विश्व हिन्दी दिवस के अवसर पर अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी कोरिया में हिन्दी: दशा एवं दिशा
दिनांक: 06 जनवरी, 2021
माननीय शिक्षा मंत्री, डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’
आज विश्व हिन्दी दिवस के सुअवसर पर मैं विवेकानन्द सांस्कृतिक केन्द्र केअधिकारियों एवं हमारे साथ जुड़े सभी लोगों को शुभकामना देना चाहता हूं। आपको तो मालूम है कि स्वामी विवेकानंद भारतीय ज्ञान परंपरा के ऐसे ब्रांड एम्बेस्डर थे जिन्होंने पूरी दुनिया में यह बतायाकि जीवन क्या है और ईश्वर की सबसे सुंदरतम कृति जोमनुष्य है, इसके जीवन का क्या दर्शन होना चाहिए।उस मनुष्य को किस तरीके से पूरी दुनिया में रहना चाहिए। स्वामी विवेकानन्द जी ने पृथ्वी को मां कहकर के पूरी दुनिया को अपने परिवार के रूप मानने को कहा है।‘अयं निजः परो वेति गणना लघु चेतसाम्।उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्’ अर्थात् पूरी वसुधा को अपना कुटुम्ब मानने वाली उस संस्कृति के वाहक बनने का आह्वान किया है।पूरी दुनिया में इसमनुष्य के लिए हमने कहा है-‘सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामया’ कि दुनिया में कोई भी व्यक्ति जब तक दुखी रहेगा तब तक हम सुख का एहसास नहीं कर सकते। हम पहलेउसके दु:खों का निवारण करेंगे और ऐसी संस्कृति के ध्वजवाहक बनकर के विवेकानंद जी पूरी दुनिया में गए थे और आज यह सांस्कृतिक केन्द्र उन्हीं की स्मृति में बना है वह निश्चित रूप से कोरिया में उस विचार को और सशक्त करने का काम करेगा ऐसा मेराभरोसा है। मैं समझता हूं कि जो यह आज की गोष्ठी इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि भारत में नई शिक्षा नीति 2020 आई है।यह शिक्षा नीति जीवन मूल्यों के धरातल पर खड़े हो करके नेशनल, इंटरनेशनल, इम्पैक्टफुल, इंटरएक्टिव, इनोवेटिव और इनक्लूसिव है और इसका लक्ष्य अंतिम छोर तक के बच्चों को शिक्षा से समृद्ध करना और तकनीकी से समृद्ध करना तथा ज्ञान, विज्ञान, अनुसंधान से समृद्ध करना लेकिन जीवन मूल्यों से भी युक्त रखना है। इस नई शिक्षा नीति को विश्व के बहुत से राष्ट्रअपनाने के लिए उत्सुक हैं तथा हमारे देश में भी इसको लेकर उत्साह का माहौल है। इस शिक्षा नीति में हमने बहुभाषिक बहु-विषयक पक्षों पर विशेष बल दिया है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जहां ‘स्पार्क’ के तहत हम दुनिया के शीर्ष 127 विश्वविद्यालयों के साथ शोध और अनुसंधान कर रहे हैं,वहीं‘ज्ञान’के तहत हमबाहरकी फैकल्टी को भी अपने देश के अंदर आमंत्रित कर रहे हैं। जबकि ‘ज्ञान प्लस’ में अब हमारे देश की फैकल्टी भीदुनिया में जाएगी।मुझे लगता है कि कोरिया और हिन्दुस्तान के बहुत अभिन्न संबंध हैं और इस दिशा में अब यह और भी आगे सशक्त तरीके से बढेगा। अभी हमने एनईपी 2020 के तहत दुनिया के शीर्ष सौ विश्वविद्यालयों को अपने यहां आमंत्रित कर रहे हैं। यहां के शीर्षविश्वविद्यालय दुनिया की धरती परजाएंगे तो मैं समझता हूं कि कोरिया और हिन्दुस्तान इस दिशा में दोनों परस्पर मिल कर के आगे और भी अच्छा काम करेंगे और हिन्दी इसमें एक बहुत बड़ा मील का पत्थर साबित हो सकता है और इसलिए जो आपने यह शुरुआत की है यहबहुत ही स्तुत्य प्रयास है।वर्तमान में देखा जाय तो कोरिया में हिन्दुस्तान से हजारों बच्चे पढ़ रहे हैं और कोरिया से भी हिन्दुस्तान में छात्र आरहे हैं।अभी हमारे आईआईटीज में एक हजार से भी अधिक आसियान देशों के छात्र शोध और अनुसंधान के लिए आ रहे हैं।हमने‘स्टडी इन इंडिया’ के साथ-साथ ‘स्टे इन इंडिया’भी किया है।मुझे भरोसा है कि ‘स्टडी इन इंडिया’ के तहत कोरिया से जो भी छात्र हिन्दुस्तान में आकर के हिन्दी का अध्ययन करना चाहते हैं, यहबहुतअच्छा प्रयास होगा औरवैसे भी हिन्दी का बहुत व्यापक प्रचार प्रसार हो रहा है। मुझे लगता है दुनिया में लगभग दूसरी या तीसरी नंबर की जो भाषा है जो सर्वाधिक बोली जाने वाली तथासमझी जाने वाली भाषा है और उसको आम आदमी ग्रहण करता है ऐसी हिन्दी का बहुत बड़ा व्याप है और अभी जो हमारे यशस्वी कुलपति महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के प्रोफेसर रजनीश शुक्ला जो जुड़े हैं हमसेवेपूरी दुनिया में हिन्दी को लेकर के जायेंगे और इनके यहाँ भी दुनिया के तमाम छात्र हिन्दी का अध्ययन करने के लिए तथाहिन्दी में शोध और अनुसंधान करने के लिए इस धरती पर आ रहे हैं। आज हिन्दी का अध्ययन करने के लिए विद्यार्थीवर्धा में भीआरहे हैं और जो हमारा केन्द्रीय हिन्दी संस्थान आगरा में है, वहां भी विदेशी बच्चों कोलंबे समय से पढ़ाया जा रहा है।मैं अभी कुछ दिन पहले गया था तो मुझे पता चला अट्ठाईस देशों के वहां पर सैकड़ों छात्र-छात्राएँ हिन्दी का अध्ययन कर रहे हैंऔर अभी तक हजारों-हजारों छात्रों को केन्द्रीय हिन्दी संस्थान नेहिन्दी की शिक्षा, हिन्दी मेंडिप्लोमा, हिन्दी मेंडिग्री और हिन्दी मेंअध्ययन और शोध तथाअनुसंधान कराने की दिशा में सफलता उसने पाई है और लगातार वो उस अभियान में जुटा हुआ है।मुझे लगता है कि हम दोनों संस्थानों के सामूहिक प्रयासों से मिलकर के इस दिशा में आगे बढ़ सकते हैं और मुझे इस बात की खुशी है कि कोरिया के विश्वविद्यालय में भी हिन्दी को बढ़ावा देने के लिए लगातार सराहनीय प्रयास कर रहे हैं। कोरिया गणराज्य के राष्ट्रपतिजी द्वारा वर्ष 2016 में हिन्दी को एक विशिष्ट विदेशी भाषा के रूप में चिह्नित करना, यह बहुत बड़ी उपलब्धि है और आज जो विदेशी भाषाएं हैं उनमें हिन्दी प्रमुख तरीके से वहां पर पढ़ाई जारही है उसका प्रशिक्षण दिया जा रहा है। यह उत्साह वर्धक है और मैंविश्वविद्यालय के कुलपति को, कुलाधिपति को और उन सभी लोगों को धन्यवाद देना चाहता हूं।वर्ष2018 से ही हमारे यह संस्थान विशिष्ट विदेशी भाषा शिक्षा केन्द्र के रूप में काम कर रहे है और हिन्दी को शीर्ष प्राथमिकता दे रहे हैं।आज यह मेरे लिए बहुत सुखद है और आप जानते हैं कि हिंदुस्तान में शिक्षा का बहुत बड़ा व्याप है। इस देश में एक हजार से भी अधिक यहां विश्वविद्यालय हैं, 50 हजार से भी अधिक डिग्री कॉलेज हैं और यदि शिक्षकों को देखेंगे तो 1 करोड़ 9 लाख से भी अधिक अध्यापक हैं और यहां 15-16 लाख स्कूल हैं और यहां के कुल छात्रों की संख्या देखी जाए तो कुल अमेरिका की आबादी से भी अधिक 33 करोड़ छात्र-छात्राएं हिंदुस्तान की धरती पर पढ़ रहे हैं और इसलिए मैं समझता हूं कि यह उनके लिए भी बहुत अच्छा है और जो कोरिया से आनेवाले छात्र इधर हैं उनके लिए यह बहुत सुखद क्षण होंगे कि वो मेरे हिन्दुस्थान को समझें और हिन्दी के माध्यम से यहां की संस्कृति को, यहां के रहन-सहन को, यहां के व्यापार को, यहां के सामाजिक जीवन को निकटता से देखें और समझें और उसका ज्ञान अर्जन करें।वैसे भी भारत ज्ञान का केन्द्र है। तक्षशिला, नालंदा और विक्रमशिला जैसे विश्वविद्यालय इस देश के अंदर थे। पूरी दुनिया के लोग कहीं न कहीं ज्ञान, विज्ञान, अनुसंधान और जीवन दर्शन को पाने के लिए हिन्दुस्तान की धरती पर आते थे और आज भी वही हिन्दुस्तान, चाहेयोग कीदिशा में होआज पूरे विश्व के 197 देश ‘योग दिवस’ मनाकर के अपने स्वास्थ्य की चिंता करते हैं,उस योग का भी जन्म इस धरती पर होता है तथा आयुर्वेद का भी जन्म हिंदुस्तान की धरती पर होता है जिसकी पूरी दुनिया को जरूरत है।आध्यात्म की सांस्कृतिक दृष्टि से देखें तो हिंदुस्तान के पास तन और मन को ठीक करने के लिए तमाम उपाय हैं।मैंहिमालय से आता हूं और मुझे लगता कि हिमालय एक ऐसा क्षेत्र है जो आध्यात्म की शक्ति भी देता है इसहिन्दुस्तान में तमाम प्रकारऐसी बहुआयामी आपको शक्तियां भी मिलेंगी और परिवेश भी मिलेगा। हिन्दी इस संस्कृति को जाननेके लिए एक बहुत अच्छा माध्यम है। आपके विश्वविद्यालय द्वारा कोरियन मैसिव ओपन ऑनलाइनकोर्स भी कराया जा रहा है जो बहुत ही सराहनीय कदम है इसलिए मैं इसकी भी प्रशंसा करना चाहता हूं।आपआसानी से विदेशी भाषाओं को भी सिखा रहे हैं यह भी बहुत अच्छी बात हैऔर साथ ही पठन-पाठन की सामग्री भी उपलब्ध करा रहे हैं।मुझे बस इस बात को भी लेकर की खुशी है वर्ष 2020 में आपने हिन्दी को लेकर टेस्ट भी आयोजित करवाया और यह भी पहली बार अपने ढ़ंग का है। मैं आपके केन्द्र को बहुत बधाई देना चाहता हूं और आपकी जो निदेशक हैं उनको भी बधाई देना चाहता हूं। आप वर्ष 2021 से इस तरह के टेस्ट का आयोजन वर्ष में दो बार कर रहे हैं। हिन्दी के साथ ही विदेशी भाषाओं के क्षेत्र में काम करने के लिए कोरिया सरकार द्वारा जो यह कदम उठाया गया है। मैं इसके लिए कोरिया सरकार को बहुत बधाई देना चाहता हूँ, धन्यवाद देना चाहता हूं।मैं भी एक शिक्षक से शिक्षा मंत्री के रास्ते से यहाँ तक पहुँचा हूँ तो मुझे लगता है कि शिक्षा एक ऐसा तंत्र, एक ऐसा केन्द्र है जो आपको सबसे ज्यादा सशक्त बनाता है और पूरी दुनिया की अंतिम पहुँच तक आपको पहुँचाने में समर्थता देता है। जब हम आपस में मिलते हैं तो चाहे शोधार्थी हैं, चाहे व्यवसाय से जुड़े लोग हैं,यदि वे हिन्दी में राजनीति समझेंगे, समाज को समझेंगे, संस्कृति को समझेंगे तो भारतीय सभ्यता की गहराई को भी और निकटता से समझ सकेंगे।मुझे लगता है कि यह भाषा से हीसंभव हो सकता है और मुझे इस बात की खुशी है कि इससेदोनों देशों के बीच एक बेहतर सामंजस्य स्थापित होता है और इसके लिए कोरिया अपनी नयी दक्षिणी पॉलिसी और भारत एशिया ईस्ट पॉलिसी के माध्यम से आपसी संबंधों में शिक्षा, रणनीतिक साझेदारी, व्यवसाय और साझी संस्कृति के अनेक क्षेत्रों में मिलकर के आगे बढ रहे हैं।यह हमारे लिए बहुत ही सुखद है।मुझे लगता है कि बौद्ध दर्शन का कोरिया में आगमन इन दोनों देशों के संबंधों को और मजबूत करता है और साथ ही जो महात्मा गांधी जी और गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर के जो लिखित दस्तावेजों में कोरिया के प्रति जो समर्थन की बातें मिलती हैं वो इस बात को स्थापित करते हैं कि भारत और कोरिया के बीच बहुत ही अभिन्न संबंध रहे हैं और हमारे देश के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी की अगुआई में जिस तरीके से 2015 में विशेष रणनीतिक साझेदारी को बढ़ा करके दोनों देशों ने एक-दूसरे के हित में परस्पर सहयोग की भावना को आगे बढ़ाने का संकल्प लिया है यह भी हमारे लिए बहुत सुखद है और हिन्दी दोनों देशों के बीच एक सेतु का काम करेगी। हिन्दी की वर्तमान स्थिति को देखें तो जैसे मैंने कहा कि यह हिन्दी विश्व की तीसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। वैश्वीकरण तथा वैश्विक अर्थव्यवस्था के दौर में हिन्दी बाजार अर्थव्यवस्था की जरूरतों को पूरा करने के लिए वैज्ञानिक और तकनीकी रूप से पूर्णतः सक्षम भाषा है और इसीलिए मुझे लगता है कि इस भाषामैं बहुत सामर्थ्य है।आज दोनों देशों के बीच भाषा सशक्तिकरण के रूप में ज्ञान आधारित समाज के निर्माण के रूप में निश्चित रूप से हिंदी बहुत महत्वपूर्ण और कारगर साबित होगी और यह ऐसा वक्त है जब दोनों देश एक सूत्र में हिन्दी के माध्यम से अपने दोनों देशों की संस्कृति को साझा कर सकते हैं और उनकी गतिविधियों को आगे बढा सकते हैं और जो हमारे सांस्कृतिक संबंध हैं वे इससे औरमजबूत होंगे। मैं इस गोष्ठी में जो इसके आयोजकहैंजो सियोल स्थित भारतीय दूतावास के सम्मुख एकदंत सांस्कृतिक केन्द्र और विश्वविद्यालय के विशिष्ट विदेशी भाषा शिक्षा केन्द्र को विशेषकर बधाईदेना चाहता हूं। मुझे खुशी है मैं जब उत्तराखंड का मुख्यमंत्री थातब भी मैंने देखा कि कोरिया से उत्तराखंड तक हिमालय तक बच्चे जो हिन्दी को पढने के लिए आते थे और हिन्दी को समझने के लिए पूरे देश में प्रवास करते थे। मुझे भरोसा है कि कोरिया ने हिन्दी के सशक्तिकरण की दिशा में कदम उठाए हैं तथा उसके विश्वविद्यालय में हिन्दी का पठन-पाठन तेजी से आगे बढा है। निश्चित रूप से यह दोनों देशों के विकास की आधारशिला को खड़ा करेगा। मैं एक बार फिर पूरी दुनिया के सभी हिन्दी प्रेमी भाई और बहनों का अभिनंदन करना चाहता हूं जो इस अंतर्राष्ट्रीयसंगोष्ठी में जुड़े हैं और एक बार फिर कोरिया सरकार को भी धन्यवाद देना चाहता हूं। इन दोनों संस्थानों के लोगों को जिन्होंने इस गोष्ठी को आयोजित किया उनका मैं हृदय से आभार प्रकट करते हुए प्रो.रजनीश शुक्ल जो हमारे कुलपति हैं उनसे अनुरोध करूंगा कि निकट भविष्य में कोरिया के साथ और मजबूती के साथ हिन्दी की सशक्तता, सबलता तथाउसकी प्रखरता एवं विस्तार कैसे करके हो इस पर जरूर गौर करके अच्छे तरीके से एक योजना बनाएंगे ताकि इस दिशा में हम और तेजी से आगे बढ़ सकें।
बहुत-बहुत धन्यवाद!
कार्यक्रम में गरिमामयी उपस्थिति:-
- डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’, माननीय शिक्षा मंत्री, भारत सरकार
- प्रो. रजनीश शुक्ल, कुलपति, महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा