी है? तो मैंने कहा कि मुझे केवल उनकी मीटिंग करनी है जो काम कर रहे हैं, जो उसको आगे बढ़ा रहे हैंऔरजिनके मन में छटपटाहट है तथा जिनमें दम है करने का, वो लोग चाहिए मुझे, सुझाव देने वाले लोगों की तो दुनिया में कभी कमी नहीं रही है। बड़ी-बड़ी बातों को करने की तो दुनिया में कभी कमी नहीं रही है लेकिन हां, उस सुझाव को क्रियान्वित करके स्वयं खड़े होकर के और अपने जीवन का तिल-तिल खपा करके रिजल्ट देने वाले लोगों की कुछ कमी रही है और वो भी कमी मुझे लगता है शायद बहुत बड़ी कभी नहीं है। हमारा विजनरी देश रहा है, कमी कभी नहीं रही है। जब-जब भीपरिस्थितियां आई और आह्वान हुआ तो लोग खड़े हो गए। क्या लीडरशिप की थोड़ा कमी रही है क्या? तो यदि लीडरशिप की कमी रही है तो उस कमी को भी दूर करना चाहिए और मैं इसलिए कह रहा हूं कि ऐसा नहीं कि लोग सोए रहते हैं। ऐसा भी नहीं कि लोग कुछ करना नहीं चाहते हैं। एक समय था जब हमारे देश में ऐसी परिस्थिति थी,जब लालबहादुर शास्त्री जी देश केप्रधानमंत्री थे और हमारे देश अंदर खाद्यान का बहुत संकट था तथादेश की सीमाओं पर भीसंकट था। हम दोहरे संकट से गुजर रहे थे, खाद्यान संकट और सुरक्षा का संकट। लेकिन जब लालबहादुर शास्त्री जी ने ‘जय जवान, जय किसान’ का नारा दिया तो आप सबको भी मालूम है कि पूरा देश खड़ा हो गया था और हमने दोनों संकटों पर विजय प्राप्‍त कीऔर रास्ता निकला था तो पूरा देश लालबहादुर शास्त्री के पीछे खड़ा हो गया। उन्होंने कहा कि एक दिन का उपवास रखना है। लोगों ने एक दिन का उपवास रखना शुरू कर दिया था, पूरा देश खड़ा हो गया था लेकिन आपकेआह्वानमें दम चाहिए। जबहमारेदेश के प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी जी आए तो उन्होंने कहा कि एक समय था जब ‘जय जवान जय किसान’ का नारा लगा लेकिन अब जरूरत है‘जय विज्ञान’ के नारे के साथ हमें आगे बढ़ना चाहिए। अब जरूरत है हमें अपनी ताकत को दिखाने की तथा अपने को और ताकतवर बनाने की,भले ही हमारा देश कभी किसी को छेड़ता नहीं हैं लेकिन ताकतवर तो रहना चाहिए। आदमी जबताकतवर रहता है तब ही दूसरे का संरक्षण कर सकता है। कमजोर आदमी दूसरे का संरक्षण करने में समर्थ नहीं होता है यदि एक आदमी ने थप्पड़ मारा और कहा कोई बाद नहीं, मैं तो आदर्शवादी हूं दूसरे गाल को भी मार दोऐसी कोई जरूरत नहीं है। जरूरत इस बात की है कि यदि किसी ने गाल पर थप्पड़ मारा तो उसके हाथ को पकड़ लिया जाए। ताकत तो इतनी है कि हाथ को तोड़कर के बाहर फेंक सकते थे लेकिन यह हमारा आदर्श है कि हमने आपको छोड़ दिया। जाइए, अब आगे से ऐसा मत करिए,यह है ताकत, इस ताकत की जरूरत है। उस ताकत की जरूरत के लिए अटलबिहारी बाजपेयी ने जैसे ही‘जय विज्ञान’ का नारा दिया आपको सब पता है देश महाशक्ति के रूप में किस तरीके से खड़ा हो गया। परमाणु परीक्षण करके दुनिया के तमाम देशों ने कहा कि हम भारत पर आर्थिक प्रतिबंध लगा देंगे। यदि इस चीज को वापस नहीं लिया गया तो और अटल जी थे उन्होंने बेहतरीन निर्णय लेते हुए कहा कि हम मजबूत भारत देखना चाहते हैं, हम अपाहिज भारत नहीं देखना चाहते हैं। हम शक्तिशाली भारत देखना चाहते हैं और इसलिए आपको याद होगा कि पूरी दुनिया ने आर्थिक प्रतिबंध लगाने की घोषणा की यहां तक की कई संपादकीय उनके विरोध में लिखे गए थे। उस समय अटल जी ने कहा था कि विकसित देशों के ऋण की भीख हमको नहीं चाहिए और इसलिए केवल देश से आयात और निर्यात दोनों बंद कर दिए थे। ना आयात होगा, ना निर्यात होगा।जो चीजें देश में बनती है वे चीजें दुनिया में नहीं जाएंगी और दुनिया की चीजें देश में नहीं आएंगी। केवल इसएक सूत्र ने छह महीने के अंदर-अंदर पूरी दुनिया को झुका दिया था और आर्थिक प्रतिबंधों को वापस लेना पड़ा था। यह है ताकत जब आदमी पूरे विजन के साथ काम करता है तो फिर वह आगे बढ़ता है।अब हमारे देश के यशस्‍वी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने जिस तरीके से 2013-14 के बाद जिस ढंग से काम किया है आज उन्होंने ‘जय अनुसंधान’ का भी नारा दिया। अब अनुसंधान की जरूरत है हमको चीजें हमारे पास बहुत है जिनके बल पर पूरी दुनिया में हम नंबर एक हो सकते हैंलेकिन उस चीजों को नये अनुसंधान के साथ नया नवाचार के साथ सामने लाने की जरूरत है उसी कड़ी में जो नई शिक्षा नीति आईहै वो निश्चितरूप से भारत केन्द्रित है।मुझे इस बात को लेकर खुशी है कि जब हमभारत केन्द्रित बोलते थे पहले, तो तमाम प्रकार के लोगों को परेशानी खड़ी हो जाती थी। उनको ‘भारत’शब्द ही पसंद नहीं है। मैं पूछना चाहता हूं उनसे कि भाई,तुमको ना हिंदुस्तान शब्द पसंद है ना भारत शब्द पसंद है तो भाई क्या पसंद है? जब हम भारत केन्द्रित बोलते हैं तो भारत केन्द्रित का मतलब है कि भारत की आत्मा उसमें दिखाई देनी चाहिए,भारत की वो सब चीजें आनी चाहिए उस शिक्षा नीति में क्‍योंकि वह देश के लिए बन रही है।यदि उसी देश की चीज उसमें नहीं है तो फिर क्या भारत की शिक्षा नीति है। इसलिए लंबे समय के विमर्श के बाद, लोगों की लंबे समय की छटपटाहट के बाद यह नई शिक्षा नीति आई है।यहभारत केन्द्रित होगी और भारत केन्द्रित होने का मतलब है कि इसमें ज्ञान, विज्ञान, अनुसंधान सब कुछ शामिल होगापहले तो अपने देश के लोगों को भारत के दर्शन कराने की ज़रूरत है। इस पीढ़ी को भारत के दर्शन कराने की जरूरत है और यह तभी होगा जब हमारे पीछे की जो हमारी संपत्ति है, जो हमारी थाती है, जो हमारी धरोहर हैं उनको हम अपनी पीढ़ी तक ले जा सकें।हमारी नई पीढ़ी को हमारे अतीत की सम्‍पन्‍नता का पता नहीं है इसलिए जब अचानक कोई चीज आती है तो उनको लगता है जैसे यह तो हास्यास्पद है और इसीलिए यह जो नयी शिक्षा नीति है वह भारत केन्द्रित तो होगीहीलेकिन यह नेशनल होने के साथ ही, इंटरनेशनल भी है, इम्पैक्टफुल भी है, इंटरएक्टिव भी है, इनक्लूसिव भी है और इनोवेटिव भी है। इसका जो मूलाधार है वो इक्विटी, क्वालिटी और एक्सिस, इसके मूल आधार पर यह खड़ी है जो नीचे अंतिम छोर के व्यक्ति से लेकर के विश्व के शिखर तक पहुंचती है। इसमें सभी शैक्षणिक क्षेत्रों पर ध्‍यान केन्‍द्रित किया गया है।शोध और अनुसंधान के क्षेत्र में‘नेशनल रिसर्च फाउंडेशन’ का गठन किया जा रहा है जिसके अध्‍यक्ष प्रधानमंत्री के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार होंगेअभी तक हमारे युवाओं में पैकज की दौड़ थी, अब वो पेटेंट की दौड़ होगी। केवल विदेशों में बड़ी-बड़ी फर्मों में पैसा मिल जाए यहजो दौड़ थी नई शिक्षा नीति उस दौड़ को खत्म कर देगी। हम पेटेंट के रूप में अपने को खड़ा कर सकते है।हमको नौकरी पाने के लिए दौड़ने वाले नहीं बल्कि नौकरी देने वाले लोगों को तैयार करना है और इसीलिए नई शिक्षा नीति जहां ‘नेशनल रिसर्च फाउंडेशन’ को गठित करती है वहीं तकनीकी की दृष्टि में अंतिम छोर तक के व्यक्ति को ‘नेशनल एजुकेशन टेक्नोलॉजी फोरम’ के माध्यम से सशक्‍त करने का काम भी करती है। हमारे पास किसी भी क्षेत्र में ज्ञान की कोई भी कमी नहीं रही है। हमने अभी तक अपने पीछे को देखा ही नहीं, हम केवल दौड़ रहे है अभी तो हम केवल पाश्‍चात्‍य लोगों को देख रहे हैऔरउनके पीछे अन्‍धानुकरण कर दौड़ रहे हैं जिन्होंने हमारी संस्कृति, हमारी शिक्षा और हमारी भाषा को ध्वस्त किया औरइसलिए इस वर्तमान पीढ़ी के लोगों के सामने यह चुनौती है। मेरे देश के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी से एक बहुत अच्छी बात बोलते हैं। वे कहते हैं कि यदि चुनौती का डटकर मुकाबला होता है तो वह अवसर में तब्दील हो जाती है। यदिचुनौती न आए तोवो सफलता कहां से और इसलिए हमको यह भी सोचना पड़ेगा, ताकत के साथ खड़े होने की जरूरत है। हां में हां मिलाने वाले लोग परिवर्तन नहीं कर सकते है, ताकत के साथ खड़े रहने वाले लोग परिवर्तन का कारक बनते हैं। हमारी दृष्टि ठीक है कि नहीं, हमारी जो दिशा है वो ठीक है कि नहीं, हमारा जो हेतुया लक्ष्य है वो ठीक है कि नहीं, यह पहले स्‍पष्‍ट रहना चाहिए। हां, हमारा टारगेट बहुत स्पष्ट है। हमारी दृष्टि, हमारी नियत भी साफ है। हम इस देश को पूरी दुनिया में ज्ञान की महाशक्ति बनाना चाहते है। महाशक्ति जब हम बोलतेहैं तो यह भी स्‍पष्‍ट रहना चाहिए कि यह देश तो महाशक्ति था, विश्वगुरू तो इसको कहते थे।  सारी दुनिया के लोग यहां शिक्षा ग्रहण करने के लिए आते थे,जब यहां तक्षशिला, नालंदा और विक्रमशिला जैसे विश्वविद्यालय थे। अभी जब हम नई शिक्षा नीति के तहत मातृभाषा में प्रारंभिक शिक्षा को लाए तो कुछ लोगों ने इस बात की चर्चा करनी शुरू कर दी। लोगों ने कहा कि निशंक जी आप एक ओर तो अंतर्राष्ट्रीय  तथा ग्लोबल स्‍तर पर जाने की बात कर रहे हैं तो वो तो केवल अंग्रेजी में ही हो सकता है और फिर आप मातृभाषा पर आ रहे है तो इससे तो हम देश को पीछे धकेल रहे है। मैंने उनसे हाथ जोड़कर यह निवेदन किया कि अंग्रेजी का कहीं विरोधनहीं है। लेकिन नंबर एक अंग्रेजी अपने देश की भाषा नहीं है, वो विदेश की भाषाहै। नंबर दूसरी बात यह है कि मेरे देश की जो भारतीय भाषाएं हैं जिनमें तमिल है, तेलगू है, मलयालम है, कन्नड़ है, गुजराती है, मराठी है, बंगाली है, असमिया है,उर्दू है, संस्कृत है, हिंदी है, कश्मीरी है, उड़िया हैसिंधीहै, कोंकणी है, मणिपुरी है, नेपाली है, बोडो है, डोगरी है, मैथिली है, संथाली है, यह संविधान में प्रदत्‍त जो 22 भारतीय भाषाएं हैं, यह हमारी आत्मा हैं। इसमें ज्ञान भी है, विज्ञान भी है, आचार भी है, व्यवहार भी है, संस्कार भी है, हमारी परंपराएं भी हैं। फिर इन भाषाओं की बात  क्‍यों न करें? पहलेक्‍या दुनिया की बात करें औरअपने घर को छोड़ दें? अपनी भाषा को छोड़ दें, अपने संस्कारों को छोड़ दें, अपनी परिस्थितियों को छोड़ दें, तो क्‍या शिक्षा के माध्‍यम से हम नागरिक देश के लिए पैदा कर रहे है या दुनिया के लिए पैदा कर रहे है?इसी कारण से आज मेरे देश के 8 लाख से भी अधिक बच्चे बाहर पढ़ रहे हैं। इस देश की प्रतिभाऔर पैसा दोनों बाहर चला गया। लगभग पौने दो लाख करोड़ से भी अधिक रूपये प्रति वर्ष बाहर जा रहे हैं।हमारी जो प्रतिभाएं छोटे-छोटे  पैकेज को पाने की दौड़ एवं लालच में बाहर चली जाती हैं, वे फिर उसी देश की अर्थव्यवस्था को, तकनीकी को, विज्ञान को बढ़ाने में जुट जाते हैं मैं तो सारा अध्ययन कर रहा हूं। मैंने कहा हिंदुस्तान के लोग कहां-कहां है?दुनिया के जितने विश्वविद्यालयों को मैं देखता हूंअधिकांश में हिंदुस्तान के लोग है। मैं देख रहा हूंचाहे गूगल हो या माइक्रोसॉफ्ट हो या इन जैसी दूसरी कोई कम्‍पनी हो इन कंपनियों में भी सीईओ अमेरिका का नहीं हैं वो भी हिंदुस्तान कहा ही है। इन सभी प्रतिष्‍ठित पदों पर बैठे हुए लोग, हमारे ही संस्‍थानों से पढ़े हुए लोग हैं इसलिए ऐसा नहीं है कि हमारी शिक्षा में गुणवत्ता नहीं है। हमारी शिक्षा में गुणवत्ता नहीं होती तो यहां का आईआईटी से पढ़ा हुआ विद्यार्थीदुनिया में क्यों लीडरशिप ले रहा है? हमारे विश्वविद्यालयों का पढ़ा छात्र दुनिया में प्रतिष्‍ठित पदों पर क्यों है? यह हमारी शिक्षा है ऐसा नहीं कि वह जीर्ण-शीर्ण शिक्षा है। लेकिनहमेंअब थोड़ा सा मन को भी बदलना है। विदेशों में पढ़ाई के नाम पर दो लाख करोड़ रुपए प्रति वर्ष जा रहा है। मेरे देश का पैसा जा रहा है और मेरी देश की प्रतिमा भी जा रही है अब इसको रोकना है। इसलिए हमने जहां ‘स्टडी इन इंडिया’ अभियान लिया वहीं हमने‘स्टे इन इंडिया’ भी किया। ‘स्टडी इन इंडिया’ में तो हम लोगों को देना चाहते हैं क्‍योंकि हमारे पास देने के लिए है यदि दूसरे देशों के पास देने के लिए है तो हमारे पास तो उनसे हजारों गुना ज्यादा चीजें  हैं।उनकी जरूरत है और हम देंगे भी लेकिन देने के लिए रास्ता चाहिए और रास्ते के लिए पहले यहसब चिंतन चाहिए जो आज शुरू हो रहा हैं। मैं ये समझता हूं कि यह जो भारतीय भाषाएं और उनमें जितने हमारे ग्रंथ हैं, भारतीय भाषाओं में अकेले संस्कृत में हीहजारों-हजारों ग्रन्थ हैं। आखिरक्योंजर्मनी जैसा देश उन ग्रन्थों का अनुवाद करने में रात-दिन जुटा हुआ है और यहां से हजारों आचार्यों को उच्च वेतन पर अपने यहां बुला रहा है उसको मालूम हैकि इन ग्रंथों में ज्ञान-विज्ञान का खजाना छिपा है तो फिर हम क्या कर रहे है? देश की आजादी के 70 वर्ष हो गये हैं, किसी भी राष्ट्र की अपनी भाषा होती है। हमने कहा हमारे लिए सारे देश की भाषाएँ महत्‍वपूर्ण एवं सम्‍मानीय हैं।किसी भीप्रदेश पर कोई भी भाषा थोपी नहीं जाएगी। लेकिन हां, गांधी जी ने कहा था किइस देश की सम्पर्क भाषा हिन्दी होनी चाहिए। अम्बेडकर जी ने कहा था कि इस देश की एक तो ऐसी भाषा होनी चाहिए जो सबको एकसूत्र में पिरो करके रख सकें। उन्होंने कहा था वो एक सुर में पिरोने वाली भाषा हिंदी है तो गांधी जी और हमारे संविधान के निर्माताअम्बेडकर जी इन दोनों की भावनाओं सेहम खिलवाड़ कैसे कर सकते हैं? इसलिए गांधी जी के नाम पर जो अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा है, जिसकेकुलपति जी से लगातार  मैंने इस बात को लेकरचर्चा की है।पूरी दुनिया में लोग हिन्दी को पढ़ना चाहते हैंहिन्‍दी भाषा में कितना शब्द सामर्थ्य है और फिर हमारी तो जितनी भी यह भाषाएं हैंइन सबके शब्दों को हिन्‍दी में समाहित करने की हमारे संविधान ने अनुमति प्रदान की जब अटल जी ने सबसे पहले हिन्दी में संयुक्त राष्ट्र संघ में अपना जब वक्तव्य दिया था तब देश में कितने खुशी कीलहरें थी। ऐसा लग रहा था कि कुछ बड़ी चीज मिल गयी है क्योंकि देश को अपनी भाषा से स्वाभिमान महसूस होता है। जब इस देश के प्रधानमंत्री भाषण हिन्दी में देते है तो कोई भी समझ सकेगा हिन्दुस्तान का है, कोई भी यह नहीं बोलेगा कि यह दूसरे देश का है क्योंकि हिन्दी देश की पहचान है और इसलिए मुझे लगता है। हिन्दी का किसी से कोई विरोध नहीं है। मैं सोचता हूं कि हिन्दी की किताबें तमिल में, तमिल की किताबें हिन्दी में क्यों न अनुवाद हों, तेलगू की किताबें हिन्दी में क्यों नहीं अनुवादित हो, मलयालम की किताबें क्यों नहीं हिन्दी में अनुवादित हों।मेरीतेलगू भाषा में समर्थता है, जो उसके लेखक हैं, जो उनका विचार है उसको भी तो पूरे देश के अंदर हमको सरसाना है। कुछ लोग केवल भाषा के नाम पर राजनीति करते हैं, अपने आप उनकी दुकानें बंद हो सकती हैं। हमारे लिए तमिल, तेलुगू, मलयालम, कन्नड़, गुजराती, मराठी, बंगाली, असमिया, ओड़िया, संस्कृत, हिन्दी, उर्दू सब हमारी भाषाएं हैं। सब हमारी भाषाएं हैं लेकिन हां, उन भाषाओं को ऊपर उठाने की जरूरत है। मुझे इस बात की खुशी है कि यहां पूरे देश भर के पैंतालीस भाषाओं के अनुवादक आज एकत्रित हुए हैं। आप एक नया इतिहास रच रहे हैं, इसलिए मैं आप सबको ढेर सारी बधाई देना चाहूंगा। मैं शुभकामना भी देनाचाहता हूं कि जिस मन से आप एकत्रित हुए हैऔरजो यह अभियान शुरू हुआ है यह सामान्‍य विभाग का अभियान नहीं है, यह केवल विश्वविद्यालय भर काअभियान नहीं हैबल्‍कि यह तो देश का अभियान है।मैं सोचता हूंआज सुश्रुत को कितने लोग पढ़ रहे हैं, सुश्रुत शल्य चिकित्सा का जनक था उसे आप कितनी भाषाओं में पढ़ा रहे हैं? दूसरे देशों के लोगों को यह पता नहीं है कि सुश्रुत का जन्म इस देश की धरती पर हुआ है। सुश्रुत से संबंधित जितने भी ग्रन्थ हैं उनका सभी भारतीयभाषाओं एवं अन्‍य भाषाओं में अनुवाद होना चाहिए। ‘आयुशो वेदा आयुर्वेदा’की बात करने वाले चरक कीजो‘चरक संहिता’ है इसका भी सारी दुनिया की भाषाओं में अनुवाद होना चाहिए लेकिन पहले आपने भारत की भाषाओं में इन संस्‍कृत ग्रंथों का अभियान के रूप में अनुवाद होना चाहिएहिंदी और संस्कृत तो सोहदरा हैं, एक भी ग्रंथ नहीं छूटना चाहिए था जो हिन्दी में अनुवादित न हो। मैं अनुरोध करना चाहता हूं आचार्य रजनीश से कि आपकी अच्छी टीमें है आप लीडरशीप लीजिए और यहां गांधी जी के नाम पर स्‍थापित विश्‍वविद्यालय मेंइतिहास रचिए। देश की आजादी के बाद गांधी जी को सम्मान मिला देश को सम्मान मिला और देश के संविधान को सम्मान मिला है।  संस्‍कृत के इन सारे अमूल्‍य ग्रंथों को हम हर कीमत पर अनुवादित करेंगे। पहले चरण में हिन्दी में करेंगे और उसके बाद तमिल में करेंगे, तेलगू में करेंगे, मलयालम में करेंगे तथा भारत की संविधान में उल्‍लेखित सभी22 भाषाओं मेंकरेंगे और उसके बाद विश्व की भाषाओं में भी करेंगे। विश्व के लोगों से आह्वान करेंगे कि आप भी इसकी खुशबू को लो, आपकोदेने के लिए हमारे पास बहुत कुछ है और मैं समझता हूं यह संकल्प लेने की जरूरत है। इस समाज में बहुत सारे लोग हैं जो केवल किंतु-परंतु करते हैं। मैं हमेंशा आग्रह करता हूंकिउनकी परवाह नहीं करनी चाहिए। नकारात्मक सोच के व्यक्ति से दूर रहिए। कोशिश करें कि वह नकारात्‍मक व्‍यक्‍ति भी हमारे सम्‍पर्क से सकारात्मक हो जाए लेकिन उस पर अपनी शक्ति को खपाना नहीं चाहिए। सकारात्मक लोग ही बहुत हैं उनको थोड़ा सा पुश करने की जरूरत है। अभी भी तो आपने यह पहल की और एक हजार लोग बाहर निकल कर आ गए।यह है सकारात्मकता कि जिनमें छटपटाहट है वो कुछ करना चाहते हैं। जिसको कुछ नहीं करना होता वह सबसे ज्यादा बोलता है  और केवल आलोचना करता है। पत्रकारिता का छात्र होने के नाते मुझे विश्लेषण करने कीऔर अध्ययन करने की थोड़ी सी प्रवृति है। इसलिए मैं जब उन लोगों की ओर देखता हूं कि यहआदमी बोलता तो बहुत है लेकिन जब पूछता हूं कि कि क्या-क्या किया? तब उत्‍तर मिलता है कि सर, कुछ भी नहीं किया तो भाई फिर केवल बोलते क्यों हैं? उसको बोलना भी है लेकिन पहलेकरना भी है। केवल बोलकर के काम नहीं चलेगा, केवल चिंता करके और चर्चा करके काम नहीं चलने वाला है। हमारे लिए एक-एक कदम भी बहुत महत्वपूर्ण हैं। हमारा एक शब्द भी क्रियान्वन होता वो हमारे लिए महत्वपूर्ण है और मैं इस बात के लिए महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय, वर्धा को बधाई देना चाहता हूं कि एक कदम जिसकी लंबे समय से जो मांग थी, जो छटपटाहट थी आज इस दिशा में विश्‍वविद्यालय ने अपने कदम आगे बढ़ाये हैं। यशस्‍वी प्रधानमंत्री जी के मार्गदर्शन में अभी हम नई शिक्षा नीति को लेकर आये हैं जिसमें बहुभाषिकता के साथ ही भाषा संस्‍थानों के निर्माण पर भी बल दिया गया है। दुनिया के तमाम विश्वविद्यालयों ने, दुनिया के तमाम देशों ने, अभी तीन-चार दिन पहले ब्रिटेन के  विदेश मंत्री जी हमारे आवास पर आकर के और इतनी खुशी व्यक्त करके गए हैं कि यह विजनरीशिक्षा नीति है यह देश और दुनिया के अंदर बहुत आगे बढ़ेगी। कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय ने न केवल तारीफ की बल्‍कि उन्‍होंने अपने एशिया हेड को भेज करके हमको सम्मान भी दिया और अभी उन्होंने पत्र भेजकर भी आमंत्रित किया कि यह जो नई शिक्षा नीति है भारत की, इसको हम पूरे विश्व के शिक्षा जगत के साथ जुड़कर बढ़ाना चाहते हैं। अभी संयुक्त अरब अमीरात के जो हमारे शिक्षा मंत्री थे उनके साथ संवाद हुआ, उन्होंने कहा हम अपने देश में इस शिक्षा नीति को लाना चाहते है।चाहे आस्ट्रेलिया हो,चाहे मोरिसश हो पूरी दुनिया इस शिक्षा नीति को लेने के लिए तैयार है।हमारे जीवन मूल्यों की पुस्तकें भी सभी भाषाओं में होनी चाहिए। यूनेस्को की डीजी से जब पेरिस में चर्चा हो रही थी, तो उन्होंने एक चिन्ता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि आजकल विद्यार्थियों में अनुशासनहीनता हो रही है और हिंसक प्रवृत्तियां बढ़ रही हैं। वैमनष्यता हो रही है, यह हो रहा है, वो हो रहा है कईचीजें उन्‍होंनेगिनाई। तब मैंने कहा कि हमारी शिक्षा व्‍यवस्‍था ने व्‍यक्‍ति को मनुष्‍य बनाने के स्‍थान पर केवल मशीन बनाया है इसलिए हिंसा और अनुशासनहीनता जैसी प्रवृत्‍तियां बढ़ी हैं। मेरे देश की परंपरा रही है कि हमने विश्व को मार्किट कभी नहीं माना। जिन लोगों ने विश्व को मार्किट माना वो इस पूरी दुनिया कोबाजार मानते हैं और तो हमने तो पूरी दुनिया को अपना परिवार मानाक्योंकि हमारी प्रबल धारणा रही है कि परिवार में प्यार होता है और बाजार में व्यापार होता है। हम अपने परिवार की तरह पूरे विश्व को देखना चाहते हैं, रखना चाहते हैं और साथ मिलकर चलना चाहते हैं। इसीलिए यह जो हमारी नई शिक्षा है, यह मनुष्य को एक देश के लिए एक आदर्श नागरिक बनाएगी तो विश्व मानव भी बनाएगी।मैं बहुत बधाई देना चाहता हूं कि आपने जो काम शुरू किया है और निश्चित रूप सेइससे बहुत बड़ा परिवर्तन होगा। मैं जब पीछे के समय एक कमेटी का चेयरमैन था तो उसमेंकोई भी चीजें हिन्दीमें आती ही नहीं थी। जब मैंने पूछा कि ऐसा क्योंहो रहा है तो 10 दिन बोलेकि अनुवादक ही नहीं मिल रहे है। इस देश में अंग्रेजी का तो अनुवादक होना चाहिए था लेकिन हिन्दी का अनुवादक क्यों?ठीक उल्टा हो रहा है तो इसको हमको तेजी से बदलना होगा हालांकि विगतचार-पांच वर्षों में हमारे प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी जी की अगुवाई में पीछे के समय में प्रधानमंत्री जी ने कहा कि विद्यार्थीअपनी मातृभाषा में इंजीनियर भी बन सकेगा और डॉक्टर भी बन सकेगा। देश में कितनी खुशी की लहर आई कि, अच्छा आपनी मातृभाषा में अब मेरा बेटा डॉक्टर बन जाएगा।यदि हमें बच्‍चे को मातृभाषाओं में डॉक्‍टर तथा इंजीनियर बनाना है तो निश्चित ही उन पाठ्यक्रमों को अनुवादित करके और अच्छे तरीके से उस तक पहुँचाना पडेगा।चाहे हमारा स्वयं है, चाहे स्वयं प्रभाहै, हमारी दीक्षा है, हमारी ई-पाठशाला है, हम चाहते हैं कि इन सबका सभी भारतीय भाषाओं में अनुवाद हो और जो अनुवादक हैं वो किन-किन भाषाओं के और किन-किन विषयों के अनुवादक है इसका अगली बैठक में हम थोड़ा-सा परामर्श भी करेंगे।अभी हमारे कुछ आईआईटीज ने भी कहा कि पहले वर्ष में वो भी भारतीय भाषाओं में पाठ्यक्रम लेकरआएंगें ताकि उसको यह न लगे कि  वो आईआईटीज तक नहीं पहुँच सकता। हमारे कुछ आईआईटीज ने यह करना शुरू भीकर दिया है अब जेईई की जो परीक्षाएं हैं वो भी तेरह भारतीय भाषाओं में करने का सुनिश्चित हुआ है।देश के इतिहास में पहली बार होगा कि 13 भारतीय भाषाओं में जेईई की परीक्षाएं आयोजित होंगी और अभी हम कोशिश कर रहे कि नीट को भी किस तरीके से भारतीय भाषाओं में आयोजित किया जा सकता है मैं समझता हूँ कि यह बहुत अच्छी पहल है। अभी लोग गूगल में जाकर अनुवाद का अर्थ का अनर्थ हो रहा है और जो अनुवादक भी हैं वो इतने क्लिष्ट हैं कि जब हम अपने अध्यादेशों को पढ़ते हैं तो हम सिर पकड़ करके बैठ जाते हैं तो दूसरा आदमी तोइनसे दूर होगा ही मुझे याद है कि एक दिन जब हम चर्चा कर रहे थे नई शिक्षा नीति पर तो शशि थरूर जी जो पहले तोबहुतविरोध करते थे लेकिन जब हम लोगों कीचर्चा हुई तो बात उनकी समझ में आई तो उन्होंने कहा कि आपकी बात से मैं सहमत हूं।मेरा अनुवादकों से अनुरोध रहेगा कि क्‍लिष्‍टतान लाएं, हम आम आदमी की भाषा में उसका अनुवाद करें, आम आदमी की भाषा में हम उस बात को कहने की कोशिश करें अन्‍यथा  हिन्दी से लोग दूर हो रहे हैं,उनको लग रहा है कि इतनी क्‍लिष्‍ट भाषा है किउसको दो बार रटने पर भी नहीं आ रहा है। आम बोलचाल की भाषा में कैसे कर के अनुवाद हो सकते हैं, इसकी जरूरत है।अभी वैज्ञानिक शब्दावली आयोग से भी मैं चर्चा कर रहा था कि आप ऐसे शब्‍द तैयार करें कि आम आदमी को उस शब्द को रटना न पड़े, उसकेजीवन में जैसे दिख रहा है उसको सहज सरल हिन्दी में प्रसारित करें,  प्रचारित करे, अनुवाद करें। मुझे भी खुशी है कि आपने एक अनुवादक पोर्टल बनाया है, हमने भी कोविड़ के समय में युक्ति पोर्टल बनाया था। हमने आह्वान किया कि जिन-जिन भी आईआईटीज ने काम किया है, जो भी शोध किया है वो युक्ति पोर्टल पर डालो।‘युक्ति-2’ पर हमने कहा कि जितनेआइडियाज आएहैं उनका एक प्लेटफॉर्म बना दो, तो मेरा अनुरोध रहेगा कि एक पोर्टल ऐसा भी बनाया जाए जिस पोर्टल पर सारे लोगों के आइडियाज आ जाएं। बहुत लोग सोचते हैं कि मेरी सामग्री का इस भाषा में अनुवाद हो जाए कहां ढूंढते-फिरते रहते हैं, तो कहीं एक जगह जो आपका प्लैटफॉर्म बनेगा, उस पर विजिट करने के बाददेश और दुनिया का कोई भी आदमी कहेगा तमिल का यह है, तेलुगू का यह है, हिंदी का यह है, मलयालम का यह है, मराठी का यहहै बंगाली का यहहै तो पता चल जाएगा कि किस-किस भाषा के कौन-कौन और किन विषयों के वो विशेषज्ञ हैं तो उससे बहुत सरलता होगी। साहित्य अकादमी हो, चाहे एनबीटी हो, चाहे एनसीईआरटी हों, विश्वविद्यालयों हों, सभी यदि एक प्लेटफार्म परमिल जाए सबको तो सब लोगवहां से उपयोग करेंगे और मेरे श्रोताओं यहअभियान की तहत होना जरूरी है और जो बड़े प्रकाशक हैं उनसे भी मेरा निवेदन रहेगा किइसके लिए जो अनुवादक हैं उनको अपने यहां इंटर्नशिप दें। वो अपने यहां यदि इंटर्नशिप देंगे तो उनका भी भला होगा और अनुवादक संघ की प्रेरणा से जो नये लोग सामने आएंगे तो उनको भी एक अच्छा रास्ता मिल सकता है।हम इसको अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी लेकर जा सकते हैं क्योंकि दुनिया को मालूम है कि भारत के इन ग्रंथों में असीम संभावनाएं हैं। एक बार फिर मैं आप सबको बहुत धन्यवाद देना चाहता हूं कि आपने प्रतिष्ठित 25 पुस्तकों के अनुवाद के कार्य का निर्णय लिया है।यहअच्छा है कि पहले संचितऔर उसके बाद फिर सृजित फैले। संचित का भी आपके पास अथाह भंडार है,उस संचित भंडार को कैसे करके सामने लाया जा सकता है और उसके बाद जो सृजित है जो वर्तमान में सृजित हो रहा है उननई चीजों को भी सामने लाना है।आज जो नए लेखक हैं, नए कहानीकार हैं,विभिन्न विषयों में जो नए चिंतन के साथ आगे आ रहे हैं आप उनको कैसे करके आगे लासकते हैं, इस पर भी बहुत काम करने की जरूरत है। एक बार फिर मैं आप सभी को बहुत शुभकामनाएं देता हूं और इस अवसर पर जो 1 हजार 11 लोगहमारे साथ जुड़े हैं, यह संख्या भी कुछ चमत्कारिक हो गई है जोनिश्चित रूप में व्‍यापकपरिवर्तन का सूचक लग रहा है। मैं सबको शुभकामना देता हूँ, बहुत बधाई देता हूँ।

 

बहुत-बहुत धन्‍यवाद!

 

कार्यक्रम में गरिमामयी उपस्‍थिति:-

  1. डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’, माननीय शिक्षा मंत्री, भारत सरकार
  2. प्रो. रजनीश कुमार शुक्‍ल, कुलपति, महात्‍मा गांधी अंतर्राष्‍ट्रीय हिन्‍दी विश्‍वविद्यालय, वर्धा
  3. भारतीय अनुवाद संघ के विशिष्‍ट अधिकारी