शारदा विश्‍वविद्यालय का चतुर्थदीक्षांत समारोह

शारदा विश्‍वविद्यालय का चतुर्थदीक्षांत समारोह

 

दिनांक: 19 नवम्‍बर, 2020

 

 

माननीय शिक्षा मंत्री, डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’

 

शारदा विश्‍वविद्यालय के चतुर्थ दीक्षांत समारोह में उपस्‍थित मेघालय के यशस्‍वी, युवा, जुझारू, संघर्षशील, सौम्‍य और बहु-आयामी प्रतिभा के धनी प्रिय कोनार्ड संगमा जी, हमारे बीच उपस्‍थित भारत के पूर्व कैबिनेट मंत्री डॉ. महेश शर्मा जी, डॉ. रवि प्रकाश महासचिव, भारतीय गुणवत्‍ता परिषद्, इस विश्‍वविद्यालय के आदरणीय कुलाधिपति  श्री पी. के. गुप्‍ता जी,आदरणीय उप-कुलाधिपति श्री यतेंद्र कुमार गुप्ता जी,इस विश्‍वविद्यालय के कुलपति डॉ. शिवराम खारा जी,  रजिस्‍ट्रार श्री अशोक जी, सभी संकाय सदस्‍य, विभागाध्‍यक्ष, अध्‍यापगण और सभी आदरणीय अभिभावकगण और बाहर से आये हमारे अतिथिगण औरमेरे प्रिय छात्र-छात्राओं! आज एक उत्सव के रूप में आज हम यहां एकत्रित हुए हैं और आपकी खुशी में हम भी सम्मलित होने के लिए आए हैं।हमारी भारत की परंपरा रही है कि जब भी कभी कोई दुख में होता है तो उसको हम मिल करके बांटते हैं और जब कोई खुशी का वक्त होता है तो उसको भी हम मिल करके बांटते हैं। यह कहा जाता है कि जब दुख होता है, कष्ट होता है, संकट होता है तोवो बाँटने से कम होता है और जब खुशी होती है तो खुशी बांटने से बढ़ती है। आप जिस दिन की प्रतीक्षा कई वर्षों से कररहेंहोंगे, आपके माता-पिता, आपके चिर परिचित और जो मेरे से जुड़े हुए आज हजारों आपके अभिभावक और आपके नाते रिश्तेदार हैं, वे सब गौरवान्वित हो रहेहोंगे और आप अनेक प्रकार के प्रश्‍नों और उथल-पुथल से होकरकरके गुजर रहें होंगे। मैं आप सबके उज्ज्वल भविष्य की कामना करते हुए आपको बधाई और शुभकामना देता हूं।मैं यह समझता हूं कि अभी तक आप निश्चित थेकि इतने वर्ष का कोर्स होगा तथा उससे हम यह उपाधि या मैडल प्राप्‍त करेंगे। अभी तक जो भी परीक्षा थी वह एक निर्धारित समय तक के लिए, निर्धारित पाठ्यक्रमकोपढ़कर केआपको रिजल्ट देना होता था। लेकिन अबअसली परीक्षा आरम्‍भ हो रही है और आज आप मैदान में जा रहें हैं जहां आपको हर प्रश्न का उत्तर देना होगा तथा हर समस्या का सामना करना होगा एवं एक योद्धा के रूप में आपके सामने तमाम सवाल खड़े होंगे। तमाम कठिनाइयां एवंपरिस्‍थितियां होंगी और अब आप यह भी नहीं बोल सकेंगे कि मेरे पाठ्यक्रम में मेरे कोर्स में तो इतना ही था और यह कोर्स से बाहर आ गया और इसलिए जो आपकी इतने वर्षों की अनवरतसाधना है उससाधना को लेकर आप एक योद्धा के रूप में आज मैदान में जा रहे हैं तथाहमसब लोग आपको बधाई देने के लिए आज एकत्रित हुए हैं। आप एक योद्धाजिस तरीके से अपने मैदान में जाता है,उसी तरह से आगे बढ़े और उसको सिर्फ और सिर्फ अपनी जीत दिखाई देती है उसकी दृष्टि सफलता पर रहती है, उसकी नज़र अपने टारगेट पर रहती है। मुझे आप पर भरोसा है क्योंकि हम उस देश के लोग हैं जो विश्व में गुरु रहा है। जब हम अभी आए तो यहां वंदना हो रही थी और मां शारदा की प्रार्थना हुई। यह विश्वविद्यालय भी शारदा विश्वविद्यालय है और हमने मां शारदा से हमेशा निवेदन किया है तथा प्रार्थना की है कि हमको ऐसी ताकत दो, हम को क्षमता दो तथा सोचने का बल दो।हमने तो यहां तक भी प्रार्थना की है हम दुनिया की दुख तकलीफ को दूर कर सकें तथा हम किसी की मदद में काम आ सकें, इसलिए शारदा इतना मजबूत करोऔर इतना हमको ताकत दो क्योंकि हम नहीं भूलते कि हम विश्व गुरू रहें हैं।‘एतद् देश प्रसूतस्य शकासाद् अग्रजन्मन:, स्वं-स्वं चरित्रं शिक्षरेन् पृथ्वियां सर्व मानव:’आज के अवसर पर मैं आपसे इतना निवेदन करना चाहता हूं कि अपने जीवन में इसको कभी भूलने की ज़रूरत नहीं है कि हम उस देश के लोग हैं जो सारे विश्व में गुरु रहा है। जिसने हर दिशा में ज्ञान, विज्ञान, अनुसंधान के क्षेत्र में पूरी दुनिया को लीडरशिप दी है।जिसने पूरे विश्व को अपना परिवार माना है।हमने पूरे विश्व को परिवार माना है हमने हमेशा कहा‘अयं निजः परो वेति गणना लघु चेतसाम् | उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्’अर्थात् पूरी वसुधा को कुटुम्ब मानने वाला पूरी दुनिया में कोई देश है तो वह केवल और केवल मेरा भारत है और कोई सोच भी नहीं सकता।इतना ही नहीं आज मैं टिप्पणी नहीं करना चाहता लेकिन पाश्चात्य संस्‍कृति का अनुकरण करते हुए लोग दौड़ और होड़ में लगकरअब इस पूरे संसार को मार्किट मान रहे हैं और कहते हैं किवर्ल्‍डमार्किट हैं। हमने कहा संसार बाजार नहीं है, हमने संसार को अपना परिवार माना है। उन्होंने संसार को बाजारमाना है तथाबाजार में व्यापार होता है। और परिवार में प्यार होता है इतना अंतर हैहमारी और उनकी सोच में। यह जो प्यार है यह जो परिवार का भाव है। यह केवल परिवार का भाव नहीं है कमजोर आदमी कभी किसी को संरक्षण नहीं दे सकता। संरक्षण वही दे सकता है जिसके चेहरे पर ताकत हो,जिसके चेहरे परस्‍वयं ही हंसी न हो वह दूसरों को क्या हंसा सकता है। जो स्‍वयं ही निराशा के झूले में झूलता हो वह दूसरों मेंआशा का संचार कैसे कर सकता है।पहले तो अपने में ताकत चाहिए, अपने  में विजनचाहिए। इसलिए देश में जब भी हम अच्छा किसी काम सेउठकर के करते हैं तो यह भी हमारा ही विजन है और इसेमैंबांट रहा हूं। आज ऐसे क्षणों में आपके साथ इन बातों को बाँटना चाहता हूं जो आपके जीवन में अनवरत चलती ही रहनी चाहिए हमने सदैव अंतिम क्षणतक कहा ‘‘सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामया। सर्वे भद्राणी पश्‍यन्‍तु,मां कश्‍चिददुख भाग्‍भवेत’।इस धरती पर मैं तब तक सुखी नहीं हो सकता हूँ जब तक कि धरती पर एक भी प्राणी दुखी होगा, यह है हमारी ताकत।जिसमें ताकत नहीं होगी तथाजो स्वयं ही रो रहा होगा, वहदूसरे को क्या कष्ट से उबार सकेगा। जो स्वयं हीत्रासदी में झूलरहाहोगा वह दूसरे की मदद कैसे कर सकता है।किसव्यक्ति के जीवन में कष्ट नहीं है लेकिन उसकष्‍टको ताकत के साथ एकतरफ करके उसको संघर्ष के साथ दूसरों के लिए समर्पित होने का भाव हमारा हमेशा रहा है। इसलिए हमारा जो मेरा देशहै वो विश्वगुरु अचानक नहीं है। केवल जीवन मूल्यों के आधार पर हम विश्वगुरु नहीं हैं।जब-जब हम विश्वगुरु की बात करते हैं हम भूल जाते हैं कि डेढ़ सौ सालों की गुलामी ने हमको हमारी मूल जड़ों से काटकर अलग किया। लार्ड मैकाले ने कहा था कि इस देश परयदि राज करना है तो इस देश की शिक्षा तथा संस्कृति और भाषा तीनों को बदल देना चाहिए। अपने आप यह देश आपके चरणों में आ जाएगा। डेढ़ सौ साल मेंउन्होंने यह किया लेकिन आज हम स्‍वाधीनहैं। इस देश की आजादी को 70 वर्ष हो गए। आज हमको वही भारत लाना है जो विश्व में गुरूथा जो विश्व का गुरु था। मेरे मित्रो, आप आपपी.एचडीलेकर जा रहे हैं, गोल्ड मैडल लेकर जा रहे हैं जैसा कि आदरणीय डा. रामलाल जी ने कहा ‘नेशन फर्स्ट करेक्टर मस्ट’ हमारे लिए नेशन फर्स्ट है। सारी समस्याओं का समाधान हो जाएगा और आप केवल डिग्री लेकर के कहीं सर्विस करने के लिए नहीं है। हमारा देश वो है जब हम सुश्रुत को याद करते हैं तो पूरी दुनिया में शल्य चिकित्सा का जनक कौन था तो उत्‍तर मिलता है किसुश्रुत था। हम उनके अभियान को कहां आगे बढ़ा पाये हैं। हम चरक के अभियान को भी आगे कहां बढ़ा पाये हैं जबकिआजआयुर्वेद के पीछे पूरी दुनिया खड़ी हो गई।ये रवि यहां बैठे हुए हैं लोगों को आज नहीं तो कल यह बात महसूस होगी कि जो भारत की शास्वत ज्ञान परंपराएं रही हैं वो पूरी दुनिया के लिए मार्गदर्शक हैं। पातंजलि का योग भी इसी धरती पर तो पैदा हुआ। मेरे देश के प्रधानमंत्री पूरे विश्व के मानव की समृद्धता के लिए अपील करते हैं कि इसकी सुरक्षा योग कर सकता है। आज 25 वर्ष का भी नौजवान मधुमेह की रोग से पीड़ित हो रहा है। नौजवान तमाम व्याधियों से ग्रस्त हो रहे हैं और इसीलिए जब उन्होंने अंतरराष्ट्रीय फोरम पर इस बात को कहा था कि क्या पूरी दुनिया के लोग इसके पीछे आ सकते हैं तो पूरी दुनिया योग के पीछे खड़ी होगई। 21 जून को आज पूरी दुनिया योग दिवस के रूप में मनाती है औरआज पूरी दुनिया फिर योग के पीछा करके खड़ी हुई है।हम पहले योग की बात करते थे और लोग हंसते थे। हम आयुर्वेद की बात करते थे औरलोग हमारा मजाक उड़ाते थे।अणु और परमाणु का विश्लेषणकर्ता ऋषि कणाद भी तो इसी धरती पर पैदा हुए। रसायन शास्त्री नागार्जुन से बड़ा रसायनशास्त्री कोई नहींहोसकता है।आर्यभट्टने शून्य दिया आज तमाम दुनिया के वैज्ञानिकइस बात को कहते हैं कि हिन्दुस्तान हमको यदिगणित और शून्‍य नहीं देता तो विज्ञान आगे बढ़ ही नहीं सकता था। इसलिए मैं सोचता हूं कि चाहे किसी दिशा में हो, ज्ञान हो विज्ञान हो, अनुसंधान हो, तकनीकी हो, ऐसा कोई भी क्षेत्र नहीं था जहां हमपीछे थे और इसलिए आज उस पर काम करने की जरूरत है। आज यहां से जाने के बाद योद्धा के रूप में अपने उस अतीत को लेकर के वर्तमान के साथ तथा नवाचार के साथ छलांग लगाने की ज़रूरत है।मुझे भरोसा है कि जब आप बड़ी उम्मीदों के साथ एक लगन के साथ तथा छटपटाहट के साथ एक योद्धा के रूप में मैदान में जाएंगे तो आप हर मुकाम को पाएंगे। आज दीक्षांत समारोह है वैसे तो दीक्षांत जैसे भाईसाहब ने कहा कि कभी दीक्षा का अंत होता ही नहीं यह संभव ही नहीं है। लेकिन हां, हमारे देश की परंपरा रही है। हमारी संस्कृतिरही है कि पहले शिक्षा के बाद दीक्षा और दीक्षा के बाद दीक्षांत तथा उसके बाद गुरुदक्षिणा। दीक्षांत के बाद क्या है गुरुदक्षिणा।यदिगुरुदक्षिणा में आपको कुछ देना हैतोमेरे भारत को विश्वगुरु बना दीजिए। बस यही आपकी गुरुदक्षिणा होगी।पूरी दुनिया आज आपकी ओर देख रही है, पूरी दुनिया निहार रही हिन्दुस्तान को। इस कोविड की महामारी में आपने देखा है कि पूरी दुनिया इस संकट से होकर के गुजरी है। मेरे भारत ने ताकत के साथ इसकोविडकी महामारी का मुकाबला किया। मेरे देश के प्रधानमंत्री ने हर बार कहा है कि यदि चुनौतियां बड़ी होती हैं और उसका ठीक डटकर के मुकाबला होता है तो वही चुनौतियां अवसरों में तब्दील हो जाती हैं और मैंने इसको अपनी आंखों से देखा है। इस देश में एक हजार विश्वविद्यालय हैं, इस देश में 45 हजार डिग्री कॉलेज हैं, इस देश में 15 लाख से ज्यादा स्कूल हैं, इस देश में एक करोड़ दस लाख से अधिक अध्यापक हैं और अमेरिका की कुल जितनी जनसंख्या नहीं होगी उससे भी ज्यादा 33 करोड़ छात्र छात्राएं हमारे देश में हैं।यह इस देश की संपदा है। पूरी दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश हमाराहै और जब कोविडकी महामारी आई तब मेरे देश के प्रधानमंत्री ने नौजवानों से कहा कि आप क्या कर सकते हैं। मैंने देखा, जब लोग अपने घरों में थे तब मेरे प्राध्यापक और मेरे शोध छात्र अपनी प्रयोगशालाओं में थे और हमने करके दिखाया।आज यदि कोविडके समय में चाहे ड्रोन हो, चाहे टेस्टिंग किट हो, चाहे मास्‍क हो, एक के बाद एक जो हिंदुस्तान में था ही नहीं उसे आज हम उत्पादित करके पूरे विश्व को भेज रहे हैं। यह कोविडके समय में हुआ है औरयह हमने किया है।‘युक्‍ति’पोर्टल पर जब कभी आप जाएंगे तो कोविडके समय में कितना अनुसंधान हुआ मेरे आईआईटी ने, एनआईटी ने, आईसर ने, मेरे विश्वविद्यालयों ने क्या-क्या शोध किया है मेरे नौजवानों आप युक्‍ति पोर्टल पर उसे जानने के लिए जाइए। उसके बाद एआईसीटीई ने कहा हम ‘युक्ति-2’ भी चाहते हैं। जितने भी हमारे छात्रों के आइडियाज हैं वो युक्ति पोर्टल परआएं।एक ऐसा प्लेटफॉर्म हो जहां देश और दुनिया के लोग मेरे नौजवानों के आईडियाजको लेके जा सकें। मेरे नौजवान का आइडिया आज पूरी दुनिया में हलचल मचा रहा है। जो कहते हैं कि अमेरिका जाने की बहुत होड़ लगी है जबकि हमने ‘स्‍टडी इन इंडिया’ अभियान को लिया। मेरे को इस बात की खुशी है कि इस विश्वविद्यालय के अंदर 65 देशों के दो हजार से भी अधिक छात्र यहां अध्‍ययन कर रहे हैं। मैं शुभकामना देना चाहता हूं तथा बधाई देना चाहता हूं और इसीलिए हमने ‘स्टडी इन इंडिया’ किया है किपूरी दुनिया के लोग हिन्दुस्तान में पढ़ने के लिए आएं।आप सबको पता है कि तक्षशिला, नालंदा और विक्रमशिला से पहले कौनसा विश्वविद्यालय था दुनिया के अन्‍दर? जब मैं इस बात को पूछता हूं कि दुनिया के लोगों आप बता तो दीजिए कि तक्षशिला, नालंदा और विक्रमशिला से पहले कौन-सा दुनिया में विश्वविद्यालय था?तबवो कोई जवाब देने को तैयार नहीं होते। इसका मतलब है कि तक्षशिला, नालंदा और विक्रमशिला जैसे विश्वविद्यालय मेरे हिन्दुस्तान के अंदर थे जहां पूरी दुनिया के व्यक्ति ज्ञान, विज्ञान और अनुसंधान के लिए आते थे। इसीलिए हम तो पहले से ही पूरी दुनिया को लीडरशिप देते रहे हैं, यह कोई नई बात नहीं है। यह अलग बात है कि गुलामी के थपेड़ों ने हमको हमारी जड़ों से अलग किया। लेकिन फिर भी हम कहते हैं कि यूनान, मिस्र, रोमां, सब मिट गए जहां से, अब तक मगर हैबाकी नामो निशां हमारा और कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी। दुनिया में न जाने कितने देश पैदा हुए और मिट्टी में मिल गए तथाकिसी का इतिहास भी नहीं मिलता लेकिन हम जिन्दा हैं। हमारी रगों में, देशभक्ति का,संस्कारों का मूल्यों का रक्‍त प्रवाहित होता है। कुछ समय पहले यूनेस्को की डीजी मुझे मिलने के लिए आई थी। मेरी एक पुस्तक का उन्होंने कार्यक्रम रखा था तो उसमेंउन्होंने कहा कि आज अनुशासनहीनता बढ़रही है।मैंने कहा कि ऐसा इसलिए हो रहा है कि हमने उनको जड़ों से तो उसको काट दिया हमने उनको मनुष्य नहीं बल्‍कि मशीन बना दिया है।आज पैकजकी होड़ लगी हुई है। पेटेन्‍ट की होड़ नहीं है। मैंने अपने सभी छात्रों को कहा है किपैकेज कीहोड़ को छोड़ के पेटेंट की होड़ जरूरी है।जिससेदुनिया में मेरा देश फिर शीर्ष पर पहुंच जाएगा।आपशोध और अनुसंधान करो। जिस बात को हम भूल गए हैं, उसको कैसे तक हम आगे ला सकते हैं। मुझे भरोसा है कि नई शिक्षा नीतिआमूलचूल परिवर्तनों को ले करके इस देश के अंदर आई है और मुझे इस बात की खुशी है कि जब हम नई शिक्षा नीति को लाये तो शायदइस पर दुनिया कासबसे बड़ा विमर्श हुआहोगा। इससे पहले किसी नीति पर दुनिया में शायद ही इतना विमर्श हुआ होगा।जहां गांव से लेकर के संसद तक, ग्रामप्रधान से लेकर प्रधानमंत्री जी तक,शिक्षक से लेकर के शिक्षाविद् तक,कोई क्षेत्र नहीं छोड़ा। तैतीस करोड़ छात्र-छात्राओं के माता-पिताओं के साथ भी हमने परामर्श किया।आप समझ सकते हैं 33 करोड़ छात्र और उनके माता-पिता को जोड़ेंगे तो 99 करोड़ होता है। गुप्ता जी मैं देख रहा था कि एनआईआरएफ रैंकिंग में आप 200 के अंदर है, मेरी शुभकामनाएं। जब मैं अगली बार आऊं तो आपको छलांग मारते हुए आगे देखना चाहता हूं।मैं कुलपति जीको इसके लिए बधाई देनाचाहता हूं।हम टाइम्स रैंकिंग एवं क्‍यूएस रैंकिंग में भी पीछे नहीं हैं। हमको बोला जाता है कि धारणा ठीक नहीं है बाकी सब अच्छे हैं लेकिनधारणा कौनतय कर रहे हैं। मैं जब आईआईटी में जाता हूं तो पूछता हूं कि पुराने छात्र कहां-कहां हैं? मुझे ढूंढ कर के बताओ तो मुझे लगता पूरी दुनिया में मेरे आईआईटी, मेरे विश्वविद्यालय,तथामेरे एनआईटी काबच्चा छायाहुआहै। यदि अमेरिका के ही शिक्षा बहुत उत्कृष्ट कोटी की होती तो गूगल और माइक्रोसॉफ्ट के सीईओ इसहिन्दुस्तान की धरती से पढ़नेवालाबच्चा नहीं होताऔर इसकी पूरी लंबी श्रृंखला है।ऐसा नहीं कि हम कमजोर हैं और वे ताकतवर हैं। इसलिए यह नयी शिक्षा नीति आई है। मुझे इस बात की खुशी है कि पूरे देश के अंदर एक उत्सव जैसा वातावरण है। ग्राम प्रधान को भी लगता है कि यह मेरी शिक्षा नीति है। अभी कुछ दिन पहले एक वेबिनारकर रहे थे जिसमें बहुत सारे लोगों ने कहा कि निशंक जी प्रधानमंत्री जी को हम आभार व्यक्त करना चाहते हैं। 34 सालों के बाद नई शिक्षा नीति को आप लाये हैं। श्रीश्री रविशंकर जी ने अपने वक्तव्य में कहा कि मुझे ऐसा लगता है कि 34 साल के बाद जो नई शिक्षा नीति आई वह देश की आजादी के बाद पहली बार आई है। लार्ड मैकाले जिस दिन इस देश में आया था उस दिन इस देश की जो साक्षरता थी 97 प्रतिशत थी और उसके बाद देश जिस तरीके से पीछे गया उसमें पीछे जाने की बहुत जरूरत नहीं है। मैं याद दिला रहा हूं केवल क्योंकि आपकोयोद्धा की तरह आगे चलना है, देश की पहचान तो अपने आपबनेगी। इसलिए मैं याद दिला रहा हूं हालांकिआपकोभी पता है लेकिन इन बातों को जेहन में 24 घंटा रखने की ज़रूरत है। इसलिए मैं याद दिला रहा हूं क्‍योंकि मेरे देशके आगे पूरी दुनिया नतमस्तक होती है। मेरे देश के प्रधानमंत्री जी के आह्वान पर सारी दुनिया जब आतंक के ढेर पर खड़ी होती है तोआतंक के खिलाफ एक मंच पर आ जाते हैं। नरेंद्र मोदी जी के पीछे खड़े हो जाते हैं।जब मौसम परिवर्तन की बात आती है और हाहाकार मचता है तो फिर मौसम परिवर्तन के बारे में भी तथा जलवायु परिवर्तन में भी हिंदुस्तान की लीडरशिपपूरी दुनिया पीछे आ जाती है। योग का अभीमैंने उदाहरणदिया, वैकल्पिक ऊर्जा का उदाहरण देरहाहूं। पूरी दुनिया में हिन्दुस्तान लीडरशिप ले रहा है और अब अनुसंधान की मुझेबार-बार जरूरत महसूस होती है एक समय था जब हमारे देश के अंदर और बाहर हम संकट से जूझ रहे थे।जबदेश के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी थे। आपको याद होगा कि सीमा पर हम संकट से जूझ रहे थे और देश में भी खाद्यान का बहुत संकट था। उस समय लालबहादुर शास्त्री जी ने ‘जय जवान, जय किसान’ का नारा दिया था और पूरा देश इकट्ठा हो गया। हमने दोनों संकटों कोमात किया। उसके बाद मेरे देश के यशस्वी प्रधानमंत्री भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी जी आए तो उनको लगा कि नहीं अब विज्ञान की जरूरत है और उन्होंने ‘जय विज्ञान’ का नारा दिया और परमाणु परीक्षण करके उन्होंने हिंदुस्तान को पूरे विश्व की महाशक्ति के रूप में आगे बढ़ाने का काम किया। विज्ञान में भी हम कभी पीछे नहीं रहे और अब हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने कहा कि अब एक कदम और आगे जाने की जरूरत है और उन्‍होंने‘जय अनुसंधान’ का नारा दियायह जो अनुसंधान है इसकी जरूरत है। इसलिए हम अबनेशनल रिसर्च फाउंडेशन के माध्‍यम सेशोधएवं अनुसंधान की संस्कृती को विकसित कर रहे हैं,प्रधानमंत्री जी के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार की अध्यक्षता में हम लोग ‘नेशनलरिसर्च फाउंडेशन’ की स्‍थापना कर रहे हैं। तकनीकी कोअंतिम छोर तक कैसे लेकर के जा सकते हैं इसके लिए भी हम ‘नेशनल एजुकेशन टेक्नोलॉजी फोरम’ का गठन कर रहे है।‘नेशनल एजुकेशन टेक्नोलॉजी फोरम’ का गठन करके इन दोनों को साथ जोड़कर हम शोध की संस्कृति कोआगे बढ़ा रहे हैं।मुझे भरोसा है कि जो यह नयी शिक्षा नीति आयी है वो नयी शिक्षा नीति बिल्कुल नए कलेवर के साथ आई है। अब हमने10+2 को पूराखत्म कर दियातथा उसके स्‍थान पर हमने5+3+3+4 किया है एवं 5 को भी 3+2 में किया है क्योंकि 3 से 6 वर्ष के बच्चे में 80 से85 प्रतिशत मस्तिष्क का तेजी से विकास होता है और हम उस अवसर को खोना नहीं चाहते हैं। इसलिए हम खेल-खेल में तीन वर्ष के बच्चे को भीपकड़ करके उसे आगे चलाना चाहते हैं।हमारादेश पहला होगा जो स्कूली शिक्षा मेंआर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को लेकर के आ रहा है। हमको कुछ और सोचने के लिए नहीं बल्‍कि केवल डिग्री लेकरबाबूगिरी करने के लिए कुछ लोगों की परंपरा कर दी थी।अब ऐसा नहीं होगा अब कक्षा 6 से ही हम वोकेशनल स्ट्रीम इंटर्नशिप के साथ ला रहे हैं। छठी से ही बच्चा पूरा इंटर्नशिप के साथ पढ़ाई करेगा। मेघालय के युवा मुख्यमंत्री यहां बैठे हैं। मेघालय में जैसे अभी आदरणीय रामलाल जी ने कहा कि कितनी संपदा है। वहां जड़ी-बूटी हैं, जितनी सुंदरता है, उसकी खनिज संपदा है, वहां का जो छात्र है वो सब कुछ कर सकता है। वहींशोधकरे और उसको उठाए जो प्रधानमंत्री जी ने कहा है कि वोकल फोर लोकल। यह वहां से शुरू होगा और सम्‍पूर्ण विश्व तक जाएगा। जब बच्‍चा स्कूल से निकलेगा तो वह एक योद्धा के रूप में निकलेगा। उसको किसी दूसरेके पैर पर खड़े होने की जरूरत नहीं होगी और जब वो विश्वविद्यालयों में आएगा तोविश्व में आगे किस तरीके से उसको अपनी लीडरशिप पर ले जाना है, वहां से उसका सोचना शुरू होगा। हमने स्कूली शिक्षा में 360 डिग्री होलिस्टिक मूल्यांकन रखा है।जिसमें विद्यार्थी अपना भी मूल्यांकन करेगा, उसका साथी भी उसका मूल्यांकन करेगा तथा उसका अभिभावक भी मूल्यांकन करेगा और अध्यापक भी मूल्यांकन करेगा। अब उसेकोई रिपोर्ट कार्ड नहीं दिया जाएगा बल्कि अब उसे प्रोग्रेस कार्ड दिया जाएगा। इस शिक्षा नीति में हमने मातृभाषाओं को प्राथमिकता दी है क्योंकि जितनी अभिव्यक्ति व्यक्ति अपनी मातृभाषा में दे सकता है अपनी दूसरी भाषाओं में सीखकरके कर ही नहीं सकता। देश के संविधान में भी तो हमको 22 भारतीय भाषाओं को दिया गया है।तमिल, तेलगू, मलयालम, कन्नड़, गुजराती, मराठी, बंगाली, उर्दू, संस्कृत, हिंदी, उडिया, असमिया जितनी 22 भारतीय भाषाएं खूबसूरत हैं, यह केवल शब्द नहीं हैं।इनमें ज्ञान है, विज्ञान है, अनुसंधान है, परंपराएं है,सब कुछ है इनके अंदर। यही तो विविधता में एकता है मेरे देश की औरकुछ लोग कहते हैं किडॉ. निशंक आप अंतरराष्ट्रीय स्‍तरपर जाना चाहते हैं। मैंने कहा किहां, जाना चाहते हैं, छलांग मारेंगे हम। यदि ग्लोबल की बात आप कर रहे हैं तथा विश्व की बात कर रहें हैं तो अंग्रेजी तो नर्सरी से आपको सिस्टम में लाना पड़ेगा। मैंने उनको विनम्रता से पूछा उसके बाद किसी ने जबाब नहीं दिया मैंने पूछा कि जापान, जर्मनी, फ्रांस, इजराइल, अमेरिका  समेत दुनिया के बहुत  सारे देश अपनी मातृभाषा में शिक्षा देते हैं, क्‍या वो किसी से पीछे हैं, फिर क्‍योंऐसे तर्क दिये जाते हैं? किसी प्रदेश पर कोई भाषा थोपी नहीं जाएगी, हां उसकी अपनी मातृभाषा में प्राथमिक शिक्षा और वो राज्य चाहे तो उच्च शिक्षा तक भी दे सकते हैं। अभी देश के प्रधानमंत्री जी ने तो यहां तक कह दिया कि नीट और जेईई की परीक्षाभीबचचेकी मातृभाषा में होनी चाहिए।मेरा गांव का बच्चा भी अब अपनी क्षेत्रीय भाषा में डॉक्टर, इंजीनियर बन सकेगा। इसलिए हम इसकोबहुतखूबसूरती के साथ लाये हैं। जहां तक अंतरराष्ट्रीय का विषय हमने दुनिया के सौ शीर्ष विश्वविद्यालयों को इस हिन्दुस्तान की धरती पर आमंत्रित किया है।हम अपनी शर्तों पर उन्‍हें आमंत्रित करेंगे और हमारी जो शीर्ष संस्थाएं हैं वे भी विदेशों में जाएंगी। हम दुनिया के 127शीर्ष विश्वविद्यालयों के साथ ‘स्पार्क’के तहत अनुसंधान कर रहे हैं। हम ‘स्ट्रॉयड’ के साथ अनुसंधान कर रहे हैं। हमइम्‍प्रिंट, इम्‍प्रेस के साथ अनुसंधान कर रहे है और जहां‘ज्ञान’ में बाहर की फैकल्टी हमारे यहां पढ़ाने के लिए आएंगी तो अब‘ज्ञान प्लस’ में भीहमारी फैकल्टी बाहर पढ़ाने के लिए जाएगी। यह हमने तय किया है और इतनी सामर्थ्य इस देश में होनी चाहिए। इसलिए मैं समझता हूं कियहक्षणहमारे लिए बहुत आनंद के हैं तथा गौरव के हैं, यह उत्साह के हैं तथाउल्लास के हैं एवं भविष्य की आधारशिला के हैं। आज यहां से 3593 छात्र इस दीक्षांत समारोह में स्नातक, एक हजार दो सौ तीन छात्रों ने परास्नातक डिग्री और 51 छात्र पीएचडी,26 छात्र स्वर्ण पदक और 6 छात्र चांसलर पदक और तीन छात्र कुलपति पदक लेकर जा रहे हैं।मैंपदक पाने वालों के चेहरों को देख रहा  था क्‍योंकिमैं भी अध्यापक हूं इसलिएमैंचेहरों को थोड़ा सा पढने की कोशिश करता हूं। आपके चेहरे की आभा कहीं धूमिल नहीं होनी चाहिए। पहले तो किसी स्थान को बनाना बहुत मुश्किल होता है लेकिन उसस्थान को बरकरार रखने की और भी बड़ीचुनौती होती है।मैं आपको शुभकामना देना चाहता हूं किआप उस चुनौती को बरकरार रखतेहुए मुकाम तक जाएं।। मेरी शुभकामनाएं आपको।इतनी डिग्रियों को एक साथ देना इस विश्वविद्यालय की सफलता का बहुत बड़ा परिचायक है। मैं बधाई देना चाहता हूं। आपवैज्ञानिक, इंजीनियरिंग, प्रौद्योगिकी, मैनेजमेंट, मानविकी, वास्तुकला, जनसंचार तमाम विषयों को आप यहां पर पढा रहे हैं और उसकी डिग्री दे रहे हैंऔर 11 वर्षों की आपकी यात्रा ने आशातीत सफलता पाई है। मैं कह सकता हूं और मुझे भरोसा है कि जो उत्साह आप लोगों में हैंउसको बढ़ चढ़कर आगे बढ़ाएंगे। आप उन्‍नतभारत अभियान में भी, स्वच्छता अभियान में भी, एक भारत श्रेष्ठ भारत के अभियान में भी, एक पेड़ एक छात्र जो हम लोगों ने अभियान किया था कि प्रत्‍येक छात्र एक पेड़ को अपने जन्मदिन पर जरूर लगाएं उस अभियान में भी आप लगातार आगे बढ़े हैं और हरित ऊर्जा का जो अपने कैम्पस बनाया है इसकी भी आपको बहुत-बहुत बधाई देना चाहता हूं। मेरे प्रिय छात्र छात्राओं! मैं यह समझता हूं कि यह जो नई शिक्षा नीति है वह आपके लिए बेहतरअवसर लेकर आई है इस अवसर को अपने हाथ से खोने मत दीजिए। अब नई शिक्षा नीति में आप कोई भी विषय आप ले सकते हो। विज्ञान के साथ आपसाहित्य ले सकते हैं, आप इंजीनियरिंग के साथ संगीत ले सकतेहैं और आप जब चाहें तब छोड़ सकते हैं।इस शिक्षा नीति के अंतर्गत यदि कोई 4 वर्ष का कोर्स है और यदि कोई छात्र दो साल में परिस्‍थितिवशछोड़के जा रहा है  तो पहले उसका पैसा एवं वर्ष दोनों खराब हो जाते थे लेकिन अब उसकोनिराश नहीं होना पड़ेगा।यदि आप परिस्‍थितिवश एक वर्षमें छोड़ कर जा रहे हैं तो उसको सर्टिफिकेटदेंगे,दो साल में छोड़ कर जा रहा है तो डिप्लोमा देगें, तीन साल में छोड़कर जा रहा है तो उसकोडिग्री देंगे लेकिन यदि फिर वह लौट कर अपने भविष्य को संवारना चाहता है तो फिर जहां से उसने छोड़ा था वहीं से शुरू कर सकता है। उसके लिए हम एक ऐसा क्रेडिट बैंक बनायेंगे जहां उसके सारे क्रेडिट जमा होंगेइसलिए उसके लिए आगे बहुत आपार संभावनाएं है।वह कहां जाना चाहता है, शोध और अनुसंधान के क्षेत्र में जाना चाहता है।स्‍टडी इन इंडिया के तहत अभी 50 हजार लोग यहां पर आए हैं। उन्होंने रजिस्ट्रेशन किया है। यदि कोविडनहीं होता तो बहुत तेजी से यह बढ़ रहा था लेकिन मैं अनुरोध करना चाहता हूं कि इस विश्वविद्यालय से कि जहां हमने‘स्टडी इन इंडिया’ का अभियान लिया है वहीं हमने ‘स्‍टे इन इंडिया’ अभियान भी लिया है क्‍योंकि हमारे देश से 7-8 लाख छात्र प्रतिवर्ष विदेशों में पढ़ने के लिए जा रहे हैं। हमारे देश का पैसा और प्रतिभा दोनों बाहर चली जाती हैं वो प्रतिभा वापस हमारे देश में नहीं आती है। इसलिए हमने‘स्‍टे इन इंडिया’ किया  हमने  छात्रों को भरोसा दिलाया कि हमारे आईआईटी, एनआईटी, आईसर, केन्‍द्रीय विश्‍वविद्यालयों में योग्‍यता है तथा क्षमता है और आपको  बाहर जाने  की जरूरत नहीं है,अब लोगों की समझ में आ गया है। मुझे इस बात की खुशी है कि पीछे के समय जब हमने जेईई परीक्षाएं करवाई और दो लाख से भी अधिक छात्र जोविदेश में जा रहे थेवे जेईई और नीट की परीक्षाओं में सम्‍मिलित हुए।  हम ‘स्‍टे इन इंडिया’ के तहत दुनिया के शीर्ष सौविश्वविद्यालयों को अपनी धरती पर आमंत्रित कर रहे हैं, आपकोकहीं जाने की जरूरत नहीं है और यहां के जो शीर्ष विश्वविद्यालय हैं वेभीबाहर जा रहे हैं। ये आदान-प्रदान हम करेंगे।हम कोशिश कर रहे हैं कि उनको यहां सारी सुविधाएं दें। इसलिए अब बाहर जाने की जरूरत नहीं है। मेरे देश के प्रधानमंत्री जी ने फाइव ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था की बात की है,साथ ही प्रधानमंत्री जी ने यह भी कहा हैकि21वीं सदी का स्वर्णिम भारतचाहिए। ऐसा भारत जोसुन्‍दर हो,स्वस्थ हो,सशक्त हो,समृद्ध हो,आत्मनिर्भर हो,श्रेष्ठ हो और एक भारत हो।ऐसा भारत जिसका रास्ता ‘मेक इन इंडिया’,‘डिजिटल इंडिया’,‘स्किल इंडिया’,‘स्टार्टअप इंडिया’ और ‘स्टैंडअप इंडिया’ से होकर गुजरता हो और उस भारत की आधारशिला यह नई शिक्षा नीति है और मुझे भरोसा है कि हम इसेमिशन मोड में करेंगे। यह शिक्षा नीति दुनिया के सबसे बड़े परामर्श के बाद आई है। मुझे भरोसा है कि आज का यह दिन आपके जीवन के इतिहास में एक ऐसी इबारत लिखेगा जो आपको हिन्दुस्तान की उंचाइयों पर नहीं बल्कि हिन्दुस्तान को आप पर गर्व हो करके विश्व में आप चमक सकें, आपको मेरी शुभकामनाएं।

 

बहुत-बहुत धन्‍यवाद!

 

कार्यक्रम में गरिमामयी उपस्‍थिति:-

 

  1. डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’, माननीय शिक्षा मंत्री, भारत सरकार
  2. श्री कोनार्ड संगमा, माननीय मुख्‍यमंत्री, मेघालय
  3. डॉ. महेश शर्मा जी, पूर्व कैबिनेट मंत्री, भारत सरकार
  4. डॉ. रवि प्रकाश, महासचिव, भारतीय गुणवत्‍ता परिषद्,
  5. श्री पी. के. गुप्‍ता, कुलाधिपति, शारदा विश्‍वविद्यालय
  6. श्री यतिन्‍द्र कुमार गुप्ता, उप- कुलाधिपति, शारदा विश्‍वविद्यालय
  7. डॉ. शिवराम खारा, कुलपति, शारदा विश्‍वविद्यालय