शिक्षा और समाज के समावेश के लिए एवं बहुभाषावाद को बढ़ावा देने हेतु अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी
दिनांक: 21 फरवरी, 2021
माननीय शिक्षा मंत्री, डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’
महात्माश गांधी अंतर्राष्ट्री य हिन्दीय विश्वनविद्यालय के कुलपति प्रो. रजनीश शुक्लष जी, केंद्रीय हिन्दीा संस्था1न, आगरा के उपाध्ययक्ष श्री अनिल कुमार शर्मा जी, केंद्रीय हिन्दीी निदेशालय के निदेशक डॉ. रमेश पाण्डेरय जी, एनबीटी के निदेशक कर्नल युवराज मलिक जी, हमारे तेलगु भाषा परिषद् के निदेशक सहित सभी पदाधिकारीगण, सभी भाषा-निदेशालयों के अधिकारीगण, सभी विश्वरविद्यालयों के कुलपतिगण और देश के कोने-कोन से विभिन्नष भाषाविद् जो आज हमारे साथ जुड़े हैं, मैं इस अवसर पर जबकि अंतर्राष्ट्री य भाषा दिवस मनाया जा रहा है और भाषाओं के प्रति चेतना का उद्गम हो रहा है, ऐसे अवसर पर मैं आप सभी के प्रति बहुत आभार प्रकट करता हूं और विशेषकर मैं अपने महामहिम उप-राष्ट्र पति जी, जिनके सानिध्यर में हम लगातारभारतीय भाषाओं के सशक्तिरकरण की दिशा में चिंता कर रहे हैं बल्कि् भारतीय भाषाओं के सशक्तिनकरण की दिशा में लगातार आगे बढ़ रहे हैं।
मेरा मानना है कि भाषा की महत्ताक न केवल राष्ट्री य एकता और अखंडता से जुड़ी है बल्किा हमारी संस्कृाति और संस्कातरों से भी जुड़ी है। जैसाकि हमारे मंत्री जी ने कहा है भारत में विभिन्न भाषाओं की लंबी समृद्ध परंपरा है और मैं यह समझता हूं कि महर्षि पाणिनी हो और चाहे महर्षि कातायन हो, पातंजली हो,इन विद्वानों का भाषा के विकास में महत्वीपूर्ण योगदान रहा है। पीछेकेसमय मुझे अच्छार लगा जब हम महामहिम उप-राष्ट्रहपति के सानिध्ये में नैलुरू में भाषा संस्थागन की स्थािपना कर रहे थे तो वहां के तेलुगु तथा कन्न-डं के लेखकों का भी हमने सम्मावन किया था।
मैं समझता हूं कि पाणिनी ने अष्टाेध्याायी को लिखाहै और ऐसा किसी भी पुस्तीक में मिलना तो दूर-दूर तक भी सामान्ये नहीं है बल्कि् बहुत ही दुर्लभ है। विवेकानन्द। जी की भी बात हमें हमेशा याद रहती है उन्होंरने कहा था कि विचारों को लोगों की भाषा में सीखाना चाहिए।हमारी विवेकानन्दज एवं गांधी जी ने भाषाओं के माध्योम से जिन-जिन बिन्दुीओं को कहा है उनके माध्यरम से यदि देखेंगे तो उन्होंीने बहुत ही सशक्तष माध्यनम के रूप में मातृभाषा को लिया है।
मुझे याद आता है कि एक दीक्षांत समारोह में रवीन्द्र नाथ टैगोर जी ने कहा था कि सीखने की प्रक्रिया से मातृभाषा का एक गहरा समन्वंय है।अनेक साक्ष्यि एवं केस स्टीडी हमारे पास मौजूद हैं जो यह साबित करती है कि हर मानव के ज्ञान अर्जन को उत्कृसष्टयता तक तभी ले जाया सकता है जब उसका माध्य म उसकी मातृभाषा हो। उन्होंीने यह भी कहा कि शिक्षा में मातृभाषा का वही स्थाकन है जो एक नवजात शिशु के लिए मां के दूध का है।इससे भी आगे जा करके रवीन्द्र नाथ टैगोर जी कहते हैं कि जिस प्रकार हमें खुद ही भोजन को मुंह में डालना पड़ता है उसी प्रकार ज्ञान को अपने ही परिवेश, अपनी ही मातृभाषा में सीखा जा सकता है।
इसका मतलब जो भी ज्ञानहम अर्जित करते हैं उसको हम अपनीमातृभाषा में ही अपने अन्दोर समाहित कर सकते हैं। यदि मैं विवेकानन्दत जी के बारे में चर्चा कंरू तो जिनको हम अपना आदर्श मानते हैं और भारत की शिक्षा नीति में भी हमने उनका दर्शन कराया है। उन्होंकने कहा कि हमेंभाषा को विस्ताएर देना चाहिए। यह मानव सृजन की अनिवार्य शर्त है कि अगर वह एक से अधिक भाषा को सीखना है तो अनिवार्य है कि पहली भाषा अपनी मातृभाषा हो और उसके बाद दूसरी भाषा हो तभी मानव का विकास हो सकता है। हमारे विवेकानन्द जी ने कहा कि दुनिया की तमाम भाषाओं को सीखा जा सकता है और सीखना भी चाहिए। यदि बच्चेे की विलक्षणता को बाहर लाना है तो उसकी पहली शर्त है कि उसको उसकी मातृभाषा में सिखाया जाना चाहिए।
वो यहां तक भी कहते हैं कि शिक्षा और भाषा का एक अनन्य संबंध है। अच्छाल शिक्षक वही होता है जिसकी भाषा सरल हो और सरलता तभी संभव है जब आपके विचार सरलता से समझाए जा सकें और विचार केवल मातृभाषा रूपी रथ पर ही आगे बढ़ सकते हैं। यदि हम पीछे से भी देखेंगे तो सभी ने शुरू से लेकर के पाणिनीसे लेकर जो आज तक जितने भी हमारे भाषावैज्ञानिक हैं उन्होंने और आज भी यूनेस्कोल का आपने जिक्र किया, यूनेस्को ने भी लगातार यह अनुरोध किया है कि अपनी मातृभाषा में ही शिक्षा दी जानी चाहिए और उसी में ज्यादा सार्थकता होगी।
यदि हरिश्चन्द्र जी को देखें तो उन्होंने अपनी कविता में ही लिख दिया कि ‘निज भाषा उन्नति सब उन्नति को मूलबिनु निज भाषा ज्ञान के मिटत न हियो को शूल’तो यह हमारे उन लोगों ने हमेशा कहा और मनोवैज्ञानिकों ने भी इस बात को कहा है कि अपनी मातृभाषा में बच्चेू की 80 से 90 प्रतिशत तक अभिव्यवक्ति बाहर निकलती है। हमारे देश के यशस्वी प्रधानमंत्री जी के सक्षम नेतृत्व में जिस तरीके से भारतीय भाषाओं को बढ़ावा देने के लिए एक सक्रिय दृष्टिकोण अपनाया है उस दृष्टिकोण का हम एनईपी 2020 में लाये हैं। हमने एनईपी के तहत बाल्यकाल से ही मातृभाषा में पढ़ने और पढ़ाने का निर्णय किया है और इसको पूरी दुनिया ने स्वीकार किया है।
मैं समझता हूं कि एनईपी के आने के बाद हम मातृभाषा से प्रारंभिक शिक्षा शुरू करेंगे और कोई भी प्रदेश यदि उच्च शिक्षा तक भी अपनी मातृभाषा में देना चाहता है तो उसको भी खुली छूट होगी और मैं समझता हूं कि पूरी दुनिया ने इसको स्वीकार किया है और हर्ष व्यक्त किया है तथा देश के कोने कोने से जो समाचार मिलते हैं उससे पता लगता है कि हर समाज एवं हर क्षेत्र के लोगों ने इसका स्वागत किया और हमारे देश के प्रधानमंत्री जी ने तो कहा कि अब मातृभाषा में हमारे इंजीनियर भी होंगे और डॉक्टर भी होंगे और यदि इंजीनियर और डॉक्टभर हमारी मातृभाषा में होंगे तो मैं सोचता हूं कि हम अपनी मातृभाषा को न तो शब्दों का समन्वनय कहते हैं बल्कि उसकी संस्कृति है। मातृभाषा में ही हमारा विज्ञान,आचार-व्यवहार एवं उसकी परंपराएं हैं।
हमारे संविधान की अनुसूची 8 में में तमिल, तेलुगू, मलयालम, कन्नड़, गुजराती, मराठी, बंगाली,असमिया,संस्कृत, हिन्दी, उर्दू सहित 22 भारतीय भाषाएं हैं जिसकी खुशबू है और हम बहुत आभारी हैं। मैं देखता हूं किश्रद्धेय वैंकेया जी जहां भी रहे होंगे, उनके लेख भाषा के प्रति चाहे समाचार पत्रों में हों चाहे वे अंग्रेजी मेंहो,हिन्दी में हो,चाहे कन्नड़ भाषा में हो, उनका देश की भाषाओं के प्रति तथा अपनी भाषा के प्रति आग्रह है।हमारा देश इस मार्गदर्शन को अपने मन और मस्तिष्क में लेकर क्या आगे बढ़ता है राज्यसभा में भी जिस तरीके से हमने देखा है आप सबको कहते हैं कि अपनी भाषा में बोलो। जब अपनी भाषा में कोई बोलता है तो आपके चेहरे की मुस्कराहट और खुशी को मैं महसूस कर सकता हूँ।
मैं यह समझता हूँ कि जिस तरीके से आपके निर्देशन में भाषाओं का संरक्षण हो रहा है उससे हम इन भाषाओं के संरक्षण-संवर्धन की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहे हैं और इनको तकनीकी तरीके से और बहुभाषी तरीके से हम लोग नयी शिक्षा नीति में लेकर आये हैं।हमारी यह भी कोशिश है कि हम इसको किसी तरीके से ओर आगे बढ़ा सके तथा इनकी गुणवत्ता भी सुनिश्चित कर सकें। इसी सोच के साथ भारतीय भाषा संस्थान, मैसूर राष्ट्रीय परीक्षण सेवा द्वारा भारतीय भाषाओं और साहित्य के क्षेत्र में मूल्यांकन हेतु सामग्री और प्रशिक्षित मानव शक्ति के विकास के लिए लगातार काम कर रहा है। इसी दिशा में चाहे सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ इंडियन लैंग्वेज हो,चाहे वो हिन्दी संस्थान आगरा हो, चाहे वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्दावली आयोग हो, हिन्दी निदेशालय हो, नेशनल काउंसिल फॉर प्रमोशन ऑफ उर्दू लैंग्वेज हो, महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय हो, यह सभी संस्था न भारत सरकार के साथ मिलकर भाषाओं के उत्था न तथा विकास के लिए काम कर रहे हैं।
अभी राष्ट्रीय अनुवाद मिशन तथा भारतीय भाषा संस्थान मैसूर द्वारा उच्च शिक्षा की पाठ्यपुस्तकों का अनुवाद करके उन्हें भारतीय भाषाओं में उपलब्ध कराने का अभियान जारी है और वहीं दूसरी ओर संस्थान द्वारा अन्य भाषायी स्रोतों का भी निर्माण किया जा रहा है ताकि भारतीय भाषाओं का सशक्त तरीके से विकास हो सके। भारत वाणी परियोजना के माध्यम से हम आज सभी 121 भाषाओं के विकास के लिए कार्य कर रहे हैं जो लुप्तरप्राय: हो गई हैं एवं उनके बोलने वालों की संख्या 10 हजार से ऊपर है। इसको ओर विस्तार देने की जरूरत है ताकि ये भारतीय भाषाएं लुप्त न हों।
संस्कृत, तमिल, कन्नड़, तेलुगू, मलयालम, उडिया जैसी शास्त्रीय भाषाओं में उपलब्ध प्राचीन ज्ञान और विज्ञान की पहचान करके उनके संवर्धन और संरक्षण की दिशा में सरकार काफी तेजी से काम कर रही है। भारतीय भाषा विश्वविद्यालय की स्थापना की दिशा में भी आगे काम हो रहा है और निश्चित रूप से जो वैश्विक सद्भाव में जो हमारे एक आदर्श बहुभाषिक प्रयत्न है वो भी इसमें आगे काम करेगा जो प्रस्तावित भारतीय अनुवाद एवं निर्वचन संस्थान है।हम अन्य अंतर भाषिक अनुवादों तथानिर्वचन कार्यों को ले करके इसके प्रस्थान कर रहे हैं और इसके माध्यम से सभी मातृभाषाओं में बड़े पैमाने पर रोजगार काभी सर्जन हो सकेगा।
एक समय था जब अटल बिहारी बाजपेयी ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में मातृभाषा में अपना भाषण दिया था और हिन्दुस्तान ने तो उसको न केवल हर्षऔर उल्लास का विषय माना बल्कि पूरी दुनिया ने भी उसकी सराहना की थी। हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने भी हमेशा ही कहा और उस संकल्प से सिद्धि की ओर जाने की बात की और सभी भाषाओं के सशक्तिकरण की लगातार उन्होंने चर्चा की, उनका भी हम लोगों पर आशीर्वाद लगातार रहा है।
स्कूली स्तर पर जो एक त्रिभाषा फॉर्मूला हमने लगातार किया है, अब वो मातृभाषा के रूप में निश्चित रूप से बहुत सशक्तिकरण के साथ आगे आएगा क्योंकि हमने शुरू से कहा कि किसी भी राज्य पर कोई भाषा थोपी नहीं जाएगी बल्कित जो वहां की भाषा है उसका सशक्तिकरण ज़रूर किया जाएगा और इसीलिए ये जो भारतीय भाषा विश्वविद्यालय अनुवाद संस्थान के लिए इस समय इस बजट में 50 करोड़ रुपये का प्रावधान भी किया और भारतीय भाषाओं के सशक्तिकरण के लिए संस्थानों को 433 करोड़ रुपए आबंटित किये। उसके लिए अलग से बजट में प्रावधान किया और मुझे इस बात की खुशी है कि हिंदी भाषा संस्थान मैसूर और क्षेत्रीय भाषा केन्द्र को 57 करोड़ रुपये की अभी स्वीकृति भी हुई है, तो मैं समझता हूं कि इस दिशा में आज बहुत सारे संकल्पों को लेकर हम आगे बढ़ रहे हैं। भारत और भारतीयता के अमर गायक भारतेन्दु हरिश्चन्द्र जी की पंक्तियों को पढूंतोलगभग डेढ़ सौ वर्ष पहले उन्होंने कहा था कि ‘विविध कला, शिक्षा,अंक ज्ञान, अनेक प्रकार, सब देशन से ले कराऊं भाषा माही प्रचार’ यह जो उन्होंने कहा है, निश्चित रूप से उसी उसी रास्ते पर हम बढ़ रहे हैं और इस अंतर्राष्ट्री य भाषा दिवस पर संस्कृत में जो परंपराएं समाहितहैं उनके पुनर्जागरण और उनके सशक्तिकरण की जरूरत है।
हम भारत की सभी भारतीय भाषाओं के सशक्तिकरण के लिए संकल्पबद्ध हैं और एक बार ह्रदय की गहराइयों से सभी भाषाविदों,अपने देश के यशस्वी उपराष्ट्रपति जी जिनका हमें हमेशासंरक्षण एवं मार्गदर्शन मिला जिन्होंाने पूरी ताकत के साथ बिना किसी लाग लपेट के भारतीय भाषाओं की उन्नति की दिशा में सशक्तता से अपने न केवल विचार प्रकट किए बल्कि उसका रास्ता भी प्रशस्त करने के लिए हमारा मार्गदर्शन किया है।
ऐसे अवसर पर मैं एक बार हृदय की गहराई से अपने उप-राष्ट्रपति जी का अभिनंदन करता हूं और देश तथा पूरी दुनिया से आज इस अवसर पर जुड़े हजारों अपने सभी उन साथियों को जो भाषा के प्रति चिंतितहैं और उनके संरक्षण के लिए संकल्पित हैं, उन सबका भी मैं इस अवसर पर अभिनंदन करता हूं।
बहुत-बहुत धन्यवाद!
कार्यक्रम में गरिमामयी उपस्थियति:-
1. श्री वैंकेय्या नायडु, माननीय उप-राष्ट्रपपति, भारत
2. डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’, माननीय शिक्षा मंत्री, भारत सरकार
3. श्री संजय शामराव धोत्रे, माननीय शिक्षा राज्यप मंत्री, भारत सरकार
4. प्रो. रजनीश कुमार शुक्ला, कुलपति, महात्माी गांधी अंतर्राष्ट्रीअय हिंदी विश्वाविद्यालय, वर्धा,
5. प्रो. अनिल कुमार शर्मा, उपाध्यरक्ष, केन्द्री य हिन्दीर संस्था्न, आगरा
6. डॉ. रमेश पाण्डेश, निदेशक, केन्द्री य हिन्दीन निदेशालय
7. कर्नल युवराज मलिक, निदेशक, एनबीटी