भारतीय दर्शन के संदर्भ में जगतगुरुनानक देव जी के विचारों पर चर्चा

भारतीय दर्शन के संदर्भ में जगतगुरुनानक देव जी के विचारों पर चर्चा

 

दिनांक: 05 अक्‍टूबर, 2020

 

 

माननीय शिक्षा मंत्री, डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’

 

आज जो यहां भारतीय दर्शन के परिप्रेक्ष्‍य में गुरू नानक जी के चिंतन से संबंधित बहुत ही महत्‍वपूर्ण कार्यक्रम आयोजित हो रहा है, मैं इस अवसर पर देश के विभिन्‍न क्षेत्रों से और पूरी दुनिया से इस महत्‍वपूर्ण कार्यक्रम में जुडने वाले सभी भाइयों ओर बहनों का अभिनन्‍दन करना चाहता हूं।  सरदार इन्‍द्रजीत जी अध्‍यक्ष, राष्‍ट्रीय सिक्‍ख संगठन दिल्‍ली प्रदेश एवं गुरू नानक देव जी के 550वें प्रकाशोत्‍सव की आयोजन समिति के सदस्‍य डॉ. अमरजीत जी निदेशक संकल्‍प ग्रुप तथा अन्‍य सभी सम्‍मानित सदस्‍यगण।

मुझे लगता है कि इन दोनों लोगों ने जिस प्रकार इस आयोजन को किया है उसके लिए मैं इनका अभिनन्‍दन करता हूं और जो इस कार्यक्रम की अध्‍यक्षता कर रहे हैं आदरणीय सरदार गुरूचरण जी अध्‍यक्ष, राष्‍ट्रीय सिक्‍ख संगत उनके अलावाकुलपति डॉ. एन. के तनेजा जी, कुलपति प्रो.आशा शुक्‍ला जी, डॉ. सच्‍चिदानन्‍द जोशी जी,सदस्‍य सचिव आईजीएनसीए प्रो. रतन जी, सदस्‍य सचिव आईसीकेआर और अन्‍य बहुत सारे महत्‍वपूर्ण लोग इस कार्यक्रम से जुड़े हैं।जब हम भारत की बात करते हैं, भारत के दर्शन चिंतन और संस्कृति की बात करते हैं तो फिर हमको भव्य भारत का दृश्य नजर आता है।ऐसा भारत जिसने पूरी दुनिया का मार्गदर्शन किया है,पूरी पृथ्वी के लोग जिस भारत में आकर के नया जीवन दर्शन ले करके जाते हैंवोभारत विश्वगुरु रहा है जिस देश की धरती पर आकर के मानवता का पाठ लेकर दुनिया गई है, जिसकी धरती पर आकरके उसने नया जीवन जीना सीखा है, जिस धरती की प्रेरणा पाकर उसनेअपने जीवन को सफल बनाया है और वोभारत जो ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की बात करता हैऔरधरती कोमां मानताहै और इस धरती पर रहने वाले हर प्राणी, जीव-जंतु को अपना अंग मानता है और उसके सुख की कामना करता है।

इसलिए हमने उस पूरे परिवार की कल्पना की और उसके बारे में कहा‘अयं निज: परो वेति गणना लघु चेतसाम्। उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्‍बकम्’यह जो पूरीवसुधा है यहमेरापरिवार है। मैं इसकी सुख शांति की कल्पना ही नहीं करूँगा बल्‍कि‘सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया’ जब तक धरती पर कोई भी प्राणी दुखी रहेगा तब तक मैं सुख काअहसासनहीं कर सकता,यह जो चिन्तन है यह मेरे भारत का चिंतन है, जिस भारत के चिंतन से इसधरती पर पैदा हुए गुरू नानक जी जिन्होंने उस परम्परा को, उस चिन्तन को, उस मंथन कोपूरी दुनिया में सरसाया है उस भारत के चिन्तन पर खड़े हो करके जो कहता है ‘असतो मा सद्गमया’असत्य से सत्य की ओर जानाहै और ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ अंधकार से प्रकाश की ओर जाने की बात करता है,आज हम जैसा कि गुरू नानक देव जी का 550वां प्रकाशोत्‍सव मना रहे हैं औरगुरु नानक देव की जरूरत भारत को हीनहीं बल्‍किपूरी दुनिया को है और इसलिए पूरी दुनिया इस उत्सव को मना रही है और यहउत्सव भी प्रकाश का उत्सव है ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’यह जो भारत का चिंतन है अर्थात्अंधेरे को मिटा करके उजियारा करने की जोअभिप्षाहै, जो अंधकार को हटाकर प्रकाश देने की अभिप्‍षा है इस समय उस प्रकाश के उत्सव का आयोजन निश्चित रूप में बहुत महत्वपूर्ण है।

मैं सबसे पहले आयोजकों को बहुतशुभकामनाएं देना चाहता हूं, बधाई देना चाहता हूं, उनका आभार प्रकट करना चाहता हूं क्‍योंकिजब समाज में इस तरीके की सक्रियता और गतिविधियां होती हैं तो संस्कार पैदा होता है, एक परिवेश बनता है जोउस भारत को खड़ा करता हैजिस भारत कीपूरी दुनिया को जरूरत है और इसीलिए आजजो यहकार्यक्रम आयोजित हुआ है यह अपने आप में बहुत महत्वपूर्ण है और इसलिए मैंने कहा कि यह प्रकाश का उत्सव है चाहेअंधेरा अज्ञान का हो, चाहे अन्‍य प्रकार का अंधेर हो, मनुष्य के हृदय के पटल में कहींभी कुछ अंधेरा है तो उसको प्रकाशितकरनेकी जरूरतहै उसका जो हेतु है उस हेतु को साकार करने के लिए आज आपने भारतीय दर्शन के परिपेक्ष्य में गुरु नानक देव जी के चिन्तन संबंधितगोष्ठी का आयोजन किया है। इस अवसर पर प्रकाशक जी आपने गुरू नानक देव जी पर जोपुस्तक छापी है वह बहुत ही खूबसूरत है। गुरु नानक देव जीसंस्कारों की बात करतेथे,विचारों की बात करते थे।

पीछे के समय में जबयूनेस्को की डीजी भारत आई थी तो उन्‍होंने इस बात को लेकर चिंता व्यक्त की थीकि आतंक की बात क्‍यों हो रही है, हिंसा की बातक्यों हो रही, अनुशासनहीनता की बातक्यों हो रही है, ऐसी परिस्‍थितियांक्‍यों पैदा हो गयी कि असंतोष है,अनुशासनहीनता है तो इसको लेकर के पूरी दुनिया चिंतित है तो आज जब हम गुरू नानक देव जी की 550वां प्रकाशोत्‍सव मना रहे हैं, तो मुझे लगता है कि गुरू नानक देव जी वाणी को, उनके विचारों को, उनके अंदर की आत्मा की आवाज को सरल और सहज शब्दों में अपनी पीढ़ी में बांटने की जरूरत है और इसीलिए जो पुस्तक आपने निकाली हैं उसके लिएमैंप्रकाशक जी को धन्यवाद देना चाहता हूं। इस पुस्‍तक के माध्‍यम से गुरू नानक देव जी के विचारों को विभिन्‍न छोटी-छोटी कहानियों वो चाहे‘गुरु ज्ञान’ हो,‘बैद्य की व्याधि’हो,‘सच्चा सौदा’हो,‘सब कुछ तेरा’ हो,‘मानवता सच्चा धर्म’ हो,‘सच्ची आराधना’ हो,‘मेहनत को सम्मान’ हो,‘अनोखा आशीर्वाद’हो,‘सिद्धों के परीक्षा’ हो,‘हृदय परिवर्तन’ हो इन सबको जब छात्र पढ़ेंगे तो वे अपने जीवन में गुरू नानक देव जी के विचारों को उतारेंगे। गुरु माने जो प्रकाश दे, गुरु माने ज्ञान, गुरु माने जो राह दिखाए और हमारे यहां तो यही परंपरा रही है।

भारतीय दर्शन में हमने कहा है ‘गुरुर ब्रह्मा गुरुर विष्णु गुरु देवो महेश्‍वरागुरु साक्षात् परम ब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नमा:’ गुरू ईश्‍वर से बढ़कर है, यह जो गुरु है यह ब्रह्मा भी है, यह ईश्वर भी है और इसीलिए हमारे संत कबीर ने कहा ‘गुरुगोबिंद दोऊ खड़े काके लागू पाय बलिहारी गुरु आपने गोबिन्द दियो बताए’कियदि एक तरफ ईश्वर है और दूसरी तरफ गुरू है तो पहले किसको प्रणाम करेंतो इस बात को लेकर किसी के मन में कोई संकोच नहीं होगा कि वह प्रथम अपने गुरू की चरण वंदना करेगा क्‍योंकि भगवान तक जाने का रास्‍ता तो मुझे गुरू ने ही दिया है इसलिए पहले गुरु का स्थान है।यह है हमारी परम्परा, यह है हमारी संस्कृति, यहहैहमारे विचार, यह है हमारा दर्शन और उसी दर्शन को गुरु नानक देव जी ने किस तरीके से आगे बढ़ाया हैउस उपलक्ष्‍य में आप सब लोगों ने बहुत अच्छा कार्यक्रम आज आयोजित किया है। मुझे लगता है की जो भारत आध्यात्म की धरती रही है और हमेशाही संतों, महात्माओं और गुरुओं ने यहां जन्म लिया है। जब भी किसीहताशा और कुहासा से हो कर के दुनिया केलोग गुजरे हैं तब-तब भारत की धरती ने एक ऐसे सपूत को जन्म दिया है जिसने उस अंधकार को मिटाने की कोशिश की है और जिसके पथ-निर्देशन में समाज राष्ट्र और मानवता फिर खड़ी हुई है।

हम सभी को मालूम है की गुरु नानक देव जी केदौर में जात-पात, धार्मिक कट्टरता एवंतमाम प्रकार की विषमता समाज में थी।ऐसे दौर में गुरु नानक देव जी को स्वीकार्यताप्राप्त होना छोटी बात नहीं थी और उनकी स्वीकार्यता इस बात से समझी जा सकती है उनके बारे में कहा गया कि ‘बाबानानक शाहफकीर हिन्दू दागुरु मुसलमान दा पीर’यहहैउनकी स्वीकार्यता और इसीलिए ऐसे वक्त पर उनकी स्वीकार्यता का आना कोई सामान्य बात नहीं है। उन्होंने ऊंच-नीच का विरोध करते हुए स्पष्ट कहा था कि ‘नानक उत्तम नीच न कोई’यानीईश्वर की निगाह में न कोई छोटा है न बड़ा है,सब एक समान हैं।जैसे अटल जी ने कहा है कि छोटे मन वाला कभी बड़ा नहीं हो सकता और टूटे तन वाला कभी खड़ा नहीं हो सकता।चाहे छोटी-छोटी बातों में उलझने वाला व्यक्ति हो, समाज हो, परिवार हो, राष्ट्र हो वह कभी आगे नहीं बढ़सकता है।बड़ा बनने के लिए बड़ा विचार चाहिए, बड़ा धैर्य चाहिए तबजाकर के व्यक्ति बड़ा हो सकता है और इसलिए हमारे गुरु ने कहा है किसहजता, सरलता औरमधुरता यह तीन गुण दुनिया के सबसे शक्तिशाली गुण हैं और जो न तो कर्ज में लिए जा सकते हैं, न ही छीने जा सकते हैं, न हीमोल लिए जा सकते है,यह स्वतः स्फूर्त आपकी संपत्ति है।

लेकिन उस संपत्ति को किस तरीके से आप आगे बढ़ा सकते हैं इसकी जरूरत है।गुरूनानक देव जी ने कहा है किआपअच्छा क्यों नहीं बोल सकते,अच्छा क्यों नहीं सोच सकते,अच्छा क्यों नहीं कर सकतेऔर मैं समझता हूं कि ऐसे वक्त पर उन्होंने जिस तरीके से भारतीयजागरण के अग्रदूत बन करके धर्मान्धता, अंधविश्वास और पाखंड जैसीकुरीतियों को समाप्‍त करते हुए लोगों को नयी दिशा, नयी सोच और विचार दिये यह सहज नहीं हैं।हमारे जितने भी गुरू रहे हैं चाहे वो गुरु गोबिन्द सिंह जी हों,गुरु नानक देव जी हों उनके संस्कार, विचार हमेशा जिन्दा रहे हैं जिन्‍होंनेसमाज को जोड़ा है,केवलसमाज को जोड़करके ही नहीं रखा है बल्कि आगे बढ़ने की दिशा में नये विचार के साथ मानवता को खड़ा करने की आधारशिला को भी तैयार किया है।

आज कल की जो दौड़ती-भागती जिन्दगी है, इसभौतिकवादीयुग में हम लोगों ने सब कुछ छोड़ दिया है क्योंकिभारतीय चिंतन और पाश्चात्य चिंतन में यही अंतर है कि पाश्चात्य चिंतन ने इस पूरी दुनिया को मार्केटमाना है लेकिन हमारे भारतीय चिंतन ने तो दुनिया को कभी बाजार नहीं माना है।हमने उसको परिवार माना है। हमारे गुरु ने हमको बताया है कि बाजार में हमेशा व्यापार होता है और परिवार में हमेशाप्यार होता है। यदि आपको प्यार करना है तो परिवार की भावना को पालना पड़ेगा और उस परिवार में यदि कोई खुशी का उत्सव होता है तो उसको सभी लोग मिलकर के बांटते है क्‍योंकिखुशियांहमेशाबाँटने से बढ़ती हैं और जब कभी कष्ट आता है, दुख कासंकट आता है तो पूरा परिवार उसको मिलकर  बांटते हैं क्‍योंकि  दु:ख बांटने से घटता है।जबआपको कोई पुरुस्कार मिलता है तो आपके इर्द-गिर्द, नाते-रिश्तेदार भी आनंदका अनुभव करते हैं, काम तो आप करते हैं लेकिन खुशियां पूरा परिवार बांटता है।

गुरूनानक देव जी ने कहा किकुछ नहीं हो सकत्ता से क्या हो सकता है इसपरविचार करो,इसनकारात्मक सोच को खत्म कर दो जब हर चीजना से शुरूहोगीतो वहहां मेंकैसेतब्दील हो जाएगी।इसभौतिकवादी युग में हमने मनुष्‍य को मशीन बना दिया है,मनुष्य को थोड़ा-सा नया विचार देने की जरूरत है, जब आदमीसोच सके किमैं मशीननहीं हूं, मैं इंसान हूं, मैं भगवान की सबसे सुंदरतम कृति हूं इसीलिए आपने देखा होगाकि जो हमारा चिंतन है, उसनेहमेंकुछ न कुछ देने की कोशिश की है।

हमारे गुरूओं ने कहा कि केवल उतना ही प्राप्त करो जितनी आपको जरूरत है, संग्रह मत करो, दूसरे का छीनकर अपने पास इकट्ठा मत करो यदि जिस दिन उन विचारों पर दुनिया खड़ी हो जाएगी,आधी समस्याओं का समाधान उसी दिन होजाएगा, इस अभियान की जरूरत है। ऐसे अवसर पर मैं देख रहा हूं कि गुरूजी की अमृत बाणी प्रत्येक व्यक्ति के अन्दर शांति, सहजता और धीरज कासमावेश कर रही है। मैं यह समझता हूं कि सदैव प्रसन्न रहना,ईश्‍वर से सदा अपने लिए क्षमा मांगना और ईश्वर से लगातार संवाद करना यह भी बहुतअच्‍छी बात है। करोनासंवाद, क्या पूछना चाहते हो ईश्‍वर से,दूसरेसे पूछने की जरूरत ही नहीं है। जिस दिन आदमी अपने से पूछना शुरू कर देगा, जिस दिन स्‍वयंअपना विश्लेषण करना शुरू कर देगा और फिर ईश्वर से पूछकर के उनसेसंवाद करना शुरू कर देगा, उस दिन बहुत सारी समस्याओं का समाधान निकल आएगा। मेहनत और ईमानदारी की कमाई में से जरूरत मंदों को कुछ न कुछ देना चाहिए। गुरू नानक देव जी ने कितना बड़ा लंगर शुरू कर दिया।

गुरू जी ने कहा कि हम साथ खाएंगे, साथ चलेंगे, साथ संघर्ष करेंगे, साथ पुरुषार्थ करेंगे, हम सब मिलकर क्या करना चाहते हैं जो मेरे पास है वो मेरा नहीं आपसबका है।यह हमारी संस्कृति है और इसीलिए गुरु नानक देव जी ने भाषण नहीं दिए बल्‍किउन्होंने करना शुरू किया। छोटी-छोटी बातें हमारे जीवन के अंदर डाली कि यदि तुम जो कमाते हो तो उसमें से जितनी तुम्‍हें जरूरत है उतना ही अपने पास रखोबाकि सब समाज में बांट दो, यह तुम्हारा नहीं है, तुम न तो साथ लाए थे न ही लेकर जाओगे। यह हमारा विचार है और इसलिए मैं समझता हूं कि इस अवसर पर जबकि हम550वां प्रकाशोत्‍सव मना रहे हैं, शिक्षा विभाग ने भी इस अवसर पर बहुत सारे कार्यक्रम किए है। हम पूरी दुनिया के तमाम बड़े विश्वविद्यालयों के साथ संवाद कर रहे हैं।

गुरूनानक देव जी के जीवन दर्शन पर बात कर रहे हैं और कनाडा केविश्वविद्यालयों में गुरु नानक देव जी की चेयर को  भी स्थापित किया जा रहा है ताकि दुनिया के लोगों को हमारे गुरु के बारे में पता चल सके कि हमारे गुरु के विचार कैसे थे। अभी हम जो नई शिक्षा नीति 2020 लेकर  आये हैं,यह शिक्षा नीति सामान्य नहीं है। यह नेशनल भी है, इंटरनेशनल भी है, यह इंटरेक्‍टिवभी है, इम्पैक्टफुल भी है,इनोवेटिवभी है और यहइक्विटी, क्वालिटी और एक्सेस की आधारशिला पर खड़ी होती है।हम इसमें कंटेंट भी पैदा करेंगें और उसको टैलेंट केसाथ भीजोड़ेगें और उसका पेटेंट भी करायेंगे। आज भी देश के अन्‍दर छात्रों में केवल पैकेज की होड़लगीहै।इस पैकेज की होड़ को खत्म करके पेटेंट के होड़को तैयार करना होगा तभी देश प्रगति के पथ पर आगे बढ़ सकता है और वो दिन दूर नहीं है।

अभी कुछ दिन पूर्व कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय ने भी हमारी नई शिक्षा नीति की तारीफ की है, हमारे देश के अन्‍दर उत्साह का वातावरण है, वहीं पूरी दुनिया भी इस नई शिक्षा नीति के साथ जुड़ना चाहती है। इस शिक्षा नीति के अंतर्गत यदि कोई 4 वर्ष का कोर्स है और यदि कोई छात्र दो साल में हीपरिस्‍थितिवशछोड़के जा रहा है  तो पहले उसका पैसा एवं वर्ष खराब हो जाते थे लेकिन अब उसकोनिराश नहीं होना पड़ेगा,यदि आप परिस्‍थितिवश एक वर्षमें छोड़ कर जा रहे हैं तो उसको सर्टिफिकेट देंगे, दो साल में छोड़ कर जा रहा है तो डिप्लोमा देगें, तीन साल में छोड़कर जा रहा है तो उसकोडिग्री देंगे लेकिन यदि फिर वह लौट कर अपने भविष्य को संवारना चाहता है तो फिरउसनेजहां से उसने छोड़ा था वहीं से शुरू कर सकता है। उसके लिए हम एक ऐसा क्रेडिट बैंक बनायेंगे जहां उसके सारे क्रेडिट जमा होंगे इसलिए उसके लिए आगे बहुत आपार संभावनाएं है।

वह कहां जाना चाहता है, शोध और अनुसंधान के क्षेत्र में जाना चाहता है।जहां हमने ‘नेशनलरिसर्च फाउंडेशन’ की स्थापना की है,जो कि प्रधानमंत्री जी के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार की अध्यक्षता में होगी जो शोध की संस्कृति को तेजी से आगे बढ़ाएगा। वहींहमनेतकनीकी के क्षेत्र मेंअंतिम छोर के व्यक्ति तक कैसे पहुंचा सकते हैं इसके लिए ‘नेशनल टैक्‍नोलॉजीफोरम’का भी गठन कर रहे हैं। जिससे तकनीकी दृष्टि से भी देश समृद्ध हो सके।

मैं जब अपनेविश्वविद्यालयों की समीक्षा करता हूं तो मैं देखता हूं किस विभाग में क्या-क्या हो रहा है, मैं चुपचाप बैठने वाले लोगों में नहीं रहा हूं। मैं हर विभाग के बारे में बता सकता हूं कि उसने क्‍या-क्‍या किया है, क्‍या कर रहा है और भविष्‍य में उसके क्‍या प्‍लान हैंअभीहमने ‘स्टेइन इंडिया’कीभी बात कीक्‍योंकि हमारे देश से 7-8 लाख छात्र प्रतिवर्ष विदेशों में पढ़ने के लिए जा रहे हैं। हमारे देश का पैसा और प्रतिभा दोनों बाहर चली जाती हैं तो वापस वह हमारे देश में नहीं आती है।

इसलिए हमने‘स्‍टे इन इंडिया’ किया  हमने  छात्रों को भरोसा दिलाया कि हमारे आईआईटी, एनआईटी, आईएसर, केन्‍द्रीय विश्‍वविद्यालयों में योग्‍यता है, क्षमता है, आपको  बाहर जाने  की जरूरत नहीं है,अब लोगों की समझ में आ गया है। मुझे इस बात की खुशी है कि पीछे के समय जब हमने जेईई परीक्षाएं करवाई। मुझे इसबात की भी खुशी है कि दो लाख से भी अधिक छात्रों ने जोछात्रविदेश में जा रहे थेवे जेईई और नीट की परीक्षाओं में सम्‍मिलित हुए।  हम ‘स्‍टे इन इंडिया’ के तहत दुनिया के शीर्ष सौविश्वविद्यालयों को अपनी धरती पर आमंत्रित कर रहे हैं आपकोकहीं जाने की जरूरत नहीं है और यहां के जो शीर्ष विश्वविद्यालय हैं वे भी बाहर जा रहे हैं।

यह आदान-प्रदान हम करेंगे।हमारे संस्‍थान अब एनआईआरएफ ही नहीं,अटल रैंकिंग ही नहीं बल्‍कि क्‍यूएस रैंकिंग और टाईम्‍स रैंकिंगमें भीछलांग मार  रहे हैं क्योंकि हममें सामर्थ्य है।जब देश और दुनिया कोविडकी माहमारी के संकट से गुजर रही थी तोहमारे देश के प्रधानमंत्री जी ने कहा है कि नौजवानों आगे आओ,आपक्या कर सकते हैं मैं इस बात को लेकर बहुतखुशहूं कि तब मेरे छात्रों ने, मेरे अध्यापकों ने प्रयोगशाला में जाकर एक से एक नये अनुसंधान किये। हमनेमास्‍कतैयार किए, हमने ड्रोन तैयार किए, हमने सस्‍ते एवं टिकाऊ वेंटिलेटर तैयार किए, टेस्टिंग किट तैयार किए जो पहले देश में कभी बनता ही नहींथा।यदि आप युक्ति पोर्टल पर जाएंगे। आपको लगेगा कि इस कोरोना काल में भी इस देश के नौजवानों, अध्यापकों और छात्र-छात्राओंबहुत सारे शोध एवं अनुसंधान किये हैं,यह हमारी ताकत है। दुनिया ने हमारी ताकत को देखा है। हमको इस ताकत को बचाकररखने की जरूरत है और इसलिए मुझे लगता है जो यह नयी शिक्षा नीति अभी आई है जिस पर हम लोग लगातार परामर्श कर रहे है मुझे इस बात की भी खुशी है।

देश के सब शिक्षा मंत्रियों से जब मेरी बात होती है तो प्रदेशों मेंहोड़ लगी हुई हैकि हम शिक्षा नीति को सबसे पहले अपने प्रदेश में क्रियान्वित कराएंगे और मुझे इस बात की आशा है, मुझे संतोष भी है कि वक्त तेजी से बदल रहा है, हमने विभिन्न क्षेत्रों में क्रियान्‍वयनशुरू कर दिया है।कुछ लोग कहते हैं कि हमको ग्‍लोबल पर जाना है तो अंग्रेजी सीखनी पड़ेगी। मैंने कहा  हम अंग्रेजी का विरोध नहीं  करते, अंग्रेजी ही नहीं और दो-तीन भाषाएं सीखों,लेकिन अपनी भाषाओं को मत छोड़ो।

हमारे संविधान ने हमें 22 खुबसूरत भाषाएं दी हैं। हिन्दी, तमिल, तेलगू, मलयालम, कन्नड़, गुजराती, मराठी, बंगाली,ओडिया, असमिया, उर्दू,यहहमारी 22 खूबसूरत भाषाएँ हैं इनमेंअपना ज्ञान है,जीवंता है,तोक्यों हम अपनी भाषाओं को खोयंगे।हमने अंग्रेजी का कभी विरोध नहीं किया लेकिन अंग्रेजी इस देश की भाषा नहीं है। हमें अंग्रेजीक्या पूरी दुनिया की भाषाओं को पढना है लेकिन मैं उन लोगों से पूछना चाहता हूं। क्या जो देशनीचे से लेकर उच्च शिक्षा तकअपनी मातृभाषा में शिक्षा देते हैं वो किसी से पीछे हैं, क्‍या जापान, फ्रांस, इंग्लैंड और दुनिया के तमाम जो विकसित देश हैं वो अपनी मातृभाषा में शिक्षा देते हैं क्‍या वो किसी से पीछे हैं,फिर ऐसे तर्क दे करके देश को कमजोर करने की बातक्यों की जाती हैं।

इसलिए देश के प्रधानमंत्री जीने कहा कि अब व्‍यक्‍ति अपनी मातृभाषा में डॉक्टर भी बन सकता है औरइंजीनियर भी बन सकता है क्‍योंकि  जो बच्‍चा जिस भाषा को बोलता है यदि उसको उसकी भाषा में शिक्षा दी जाए तो वह उसमें ज्यादा अभिव्यक्त कर सकता है। अभी मैं पीछे के दिनों बैठककर रहा था तो मेरे आईआईटी केसारे लोग जुड़े हुए थे, तो आईआईटी मद्रास के निदेशक ने कहा कि सर जैसे हमारा तमिल बच्‍चा है तो यदि उसे उसी कीभाषा पढ़ाते हैं तो तुरंत समझजाताहै और अंग्रेजी में पढ़ाते हैं तो समझ में नहीं आपातातो अब भाषा का कोई मुद्दा नहीं होगा, उसी की भाषा में प्रवेश भी होगा, पढ़ाई  भी होगी, परीक्षा भी होगी।

इसलिए जो देश के प्रधानमंत्री जी ने कहा कि21वीं सदी का स्वर्णिम भारत चाहिए जो भारतसुन्‍दर हो,स्वस्थ हो,सशक्त हो,समृद्ध हो,आत्मनिर्भर हो,श्रेष्ठ हो और एक भारत हो,ऐसा भारत जिसका रास्ता ‘मेक इन इंडिया’,‘डिजिटल इंडिया’,‘स्किल इंडिया’,‘स्टार्टअप इंडिया’ और ‘स्टैंडअप इंडिया’ से होकर गुजरता हो और उस भारत की आधारशिला यह नई शिक्षा नीति है और मुझे भरोसा है कि हम एक मिशन मोड में इसको करेंगे। यह शिक्षा नीति दुनिया के सबसे बड़े परामर्श के बाद आई है। इस नई शिक्षा नीति में 1000 विश्‍वविद्यालय के कुलपतियों से, 45 हजार डिग्री कॉलेज के प्रिंसिपलगणों से, 33 करोड़ छात्रों से, 33 करोड़ छात्र-छात्राओं के माता-पिता से  विचार-विमर्श किया गया है। इसके साथ ही साथ ग्रामप्रधान से लेकर प्रधानमंत्री तक, गांव से ले करके संसद तकहरक्षेत्र में हमने चर्चा की है और उसके बाद भी इसकोपब्लिक डोमेन में डालने के बादसवा दो लाख सुझाव आए और एक-एक सुझाव का विश्लेषण करने के बाद जो अमृत निकाला है,जोशक्ति का पुंज निकला है वह यह नई शिक्षा नीति है।

यहीं शक्ति का पुंज पूरे विश्व में भारत को ज्ञान की महाशक्ति के रूप में स्थापित करेगा। मेरा भरोसा है क्योंकि मैं देख रहा हूं मेरे अध्यापकों के मन के अंदर भी छटपटाहट है, इस कोविड के संकट के समय जब  पूरी दुनिया घरों में कैद हो गई हो तब भारत जैसा देश अपने 33 करोड़ छात्र-छात्राओं को रातों-रातऑनलाइन पर लाता है जिसके बारे में कोई सोच भी नहीं सकता है।हमने समय पर परीक्षाएं करवाई,हमने अपने बच्‍चों का वर्ष भी खराब नहीं होने दिया, उसको अवसाद में नहीं जाने दिया। हम पूरी ताकत के साथ अपने शिक्षा परिवार को मिशन मोड में ले करके उस अभियान कोआगे बढ़ायेंगे।

भारत विश्व गुरु था,भारत विश्व गुरु है और भारत विश्वगुरु रहेगा क्योंकि हमारे पास वो सब चीजें हैं और इसलिए पूरे देश के अंदर बहुत अच्छा माहौल इस समय बना है।मुझे भरोसा है कि हम सब टीम इंडिया काम करेंगे।  आज हम गुरु नानक देव जी के 550वें प्रकाश उत्सव के अवसर पर एकत्रित हुए है यह प्रकाशोत्‍सव निश्‍चित रूप से अंधकार को मिटा करकेमेरे भारत को विश्व गुरु के रूप में स्थापित करेगा। मैं आप सबके प्रति बहुत आभारी हूँ और पुस्‍तक जो विशेष करके बच्चों को मैंने समर्पित की है। मुझे आप पर भरोसा है कि आप मेरी मदद करेंगे ताकि मेरे बच्चों तक ज्यादा से ज्यादा विभिन्न भाषाओं मेंयहपुस्‍तकपहुंच सकें इसके लिए भी मैं आपसे विनती करूंगा। इसके साथ ही मैं एक बार फिर आप सभी को बहुत बधाई देता हूं।

 

बहुत-बहुत धन्‍यवाद!

 

 

कार्यक्रम में गरिमामयी उपस्‍थिति:-

 

  1. डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’, माननीय शिक्षा मंत्री, भारत सरकार
  2. सरदार इन्‍द्रजीत सिंह, अध्‍यक्ष, राष्‍ट्रीय सिक्‍ख संगठन, दिल्‍ली प्रदेश
  3. डॉ. अमरजीत सिंह, निदेशक, संकल्‍प ग्रुप
  4. सरदार गुरूचरण जी, अध्‍यक्ष, राष्‍ट्रीय सिक्‍ख संगत
  5. डॉ. एन. के. तनेजा, कुलपति, चौधरी चरण सिंह विश्‍वविद्यालय
  6. प्रो. आशा शुक्‍ला, कुलपति, डॉ. बी.आर. अम्‍बेडकर सामाजिक विज्ञान विश्‍वविद्यालय, मध्‍य प्रदेश