हिंदी राइटर्स गिल्ड, कनाड़ा द्वारा साहित्य गौरव सम्मान, 2021
दिनांक: 16 जनवरी, 2021
माननीय शिक्षा मंत्री, डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’
इस कार्यक्रम में उपस्थित भारत वर्ष, कनाडा और दुनिया के लगभग 50 देशों से भी अधिक देशों के सभी भाई और बहनों का मैं हृदय की गहराइयों से अभिनंदन करता हूं और आज इस कार्यक्रम में हमारे देवभूमि उत्तराखंड कीमहामहिम राज्यपाल श्रीमती बेबी रानी मौर्य जी जो साहित्य के प्रति बहुत ही लगाव रखती हैं और जिन्होंने जीवन में विभिन्न स्थानों से होते हुए आज महामहिम राज्यपाल के दायित्व को निभा रही हैं मैंउनका पूरेविश्व हिन्दी परिवार की ओर से भी अभिनंदन कर रहा हूं। मुझे खुशी है कि श्रीअजय बिसारिया जी जोभारत के हाई कमिश्नर हैंकनाडा में, उन्होंने हिन्दी को सम्मान दिलाने कीहमेशा कोशिश की है और आज भी संकल्पित हैं। मुझे खुशी है श्रीमती अपूर्वा श्रीवास्तवजी जो भारत की कौंसिलाधीश कनाडा हैं, इन दोनों लोगों के संयुक्त प्रयास से और बिसारिया जी आप के प्रोत्साहन से मैं समझ सकता हूं कि जो कनाडा में मेरे हिंदी लेखक हैं उनको कितना गौरव महसूस होता होगा और उनके अंदर ऊर्जा है जिससे उन्होंने वहांपर हिंदी का एक बड़ा संसार बना दिया है। मुझे भरोसा है कि आपका यह प्रयास कनाडा काएक नया इतिहास लिखेगा। जब मैं शैलजा जी को बोलते हुए सुन रहा था औरमैंने उनको पहली बार सुना है लेकिन उनके वाणीमें सरस्वती विराजमान है।
मैं समझ सकता हूं कि कितने अकलुशित लोग इस अभियान में जुटे हुए हैं। आदरणीय विजय विक्रांत जी हैं, श्री सुमन जी है जिनके बारे में लगातार बोला गया है और शैलजा सक्सेना जी, आप लोगों ने जो यहां पर हिंदी लेखकों का समूह बनाया है, यहबहुत अच्छी पहलहै। पूरी दुनिया में हिन्दी अब केवल कुछ कहानियों के लिए, कुछ कविताओं के लिए, कुछ उपन्यासों के लिए और केवल संवाद के लिए नहीं है बल्कि हिन्दी जीवन है और मानवता की आधार है और इसीलिए हिन्दी पूरी दुनिया के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है।
मुझे इस बात की भी खुशी है कि श्रीअनिल जोशी जी, जो वर्तमान में केन्द्रीय हिन्दी संस्थान के हमारे उपाध्यक्ष हैं लेकिन जब वे विदेश सेवा में थे तब मैं उत्तराखंड का मुख्यमंत्री था 2009-10 में तब भी दुनिया के तमाम देशों से हिंदीसीखने वाले बच्चों को वे लाते थे और उन्हें पूरे हिन्दुस्तान का दर्शन कराते थे। मुझे याद आता है कि इसी राजभवन में हमारे राज्यपाल जी के साथ हम लोगों ने यहां पर बहुत अच्छा कार्यक्रम करवाया था और बच्चों का अभिनंदन कराया था तथा आज उन्होंने सारे विश्व में हिंदी परिवार बनाया है मुझे खुशी है और मुझे भरोसा है कि जिस संस्थान की बागडोर आज इनके हाथों में गई है, केन्द्रीय हिन्दी संस्थान की उसेये विश्व स्तर पर लेकर जाएंगे क्योंकि अभी भी हमारे 25-30 देशों के बच्चे वहां पर रेगुलर पढ़ते हैं, डिग्रियाँ प्राप्त करते हैं और पूरी दुनिया में वो हिंदीके ब्राण्ड एम्बेसडर बन कर के काम कर रहे हैं।
मुझे भरोसा है कि अनिल जोशी जी ने जो अभियान तब से लेकर के जब वे विदेश सेवा में रहे हैं और आज वो विदेश सेवा से निवृत होने के बाद तुरंत हमने इनको एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी सौंपी हैं और कम समय में इन्होंने बेहद व्यापक तरीके से काम करना शुरू किया है। हमारे पूज्य गुरुजी जो बहुतप्रसिद्ध साहित्यकार हैं और जो शिक्षाविद् हैं उस ज़माने के डीलिट हैं और एक कॉलेज के प्रधानाचार्य हुआ करते थे और मैंगुरूजी का भी अभिनंदन करना चाहता हूं। प्रोफेसर योगेन्द्रनाथ अरुण जी का और रमा जी आप तो धाराप्रवाह बोलती है। जिस तरीके से आप ने पीछे भी मैंने देखा था कि‘निशंक का रचना संसार: देश के पार’ आपने जिस तरीके से विश्व के लगभग 30-40 देशों के साहित्यकारों से लिखवाया है मैंउन सभी लेखकों के प्रति भी आभारी हूं।
आपके माध्यम से उनका मैं आभार प्रकट करना चाहता हूं।आप बहुत सक्रिय रहती हैं और हिन्दी में आप जैसे लोग जब सक्रियरहते हैं तो हिन्दी का भविष्यपूरी दुनिया में कोई रोक भी नहीं सकेगा ऐसा मेरा भरोसा है। डॉ. तोमियो मिजोकामी जीजो जापान से हैंऔर निदेशक मंडल केसदस्य हैं आपनेजापान में हिन्दी का बहुत अच्छा माहौल बना दिया है। जैसे कनाडा में आप माहौल बना रहे हैं ऐसे ही जापान में भी बहुत अच्छे तरीके से हिन्दी पर काम-काज हो रहा है।
पीछे के समय मैं जापान गया था तो मुझे बहुत खुशी हुईऔर मुझे बहुत आनंद आता है। हमारे पद्मश्री कल्याण रावतजी इन्होंने जिस तरीके से पर्यावरण की दिशा में काम किया हैं,हम इन पर बहुत ही गर्व करते हैं और स्कूली बच्चों के साथ मिलकर के जो काम कर रहे हैं, वह बहुत बड़ा काम कर रहे हैं। पद्मश्री लीलाधर जगूड़ी जी विख्यातसाहित्यकार और हमारे मार्गदर्शक तथा हमारे बड़े भाई हैं और मुझे याद आता है कि जब मैं पहली बार1991 में उत्तर प्रदेश की विधान सभा में विधायक बन करके गया था तब जगूड़ीजी उत्तर प्रदेश सूचना निदेशालय में संयुक्त निदेशक के पद पर होते थे और हमारा सबका संरक्षण करते थे तथा तब से लेकर के आज तक इनका भी मार्गदर्शन हमको मिलता है, मैं इनके प्रति भी बहुत आभार प्रकट कर रहा हूं।
डॉ. योगी जी बहुत ही विश्वविख्यात चिकित्सक हैं जिन्होंने अपना जीवन लोगों की सेवाकेलिए दिया है और ऐसे सर्जन हैं जो बिगड़ी हुई चीज को सुधारते हैं, रचना करते हैं, खूबसूरत बनाते हैं।मैं आपको विगत 25-30 सालों से जानता हूं कि दुनिया का कोई भी व्यक्ति हो, योगी जी निशुल्कतरीके से सेवा करते हैं तथा बहुत ही बड़े सर्जन हैं तो पद्म श्री योगी जी का भी मैं इस अवसर पर बहुत धन्यवाद देना चाहता हूं।
मुझे इस बात की खुशी है किहमारे इसरो के पूर्व अध्यक्ष पद्मभूषण राधाकृष्णन जी को भीमैं भीदेख रहा हूं और राधाकृष्णन जी को लोगों ने इसरो के अध्यक्ष के रूप में जाना होगालेकिन वो आईआईटी परिषद के भी अध्यक्ष हैं। राधाकृष्णन जी बहुत अच्छे नर्तक भी हैं, मैं आपको बधाई देना चाहता हूं पूरी दुनिया के लोग इस बात से परिचित होंगे कि राधाकृष्णन जी केवल बहुतविश्वविख्यात वैज्ञानिक की नहीं है बल्कि कला के प्रति उनमेंजो समर्पिततामैं बहुत खुश हूं,मैं बहुतगदगद हूं और आपका हम अभिनंदन कर रहे हैं। सम्पूर्ण हिन्दी परिवार आपका अभिनंदन करता है।
मुझे इस बात की भी खुशी है कि कस्तूरीरंगन जी अभी जुड़ नहीं पा रहे हैं लेकिन कस्तूरीरंगन जी जो इसरो के पूर्व अध्यक्ष रहे हैं और नई शिक्षा नीति के लिए उनके मार्गदर्शन में हमने बहुत बड़ा काम किया है वो भी आज जुड़ेंगेंऔर उनका भी आशीर्वाद मिलेगा।पद्मभूषण चंडी प्रसाद भट्ट जी जो हिमालय के पुत्र हैं और आज भी हिमालय केगोपेश्वर से जुड़े हैं भट्ट जी आपका स्वास्थ्य भी ठीक नहीं है और इसके बाद भीआप जुड़े हुए हैं, मैं आपका भी अभिनंदन करता हूं तथा आपका स्वागत कर रहा हूं।
मुझे मालूम है कि पद्म भूषण श्रद्धेय नरेंद्र कोहली जी, पद्म भूषण लोकेश चंद्र जी और पद्म भूषण और पद्मश्री अनिल जोशी जी भी लखनऊ से सीधे हमारे साथ जुड़े हैं, मैं आपका भी ह्रदय की गहराई से अभिनंदन कर रहा हूँ। हम सबके लिए जो प्रेरणा देतेहैं वो श्यामसिंह शशि जी जिनको देखते ही बहुत आनंद आ जाता है और मुझे लगता है आज सेतीस-चालीस वर्ष पहले पद्मश्रीसेविभूषित औरआज भी आपयुवाओं की भाँति सक्रिय रहते हैं।
अटल जी ने उनकीपुस्तकका लोकार्पण किया था। मेरा सौभाग्य है कि आज हमारे साथ बहुत सारे लोग जुड़े हुए पद्मश्री आलोक मेहता जी जुड़े हैं, पद्मश्री अशोक चक्रधर जी जुड़े हैं, पद्मश्री प्रकाश सिन्हाजी हैं, पद्म श्री और बहुत विख्यात पत्रकार मेरे मार्गदर्शक रामबहादुर राय जी भी जुडे हुए हैं। उधर से मैं देखता हूं कि पद्मश्री मालिनी अवस्थी जी लखनऊ से जुडी हुई हैं, पद्मश्री प्रसून जोशी जी मैं आपका बहुत धन्वाद देना चाहता हूँ कि आपके गीतों से हम अभिप्रेत होते हैं और पद्मश्री प्रसून जोशी जी जो फिल्म सेंसर बोर्ड के अध्यक्ष भी हैं, वो जुड़े हैं, आचार्य बालकृष्ण जी मैं आपका भी अभिनंदन करता हूँ तथा प्रणाम करता हूँ और पद्मश्री पुष्पेश पंत जी, पद्म श्री ब्रजेश शुक्ल जी, पद्म श्री बीवीआर मोहन रेड्डी जी,सुभाष घई जी जुड़े हुए हैं, अनुपम खेर साहबजुड़े हुए हैं,महेन्द्र सिंह धोनी जी, मैरीकॉम जी जो हमारे एमपी भी हैं और जिन्होंने पूरे विश्व में भारत का नाम रोशन किया है, पीटी उषा जी मैं आपको भी धन्यवाद देना चाहता हूँ, दीपा मलिक जी मैं आपको भी धन्यवाद देना चाहता हूँ और मुझे लगता है कि आज मेरा सौभाग्य है कि पद्मेश गुप्त जी सहित तमाम लोग जुड़े हुए हैं।
मैं यदि बहुत सारे लोगों का नाम नहीं ले पा रहा हूँ क्योंकि अबसमय भी हो गया है लेकिन मैं कुछ देशों के नाम, जिनके बहुत से लोग हमारे साथ जुड़े हैं, जो मेरे पास सूचना आई है जो इस कार्यक्रम में जुड़े हैं, जो हिन्दी के लिए समर्पित हैं,मैं आज जितने भी देशों के लोग जुड़े हैं जितने मेरे पद्मश्री तथा पद्म भूषण और विभिन्न पुरस्कारों से युक्त और हिन्दीके प्रति समर्पित सभी व्यक्तियों को इस सम्मान को मैं उनको समर्पित कर रहा हूं। चाहेओमान से जुड़े हैं, फिजी से जुड़े हैं,साउथ अफ्रीका से जुड़े हैं, त्रिनिदाद से जुड़े हैं,गुयानासे जुड़े हैं, सिंगापुर से जुड़े हैं,इंडोनेशिया से जुड़े हैं, ताइवान से जुड़े हैं, साउथ कोरिया से जुड़े हैं, जापान, हॉलैंड, मलेशिया, भूटान, संयुक्त अरब अमीरात, कतर, सउदी अरब,पोलैण्ड, अमेरिका, स्विटजरलैण्ड, नार्थ तंजानिया, आयरलैंड, कीनिया, इंग्लैण्ड, थाईलैंड, वियतनाम,आस्ट्रेलिया,इजरायल, सिंगापुर, यमन, कुवैत, मॉरीशस, नेपाल, बेल्जियम, श्रीलंका, युगांडा, यूक्रेन सहित लगभग 55 देशों के लोग जो आज इस कार्यक्रम में जुड़े हैं, मैं आप सभी का अभिनंदन करता हूं और आज 55 देशों से भी अधिकलोगों के जुड़ाव ने यह साबित कर दिया है कि हिंदी अंतरराष्ट्रीय भाषा है और पूरी दुनिया में हिन्दी का बोलबाला है। हिंदी का भविष्यकोई रोक नहीं सकता तथाउसको कोई टोक नहीं सकता और वैसे भी मैं यह समझता हूं कि 67करोड़ से भी अधिक लोगों द्वारा बोली जाने वाली हिन्दी पूरे विश्व की सबसे बड़ी तीसरी भाषा है। लेकिन यदि आज सब लोगों ने यह संकल्प ले लिया है तो हिन्दी पूरे विश्व की नंबर एक भाषा होगी,नंबरदो नहीं होंगी। जिस तरीके से कनाडाकेलोगों ने इस अभियान को शुरू किया पीछे की समय में मैं जब इंग्लैंड से जुड़ा था वो कार्यक्रम ‘वातायन’ का कार्यक्रम था तब भीमुझे बहुत खुशी हुई और मैं यह निवेदन करना चाहता हूं कि हताशा और निराशा होने की कोई ज़रूरत नहीं है।हिंदी केवल भाषा नहीं है बल्कि हिन्दी हमारा जीवन है।
हमको कभी नहीं भूलना है कि हम दुनिया के लिए पैदा हुए है। यही मेरे भारत की संस्कृति का प्राण है। हिंदी और संस्कृत संस्कृति की सोहदरी है हिन्दी। हिन्दी के किसी भी शब्द को लीजिए दुनिया की भाषा आपकिसी भी भाषा को ले लीजिए और उसका वैज्ञानिक विश्लेषण कर लीजिए आप पायेंगे कि हिन्दी पूरी दुनिया की सबसे समृद्घ भाषा है। लगभग 10 लाख शब्दों वाली पूरी दुनिया की सबसे समृद्धतमभाषा हिन्दी है।इसको कोई रोक ही नहीं सकता है,यह है इसका वैभव। इसमें संवेदना भी है, इसमें लालित्य भी है, इसमें विज्ञान भी है, इसमें समाज भी है, इसमें अंतरआत्मा भी है,इसमें संघर्ष भी है, इसमें संवेदना भी है और कौन सी विधा है जो मेरी हिन्दी में नहीं है तथा कौन सा ऐसाक्षेत्र है जो मेरी हिंदी के लेखकों ने स्पर्श नहीं किया हैं।
हिंदी उस भारत की संस्कृति का ध्वजवाहक है जिसमें जो पूरे विश्व में मेरे भारत को कहा था‘‘एतद् देश प्रसूतस्य शकासाद् अग्रजन्मन:, स्वं-स्वं चरित्रं शिक्षरेन् पृथ्वियां सर्व मानव:’’ पूरी दुनिया ने हमसे आकर के सीखा था। तक्षशिला और नालंदा जैसे विश्वविद्यालय, विक्रमशिला जैसे विश्वविद्यालय पूरी दुनिया में तब हमारे ही देश में होते थे और आज भी सुख, शांति और समृद्धि का रास्ता यदि पूरी दुनिया में जाएगा तो उसका रास्ता हिंदुस्तान से होकर के गुजरता है, भारत की संस्कृति से होकर के गुजरता है। इस बात को दुनिया जानती है, मानती भी है, महसूस भी करती है और पहचानती भी है। इस देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने जिस लाइनपर काम किया,जिस ढंग से काम किया, जिस विजनके साथ काम किया, जिस संकल्प एवंजिस संदर्भ के साथ काम किया है, जिस बड़े निर्णय और कड़े निर्णयों के साथ काम किया है वो इस बात को प्रदर्शित करती है कि मेरा भारत विश्वगुरु था वो ऐसे ही नहीं था।
इसलिए आज दुनिया के जितने देशों का नाम मैंने आज लिया है ये सभी देश हिंदुस्तानी मूल के नहीं हैं बल्कि दुनिया के तमाम देशों के भी लोग हैं जो हिन्दी से अनुप्राणित हैं और जो चाहते हैं कि हिन्दी होनी चाहिए। क्यों होनी चाहिए हिन्दी?‘‘अयं निजः परो वेति गणना लघु चेतसाम्। उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्’’अर्थात्पूरी वसुधा को कुटुम्ब मानने वाली, अपना परिवार मानने वाली यही हिंदी हो सकती है और किसी भाषा में दम नहीं है कि वह इन सबको अपनी बाहों में समेटकरके आगे ले जाए और फिर वह संस्कृत की उक्ति ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया, सर्वे भद्राणी पश्यन्तु, मा कश्चिद् दु:ख भाग्भवेत’अर्थात् हर व्यक्ति सर्वे भवन्तु सुखिनः मतलब सभी के सुख की कामना करते हैं और संकल्प यह लेते हैं कि जब तक धरती पर एक प्राणी भी दुखी होगा तब तक मैं सुख का एहसास नहीं कर सकता। पहले मैं उसके दुःख को दूर करूंगा। यह ताकत हिन्दी में ही हो सकती है और किसी भी भाषा में यह ताकत हो नहीं सकती। हम सभी भाषाओंको साथ लेकर के चल रहें हैं लेकिन हिन्दी एक ऐसे सूत्र की भाषा है जो हृदय की भाषा है, जिसमें लालित्य है। पूरी दुनिया में हिन्दी की गतिशीलता बढ़ रही है और जिस सीमा तक और जिस ढंग से हिन्दी का वैभव बढ़ रहा है, निश्चित रूप में यह हिन्दी केवल भाषा नहीं है। हिन्दी संस्कार भी है, संस्कृति भी है, अभियान भी है औरजीवन भी है। उसमें संवेदना भी है, उसमें वेदना भी है और उसमें आगे बढ़ने के ताकत भी है। इसीलिए इस खूबसूरती को हमको संजोने की ज़रूरत है।
मैं समझता हूं हम सब लेखकगण हैं और लेखक के भीतर कोई रचना तभी पैदा होती है जब अंदर से आदमी छटपटाता है। कोई भी चीज जब तक उसके मन के अंदर जो कहीं नकहीं किसी छोर पर उसने एक ऐसा स्थान बनाया हैकि जब तक वो बाहर नहीं निकलती आप चैन से बैठ नहीं सकते हैं औरयह आपकी संवेदना हैं। संवेदनहीन व्यक्ति चाहे राजनीति में है, चाहे वो प्रशासन में है, चाहे वो व्यवसाय में हैअथवाकिसी भी क्षेत्र में क्यों न हो,संवेदनहीन व्यक्ति हमेशा समस्याओं का पूंज होता है और संवेदनशील व्यक्ति समस्याओं के निदान का मुखर नेतृत्व करता है और इसीलिए यह जो संवेदना है वह बहुत जरूरी है क्योंकि व्यक्ति की संवेदना नहीं है तो कुछ भी नहीं है।
यदि एक व्यक्ति है, हाड़ मांस का है उसके नाक,आंख, कान सब उसी तरीके से हैं लेकिन जब कहते हैं कि यह मर गया है, तो मरा क्या है? संवेदनाएं ही तो मरी हैं, वे ही तो खत्म हुई हैं। बाकी तो सब आदमी यदि मरा हुआव्यक्ति है तो नाक भी है, कान भी है, सभी कुछ तो है,केवलप्राण चले गए हैं। सब कुछ खत्म हो गया यदि संवेदनाएं समाप्त हो गई। इसीलिए मुझे लगता है कि हिंदी के लेखकों की बड़ी जिम्मेदारी है कि शालीनताके साथ इस संवेदना को सरसायाजा सकता है, विकसित किया जा सकता है, अपनी भावनाओं मेंअपने शब्द सबसे बड़ी शक्ति हैं। अभी जो हम कह रहे हैं, वह बात हमारे ह्रदय तक पहुंचती है, बात होती है तो ह्रदय में अपना स्थान बनाती हैं और वैसे ही आदमी करनेलग जाता है।
दुनिया की सबसे बड़ी ताकत हैशब्दजो कुछ भी कर सकते हैं। अभी यदि कोई किसी को गाली दे देगा तो वहीं पर महाभारत शुरू हो जाएगा। जबकि केवल शब्द ही तो निकले हैं। उन शब्दों ने संस्कार भी दिए हैं, उन शब्दोंने प्रकृति के अनुरूप संस्कृति भी दी है। शब्द ठीक नहीं तो विकृति का रूप होगा औरविकृतीहमेशा विनाश का कारण होती है। जब शब्द सही होते हैं और धैर्यपूर्वक होते हैं तथा शालीनता होती है एवं उसमें संवेदनाएं होती हैं तो संस्कृति के रूप में विकसित होते हैं। संस्कृति हमेशारचना का काम करती है, सृजन का काम करती है।
इसलिए मेरा भरोसा है कि हमारा जो अभियान है वो छोटा अभियान नहीं है। हमारा अभियान कविता, कहानी और उपन्यास तक का अभियान नहीं है। हमारा अभियानउस जीवन का अभियान है जिसमें हमारी गीता भी आती है, हमारी रामायण भी आती है, जिसमें हमारी गीता जीवन मूल्य सिखाती है। हमारा एक ओर तो हमारी गीता कहती है कि आत्मा परमात्मा को जोड़ती है। हमारी गीता ने हमको बताया तभी तो हम सारे विश्व में महान रहे हैं, बड़े रहे हैं क्योंकि हमने शरीर का अस्तित्व कुछ नहीं माना। शरीर तो हमारा केवल माध्यम है जबकि हमारा लक्ष्य कुछ ओर है।हमने कहा कि शरीर से ज्यादा मोह मत पालो क्योंकियह शरीर तो नश्वर है। यह हमारा साथ कभी भी छोड़ जाएगा, अभी इधर बैठे हुए हैंमगर अगला क्षण किसका है, कौन जानता है?इसका मतलब जब तक मैं बोल रहा हूं तब तक ही वो मेरा है यह गीता ने हमको समझाया है कि जो जीवन है उसको अच्छे से जियो। यदि यह क्षण अच्छा होगा तोपूराजीवनअच्छा होगा,यदियह क्षण ठीकनहीं है तो आपकाअगला क्षण कहां से अच्छा हो जाएगा और इसीलिए यह जो गीता का उपदेश है इसेपूरी दुनिया ने माना है और कहाकि आत्मा हमको परमात्मा से जोड़ती है।
शरीर तो चला जायेगा लेकिन जो जाता नहीं है वह आत्मा है। जो आत्मा है वो तो मरती नहीं है।फिर किस बात की चिंता है,फिरशरीर से क्यों मोह है? जो आत्मा है वो तो जैसे हम वस्त्र बदलते हैं, उसी प्रकार आत्मा भी हमारा शरीर छोड़कर दूसरे शरीर में प्रवेश करती है।इसका मतलब आत्मा की शुद्धि चाहिए आत्मा की पवित्रता चाहिए वो आत्मा हमारी संवेदनशील चाहिए और इस संवेदनशील आत्मा को बचाये रखना हीसबसे बड़ी चुनौती है और यहकाम मेरा लेखक हीकर सकता है।
वही कर सकता है जिसके मन में संवेदना की गूंज अंदर से उसको चैन से न बैठने दे रही हो।यदि किसी करुणा के समय में जिसकी आँखों में आँसू न आ जाए, यदि किसी परअन्याय होगा जिसकी भुजाएं नाफड़कने लग जाएं,जो परिस्थितिजन्य अपनेको देख नहीं पा रहा है,उस मिशन को बढ़ा नहीं पा रहा है, ऐसे तटस्थ लोग दुनिया के लिए अच्छे नहीं होते और इसीलिए आज जरूरत है कि कैसे करके हिन्दी केवैभव को पूरी दुनिया के लिए विकसित करें।
हम लोग तो वो रहे हैं जैसेअभी गुरूजी कह रहे थे कि धरती को हमने मांमाना है।कौन देश हमारा विरोध कर सकता है क्योंकि हमने तो पूरी पृथ्वी को अपनी मांकहाहै और इस पृथ्वी में पैदा होने वाला हरजीव जंतु मेरा अंग है, जैसे परिवार होता है। इसलिए दुनिया के उन देशों पर जो पूरी दुनिया को मार्किट के नाम से जानते हैं, मार्किट बताते हैं हम उनसे इत्तफाक नहींरखते हैं। हम उनकी बातों से सहमत नहीं होतेहैं। हम पूरी दुनिया को परिवार मानते हैं।
लोग उस दुनिया को मार्किट मानते हैं। बाजार में हमेशा व्यापार होता है। परिवार में हमेशा प्यार होता है। बहुत अंतर है उनके और हमारे विचार में। हम प्यार से इस पूरे संसार के इस परिवार को आगे बढ़ाना चाहते हैं, उसकी भावनाओं को विकसित करना चाहते हैं, हर समस्या का समाधान करने के लिए मिलकर के कामकरना चाहते हैं,यहहमारा संकल्प है।हमअसत्य से सत्य की ओर जाएंगे क्योंकि हम जानते हैं कि अंततोगत्वा सत्य की ही जीत होगी तो उस असत्य को क्यों ढोंएंगे।हमें ताकत चाहिए उन शब्दों के माध्यम से उससत्य को फैलाने की।‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ इस अंधकार को मिटाने का ही तो हमने संकल्प लिया है। अंधकार कहीं भी हो सकता है किसी के दिल में हो सकता है। अज्ञान का अंधकार हो सकता है, भावनाओं का अंधकार हो सकता है, विकास का अंधकार हो सकता है, परिस्थितियों का अंधकार हो सकता है लेकिन उस अंधकार को मिटाने के लिए ही तो हमने यह अभियान लिया है। मैं समझता हूं कि यदि कोई व्यक्ति है औरवो सो हो रहा है तो सोए हुए को तो जगाया जा सकता है और जिस समय वह जगता है उसी समय उसका सबेरा है।
यदि कोई भावनाएं हमारे मन और मस्तिष्क में आती हैं और आपने देखा होगा क्योंकिआपसभी लोग लेखक गण हैं तो वे व्यस्त होने का रास्ता भी खोजते हैं। पद्मश्री दीपक पाठक जी और मनींद्र अग्रवाल जी भी अभी जुड़े हैं तथा बहुतसारे लोग जुड़े हुए हैं और मुझे खुशी इस बात की है कि इसका मतलब यह है कि हमारे विचारों में ताकत है, भारत के विचारों में ताकत है, हमारे समाज में ताकत है, हमारी उस गतिशीलता में ताकत है और इसीलिए हमारा विचार है कि हमअंधकार को मिटाएंगे।
उस अंधकार को मिटाने की ताकत हैं हममें, हम शब्दों से, भावनाओं से, विचारों से, कविताओं से, कहानियों से, उपन्यासों से,संवाद से, जो-जो, जिस-जिस समय, जिस-जिस ढंग से परिस्थितियांहमारे सामनेआएंगी, हम उन परिस्थितियों का मुकाबला करके अपने उस लक्ष्य कोसहज बनाकर उसे प्राप्त करने का काम करेंगे। मुझे बहुत खुशी है कि आज विश्वविद्यालयोंके बहुत सारे कुलपति भी जुड़े हैं।प्रो. रजनीश शुक्ल, महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा के कुलपति हैं, मैं आपसे अनुरोध करूंगाकि गांधी जी ने कहा था कि जिसकी अपनी भाषा नहीं होती वो तो गूंगा राष्ट्र है और आपकी जिम्मेदारी है कि आप गांधी जी के सत्य, प्रेम और अहिंसाकेसंदेश को हिंदी के माध्यम से पूरी दुनिया में सरसाएंगे।पीछे के दिनों में यूनेस्को में जब मीटिंग हुई तो वहां की डी.जी. ने पूछा किजीवन मूल्यों में गिरावट आई है इसके क्या कारण हो सकते हैं?
मैंने उनको कहा कि हमने मनुष्य को मनुष्य बनाया कहां है, हमने तो मशीन बनाये हैं। केवल अंक ज्ञान और अक्षर ज्ञान मनुष्य नहीं बना सकता वह तोमशीनों में भी है। अभी हम जिस नयी शिक्षा नीति 2020 को लेके आए हैं मुझे इस बात की भी खुशी है कि उससेपूरे देश में आज उत्सव का वातावरण है। अभी कैम्ब्रिज ने कहा है कि इस तरीके की जो शिक्षा नीति है, वह वास्तव में अद्भूत है। अभी संयुक्तअरब अमीरात के शिक्षा मंत्री जी से बात हुई, उधर मॉरीशस हो, चाहे आस्ट्रेलिया हो तमाम दुनिया के देशों ने कहा है कि इस एनईपी को हम भी लेना चाहते हैं। हमने आमूल चूल परिवर्तन किया है लेकिन उसकी आधारशिला भारतीयता पर है।हमउस भारत की बात करते हैंजहां सुश्रुत पैदा हुआ जो शल्य चिकित्सा के जनक थे।
उस भारत की बात करते हैं जिसने आयुर्वेद की बात की, पूरी दुनिया के तन और मन को ठीक करने के लिए हमारे पास आयुर्वेद था, हम उस भारत की बात करते हैं।आज दुनिया के 197देश योग के पीछे खड़े हो गए हैं क्योंकि भगवान की सबसे सुंदरतम कृतिमनुष्य को हमको बचाना है। भाषा विज्ञानमें हमारे पाणिनी से बड़ा भाषा वैज्ञानिक दुनिया में कौन हो सकता है,रसायनशास्त्र में नागार्जुन से बड़ा कौनहो सकता है?अणु और परमाणु कीचर्चा करनेवाले और उस विचार को आगे बढ़ाने वालेऋषि कणाद से बड़ा कौन हो सकता है? मुझे खुशी है कि कैम्ब्रिज ने जबइस नयी शिक्षा नीति पर मुझे चिट्ठी भेजी थी, मेल किया था और अनिल जोशी जी उस दिन थे। उनका जो मेल आया था उन्होंने कहा कि भारत पहले भी विज्ञान का केन्द्र रहा है, भारत ने ही पूरे विश्व को गणित दिया।
पूरी दुनिया जानती है कि हमारे पास बहुत कुछ है देने के लिए। हमारे पास वेद है, पुराण है,उपनिषद है। हम दुनिया के लोगों का तन और मन ठीक कर सकते हैं और इसीलिए जो तन और मन को ठीक कर रहे हैं। खूबसूरत दुनिया होगी हमारा विचार बड़ा है। हमारे विचार संकीर्णनहीं है। हम तो पूरी दुनिया के लिए सोचते हैं और इसीलिए दुनिया का जो मनुष्य है और इस मनुष्य के बारे में सोचते हुए मुझे हमारे विचार पर मुझे भरोसा है। दुनिया को जरूरत है मेरे भारत की, भारत के विचारों की और इन विचारों के ध्वजवाहक के रूप में हिंदी के जो लेखक है ये आगे आ रहे हैं, मुझे बहुत खुशी है। अभी जगूड़ी जी ने चिंता जरूर व्यक्त की है लेकिन भाईसाब को मैं कहना चाहूंगा कि निराशा जैसी कोई बात नहीं है।
आप देखिए,बहुत तेजी से परिवर्तन हो रहा है। हमारे इसरो के चेयरमैन यहांबैठे हुए हैं और हमारे आईआईटी परिषद के चेयरमैन भी हैं लेकिन जब हम लोग मीटिंग करते हैं तो शायद राधाकृष्णन जी ने कभी हिन्दी में नहीं बोला होगा,लेकिन वे बहुत खूबसूरत हिन्दी बोलते हैं, बधाई राधाकृष्णन जी,हमारेजितने आईआईटी के प्रोफेसर हैं, निदेशक हैं खूबसूरत हिन्दी बोलतेहैं,उनको बहुत अच्छालगता है। हिन्दी में लालित्य है, हिन्दी में इतने शब्द हैं कि आप किसी भी शब्द के माध्यम से अपनी भावना को व्यक्त कर सकते हैं।यह सामर्थ्य हिन्दी के पास है जोछोटा सामर्थ्य नहीं,बहुतबड़ा शब्द सामर्थ्य है। अभिव्यक्ति का इससे बड़ा साधन क्या हो सकता है?
हम सौभाग्यशाली है क्योंकि तमिल, तेलुगू, मलयालम, गुजराती, मराठी, बंगाली, उड़िया, उर्दू, हिन्दी, संस्कृत, असमिया सहित 22 ऐसी खूबसूरत भाषाएं हमारे संविधान ने हमको दी हैं और हम उन सभी भाषाओं की खूबसूरती लेना चाहते हैं। उसके अंदर उसका ज्ञान, विज्ञान, आचार, व्यवहार जो उसकी परंपराएं हैं हम उन सब कोलेना चाहते हैं। हम दुनिया को इस खूबसूरती को बांटना चाहते हैं।हमहर क्षेत्र में ज्ञान विज्ञान अनुसंधान नवाचार में बहुत आगे थे और आगे हैं आज भी है और इसलिए मुझे भरोसा है कि यह एक अभियान के रूप में चलना चाहिए। यह रुकना नहीं चाहिए इस अभियान की लोगों को जरूरत है,लोग तड़प रहें हैं, पूरी दुनिया तड़परही है, मैं दुनिया के देशों में जब-जब भी जाता हूं तब मुझे लगता है कि हिन्दी और संस्कृत के प्रति लोगों में बहुत रुझान है क्योंकिउसमें जीवंतता मिलती है,उनमें अपनी भावनाएं व्यक्त करने की आत्मीयता मिलती है,जीवन को आगे बढ़ाने की प्रेरणा मिलती है और इसलिए यह जो हिन्दी है इसकी खूबसूरती बरकरार रखनी चाहिए। श्रीरमेश कुमार पाण्डे जी कुलपति लालबहादुर शास्त्री संस्कृत विद्यापीठ, प्रो. सुधा रानीपांडे जी पूर्व कुलपति, पद्मश्री श्याम सिंह जी, कुलपति राजकुमार जी पंजाबविद्यालय, प्रो. अवनीश कुमार अध्यक्ष वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्दावली आयोग, आपको काफी मेहनत करनी पड़ेगी क्योंकि अभी मेरे देश के प्रधानमंत्री ने कहा कि इंजीनियर एवं डॉक्टर दोनों अपनी मातृभाषा में हो सकेंगे। प्रो. गोपाल शर्मा जी,विजिटिंगप्रोफेसर, इथोपिया आपका भी अभिनंदन हैं।श्रीऋषभदेव शर्मा जी आपका भी बहुत अभिनंदन है। मोहनकांतगौतम जी, श्वेता दीप्ति जी, सोमा बंद्योपाध्याय जी कुलपति बहुत अच्छा गाती हैं। सोमा जी आप बंगाल की धरती पर बहुत अच्छी कविताएँ लिखती हैं, अच्छा गाती हैं।
प्रो.रंजन प्रसाद सिंह जी भी जुड़े हैं, प्रो. सूर्यप्रताप दीक्षित जी हमारे सबके बहुत ही पूजनीय हैं। डॉ.राकेश कुमार शर्मा जी संपादक केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय, डॉ. पंकज चतुर्वेदी जी, युवराज मलिक जो डायरेक्टर हैं एनबीटी के, मुझे खुशी होती है कि इतना बड़ा परिवार है और वरिष्ठस्थानों पर हम लोग बैठे हैं कोईकमी नहींहो सकती है और इसलिए हमआपने महामहिम राज्यपाल जी को यह आश्वस्त कर ही सकते हैं कि आज हमारा संकल्प का दिन है कि हम पूरी दुनिया में हिन्दी को लेकर केजाएंगे और हिन्दी पूरे विश्व की भाषा बनेगी।
मैं आभारी हूं आपने मुझे याद किया औरमैंबहुतहृदय की गहराईयों से आपके प्रति आभार प्रकट करता हूं और मुझे भरोसा है कि यह संवेदना रूकेगी नहीं बिल्कुल यहअभियान के रूपमें चलेगी और ‘अभी भी है जंग जारी’ जो अभी हमारे भारत के पूर्व-राष्ट्रपति भारत रत्न अब्दुल कलाम जी के बारे मेंगुरूजी ने उनकके शब्द पढ़े जब मैं उनको मिलने के लिए गया तो उन्होंने कहा कि आपकी तो 1983से ही रेडियो पर देशभक्ति के गीत आते हैं। मेरे को जानकारी मिली है कि क्या यह सारे देशभक्ति के गीत इकट्ठा नहीं हो सकते, मैंने कहा कि क्यों नहीं हो सकते, आप बताइये उन्होंने ही उसकिताब का शीर्षक भी दिया था।‘ऐ वतन तेरे लिए’इसकायह नाम होगा तो मैंने उनके आदेश का पालन किया और वे सभी देशभक्ति के गीत एक जगह आए।
जब उन्होंने लोकापर्ण किया तो इस संग्रह की एक कविता- ‘‘अभी भी है जंग जारी वेदना सोई नहीं है मनुजता होगी धरा पर,संवेदना खोई नहीं है, किया है बलिदान जीवन, निर्बलता ढोई नही है और कह रहा हूंऐवतन तुझसे बड़ा कोई नहीं है।’’और लास्ट की पंक्ति कहते-कहते उनकी आंखों से आंसू छलक आये थे और तब मुझे लगा था कि उनके मन में संवेदनाएं और जागरूकता किस सीमा तक की है।उस दिन मैंने संकल्प लिया था कि मैं उनके विचारों पर कुछ अवश्य लिखूंगा। उनके जीते जी तो नहीं लिख पाया लेकिन मैंने उन्हीं के शब्दों को उधार लेकर‘सपने जो सोने ना दें’ शीर्षक पुस्तक लिखी थी,जिसका तमाम भाषाओं में अनुवाद भी हुआ और वह बहुत लोकप्रिय हुई आज मैं उस किताब को आपको समर्पित कर रहा हूं क्योंकि हम सबने बहुत अच्छे सपने देखें हैं लेकिन कलाम साहब के सपने जो सोने न दें और जब तक हमारे सपने पूरे नहीं हो जाते हम भी चैन से नहीं बैठेगें और आज हम इस संकल्प के साथ यहां से जाएंगे। एक बार मैं पुन: आपके प्रति बहुत आभारी हूं।
बहुत-बहुत धन्यवाद!
कार्यक्रम में गरिमामयी उपस्थिति:-
- डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’, माननीय शिक्षा मंत्री, भारत सरकार
- श्रीमती बेबी रानी मौर्य, महामहिम राज्यपाल, उत्तराखण्ड
- प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल, कुलपति, महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा
- श्री युवराज मलिक, अध्यक्ष, राष्ट्रीय पुस्तक न्यास
- श्री रमेश कुमार पाण्डे, कुलपति,लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय
- प्रो. राजकुमार, कुलपति, पंजाब विश्वविद्यालय, पंजाब
- प्रो. अवनीश कुमार, अध्यक्ष, वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्दावली आयोग