‘‘स्वामी विवेकानन्द’’ शैक्षिक दृष्टि पर आधारित वेबीनार
दिनांक: 19 अक्टूबर, 2020
माननीय शिक्षा मंत्री, डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’
मेरा सभी को प्रणाम! आप जहां भी देश और दुनिया से इस महत्वपूर्ण कार्यक्रम में जुड़े हैं। मैं आप सभी का अभिनंदन कर रहा हूं। नई शिक्षा नीति 2020 तथा स्वामी विवेकानंद जी के शिक्षा संबंधी विचार पर रामकृष्ण मिशन विवेकानंद एजुकेशनल एवं रिसर्च संस्थान डीम्ड विश्वविद्यालय द्वारा यह कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है। मैं आभारी हूं विश्वविद्यालय के प्रति और विशेषकर स्वामी पूज्य श्री सुविरन्द जी महाराज जो कुलाधिपति है इस विद्यालय के और महासचिव हैं इनके मार्गदर्शन में यह डीम्ड विश्वविद्यालय बहुत आगे बढ़ रहा है तथा स्वामी जी के विचारों को पूरे देश में सरसा रहा है। सबसे पहले तो मैं स्वामी जी के चरणों में अपना प्रणाम करता हूं जो प्रति कुलाधिपति है पूज्य स्वामी जी मैं उनकी सक्रियता को समझ सकता हूं तथा जब भी मैं उनसे मिलता हूं तो उनकी छटपटाहट को मैंने बहुत ही निकटता से देखा है। कुलपति पूज्य स्वामी सर्वोत्तमानंद जी जिनका अभी हम को मार्गदर्शन मिला जिन्होंने स्वामी जी के बारे बहुत सरल शब्दों में हमको अभी अवगत भी कराया इस विश्वविद्यालय के कुलसचिव, पूज्य संतगण और सभी शिक्षकगण, अभिभावकगण तथा देश और दुनिया से मेरे सभी भाइयों और बहनों। यह दोनों चीजें कितनी महत्वपूर्ण है आज के परिदृश्य में ना केवल मेरे भारत के लिए बल्कि पूरी दुनिया के लिए जब स्वामी जी का स्मरण आता है तो मन में उल्लास नए विचार जिज्ञासा मन के अंदर एक उफान आता है। मुझे लगता है कि स्वामी जी का नाम आते ही मन के अंदर उथल-पुथल शुरू होती है और वह उथल-पुथल निर्माण की होती है, विजन की होती है वह सामान्य उथल-पुथल नहीं होती है और मैं यह समझता हूं कि देश के अंदर जब-जब भी स्वामी जी के उस विचार को हम लोग आपस में परामर्श करेंगे तब एक नई आधारशिला खड़ी होगी स्वामी जी बार-बार कहते थे कि जब तक जीना है तब तक सीखना है और अनुभव ही जगत में सर्वश्रेष्ठ शिक्षक है। उन्होंने केवल भाषण करके कभी बात नहीं की है बल्कि उन्होंने कहा कि जो हम अपने अंदर समा रहे हैं वह प्रकट करना चाहिए। मैं समझता हूं कि इस देश में तक्षशिला और नालंदा जैसे विश्वविद्यालय रहे हैं जहां दुनिया केलोग सीखने के लिए आते थे पूरी दुनिया के लोग हमारी धरती पर आकर शोध और अनुसंधान को लेकर के जाते थे। मैं समझता हूं कि जो वर्तमान में हमारी राष्ट्रीय शिक्षा नीति आई है उसके संदर्भ में आज आपने बहुत अच्छा परामर्श रखा है। शिक्षा नीति और विवेकानंद जी के बीच अनन्य जुड़ाव और उनके विचारों को लेकर के नहीं शिक्षा नीति आगे आई है। उसके विभिन्न आयाम में जिस छोर को हम पकड़ते हैं वह पकड़ में आता है। वह जमीन से लेकर के आसमान के शिखर तक हमको पहुंचाता है मैं समझता हूं चाहे वह भारत की संस्कृति के उद्घोषक के रूप में पूरी दुनिया में स्वामी विवेकानंद रहे हो जिन्होंने ‘वसुधैव कुटुंबकम’ की बात की हमने पूरी मानवता को अपना परिवार माना है आज जब यह शुरुआत हो रही थी तो वेदों, पुराणों, उपनिषदों कि जो अभी मंत्र कहे गए हैं, उच्चारित हुए हैं उन्होंने वही शुरू किया था यह जो धरती है उसे हमने मां कहा है पृथ्वी हमारी मां है और हम इस पृथ्वी के पुत्र-पुत्रियां हैं धरती की कोख में पैदा होने वाला हर जीव-जंतु हमारा अंग है उसके सुख और समृद्धि के लिए हमेशा से ही भारत की संस्कृति और शिक्षा रही है।हमनेहमेशा ‘सर्वे भवंतु सुखिन:, सर्वे संतु निरामया, सर्वे भद्राणी पश्यन्तु, मा कश्चिद् दुखभाग्भवेत’ अर्थात् जब तक दुनिया में एक भी इंसान, एक भी प्राणी दुखी होगा तब तक मैं सुख का एहसास नहीं कर सकता। इसका मतलब यह है कि हमारी शिक्षा यह है कि पूरी दुनिया में हर प्राणी को कैसे सुखी कर सकते हैं और तभी मैं अपने सुख का अहसास कर सकता हूं। अभी आचार्य जी ने जब शुरुआत में कहा यह वह चीज है जिन्हें हम सब साथ मिल करके करना चाहते हैं और हमारा पुरुषार्थ भी साथ में किसी एक व्यक्ति के लिए नहीं, किसी क्षेत्र के लिए नहीं बल्कि पूरे संसार के लिए है क्योंकि पूरे संसार को, इस ब्रह्मांड को हमने अपना आधार माना है और इसीलिए यह जो विचार है जो हमारे भारत की संस्कृति से निकल कर के जो विवेकानंद जी उसके ध्वजवाहक बनकर पूरी दुनिया में जिसको उन्होंने सरसायाहै आज जरूरत है कि आज भी हम उस तंत्र पर खड़े हो करके उन चीजों को तेजी से आगे बढ़ा सकते हैं मुझे खुशी है कि जो यह विश्वविद्यालय है यह विश्वविद्यालय इस दिशा में काम कर रहा है भारत के विश्वविद्यालयों के बारे में स्वामी जी की धारणा थी यह ऐसे शैक्षणिक केंद्र है जो पूर्व और पश्चिम के सर्वोत्तम तत्व को भारतीय आध्यात्मिक ज्ञान के साथ समाहित करते हैं और पूरी दुनिया के लोग उस ज्ञान प्राप्ति में समाहित होते हैं तथा उस को आगे ले जाने की बात करते हैं इस ज्ञान में अपने अंतर्मन की खोज, एकाग्रता, ध्यान संस्कृति के साथ जो पूरे विश्व का आज जो ज्ञान है, प्रौद्योगिकी है उसको भी समाहित करना है इसलिए भारतीय और पश्चिमी ज्ञान के साथ मिलकर के जो भौतिक और जैविक ब्रह्मांड की खोज के प्रति जो शिक्षा समर्पिता की यह बात कही गई है वह निश्चित रूप से बहुत महत्वपूर्ण है अपनी चीजों को लेकर के कैसे उसमें शोध और अनुसंधान के साथ हम आगे बढ़ सकते हैं वर्तमान में जो हमारी शिक्षा नीति है उसी से होकर के गुजर रही है और इसलिए मुझे खुशी है कि रामकृष्ण मिशन विवेकानंद एजुकेशन एंड रिसर्च इंस्टीट्यूट स्वामी जी के इन सपनोंको साकार करने की दिशा मैं लगातार कोशिश कर रहा है। रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानंद भारतीय गुरु-शिष्य परंपरा संस्कृति के इससे बड़े उदाहरण आचार्य देवो भव हमने तो अपने गुरु आचार्य को हमेशा कहा है गुरुर ब्रह्मा, गुरुर विष्णु, गुरुर देवो महेश्वरा, गुरु साक्षात पार ब्रह्मा,तस्मैंश्री गुरुवे नमः गुरु को हमने सर्वोच्च स्थान पर रखा है, भगवान के समतुल्य रखा है कि गुरु गोविंद दोऊ खड़े काके लागू पाय बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताएं हमने गुरु को हमेशा भगवान के समकक्ष रखकर के अभिनंदन किया है,जिसने जीना सिखाया है, जिसने हर कदम पर आगे बढ़ना सिखाया। इसीलिए जो अभी चर्चा हो रही थी चाहे अरविंदो हो, चाहे रविंद्रनाथ टैगोर जी हो,चाहे गांधीजी हो, चाहे रामकृष्ण जी हो, राधाकृष्णन जी हो सभी ने भारतीयताकीएक परिकल्पना बनाई है। स्वामी जी इन सभी अवधारणाओं एवं परिकल्पनाओं को समाहित करते हुए और अपनी नई मान्यताओं को जोड़ते हुए आगे बढ़े हैं। यह जो राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 है वह निश्चित रूप से स्वामी जी के विचारोंके अनुरूप है। स्वामी जी ने हमेशा कहा है कि ज्ञान स्वयं में विद्वान है और मनुष्य केवल उसका आविष्कार करता है उनकी यह प्रबल धारणा नहीं है की ज्ञान तो मनुष्य के अंदर है उसको बाहर निकालना है तथा उसका आविष्कार करना है स्वामी जी कहते थे कि हम ऐसी शिक्षा चाहते हैं जिसके द्वारा चरित्र का निर्माण हो, मानसिक शक्ति एवंबुद्धि का विस्तार हो। तथा जिससे व्यक्ति अपने पैरों पर भी खड़ा हो सके हमें आत्मविश्वास के साथ ब्रह्मचर्य के मार्गदर्शन में विज्ञान एवं वेदांत को समन्वित करने की जरूरत है मैं जब-जब भी स्वामी जी को पढ़ता हूं तो यह मेरा सौभाग्य रहा है कि मैंने उनके विचारों पर एक पुस्तक लिखी कि ‘भारत कायरों के लिए नहीं है’ इसको मैंने लिखा तो लोगों ने बहुत अच्छा माना और लोगों की बहुत सी प्रतिक्रिया मुझे मिली और तब से मुझे यह महसूस हुआ कि लोगों के मन में कुछ अच्छा करने का औरअच्छा सोचने का मनहै उसके बाद यह पुस्तक विश्व की कई भाषाओं में अनुवादित हुई और लोगों ने उस को बढ़ाया तो मुझे इस बात को लेकर खुशी हुई कि स्वामी जी ने सच कहा था कि यह संसार कायरों के लिए नहीं है संसार मेंवही जीवन जी सकता है जिसमें जिजीविषा हो और जिसमें जिज्ञासा हो तथा जिसमें आगे बढ़ने की लालसा हो और कुछ कर गुजरने की क्षमता हो जो परिवर्तन का वाहक बन सकता हूं उसी का जीवन सार्थक है और इसीलिए उन्होंने उन विचारों को आगे किया उन्होंने हमेशा कहा कि हमारे देश की जो संपूर्ण शिक्षा है वह अध्यात्मिक और धर्मनिरपेक्ष हो एवं जिसकी पकड़ हमारे हाथों में होनी चाहिए अभी कुलपति जी ने जिस बात को कहा कि स्वामी जी ने जिस आध्यात्मिक एवं धर्मनिरपेक्ष की शिक्षा की बात कही थी वह शिक्षा व्यवहारिक और राष्ट्रीय तरीकों पर आधारित होनी चाहिए मैं आज आपको भरोसा दिलाना चाहता हूं कि स्वामी जी की उच्च शिक्षा को उस विषय को तथा उनके मन की छटपटाहट को हमनई शिक्षा नीति मेंलाए हैं। आज से लगभग 100 साल पहले जिस काम के लिए स्वामी जी ने भारत के लोगों को प्रेरित किया और मुझे खुशी है कि आज नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 उस कार्य को करने के लिए आगे आई है और पूरे देश के 99% लोगों ने जिस तरीके से इसको स्वीकार किया उत्सव के रूप में, उससे उत्साहजनक वातावरण बना है। दुनिया के लोगों ने भी भारत की इन एनईपी को लेकर जिज्ञासा प्रकट की है तथा वह भी भारत की एनईपी को अपने देश में लागू करना चाहते हैं। मैं यह समझता हूं कि नई शिक्षा नीति का जो काम है वह बहुत ही स्पष्ट है यह नेशनल भी है और यह इंटरनेशनल भी है यह इंपैक्टफुल भी है इंटरएक्टिव भी है और यह इंक्लूसिव भी है यदि आप देखेंगे तो यह इक्विटी क्वालिटी और एक्सेस इन तीनों की आधारशिला पर खड़ी है स्वामी जी चाहते थे कि भारतीय युवा विदेशी नियंत्रण से मुक्त हो करके ज्ञान की विभिन्न शाखाओं का अध्ययन करें तथा उनके साथ ही तमाम भाषाओं और पश्चिमी ज्ञान विज्ञान को भी अपने में समाहित करें मैं समझता हूं कि यह जो नई शिक्षा नीति 2020 आई है यह ज्ञान विज्ञान अनुसंधान प्रत्येक क्षेत्र में आगे बढ़ करके पुनः विश्व गुरु भारत की परिकल्पना को साकार करने के लिए इस समय देश में आई है। स्वामी जी ने कहा था कि यह जो देश है यह तो हर दृष्टि से योद्धाओं का देश है और इस देश ने सारे विश्व का मार्गदर्शन किया है इस देश में हर क्षेत्र में चाहे ज्ञान हो विज्ञान हो अनुसंधान हो कौन सा ऐसा क्षेत्र था जिसमें मेरे देश ने पूरे विश्व का मार्गदर्शन ना किया हो चाहे वह गणित के क्षेत्र में आर्यभट्ट रहा हो चाहे वह विज्ञान के क्षेत्र में भास्कराचार्य रहे हों भास्कराचार्य को आज सारी दुनिया में वैज्ञानिक जानते हैं चाहे शल्य चिकित्सा का जनक हो और आयुर्वेद का जन्मदाता भी हमारे देश में ही पैदा हुए हैं और उस चरक संहिता की रचना भी हमारी ही जमीन पर हुई है यदि हम रसायनशास्त्री नागार्जुन के बारे में चर्चा करें और चाहे बौधायन के बारे में चर्चा करें मैं अधिक पीछे नहीं जाना चाहता लेकिन मुझे लगता है कि पूरा विश्व तो हमारे शिक्षा के तंत्र पर पर खड़ा था और मेरा सौभाग्य है कि मैं उस धरती से आता हूं हिमालय की धरती से उत्तराखंड की धरती से स्वामी जी कसार देवी में जब 1890 में आए थे उन्होंने नरेंद्र के रूप में कसार देवी में प्रवेश किया था और मैं समझता हूं कि 10 और 12 वर्ष की उनकी सघन साधना ने पूरे विश्व में भारत की संस्कृति के परचम को सरसायाजब मैं उत्तर प्रदेश में 1998 से 99 में संस्कृति मंत्री था तब मैंने एक चीज महसूस किया था और मैं माया देवी तक तथा कसार देवी में गया था और मेरे मन में तो बहुत सारी बातें आई थी स्वामी जी के उन पत्रों को भी मैंने पढ़ा जो उन्होंने अल्मोड़ा में लिखे और जब वह बाहर गए तब फिर अल्मोड़ा के लोगों को पत्रलिखें, उत्तराखंड के लोगों को पत्र लिखें उनको पढ़कर बहुत लंबे समय तक मेरे मन में उथल-पुथल मच रही थी कि स्वामी जी का जो साधना स्थल हिमालय रहा जो शक्ति का केंद्र है तथा जिसको लेकर पूरी दुनिया में उन्होंने मेरे भारत का मान सम्मान ही नहीं बढ़ाया बल्कि पूरी दुनिया की मानवता को जिस तरीके से उन्होंने दिशा दिखाई है तो मेरे मन में आया कि उस परिपथ को विवेकानंद परिपथ के रूप में सामने आना चाहिए देश तथा दुनिया का व्यक्ति वहां करके उन क्षणों का एहसास करसके औरस्वामी जी की उन भावनाओं का मार्गदर्शन कर सके और इसलिए मैंने पीछे की दिनों में पांच 7 साल पहले हिमालय में विवेकानंद शीर्षक पुस्तक लिखी जो नेशनल बुक ट्रस्ट इंडिया ने छापी थी और बाद में वह हिंदी अंग्रेजी मराठी बहुत सारी भाषाओं में प्रकाशित हुई। दूरदर्शन ने भी उस पर एक छोटी सी फिल्म बना कर प्रस्तुतीकरण किया था स्वामी जी का हर कदम शक्ति और प्रेरणा का केंद्र है और कम से कम आज की परिस्थितियों में मेरे भारत तथा पूरे विश्व के अंदर स्वामी विवेकानंद से बढ़कर के युवाओं के लिए आदर्श नहीं हो सकता और देश के लिए ज्ञान विज्ञान तथा अनुसंधान और भारत की संस्कृति का इससे बड़ा कोई ब्रांड अंबेसडर नहीं हो सकता है इसीलिए मैं समझता हूं स्वामी जी की यह चर्चा हम कर रहे हैं वह जरूरी है आज की परिस्थितियों में जरूरी है और देश को उसके शिखर पर ले जाना है तो यह बहुत जरूरी है स्वामी जी को याद करके उनके हर एक शब्द हर एक वाक्य हर एक विजन हर एक मिशन को अपने हाथ में ले करके उसमें जीने की जरूरत है उनके दर्शन को अपने पीढ़ी को दर्शन कराने की जरूरत है तकनीकी शिक्षा पर भी हमेशा उन्होंने बल दिया और उन्होंने हमेशा कहा कि भारत शिक्षित युवा अपने उद्योग एवं खड़ा कर सके और नौकरी चाहने वालों की जगह नौकरी देने वालेबन सकें इसीलिए जो एनईपी आई है अब बाकायदा स्वामी जी के उस विजन को साथ लेकर आई है हमारे देश के यशस्वी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने 21 वी सदी के स्वर्णिम भारत की बात की है ऐसा भारत जो स्वच्छ भारत हो जो समृद्ध भारत हो जो सशक्त भारत हो इस नीति के तहत छात्र आप स्वयं अपना ही मूल्यांकन करेगा तथा उसके अध्यापक सहपाठी एवं अभिभावक भी उसका मूल्यांकन करेंगे अब उसका 360 डिग्रीहोलिस्टिकमूल्यांकन होगा और अब उसको रिपोर्ट कार्ड नहीं देंगे बल्कि उसको प्रोग्रेस कार्ड देंगे स्वामी जी ने यह भी कहा था कि स्कूली शिक्षा बच्चों की मातृभाषा में हो। मैं सारा का सारा यह देख रहा था कि स्वामी जी के अपनी भाषा के बारे में क्या कहते हैं विचारों के बारे में क्या कहते हैं सशक्तिकरण के बारे में क्या कहते हैं इंटरनेशनल के बारे में क्या कहते हैं उन्होंने हर जगह भारतीयता पर बल दिया है यह जो शिक्षा नीति है उसमें प्रारंभिक शिक्षा हमारी मातृभाषा में होगी कोई भी बच्चा अपनी मातृभाषा में ही सशक्त अभिव्यक्ति कर सकता है ऐसी सशक्त अभिव्यक्ति दूसरी भाषा में नहीं हो सकती इसीलिए जो प्रारंभिक शिक्षा है वह बच्चे की अपनी मातृभाषा में होगी और अपनी मातृभाषा में यदि राज्य चाहे उच्च शिक्षा तक भी पढ़ाना चाहते हो कोई दिक्कत नहीं है हमारी मातृभाषा हमारी क्षेत्रीय भाषा हमारी तमिल है तेलुगु है मलयालम है कन्नड़ है गुजराती है मराठी है बंगाली है ओड़िया है असमिया है हमारी उर्दू है संस्कृत है हिंदी है तमाम भाषाएं है हमारे संविधान अनुसूची 8 में 22 खूबसूरत भारतीय भाषाएं हैं और इसलिए इस नई शिक्षा नीति में हमने कहा है कि हमभारतीय भाषाओं का सशक्तिकरण चाहते हैं जहां वह बच्चा अपनी मातृभाषा में अपनी क्षेत्रीय भाषा में पड़ेगा।22 भारतीय भाषाओं के अतिरिक्त एक भाषा उसको लेनी पड़ेगी जिस भी भाषा को वह लेना चाहता है और उसके बाद भी उसका पूरा मैदान खाली है जिस जिस भाषा को समझना चाहता है वह समझे पढ़ें और आगे बढ़े कई लोगों के मन में आया जो अंग्रेजी मीडियम से पढ़ने वाले हैं क्योंकि ग्लोबल की बात जब हम कर रहे हैं तो फिर आपने अंग्रेजी की बात अनिवार्य क्यों नहीं की तब हमने कहा है कि हमने अंग्रेजी का कभी विरोध नहीं किया हैऔर किसी प्रदेश पर कोई भाषा नहीं थोपी नहीं गई है हमने तो अपनी मातृभाषा के सशक्तिकरण की बात की है और मैं उनसे अनुरोध कर रहा हूं जिनके मन में ऐसा विचार है मैं उन से अनुरोध करता हूं कि क्या अमेरिका जो अपनी मातृभाषा में पढ़ाता है वह पीछे हैं इजराइल अपनी मातृभाषा में सब कुछ पढ़ाता है ज्ञान विज्ञान अनुसंधान करताहै क्या वह किसी से पीछे हैं जापान अपनी मातृभाषा में पढ़ाता है सभी कुछ उच्च शिक्षा तक करता है क्या वह किसी से पीछे हैं क्या इजराइल पीछे हैं क्या फ्रांस पीछे है यदि शिखर के देशों की में गणना करता हूं तो लगभग अपनी मातृभाषा में पढ़ाते हैं अपनी मातृभाषा में पढ़ा कर फिर वह उस शिखर को चूम सकते हैं हम क्यों नहीं चूम सकते हैं मैं कल पढ़ रहा था स्वामी जी को और मुझे लगा कि स्वामी जी ने कहां-कहां कैसी कैसी बातों को रखा है वह कहते हैं कि इस तरीके से रोने से कोई काम नहीं चल सकता खुद पर भरोसा करो एक जगह उन्होंने कहा कि तुम क्यों रो रहे हो विश्व की हर शक्तितो तुम में है भगवान आप खुद अपने स्वयं हो तुम अपने को विकसित करो तुम्हारे पास आत्मा की प्रबल शक्ति है इसलिए डरो मत तुम्हारा नाश नहीं हो सकता है तुम्हें कोई नष्ट नहीं कर सकता है इसलिए बिल्कुल भी डरो मत इस संसार से इस भवसागर से पार उतरने का एक ही उपाय है और वह उपाय यही है कि जिस पथ पर तुम चल रहे हो उसी पथ पर चल कर संसार के सभी लोग भवसागर को पार करते हैं यही श्रेष्ठतम पथ है और यही श्रेष्ठ पथ तो मैं तुम्हें दिखाना चाहता हूं स्वामी जी ने हर स्थान पर हम लोगों को हर कदम पर हर शब्द हर वाक्य के माध्यम से बताया है कि किस तरीके से हम अपने जीवन का बहुत अच्छा कर सकते हैं स्वामी जी ने उस को आगे बढ़ाया और इसलिए भाषा के मुद्दे पर भी हम लोग स्वामी जी की जो शिक्षा थी उसके आधार पर हम लोगों को आगे बढ़ा रहे हैं ज्ञान और विज्ञान के क्षेत्र में स्वामी जी ने कहा कि भारतीय युवाओं को अध्यात्म विज्ञान और वेदांत के साथ जोड़ना चाहिए हम सब जानते हैं कि सर जमशेदजी टाटा को भारत में इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस स्थापित करने की प्रेरणा स्वामी जी ने ही दी थी स्वामी जी ने प्राकृतिक मानवतावादी विज्ञान के क्षेत्र पर जोर दिया था विज्ञान मानविकी और कला इन तीनों को जोड़कर के आगे बढ़ने की बात की थी ठीक यही हमारी नई शिक्षा नीति है इसमें दी हमने समावेश किया कि किस तरीके से विज्ञान और मानविकी दोनों की संवेदनाएं जिंदा रहे हम लोगों ने बहुभाषिकता के साथ ही बहु-विषयता को भी प्राथमिकता दी है हमने हर क्षेत्र में आगे बढ़ने की बात की है किसी ने अपना अवरोध नहीं खड़ा किया है स्वामी जी कहते थे कि सकारात्मक सोच की जरूरत है सकारात्मक शिक्षा की जरूरत है और यह कहा था कि अपने ऊपर विश्वास होना चाहिए और सकारात्मक विचारों को विकसित करने का एक परिवेश होना चाहिए इसलिए आत्मविश्वास से आत्मनिर्भरता तक नई शिक्षा नीति में मौलिक सोच से नव निर्माण तक की भावना है लर्निंग आउटकम का पहला विषय हमने सशक्त तरीके से किया और अनुसंधान की दिशा में भी हमारे छात्र बहुत अच्छे तरीके से काम करेंगे एक समय था जब देश भारी समस्याओं से जूझ रहा था देश की सीमाएं संकट में थी और आंतरिक रूप से खाद्यान्न का संकट था तब हमारे देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री जी ने जय जवान जय किसान का नारा देकर पूरे देश को खड़ा कर दिया था और दोनों संकटों पर हमने विजय पाई थी हमारे देश के यशस्वी प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई जी जब आए तो उन्होंने कहा कि अब जरूरत है विज्ञान की और उन्होंने जय विज्ञान का नारा दिया था और पोखरण परीक्षण करके उन्होंने दुनिया में भारत को महाशक्ति के रूप में आगे बढ़ने का मार्ग प्रशस्त किया था और पूरी दुनिया इस बात को जानती है और जो वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी हैं उन्होंने एक कदम आगे बढ़ कर कहा कि अब अनुसंधान की जरूरत है इसलिए जब जब भी मैं अपने आईआईटी,आईआईआईटी आईसर विश्वविद्यालय इनकी समीक्षा करता हूं तो मुझे लगता है कि हम अंतर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कर रहे हैं कहां हम आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं मुझे यह महसूस हुआ कि अभी जो हमारा पेटेंट है और जो हमारा शोध है तथा जो हमारा अनुसंधान है उसमेंहमारी कमी है।हम इस कमी को भी पाटेंगे और इसलिए जो नई शिक्षा नीति है वह नेशनल रिसर्च फाउंडेशन की बात लाई है, जिसमें बाकायदा अनुसंधान की संस्कृति होगी तथ।शोध की संस्कृति होगी।हमशोध में उच्च शिखर तक का वातावरण बनाएंगे और इसएनआरएफ को प्रधानमंत्री के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार की अध्यक्षता में इस मिशन को आगे बढ़ाएंगे। नई शिक्षा नीति के तहत हम टेक्नोलोजी का भी उपयोग नवाचार के साथ आगे बढ़ाने में करेंगे। इसलिए हम लोगों ने भी इस बात को महसूस किया कि हां, आज की परिस्थितियों में नवाचार की जरूरत है, टेक्नोलोजी की जरूरत है, प्रौद्योगिकी की जरूरत है इसलिये हम ‘नेशनल एजुकेशन टेक्नोलॉजी फोरम’ का गठन कर रहे हैं जिसमें हम प्रौद्योगिकी के साथ आगे बढ़ना चाहते हैं। मेरे जितने भी आईआईटीज हैं उनको हमने कहा है कि उद्योगों के साथ जुड़ कर के वो अपने पाठ्यक्रमों को तय करें। एक ओर हमारे उद्योग दूसरी ओर हमारे आईटी के संस्थान हैंइन दोनों का समन्वय होना चाहिए। मेरा जो आईआईटी में पढ़ने वाला छात्र है वो उन उद्योगों के साथ मिलकर अपने विजन को स्थापित करे तो मेरे उद्योग भी बढ़ेंगे और मेरे जो छात्र हैंउनकी प्रतिभा भी आगे बढ़ेगी। इसलिए टेक्नोलॉजी फोर्म के गठन के बाद एक साथ जम्प मारेंगे, हममें प्रतिभा की कमी नहीं है।मैंने देखा है कि पुराने समय में भी हमारे छात्र पूरी दुनिया को लीडरशिप देते थे। आज भी मेरा देश लीडरशिप दे रहा है क्योंकि जब मैं देखता हूं किजितने हमारे आईआईटीज के छात्र हैं,जितने हमारे आईसर के छात्र हैं, जितने विश्वविद्यालयों के छात्रहैं,वेपूरी दुनियामें छाए हुए हैं।बड़ी-बड़ी कंपनियों के सीईओ चाहे माइक्रोसोफ्ट हो, चाहे गुगल हो इन जैसी कंपनियों के जो सीईओ हैंवो मेरी हिन्दुस्तान की धरती से पढ़ करके गए हुए हैं। गया हुआ है। ऐसा नही है कि हमारी संस्थाओं में कोई कमी है। ऐसा नहीं है कि हमारे पासप्रतिभाओं की कमी है। पूरी दुनिया में चाहे जिस क्षेत्रको भी देखो तो हमारे छात्र शीर्ष पर बैठे हुए लोग हैं। मुझे भरोसा होता है पूरी दुनिया में हमारा नौजवान लीडरशिप को दे रहा है।इसलिए आपने देखा होगा कि इस नयी शिक्षा नीति में हम लाए हैं‘स्टडी इन इंडिया’। भारत को जानो,भारत में आओ, पढ़ो और हम उस अभियान की ब्रांडिंग कर रहे हैं पूरी विश्व में तथा लोगो में अब बहुत प्रतिस्पर्धा हो रही है। पीछे 50 हजार से भी अधिक रजिस्ट्रेशन हुए थे यदि कोरोना का ऐसा संकट नहीं होता तो अभी हम बहुत तेजी से आगे जाते।अभी आशियान देशों के एक हजार से भी अधिक छात्र हमारे आईआईटीज में शोध और अनुसंधान करेंगे। अभी तीन दिन पहले जो आसियान के दस देश हैं उन सभी दस देशों के राजदूतों का मैंने अभिनंदन किया वर्चुअल कार्यक्रम करके, तो जहां पूरी दुनिया के लोगों को अभी अपनी धरती पर शिक्षा देने के लिए बुला रहे हैं और उनकी फैकल्टी को बुला रहे हैं।‘ज्ञान’ योजना के अंदर अब हमारे जो आचार्य हैं यह भी बाहर जायेंगे।दुनिया के देशों में जायेंगे वहां पढ़ाने के लिए जाएंगे। अभी जब हमको लगा कि हमारे देश से सात लाख 8 लाख छात्र बाहर जा रहे हैं। ऐसा इसलिए हो रहा है किया तो कुछ मजबूरियां होंगी अथवाकुछ कमियां हमारी भी रही होंगी लेकिन अब हम नई शिक्षा नीति को लाकर उन कमियों को टोटली ख़त्म करना चाहते है। सात लाख, आठ लाख छात्र दुनिया में पढ़ रहा हो हिन्दुस्तान का और लगभग डेढ लाख करोड़ रुपया प्रतिवर्ष हिंदुस्तान की धरती से जाता हो विश्व में, हमारी प्रतिभा भी, हमारा पैसा भी और प्रतिभा जो गई वहफिर लौट के नहीं आती। वो फिरउस देश के विकास पर जुट जाता है वो दूसरा देश उसको सारी सुविधाएं देता है और आगे बढ़ाता है। आज उन देशों को मजबूत कर देने में हमारा नौजवान जुटा है। मेरी धरती से मेरी प्रतिभा भी जाती है औरमेरा पैसा भी जाता है।अब नई शिक्षा नीतिउस प्रतिभा को भी रोकेगी तथा उस पैसे को भी रोकेगी। अब हम दुनिया के जो शीर्षसौ विश्वविद्यालय हैं उनको हमारी शर्तों पर हम अपनी धरती पर यहां पर आमंत्रित करेंगे और जो हमारे शीर्ष विश्वविद्यालय हैं उनको भी दुनिया की धरती पर भेजेंगे।प्रत्येक शाखा को बच्चे तक कैसे पहुंचा सकते हैं यह भी हमारी नई शिक्षा नीति में है और इंटर्नशिप को वोकेशनल ट्रेनिंग के साथ हम लोग करने जा रहे हैं। हम लोग समझते हैं कि अपनी भारतीयभाषाओं में शिक्षा देकरजहां कैपिसिटी, कैरेक्टर और नेशन बिल्डिंग का हम काम करेंगे।स्वामीजी कहते थे कि चरित्र निर्माण तो राष्ट्रका निर्माण है, यदि चरित्र का निर्माण नहीं होगा तो फिर राष्ट्र का निर्माण नहीं हो सकता और उसके चरित्र-निर्माण को खड़ा करने के लिए हम लोगों ने भारत केन्द्रित शिक्षा को बनाया है तथामूल्य आधारित शिक्षा को भी आधार बनाया है। पीछे के समय में जब यूनेस्को की जो डीजी हैं यहां आई थी औरमुझऐ मिली थी तो उन्होंने इस बात को लेकर के चिंता व्यक्त की कि डॉ. निशंक यह जो पूरी दुनिया में अनुशासनहीनता हो रही है, हिंसा हो रही है तथा संवेदनशीलता खत्म हो रही है ऐसा क्यों हो रहा है?मैंने फिर उनको कहा कि आना पड़ेगा पूरी दुनिया को फिर भारत की उसी शिक्षा पर जो मूल्यपरक शिक्षा की बात करता है, जो मानव बनाने की बात करता है। हमारे देश के प्रधानमंत्री जी तो बार-बार इस बात को कहते हैं कि जहां हम अच्छा नागरिक पैदा करें, वहीं विश्व के लिए महामानव भी पैदा करने कीजरूरत है। यह शिक्षा नीति मानव को तैयार करेगी, मशीन को तैयार नहीं करेगी बल्कि मानव से भीएक कदम आगे जाकर के दुनिया के लिए महामानव को भी बनाएगी, जो स्वामी जी चाहते थे और इसलिए यह नई शिक्षा नीति स्वामीजी के मन के अनुरूप है। जहां उन्होंने कहा कि उठो और जागो और तब तक रुको नहीं जब तक तुम अपना लक्ष्य प्राप्त नहीं कर लेते। मैं आपको भरोसा दिलाना चाहता हूं कि जो यह नयी शिक्षा नीति 2020 आयी है यह न तो रुकने का नाम लेगी, न थकने का नाम लेगी बल्कि यहभारत के अंतिम छोर के बच्चे तक आत्मविश्वास के साथ पहुंच रही है। तब तक हम इसको क्रियान्वित नहीं कर लेते तब तक थकने और रुकने का तो विषयनहीं उठता है और इसलिए आप सबका आशीर्वाद रहेगा तो इस नीति का तेजी से क्रियान्वयन भी होगा। नीति और उसके क्रियान्वयन केबीच का जो कार्य होता है वो लीडरशिप का होता है। जिसे लीडरशिप मिली है, वे पूरे समर्पण के साथ तथा आपसी उत्साह से जुड़े हुए हैं। स्वामीजी ने भारतीय आदर्शों को, चिन्तन को तथा उस विचार को क्रियान्वित करने के लिए अपना जीवन खपाया है और आप लोग भी उनके एक-एकक्षण को संजो रहे हैं इससे बड़ा सौभाग्य मेरे देश का क्या हो सकता है। मुझे भरोसा है किजो यह नई शिक्षा नीति हम ला रहे हैं और जिस तरीके से इस विश्वविद्यालय को मैंने देखा कि इसको साकार करने के लिए आपका जो मुख्य परिसर है और रामकृष्ण मिशन के विभिन्न कैम्पस और केन्द्रों के माध्यम से सक्रियता से आप काम कर रहे हैं। विभिन्न परिसरों में पुनर्वास,खेल विज्ञान, कृषि तथा ग्रामीण विकास,भारतीय विरासत, मानिवकी,गणित, जीव-विज्ञान,पर्यावरण, आपदा प्रबंधन, जैसीहर चीज को अपने स्पर्श किया है भारतीय आध्यात्मिक, सांस्कृतिक, विरासतों, हमारे प्राचीन ग्रंथों यथा उपनिषदों, गीता तथा रामकृष्ण परमहंस एवं विवेकानंद के विचारों पर आधारित पाठ्यक्रमों को आपने समाहित किया और अभी हमने मंत्रालय के स्तर पर भारतीय ज्ञान परंपरा का एक प्रकोष्ठ भी बनाया है जिसमेंजिसने हमारे भाषा के वैज्ञानिक हैं, संस्कृत के विद्वान हैं और तकनीकी के विद्वान हैं जो उस क्षेत्र में हमारी प्राचीन तकनिकी थी उसको कैसे करके बढा सकते हैं। यह कार्य भी हमने किया है,विज्ञान के साथ जोड़करके जो हमारे संस्कृत के वो ग्रंथ हैं जिसमें ज्ञान विज्ञान समाया हुआ है उसको कैसे करके जोड़ करके विज्ञान के माध्यम से कैसे आगे ला सकते हैं इसके लिए भी हमने फोर्म का गठन किया है।मुझे यह भी खुशी है कि एक दशक के भीतर आपके विश्वविद्यालय को राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं प्रत्यायन परिषद नैक द्वारा उत्कृष्टA++का दर्जा मिला है जिसके लिए मैं आपको बधाई देना चाहता हूं। आपकी अनूठी विशेषताओं और सामाजिक प्रतिबद्धताओं के कारण इस विश्वविद्यालय को यूरोप आधारित संगठन ग्लोबल यूनिवर्सिटी नेटवर्क फॉर इनोवेशन ने भी आपको स्थाई सदस्यता दी है और उसने भी आप को सराहाहै। यह मेरे लिए बहुत खुशी का विषय है कि यूनेस्को ने पुनर्वास एवंसमावेशी शिक्षा पर बल देते हुए विश्वविद्यालय में इन्क्लूसिव स्टेट ऑफ फिजिकल एजुकेशन एंड योगाचेयर की स्थापना की है। मेरे लिए यहबहुत खुशी का विषय है और पूरे एशिया में उच्च शिक्षण संस्थान का यह शायद पहला इस तरीके का ये उदाहरण होगा।स्वामीजी ने जिस राजयोग, कर्मयोग, भक्तियोग और ज्ञानयोग की बात की है तथाउस पथ पर चलने के लिए जो अतुल्य सन्देश दिया थाजोपूरी दुनिया के लिए उनका मार्गदर्शन था, जो संदेश था भारत केज्ञान, आध्यात्म और योग कामुझे लगता है कि स्वामी जी हमारे पास ऐसे ब्राण्ड एम्बेसडर हैं जिनको लेकर के हम आगे बढ़ेंगे।अपनी नई शिक्षा नीति के साथ हम इसको आगे चलाएंगे और निश्चित रूप में मुझे लगता है कि अब वो समय आ गया है। जिस समय पूरी दुनिया फिर भारत को महसूस कर रही है। जर्मनी जैसा देश 14विश्वविद्यालयों में संस्कृत का अध्ययन-अध्यापन करा रहा है और उनको लगता है वेदों में बहुत कुछ है, पुराणों में बहुत कुछ है,उपनिषदों में बहुत कुछ है। इन ग्रंथों का अध्ययन करके मानवता के विकास के लिए तथाविश्व के कल्याण के लिए बहुत उपयोग हो सकता है।नई शिक्षा नीति जो ज्ञान, विज्ञान, अनुसंधान से युक्त होगी और जो नवाचार के साथ प्रौद्योगिकी के शिखर पर पहुंचेगी जो ज़मीन पर खड़ी होगी तथा अपने मूल्यों पर आधारित होगी लेकिन विश्व के प्रतिस्पर्धा में श्रेष्ठता को अर्जित करेगी। निश्चित रूप से स्वामी जी के विचारों के अनुरूप हमने शिक्षा नीति तैयार की है। स्वामी जी के उदारवादी विचार थे तो बहुत दूरगामी सोच भीथी जो विचार उन्होंने हमको दिया है वो इस नई शिक्षा नीति में समाहित है। नई शिक्षा नीति 21वीं सदी के स्वर्णिम भारतकी आधारशिला बनेगी। मुझे भरोसा है कि आपका विश्वविद्यालय जो इस गरिमा को बना कर के आगे बढ़ रहा है, वह एक उदाहरण के रूप में काम करेगा और मेरा शिक्षा मंत्रालय हमेशा आपके साथ है। मैं व्यक्तिगत भी आपके इस मिशन के साथ हूँ। जब मैं पांच वर्ष पहले आया था तभी मैंने पूरा विश्वविद्यालय देखा था कि किस तरीके से आप लोग काम करते हैं। आप बहुत समर्पण के साथ काम कर रहे हैं और मुझे भरोसा है कि स्वामी जी का जो मिशन है उसे आप जिस तरह फैला रहे हैं वोनिश्चित रूप में भारत विश्वगुरु बनेगा। स्वामी जी के मन में जो कल्पना एवं संकल्प था कि प्रबुद्ध भारत मेरा देश है और वो विश्व गुरू है और इसीलिए जब मैं मुख्यमंत्री बना उत्तराखंड का तब भी मैं मायादेवी के उस संस्थान पर जा कर के कई घंटों तक स्वामी जी का को याद किया था औरमैं कसार देवी भी गया था।राजपुर रोड देहरादून स्थितकुटिया में स्वामी जी ने कुछ समय के लिए साधना की थी मैं उस कुटिया में भीजाता हूँ। मैं स्वामी जी केजहां-जहां उनके चरण पड़े है मैं कोशिश करता हूँ कि वहां अवश्य जाऊं। स्वाजी जी ने भारतीय संस्कृति का प्रचार-प्रसार करते हुए दुनिया की मानवता के लिए एवं उसके कल्याण के लिए उन्होंने काम किया।हमारीजो शिक्षा नीति हैवो पूरे विश्व में मेरे भारत को समृद्ध और सशक्त नेतृत्व देने वालाहर क्षेत्र में बनाएगीऐसा मेरा भरोसा है। आपने नई शिक्षा नीति और स्वामीजी के विचारों पर जो यहअद्भुत आयोजन किया है जिसमेदेश और दुनिया से मेरे छात्र साथ जुड़े और जो छात्र इस संस्थान में पढ़ रहे हैं मैं उनको भीबधाई देना चाहता हूँकि आप एक ऐसे संस्थान में जुड़े हुए हैं जिसमें जो आपका अपने ढंग का चिंतन होगा। आपको पूरे विश्व में एक योद्धा की तरह स्वामी जी की बातों को लेकर के ज्ञान, विज्ञान, अनुसंधान के क्षेत्र में भारत का विचार ले करके आपपूरे विश्व में छाऐंगे,इन्हीं शुभकामनाओं के साथ मैं स्वामीजी के चरणों में प्रणाम करता हूँ और आप सबको धन्यवाद देता हूँ।
बहुत-बहुत धन्यवाद!
कार्यक्रम में गरिमामयी उपस्थिति:-
- डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’, माननीय शिक्षा मंत्री, भारत सरकार
- स्वामी सुविरन्द जी महाराज, कुलाधिपति, रामकृष्ण मिशन विवेकानन्द एजुकेशनल एवं रिसर्च संस्थान
- स्वामी सर्वोत्तमानन्द जी महाराज, कुलपति, रामकृष्ण मिशन विवेकानन्द एजुकेशनल एवं रिसर्च संस्थान
- प्रति-कुलाधपति, रामकृष्ण मिशन विवेकानन्द एजुकेशनल एवं रिसर्च संस्थान
- कुलसचिव, रामकृष्ण मिशन विवेकानन्द एजुकेशनल एवं रिसर्च संस्थान