महिला सशक्तिकरण विषय पर आधारित एआईसीटीई लीलावती पुरस्कार का शुभारम्भ
दिनांक: 17 नवम्बर, 2020
माननीय शिक्षा मंत्री, डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’
मैं सबसे पहले तो ‘लीलावती पुरस्कार 2020’ की विधिवत् घोषण कर रहा हूं कि आपने जो यह शुरूआत की है मैं उसके लिए एआईसीटीई को बहुत बधाई देना चाहता हूं। आज एआईसीटीई के अध्यक्ष प्रो. अनिल सहस्त्रबुद्धे जी, उपाध्यक्ष प्रो. एम.पी. पूनिया जी, प्रो. वसुधा कामत जी, प्रो. राजीव कुमार जी, डॉ. अमित कुमार श्रीवास्तव जी, एआईसीटीई का पूरा परिवार तथा सभी कॉलेजों के एवं विश्वविद्यालयों के संकाय सदस्य, कुलपति, अन्य सहयोगी भाईयो और बहनों! साथ ही जिन लोगों ने इस योजना को समर्थ बनाया और जिन्होंने इसका डिजाईन बनाया प्रो. हीना जी, प्रो.शिखा कपूर जी, डॉ. पी. विनेशा जी, रूचिका जी आप सभी को बहुत सारी शुभकामनाएं देना चाहता हूं कि आज एक अच्छा काम हुआ है महिला सशक्तिकरण क्योंकि हमारे देश में थोड़ा सा पीछे मुड़कर देखते हैं तो जिस व्यक्ति को, जिस परिवारको, जिस समाज को, जिस राष्ट्र को अपने अतीत को देखकर के आगे बढ़ना नहीं आता जिसको अपने अतीत का गौरव महसूस नहीं होता है, वह बहुत आगे नहीं बढ़ पाता है वह कटी हुई पतंग की तरह आसमान में उड़ जाता है और इसलिए जब भी हम अपने देश की बात करते हैं तो हम पीछे देखते हैं कि हम क्या हैं क्योंकि वो हमारा गौरव है। पूरीदुनिया में हिन्दुस्तान विश्व गुरू के रूप में रहा है जिसने हर क्षेत्र मेंपूरी दुनिया का मार्गदर्शन किया है। ऐसे देश में जब हम अपने ऋषि-मुनियों की, समाजशास्त्रियों की, शिक्षाविदों की जब तक बात करते हैं तो उसमें हर क्षेत्र में नारी शक्ति शीर्ष पर दिखती है। इसलिए अगर हम शुरू से देखेंगे तो चाहे वो मां सरस्वती के रूप में रहा हो, हमने मां सरस्वती को हमेशा मां कहा है। यदि सरस्वती किसी व्यक्ति से रूठ जाये तो उसको लोग कहते हैं कि यह पागल हो गया, क्योंकि उसे पता नहीं होता है, क्या बोलना है और क्या नहीं उसकी जिह्वा पर सरस्वती न हो तो वह पागलों की तरह भटकता नजर आयेगा इसलिए गायत्री को मां कहा है, सरस्वती को मां कहा है, लक्ष्मी को भी हमने मां कहा है क्योंकि बिना धन के कोई खड़ा नहीं हो सकता है। अभी पूनिया जी 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था की बात कर रहे थे और धरती पर जब-जब भी आसुरी प्रवृत्तियां पैदाहुई हैं तब उनका विनाश करने के लिए मां दुर्गा ही सामने आई हैं। यदि आप देखेंगे तो मां पुरूष और महिला की कभी समानता नहीं हो सकती है। मां तो मां है मां समान कैसे हो सकती है। इसलिए यह जो पाश्चात्य हौड़ लगी कि महिला पुरूष को समान होना चाहिए इसने महिला पुरूष के बीच की खाई को पाटा नहीं है बल्कि बांटा है क्योंकि मां का जो दर्जा था, जिस श्रेष्ठता पर वो थी उसकी श्रेष्ठता को हम कैसे नीचे ला सकते हैं, यह कैसे संभव हो सकता है।हमारे शास्त्रों में कहा गया है कि जिस भी समाजमें,राष्ट्र में महिला का सम्मान होताहै वही प्रगति करता है और जिस परिवार में महिला का सम्मान नहीं है, हम अपने अगल-बगल भी देख सकते हैं लंबी बात करने की जरूरत नहीं है जिस परिवार में महिला का अपमान हो रहा होगा आप देखिए वह परिवार बर्बाद हो जाता है।इसीलिए यह जो मां हैं यह जो नारी शक्ति है हमने तो हमेशाउस शक्ति की पूजा की है।अंततोगत्वासारे संसार कोआकर के शक्ति की ही पूजा करनी है। अभी वो प्रगति की दौड़ में, अर्थतंत्र की दौड़ में,भौतिकवाद के रूप में सब कुछ हो रहा है लोगों में मूल्यों को समाप्त करके केवल होड़ लगी है, दौड़ लगी है वो हौड़ और दौड़ कहीं न कहीं जब खत्म हो जाएगी और लगेगा कि कुछ नहीं मिला तब अंत में निराश होकरके उसी स्थान पर शक्ति की पूजा के रूप में होता है, संस्कारों के रूप में होता है, विचारों के रूप में होता है, और जो समर्थता के रूप में होता है और अंतत: शक्ति के पास आकर के सबको खड़ा होना पड़ता है। इसीलिए भारत की जो हमारी परंपरा रही है वो सृजन करती है चाहे वो मां केरूप में हो अथवा एक बहन के रूप में। एक मां के रूप में कैसे करके वो उन रिश्तों को निभाती है और हरचुनौती का मुकाबला करकेएक सृजन करती है। इसलिए कहते हैं कि लाख पुरूष एकतरफ और एक महिला दूसरी तरफ दोनों बराबर होते हैं। पुरुष को शिक्षित करना होता है तो केवल एक पुरुष शिक्षित होता है लेकिन महिला शिक्षित होती है तो पीढ़ी दर पीढ़ी शिक्षित होती है, पूरा समाज शिक्षित होता है औरसंस्कारों के साथ खड़े होते हैं और इसलिए मैं समझता हूं कि जो आज यह काम हो रहा है यह बहुत अच्छा काम है और मुझे इस बात को लेकर की खुशी है। जब मैं देश के अन्दर सभी स्थानों पर जाता हूं तोमैं सबसे पहले देखता हूं कि जो दीक्षांत समारोह हैं इसमें पुरस्कार पाने वाले जोहैं उसमें महिलाओं की क्या स्थिति है। मुझे यह कहते हुए बहुत गर्व महसूस होता है कि अभी मैंपीछे के समय में उत्तर प्रदेशके एक विश्वविद्यालय में गया। वहां 75 प्रतिशत से अधिक गोल्ड मेडल प्राप्त करने वाली सब बालिकाएं थी। डिग्रियों को प्राप्त करने वाली 60 प्रतिशत से अधिक छात्राएं थी। अभी मैं आईआईएम पंजाब में जुड़ा था। उस आईआईएम के दीक्षांत समारोह में वहां 60 प्रतिशत से भी अधिक बालिकाओं ने डिग्रियों को प्राप्त किया तो मुझे इस बात की खुशी हैऔर मैं आपका भी देख रहा था कि आपने जो पीछे से 2014-15 से लेकर 2020 तक 21430 छात्राओं को स्कॉलरशिप दीऔर पीजी में 2018-19में 141 महिलाओं को फेलोशिप दी। 2015 से 2020 के बीच 14502 छात्राओं को डिग्रीकोर्स हेतू प्रगति और स्कॉलरशिप दी और 9468 छात्राओं को डिप्लोमा कोर्स के लिए प्रगति स्कॉलरशिप दी साथ ही 460 दिव्यांग छात्राओं को आपनेसक्षम स्कॉलरशिप दी। मुझे अच्छा लगा कि इस दिशा में आप यदि पीछे सेदेखेंगे तो आपने छलांग मारी है।यहबात सही है कि अभीपूनियाजीभी कह रहे थे कि हम दौड़ रहे हैं,हम भी कह रहे हैं कि दौड़ो। मुझे इस बात की खुशी है कि पीछे के एक साल सेमैं देख रहा हूं किहमारे चेयरमैन साहब तो यंग होते जा रहे हैं दौड़ते-दौड़ते,हर क्षेत्र में दौड़ रहे हैं। उनके चेहरे औरमुस्कुराहट से साफ लग रहा है वे हर क्षेत्र मेंअव्वलआ रहे हैं और क्यों नहीं आएंगे? जब इच्छाशक्ति होती है और टीम अच्छी होती है तथा टारगेट साफ सामने रहता है और दौड़ने की योग्यता भी रहती है तो आपको कोई रोक नहीं सकता।लेकिनकई बार दौड़ने की तो इच्छा हो तथायोग्यता न हो तो भी बहुत मुश्किल हो जाता है। लेकिन यदि योग्यता भी होऔरदौड़ने की इच्छा नहो तो भी बेकार हो जाता है और यदि व्यक्ति अकेला दौड़ रहा हो और टीम तमाशा देख रही होतबभी बेकार हो जाता है।इसलिए यह प्रगति की दौड़ है जिसेसब मिलकर के विजनके साथ इकट्ठा होकर जाने का दम चाहिए।हमारे देश के प्रधानमंत्री जी बार-बार कहते हैं किजो21वीं सदी का स्वर्णिम भारत है उस भारत की ओर हम तेजी से दौड़ रहे हैं। मैं कह सकता हूं कि एआईसीटीईइस दौड़ में काफी आगे दौड़ रहा है, मेरी शुभकामनाएं हैंकि आप हर कदम पर दौड़दिखा भी रहे हैं तथारिजल्ट भी पारहे हैं।मैंपीछे के एक साल, डेढ़ साल से सब कार्यक्रमों में लगभग-लगभग हरजगह जुड़ता हूं। आप नया कुछ न कुछ कर रहे हैं। छात्राओं के बीच, छात्रों के बीच, संस्थाओं के बीच, जो लोग शोध कर रहे हैं उनके बीच,जोअनुसंधान के क्षेत्र में भी बहुत आगे बढ़ रहे हैं।आज लीलावती पर आपने यहपुरस्कार शुरू किया और जैसे वसुधा जीअभी चर्चा कर रही थी कि हमारे भास्कराचार्य जी पूरी दुनिया में अद्भुत वैज्ञानिक थे और उन्होंने अपनी बेटी लीलावती को विदुषी बनाने के लिए ‘सिद्धांत शिरोमणि’की रचना की। लीलावती को समझाते हुए उसकी रचना 36 वर्ष की आयु में उन्होंने की थी और जटिल से जटिल जो भी विषय है,गणित जैसा जटिल विषय उसको भी पद्धात्मक तरीके से समझाया है। गणित को आम लोग केसेसमझ सकते हैं उसकी टीका उन्होंने स्वयं लिखी ताकिजन मानस के पास गणित का ज्ञान पहुंच सके।‘सिद्धांत शिरोमणि’ को पढ़ेंगे तो आपको लगेगा कि एक पिता अपनी बेटी को बात करते-करते पूरी दुनिया समझा देता है तथाज्ञान, विज्ञान, अनुसंधान का उसके अंदर समावेश कर देता है। हमारे एआईसीटीई के चेयरमैन साहब कह रहे थे और इनके यहांहम लोगों ने भारतीय ज्ञान परंपरा का एक प्रकोष्ठ भी शुरू किया है। यही सब चीजें हैं जो हमारी थाती हैं। हमारे देश की गुलामी के कारण हमारी जड़ों से हमको खत्म कर दिया गया तथादूर धकेल दिया गया। इस देश की वोविश्वगुरु भारत की छवि को खत्म करने की कोशिश हुई है। आज हम स्वाधीन हैं लेकिन लम्बे समय की गुलामी ने हमें अपनी जड़ों से दूर किया और आज उसको फिर हरा-भरा करने की छोटी चुनौतीनहीं है, यह बड़ी चुनौती है क्योंकि जो लार्ड मैकाले की शिक्षा नीति थी उसने हमें बहुत नुकसान पहुंचाया है। लेकिन यह जो नई शिक्षा नीति है वसुधा जी यहांपर बैठी हुई है और आज पूरे देश नेनई शिक्षा नीति को स्वीकारा है। इसका मतलब संस्कार में कहीं न कहीं वो भावनाएंजीवित हैं।‘‘यूनान,मिस्र, रोमा सब मिट गए जहां से अब तक मगर है बाकी नामोनिशां हमारा और कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी।’’ यह जो कुछ बात है जो मिटाने से भी मिटती नहीं है वो हमारी रगों में है। हमारा देश विश्वगुरू रहा है और हम लोगों ने हमने हमेशा यह कहा है कि‘‘अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम्। उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्॥’’अर्थात् पूरे विश्व को हमने अपना परिवार माना हैऔर उसके लिए ‘सर्वे बहुत सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया’ की ईश्वर से प्रार्थना की। धरती पर कोई व्यक्ति दुखी नहीं रहना चाहिए और इसलिएहम पूरी दुनिया को अपना परिवार मानते हैं। हमने पूरी मानवता की सेवा के लिए अपना समर्पण इस सीमा तक किया। इसलिए हम विश्वगुरु रहे हैं और ऐसे ही नहीं केवल सेवा समर्पण की बात नहीं हैं बल्किहम ज्ञान, विज्ञान, अनुसंधान, में कहींभीपीछे नहींरहें हैंकहीं पीछे नहीं रहे हैं और हमारी मातृ शक्ति भीकहाँ पीछे रही है। हमारी मातृशक्ति भी बहुत ताकत के साथ हर कदम पर आपदेखेंगे कि हमेशा चट्टान की तरह पीछे खड़ी रही है। परिवार में अच्छे दोनों प्रकार के लोग होतेहैं हमअच्छेका ही उदाहरण देते हैं और जो खराब है उसको भी अच्छा करने की कोशिश करते और इसलिए मैं समझता हूँ कि इस समय हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने कितने ही महिला सशक्तिकरण से जुड़ी योजनाओं को आरम्भ किया है, चाहे बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का अभियान रहा हो और चाहे वो सुकन्या का कार्यक्रम रहा हो और मुझे लगता है कि कम से कम 14-15 ऐसे कार्यक्रम हैं, जो हमारी मातृशक्ति को और मजबूत करते हैं। आप एक के बाद एक यदि देखेंगे तो महिला सशक्तिकरण के लिए देश में इस बीच जिस तरीके से काम हुआ है उसकापरिणाम में सारे आंकड़े जब मैं निकालता हूं तो मुझे खुशी होती है। आज छात्रों से भी आगे हैं छात्राएं तथाहर क्षेत्र में आगे हैं। यदि आप बहुत पीछे भी न जाएं तोअभी जो ‘चंद्रयान-2’ का मिशन था उसकीमिशन डायरेक्टर रितु थी। सारी दुनिया को बताया हमने भले ही चांद पर पहुंचने में थोड़ा फासला रह गया था लेकिन हमने विजय प्राप्त की। उसके साथ मुथैया वनिता, प्रोजेक्ट डायरेक्टर थी। आप सबको मालूम हैं जो मैं अभी आईआईएमरोहतक की बात कर रहा था वहां बहुत बड़ी संख्या में हमारी मातृशक्ति है। यदि वैसे भी केवल आईआईटी और एनआईटी में भी यदि देखेंगे तो वर्ष 2017-18 में जो हमारीमहिला छात्र थी वो 1840 थी। वर्ष 2019-20 में वो बढकर के 3411हो गई हैं। यह केवल दो ही साल में आईआईटी तथाएनआईटी की मैं बात कर रहा हूं और आपने तो बता ही दिया कि 25 लाख बालिकाएं हमारी एआईसीटीई में पढ़ रहीं हैं। हमारी बालिकाएं कहीं पीछे नहीं हैं और मैं देख रहा हूं कि पीएचडी कार्यक्रमों में भी कितनी तेजी से महिलाओं की संख्या बढ़ी है। अभी आईआईटी से वर्ष 2015-16 में केवल 1871 महिलाओं ने पीएचडी किया हैंऔर इस समय 2019-20 में 3411अर्थात्लगभग दुगना हो गए।यह तेजी से प्रगति हो रही है। मुझे बहुत खुशी है कि जिस तरीके से हमने बेटी बचाओ, बेटी पढाओ, सुकन्या, उज्ज्वला योजना के माध्यम से महिलाओं के उत्थान के लिए काम किया है। फाइटर विमान को चलाने वाली जो अवनी चतुर्वेदी है, जो वर्तिका जोशी है, उनकी लीडरशिप में हमारी महिलाएं पूरी दुनिया घूम कर के आ गयी। मुझे लगता है बिछेंद्री पाल अपने जमाने में जब मैंउत्तरकाशी में पढ़ा रहा था तो बिछेंद्रीउत्तरकाशी के पास के गांव की है। वो बहुत साहसी थी जुनूनी थी इसलिए पूरी दुनिया में भारत की पहली एवरेस्ट विजेता बिछेंद्रीपाल बनी।अभी कुछ दिन पहले मैं उत्तर प्रदेश में गया था तो जो हमारी दिव्यांग महिला अरुणिमा है, जिसने दोनों पांव न होने के बावजूद एवरेस्ट पर विजय प्राप्त की। पीछे के वर्ष में हमने दीपा मलिक को सम्मानित किया जो पैरा-ओलम्पिककी पहली भारतीय महिला दिव्यांग हुई। यदि हम सुश्री संतोष यादव की बात करें तो उन्होंने दो बार एवरेस्ट फतह किया। पी.वी. सिंधु और कल्पना चावला सहित कितने लोगों की गिनती करें, हर क्षेत्र में हमारी महिलाएं गौरव के शिखर पर हैं। इसीलिए यह जो आपने पुरुस्कार आज शुरू किया है तथा साथ ही महिला स्वास्थ्य के क्षेत्र में भीआप बेहतरीन कार्य कर रहे हैं। उनको सम्मान दे रहे हैं, आत्म रक्षा के क्षेत्र में भी प्रशिक्षण दे रहे हैं। साक्षरता के क्षेत्र में,देश में उद्यमशीलता के क्षेत्र में भी आप उन्हें प्रशिक्षित करने का सराहनीय कार्य कर रहे हैं। विधि आयोग औरकानून संबंधी जागरूकता के लिए विभिन्न आयामों को जिन छह क्षेत्रों में आप दे रहे हैं औरवसुधा जी ने जो सुझाव दिया है उसको भी आप यदि इसमें समाहित कर देंगे तो बहुत अच्छा हो जाएगा। लेकिनमुझे इस बात की खुशी है कि कहीं न कहीं चेयरमैन साहब आपके और आपकी टीम के दिमाग में कुछ न कुछ तो चलता रहता है और वो अच्छा लगता है। मैं देखता हूं कि कुछ नए आइडियाज सदैव आपके पास रहते हैं क्योंकिजब हमने युक्ति किया तो आपने कहा कि ‘यूक्ति-2’कर दीजिए। आपने अध्यापकप्रशिक्षण के लिए एक नया कार्यक्रम कर दिया। आपने कहा कि कोविडमें जिन-जिन संस्थाओं ने बहुत अच्छा काम किया तो आपकी नजर आपकी टीम की नजर अंतिम छोर पर हर तरफ है। कौन कहां पर क्या कर रहा है और क्या उनको करना चाहिए।इससेदूसरे लोगों को भी प्रोत्साहन मिलता है और दूसरे लोग भी उसकी प्रतिस्पर्धा में आते हैं। समाज में एक दूसरेको देख करके बहुत सारी चीजें बोलकर ही परिवर्तननहीं होते बल्कि करके परिवर्तन होते हैं और बोलने में तथाकरने में अंतर होता है। वहां खोखलापनहोता है वहां केवलबड़ी बातें होती हैं और छोटे-छोटे परिवर्तन बड़े-बड़े परिवर्तन का कारण हमेशा बनते हैं। मुझे लगता है एआईसीटीईजिस तरीके से आप कर रहे हैं मुझे भी खुशी होती है और मैं भी सब काम छोड़ कर के आगे दौड़ता हूं। आप आगे दौड़ते हैं और मैं आपके पीछे दौड़ता रहता हूं। जब आपबुलाते हैं तो मैं भी पहुंच जाता हूं और मुझे इसलिए खुशी है कि आप बहुत अच्छा काम कर रहे हैं। लीलावती पुरस्कार जैसे नवाचारी कदमों को आपने उठाया है और मुझे भरोसा है कि जो नयी शिक्षा नीति आ रही है वो बड़े व्यापक परिवर्तनों के साथ नए आयामों के साथआ रही है। पूरे देश में उत्सव जैसा वातावरण है और आमूल-चूलपरिवर्तन करके जो स्कूली शिक्षा से लेकर कर उच्च शिक्षा तक मुझे भरोसा है कि इसकी जो आधारशिला है वो भारत केन्द्रित है। हम अपने मानवीय मूल्यों के आधार पर शिखर को चूमना चाहते हैं जिस पर यह हिंदुस्तान विश्वगुरु रहा है और इसलिए ज्ञान, विज्ञान, अनुसंधान तथा नवाचारकेक्षेत्रों में हम आगे बढ़ेंगे। मुझे खुशी है कि आपने पीछे हैकाथान किया था और उसमें भी आप लोग बहुत तेजी से अव्वलआए तथा अब महिलाओं का भी हैकाथानहोगा, तो युवाओं का भी होगाऔरसंस्थाओं का भी होगा एवं विषयों का भी होगा। अबहर चीज में दौड़ होगी, कुछनयाकरने की जिजीविषा होगी, जिज्ञासा होगी औरउन संकल्पों के साथ उसको आगे बढ़ने का हम मौका देंगे और जब वे स्वयं ही लीडरशिप अपने हाथ में ले करके दौड़ेंगे तो कौन-सा परिवर्तन नहीं होगा, दुनिया तो अब आपके ऊपर देखने लग गई है। देश के प्रधानमंत्री ने जो जैसे 21वींसदी के स्वर्णिम भारत की तथा5ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था की जो बात कही है, उसे आत्मनिर्भर भारत के साथ जोड़ेंगे एवं नई शिक्षा नीति का साथ उसकी आधारशिला बनेगा।मुझे भरोसा है कि जो आज यह कार्यक्रम शुरू हो रहा है यह कार्यक्रम निश्चित रूप में दूसरों को भी प्रेरित करेगा और जो मेरी मातृशक्ति है, जो नारी शक्ति है जिसके अन्दर असीम क्षमता है, असीम इच्छा शक्ति है, वो ममता की भी प्रतिमूर्ति है और विनम्रता की भी है, साथ ही संवेदना, संवेदनशीलता की भी है लेकिन उसी सीमा तक कठोरताकी भी है। यह अत्यंत संवेदनशीलता और शिखर की कठोरता इन दोनों का यदि समावेश है तो वो नारी शक्ति है और इसलिए हर युग ने उसका दर्शन किया है, हर समाज ने उसका दर्शन किया, हर परिवार ने उसका दर्शन किया है। मुझे भरोसा है कि यह अभियान आगे बढ़ेगा और मैं तो स्वयं इस बात को महसूस करता हूं। मेरी तीन बेटियां हैं एक संस्कृति के क्षेत्र में, दूसरी फौज में हैं और तीसरीकानूनके क्षेत्र में हैं।मुझे उनको देखकर प्रेरणा मिलती है कि यदि वह बेटे होते तो शायद इतना नहीं कर पाते जितना यह अपनी मेहनत से कर रही हैं। इसलिए मैं कह सकता हूं कि जितनी मेहनती लड़कियां हैं उतने मेहनती तीन लड़के नहीं हो सकते। जितनी संवेदनशील बालिकाएं होती उतनी संवेदना पुरूषों में नहीं हो सकती।स्त्रीप्रकृति की देन है, जो मां है उसमें ममता आती ही आती है, उसमेंधैर्य भी कम नहीं होता। उसमेंअसीम धैर्य है लेकिन जब वो अपने पर आती है तो वह उसी शिखरताकाविकराल रूप भी है इसलिए इस शक्ति को पहचानने की ज़रूरत है तथा इस शक्ति को आगे बढ़ाने की जरूरत है एवं इस शक्ति का अभिनंदन करने की ज़रूरत है।मैंएआईसीटीई कोलीलावती पुरस्कार के लिए एक बार फिर बधाई देता हूं।
बहुत-बहुत धन्यवाद!
कार्यक्रम में गरिमामयी उपस्थिति:-
- डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’, माननीय शिक्षा मंत्री, भारत सरकार
- प्रो. अनिल सहस्त्रबुद्धे, अध्यक्ष, एआईसीटीई
- प्रो. एम.पी. पूनिया, उपाध्यक्ष, एआईसीटीई
- प्रो. वसुधा कामत, प्रो. राजीव कुमार, डॉ. अमित कुमार श्रीवास्तव, प्रो. हीना, प्रो.शिखा कपूर, डॉ. पी. विनेशा, प्रो. रूचिकाएवं संकाय सदस्य, विभिन्न विश्वविद्यालयों के कुलपतिगण एवं छात्र-छात्राएं।